Wednesday, May 30, 2012

Fwd: दाताs ब्वारि -कनि दुख्यारि :गढवाली भाषा की एक गूढ़ रहस्यात्मक कथा



---------- Forwarded message ----------
From: Bhishma Kukreti <bckukreti@gmail.com>
Date: 2012/5/30
Subject: दाताs ब्वारि -कनि दुख्यारि :गढवाली भाषा की एक गूढ़ रहस्यात्मक कथा
To: kumaoni garhwali <kumaoni-garhwali@yahoogroups.com>


गढवाली भाषा की एक गूढ़ रहस्यात्मक  कथा

 
                   दाताs ब्वारि -कनि दुख्यारि
                                कथाकार - भीष्म कुकरेती
     गौं मा इन कबि नि ह्व़ेओ. इन कैन बि कबि नि देखी. हाँ बुन्याल त - गाँ मा क्या अडगें (क्षेत्र) मा झबरी ददि सबसे दानि मनखिण च , ह्व़े गे होली पिचाणा छयाणा साल की पण कुनगस च बल झबरी ददि न बि इन अचर्ज नि द्याख .बैद जी ऐ ऐ क थकि गेन. वैद जीन क्या क्या जि नि कार! पण दाता की ब्वारी गौमती फर क्वी फरक इ नि पोड़. बैद चिरंजीलाल तै अफु पर इ रोष ऐ गे , गुस्सा ऐ गे. वैन आन नि द्याख जान नि द्याख अर गुस्सा मा अपणो इ सुयर भेळुन्द चुलै दे, अरे इन कबि नि ह्व़े कि मरीज को दुःख बैद चिरंजीलाल को बिंगण मा नि आई हो.ठीक च बैदें करद करद मरीज मोरी बि ह्वाला पण चिरंजी तै दुःख को पता त पोड़ी जांद छौ. सुयर भेळुन्द चुलांद चुलांद चिरंजीलाल न धन्वन्तरी अर चरक का सौं घटीं कि आज से अब बैदकी नि करण बल जब हथुं फर जस इ नि रै गे त किलै बैदकी करण . जस को जख तक सवाल च चिरंजी जरा मुर्दा क बि नाडी देखी लीन्दो छौ त मुर्दा चम खड़ो ह्व़े जान्दो छौ. चिरंजीलाल न क्या क्या दवा नि पिलैन पण दाता कि ब्वारी उनि कड़कड़ी इ राई.
 
             पूछेरूं गणत बुसे गे, गणत को क्वी फल सुफल नि ह्वेई. बक्की हल्दी अर चौंळ सूंगी सूंगी बेहोश क्या परजामा मा चली गेन पण मजाल च .. कबि नागराजा त कबि ग्विल्ल, कबि दुध्या नरसिंग त कबि डौन्ड्या नरसिंग या कबि सैद या देवी बाक मा उपजी जाओ. सुबेर दाता क ड़्यार नागर्जा क घड्यळ, दुफरा मा डौञड्या नर्सिंगौ घड्यळ अर रत्यां घड्यळ मा देवी नचै. बक्क्युं बाकs अधार पर तीन दै हंत्या क जळकटै बि ह्व़े गे. इथगा दिनु बिटेन जागर्युं बास अब ये इ गाँ मा हुयुं च. इथगा घड्यळ धरणो परांत बि दाता कि ब्वारी नि ह्वाई सुख्यारी. ये इ हुर्स्या हुर्सी मा भौतुंन अपण ड़्यार बि घड्यळ धौरि देन . अब दुसरो अडगें का एक बाक्की न बाक मा ब्वाल बल बिंडी सौ साल पैलि क्वी बूड खूड लडै मा घैल ह्व़े छौ. खुंकरी को कचयूँ वै बूड खूड तै कवा, करैं, चिलंगौं न कोरि कोरिक खै छौ. वै पुरखा कि अधीति , अटकदि भटकदि आत्मा अब दाता कि ब्वारि तैं चैन नि लीण दीणि च. बुल्दन बल जैकु म्वारु वु क्या नि कारू . दाता क ब्वेन महादेव चट्टी म गंगाळ म नारेण बळि बि कराई । पण दाता कि नौली नौली ब्वारी न ठीक नि हूण छौ स्यू वा ठीक नि ह्वाई.
दाता क डंड्यळ म , छ्ज्जाम , चौकम, मनिखौं , बूड बुडयूँ, नौना नौन्याळियूँ पिपड़कारो मच्युं रौंद छौ. घसेर्युं छ्वीं दाता क ब्वारि छ्वीं बिटेन शुरू होंदी छे अर दाता क ब्वारि छ्वीं मा खतम होंदी छे. ग्वेरूं क बातचित मा बि गोर ना दाता कि ब्वारि इ होंदी छे. स्कूलया बि स्कूल जांद दै दाता क ड़्यार हाजरी लगावन अर तब स्कूल ज़िना जावन.अर फिर स्कूल बिटेन सीदा दाता क ड़्यार जावन अर तब फिर अपण ड़्यार जावन. दाना सयाणा जु पैल कैक चौक मा छ्वीं लगान्दा छया अब बस सुबेर बिटेन स्याम तलक इख दाता क चौक मा इ जमघट लगैक छ्वीं लगांदन अर दगड मा दाता क ब्व़े तै सलाह मशवरा बि दीणा रौंदन. अच्काल, दाता कौंका चौंतरा जवान, अध्बुडेड़ , बुड्यों कुणि तमाखू खाणै एकमात्र जगा च.
गौं कि बात च त दुःख सुख मा काम नि आण त कब काम आण भै! जु बि आओ वु पैल दाता क ब्व़े तै ढाढस द्याओ अर फिर चौक मा बैठी जाओ. बनि बनि क लोक याने बनि बनि क राय मशवरा . दाता क ब्व़े बि हेरक क बुल्यूं मानणो बिवस छे. क्वी ब्वाल बल तैं ब्वारी तै गरम पाणी पिलाओ त ब्वारी तै तातो पाणी दिए जान्द छौ, अर क्वी वैबरी ब्वालो बल मेरी स्याळि बि इनी बीमार ह्व़े छे अर वीन छांच क्या पे कि वा ठीक ह्व़े गे छै. बस क्या दाता क ब्वारी तैं वैबरी छाँछ पिलाए जांद छौ. क्वी ब्वाल बल ब्वारि तै ढिकाण द्याओ त ढिकाण दे दिए जांद. मतबल जति मुख तति तरां बैदकी.
 
अब जब दाता क ड़्यार म अडगें लोक सुबेर बिटेन स्याम तलक जमा रावन त बात कख बिटेन कख पौंची जाली अर कथगा इ बात होली. उख एक पन्थ द्वी काज हूणो छौ. लोक दाता क ब्वारिक खबर सार बि लीणा अर दगड मा कथगा इ काम बि निबटाणा छया. जब इथगा लोक कट्ठा ह्वेक बैठयाँ रावन त ब्यौवरी/ब्यौपार बि होणि छौ. अर फिर ब्यौथौं छ्वीं बि लगणि छौ. यूँ आठ दस दिनु मा दाताक चौक मा इ बीसेक जनम पत्र्यु दिखण दाखण ह्व़े, चार नौन्युं मांगण फिक्स ह्व़े, आठ जोड़ी बल्द बि इखी बिकेन, कथगा गौड्यू गोशी, गौशाला बदलेन, द्वी तीन भैंसी इना उना ह्वेन, चार तन्दला बखरों क ब्यौपार बि इखी यूँ दिनु ह्व़े . द्वी कतर पुंगड़ो ब्यौपार तक इखम ह्व़े ग्याई. दाता क ब्वारि कनफणि सि बीमार क्या ह्व़े कि दाता क ड़्यार अच्काल ब्यवरयौ कुणि मंडी बि बौणि गे.
दाता ! अहा, दाता ! यनु मयळु च बल सरा अडगै की ब्व़े प्रार्थना करदन बल हे भूम्या ! नौनु देलि त दाता जन. दाता जब द्वी सालौ छौ त बुबा भग्यान ह्व़े ग्याई अर ब्व़े रंडोळ (विधवा) ह्व़े गे छे.रंडोळ ब्वेन पड्याळ कौरिक, मजदूरी कौरिक दाता तै पढ़ाई अर आज दाता लखनौ कोलेज मा प्रोफ़ेसर च. ब्यौ क टैम आई त दाता न बोली दे जैञ ब्वे न म्यार बान इथगा खैरि खैनि त जख ब्वे ब्वालली मीन तखी ब्यौ करण. बस स्यू ब्यौ ह्व़े ग्याई.
 
पण भाग त द्याखदी दाताक ब्वे का! ब्यौ क उपरान्त पलुणि क तिसर दिन इ दाताराम तै ड्यूटी पर जाण पोड़. बल उख कोलेज मा समेस्टर की इमतान छन त छुट्टी इथगा इ मीलेन . अर जनि दाता कुटद्वर पौंची होलु की इना दाता क ब्वारी गौमती अड़गटे गे, कड़कड़ी क कड़कड़ी ह्व़े गे. अर इन लग जन बुल्यां ईं ब्वारी खुणि लुचुड़ ऐ गे धौं! भूत पिचास, सैद, डैण लग्यां दुख्यर सब्यूं न देखिन पण इन अजाण दुःख कैन नि देखी छौ. एक द्वी दिन मा बबाल ह्व़े ग्याई बल दाता क ब्वारी मैत इ बिटेन बीमार च.
ग्विर्मिलाक हुणो छौ. लोक दाताक चौक मा जम्याँ छ्या. मथि ड़ड्यळ म दाता क ब्वारी रोजक तरां कबि अपण दांत किटणि त कबि खळ-खळ गिच उफारणि छे. कबि एक हौड़ फरकणि त कबि हैंको हौड़ फरक जाओ.कबि खताखति उस्वासी ल्याओ त कबि आंखि कताडिक टकटकी लगैक मथि ढ़ाईपरौ कडियूँ, पटला, बौळि दिखद जावो. कबि वा अस्यौ (पसीना) मा नये जाओ त कबि वीं तै जड्डू लगी जाओ .अबि गोमती रूंग म्याळ मा पड़ी पड़ी, मुट्ठी बौटि बौटिक कणाणि छे.
कुछ लोक बैठयाँ छ्या, जनानी कुमसाणा छ्या, झबरी ददि सीढ़ी मा बैठि छे कि रणेथ क परमानाथ डळया गुरु इकतारा बजांद बजांद चौक मा ऐ.
परमानाथ ए गांवक डळयागुरु छौ. वो इकतारा बजांद बजांद बडी भली भौण मा गाणो छौ -
 
माता रोये जनम जनम कू , बहन रोई छै मासा।
तिरया रोये डेढ़ घड़ी कूँ , आन करे घर बासा ।।
 
सबि लोक चित्वळ ह्व़े गेन बल परमा डळया कख कख क डाक लांद धौं ! अर क्या फरकांद धौं! परमा नाथन एकतारा दिवाल पर खड़ो कार . चिलम भौर अर लम्बी लम्बी सोड मारिक धुंवारोळी कार. जब सोड मारिक परमा नाथ तै सेळि सि पोड़ त वो सीधो सीढी चौढ़ अर झबरी ददि क तौळ वळि सीढ़ी मा बैठी गे।
वैन झबरी ददि मांगन सौब बिरतांत सूण अर फिर से चिलम पर जोर की सोड पर सोड मारिन. सरा वातावरण मा धुंवारोळी फैली गे.
अब फिर वैन भित्रां मुख कौरिक दाता क ब्वारिक तर्फां ह्यार. झबरी ददि बिटेन सबी बिरतांत बि सूण
पर्मानाथान दाता क ब्व़े तै धाई लगाई ,' ये बौ ! जरा तै ब्वारी तै भैर छज्जा मा लादि." परमानाथ ए गांवक डळयागुरु छौ त वैकी बात क्वी बि अणसुणि नि करदो छौ.
जनानी दाता की ब्वारी तै छजा मा लैन . परमा डळया न दाता क ब्वारी तै खूब ह्यार . एक दै ना कति दै ह्यार .
फिर परमा तौळ चौक मा ऐ ग्याई.
 
चौक बिटेन वैन झबरी ददि तै ब्वाल," हे झबरी ददि ! मी त बोदू त्वे तै जिंदु इ कुंडम जळे दीन्दा त भलो छौ."
झबरी ददि पर जन बुल्यां बणाक लगी गे होऊ, वीन बि तडाक से ब्वाल ,' अपणि ब्व़े तै जिन्दो ख्ड्यार तू." पण दगड मा झबरी ददि समजण बि बिसे गे कि परमानाथ तै क्वी अकल कि बात सूजी गे. वा सने सने कौरिक सीडी उतरण मिसे गे.
फिर परमानाथ न चिरंजीलाल तै सुणायि," बैद जी तुम त दवाई का इ गुलाम छंवां. मन बि कवी चीज होंद.कि ना ?" चिरंजीलाल उनि बि दुखी छौ वैन कुछ नि ब्वाल.
परमानाथ न झबरी ददि तै जोर कैकी पूछ," ये ददि कति नाती नातिण छन त्यार?"
" ए अभागी गुरु दाग नि लगै . झड़ नाती , नतेण सौब मिलैक होला तीन बीसी से अग्यारा कम." झबरी ददि क जबाब छौ
परमानाथ न ब्वाल,' अर अबि बि नि समजी कि दाता कि ब्वारी किलै दुखयारी च "
झबरी ददि न ब्वाल, जु तू अफु तै भेमाता समजदी त बोल .."
परमानाथ न पूछ," दाता ब्यौ बाद कति राति घौर राई?"
झबरी न जबाब दे ," द्वि राति.."
परमानाथ न पूछ,' अर दाता क ब्वारिक उमर क्या होली/'
झबरी ददि न जबाब मा ब्वाल,' होली बीस , इक्कीस.."
परमा नाथ न जबाब दे," ए खाडून्द कि ददि ! जवान ब्वारी , ब्योला ब्यौ क द्वी राति बाद देस चले गे त ब्वारी न दुख्यर होणि च कि ना?"
झबरी ददि न अपण कपाळ पर जोर कि चमकताळ लगाई ," ए म्यरा भुभरड़! हाँ इन मा त ब्वारी न दुख्य र हुणि च ..कि ना...अर जवान ब्वारी अर ब्योला त द्वी राति ...अच्छा तबी ब्वारिक दंत सिल्याणा छन तबी वा दंत किटणि च..तबि अस्यौ ..
ये ब्व़े ! मेरी खुपड़ी मा या बात कि लै नि आई.."
परमानाथ न ब्वाल, " अब तेरा बर्मंड मा बात भीजी गे ."
झबरी ददि न धाई लगान्द ब्वाल, " ये दाता क ब्वे! भोळ इ कैरा दगड ब्वारी तै दाता क पास लखनौ भेज . मी नाती नातिण्यु सौं घौटिक बुलणु छौं जनि ब्वारी दाता तै द्याख्ली वीन अफिक ठीक ह्व़े जाण."
चिरंजीलाल वैद दौडिक परमानाथ क ध्वार आई अर खुसफुस अवाज मा ब्वाल,' मतबल , देह सुख कि कामना से दाता कि ब्वारी दुखयारी च ?"
परमानाथ न ब्वाल, " कनो आँख, कंदूड़ , साँस लीणो ढंग नि बथाणा छन कि देह सुख कि कामना से इ दाता कि ब्वारी दुखयारी च "
चिरंजीलाल वैद को जबाब छौ,' अरे मीन यीं दृष्टि से टटोळ इ नी च ..हाँ देह कामना की .."
दान, बूड खूड समजी गेन कि असली बीमारी क्या च. इना कैरा दाता की ब्वारी तै भोळ लखनौ लिजाणो तयारी मा लग उना परमा नाथ अपण एकतारा बजाणबिसे गे अर गाण मिस्याई--
सुन रे बेटा गोपीचंद जी , बात सूनी की चित लाइ ।
कंचन काया, कनक कामिनी , मति कैसी भरमाई ।
०००० ०००००
पाँच सात दिनु पैथर कैरा जब लखनौ बिटेन घौर बौड़ त वैन बताई बल दाता कि ब्वारी लखनौ पौंछणो तीनेक दिन मा ठीक ह्व़े ग्याई.
copyright@ Bhishma Kukreti
(हिलांस, ऑगस्ट, १९८३ , पृष्ठ ९)


--
 


Regards
B. C. Kukreti


No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Welcom

Website counter

Census 2010

Followers

Blog Archive

Contributors