जीवन बीमा के बाद अब पेंशन भी बाजार और वैश्विक पूंजी के हवाले!
पूरा देश अब मोंटेक सिंह आहलूवालिया के पैंतीस लाख टकिया शौचालय जैसा खुला बाजार है। भविष्य निधि में मालिक के अवदान से आप कुछ निकाल नहीं सकते। अपने हिस्से से महज साठ फीसद उठा सकते हैं। बाकी रकम बाजार के हवाले है। जीवन बीमा निगम के करीब नौ करोड़ ग्राहकों को शेयरबाजार के खेल में पहले ही चूना लग चुका है। विनिवेश में आपके प्रीमियम को लगाया जा रहा है। अपको जो घाटा होगा , उसकी तो भरपायीनहीं हो सकती। जीवन बीमा सरकारी दबाव में शेयर बाजार में निवेश करके डूबने के कगार पर है। अब पेंशन को भी विश्वपुत्र प्रस्तावित बाजारूराष्ट्रपति और वास्तविक प्रधानमंत्री जो वित्तमंत्री की हैसियत से सरकार और देश चला रहे हैं,उन प्रणव मुखर्जी की कृपा से बाजार और वैश्विक पूंजी के हवाले है। महज सरकारी मुहर अबी लगनी है। ममता दीदी की निर्मम सौदेबाजी से एअरइंडिया के विनिवेश की तरह यह मामला फिलहाल लटका हुआ है। कालीघाट में फूजा के बाद मंटेक बाबा जो बंगाल सरकार के नियंता हैं, उनकी कृपा से ग्रहदशा साढ़े साती से निकलने की देर है और गिलोटिन पर आपका गला काट दिया जायेगा। रिटायर जब तक होंगे, तब तक डीटीसी और जीएसटी लागू हो जायेगा।आपकी आधी जमा पूंजी शेयर बाजार की बेंट चढ़ चुकी होगी। बची खुची बचत पर तमाम तरह का टैक्स अदा करके बेरोजगार संतानों के साथ मधुमेह और कैंसर पीड़ित संसार कैसे चलायेंगे, आप जानें। बहरहाल जब तक नौकरी है, ऐश कर लें क्योकि ट्रेड यूनियनों ने आपको बेहतर पगार , जायादा बोनस और काम न करने के गुर तो सिखा दिये हैं, आंदोलन और प्रतिरोध के रास्ते से एकदम हटा दिया है और सेवानिवृत्ति के बाद या फिर विनिवेश और निजीकरण की प्रक्रिया के मध्य एअर इंडिया कर्मचारियों की तरह भूखमरी कामरी का जायका ले लें! बहरहाल तृणमूल कांग्रेस ने प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को पत्र लिखा कि बिल पर और विचार की जरूरत है। इसी के बाद पीएफआरडीए बिल पर निर्णय टाल दिया गया। एक दिन पहले इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र के लिए दो लाख करोड़ रुपए की परियोजना को हरी झंडी देने वाली सरकार फिर गठबंधन की मजबूरी में फंस गई। सतर्कता राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर बरती जा रही है।
मालूम हो कि सेबी के नियम तोड़कर बाजार और कारपोरेट जगत के दबाव में विनिवेश की जो पद्धति अपनायी जा रही है, उससे छोटे पालिसीधारकों के भविष्य को चूना लगाने के लिए भारतीय जीवन बीमा निगम को मजबूर कर दिया गया है, जो पहले से ही विनिवेश की पटरी पर है और जिसकी नियति एअर इंडिया से अलग नहीं लगती। जीवन बीमा है तो और कहीं क्यों जाना, लोक लुभावन इस नारे से अब साख नहीं बचती लगरही। इक्विटी पालिसियों को बेचते हुए जो मनभावन भविष्य का खाका एजेंट ने ग्राहकों के सामने खींचा था, अब आपातकालीन आवश्यकता के मद्देनजर उसे भुनाते वक्त सिर्फ आह भरने के बजाय कोई चारा नहीं है। सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विनिवेश की गरज से एलआईसी इक्विटी का बाजार में विनिवेश कर दिया। ओएनजीसी और पंजाब नेशनल की हिस्सेदारी खरीदने में जीवन बीमा निगम ने कुलइक्विटी २२ हजार करोड़ का ५५ फीसद लगा दिये। शेयर बाजार में जिससे निगम के छोटे ग्राहकों का सत्यानाश हो गया। फायदा तो कुछ नहीं हुआ, पांच छह साल की अवधि के बाद अब घाटा उठाना पड़ रहा है और एजेंट लोगों से कम से कम दस साल तक इंतजार करने की गुजारिश करते हुए गिड़गिड़ा रहे हैं। उन्होने तो अपना कमीशन पीट लिया लेकिन इससे क्या जीवन बीमा की साख बची रहेगी?
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