Wednesday, June 26, 2013

देहरादून की पत्रकार सुनीता भास्कर ने पर्वतांचल की आपदा की भुक्तभोगी नंदिनी द्वारा बताये गए वृत्तांत को अपनी वाल पर निम्नवत साझा किया है .सचमुच थर्रा देने वाला वृत्तांत .उन्होंने कुछ और विवरणों को अद्यतन पोस्ट किया है उसे भी उनकी वाल पर पढ़ा जा सकता है .फिलहाल नंदिनी का यह बयान सुनीता भास्कर के शब्दों में --------

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देहरादून की पत्रकार सुनीता भास्कर ने पर्वतांचल की आपदा की भुक्तभोगी नंदिनी द्वारा बताये गए वृत्तांत को अपनी वाल पर निम्नवत साझा किया है .सचमुच थर्रा देने वाला वृत्तांत .उन्होंने कुछ और विवरणों को अद्यतन पोस्ट किया है उसे भी उनकी वाल पर पढ़ा जा सकता है .फिलहाल नंदिनी का यह बयान सुनीता भास्कर के शब्दों में --------
"नंदिनी की बातों को कैसे क्रास चैक करें यह समझ न आ रहा..सोचती हूँ झूठ बोलेगी तो आखिर क्यूँ..और अगर यह सच है तो इतना क्रूर सच तो नहीं हो सकता...बिन्दुवार उसकी बातें उसकी जुबानी साझा करना चाहूंगी..

१-लगभग पैंतीस साल की एक महिला का पूरा नग्न शव रास्ते में पढ़ा था..मुझे पूरी आशंका थी की उसके साथ रेप किया गया था उसके शरीर पर इसके लक्षण भी थे...क्यूंकि कोइ भी लाश नग्न नहीं थी..सभी के कपडे फटे हुवे थे( उसकी आशंका में कोइ किन्तु परन्तु नहीं था..)

२-पांच छह लोगों का एक गिरोह महिलाओं के साथ छेड़छाड़ कर रहा था उसने महिलाओं के कान के टॉप्स वगेरह छीने, उसने जिन्दा व अधजिंदा लोगों को मारकर उनसे लूटपाट की उनकी अंगुलियाँ काटकर सोने की अंगूठियाँ छीनी..उन्होंने बच्चों को भी जान से मारा..हम लोग उनकी नजरों से बचने भागने के लिए मुख्या रास्ते से हटकर जंगल व घास झाडी के बीच से हॉते हुवे गए..यह लोग अचानक बढ़कर कभी दस -बारह भी हो जाते,कोइ कुछ कहने का साहस उनसे इसीलिए नहीं कर पाया क्यूंकि उनके हाथ में चाकू व अन्य धारदार हथियार भी थे..( इस गिरोह का हुलिया पुछा तो छोटी आँखों वाले चायनीज जैसे लोग थे कहा उसने)

३-..एक नेपाली महिला हमारे पूरे ग्रुप को एक दोपहर में थोड़ी थोड़ी खिचड़ी खिलाई..
ग्रुप में किसी के पास पांच पेकेट मैगी के थे जो हमने नारियल के खोके में पकाकर भूख को तसल्ली दी..

४- चार नेपाली लोगों ने एक बुजुर्ग न चल सकने वाली महिला को गौरिकुंड छोड़ने के दस लाख रूपये मांगे,बड़ी मिन्नतों बाद उसका बेटा आठ लाख देने को राजी हो गया..कुछ दूर चले ही थे (छह इंच चौड़े रास्ते में) की एक नेपाली का पैर फिसला और वह अपने तीन और मित्रों समेत व बुजुर्ग महिला समेत नीचे खायी में गिर गया...

५-सोलह किलोमीटर की जंगल पहाड़ों की यात्रा में उसने लगभग दस से पंद्रह हजार लाशें देखि होंगी...लाशों से पैर बचा बचा के वह चल रहे थे..

६- जिस घडी जमीन में पैर रखते दूसरा पैर जल्दी उठाना होता था..उसती देर में ही जमीन नीचे को धंस रही थी और नीचे खाई में जाने के सिवा कोइ चारा न था...

७- रास्ते में एक माँ अपने बच्चे को अपने साथ लेजाकर बचा लेने की गुहार लगाती मिली..जो बिलकुल मौत के करीब थी..दिल्ल्ली के एक कपल हमारे ग्रुप के साथ चल रहे थे उन्होंने माँ की ममता की भीख को उठा लिया और अपने साथ ले आये...

८-चार छोटे चार माह से लेकर चार पञ्च बरस तक के बच्चों को हमने रास्ते से उठाया जिनके परिजन मर चुके थे और वह बिलख रहे थे..उनमें से एक बच्चा तो उनकी दो दिन की यात्रा में मर चुका था क्यूंकि उसे दूध पिलाने वाला कोइ न था..उसे उन्होंने कपडा लपेट कर पानी में बहा दिया बाकी के तीन बच्चों को चौथे दिन गौरीकुंड पहुँच कर पुलिस को सौंपा..

९-रास्ते में बीच में बडे नाले आते थे जिन्हें पार करना मौत के मुंह में जाना था लिहाजा हमें पूरी खड़ी पहाड़ी चढ़ के पहाड़ की चोटी से फिर दूसरी पहाड़ी में जाना पढ़ रहा था..इसीलिए सोलह किलोमीटर तय करने में हमें चार दिन लग गए..

१०. एक लोकल आदमी ने हमसे छह हजार रूपये लिए हमें गौरीकुंड का रास्ता दिखाने के लिए वह हमें पहाड़ की एक चोटी पर पहुंचा कर पानी लाने निकल गया..डेढ़ घंटे तक भी जब वह नहीं लौटा तो हम समझ गए की वह हमें छोड़ भाग गया है..

११-हालिकप्तर से फेंकी जाने वाले रसद को कुछ लोग पूरा कब्जे में ले लेते और फिर हमें ही बेचने लगते..क्यूंकि इतने दिन से भूखे लोग रसद झपटने में समर्थ नहीं थे...

पूरे सात दिन तक इस आपदा को जी रही और सरकार की भूमिका की नगण्यता को महसूस रही,फ़ौज की प्रतिबधद्ता को देख रही नंदिनी ने कहा की वह या तो आर्मी में जाना चाहेगी या फिर पोलिटिसियन बनना चाहेगी..ताकि दिखा दे की जनता की सेवा कैसे की जाती है...जौलीग्रांट एयरपोर्ट पर रेस्क्यू किये लोगों ने जब अचानक नंदिनी को पहचाना तो गौरीकुंड में दो दिन तक उसके द्वारा दिए गए राहत कार्य के लिए उसका आभार भी जताया...नंदिनी के पिता का फोन नंबर लिया है..अगर कोइ इस बहादुराना लीडर के अनुभवों से इस आपदा को समझना चाहे तो....."
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