Wednesday, June 23, 2010

Fwd: विद्रोह के केंद्र में दिन और रातें



---------- Forwarded message ----------
From: reyaz-ul-haque <beingred@gmail.com>
Date: 2010/6/23
Subject: विद्रोह के केंद्र में दिन और रातें
To: abhinav.upadhyaya@gmail.com


जाने-माने मानवाधिकार कार्यकर्ता और ईपीडब्ल्यू के सलाहकार संपादक गौतम नवलखा तथा स्वीडिश पत्रकार जॉन मिर्डल कुछ समय पहले भारत में माओवाद के प्रभाव वाले इलाकों में गए थे, जिसके दौरान उन्होंने भाकपा माओवादी के महासचिव गणपति से भी मुलाकात की थी. इस यात्रा से लौटने के बाद गौतम ने यह लंबा आलेख लिखा है, जिसमें वे न सिर्फ ऑपरेशन ग्रीन हंट के निहितार्थों की गहराई से पड़ताल करते हैं, बल्कि माओवादी आंदोलन, उसकी वजहों, भाकपा माओवादी के काम करने की शैली, उसके उद्देश्यों और नीतियों के बारे में भी विस्तार से बताते हैं. पेश है हाशिया पर इस लंबे आलेख का हिंदी अनुवाद.

जब माओवादियों के खिलाफ हर तरह के अपशब्द और कुत्साप्रचार का इस्तेमाल किया जाता है तो झूठ और अर्धसत्य को भी पंख लग जाते हैं और इसकी चीरफाड़ के बहाने उनका दानवीकरण किया जाता है। बुद्धिजीवी समुदाय तथ्य का सामना करने से बचता है। फिर भी हम यथार्थ को उसके असली रूप में जानने का प्रयास करते हैं और कुछ मूलभूत सवालों का उत्तर तलाश करते हैं- यह युद्ध क्यों? जिन्हें भारत की आन्तरिक सुरक्षा के लिए 'सबसे बड़ा खतरा' समझा जाता है, वे लोग कौन हैं? उनकी राजनीति क्या है? वे हिंसा को क्यों जायज़ ठहराते हैं? वे अपने 'जनयुद्ध', अपने राजनीतिक लक्ष्य और अपने बारे में किस तरह की धारणा रखते हैं? अपने मजबूत जंगली क्षेत्रों से बाहर की दुनिया में छलांग लगाने के बारे में वे क्या सोचते है?

माओवादियों को दानव के रूप में दिखाए जाने की प्रक्रिया के खिलाफ उन्हें मानव के रूप में जानने समझने और माओवादियों के बारे में प्रत्यक्ष जानकारी लेने की इच्छा (सिर्फ किताबों, दस्तावेजों, बातचीत के जरिएही नहीं बल्कि उनके बीच जाकर और उनसे मुलाकात करके ) विगत कई वर्षों से मेरे दिमाग में निर्मित हो रही थी। दो बार मैं इस यात्रा के काफी करीब पहुंच गया था। पहली बार मुझे दो नवजवान पत्रकारों ने धोखा दे दिया और नियत समय और स्थान पर नहीं आए। दूसरी बार बहुत कम समय की नोटिस पर मैं अपने आप को तैयार नहीं कर सका। यह तीसरा अवसर था और मैं इसे गंवाना नहीं चाहता था। कुल मिलाकर यह यात्रा सम्पन्न हुयी और मैंने स्वीडेन के लेखक जॉन मिर्डल के साथ जनवरी 2010 में सीपीआई माओवादियों के गुरिल्ला जोन (जहां वे अपनी जनताना सरकार या जन सरकार चलाते हैं ) में दो सप्ताह गुजारे। इस दौरान हमने देखा, सुना, पढ़ा और काफी बहसें की। यद्यपि 'गुरिल्ला जोन' अभी भी सरकार और विद्राहियों के बीच संघर्ष और इस पर नियंत्रण की लड़ाई में फंसा है लेकिन यह भी सच है कि इस क्षेत्र से भारतीय राज्य को पीछे हटना पड़ा है और अब वह अपने प्राधिकार को पुनः स्थापित करने के लिए सैन्य शक्ति का इस्तेमाल कर रहा है।

पूरा पढ़िएः विद्रोह के केंद्र में दिन और रातें
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Nothing is stable, except instability
Nothing is immovable, except movement. [ Engels, 1853 ]



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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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