Tuesday, January 24, 2012

Fwd: [CHATARPATI SHIVAJI SHAKTI DAL] आरक्षण : दलितों की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक...



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Date: 2012/1/24
Subject: [CHATARPATI SHIVAJI SHAKTI DAL] आरक्षण : दलितों की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक...
To: CHATARPATI SHIVAJI SHAKTI DAL <151086581665073@groups.facebook.com>


आरक्षण : दलितों की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक...
Lala Ahirwar 8:11pm Jan 24
आरक्षण : दलितों की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक स्थिति में सुधार हेतु एक समझौता :

क्या वाकई में भारत में आरक्षण का प्रयोजन सिद्ध हो गया है?
क्या वाकई में SC, ST, OBC में आने वाली जातियों का सामाजिक स्तर उठ गया है. क्या वाकई में इन लोगों को समाज में इज्जत की नजर से देखा जाता है?
आज सुबह जब मैं घर के बाहर आया तो मैने देखा कि दलित महिला झाडू लगा रही थी और साथ में कचरा ट्राली लेकर चल रही थी, मेरे पडोस की सभी महिलाएं ज्यादातर ब्राह्मण, जैन, राजपूत, वैश्य इत्यादी दो फीट दूर से ट्रोली में कचरा फैंक रहीं थी. थोडी देर बाद जब वो रोटी लेने आयी तो सारी महिलाएं उस दलित महिला के टोकरे में दूर से ही रोटियाँ फैंक रही थी. वो महिलाएं उस दलित महिला को छूना नहीं चाहती थी, इसलिये दूर से ही रोटियां फैंक रहीं थी.
ये घटना पूरे देश में रोज सवेरे घटती है.
तो फिर कहां से लोगों को लगता है कि इन लोगों का सामाजिक स्तर बढ गया है. लोग उसके छूने से डर रहे हैं कि कहीं अपवित्र न हो जाए, क्योंकि वो मल मूत्र साफ करके आयी है.

मैं आपको एक दृश्य दिखाता हूँ.
सोचिये कि एक ऐसा ब्राह्मण जो छूआछूत करता हो घायलावस्था में हाई-वे पर पडा है तथा दूर दूर तक कोई नजर नहीं आरहा और थोडी देर बाद एक ओर से कंधे पर झाडू उठाए एक दलित आ रहा है. वह घायल को देखते ही उसे बचाने की सोचता है तथा घायल को कंधे पर उठाकर ले जाता है तो क्या वो घायल ब्राह्मण दलित से मना करेगा कि मुझे मत छू, पहले नहाकर आ?
आज भी देश के कई हिस्सों में रोज दलितों का अपमान हो रहा है.
तो फिर कहां से इनका सामाजिक स्तर बढ गया है?
आज भी राजस्थान में कई जगह दलित दुल्हों को घोड़े से उतार दिया जाता है.
क्या दलित हिन्दू नहीं हैं? क्या उन्हें घोड़े पर बैठने का हक नहीं है?
ऐसे ही कई कारण है जिस वजह से सरकार ने आरक्षण का प्रावधान कर इनका सामाजिक आर्थिक स्तर उठाने का कदम उठाया था.
आरक्षण दलितों का सामाजिक स्तर सुधारने के लिये किया गया प्रयास है. पदोन्नति के लिये आरक्षण भी इसी कार्य का एक हिस्सा है. जिससे कि ऊँचे पदों पर भी पिछडी जातियों के लोग आयें ओर उनका प्रतिनिधित्व करें.

आरक्षण का प्रमुख उद्देश्य दलितों / पिछड़ों को शिक्षित करना है इसका ये मतलब नहीं कि दलितों को सिर्फ साक्षर कर दो, दलित अपने स्तर पर किये प्रयासों द्वारा उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाता है क्योंकि अक्सर दलित गरीब होता है और जातिप्रथा का शिकार होता है, अतः उच्च शिक्षा के लिये भी आरक्षण जरूरी है.

पुत्र जिन्दगी भर पिता पर बोझ नहीं बन सकता, उसको भी घर को चलाना ही पड़ेगा. पिता के जमाने के कॉम्पीटीशन में और अभी के कॉम्पीटीशन में कितना अन्तर है ये सभी जानते हैं. प्रतियोगिताओं में आरक्षित वर्गों की मेरिट उंची होना प्रमाण है कि कॉम्पीटीशन बढ़ गया है. इसलिये बच्चे को भी आरक्षण की आवश्यकता है. हमारे देश में पिता का राशन कार्ड में नाम होने के बावजूद पुत्र व्यस्क होने पर अपना राशन कार्ड अलग बनाता है क्योंकि उसका संघर्ष उसका अपना होता है, अतः पिता के आरक्षण लाभ लेने के बाद उसके पुत्र को भी आरक्षण की आवश्यकता है.

मौजूदा आरक्षण व्यवस्था ने 65 साल में जो कुछ किया, हमारे सामने है. जातिवाद, छुआछूत बरकरार है, आर्थिक, सामाजिक असमानता बरकरार है. यह वर्तमान आरक्षण व्यवस्था की असफलता नही है, बल्कि इससे एक बात पता चलती है कि इसे ईमानदारी से लागू नहीं किया गया. इसके साथ ही यदि कोई दवा किसी रोग को अत्यंत धीमे ठीक कर रही है और उसका असर धीमी गति से हो रहा है तो दवा बन्द नहीं की जाती बल्कि उसकी मात्रा में ईजाफा कर दिया जाता है, रोगी को मरने के लिये नहीं छोड़ दिया जाता. एक और उदाहरण लो, हमारा कोई कार्य सरकारी दफ्तरों में लालफीताशाही के कारण यदि धीमी गति से होता है या फिर होता ही नहीं है तो क्या हम प्रयास बन्द कर देते हैं. नहीं ना, तो फिर आरक्षण भी धीरे धीरे असर कर रहा है.

वर्गों के मध्य संघर्ष तो सदियों से इस देश में चलता आरहा है, आरक्षण से वह नहीं बढ़ेगा, आरक्षण से दलितों की सामाजिक हैसियत में सुधार आएगा. हां इतना कह सकता हूं कि जब तक गैर-दलित दलितों की इज्जत करना नहीं सीखेंगे, आरक्षण मिलता रहेगा. अगर आने वाले 25 वर्षों में सभी वर्ग समान हो जाएें, तब हो सकता है, इस आरक्षण कि जरूरत ही नहीं पड़े. यदि सामाजिक व्यवस्था के कर्णधारों ने संविधान के प्रावधानों को लागू करने में ईमानदारी और सदाशयता दिखाई होती तो शायद अब तक आरक्षण समाप्त हो गया होता.

आरक्षण योग्यता को नहीं खा रहा हैं बल्कि छुपे हुए योग्यता का विकास कर रहा है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आरक्षण किसी का हक नहीं है बल्कि यह तो प्रयास है पिछड़ों को उबारने का. आरक्षण दो पक्षों के बीच हुये समझौते के परिणाम स्वरूप दलितों को दिया गया है. आरक्षण कोई खैरात या भीख नहीं.

आरक्षण विरोधी लोग आज जो दलीलें पेश करते हैं, वे नाजायज और गैर-कानूनी हैं. दलित और गैर-दलित लोग इसी देश के बाशिंदे हैं. देश में विगत दो हजार सालों से तथाकथित दलितों के साथ गैर-दलितों ने जो कुछ किया है, भारत का इतिहास उस दास्तान से भरा पड़ा है. जब ये आरक्षण व्यवस्था लागू की गयी थी तब ये अंदाजा लगाया गया था कि 10 वर्षों में दलितों की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक स्थिति में वांछित सुधार हो जायेगा, परन्तु आरक्षण विरोधी मानसिकता के लोगों ने छल, कपट और बेईमानी से इसे पूरा नहीं होने दिया, और आज इसी मानसिकता के स्वार्थी लोग इस व्यवस्था का विरोध कर रहे हैं.

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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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