Wednesday, June 26, 2013

तकनीकी और व्यवसायिक शिक्षा के नाम पर चिटफंड के तर्ज पर खुल्ला खेल फर्रूखाबादी!

तकनीकी और व्यवसायिक शिक्षा के नाम पर चिटफंड के तर्ज पर खुल्ला खेल फर्रूखाबादी!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​   


बंगाल में तकनीकी और व्यवसायिक शिक्षा के नाम पर चिटफंड के तर्ज पर खुल्ला खेल फर्रूखाबादी चल रहा है। गली मुहल्लों में शिक्षा की दुकाने खोलकर तकनीकी और व्यवसायिक कोर्स की डिग्रियां बांटी जा रही है। न फेकल्टी है और न कोई नियमन। शिक्षा खत्म होते ही छात्रों के प्लेसमेंट देने की गारंटी दी जाती है, जिस वजह से मुंहमांगी फीस देने में अभिभावक कोताही नहीं करते। लेकिन डिग्री हासिल करने के बावजूद नौकरिां मिलती नहीं है और सबकुछ दांव पर लगाने के बाद लोगों के सामन अंधकार भविष्य के अलावा कुछ नहीं होता। युवा पीढ़ी के साथ इस धोखाधड़ी के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि बिना जांच पड़ताल कहीं भी किराये के कमरों में चलाये जाने वाले इन संस्थानों को मान्यता मिलने में कोई कठिनाई नहीं होती। सिक्षा चूंकि अब खुले बाजार के अंतर्गत है तो राज्य सरकार की ओर से किसी निगरानी का सवाल ही नहीं उठता, जबकि विश्वविद्यालयों से ऐसी संस्थाओं को मान्यता मिली होती है।


अब जाकर कहीं यूजीसी ने  विश्वविद्यालयों से कहा है कि वे तकनीकी या प्रफेशनल डिग्री देने वाले और कॉलेजों को अभी मान्यता न दें। ऐसा तब तक न करें जब तक कि यूजीसी इस बारे में और आदेश नहीं दे देता। गौरतलब है कि पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एमबीए और एमसीए कोर्स चलाने के लिए कॉलेजों को एआईसीटीई से अप्रूवल की जरूरत नहीं है।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय जहां अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) की ताकत बहाल करने के लिए एक अध्यादेश लाने पर काम कर रहा है, वहीं मंगलवार को यूजीसी के आदेश से लग रहा है कि वह कोर्ट के आदेश के बाद गाइडलाइंस बनाने पर काम कर रहा है।


लेकिन यह आदेश नये संस्थानों को मान्यता न देने के बारे में हैं। जो संस्थान छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, उनसे निपटने के लिए यूजीसी के पास कोई हथियार है, ऐसा नहीं मालूम पड़ता। जाहिर है कि इस आदेश के बावजूद इस गोरखधंधे को चालू रखने में कोई दिक्कत नहीं होनी हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि बेरोजगारी के आलम में डूबते को तिनका का सहारा जैसा लगता है युवावर्ग को इन संस्थानों का धुआंधार प्रचार अभियान । वे आसानी से झांसे में आ जाते हैं। मान्यता प्राप्त संस्थानों के अलावा बड़ी संख्या में गैर मान्यता प्राप्त संस्थान भी बंगाल में बेरोकटोक अपना कारोबार चालू किये हुए हैं। `नालेज इकानामी' की ऐसी महिमा अपरंपार है। बाहरी राज्यों के विश्वविद्यालय की शाखाएं बिना फैकल्टी के डिग्रियां बांट रही हैं, जिनपर कहीं कई अंकुश नही है।निजी कॉलेज और आइटीआइ को छोड़ दें तो तकनीकी शिक्षा और व्यवसायिक शिक्षा़ का बेहतर विकल्प छात्रों के पास नहीं है। जबकि मौजूदा समय छात्रों का जोर इसी शिक्षा पर है।


जैसे पोंजी कारोबार को नियंत्रित करने का कोई कानूनी उपाय नहीं है, उसीतरह ऐसे अवैध संस्थानों और खासकर मान्यताप्राप्त दुकानों से निपटने के लिए कोई कानून अभी बना नहीं है और न उनपर निगरानी की कोई प्रणाली है। यूजीसी भी ऐसे मान्यताप्राप्त या अवैध संस्थानों की निगरानी नहीं करती। उसकी हालत सेबी से कोई बेहतर नहीं है।


कुल मिलाकर अब उच्च शिक्षा भी कमाऊ व्यवसाय बन कर तेजी से माफिया के हाथ जा रहा है। निजी संस्थानों की ओर से छात्रों को आकर्षित करने के लिए सालाना करोड़ों रुपए विज्ञापन पर खर्च हो रहे हैं। निजी विश्वविद्यालयों में शिक्षा माफिया, राजनेताओं, उद्योगपतियों और पूंजीपतियों का कब्जा है, जिसपर यूजीसी का कोई नियंत्रण नहीं है। साथ ही यह भी कि इस पूंजी में स्वच्छ और कालाधन की हिस्सेदारी कितनी है,इसका भी कोई हिसाब नहीं है। जो डोनेशन की रकम है, उसका कहीं कोई ब्यौरा ही नहीं होता।महंगाई के इस दौर में महज सफेद धन की बदौलत इतने आलीशान संस्थानों का निर्माण कराना कैसे संभव है?


`नालेज इकानामी' के तहत शिक्षा के बाजार के तेज विकास होने के साथ साथ देश में उच्च और उच्चतर शिक्षा के स्तर व उसकी गुणवत्ता में आ रही गिरावट के जारी रहने का खुलासा काफी पहले हो गया है और अब तो कपिल सिब्बल मानें न मानें. खुद प्रधानमंत्री ने भी स्वीकार किया है कि गुणवत्ता में आ रही गिरावट के कारणों और शिक्षण संस्थानों की स्थिति का पता लगाए जाने की जरूरत है!यह कोई रहस्य नहीं है और तमाम शिक्षाविद इससे चिंतित भी हैं किविश्व के शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों की सूची में देश का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है! यह सवाल महज 44 केंद्रीय विश्वविद्यालयों के समक्ष ही नहीं, बल्कि दूसरे सरकारी, गैरसरकारी विश्वविद्यालयों और उनसे संबद्ध हजारों शिक्षण संस्थानों के सामने भी समान रूप से खड़ा है।


ग्लोबल रैंकिंग में भले ही भारत के शिक्षा संस्थानों को अधिक महत्व नहीं मिल रहा है लेकिन देश के कई तकनीकी व व्यवसायिक शिक्षा संस्थानों की पूरी दुनिया में धाक है।देश के आईआईटी तथा आईआईएम जैसे प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थानों के कैंपस विदेशों में स्थापित करने की योजना पर सरकार विचार कर रही है।लेकिन ऐसी संस्थाओं में आम छात्रों का प्रवेश हो नहीं पाता जबकि आम अभिभावक की जेबें भी ऐसे संस्थानों का खर्च उठाने के लायक उतनी भारी नहीं होती।


No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Welcom

Website counter

Census 2010

Followers

Blog Archive

Contributors