ग्लोरिया स्टेनम
[पिछले दिनों विख्यात अमेरिकी नारीवादी लेखिका और एक्टिविस्ट वेश्यावृत्ति को समाप्त करने के काम में लगी संस्था 'अपने आप वीमैन वल्र्डवाइड' की दसवीं वर्षगांठ के अवसर पर भारत आई हुईं थीं। 2 अप्रैल को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली में उन्होंने वेश्यावृत्ति के खिलाफ नारीवादी नजरिये पर प्रकाश डाला। यहां उनका यह व्याख्यान 'अपने आप' के सौजन्य से प्रस्तुत है: ]
अपने व्यस्त जीवन से समय निकाल कर इस कमरे में जमा होने के लिए आप सबका शुक्रिया। इंटरनेट के मसीहा कहते हैं कि इंटरनेट का सबसे बड़ा उद्देश्य लोगों को एक आंगन में - या मिस्र के तहरीर चौक या आक्यूपाई वॉल स्ट्रीट तक - लाना है क्योंकि हम केवल अपनी पांचों इंद्रियों से ही सही मायनों में एक दूसरे के साथ जुड़ सकते हैं। एक दूसरे की उपस्थिति में ही हमारे मस्तिष्क में संवेदना वाला रसायन सक्रिय होता है। अंतत: हमें यह तो पता ही है कि इंटरनेट एक बच्चे की परवरिश का तरीका बता सकता है लेकिन बच्चे की परवरिश नहीं कर सकता।
मेरे न्यूयॉर्क से चलने से कुछ समय पहले हमारे दौर की एक उत्कृष्ठ नारीवादी कवयित्री एडरिन रिच का निधन हो गया। एडरिन ने कहा था कि ''स्त्रियों के मध्य और उनके आपसी संबंधों का जबर्दस्त आतंक है... और इन में इस पृथ्वी को बदलने की सबसे अधिक संभावना होती है। '' मैं एडरिन को जानती थी, वह इस कक्ष में मौजूद पुरुषों को भी, उद्देश्य की अपनी भागीदारी के कारण, मानद् स्त्रियों में ही शामिल करतीं।
भारत ने मुझे न केवल एक खराब विवाह से बचा लिया बल्कि ग्रामीण स्तर के संगठनों के इसके उदाहरण - और विदेशी लोगों को स्वीकार करने - ने मुझे यह सिखाया कि समुदायों को संगठित करने का काम भी किया जा सकता है। और यही मेरे अधिकांश भविष्य के जीवन की राह बन गया।
यह मैं इस लिए बता रहीं हूं कि उस समय की मेरी पुरानी मित्र और रोल मॉडल देविका जैन, जो जब हम पहले मिले देविका श्रीनिवासन थीं, आज यहां मौजूद हैं और मैं यह इसलिए भी बता रही हूं कि मैं देविका के पति स्वर्गीय लक्ष्मी जैन को अपनी श्रद्धांजलि देना चाहती हूं। यह पहली बार है कि मैं भारत आई हूं और यहां लक्ष्मी नहीं हैं। देविका ने ही मुझे उपहार में खादी पहनने को दी। निश्चित है कि इसे देख कर लक्ष्मी मुस्कराते।
चूंकि मैं यहां उन परिवर्तनों, जो जरूरी हैं, पर बात रखने के लिए आई हूं इसलिए मैं सब को अतीत के महत्त्वपूर्ण बदलावों की याद दिलाना चाहूंगी। जब मैं एक छात्र के रूप में विश्वविद्यालय की कक्षाओं का आंकलन कर रही थी और मिरांडा हाउस में रह रही थी, उस वक्त कई ऐसी छात्राएं थीं जो कभी भी अपने संबंधियों के सिवा किसी भी तथाकथित अन्य पुरुष के साथ किसी कमरे या चर्चाओं में नहीं रही थीं। माहौल में तनाव और असहजता स्पष्ट थी। कुछ प्रोफेसरों का कहना था कि यह अस्वाभाविक और संभवत: असंभव है कि इस तरह के लैंगिक तनाव भरे कमरे में शिक्षा हासिल की जा सकती है, कि सहशिक्षा दूसरी संस्कृतियों में तो प्रभावकारी हो सकती है लेकिन यहां नहीं। अब मैं मानती हूं कि हमारे दोनों ही देशों में स्त्री और पुरुष वास्तविक मित्र हो सकते हैं। जरूरी नहीं कि दोनों के बीच यौन या रुमानी आकर्षण हो। और यह मानवता की संपूर्णता की ओर महान कदम है।
जब मैं छात्र थी तब भी सती होने की घटनाएं घट रही थीं और इसे अपनी इच्छा बल्कि प्रेम की उद्दात्तता के रूप में देखा जाता था। जबरन सती करने के खिलाफ काबिले तारीफ आंदोलन हुए थे लेकिन कुछ लोग इसे संस्कृति का अवश्यंभावी और यहां तक कि सम्मानजनक हिस्सा मानते थे। संभवत: मानव स्वभाव क्योंकि स्त्रियों की पहचान उन पुरुषों जिनसे उनका विवाह हुआ था इस हद तक जोड़ दी गई थी कि उनके लिए जीवन यापन का कोई रास्ता ही नहीं था।
जब मैं यहां थी तो पत्नी की थोड़ी-बहुत पिटाई अवश्यंभावी बल्कि जरूरी मानी जाती थी, क्योंकि लोगों का मानना था कि पत्नियों को पतियों की आज्ञा का पालन करना चाहिए इसलिए पुरुषों का स्त्रियों को शारीरिक तौर पर अनुशासित करना गलत नहीं था। उस वक्त अमेरिका में भी हमारे पास घरेलू हिंसा जैसा कोई शब्द नहीं था। इसका बहुत बाद में महिला आंदोलनों ने अन्याय और उत्पीडऩ को शब्दावली देने के लिए आविष्कार किया। उस वक्त इसी को जीवन कहा जाता था और अक्सर सवाल पूछा जाता था: उसने ऐसा क्या किया कि उसके साथ ऐसा व्यवहार किया गया? और बहुत हुआ तो ऐसा आदमी चुना ही क्यों?
जब मैं यहां थी उस दौरान दोनों ही मुल्कों में बलात्कार और यौन हिंसा के मामलों को महिला के वस्त्र पहनने, या वह कुंवारी थी या नहीं, या उन अनेक प्रश्नों के साथ जोड़ कर देखा जाता था जो स्त्री पर केंद्रित होते थे न कि बलात्कारी पर। अब हमने अमेरिका में बलात्कारियों का अध्ययन किया है और पाया है कि एक औसत बलात्कारी 14 बार बलात्कार करता है। अध्ययन यह भी बताता है कि यौन आक्रामकता सब या कम से कम अधिसंख्य पुरुषों के जीवन का सामान्य लक्षण नहीं है बल्कि यह कुछ पुरुषों की लत है जो स्त्रियों को फतह करने के मर्दानगी के मुगालते पर निर्भर है - फिर चाहे वह बच्ची हो या बूढ़ी। बलात्कार मानव स्वभाव का अपरिहार्य हिस्सा नहीं है। जैसाकि यहां की हाल की एक त्रासद घटना में देखा जा सकता है कि स्त्री पर प्रभुता साबित करने की अनिवार्यता नवजात से बलात्कार का कारण बनती है।
तथ्य यह है कि लड़कों पर होने वाले अधिकांश यौन दुष्कर्मों के लिए समलैंगिक नहीं बल्कि विषम लैंगिक (प्राकृतिक यौन संबंधवाले) दोषी होते हैं। जब तक हमारी संस्कृति 'पौरुष' की अनिवार्यता को बेचती रहेगी- और इसे पुरुषों को अपने ही हितों के खिलाफ उन युद्धों में जिनका उनकी अपनी सुरक्षा से कोई लेना-देना नहीं है, लडऩे के लिए दबाव बनाने के लिए बेचा जाता है - बच्चों की निर्भरता और असहायता का यौनांतरण होता रहेगा और कुछ के लिए यह कामोत्तेजना का कारण बना रहेगा।
मैं यह इसलिए बता रही हूं कि आज यौन व्यापार (सेक्स ट्रैफिकिंग) एक वैश्विक महामारी बन गया है। मुख्य रूप से यह महिलाओं और लड़कियों को यौनाचार के लिए गुलाम बना रहा है लेकिन कई बार इसका शिकार लड़के भी बनते हैं। यह खेतों और घरेलू कामों से लेकर गुडग़ांव में बन रही बहुमंजिला इमारतों तक फैले बंधुआ मजदूरों के धंधे से भी बड़ा है। यौन और श्रमिकों के बंधुआ करण का धंधा आज पृथ्वी की जनसंखा के बड़े प्रतिशत को गुलाम बना रहा है - वे लोग जिन्हें वस्तुओं की तरह खरीदा और बेचा जाता है - यह सन् 1800 के उस प्रतिशत से अधिक है जब गुलामों का व्यापार अपने चरम पर था। मुझे यह याद दिलाने की आवश्यकता नहीं है कि यौन व्यापार से मुनाफा कमाने वाला यह समूह अब हथियारों और नशीली दवाओं (ड्रग) के वैश्विक कारोबारियों से टक्कर ले रहा है। न्यूयॉर्क शहर में बंदूक, औरत और नशे की एक खुराक (फिक्स) एक ही अंडरग्राउंड (भूमिगत मेट्रो स्टेशनों)में खरीदे जा सकते हैं।
जहां तक मुझे याद पड़ता है नारीवादी आंदोलन तब से यौन व्यापार के लिए स्त्रियों की तस्करी के विरुद्ध संघर्ष कर रहा है। कानूनों और कानूनों के पालन के जरिए बच्चों की तस्करी पर रोक सर्वाधिक सफल रही है गोकि यह कामयाबी भी अत्यंत निराशाजनक है। चूंकि अमेरिका में वेश्यावृत्ति में प्रवेश की आयु 12 से 13 वर्ष है - और यहां 9 से 12 वर्ष - ऐसे में कानून कितने सफलत हो सकते हैं? ये सफल होते हैं तो भी जिसकी उम्र 18 वर्ष है और जो यह खतरनाक जिंदगी छह साल जी चुकी है उससे अगर कोई जाकर कहता है कि माफ करना कल तो मैं तुम्हारे लिए कुछ कर सकती थी पर अब तुम्हें स्वयं ही कुछ देखना पड़ेगा, तो क्या अर्थ रह जाता है? दुनिया भर में हो यह रहा है कि कम उम्र की लड़कियों को इस धंधे में घसीटा जा रहा है। एक हद तक इसका कारण यह है कि लोग मानते हैं कि बच्चियों में एड्स की आशंका कम रहती है , कुछ खब्ती यह मानते हैं कि कुंवारी लड़कियों के साथ संभोग से एड्स का इलाज हो जाता है। इसके अलावा पुत्र संतान की प्राथमिकता के चलते, जैसे कि चीन में, जनसंख्या में स्त्री के अनुपात में कमी हुई है और इसका परिणाम यह हुआ है कि उत्तर कोरिया से लड़कियों को धोखाधड़ी या बलपूर्वक लाया जा रहा है। यह भी तथ्य है कि इस तरह भारत में भी औरतों का आयात दक्षिण से उत्तर की ओर होता है।
विश्व महिला आंदोलन की शक्ति उस विभाजन के चलते कमजोर हुई है जिसे हमें बांटने और हमारी ताकत को कमजोर करने के लिए इस्तेमाल किया गया और हमें दो ऐसी नकली श्रेणियों में बांटा गया जिनके लिए हम जिम्मेदार नहीं थे। इसे पितृसत्ता की दुनिया की दो बड़ी और गहरे पैठी ताकतों ने रचा है।
पहली पितृसत्ता की धार्मिक शक्ति है। यह उन सभी यौन आकांक्षाओं को गलत और पाप करार देती है जो गर्भधारण में रूपायित नहीं होती और विवाह के दायरे से बाहर हैं। इसकी वर्जनाएं मुख्य रूप से स्त्रियों के लिए होती हैं क्योंकि पितृसत्ता की मूल परिभाषा ही स्त्री का उत्पादन के आधारभूत साधन के रूप में नियंत्रण है, यानी संतानोत्पत्ति के साधन के रूप में।
दूसरी शक्ति भी उतनी ही पितृसत्तात्मक है लेकिन यह धर्मनिरपेक्ष और 'मर्दानगी' की वह अवधारणा है जिसके तहत स्वतंत्रता और लोकतंत्र, यहां तक कि मानव अधिकारों को पुरुषों के लिए - पुरुषों की ही शर्तों पर - स्त्रियों की उपलब्धता के रूप में परिभाषित किया गया है। इसके पीछे धर्म की सांस्कृतिक ताकत नहीं है लेकिन इसके नियंत्रण में यौन कारोबार से प्राप्त अपार धन है और इसके पास पोर्न (अश्लील साहित्य) की वह सर्वव्याप्त शक्ति है जो स्त्री पर प्रभुत्व का सामान्यीकरण करती है। यह रत्यात्मकता/श्रंगारिकता ( इरोटिका) से अलग चीज है। जैसा कि शब्द से ही समझ आता है पोर्न का अर्थ है गुलाम हव्वा जबकि इरोस का अर्थ है प्रेम यानी परस्पर आनंद और स्वतंत्र चुनाव।
इसीलिए उन महिला आंदोलनों, जिन्होंने यौन स्वायत्तता के बुनियादी अधिकार, रति आनंद और आत्म निर्णय के अधिकार के लिए संघर्ष किया, की पितृसत्तात्मक धर्म ने पापमय कह कर भर्त्सना की। निजी स्तर पर बहुत-सी महिलाओं को इसके लिए अपमान और 'ऑनर किलिंग' जैसी क्रूर सजाओं को भी झेलना पड़ा।
ठीक इसी तरह धर्मनिरपेक्ष समूहों ने उन नारीवादी आंदोलनों की काम (सैक्स) विरोधी कह कर निंदा की जिन्होंने वेश्यावृत्ति और यौन व्यापार का विरोध किया - या महज यह बताने का प्रयास किया कि पोर्नोग्राफी ठीक उसी तरह एरोटिका से अलग है जैसे बलात्कार प्रेम से। इन आंदोलनों से जुड़ी महिलाओं को पितृसत्ता समूहों, धर्मनिरपेक्ष, अकादमिक और राजनीतिक क्षेत्र से अलग-थलग कर दंडित किया गया।
मेरे लिए सबसे दुख यह है कि कुछ नारीवादियों को एक दूसरे पर ही विश्वास नहीं रहा है। वे जो पितृसत्तात्मक धर्म के दायरे में हैं - और ये बुद्ध धर्म सहित सभी पितृसत्तात्मक हैं, हालांकि इन के पुराने हिस्सों में अभी भी सूफियों से लेकर कबॉल तक पितृसत्ता से पूर्व की वैश्विक आध्यात्मिकता मौजूद है - इसलिए कुछ धार्मिक मतावलंबी महिलाएं खुद को नारीवाद से अलग-थलग महसूस करती हैं।
इस बीच कुछ धर्मनिरपेक्ष नारीवादी बाजारीकृत यौन का समर्थन करने में लगी हैं , यहां तक कि कानूनी वेश्यावृत्ति और इसके लिए महिलाओं की तस्करी को 'प्रवास सुविधा' (फेसिलिटेटेड माइग्रेशन) के रूप में देखती हैं। और मानती हैं कि अगर वे इस का समर्थन नहीं करेंगी तो पितृसत्तात्मक वाम उनकी आलोचना करेगा और मानती हैं कि इससे वेश्यावृत्ति में फंसी औरतों से जीविका के लिए सेक्स या उनकी यौन की स्वतंत्रता छिन जाएगी।
लेकिन जटिल सच्चाइयों के अधिकांश ध्रुवीकरण की तरह ही दो टुकड़ों में यह विभाजन भी गलत है। सच्चाई तो यह है कि यह मान्यता ही कि हर प्रश्न के सिर्फ दो पहलू होते हैं उस गलत विचार से पैदा होता है कि मानवीय गुणों/लक्षणों के पूर्ण चक्र को 'पौरुष' और 'स्त्रीत्व' के दो ध्रुवों में बांटा जा सकता है।
मुझे इस बात की खुशी है कि सभी महाद्वीपों के नारीवादी आंदोलनों के बीच बन रही समझदारी से एक तीसरा और स्त्री केंद्रित दृष्टिकोण बन रहा है। ये हमारी उन बहनों को जो यौन व्यापार और वैश्यावृत्ति की शिकार हैं समर्थन, मित्रता और विकल्प दे रही हैं।
सबसे पहली बात यह कि बमुश्किल कोई एक्टिविस्ट होगा जो यह मानता हो कि वेश्यावृत्ति में फंसी औरत को गिरफ्तार किया जाना चाहिए। वह पीडि़त है न कि अपराधी। पर कानून-व्यवस्थावालों का यही तरीका है और इससे चकला चलानेवालों तथा स्त्रियों की तस्करी करनेवालों को ही मजबूती मिलती है जो प्रमाण सहित कह सकते हैं कि वेश्यावृत्ति में फंसी औरत के लिए एकमात्र विकल्प जेल ही है।
दूसरा, इस धंधे में फंसी औरतों को जीविका के वैकल्पिक संसाधन उपलब्ध कराने बच्चों की मदद करने, और समुदाय की तलाश करना है जो इन पर आरोप लगाने की जगह इनके प्रति सम्मान का भाव रखता हो। यह उतना सरल नहीं है जितना कि बाहर वालों को लगता है। अक्सर वेश्यावृत्ति में फंसी औरतों को पूर्वाग्रह ग्रसित दुनिया स्वीकार नहीं करती है और ऐसी औरतें खुद अपनी ही तरह के स्टॉक होम सिंड्रोम (जब पीडि़त यह मानने लगता है कि उत्पीड़क बुरा नहीं था) का शिकार होती हैं और इतनी आत्महीनता से पीडि़त होती हैं कि मानने लगती हैं कि वे और कुछ कर ही नहीं सकतीं। यह, कइयों की तरह, उन स्थितियों में विशेषकर सत्य है जहां औरतें बचपन में यौन उत्पीडऩ का शिकार हुई हों और मानने लगी हों कि उनके लिए और कोई जीवन-मूल्य है ही नहीं या फिर जो ऐसे समुदायों से आती हों जहां वेश्यावृत्ति पारंपरिक रूप से चली आ रही हो। लेकिन यह मानवीय इच्छा शक्ति का ही कमाल है - कार्यकर्ताओं और वेश्यावृत्ति का शिकार हुई औरतों दोनों में - कि हमारे देश में 'जेम्स' (जे.ई.एम.एस.) और आपके देश में 'अपने आप' जैसे संगठन इन औरतों को एक उपभोग्य वस्तु से आत्म सम्मान वाले इंसान के रूप में परिवर्तित होते देख रहे हैं।
तीसरा, कम से कम अब यह समझने की शुरुआत हुई है कि औरतों और बच्चों के कुछ समूहों को दूसरों के मुकाबले वेश्यावृत्ति का शिकार होने का ज्यादा खतरा होता है - उदाहरण के लिए यौन शोषण का शिकार बच्चे, घर से भागे हुए, अन्य देशों में रोजगार की तलाश करने वाले, नस्ल, जाति और पहचान के कारण भेदभाव के शिकार लोग और सामान्यत: गरीब - ऐसे लोगों को जानकारी और चेतावनी देने का प्रयास किया जा रहा है।
चौथा, नारीवादी आंदोलन और कुछ हैं। ये बहुसंख्यक पुरुष नहीं हैं। अधिसंख्य अध्ययन बतलाते हैं कि पुरुषों की करीब एक तिहाई या इससे भी कम आबादी वेश्यागमन करती है। यानी न तो वेश्यावृत्ति और न ही महिलाओं की तस्करी स्वाभाविक या अपरिहार्य है। ये गैरबराबरी के कारण है जिसमें 'मर्दानगी' की झूठी अवधारणा शामिल है। वेश्यावृत्ति सबसे पुराना पेशा नहीं बल्कि सबसे पुराना उत्पीडऩ है।
मैं बार-बार इस बात पर जोर देना चाहती हूं कि यह समझना कितना जरूरी है कि वेश्यावृत्ति मनुष्य की प्रकृति का अपरिहार्य या स्वाभाविक चरित्र नहीं है। उस दौर को याद कीजिए जब उदाहरण के लिए बलात्कार, राजतंत्र या धूम्रपान को अपरिहार्य बल्कि सामान्य तक माना जाता था। अब उन लोगों को, जो दूसरे लोगों को खरीदते हैं, दंडित करने और उन्हें यह बताने के कि ऐसा कर वे खुद को और दूसरों को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं, प्रयास सफल हो रहे हैं
पांचवा, वेश्यावृत्ति उद्योग को कानूनी वैधता देने का यह आधारभूत तर्क कि इससे बाल वेश्यावृत्ति नहीं होगी, या हिंसा में कमी आएगी या इससे जुड़ी बीमारियां कम होंगी पूरी तरह गलत साबित हुआ है। उदाहरण के लिए अमेरिका के नेवादा राज्य के वे दस जिले (काउंटियां), जहां वेश्यावृत्ति कानूनी है, महिलाओं की तस्करी होती है और ये नाबालिग लड़कियों को इस धंधे में धकेलने के लिए तोडऩे की जगहें बन गए हैं। एक बार मैंने खुद एक पड़ोसी को ऊंची दीवारों वाले बाड़े में जहां लड़कियों को रखा हुआ था खाना फेंकते देखा था। जर्मनी में जहां वेश्यावृत्ति कानूनी है और 'सेवा कार्य' (हॉस्पिटेलिटी वर्क) कहा जाता है वहां लड़कियों को बेरोजगारी भत्ता पाने से पहले यह दिखलाना पड़ता है कि उन्होंने इस धंधे के लिए आवेदन किया था और वे ऐसा काम करने के लिए तैयार हैं। बिलकुल ऐसा ही नेवादा राज्य के समाज कल्याण मामले में हुआ। नारीवादी आंदोलनों के जबर्दस्त प्रयासों के कारण ही कानूनी मान्यता के सीधे इस्तेमाल से लड़कियों की भर्ती के इस तरीके पर रोक लगी।
2003 में ऐम्सटरडम, जहां वेश्यावृत्ति का वैध होना बहुश्रुत है, के मेयर ने कहा था, ' ऐसा लगता है कि इन औरतों के लिए ऐसा कोई सुरक्षित और नियंत्रित क्षेत्र बनाना, जो संगठित अपराध की पकड़ से मुक्त हो, नामुमकिन है।' स्वतंत्र तरीके से किसी भी जांच से यह तथ्य इकट्ठे करना संभव नहीं हो सका है कि वेश्यालयों के मालिकों और प्रबंधकों को कंडोम बांटने के लिए पैसा दिये जाने और तथाकथित यूनियनों के इस दावे के बावजूद कि वे बच्चों को नहीं आने देते एड्स के मामलों में या बाल वेश्यावृत्ति में कमी आई हो। उदाहरण के लिए सोनागाछी, जहां मैं गई थी, मैंने दरवाजों के भीतर झांका और वहां बच्चों को देखा जिन्हें सैद्धांतिक तौर पर आने नहीं दिया जाता है। मैं यह सब इस लिए देख सकी क्योंकि मैं बिल गेट्स की तरह घोषणा कर के वहां नहीं पहुंची थी।
किसी अध्ययन से यह नहीं पता चलता कि कमरे के अंदर होने वाला सैक्स बाहर होने वाले सैक्स से कम त्रस्त करनेवाला होता है या कमरों में लगा घंटी का बटन उत्पीड़क ग्राहकों से मिलने वाले जख्मों से बचाव के लिए कारगार है। इस धंधे में फंसी औरतों का जीवन (लाइफ एक्स्पेक्टंसी) युद्ध में भाग लेनेवाले पुरुषों के जीवन के बराबर ही होता है। निश्चय ही शरीर का अतिक्रमण पीटे जाने से अधिक यातना देने वाला होता है। हमारी त्वचा हमारी सुरक्षा है, हमारा शरीर हमारा क्षेत्र और स्व का आभास है।
छठा: हालांकि किसी वयस्क पुरुष या स्त्री का अपनी यौन सेवाएं बेचना - आयकर कानूनों को ध्यान में रखते हुए - कानूनी या गैर कानूनी हो सकता है, लेकिन दूसरों के शरीरों का सौदा करना वैध नहीं होना चाहिए। इसलिए दलालों, वेश्यालयों के मालिकों और निश्चित तौर पर महिलाओं की तस्करी करनेवालों को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए। स्वीडन, नार्वे और अन्य स्कैंडिनेवियाई देशों में सैक्स बेचना गैरकानूनी नहीं है लेकिन इसे खरीदना गैरकानूनी है। यह अतार्किक नहीं है। यह असामान्य शक्ति संबंध और इसलिए असामान्य जिम्मेदारी को पहचानना है।
यह समझना जरूरी है कि सच्चाई के इस पहलू की पहचान की वजह से ही वेश्यावृत्ति और महिलाओं की तस्करी में कमी आई है।
हम इतिहास के एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर खड़े हैं। हम मानते हैं कि वेश्यावृत्ति अपरिहार्य नहीं है, यह असामान्य शक्ति संबंधों और पुरुष प्रधानता के दुर्गुण का परिणाम है। तो भी मेरे देश में ऐसी लड़कियां हैं - मुख्य रूप से अश्वेत और आदिवासी (नेटिव) अमेरिकी औरतें - जिन पर दलाल विशेष के गोदने के निशान होते हैं जिससे कि दूसरे दलालों को चेतावनी मिल सके। कई बार ये गोदने अपने आप में एक गुप्त संकेत (कोड) होते हैं। हमें अभी बहुत दूरी तय करनी है। जरूरी है कि हम सुनें और यह कभी न सोचें कि केवल एक या यहां तक कि कोई एक पूर्व निर्धारित समाधान है।
अफ्रीका के अंदर और अफ्रीका से योरोप को होने वाली यौन तस्करी पर आयोजित सेमिनारों में भाग लेने के लिए मेरा घाना और जांबिया जाना हुआ। जब मैं जांबीजी नदी के किनारे रहने वाले अपने मित्रों से मुलाकात करने पहुंची तब मुझे 20-25 औरतों के साथ गर्म और धूल भरे मैदान में लगे तिरपाल के नीचे एक गोले में बैठ कर बात करने का मौका मिला। वे शर्मीली थीं, हमारी भाषाएं अलग थीं। मुझे लगा यह ऐसा अवसर है जबकि औरत के आपसी संबंध का जादू काम नहीं करने वाला है।
अचानक एक औरत ने वह कहना शुरू किया जो कहने योग्य नहीं था कि उसका पति उसके साथ मारपीट करता है और उसकी समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करे। अन्य भी सच्चाई बताने लगीं। तब मुझे पता चला कि भोजन और बच्चों की फीस इकट्ठा कर सकने की आशा इन औरतों को वेश्यावृत्ति के लिए लुकासा ले जाती है। फसलें एक तिहाई रह गई हैं क्योंकि विश्व बैंक ने जांबेजी नदी पर बिजली पैदा करने के लिए बांध बनाया और सिंचाई की व्यवस्था करने का वायदा किया पर उसे पूरा नहीं किया। औरतें बाल्टी में पानी लाकर मक्के के खेतों को सींचती हैं लेकिन उसे भी हाथी चर जाते हैं। जो उनको चाहिए वह सिर्फ बिजली की बाड़ थी जिससे कि हाथी न आ सकें और इतना अनाज पैदा हो कि वे आत्मनिर्भर बन जाएं।
मैंने स्वदेश लौट कर बाड़ के लिए कुछ हजार डॉलर इकट्ठा किए जो कोई बहुत बड़ी राशि नहीं थे। जब मैं अगले साल वहां गई तो मैंने देखा कि इन औरतों ने हाथों से कई एकड़ जमीन से खरपतवार साफ कर, बाल्टियों से पानी लाकर मक्के की जबर्दस्त फसल उगाई है। यह एक साल के खाने और बच्चों की फीस के लिए पर्याप्त थी। हमने मक्के के गीत गाए। मक्के के सम्मान में नृत्य किया।
यदि पहले आप मुझसे सवाल करते कि वेश्यावृत्ति का क्या उपचार है तो मैं कभी नहीं कहती कि इसका एक समाधान 'बिजली की तारों की बाड़ है'। लेकिन यह एक समाधान है। हमें एक दूसरे को समझना होगा। हमें एक ही साथ उस तरह के खेतों और इस तरह के सभागार में रहना होगा।
हमें अपने और एक दूसरे की स्व-निर्धारित यौन अभिव्यक्ति के अधिकार की रक्षा करनी होगी। जहां एक विशेष नस्ल या वर्ग या जाति को 'खालिस' रखने के लिए महिलाओं के कुछ समूहों का यौन शोषण होता है वहां तथाकथित निचले वर्ग/जाति या नस्ल की औरतों का शोषण होगा ही।
परिवर्तन पर मेरे इस विश्वास का एक कारण उन मूल - मसलन 500 के करीब जनजातियां - संस्कृतियों के बारे में जानकारी है - जो इस महाद्वीप में पितृसत्तावादी योरोपियों के पहुंचने से पहले मौजूद थीं। और अफ्रिका का कू ओर्थे सान जहां बलात्कार और वेश्यावृत्ति जैसी चीजों को कोई जानता ही नहीं था। यहां तक कि उनकी भाषा में लैंगिक विभेद भी नहीं था। स्त्री और पुरुष, लोग और प्रकृति एक दूसरे से जुड़े थे न कि संघर्षरत। अपने शरीर और प्रजनन का नियंत्रण स्त्री के पास था। मानव इतिहास के 95 फीसदी समय तक यही कायम था। जिस लैंगिक विभेद को आज हम अपरिहार्य मानते हैं वह मानव इतिहास का मात्र पांच फीसदी भाग है।
उस समय को बार-बार याद कर सकते हैं जब यौनिकता (काम) यदि आप चाहें तो सिर्फ संतानोत्पत्ति के लिए थी और तब यह आपसी आनंद (संभोग) और स्वतंत्र चुनाव का मसला थी। काम पहले भी था, अब भी है और भविष्य में भी मानवीय स्वतंत्रता और सामुदायिकता की भावना की अभिव्यक्ति बनेगा। काम स्वयं में उपहार है।
अनुवाद: विष्णु शर्मा
No comments:
Post a Comment