जीवन बीमा के बाद अब पेंशन भी बाजार और वैश्विक पूंजी के हवाले!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
पूरा देश अब मोंटेक सिंह आहलूवालिया के पैंतीस लाख टकिया शौचालय जैसा खुला बाजार है। भविष्य निधि में मालिक के अवदान से आप कुछ निकाल नहीं सकते। अपने हिस्से से महज साठ फीसद उठा सकते हैं। बाकी रकम बाजार के हवाले है। जीवन बीमा निगम के करीब नौ करोड़ ग्राहकों को शेयर बाजार के खेल में पहले ही चूना लग चुका है। विनिवेश में आपके प्रीमियम को लगाया जा रहा है। अपको जो घाटा होगा , उसकी तो भरपायी नहीं हो सकती। जीवन बीमा सरकारी दबाव में शेयर बाजार में निवेश करके डूबने के कगार पर है। अब पेंशन को भी विश्वपुत्र प्रस्तावित बाजारू राष्ट्रपति और वास्तविक प्रधानमंत्री जो वित्तमंत्री की हैसियत से सरकार और देश चला रहे हैं,उन प्रणव मुखर्जी की कृपा से बाजार और वैश्विक पूंजी के हवाले है। महज सरकारी मुहर अबी लगनी है। ममता दीदी की निर्मम सौदेबाजी से एअरइंडिया के विनिवेश की तरह यह मामला फिलहाल लटका हुआ है। कालीघाट में फूजा के बाद मंटेक बाबा जो बंगाल सरकार के नियंता हैं, उनकी कृपा से ग्रहदशा साढ़े साती से निकलने की देर है और गिलोटिन पर आपका गला काट दिया जायेगा। रिटायर जब तक होंगे, तब तक डीटीसी और जीएसटी लागू हो जायेगा।आपकी आधी जमा पूंजी शेयर बाजार की बेंट चढ़ चुकी होगी। बची खुची बचत पर तमाम तरह का टैक्स अदा करके बेरोजगार संतानों के साथ मधुमेह और कैंसर पीड़ित संसार कैसे चलायेंगे, आप जानें। बहरहाल जब तक नौकरी है, ऐश कर लें क्योकि ट्रेड यूनियनों ने आपको बेहतर पगार , जायादा बोनस और काम न करने के गुर तो सिखा दिये हैं, आंदोलन और प्रतिरोध के रास्ते से एकदम हटा दिया है और सेवानिवृत्ति के बाद या फिर विनिवेश और निजीकरण की प्रक्रिया के मध्य एअर इंडिया कर्मचारियों की तरह भूखमरी कामरी का जायका ले लें! बहरहाल तृणमूल कांग्रेस ने प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को पत्र लिखा कि बिल पर और विचार की जरूरत है। इसी के बाद पीएफआरडीए बिल पर निर्णय टाल दिया गया। एक दिन पहले इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र के लिए दो लाख करोड़ रुपए की परियोजना को हरी झंडी देने वाली सरकार फिर गठबंधन की मजबूरी में फंस गई। सतर्कता राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर बरती जा रही है।
मालूम हो कि सेबी के नियम तोड़कर बाजार और कारपोरेट जगत के दबाव में विनिवेश की जो पद्धति अपनायी जा रही है, उससे छोटे पालिसीधारकों के भविष्य को चूना लगाने के लिए भारतीय जीवन बीमा निगम को मजबूर कर दिया गया है, जो पहले से ही विनिवेश की पटरी पर है और जिसकी नियति एअर इंडिया से अलग नहीं लगती। जीवन बीमा है तो और कहीं क्यों जाना, लोक लुभावन इस नारे से अब साख नहीं बचती लग रही। इक्विटी पालिसियों को बेचते हुए जो मनभावन भविष्य का खाका एजेंट ने ग्राहकों के सामने खींचा था, अब आपातकालीन आवश्यकता के मद्देनजर उसे भुनाते वक्त सिर्फ आह भरने के बजाय कोई चारा नहीं है। सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विनिवेश की गरज से एलआईसी इक्विटी का बाजार में विनिवेश कर दिया। ओएनजीसी और पंजाब नेशनल की हिस्सेदारी खरीदने में जीवन बीमा निगम ने कुल इक्विटी २२ हजार करोड़ का ५५ फीसद लगा दिये। शेयर बाजार में जिससे निगम के छोटे ग्राहकों का सत्यानाश हो गया। फायदा तो कुछ नहीं हुआ, पांच छह साल की अवधि के बाद अब घाटा उठाना पड़ रहा है और एजेंट लोगों से कम से कम दस साल तक इंतजार करने की गुजारिश करते हुए गिड़गिड़ा रहे हैं। उन्होने तो अपना कमीशन पीट लिया लेकिन इससे क्या जीवन बीमा की साख बची रहेगी?
यूपीए के सहयोगी दलों में मतभेदों के बीच कैबिनेट ने महत्वपूर्ण पेंशन फंड नियामक एवं विकास प्राधिकरण विधेयक, 2011 में बदलाव पर फैसला टाल दिया है। कैबिनेट बैठक के बाद एक मंत्री ने बताया कि विधेयक पर विचार किया गया, लेकिन फैसला टाल दिया गया। यूपीए के सहयोगियों में तृणमूल कांग्रेस पेंशन और बीमा सुधारों का मुखर विरोध कर रही है। जबकि सरकार वित्तीय क्षेत्र के लंबित पड़े सुधारों पर तेज रफ्तार कदमों की मंशा दिखा रही है। इसके तहत वह पीएफआरडीए विधेयक और बीमा विधेयक को जल्द से जल्द अमल में लाने के लिए कवायद करती नजर आ रही है।केंद्र सरकार आरआरबी के जरिए मुख्य रूप से वित्तीय समावेशन के लक्ष्यों को हासिल करने और उसमें सीबीएस सिस्टम लागू करने की तैयारी कर रही है।आरआरबी के लिए 600 करोड़ रुपये का प्रावधान किया जा सकता है।इससे आरआरबी के आधुनिकीकरण और विस्तार में मदद मिल सकेगा। अधिकारी के अनुसार सरकार की योजना जल्द से जल्द क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के नए प्रस्ताव के तहत विलय करने की है। आरआरबी के विलय से जहां ग्रामीण बैंकों का आधुनिकीकरण होगा, वहीं उनका नेटवर्क भी मजबूत होगा।वित्त मंत्रालय की आरआरबी में सीबीएस सिस्टम, नेट बैंकिंग जैसी सेवाओं को लागू करने की योजना है। वित्त मंत्रालय के प्रस्ताव के अनुसार देश के 82 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की संख्या को विलय के जरिए 46 पर लाना है।
वित्त मंत्रालय की योजना में प्रायोजक बैंक के रूप में भारतीय स्टेट बैंक, इंडियन बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, यूनाइटेड बैंक, जे एंड के बैंक, यूको बैंक, स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर, बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, इलाहाबाद बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया प्रमुख रूप से शामिल हैं।
वित्त मंत्रालय ने कैबिनेट सचिवालय को यह भी लिखा है कि वह बीमा विधेयक पर फिर से विचार करे जिसमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा को 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी किए जाने का प्रावधान किया गया है।सरकार प्रस्तावित पीएफआरडीए विधेयक में बदलावों को मंजूरी देकर पेंशन क्षेत्र में सुधार को गति दे सकती है। सूत्रों ने कहा कि सरकार एफआरडीए विधेयक में उस प्रस्ताव को शामिल कर सकती है जिससे पेंशन कोष अंशदाताओं को निश्चित रिटर्न सुनिश्चित हो सके। अगर ऐसा होता है तो यह वित्त पर संसद की स्थायी समिति की सिफारिशों के अनुरूप होगा।लंबित पेंशन कोष नियामकीय एवं विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) विधेयक, 2011 को मंत्रिमंडल से मंजूरी मिलने के बाद इसे विचार के लिए संसद के आगामी मानसून सत्र में रखा जाएगा। मानसून सत्र जुलाई में शुरू होगा।पिछले कई साल से लंबित पीएफआरडीए विधेयक पेंशन क्षेत्र को निजी एवं विदेशी निवेश के लिए खोले जाने की वकालत करता है।
अर्थव्यवस्था में जबरदस्त सुस्ती के संकेतों के बीच केंद्र सरकार ने देशी-विदेशी निवेशकों के सामने आर्थिक सुधारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है। सरकार ने दिसंबर महीने में ही पेंशन क्षेत्र में 26 फीसदी तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआइ] को मंजूरी दे दी।लेकिन ममता दीदी के विरोध के चलते इस विधेयक को संसद के शीतकालीन सत्र में पेश नही किया जा सका। पर जनता को चूना लदगाने में कोई कसर न छोड़ी जाये, इसकी तैयारियां की जा चुकी है। मसलन सरकार ने बहुत चालाकी से यह अधिकार भी अपने पास सुरक्षित रखा है कि वह जब चाहे इस सीमा को बढ़ा सकेगी। इससे बड़ी बात यह है कि पेंशन क्षेत्र में निवेश करने वाले निवेशकों को न्यूनतम रिटर्न की कोई गारंटी नहीं मिलेगी।कैबिनेट ने पेंशन फंड नियमन व विकास प्राधिकरण विधेयक, 2011 में वित्त मंत्रालय की स्थायी समिति की कुछ सिफारिशों को शामिल करते हुए मंजूरी दी।विधेयक में इस बात का जिक्र नहीं होगा कि पेंशन फंड में एफडीआइ कितनी होनी चाहिए। इसका जिक्र अधिसूचना में किया जाएगा। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, इसका फायदा यह होगा कि अगर सरकार को भविष्य में एफडीआइ की सीमा में कोई बदलाव करना हो तो उसे इसके लिए फिर से संसद में जाने की जरूरत नहीं होगी। बीमा के प्रकरण को वह दोहराना नहीं चाहती। सरकार ने पांच वर्ष पहले यह फैसला किया था कि बीमा में एफडीआइ की मौजूदा सीमा 26 से बढ़ाकर 49 फीसदी किया जाएगा। अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है, क्योंकि इसके लिए एक विधेयक संसद से पारित करवाना होगा। पेंशन फंड में सरकार के पास ऐसी बाध्यता नहीं होगी।वैसे सरकार ने वित्त मंत्रालय की स्थाई समिति के इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया कि पेंशन फंड में निवेश करने वाले निवेशकों को न्यूनतम रिटर्न की गारंटी मिलनी चाहिए। सूत्रों के मुताबिक, ऐसा संभव नहीं है। हां, पेंशन फंड पर सरकार की निगरानी जरूर होगी। नए कानून में इस बात के भी पूरे प्रावधान किए गए हैं कि ग्राहकों के हितों के साथ कोई खिलवाड़ नहीं हो पाए, लेकिन गारंटीशुदा रिटर्न देने का वादा नहीं किया जा सकता। निवेशकों को बाजार के मुताबिक रिटर्न ही मिलता रहेगा।पेंशन फंड से परिपक्वता अविधि की समाप्ति से पहले रकम निकासी के बारे में सरकार ने कुछ कड़े प्रावधान किए हैं। सिर्फ बेहद जरूरी मामलों को छोड़कर [मसलन, घातक बीमारी वगैरह] अन्य किसी भी मामले में पेंशन फंड से निर्धारित अवधि से पहले राशि निकालने पर रोक होगी। सगे-संबंधियों की शादी में पैसा निकालने की भी अनुमति नहीं होगी। समिति ने कहा था कि निवेशकों को पेंशन फंड से आसानी से राशि निकालने की छूट होनी चाहिए। सरकार का कहना है कि इससे रिटर्न कम हो जाएगा।पेंशन सुधार का एजेंडा देश में पूर्व राजग सरकार ने शुरू किया था। पेंशन फंड में एफडीआइ लाने को लेकर पहला विधेयक संप्रग-एक ने पेश किया था, लेकिन वाम दलों की वजह से बात आगे नहीं बढ़ी। मार्च, 2011 में सरकार ने दोबारा यह विधेयक पेश किया था।
ममता दीदी की निर्मम सौदेबाजी और राजनीति एक बार फिर पेंशन रिफार्म बिल के आड़े आ गई। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के विरोध के कारण गुरुवार को कैबिनेट ने पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (पीएफआरडीए) बिल पर फैसला टाल दिया। तृणमूल कांग्रेस के विरोध के आगे नतमस्तक केंद्र सरकार को पेंशन बिल फिर टालना पड़ा। आर्थिक सुधारों की रफ्तार बढ़ाने की कोशिश में नए सिरे से जुटे प्रधानमंत्री को पेंशन बिल के खिलाफ चिट्ठी लिखकर रेलमंत्री मुकुल राय ने कैबिनेट बैठक से पहले ही अपनी पार्टी के तेवर दिखा दिए। रेल मंत्री और तृणमूल नेता मुकुल राय ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को बुधवार की रात पत्र लिखा था कि बिल पर और विचार की जरूरत है।दीदी को बंगाल की जनता से किये वायदे निभाने के लिए और मां माटी मानुष सरकार की साख बचाने के लिए जितने पैसे चाहिए, विश्व पुत्र और मंटेक बाबा बस उसका इंतजाम कर दें, आर्थिक सुधार का गिलोटिन वायरस मुक्त हो जायेगा ौर खून की नदियां बहने लगेंगी ताकि कारपोरेट मुनाफे और बाजार की प्यास बुझायी जा सकें!मुकुल राय के मुताबिक स्थायी संसदीय समिति में उनकी पार्टी का कोई प्रतिनिधि नहीं होने के कारण उनकी पार्टी के विचार समाहित नहीं किए गए हैं। माना जा रहा है कि आसन्न राष्ट्रपति चुनावों में तृणमूल का समर्थन खोने के डर से बिल पर फैसला टाला गया।
सरकार के तृणमूल के आगे इतनी आसानी से हथियार डालने पर इसलिए हैरत जताई जा रही है, क्योंकि माना यह जा रहा था कि सपा से समझबूझ कायम होने के बाद ममता कीअड़ंगेबाजी को नजरअंदाज किया जाएगा। राष्ट्रपति चुनाव के चलते सरकार ऐसा साहस नहीं दिखा सकी और उसने गुरुवार को मंत्रिमंडल की बैठक में पेंशन विधेयक को बिना किसी चर्चा के टाल देने में ही भलाई समझी।
पेंशन क्षेत्र में निजी और विदेश निवेश के दरवाजे खोलने वाला पेंशन फंड निवेश एवं विकास प्राधिकरण विधेयक-2011 कैबिनेट के एजेंडे में तीसरे नंबर पर था, लेकिन मुकुल राय की चिट्ठी के मद्देनजर इसे नजरअंदाज कर सीधे चौथे नंबर के आइटम पर विचार हुआ और बैठक 20 मिनट में ही खत्म हो गई। मुकुल राय ने बैठक से एक दिन पहले ही प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री को पत्र लिखकर विधेयक पर एतराज दर्ज करा दिया था। पत्र में कहा गया था कि चूंकि पेंशन विधेयक पर विचार करने वाली संसदीय समिति में तृणमूल का कोई सांसद नहीं है, लिहाजा पार्टी का दृष्टिकोण इसमें समाहित नहीं हुआ है। पहले समिति में सुदीप बंधोपाध्याय थे, लेकिन मंत्री बनने के बाद से उनकी जगह खाली है।
तृणमूल की हनक का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि ढांचागत परियोजनाओं पर प्रधानमंत्री द्वारा बुधवार को बुलाई गई बैठक में रेलमंत्री मुकुल रॉय आए ही नहीं थे। हालांकि इसके बावजूद पश्चिम बंगाल में सोनागार-दानकुनी फ्रेट कारीडोर को मंजूरी दी गई। गुरुवार को हुई बैठक में मौजूद मुकुल राय ने पेंशन बिल पर एक शब्द नहीं बोला। पेंशन विधेयक पर तृणमूल पहले भी विरोध जताती रही है और इसी कारण वह काफी समय से लंबित है। इसे मार्च 2011 में संसद में पेश किया गया था। वहां से उसे संसदीय समिति के पास भेज दिया गया। संप्रग सरकार की पिछली पारी में वाम दल ने इसका विरोध किया था। बिल पारित न होने से फिलहाल पेंशन फंड नियामक एवं विकास प्राधिकरण कार्यकारी आदेश से काम कर रहा है और उसे वैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं है।
गौरतलब है कि समाज के तमाम तबकों की चिंताओं और सियासी दबाव के बाद सरकार पेंशन फंड में निवेशकों को गारंटीशुदा रिटर्न देने को राजी हो गई है। शीतकालीन सत्र में अब तक अपने आर्थिक सुधार के एजेंडे को बढ़ाने में नाकाम रही सरकार ने विपक्ष के सुझावों को मानकर पेंशन फंड नियामक विकास प्राधिकरण विधेयक में कई बड़े संशोधन करने की हामी भर दी है। गारंटीशुदा रिटर्न के अलावा निवेशकों को बाजार आधारित रिटर्न का विकल्प भी दिया जाएगा। साथ ही पेंशन फंड में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को कानून के जरिए मंजूरी देने पर भी सहमति बन गई है। संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार के आर्थिक सुधारों के एजेंडे को करारा झटका लगा है। खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआइ]पर कदम पीछे खींचने के बाद सरकार को अब पेंशन व कंपनी विधेयकों को भी रोकना पड़ा है। इन तीनों ही मामलों में उसे अपनी सहयोगी तृणमूल कांग्रेस के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा और उसके दबाब में हर बार पीछे हटना पड़ा। इस मामले में भाजपा का भी विरोध था।
सरकार ने पेंशन विधेयक पर तो उससे सहमति बना ली थी, लेकिन एफडीआइ एवं कंपनी विधेयक पर बात नहीं बनी।
संसद का शीतकालीन सत्र सरकार के लिए अच्छा नहीं बीता। उसके आर्थिक सुधार ऐजेंडे को तो अपने घर से ही पलीता लगा। सहयोगी तृणमूल कांग्रेस ने खुदरा क्षेत्र में एफडीआइ, पेंशन फंड नियामक विकास प्राधिकरण [पीएफआरडीए] व कंपनी विधेयक तीनों मामलों में सरकार के प्रावधानों का जोरदार विरोध किया।ममता बनर्जी ने स्पष्ट कहा था कि पश्चिम बंगाल में उसके राजनीतिक हितों को देखते हुए खासकर वामपंथी दलों के साथ सीधे टकराव की स्थिति में वह इन मुद्दों पर समर्थन नहीं दे सकती है। सूत्रों के अनुसार ममता बनर्जी ने इस बारे में एक पत्र वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को भेजा था। विपक्षी भाजपा भी कई मुद्दों पर सरकार से सहमत नहीं थी। सरकार ने संसद के अपने एजेंडे से पीएफआरडीए व कंपनी विधेयकों को अचानक हटा लिया। भाजपा तमाम संशोधनों की वजह से इसे फिर से संसद की स्थायी समिति के पास भेजना चाहती थी। ऐसे में सरकार के पास संसद के दोनों सदनों में इन विधेयकों को पारित कराने के लिए संख्याबल की समस्या खड़ी हो गई थी। साथ ही वह तृणमूल कांग्रेस को सदन में किसी भी मुद्दे पर अपने खिलाफ खड़ा नहीं करना चाहती थी।रिटेल में एफडीआइ पर अपने फैसले से पलटने के बाद आर्थिक सुधारों पर कदम पीछे खींचने का सरकार का यह दूसरा बड़ा मौका है। मल्टी ब्रांड रिटेल में भी 51 प्रतिशत एफडीआइ के अपने फैसले को सरकार टाल चुकी है।
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी और भाजपा नेताओं के बीच हुई बैठक के बाद पेंशन फंड एवं नियामक विकास प्राधिकरण विधेयक को लेकर सहमति बन गई है। इसमें करीब 70 संशोधनों का प्रस्ताव आने के बाद सरकार पुराने विधेयक को वापस लेकर नया विधेयक पेश करने के विकल्प पर भी विचार कर रही है। यदि पेंशन विधेयक संसद से पारित होता है तो मल्टीब्रांड रिटेल में धक्का खाने के बाद आर्थिक सुधारों पर सरकार का यह पहला बड़ा कदम होगा।
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के साथ हुई इस बैठक में भाजपा संसदीय दल के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी, लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली एवं पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा भी मौजूद थे। सूत्रों के अनुसार बैठक में सरकार ने पीएफआरडीए विधेयक पर सिन्हा की अध्यक्षता वाली वित्त संबंधी स्थायी समिति की गारंटी शुदा रिटर्न की सिफारिश को मान लिया है। गारंटीशुदा रिटर्न के साथ अन्य निवेश का विकल्प भी मौजूद रहेगा। इसके अलावा सरकार अब इसमें एफडीआइ के प्रावधान नियमों के तहत करने बजाय कानून के अंतरगत करने भी सहमत हो गई है। इस विधेयक का विरोध कर रही सरकार की सहयोगी तृणमूल कांग्रेस का रुख अभी साफ नहीं है। सरकार ने इस मामले पर तृणमूल कांग्रेस नेता एवं रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी से चर्चा की है। इस विधेयक के बुधवार को लोकसभा में लाए जाने की संभावना है।
कंपनी विधेयक में सीमित दायित्व वाली साझीदार फर्मो [एलएलएम] के मुद्दे पर भी सरकार ने भाजपा की मांग मान ली है। भाजपा इस विधेयक को फिर से संसद की स्थायी समिति के पास भेजने के पक्ष में है। इसकी वजह इसमें स्थायी समिति के सुझाए 162 संशोधनों के साथ सरकार को अलग से विभिन्न संस्थाओं से लगभग 20 अन्य सिफारिशें भी मिली हैं। इस बारे में सरकार ने फिलहाल कोई आश्वासन नहीं दिया है।
Unique
Hits
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Census 2010
Followers
Blog Archive
-
▼
2012
(5805)
-
▼
June
(689)
- Bull Shit Marxist Ideology!The Marxists Committed ...
- अभी मंहगाई की मार कहां पड़ी है? गैर राजनीतिक गैर ...
- BOOKS: EXTRACT The Night Shastri Died And Other St...
- Grrr over GAAR and then purr Hint of course correc...
- CM takes Left on board in debt-relief fight Foe sa...
- हिन्दू फासीवाद का हिडेन एजेण्डा By राम पुनियानी 27...
- कलाम का सलाम सोनिया के नाम
- गोली मारने के बाद यहां स्कूली बच्चे भी माओवादी बना...
- बाजार तो उठा पर, आम आदमी को मिलेगा क्या?
- Nitish-Modi Spat: Debating Secularism
- Justice Sachar Committee Report Findings CPI(M)’s ...
- Sachar Committee Report
- Sachar Committee Report
- Sachar Committee From Wikipedia, the free encyclop...
- सच्चर रिपोर्ट सरकार को सौंपी गई
- फुटबाल टूर्नामेंट, सानिया मिर्जा और नैनीताल!
- सच्चर कमेटी की सिफारिशें और कार्यान्वयन
- सच्चर कमेटी की रिपोर्ट और मुसलमान
- Baba aur Shobhakantji ke saath meri aur Savita ki ...
- उद्योग जगत को स्टिमुलस देने का पक्का इंतजाम,गार का...
- FM Manmohan Makes Investor Richer by Rs 1.17 trill...
- Fwd: [New post] अर्थ के अनर्थ की तहकीकात
- Fwd: Michel Chossudovsky: The US-NATO Military Cru...
- Fwd: [New post] पश्चिम एशिया : फिलिस्तीन के यहूदीक...
- Fwd: Today's Exclusives - Indian stocks shoot up a...
- Fwd: [Please vote Lenin Raghuvanshi as reconciliat...
- Fwd: Debating Secularism ISP IV June 2012
- Fwd: [New post] अर्थजगत : नव उदारवाद और विकास के अ...
- Fwd: कृपया सम्बंधित विषय पर नई -नई जानकारियों के स...
- Fwd: [Please vote Lenin Raghuvanshi as reconciliat...
- Fwd: आणा -पखाणा अर राजनीति
- Fwd: Jagadishwar Chaturvedi updated his status: "य...
- Fwd: (हस्तक्षेप.कॉम) आतंकवाद के नाम पर पकड़े गए बे...
- मनमोहन ने पहले ही दिन डंके की चोट पर बाजार का जय...
- यूरोकप, पुलिनबाबू मेमोरियल फुटबाल टूर्नामेंट, सानि...
- देशद्रोह कैदियों के पक्ष में लखनऊ में धरना
- 'कविता तय करेगी, बल्ली बिक गया या निखर आया'
- जंगल में कोसी कहीं हंस रही होगी !
- Sinking Into Murky Water With Russia By Raminder Kaur
- Upper caste youths stop dalit's ghurchari
- To Be or Not To Be By Peter G Cohen
- An open letter to RSS Sarsanghchalak, Shri Mohan B...
- Surjeet Singh crosses over to India after 31 years...
- Unarmed major who disarmed Pak soldiers and saved ...
- Pranab Mukherjee files nomination for Presidential...
- SBI cuts interest rate for exporters by half a per...
- Govt takes back 3 mines from utilities, and asks C...
- সিঙ্গুর কাণ্ড, পঞ্চায়েত আইন সংশোধন নিয়ে বিতর্কে সু...
- প্রাকৃতিক বিপর্যয়ে নিহত শতাধিক বাংলাদেশ
- রাষ্ট্রপতি পদে মনোনয়ন পেশ প্রণব-সাংমার, অনুপস্থিত ...
- यशवंत सिन्हा ने किया समर्पण, जमानत मिली
- संगमा ने राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन दाखिल किया
- दिग्गजों की मौजूदगी में राष्ट्रपति चुनाव के लिए प्...
- भारत में ज्यादातर राजनीतिक दल ‘‘सामंती’’ बन गए हैं...
- अमेरिकी अदालत ने भोपाल गैस कांड में यूनियन कार्बाइ...
- अबु जंदल की पहचान पर उठ रहें सवाल
- Fwd: Inhuman torture by BSF upon a DALIT and subse...
- यूरोकप, पुलिनबाबू मेमोरियल फुटबाल टूर्नामेंट, सानि...
- तो प्याज की परतें खुलने लगी हैं कि हवाओं में तापदा...
- Fwd: [All India Secular Forum] Report of the Gujar...
- Fwd: Fire in Mantralaya.....
- Fwd: [Buddhist Friends] "The Hindutva forces - Rag...
- Fwd: [New post] एड्रिएन रिच की कविताएं
- Fwd: Poorest people bail out some of the richest -...
- Fwd: कुरेड़ी फटेगी ; कथा संग्रह गढवाली कथा माल़ा क...
- Fwd: (हस्तक्षेप.कॉम) हिन्दुत्व नहीं है, हिन्दू धर्म
- Fwd: [New post] घटनाक्रम : जून 2012
- Fwd: रिहाई(?) ने बताई मीडिया की सच्चाई
- Fwd: [New post] पत्र : अंग्रेजी का कमाल
- Fwd: भग्यान अबोध बंधु बहुगुणा क दगड भीष्म कुकरेती ...
- Fwd: [samakalika malayalam vaarikha] http://kerala...
- Fwd: Raghuvanshi: BJP manipulates Christian candid...
- Fwd: [विश्वप्रसिद्ध टेलीफिल्म ‘रूट्स’ का प्रदर्शन]...
- Appease Feuding Mail Champion Duo of Indian Tennis...
- प्रणव के विदा होते ही रिलायंस इंडस्ट्रीज ने शर्त ल...
- Pranab`s Exit from North Block exposes the Bottoml...
- Pulin Babu Memorial Football Tournament uttarakhand
- Re: Subscribe now for Rs. 500
- Fwd: [ASMITA THEATRE GROUP ( ASMITA ART GROUP, Del...
- Fwd: TaraChandra Tripathi shared देवसिंह रावत's photo
- नीतीश-मोदी विवाद: धर्मनिरपेक्षता पर बहस का सबब -रा...
- विदा होते वित्तमंत्री प्रणव का देश को अबाध विदेशी ...
- Fwd: [Nainital Lovers] नैनी झील में माइनस में जल स...
- Fwd: [New post] नैट पर समयांतर : www.samayantar.com
- Fwd: क्या आप दैनिक गढवाली -कुमाउनी समाचार पत्र हेत...
- Fwd: [PVCHR] New Event Invite: Observing Internati...
- Fwd: [National Consultation :Testimonial campaign ...
- Fwd: Tony Cartalucci: CONFIRMED - US CIA Arming Te...
- Fwd: Today's Exclusives - Cement Cartel: A lesson ...
- अलविदा प्रणव दा
- कश्मीर में खिली उम्मीद की कली
- शून्य शिखर पर कुछ ना सूझै
- मुसीबत बन गया मातृ संगठन
- ‘जनता के दोस्त थे तरुण शेहरावत’
- मलबा बन के रह गई है भीमताल की झील
- राष्ट्रपति चुनाव या 2014 का 'सेमीफाईनल'
- Rape victim's kin torch houses of five accused, ad...
- Documentary on Hindu Rashtra
- THE HARD TIMES MUST GO - India needs drastic refor...
- Finally, feels like monsoon Season’s wettest & coo...
-
▼
June
(689)
No comments:
Post a Comment