Saturday, October 16, 2010

एक गांव इसी मुल्‍क में है, जिसका नाम है हेसो

एक गांव इसी मुल्‍क में है, जिसका नाम है हेसो

http://mohallalive.com/tag/dilip-mandal/

16 October 2010 2 Comments

♦ संजय कृष्‍ण

रांची से पचास किलोमीटर दूर नामकुम प्रखंड का एक गांव है, हेसो। बस इतनी-सी दूरी में रांची और हेसो में सैकड़ों सालों का फासला है। इस गांव से थोड़ी दूर पर एक पतली छिछली नदी बहती है। उसका नाम भी हेसो है। जैसे नदी की तकदीर, वैसे ही गांव की। गांव तक जाने के लिए सड़क नहीं। उबड़-खाबड़ रास्ते से होकर गांव जाना पड़ता है। कहीं-कहीं बीच-बीच में पीसी पथ। इसके बाद फिर कच्ची सड़क। कुल पंद्रह से ऊपर किमी की मुख्य सड़क से गांव की दूरी तय करने में घंटों का समय लग जाता है। पहाड़ी रास्ते की अड़चने अलग से। जब सड़क नहीं पहुंची है तो बिजली कैसे पहुंच सकती है। राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण का हाल भी यह गाव बयां करता है। जब हम किसी तरह गांव पहुंचते हैं, तो गांव के लोग कौतूहल से देखत हैं। कौन आ गया? गांव के आस-पास प्रकृति का नजारा लेते हैं। गांव को सारजोम बुरु (पहाड़) चारों ओर से घेरे हुए है। खेतों में पड़ी पपड़ी बारिश का इंतजार कर रही थी। माहौल में नमी जरूर थी।

गांव की आबादी चार सौ है। कुल अस्सी घर में मुंडा आदिवासियों के 60 घर हैं। गंझू दो घर और शेष अनुसूचित जाति के। गांव में प्राथमिक पाठशाला है। इसके बाद की पढ़ाई पास के फतेहपुर गांव में जाना पड़ता है। और आगे पढऩा हो तो बुंडू। गांव से बुंडू की दूरी सोलह किमी है। सबसे नजदीक स्वास्थ्य केंद्र बुंडू में ही है। हारी-बीमारी में सबसे नजदीक स्वास्थ्य केंद्र यहीं है। स्थिति बिगड़ गयी तो रांची। बुनियादी सुविधाओं के नाम पर गांव में कुछ भी नहीं। छह चापाकल में सभी खराब। लोग महीनों से हेसो नदी का पानी पी अपनी प्यास बुझा रहे हैं। चापाकल खराब होने की शिकायत पिछले छह माह से नामकुम प्रखंड में संबंधित अधिकारियों से करते आ रहे हैं। पर इनकी सुने कौन?

इनका सबसे बड़ा दोष यह है कि ये आदिवासी हैं। निरक्षर हैं। सीधे हैं। गांव में अधिकतर लोगों के पास जॉब कार्ड है। पर, काम किसी के पास नहीं। सतीबाला और फुलोकुमारी का जॉबकार्ड मई 2006 में बना। काम मिला 2007 व 2008 में महज छह दिन। हालांकि कार्ड में काम के दिनों की संख्या बीस है। सतीबाला (48) बताती है हमें छह दिन की काम मिला। इसी तरह गांव के जुरा डोम, सुखदेव मिर्धा भी हैं। इनका कार्ड भी 2006 में ही बना, पर काम आज तक नहीं मिला। मनरेगा की यह हकीकत है। काम नहीं मिलने से जंगल ही एकमात्र सहारा है, पर जंगल में नक्सली और पुलिस का आतंक है। सो, जो जवान हैं, वे तो पलायन कर रहे हैं, लेकिन बूढ़े कहां जाएं? यहां मुंडा आदिवासियों के पास कुछ खेती लायक जमीन है, लेकिन बरसात नहीं होने के कारण खेत सूखे पड़े हैं।

दलित हरिजनों की हालत सबसे दयनीय है। इनके पास न जमीन है, न मजदूरी। कुछ बांस की टोकरी से 20 से 40 रुपए के बीच दिन में कमा लेते हैं तो चूल्हा जलता है। भोगल सिंह मुंडा 1982 से लकवा पी‍ड़‍ित हैं। पिछले चार-पांच सालों से विकलांग पेंशन के लिए प्रखंड जाते-जाते थक चुके हैं। कहते हैं, एक बार जाने में चालीस-पचास रुपये खर्च हो जाता है। कहां से आएंगे पैसे कि रोज-रोज प्रखंड का चक्कर लगाएं? कमाई का कोई साधन भी नहीं। अंबिता देवी पिछले कई सालों से विधवा पेंशन के लिए भटक रही है। लेकिन उसे पेंशन नहीं मिली।

हेसो की यह कहानी यहीं विराम नहीं लेती। हेसो पुलिस की नजर में नक्सलग्रस्त इलाका है। आपरेशन ग्रीन हंट के नाम पर पुलिस का आतंक हावी है। दिन में पुलिस और रात में नक्सली…। पुलिस का आंतक इतना कि कोई मोबाइल भी नहीं रखता। गांव के संतोष मुंडा बुंडू में बीए में पढ़ता है। उसने एक मोबाइल क्या रख लिया, आफत ही बुला ली। नामकुम थाना पुलिस दो दिन थाने में रख कर उससे पूछताछ करती रही। इस हादसे के बाद उसने गांव छोड़ दिया। उसकी तरह कई युवा हैं, जिसे पुलिस प्रताड़‍ित करती रहती है। एक युवक कहता है, पुलिस नक्सलियों का सफाया करना चाहती है, लेकिन उसका रवैया नक्सलियों की ताकत को बढ़ा रहा है। गंगाधर मुंडा कहता है कि पुलिस ने चेतावनी दे रखी है कि जंगल में मत जाना नहीं तो गोली लग जाएगी। जंगल इनकी आजीविका है। इस आजीविका पर भी ग्रहण लग गया। मनरेगा काम नहीं दे पा रहा। रोजगार का कोई साधन नहीं। वन अधिकार कानून को लागू करने में भी अधिकारी व वन विभाग दिलचस्पी नहीं ले रहे। पिछले साल अक्टूबर में 40 आवेदन दिये गये थे, जिनमें पांच आवेदनों का सत्यापन किया गया। लेकिन उन्हें जमीन आज तक नहीं मिली। यह हेसो की कहानी है। झारखंड में ऐसे गांवों की संख्या अधिक है। और, ऐसे ही गांवों को घेरे है नक्सलियों का लाल कारीडोर।



--
Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Welcom

Website counter

Census 2010

Followers

Blog Archive

Contributors