Tuesday, July 23, 2013

Kishore Kumar सार्वजनिक क्षेत्र के कोयला उद्योग में अनुसंधान और विकास का मामला हासिए पर है। नतीजा सामने है। कोयला खदान असुरक्षित हो रहे हैं और इस आधार पर अनेक खानों को बंद किया जा चुका है। जाहिर है कि कोयले का उत्पादन और उत्पादकता तेजी से घट रही है। नतीजतन कोयले के मामले में विदेशी निर्भरता बढ़ती जा रही है।

सार्वजनिक क्षेत्र के कोयला उद्योग में अनुसंधान और विकास का मामला हासिए पर है। नतीजा सामने है। कोयला खदान असुरक्षित हो रहे हैं और इस आधार पर अनेक खानों को बंद किया जा चुका है। जाहिर है कि कोयले का उत्पादन और उत्पादकता तेजी से घट रही है। नतीजतन कोयले के मामले में विदेशी निर्भरता बढ़ती जा रही है। 
इस बात को समझने के लिए एक उदाहरण काफी है। बीते वित्तीय वर्ष में कोलया मंत्रालय ने इस मद में मात्र 16 करोड़ रूपए की मांग की थी। सरकार ने इसके विरूद्ध 11.65 करोड़ रूपए ही उपलब्ध कराए। पर हैरानी की बात यह है कि कोयला मंत्रालय इतनी रकम भी खर्च नहीं कर पाया। उसने कुल 10.62 करोड़ रूपए खर्च किए, जबकि एक दशक पहले अनुसंधान और विकास के लिए 50 करोड़ रूपए भी कम पड़ जाता था। तब रूपए काफी मजबूत भी था। आश्चर्यजनक है कि संसद में किसी भी दल ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया है।
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