Saturday, July 7, 2012

फिर विनिवेश तेज करने की मुहिम!

फिर विनिवेश तेज करने की मुहिम!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
कारपोरेट इंडिया की आक्रामक लाबिइंग मंटेक सिंह आहलूवालिया के राज में रंग दिखाने लगी है। जहां कौशिक बसु ममता दीदी को मल्टी​​ ब्रांड रीटेल के पायदे गिनाने में लगे हैं , वहीं मुकेश अंबानी और अनिल अग्रवाल विनिवेश तेज करने पर जोर दे रहे हैं। चिदंबरम को स्पेक्ट्रम नीलामी की जिम्मेवारी दे दी गयी है जबकि वित्त सचिव गुजराल गार के साये में हाशिये पर हैं।अंबानी बंधुओं के बाद वेदांता समूह के अनिल अग्रवाल ने शुक्रवार योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह से मुलाकात की।मोंटेक से मिलने के बाद अनिल अग्रवाल ने सरकार की विनिवेश प्रक्रिया को धीमा बताया है। उन्होंने सरकार से हिंदुस्तान जिंक और बाल्को में बाकी हिस्सा बेचने की अपील की है। अनिल ने कहा कि इस 17,000 करोड़ के प्रस्ताव पर सरकार से जवाब मिलना अभी बाकी है।दूसरी ओर, कॉरपोरेट अफेयर्स मंत्रालय को डीएलएफ के खातों में कोई गड़बड़ी नहीं मिली है। कॉरपोरेट अफेयर्स मंत्रालय ने पिछले हफ्ते ही कंपनी के खातों की जांच का आदेश अपने रीजनल डायरेक्टर को दिया था।कॉरपोरेट अफेयर्स मंत्री वीरप्पा मोइली के मुताबिक जांच में अकाउंटिंग स्टैंडर्ड और डायरेक्टर की उम्र से जुड़ी गड़बड़ी मिली हैं। हालांकि डीएलएफ पर जांच अधिकारियों से कुछ सवालों के जवाब मांगे गए हैं। जांच अधिकारियों के जवाब के बाद डीएलएफ पर रिपोर्ट फाइनल करेंगे।सरकार दो सामान्य बीमा कंपनियों को सूचीबद्घ कराने की योजना पर आगे बढऩे की तैयारी कर रही है। इसके तहत जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (जीआईसी आरई) और न्यू इंडिया एश्योरेंस को मर्चेंट बैंकर नियुक्त करने को कहा गया है। इस मामलेे से जुड़े सूत्रों के मुताबिक जीआईसी आरई और न्यू इंडिया एश्योरेंस पहले ही कंपनियों के मूल्यांकन के लिए मर्चेंट बैंकर नियुक्त कर चुकी है। मंत्रालय के सूत्रों ने बताया, 'विनिवेश पर निर्णय करने के लिए कंपनी का मूल्यांकन अहम है। सरकार के पास दो- विनिवेश और ताजा इक्विटी जारी कर हिस्सेदारी कम करने का विकल्प है।' माना जा रहा है कि सरकार दोनों कंपनियों में 10-10 फीसदी हिस्सेदारी का विनिवेश कर सकती है। विदेशी मुद्रा का प्रवाह बढऩे से बाजार के हालात सुधरेंगे, जिससे सरकार अपने विनिवेश कार्यक्रम पर आगे बढ़ सकती है। चालू वित्त वर्ष के दौरान सरकार ने विनिवेश के जरिये 30000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है।

देश की मुद्रा में पिछले कुछ समय में काफी तेज गिरावट दर्ज की गई है, लेकिन भारत के लोगों को सचाई स्वीकार करना होगा और प्रति डॉलर लगभग 50 रुपये की विनिमय दर के साथ रहना सीखना होगा। यह बात मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने शनिवार को कही। भारत चैम्बर ऑफ कॉमर्स के एक कार्यक्रम में कोलकाता में बसु ने कहा, 'कोई नहीं चाहता कि प्रति डॉलर 56-57 के आसपास रुपये के उतार-चढ़ाव रहे। लेकिन आपको सचाई स्वीकार करनी होगी। प्रति डॉलर 46/47 रुपये के दिन लद चुके हैं। अब प्रति डॉलर रुपया 50 या उसके नीचे रहेगा।'उन्होंने कहा कि रुपये में काफी गिरावट आई है, लेकिन इस गिरावट से रुपये को बचाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक डॉलर की काफी अधिक बिक्री नहीं कर सकता है, क्योंकि इससे बाजार में काफी अफरातफरी मच सकती है। उन्होंने कहा कि भारतीय उद्यमियों को रुपये में गिरावट का लाभ उठाने के लिए निर्यात बढ़ाना चाहिए।यहीं नहीं, कौशिक बसु का मानना है कि खुदरा क्षेत्र में एफडीआइ प्रस्ताव का विरोध कर रही तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी इसका समर्थन कर सकती हैं, बशर्ते उन्हें सही तरीके से समझाया जाए।उन्होंने कहा कि अगर ऐसा किया जाता है तो मुख्यमंत्री की समझ में आ जाएगा कि आर्थिक सुधारों से बंगाल के लोग फायदे में रहेंगे।कौशिक ने कहा,'चूंकि मल्टीब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआइ पर बहस जटिल रूप ले चुकी है। जहां तक मेरा मानना है, ममता बुद्धिमान हैं। अत: उन्हें किसानों और आम ग्राहकों को इससे होने वाले फायदे के बारे में उन्हें बेहतर तरीके से समझाया जाना चाहिए। इसके बाद उनके एफडीआइ पर राजी नहीं होने की कोई वजह नहीं होगी।'कौशिक के मुताबिक, भारत जैसे विशाल बाजार को दुनिया के दूसरे देशों के लिए खोलना आम आदमी के हित में ही होगा। इसके फायदे को सही तरीक से पेश नहीं किया जा रहा है। आज अर्थव्यवस्था कठिन दौर से गुजर रही है। रुपये की कीमत डॉलर के मुकाबले काफी नीचे चली गई है। ऐसी स्थिति में डीजल मूल्य से नियंत्रण हटाने सहित छोटे आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाना ही होगा। अगर निर्यात को बढ़ाना है तो मौद्रिक नीति के साथ ही प्रशासनिक सुधारों की ओर भी बढ़ना होगा।कौशिक बसु ने कहा है कि भारतीय उद्योग जगत को चीन में बढ़ती विनिर्माण लागत का फायदा उठाना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपने उत्पादों को आगे ले जाना चाहिए।

हालांकि बसु के बयान को लेकर हो रही चर्चा के बीच ममता ने साफ किया कि खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को वह कभी मंजूर नहीं करेंगी। यह पश्चिम बंगाल सरकार की नीति है, क्योंकि उनकी पार्टी मल्टीब्रांड रिटेल के सख्त खिलाफ है। मुख्यमंत्री शनिवार को संवाददाताओं से मुखातिब थीं।सुबह कौशिक के बयान के बाद तृणमूल के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने यह बात बनर्जी को बताई। इसके बाद उन्होंने एफडीआइ पर राजी होने की बात आनन-फानन खारिज कर दी। ममता ने यह भी कहा कि रिटेल में एफडीआइ पर उनकी पार्टी का रुख घोषणापत्र में स्पष्ट कर दिया गया है।

उद्योग जगत की दलील है कि निफ्टी साल के अंत तक 6,000 का स्तर छू सकता है और तब सरकार का विनिवेश कार्यक्रम जोर पकड़ सकता है। लेकिन, इसके बाद के महज तीन-चार महीनों में सभी 15 कंपनियों का विनिवेश कर पाना मुश्किल हो सकता है।गौरतलब है कि वित्त वर्ष 2012-13 की पहली तिमाही बीत चुकी है, लेकिन अभी तक सरकार अपने विनिवेश कार्यक्रम की शुरुआत तक नहीं कर पाई है। इसके साथ ही, दूसरी तिमाही के पहले महीने में भी अभी तक किसी कंपनी के विनिवेश का कोई कार्यक्रम तय नहीं हो पाया है।इन हालात में चालू वित्त वर्ष में सरकार के लिए अपने विनिवेश कार्यक्रम का लक्ष्य हासिल कर पाना मुश्किल साबित हो सकता है।सरकार ने चालू वित्त वर्ष में कुल 15 कंपनियों के विनिवेश का लक्ष्य रखा है, लेकिन इसकी शुरुआत करने से पहले सरकार बाजार के हालात सुधरने का इंतजार कर रही है। इस वित्त वर्ष के अभी 8 महीने बाकी हैं और इस अवधि में 15 कंपनियों का विनिवेश करने का मतलब होगा, हर महीने दो कंपनियों का विनिवेश करना, जो काफी मुश्किल काम है। हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि अंतिम तिमाही में सरकार इन कंपनियों का तेजी से विनिवेश कर सकती है।वित्त वर्ष 2012-13 के दौरान जिन कंपनियों का विनिवेश होना है, उसमें भेल के विनिवेश से 62.2 करोड़ डॉलर, नाल्को से 27.3 करोड डॉलर, एनएचपीसी से 41.6 करोड़ डॉलर, एनएमडीसी से 124.9 करोड़ डॉलर व ईआईएल से 15.8 करोड़ डॉलर की राशि जुटाने की सरकार की योजना है। इसके साथ ही, विनिवेश कार्यक्रम के तहत सरकार की नजर आरआईएनएल, मॉयल व आरसीएफएल सहित अन्य कंपनियों पर भी है।

सरकार ने साफ कर दिया है कि यह सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) के विनिवेश को लेकर और इंतजार करने के मूड में नहीं है। अभी तक बाजार की खराब हालत की वजह से सरकार पीएसयू के विनिवेश की योजना को आगे बढ़ाने में थोड़ा हिचक रही थी।लेकिन, तय लक्ष्य को हासिल करने के लिए अब सरकार बाजार की परिस्थितियों के और सुधरने का इंतजार नहीं करना चाहती। गौरतलब है कि सरकार ने चालू वित्त वर्ष के दौरान पीएसयू कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी की बिक्री के जरिए 30,000 करोड़ रुपये का राशि जुटाने का लक्ष्य तय किया हुआ है।सरकार प्रस्तावित सरकारी ऋण प्रबंधन विभाग को देखते हुए विनिवेश विभाग (डीओडी) के विनिवेश प्रक्रिया प्रबंधन तंत्र को पूरी तरह नया स्वरूप देकर सरकारी इक्विटी और निवेश प्रबंधन विभाग में तब्दील करने पर विचार कर रही है। डीओडी द्वारा तैयार किए गए प्रस्ताव पर सरकार में उच्च स्तर पर विचार-विमर्श चल रहा है, जिसमें सरकार की भूमिका तय की जाएगी जिसके आधार पर सरकारी की तरफ से एक होल्डिंग कंपनी या एक ट्रस्ट इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगा।प्रस्ताव सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी बेचने से मिले धन के इस्तेमाल की व्यवस्था को पूरी तरह से बदलने की जरूरत बताता है।नई योजना के अंतर्गत विनिवेश प्रक्रियाएं विशेष इक्विटी फंड के लिए खास तौर पर निर्धारित सार्वजनिक खातों के माध्यम से संचालित होंगी, जो सरकार को उसके विस्तार के तरीकों और साधनों को देखते हुए उपलब्ध होगा। इसके माध्यम से सरकार को अपनी उधारी में कटौती की अनुमति होगी।वित्त वर्ष की शुरुआत में सार्वजनिक खातों में पिछले साल में सरकार की उधारी पर सबसे ज्यादा ब्याज दर जमा की जाएगी।

विनिवेश विभाग के सचिव मोहम्मद हलीम खान ने यहां संवाददाताओं के साथ बातचीत में कहा कि अगर हमें चालू वित्त वर्ष के दौरान 30,000 करोड़ रुपये की राशि जुटाने का तय लक्ष्य हासिल करना है तो हम एक सीमा से ज्यादा बाजार की परिस्थितियों के सुधरने का इंतजार करते नहीं रह सकते। अब बाजार भी अपने निचले स्तर पर आ गया दिखता है। अगर हमें बाजार में बिक्री करनी है तो हमें उसी भाव पर करनी होगी, जो भाव बाजार देना चाहता है।बाजार की परिस्थितियों पर टिप्पणी करते हुए खान ने कहा कि यह सही है कि चालू तिमाही के दौरान देश में बाहर से बहुत ज्यादा पूंजी नहीं आई है, लेकिन साथ ही यह भी सही है कि इस दौरान बहुत ज्यादा पूंजी बाहर गई भी नहीं है।इसका मतलब यह निकलता है कि भारतीय शेयर बाजार अभी भी काफी आकर्षक हैं और यह एक अच्छा संकेत है। गौरतलब है कि जून माह की अब तक की अवधि के दौरान विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने केवल 230 करोड़ रुपये की शुद्ध बिकवाली की है। मई माह के दौरान एफआईआई की बिकवाली का आंकड़ा 347 करोड़ रुपये पर और अप्रैल माह में 1,109 करोड़ रुपये पर रहा था।

विनिवेश विभाग राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (आरआईएनएल) के प्रारंभिक पब्लिक ऑफर (आईपीओ) को अगले 15 दिनों के भीतर लांच करने की तैयारी कर रहा है।आईपीओ के जरिए सरकार कंपनी में अपनी हिस्सेदारी के विनिवेश से 2,500 करोड़ रुपये के करीब की राशि जुटाने का लक्ष्य लेकर चल रही है। चालू वित्त वर्ष के दौरान आने वाला सार्वजनिक क्षेत्र के किसी उपक्रम का यह पहला आईपीओ होगा।पहले यह आईपीओ जून माह में लांच होना था। लेकिन, इसके मर्चेंट बैंकरों यूबीएस सिक्युरिटीज इंडिया और ड्यूश इक्विटीज (इंडिया) द्वारा बाजार की खराब स्थिति का हवाला देने के चलते इसे तीन सप्ताह के लिए टाल दिया गया था।हालांकि, इन मर्चेंट बैंकरों ने इस आईपीओ को सितंबर-अक्टूबर तक टालने की सलाह भी दी है। लेकिन, चालू वित्त वर्ष के 30,000 करोड़ के विनिवेश लक्ष्य को हासिल करने के मद्देनजर सरकार अब सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में अपनी हिस्सेदारी के विनिवेश की प्रक्रिया को शुरू करने के लिए और इंतजार करने के मूड में नहीं है।कंपनी ने 16 नवंबर, 2010 को नवरत्न कंपनी का दर्जा हासिल किया था, जिसे बरकरार रखने के लिए इसे इस तारीख के दो साल के भीतर शेयर बाजारों में सूचीबद्ध होना पड़ेगा। कैबिनेट की आर्थिक मामलों की समिति ने इसी साल जनवरी में आरआईएनएल में सरकार की 10 फीसदी हिस्सेदारी के विनिवेश की अनुमति दी थी। इसके बाद 18 मई को कंपनी ने बाजार नियामक सेबी के पास आईपीओ का मसौदा जमा किया था।

चालू वित्त वर्ष के दौरान 30 हजार करोड़ रुपये के विनिवेश लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में सरकार कदम बढ़ाते हुए सितंबर तक हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल) में अपने शेयर बेच सकती है। सरकार ने 2011-12 के बजट में सार्वजनिक उपक्रमों में अपनी हिस्सेदारी बेच कर 30 हजार करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है पर वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सरकार ने कोई विनिवेश नहीं किया है।विनिवेश विभाग के सचिव मोहम्मद हलीम खान ने कहा कि चालू तिमाही के दौरान राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (आरआईएनएल) और एचसीएल में विनिवेश किया जा सकता है। आरआईएनएल के प्रारंभिक सार्वजनिक इश्यू (आईपीओ) पर काम चल रहा है और इसके लिए रोड शो शुरू किया जा चुका है। आरआईएलएल में सरकार को 10 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचकर ढाई हजार करोड़ रुपये मिल सकते हैं।एचसीएल में नए शेयर बेच जाएंगे। वित्त मंत्रालय ने एचसीएल में विनिवेश के लिए, जो नोट तैयार किया है, उसके मुताबिक विनिवेश विभाग 10 प्रतिशत शेयर बेचना चाहता है। वर्तमान में सरकार के पास एचसीएल की लगभग 99.59 फीसदी हिस्सेदारी है। वर्तमान बाजार कीमतों पर सरकार को एचसीएल के विनिवेश से दो हजार करोड़ रुपये के करीब मिलने की उम्मीद है। वर्ष 2011-12 में सरकार ने विनिवेश से 40 हजार करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा था, किंतु वह मुश्किल से 14 हजार करोड़ रुपये ही जुटा पाई थी।

पिछले महीने मंत्रालय ने सरकारी जनरल बीमा कंपनियों- न्यू इंडिया एश्योरेंस, नैशनल इंश्योरेंस, ओरिएंटल इंश्योरेंस, यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस और जीआईसी आरई के साथ इस बारे में बैठक की थी। जीआईसी आरई और न्यू इंडिया एश्योरेंस की कुल पंूजी करीब 8,000 करोड़ रुपये के करीब है। 2011-12 के दौरान जीआईसी आरई को 2,450 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। हालांकि सभी कंपनियों का परिचालन सही तरीके से नहीं हो रहा है। प्र्रीमियम संग्र्रह में कमी और खराब अंडरराइटिंग मानक के चलते इन कंपनियों को घाटा हो रहा है। उदाहरण के तौर पर न्यू इंडिया एश्योरेंस को 2011-12 के दौरान 538 करोड़ रुपये का परिचालन नुकसान उठाना पड़ा। हालांकि निवेश से अच्छी आमदनी के चलते कंपनी का शुद्घ मुनाफा 179 करोड़ रुपये रहा। लेकिन 2010-11 के दौरान कंपनी को 421 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था। पिछले तीन साल के दौरान चार सरकारी गैर जीवन बीमा कंपनियों को 15,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। इन चार कंपनियों का देश के कुल गैर जीवन बीमा कारोबार (47,000 करोड़ रुपये) में 55 फीसदी हिस्सेदारी है।
आईपीओ को ध्यान में रखते हुए वित्त मंत्रालय ने इन कंपनियों से वित्तीय प्रदर्शन सुधारने को कहा है। हाल ही में मंत्रालय ने इन कंपनियों से मुनाफा बढ़ाने के लिए प्रीमियम में इजाफा करने को कहा था। इसके साथ ही मंत्रालय ने इन बीमा कंपनियों से परिचालन सुधारने के लिए खर्च में कटौती करने को भी कहा है, ताकि परिचालन मार्जिन में इजाफा हो सके।
जीआईसी आरई को वाहन और समूह स्वास्थ्य (ग्रुप हेल्थ) जैसे घाटे वाले पोर्टफोलियो से दूर रहने को कहा गया था। साथ ही घाटे में चल रही 50 फीसदी शाखाओं को भी बंद करने को कहा गया था।

नैशनल इन्वेस्टमेंट फंड (एनआईएफ) जिसके माध्यम से विनिवेश से मिले धन को वर्तमान में 2010-11 के बाद से सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं में लगाया जा रहा है, उसे अब प्रस्तावित इक्विटी फंड में डाला जाएगा। इस फंड को सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को देखते हुए 3 अलग-अलग फंडों में बांटा जाएगा।एक तिहाई कोष को पहले इक्विटी फंड के अधीन सावर्जनिक खाते में रखा जाएगा। यदि जरूरत होगी तो इसे पूंजी जुटाने के लिए लाए जा रहे सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के निर्गम खरीदने में या जिन कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी 51 फीसदी से नीचे आने की संभावना होगी, उनके शेयर खरीदने में इस्तेमाल किया जाएगा। इस रकम को फंड में ब्याज सहित जमा कराया जाएगा।विनिवेश प्रक्रिया से मिली एक तिहाई रकम उससे मिले ब्याज को सार्वजनिक खाते के अंतर्गत दूसरे इक्विटी फंड में जमा किया जाएगा। इस फंड को सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के लिए ऊर्जा और कच्चे माल की जरूरतों को देखते हुए विदेशी संपदाओं को सुरक्षित करने में लगाया जाएगा, या फिर पहले इक्विटी फंड की तरह इस्तेमाल किया जाएगा। इसे योजना आयोग द्वारा प्रस्तावित सॉवरिन फंड से जोड़ा जाएगा।

योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने शुक्रवार को कहा कि अगले पांच साल में औसतन आठ प्रतिशत विकास दर हासिल करने के लिए भरसक प्रयास करने होंगे और इसे हम भाग्य भरोसे नहीं छोड़ सकते। उनका कहना है कि 12वीं पंचवर्षीय योजना में आर्थिक वृद्धि दर आठ से साढ़े आठ फीसदी रह सकती है।राज्यों के योजना सचिवों की बैठक के मौके पर अहलूवालिया ने  कहा कि औसतन नौ प्रतिशत विकास दर के बारे में सोचना संभव नहीं है। मुङो लगता है कि 8 या साढ़े आठ प्रतिशत विकास दर हासिल की जा सकती है। लेकिन इसके लिए भरसक प्रयास करने होंगे। आप इसे भाग्य भरोसे नहीं छोड़ सकते। उन्होंने कहा कि विकास दर का लक्ष्य नीचा रखने के बारे में योजना आयोग में विचार विमर्श किया जायेगा। उन्होंने कहा कि ऐसा वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति तेजी से बिगड़ने के मद्देनजर किया जा रहा है।अहलूवालिया ने कहा कि विकास दर के नये  लक्ष्य पर चर्चा के बाद इसे राष्ट्रीय विकास परिषद के समक्ष रखा जायेगा। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में होने वाली एनडीसी की बैठक सितंबर में होने के आसार हैं। अहलूवालिया ने कहा कि बिगड़ती वैश्विक स्थिति को देखते हुए चालू वित्त वर्ष में विकास दर साढ़े छह से सात प्रतिशत रह सकती है।


सीएनआई रिसर्च के चेयरमैन किशोर ओस्तवाल कहते हैं कि निफ्टी साल के अंत तक 6,000 का स्तर छू सकता है और तब सरकार का विनिवेश कार्यक्रम जोर पकड़ सकता है। लेकिन, इसके बाद के महज तीन-चार महीनों में सभी 15 कंपनियों का विनिवेश कर पाना मुश्किल हो सकता है। वैसे, बीएसई सेंसेक्स के लिए 19,700 तक जाने का लक्ष्य एंजल ब्रोकिंग ने भी रखा है, पर यह लक्ष्य मार्च, 2013 का है। साल 2012 के लिए सेंसेक्स का लक्ष्य ब्रोकिंग कंपनियां 18,500 के करीब रखकर चल रही हैं।

हालांकि, पिछले कुछ दिनों में सेंसेक्स ने 17,000 के ऊपर की रेंज बनाई थी और अब यह 17,500 के आस-पास की रेंज बना रहा है। साथ ही, इस समय कुछ वैश्विक स्तर की सकारात्मक खबरों के अलावा घरेलू मोर्चे पर भी कुछ सकारात्मक खबरों के आने का इंतजार है। ओस्तवाल का कहना है कि सकारात्मक खबरों के आने से सेंसेक्स 18,000 का स्तर छू सकता है, पर यह स्थिर रहेगा, या आगे इसकी क्या डायरेक्शन होगी, यह तो बाद में ही पता चलेगा।

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