Saturday, 30 March 2013 11:24 |
संदीप कुमार मील खाना पकाने, बनाने और खाने की पूरी प्रक्रिया में भावनाओं का आदान-प्रदान होता है। लोग खाने के बहाने जो दुख-दर्द साझा करते थे, अब उसका विकल्प भी बंद हो जाए। जहां खाना नहीं बनता हो उसे घर कैसे कह सकते हैं? इसका संकट समाज के उस हिस्से पर नहीं है, जिसने वैयक्तिकता को अपने मूल्यों में समाहित कर लिया है, बल्कि वह समाज संकट में है जो सामूहिकता को अपनी विरासत और जीवन का सूत्र समझता है। जो कि आदिवासी और पिछड़ों का इतिहास भी है। इनके लिए तो मालिक और सामंतों के अत्याचारों को एक दूसरे को सुनाने का माध्यम भी खाना ही रहा है। वैयक्तिकता से सामूहिकता तक के मूल्यों का विकास मानवीय विकास की प्रक्रिया के तहत हुआ, मगर आज फिर से मनुष्य व्यवहार को आदिम अवस्था में पहुंचाना ऐतिहासिक विकास प्रक्रिया का नुकसान है और मूल्यों के विकास का रास्ता भी बंद कर देता है। चूंकि एक मूल्य की जगह दूसरे मूल्य को स्थापित करने के लिए जीवन के मूल अर्थ की व्याख्या को भी बदलना पड़ता है। जिस मूल्य के तहत समाज में जन्म से मृत्यु तक लोगों में एक भावनात्मक संबंध था। लोग उन्हें केवल ढोते नहीं हैं, बल्कि आत्मसात करके जीते हैं। जब वैयक्तिकता होती है तो सबका अलग-अलग जीवन लक्ष्य भी होता है, लेकिन उनका कोई सामूहिक लक्ष्य नहीं होता। यानी भविष्य के व्यक्ति की संरचना तो इस विचार के पीछे है, मगर समाज की संरचना का विचार नहीं है और जो भविष्य के व्यक्ति की संरचना है वह भी अपनी अलग-अलग है। सामूहिक लक्ष्य न होने की वजह से व्यक्तिगत लक्ष्यों में टकराव होता है, जो आज दिखाई देने लगा है। पहले बच्चे साल भर स्कूल में जाते थे और फिर परीक्षा का एक पूरा माहौल होता था। अब दीजिए घर बैठ कर परीक्षा। वे सिर्फ किताबों में कहानियां बन जाएंगी कि लड़का और लड़की के बीच कॉलेज में प्यार हो गया। यही तो चाहता है उदारवाद, तभी तो बिक सकते हैं भारत में अरबों कंप्यूटर। वैयक्तिकता तुलनात्मक अध्ययन पर आधारित न होकर एक श्रेष्ठता की अहम भावना से ग्रसित है। यही कारण है कि आदिवासी समाज की सामूहिकता की वैयक्तिकता से तुलना न करके स्वयं को श्रेष्ठ ठहरा दिया जाता है। मान लिया जाता है कि हमारा समाज कम से कम आदिवासियों से तो आगे निकल गया है। लेकिन क्या सचमुच हम आगे निकले हैं! मूल रूप से यही मूल्यों का टकराव है। यहां पर एक दिखावे की सामूहिकता का भी प्रचलन बढ़ रहा है। वैयक्तिकता वाले समाज के सामाजिक आयोजनों में देखें तो एक जैसे वस्त्रों में दिखने वाले लोगों का पूरा समूह दिख जाएगा। इनका प्रदर्शन यह होता है कि वैयक्तिकता में भी सामूहिकता है। लेकिन गौर से देखें तो इनमें हर कोई अपने को अलग दिखाना चाहता है। ये सबका ध्यान अपनी ओर खींचना चाहते हैं। इसमें कुछ हरकतें, आवाजें या कोई अन्य तरीका भी हो सकता है। इनके लिए समूह में दिखना इसलिए जरूरी है कि इसके साथ उनके निजी हित जुड़े होते हैं। इस मजबूरी के कारण समूह में आने वाला यह समाज यहां अपने संपर्क बढ़ा कर व्यावसायिक स्तर पर हित वृद्धि चाहता है। जबकि आदिवासी सामाजिक उत्सवों में लोग अलग-अलग नृत्य कर रहे होते हैं तब भी उनमें एकरंगता दिखाई देती है, क्योंकि यहां उनके निजी हित नहीं होते हैं। वैयक्तिकता वाले समाज में अक्सर हित एक दूसरे से टकराते हैं, तब समान हितों वाले कुछ लोग अलग समूह बना लेते हैं। इस प्रकार समूह लगातार उप-समूहों में विभाजित होते रहते हैं। यह वैयक्तिकता के विकास की नैसर्गिक प्रक्रिया है और इसी से वह मजबूत होती है। यह समाज समूह बना कर दिखावा इसलिए करता है कि वैयक्तिकता की श्रेष्ठता साबित की जा सके। देखें तो सामूहिकता अधिकारों के संघर्ष की रीढ़ है, क्योंकि उसके पास अतीत का अनुभव होता है और भविष्य की रूपरेखा भी। वैसे तो सामूहिकता हर समुदाय के लिए जरूरी है, लेकिन भारतीय समाज के लिए तो यह आॅक्सीजन है। http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/20-2009-09-11-07-46-16/41533-2013-03-30-05-55-40 |
Unique
Hits
Saturday, March 30, 2013
सामूहिकता बनाम वैयक्तिकता
सामूहिकता बनाम वैयक्तिकता
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Census 2010
Followers
Blog Archive
-
▼
2013
(5606)
-
▼
March
(372)
- प्रवीरचन्द्र भंजदेव – बस्तर के आदिवासियो का शापित ...
- Invitation to the Independent People’s Tribunal on...
- पश्चिम बंगाल में बेरोजगारों की नुमाईश बनी प्राइमरी...
- एंटीलिया का भारतः वित्तमंत्री भारत बेचने के लिए दु...
- Chidambaram heads Japan to sell India as budget pr...
- मजदूरों के दो दुश्मन है , ब्राह्मणशाही (Brahmanism...
- Fwd: Appeal to PM supporting Shahabag movement
- मार्क्सवादी' धूर्तता की पराकाष्ठा ,डॉ आंबेडकर की स...
- समग्र वर्ग की चेतना से कंगाल:हिन्दू
- Fwd: Rihai Manch report on Kosi Kala, Mathura riot...
- ஸ்பைஸ் ஜெட் ஏர்லைன்ஸ் பயணியிடம் சிக்கிய 600 ஏர்-இந...
- The Tagore Mania: Identity Crisis and Anti-Banglad...
- सोशल मीडिया से भयभीत अधिनायक
- Condolence meeting in memory of Shalini on 31 Marc...
- முழு பூசணிக்காயை சோற்றில் மறைப்பது என்பது இதுதானோ!
- Total anarchy in TET Cadre exams in Bengal! প্রাথ...
- कारपोरेट प्रायोजित जनांदोलन का छलावा है एकतरफ तो द...
- क्रान्ति के शत्रु को ही लाभ पहुँचाती है क्रान्तिका...
- পঁয়ত্রিশ হাজার শূন্যপদের জন্য পরীক্ষার্থীর সংখ্যা ...
- CBI showcases teeth at last as CBI tells Supreme C...
- रेशमा की आत्महत्या से उठे सवाल
- Rihai Manch public hearing of Kosi Kalan, Mathura ...
- The Delhi Historical Materialism Conference - "New...
- *Re-Redefining Hinduism* Ram Puniyani
- Four posing as cops gang-rape Dalit girl
- राज्य सरकार बिरुद्ध गोजमुमोद्वारा उच्च न्यायालयमा ...
- When Girls Go Missing
- Neso stir for AFSPA repeal
- We’ve been advocating AFSPA revocation: JK Govt
- Mizoram and Not Delhi the Most Unsafe City for Women?
- Move to clear doubts on foreign investment
- DIDI VS DIDIS
- ढांचागत क्षेत्र की कुछ बड़ी परियोजनाओं को जल्द मंजू...
- सामूहिकता बनाम वैयक्तिकता
- मोदी की प्रशंसा के लिए किया गया था भुगतान: रिपोर्ट
- जेल से भेजी मारुती मजदूरों ने अपील
- कैंसर से जूझ रही शालिनी की मौत
- आदिवासियों का पुनर्वास
- बस्तर में आदिवासियों ने अपनी असली दौलत ज़मीन को आप...
- तृणमूल ने दहाड़ लगायी और मुलायम ने आपबीती सुनायी, ...
- ब्राह्मणों की गिरफ्त में मार्क्सवाद
- আমাদের প্রিয় বন্ধু সুকৃতি রন্জন বিশ্বাস ফেসবুকে জব...
- दलित ईसाईयों को मुआवजा दे वेटिकन
- मोदी मैकडोनॉल्ड
- माओवादियों के खाने में मिलाया जहर, फिर मारी गोली
- Fact finding Team raises issue of Police Complicit...
- Appeal from Jail Stand in Solidarity with us for J...
- Why do we STILL not know about the killer of Naren...
- THE REALITY BEHIND GUJARAT MODEL Did you know ?
- Interview on Dalit politics published in South Asi...
- Caste discrimination, apathy leading to suicides o...
- INTERVIEW ‘The UN Resolution Is A Misplaced Initia...
- Centre’s deficit worry deepens
- RBI freedom under threat
- SOUND AND FURY - The belief that the UPA’s positio...
- पुलिस का मानवाधिकार
- किस ओर जा रहे हैं हम
- শাহবাগে সাইবার যুদ্ধ
- Riddles in Hinduism
- Persecution of Shrilankan Tamil Refugees in India
- लियाकत की गिरफ्तारी का सच
- पांच दिवसीय चंडीगढ़ संगोष्ठी में जाति के उद्भव और...
- अमेरिकामां जरूर आवजो!
- पानी किसी के बाप का नहीं है! आसाराम बापू सही फरमात...
- .बाबा साहेब ने 6743 टुकडो को तीन जगह इकठ्ठा किया. ...
- हमारे लोगों ने अंबेडकर को चुनकर संविधानसभा में भेज...
- अभी लड़ाई जारी है….आप किसके साथ..?
- खौफ आंबेडकरवाद का एच एल दुसाध
- জামাত শিবিরের ধংসযজ্ঞের অতি সামান্য কিছু ছবি।
- ब्राह्मण/द्विज वर्ण है ,जाति नहीं ,सचमुच जातियां श...
- सर्वस्वहाराओं के मसीहा:डॉ.आंबेडकर
- Forcible deportation of indigenous Muslims
- False Arya-Brahminist Propaganda Against Bengali D...
- Bengali Dalits labeled As Alien Intruders for Pers...
- Arya-Brahmin Fake Communist Leaders Used Dalit Ref...
- Persecution of Bengali Dalits In East Pakistan
- Various Obstacles in United Front between the Bahu...
- Fraud of Indirect Activities !
- Aryans Were Slaves of Indigenous Nag-Dravids
- Countercurrents.org has done a distinguished to th...
- Reservation Status
- NEPAL: DIVIDED LIKE WHEN THEY WERE NEVER BEFORE
- सम्पत्ति सम्बन्धों सहित सभी जातीय और धार्मिक पह...
- अब अंबेडकर विरोधियों, बहुजनों को खंडित करने वालों ...
- कौन कह रहा है कि सच को माने बग़ैर हवा में क्रान्ति...
- खून मुस्लिमों का कभी महंगा न होगा
- Tryst with past and future - Dhaka’s Shahbag at in...
- TN POLITICS Their Dark Glasses Tamil Nadu’s politi...
- दमन के नए हथियार
- महानायक वृत्तपत्राचे संपादक सुनील खोब्रागडे यांनी ...
- Happy Holi and thanks to Government of Norway for ...
- ANNIHILATION OF CASTE WITH A REPLY TO MAHATMA GANDHI
- ANNIHILATION OF CASTE WITH A REPLY TO MAHATMA GANDHI
- Sapana Chaurasiya nominated for Hindustan Times wo...
- विचारधारा और सिद्धान्त जाति हित में बदल जाते हैं !
- जी क्या आप यह बताने का कष्ट करेंगे कि वे कौन से ...
- अगर यथार्थ को सही परिप्रेक्ष्य में संबोधित करना चा...
- क्या लगभग सर्वदलीय सहमति से प्रणव को राष्ट्रपति इस...
- डेमोक्रेसी लाने के नाम पर देशों की ऐतिहासिक संस्कृ...
- बहस अम्बेडकर और मार्क्स के बीच नहीं, वादियों के ...
-
▼
March
(372)
No comments:
Post a Comment