Monday, January 20, 2014

राथचाइल्डस के अट्टहास का समय है यह। तुमने सौ साल पहले कहा. हम सौ साल बाद भी नस्ल, रंग, जाति, लिंग और धर्म के शोषण से घिरे हैं और तुम्हारी लड़ाई को जारी रखे हुए हैं। आबा, तुमने ठीक ही कहा था उलगुलान का अंत नहीं हुआ है!


राथचाइल्डस के अट्टहास का समय है यह।

तुमने सौ साल पहले कहा. हम सौ साल बाद भी नस्ल, रंग, जाति, लिंग और धर्म के शोषण से घिरे हैं और तुम्हारी लड़ाई को जारी रखे हुए हैं। आबा, तुमने ठीक ही कहा था उलगुलान का अंत नहीं हुआ है!

पलाश विश्वास


झारखंडी भाषा संस्कृति अखड़ा shared Ak Pankaj's photo.

तुमने सौ साल पहले कहा. हम सौ साल बाद भी नस्ल, रंग, जाति, लिंग और धर्म के शोषण से घिरे हैं और तुम्हारी लड़ाई को जारी रखे हुए हैं. आबा, तुमने ठीक ही कहा था उलगुलान का अंत नहीं हुआ है.

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आबा,सचमुच तुमने सही कहा था कि उलगुनान का अंत नहीं है और तुमने सौ साल पहले जो कहा,आज हम सौ साल बाद भी नस्ल, रंग, जाति, लिंग और धर्म के शोषण से बुरी तरह घिरे हैं और तुम्हारी लड़ाई को जारी रखे हुए हैं,ऐसा दावा हर मोर्चे से कर रहे हैं।


हालात बेहद संगीन हैं और हम तलिस्मदेश के लोग रंगबिरंगे बहुआय़ामी तिलिस्मों से घिरे अय्यारों की अय्यारियों के शिकार हो रहे हैं,लड़ लेकिन कोई कहीं नहीं रहा है।


गीदड़भभकी से न वक्त बदलेगा और न यह देश।न सामंती सामाजिक संरचना बदलने जा रही है और न निरंकुश साम्राज्यवादी कारपरेट अश्वमेध अभियान रुकने जा रहा है।


विचारशून्यता मुक्तबाजार की अनिवार्य शर्त है।विचारशून्य अराजकता ही भोगसर्वस्व वधस्थल का आदर्श परिवेश है,जिसके मध्य चक्रव्यूह में घिरा,मारे जाने वाले हर अभिमन्यु को लगता है कि वह अकेले जीत लेगा सत्ताविरोधी महायुद्ध।


सत्तावर्ग एक संगठित तकनीकी प्रबंधकीय तंत्र है विशुद्ध अर्थशास्त्रीय,राजनीतिक समीकरणों की अराजकता से कभी न कोई चक्रव्यूह टूटा है और न टूटेगा।


हर बार लेकिन मारा जाता है कोई न कोई अभिमन्यु।


हमारे लोग अभिमन्यु और एकलव्य के आत्मध्वंस को ही महाभारत मानकर चल रहे हैं और इसी पर चल रही है इंद्रप्रस्थ की राजनीति और जारी है सत्तावर्चस्व का अर्थशास्त्र नस्ली नियतिबद्ध।


हमारी नजर दिल्ली के बाधित राजमार्गों पर किसी चुनी हुई सरकार के सड़कीय राजकाज पर नहीं है,जयपुर के उस राजसूय कारपोरेट महायज्ञ पर है,जहां साहित्य पर हावी है मुक्त बाजार का छनछनाता अर्थशास्त्र ,जहां लोक और मुहावरे सिरे से गायब है और विधाओं और मुक्त बाजार संक्रमित माध्यमं में वैश्विक जनसंहारी जायनवादी व्यवस्था के स्विसबैंक पुरस्कृत महिमामंडित इवाराथचाइल्डसपति डा.अमर्त्य सेन संबोधित कर रहे हैं।


राथचाइल्डस को अब तक विश्वभर में,भूत भविष्य वर्तमान के कालातीत तमाम युद्धों और महायुद्धों में श्रीकृष्ण भूमिका का श्रेय है और उत्तर आधुनिक कर्मसिद्धांत का छनछनाता विकास का जायनवाद उसीका है और भारत में आर्थिक सुधारों के कार्यक्रम को लागू करने का एजंडा पूरा करने का जिम्मा भी उसीको है।


दुर्योधन ने कहा था कि बिनायुद्धे देंगे नहीं सूचाग्र मेदिनी,जो महाभारतीय कुरुक्षेत्र के युद्ध और तदनुसार श्री मद् भागवत गीता की आदर्श पृष्ठभूमि है।नतीजतन कर्मफल सिद्धांत के तहत नस्ली असमानता और अन्याय का सिलिसला आज भी चल रहा है और सत्ता वर्चस्व का कुरुक्षेत्र जारी है।


किसी दुर्योधन की तब वध नहीं हुआ था  और न कोई दुःशासन मारा गया था।तब भी दांव पर था भारत और शतरंज पर बाजी जारी था।


आज भी दांव पर है भारत द्रोपदी और सत्ता शतरंज जारी है और मारे जायेंगे इस देश के ही जनगण। न कोई दुर्योधन मारा जायेगा और न कोई दुःशासन।


कृष्ण सत्य है।


शाश्वत है गीतोपदेश।


युधिष्ठिर मिथक था और मिथक रहेगा।युधिष्ठिर की भूमिका में तब भी दुर्योधन का डाबल रोल था और आज भी है।हम दशावतार के सम्मुख असहाय वध्य हैं।


हम भारतीय जन्मजात मिथकों से घिरे होते हैं।मिथकों से लड़ते हुए बिना लड़े ही मारे जाते हैं हवा में तलवारबाजी करते हुए।मिथकों को कोई तोड़ नहीं पाता।


सत्तावर्ग अपने अर्थशास्त्र को लागू करने के लिए रोज नया मिथक रचता है और हम मिथकों में उलझकर सर्वस्व खोने वाले सर्वहारा सर्वस्वहारा लोग हैं।


अस्मिताओं के मिथकों को तोड़ने की हमें कभी जरुरत ही महसूस नही हुई और नाना किस्म की मूर्तिपूजा से उन मिथकों को हमने कालातीत बनाते रहे हैं।


उसीतरह हमारे लिए संविधान,कानून का राज, लोकतंत्र, न्याय, समता, भ्रातृत्व, समरसता,नागरिकता,आजीविका,मानवाधिकार,नागरिक अधिकार, प्रकृति, पर्यावरण..यानी सामाजिक यथार्थ का हर अनिवार्य तत्व मिथक मात्र है।


मनुस्मृती हा ग्रंथ अगदी अवार्चीन आहे. बौद्ध धर्माच्या सणसणीत रट्टा पाठीत बसल्यावर ब्राम्हणी मताची पेकाटे पार पिचून गेली. परंतु पुढे बौद्ध धर्माचा र्ह्यास झाल्यानंतर ब्राम्हाणांनी पुनश्च(इ.स.पूर्वी एक दोन शतका पासून पुढे) आत्मस्तोमाच्या दुगाण्या झाडण्यास सुरुवात केली आणि ब्राम्हणी वर्चस्वावर शस्त्रोक्त व्याख्याने झोडण्यास जी ग्रंथांची भट्टी निर्माण केली त्याच भट्टीतुन मनुस्मृती निर्माण झालेली आहे. भिक्षुकी ग्रंथाचा सुळसुळाट पुढे याच ग्रंथात वर्णन केलेला आहे

-प्रबोधनकार ठाकरे

(संदर्भ-भिक्षुकशाहीच बंडे)


जो है नहीं,हम उसी के काल्पनिक यथार्थ में जी रहे हैं।वस्तुगत इहलोक हमारे लिए नरक योनि है और पुनर्जन्म से हम परलोक सुधारने के लिए इस लोक से सिधारने का चाकचौबंद इंतजाम में लगे रहते हैं।


पत्थर को मूर्ति बनाकर या किसी भी बेशकीमती जमीन को धर्मस्थल बनाने के धर्म को आजीवन पूजने वाले हम धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद की पैदलसेनाएं हैं।


सत्ता हमारे लिए रोज किसी न किसी संतोषी माता के शुक्रवार व्रत का बंदोबस्त कर देती है।देव देवी भारत की जनसंख्या के पार हैं।रोज गढ़े जा रहे हैं।अपने अपने हित साधने के लिए रचे जाते हैं मिथक।  


अपने अपने हितों के मुताबिक देव देवी अवतारमंडल,नक्षत्र समावेश,राशि चक्र,ज्योतिष।


अब चाय के मिथक से जूझ ही रहे थे कि सड़कों पर लोकतंत्र का नया मिथक अराजक रचा जा रहा है।हमारे विश्वकवि,मीडिया विश्लेषक गणतंत्र दिवस और संविधान की नयी नयी व्याख्याएं रच रहे हैं।


राथचाइल्डस हंस रहा है।


चायवाले का राज होगा तो दस रुपये कमाने वाले को भी उसी दर पर अनिवार्य टैक्स देना पड़ेगा जितना कि मुकेश अंबानी को।


राथचाइल्डस हंस रहा है।


मौजूदा तंत्र में गरीबी रेखा के आर पार जितने लोग हैं,उन सारों पर टैक्स लगा दिया जाये तो महामहिमों को चार करोड़ के बजाय चार हजार का टैक्स देना होगा।


राथचाइल्डस हंस रहा है।


लेकिन इस सामाजिक अन्याय और दनदनाते गिलोटिन को पढ़ालिखा नवधनाढ्य मध्यवर्ग मद्यवर्ग मुक्तिमार्ग बताने से अघा नहीं रहा है और करमुक्त भारत का स्वप्निल मिथक रच रहा है।


राथचाइल्डस हंस रहा है।


कारपोरेट राज का फतवा जारी हो गया है कि प्रधानमंत्री चाहे जो हो सुधारों की निरंतरता रहेंगी अबाध।कारपोरेट राज आनेवाले भावी प्रधानमंत्री के एजंडा भी टीवी पर तय कर रहे हैं।


राथचाइल्डस हंस रहा है।


भूमि से कृषि समाज को अंतिम रुप में बेदखल करने और रेलवे,बंदरगाह और सार्वजनिक उपक्रमों की सारी जमीन देश की नदियों,पहाड़ों,खनिज संपदा,वनों और प्राकृतिक तमाम संसाधनों की तरह बहुराष्ट्रीयकंपनियों के हवाले किये जाना है।


राथचाइल्डस हंस रहा है।


अब चाहे चायवाल बने प्रधानमंत्री या चाहे सड़क पर राजकाज चलानेवाल खास आदमी या देवपुत्र कोई युवराज या अग्निकन्या कोई या बहुजन झंडेवरदार कोई,जनक्रांति का महादर्प से दनदनाते लोगों को मालूम नहीं नरसंहार के लिए आणविक रासायनिक जैविकी हथियार के अलाव भारतीय जनगण के खिलाफ रोबोटिक बायोमेट्रिक डिजिटल तंत्र भी मोर्चाबंद है। सबकी पुतलियां कैद हैं।


राथचाइल्डस हंस रहा है।


समर्पित हैं दसों उंगलियां। और इंद्रियां मोबाइल शोर में  बेकल है। आर्थिक सुधारों की बुलेट ट्रेन की पटरियों पर छनछनाते विकास की पांत पर पक्तिबद्ध जनगण कट मरने के लिए प्रतीक्षारत है।


राथचाइल्डस के अट्टहास का समय है यह।

Uday Prakash

आज दिल्ली की सड़कों पर जो हो रहा है, उसे देख कर लगता है कि शायद १९४७ से पहले जिस तरह हिंदुस्तान की जनता सड़कों पर निकल आई थी, अब फिर से इतने सालों बाद, उसे इसकी ज़रूरत महसूस हो रही है.

इस बार का गणतंत्र दिवस पहले जैसा नहीं होगा, इसकी पूरी संभावना है.

एक पथराई हुई भ्रष्ट व्यवस्था थी, जिसकी बुनियाद और गुंबदें, एक नयी लोकतांत्रिक, अहिंसावादी, विनम्र, सत्याग्रही जन-आंदोलन के कारण हिल रही हैं.

यह भी लगता है कि यह आंधी व्यापक हो जायेगी.

मौसम बदलेगा !

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Gurvinder Singh Chadha

सरकार की वेतन विसंगति

पगार केवल 500 रूपया महीना

एक तरफ भारत सरकार देवयानी के मामले में अमेरिका से उलझी पड़ी है वहां तो सुनवाई हो जाती है लेकिन हमारे उत्तराखंड में किसको बोले किसको अपनी परेशानी बताएं

ये बिचारे लाचार ग्राम प्रहरी

इनकी कोई सुनने वाला नहीं क्योंकि ये गाँव में रहते हैं

ग्राम प्रहरी को बाबा आदम के ज़माने से केवल 500 वेतन मिल रहा है ये लोग जान पर खेल कर कई महत्वपूर्ण सूचना ,सरकारी ड्यूटी ,कोई लाश ,कोई षड्यंत्र अथवा अन्य से पुलिस को जानकारी देते रहते हैं इनको कोई भी बीमा सुविधा ,मेडिकल सुविधा अथवा अन्य कोई सुविधा नहीं मिल रही है

आज इनको हक दिलवाने के लिए कार्यवाही शुरू करनी पड़ रही है

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Bhargava Chandola

आम आदमी पार्टी में देश सेवा करने के लिए सेवक चाहिए मालिक नहीं |मालिक बनकर भाजपा,कांग्रेस,सपा,बसपा,एन.सी.पी.,बीजू जनतादल,सिरोमणि अकाली दल,शिवसेना सबने देश की जनता पर तानाशाही करके राज किया | सेवक चाहिए त्याग वाला जैसा भाई अरविंद केजरीवाल.... संजय सिंह, मनीष सिसोदिया, योगेन्द्र यादव, कुमार विश्वास, हरीश आर्य, आदर्श बाजपेई, सतेन्द्र सत्य, दिनेश कोठारी, जैसे हजारों नाम हैं जो त्याग करके सेवा कर रहे हैं जिनकी महत्वाकांक्षा तो है ? मगर वो महत्वाकांक्षा है देश में परिवर्तन, जनता के हाथों सत्ता की बागडोर, स्वराज.

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  • Prakash K Ray, Rajesh Kumar Yadav and 20 others like this.

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  • Ashok Shashi Gupta Aandolan nautanki ban jata hai to acha nahi lagta hai...

  • 13 minutes ago · Like · 1

  • Dilip Khan मामले से ध्यान भटकाने के लिए केजरीवाल एंड कंपनी ऐसा कर रही है। अचानक सोमनाथ भारती का केस आते ही धरना प्रदर्शन चालू हो गया। डेनमार्क की महिला से सामूहिक बलात्कार होने में पुलिस पर उठे सवाल की दिशा कहीं अरविंद केजरीवाल पर न मुड़ जाए..इसलिए पुलिस के खिलाफ...See More

  • 10 minutes ago · Like · 2

  • Sudhir Panwar The jubiliation of BJP and Congress on taming (trapping) of AAP through Govt formation in Delhi turned into 'nightmare' after dharna.How these parties will cope with this new style of 'public politics'.

  • 2 minutes ago · Like

  • Neeraj Neeraj dilip ji achha aur satik

  • 2 minutes ago · Like

Aam Aadmi Party

Here is Arvind Kejriwal's word about his security. He tweeted this.

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Aam Aadmi Party added 3 new photos to the album Proof about Drug and Sex racket in Khirki Village, Malviya Nagar.

These three letters give proof about Drug and Sex racket in Khirki Village, Malviya Nagar and as the problem exists, can the government turn its face away? The ‪#‎AAP‬ government, unlike the earlier governments will not turn away its face but try to find out methods to solve it.


At the same time, we maintain that we do not have anything against citizens of any country and in our opinion they are victims of this racket and should be rescued.

Like ·  · 1,417130143 · 23 minutes ago ·

Lalit Surjan

इस साल "जयपुर लिट् फेस्ट" में किसी हिंदी लेखक के शामिल होने का "गौरवपूर्ण" समाचार नहीं मिला! अगर मेरी जानकारी अधूरी नहीं है तो यह खुश होने का सबब है।

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Aam Aadmi Party

"We didn't want to come in the middle of preparations for Jan 26, but the women in Delhi are suffering. When women in Delhi are unsafe, how can we celebrate Republic Day?


I said inquiry is fine but at least transfer the SHOs but Shindesaab refused to do even that. Delhi did not choose Sushil Kumar Shinde, they chose us. If the police think that they will continue their atrocities and the Delhi CM will remain silent, they are highly mistaken.


Not all policemen are bad. Most of them are under pressure from seniors to collect money. I urge all Delhi citizens as well as cops to join us in protest.


We are prepared for a ten day protest if the need be. Every Delhi citizen who suffers at the hands of police should join us at Rail Bhawan crossing," Arvind Kejriwal.

Like ·  · Share · 3,279443581 · about an hour ago ·

Dilip Khan

केजरीवाल लोकसभा चुनाव तक किसी भी सूरत में सड़क पकड़ कर रखना चाहते हैं। शीला दीक्षित जब मुख्यमंत्री थीं, तो केजरीवाल सहित AAP... पुलिस की ग़लतियों के लिए उनके इस्तीफ़े की मांग करती थी। ठीक है। कीजिए।..लेकिन, डेनमार्क की महिला से हुए बलात्कार के बाद बने माहौल में पुलिस की असफ़लता के लिए इससे पहले कि दूसरी पार्टी AAP पर हमला करे..केजरी ख़ुद ही धरना देकर बैठ गए हैं। AAP के उभार पर IIM की दिलचस्पी बहुत जेन्युइन है।

Like ·  · Share · 39 minutes ago near Delhi ·

Jagadishwar Chaturvedi

केजरीवाल भूल रहे हैं कि एक पुलिस अफ़सर किसी का निजी नौकर नहीं है। वह संप्रभु सरकार का प्रतिनिधि होता है । केन्द्र सरकार के फ़ैसले के पहले उनको न्यायिक जाँच आयोग की सिफ़ारिशों के आने का इंतज़ार करना चाहिए ।पुलिस विरोधी घृणा पैदा करके वे पुलिस को मानवीय पाठ नहीं पढ़ा सकते और न हर मुहल्ले में पुलिस का विकल्प ही तैयार कर सकते हैं । सिस्टम है तो सिस्टम केजरीवाल से सिलटना भी जानता है ।केजरीवाल का मौजूदा धरना अलोकतांत्रिक है ।

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Aam Aadmi Party

Delhi Jal Board suspended 14 engineers against whom CBI had registered cases of alleged cheating and forgery in supply of sewerage equipment.


Top sources said the suspensions were made following instructions by Delhi Chief Minister Arvind Kejriwal, who is also the chairperson of DJB.


Earlier this week, CBI has registered five cases of alleged cheating and forgery in the supply of sewerage equipment to DJB in which the eight executive engineers and six junior engineers were ...See More

Like ·  · Share · 10,9538261,926 · 19 hours ago ·

Aam Aadmi Party

Is Delhi police responsible only for security of those living in Lutyens Zone bungalows?


We are not Sheila Dixit government who will still while the women of the city are being raped, burnt for dowry and illegal drug and sex racket is in full swing.


We will act and make sure that there is accountability within the system!


Join Arvind Kejriwal at Rail Bhawan crossing in Dharna.

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दिल्ली में क्राइम हो तो पुलिस, न्यायपालिका और मीडिया ज़िम्मेदार। गुजरात में कुछ भी हो तो मोदी ज़िम्मेदार" लगता हैं दिल्ली में जल्द ही एक नया धरना मंत्रालय भी खोल देना चाहिए जो तय करें के हर बात पे धरना कब कहाँ कैसे दे :(" भिखारी को अगर सोने का कटोरा हाथ लग जाइ।फिर भी वह भिखही मांगे गा। चूहा अगर शराब पीले तो क्या होगा? अरे भाई कोई जवाब तो दो बंदर के हाथो में अगर उस्तरा आ जाई तो क्या होगा? खुजलीवाले के ये हालत है।

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Anita Bharti

वंचित समूह के लोगों को धूमधाम से गणतंत्र दिवस यानि संविधान दिवस मनाना चाहिए। संविधान की महत्ता को केवल वहीं लोग समझते है जिनको संविधान के द्वारा जबर्दस्ती अधिकार मिल रहे है । जो संविधान को मान्यता नही देते वो पूरे देश पर किसी ना किसी रुप में मनुस्मृति लादना चाहते है।

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Sudha Raje

एक लङकी बचाने की गुहार लगाये तो किससे?

निःसंदेह सरकार से

जब

मंत्री कहे पुलिस को कि जाओ और महिला को प्रोटेक्शन दो तब पुलिस टस के मस ना हो?

और जब लङकी जला दी जाये तब मंत्री जाये गिरफ्तारी करवाने दोषियों को तो भी पुलिस टस के मस ना हो?

जब कि दिल्ली कोई जंगल नहीं सङकों का महा-महानगर है वहाँ न इतने भौगोलिक दुर्गम इलाके हैं जितने झारखंड छत्तीसगढ़ यूपी एम पी बिहार में हैं ।

ना ऐसे लंबे वीराने जैसे राजस्थान गुजरात आंध्र उङीसा में है ।


तब???

दिल्ली पुलिस क्यों नहीं रोक सकती ड्रग्स मानव व्यापार जबरन भिक्षावृत्ति और चोरी डकैती छेङखानी बलात्कार????


लगातार सबसे आधुनिक हथियारों वाहनों से लैस और सङकों पर ही तो दौङना है नदी नाले बंजर रेगिस्तान पहाङ खाईयाँ तो नहीं!!!!


तब


सवाल उठता है कि जो पुलिस

मंत्री की पुकार पर नहीं उठती वह एक मामूली पीङित की पुकार पर क्यों उठेगी??

दिल्ली पुलिस खुद ही वी वी आई पी है

और माननीयों के मार्ग ठीक रखने के अलावा बाकी काम लगता है फुरसत होगी तो देखेगे वो भी अगर मूड हुआ तब ।


बेशक

एक फोन अगर लखनऊ से आ जाये तो मेरठ आगरा झाँसी रामपुर अलीगढ़ दौङ पङे ।


मगर

दिल्ली के मुख्यमंत्री और महिला बाल विकास मंत्री और कानून मंत्री तक के कहने का जब असर नहीं होता है तब सवाल लाज़िम है कि सत्ता में है कौन??

अगर दिल्ली में राज्य सरकार के पास कोई पावर है ही नहीं तो करेगा क्या राज्यसरकार महकमा?

शिंदे जी कहकर चले गये कि जश्न है पाँच साल पूरे होने का हम वहाँ व्यस्त है । विजय चौक खाली करो क्योंकि दामिनी कांड से यह नियम लागू है और जंतर मंतर या रामलीला जाकर प्रदर्शन करो ।

एक नेता कहते है कि मुख्यमंत्री को पद की गरिमा का खयाल रखना चाहिये आंदोलन करना है तो इस्तीफा दे दो??

अब

वही पुरानी पकी राजनीति चालू ।



हमें लगता है कि

जिस तरह से डॉक्टर वकील पुलिस एजेन्ट फौजी पायलट ड्राईवर को ट्रेनिंग दी जाती है उसी तरह


राज्य गवर्नर के अधीन

हर नयी राज्य कार्यपालिका को समस्त विभागों का दौरा मीटिंग आदि कराकर

एक माह से दो माह तक का ब्रिज कोर्स प्रशिक्षण दिलाया जाना चाहिये ।

ताकिवनवीन राज्य कार्यपालिका अपनी सीमायें चुनौतियाँ प्रतिबद्धतायें औऱ कार्यक्रम बना सके




यह

स्पष्ट घोषित हो चुका है कि ‪#‎Arvind‬ kejariwal सरकार को काम नहीं करने देने का पूरा तमाशा बना कर विफल घोषित करने का खेल चालू है

अब भाजपा सपा कॉग्रेस मौके की तलाश में

और केजरीवाल के साथी ------ वगैरह खुद मौके पर मौके दिये जा रह्े हैं

चर्चा में फिर दिल्ली

और दब गये

सब समाचार

©®सुधा राजे

Manish Sisodia

गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस जितनी ताकत हमें रोकने में लगा रही है उसका एक अंश भी जमीन पर लगाती तो न बलात्कार होते, न ड्रग्स-सेक्स रैकेट चलते और न ही एक महिला को सरेआम जलाने वाले खुले घूमते।

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  • Sudha Raje, Raghvendra Awasthi and 21 others like this.

  • View 4 more comments

  • Rama Devi Yesss Sudhaji,exactly,wo Cm kya bana,agle din se hi shuru kiya har cheese pe questioning,wo bhi theek hai,kisi na kisi tarah failure sabit karne me koi peeche nahi, na hi opposition,nahi alag sakhavonke karmachariya aur nahi janata jo AAP ko pasand nah...See More

  • about an hour ago · Like

  • Sudha Raje जब पावर ही नहीं तो क्या खाक करेगे?? मिनिस्टर के फोन पर हवलदार और दरोगा अगर उठकर थाने से बाहर नहीं निकलता तो कानून व्यवस्था कैसे मिनिस्टर ठीक करेगा?? तब तो पिछली जितनी भी थूथू हुयी शीला दीक्षित की वह भी निर्दोष और उससे पहले साहिब सिंह वर्मा भी निर्दोष क...See More

  • 39 minutes ago · Edited · Like · 2

  • Rama Devi hmm...govt me sab bhrashtachar kaa eki kendr hai,high command

  • about an hour ago · Like · 1

  • Sudha Raje अरविन्द केजरीवाल और मनीष सीसोदिया को बजाय धरना अनशन के अब सीधी माँग रखनी चाहिये कि दिल्ली राज्य को भी कानून व्यवस्था के लिये या तो नया पुलिस विभाग दिल्ली राज्य पुलिस दिया जाये या फिर केंद्र को दिल्ली पुलिस की आवश्यक टुकङी संघ सरकार के लिये रोककर सारे नगर और बस्तियों के पुलिस संसथान दिल्ली विधायिका की कार्यपालिका को सौंप देनी चाहिये ।

  • about an hour ago · Like · 2

Pushya Mitra

कई लोग भविष्यवाणी कर रहे हैं कि आप बहुत जल्दी अपनी ही सरकार गिरा लेगी... अभी-अभी उर्मिलेश जी ने भी एबीपी न्यूज पर कह दिया कि आप वाले इस सरकार से पीछा छुड़ाना चाह रहे हैं, इसलिए ऐसी नौटंकी कर रहे हैं.


दरअसल आप चाह रही है कि दिल्ली के चक्कर में देश लूज न कर जायें. मगर अब अगर उन्होंने दिल्ली वालों से धोखा किया तो दिल्ली तो जायेगी ही देश भी लूज करेंगे. दिल्ली की कमान थामी है तो दिल्ली वालों के लिए बढिया काम करें. अगर चुपचाप काम करेंगे तो आपकी छवि खुद-बखुद बन जायेगी. वरना लोग यही समझेंगे कि आप को सरकार चलाना नहीं आता. रचनात्मक रहें, विध्वंसक राजनीति का कैरियर लंबा नहीं होता.

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Satya Narayan

फ़ासीवाद और प्रतिक्रियावाद दस में से नौ बार जातीयतावादी, नस्लवादी, साम्प्रदायिकतावादी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का चोला पहनकर आता है। वैसे तो हमें शुरू से ही बुर्जुआ राष्ट्रवाद के हर संस्करण का पुरज़ोर विरोध करना चाहिए, लेकिन ख़ास तौर पर फ़ासीवादी प्रजाति का सांस्कृतिक अन्धराष्ट्रवाद मज़दूर वर्ग के सबसे बड़े शत्रुओं में से एक है। हमें हर कदम पर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, प्राचीन हिन्दू राष्ट्र के गौरव के हर मिथक और झूठ का विरोध करना होगा और उसे जनता की निगाह में खण्डित करना होगा। इसमें हमें विशेष सहायता इन सांस्कृतिक राष्ट्रवादियों की जन्मकुण्डली से मिलेगी। निरपवाद रूप से अन्धराष्ट्रवाद का जुनून फैलाने में लगे सभी फ़ासीवादी प्रचारक और उनके संगठनों का काला इतिहास होता है जो ग़द्दारियों, भ्रष्टाचार और पतन की मिसालें पेश करता है। हमें बस इस इतिहास को खोलकर जनता के सामने रख देना है और उनके बीच यह सवाल खड़ा करना है कि यह "राष्ट्र" कौन है जिसकी बात फ़ासीवादी कर रहे हैं? वे कैसे राष्ट्र को स्थापित करना चाहते हैं? और किसके हित में और किसके हित की कीमत पर? "राष्ट्रवाद" के नारे और विचारधारा का निर्मम विखण्डन – इसके बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते। राष्ट्र की जगह हमें वर्ग की चेतना को स्थापित करना होगा। बुर्जुआ राष्ट्रवाद की हर प्रजाति के लिए "राष्ट्र" बुर्जुआ वर्ग और उसके हित होते हैं। मज़दूर वर्ग को हाड़ गलाकर इस "राष्ट्र" की उन्नति के लिए खपना होता है। इसके अतिरिक्त कुछ भी सोचना राष्ट्र-विरोधी है। राष्ट्रवाद मज़दूरों के बीच छद्म गर्व बोध पैदा कर उनके बीच वर्ग चेतना को कुन्द करने का एक पूँजीवादी उपकरण है और इस रूप में उसे बेनकाब करना बेहद ज़रूरी है। यह न सिर्फ मज़दूरों के बीच किया जाना चाहिए, बल्कि हर उस वर्ग के बीच किया जाना चाहिए जिसे भावी समाजवादी क्रान्ति के मित्र के रूप में गोलबन्द किया जाना है।

http://ahwanmag.com/archives/3392

फ़ासीवाद का मुक़ाबला कैसे करें

ahwanmag.com

फ़ासीवाद और प्रतिक्रियावाद दस में से नौ बार जातीयतावादी, नस्लवादी, साम्प्रदायिकतावादी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का चोला पहनकर आता है। वैसे तो हमें शुरू से ही बुर्जुआ राष्ट्रवाद के हर संस्करण का पुरज़ोर...

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Narendra Modi offers magic pill to lift economy, tries to wrench political momentum back. Key elements of Modi's programme are urbanisation, infra, education, apart from cracking down on scourges such as inflation, black money. http://ow.ly/sJR30

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Devyani case: There are very few people of Indian-origin who have had a good experience dealing with Indian embassies and missions anywhere in the world. Here's why Indian-American sympathy appears to lie with narrative of the housekeeperhttp://ow.ly/sIPiK


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Today's working professionals are like walking patients. We are accustomed to seeing this around us all the time. Here's how you can tackle an unexpected medical emergency without any stress or hassles. Share with friends if you find this interesting.http://ow.ly/sI17r

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Sunanda Pushkar's death: Murder by Twitter, say Twitteratishttp://ow.ly/sHSqk | IN PICS: Life & times of Sunanda Pushkarhttp://ow.ly/sHSlg

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The Economic Times

January 17

Permanent PF a/c number to be reality in 2014-15. This will enable over five crore EPFO members to get rid of the process of transferring their accounts on changing jobs. http://ow.ly/sGI6x


The Economic Times

January 17

RIL Q3 PAT rises to Rs 5,511 crore, beats estimateshttp://ow.ly/sGfli

The Economic Times

January 17

Rahul mocks BJP's campaign; says Oppn will be decimated. Other highlights from Rahul's speech at AICC meet http://ow.ly/sG7Yh

1. Congress will ask the block presidents, workers, district president to directly select candidates in 15 LS constituencies.

2. Every person wants the subsidized cylinder cap to be raised from 9 to 12.

3. In the future, 50% of MLAs should be women. http://ow.ly/sG7Yh

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The Economic Times

January 17

Half of Congress candidates must be below 35: P Chidambaram

http://ow.ly/sFYv3 | Live updates http://ow.ly/sFVmy

The Economic Times

January 17

Mani Shankar Aiyar: "Modi will never be PM in the 21st century.

If he wants to sell tea here at AICC meet, we can arrange for it." http://ow.ly/sFHjt

The Economic Times

January 17

Brokerages turn bullish on RIL ahead of Q3 showhttp://ow.ly/sFsCA

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The Economic Times

January 16

Impact of Aadhaar, GST, DFC to be significant: UBS. Do you agree? http://ow.ly/sDBI8

The Economic Times shared ET Market News's photo.

January 16

Inflation looks like being reined in, World Bank sees a 6%+ growth and Moody's says a downgrade for India is not on the cards.

Moody's sets the mood on Street; will RBI give it a boost?


http://ecoti.ms/-MlzCY

The Economic Times shared ET Market News's photo.

January 15

Food prices rose 13.68 per cent year-on-year in December, much slower than an annual rise of 19.93 per cent in November.

JUST IN: WPI inflation eases to a 5-month low of 6.16% in December http://ecoti.ms/RTWGRb — with Iwi Micro Tavor.

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The Economic Times

January 14

How Sebi gifted Rs 400 crore to investors in 2013http://ow.ly/szh41

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The Economic Times

January 14

Salman Khan joins Narendra Modi for kite flying festival, says 'Impressed by the development in Gujarat. I have met Modiji for the first time. I liked meeting him. I wish him all the best in life. You must vote for the person who is best for your constituency. May the best man be PM.' Read the full story http://ow.ly/syYSc

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The Economic Times

January 14

Blog by Shubham Mukherjee: The entry of foreign retailers would create more jobs and a healthier investment climate. That's what AAP should really be bothered about. The biggest beneficiary would have been the common man, which the AAP claims to represent. Is the #AAP moving from disruptive ideas to disrupting the investment climate? Tell us your views http://ow.ly/syUbI

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The Economic Times

January 13

AAP govt writes to DIPP, withdraws permission for FDI funded retail stores. Each state can decide whether it wants to allow FDI in retail, Delhi becomes the first state to withdraw permission for FDI funded retail stores. Your comments? http://ow.ly/swuLf

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Rothschild connection…………..

Himanshu Kumar

सोनी सोरी की दस साल की बेटी आरती की हालत गंभीर है . सोनी सोरी के छत्तीसगढ़ जाने पर सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगाईं हुई है .


सोनी सोरी की बेटी पालनार के सरकारी आवासीय विद्यालय में तीसरी कक्षा में पढ़ रही है . हास्टल में अचानक उसके शरीर में खून की कमी हो गयी . बच्ची का शरीर सूज गया और नाक से खून बहने लगा . स्कूल वालों ने बच्ची का इलाज करवाने की बजाय आरती को सोनी के पिता के पास उनके घर भेज दिया है .


सोनी सोरी के पति की जेल में प्रतारणा के कारण पहले ही मौत हो चुकी है . सोनी सोरी के पिता के पैर में नक्सलियों ने गोली मार दी थी और वो कोई भी भाग दौड करने में असमर्थ हैं .


इधर सोनी सोरी के छत्तीसगढ़ जाने पर सर्वोच्च न्यायालय ने बंदिश लगाईं हुई है .


हम कोशिश कर रहे हैं कि सर्वोच्च न्यायालय सोनी सोरी पर से छत्तीसगढ़ जाने की पाबंदी हटा दे .


आज इस बाबत सर्वोच्च न्यायालय में अर्जी पेश करी जायेगी .

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Uday Prakash

कई बार लगता है कि दुनिया के दूसरे देश, जहां हम कभी नहीं गये, वहां के लोग कितने हम जैसे हैं. बिल्कुल हमारे जैसे परिवार. हर रोज़ बेहतरी के सपने देखता और हर रोज़ उनके टूटने-बिखरने के सच को झेलता घर-परिवार. ....और इसके ठीक समानांतर एक दूसरी दुनिया, जहां सब कुछ बेचा जा रहा है. मछलियों, शुतुरमुर्ग, आलू-गोभी से लेकर कार, वाशिंग मशीन, एलसीडी, प्लाज़्मा, टैबलेट्स, ब्लैकबरी, बहु मंजिला इमारतें, कबाड़ ......!

अगर आपने माजिद मजीदी की यह फ़िल्म -'सांग आफ़ स्पैरोज़' नहीं देखी हो तो, इसे ज़रूर देखें दोस्तो. इसे आज मैंने चौथी बार देखा और सोचता रहा कि ऐसी फ़िल्में हमारे यहां क्यों नहीं बनतीं और ऐसी फ़िल्म को 'आस्कर' न देने के पीछे कौन सी ज्यूरी हुआ करती होगी ...?

आपने अगर मजीदी की यह फ़िल्म न देखी हो तो इसे ज़रूर देखें।

http://youtu.be/0vkMchZcdRQ

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The Economic Times

2 hours ago

JUST IN: Delhi CM Arvind Kejrwial arrives at Rail Bhavan with his Cabinet ministers where the convoy has been stopped by Delhi police.#AAP's dharna today; is party losing its battle because of its tactics? Tell us your views http://ow.ly/sK5Ht

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TaraChandra Tripathi

'आप' लोगों की दीर्घ कालीन हताशा से उभरा एक उबाल है. यह उबाल कितना कारगर होगा, अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. केजरीवाल के अलावा उनके दल में उनकी तरह प्रतिबद्ध कितने लोग हैं, अभी यह भी पता नहीं है. कुछ नाबालिग हैं तो एक-दो में में राजमद के लक्षण साफ दिखाई दे रहे हैं. अभी दिल्ली के छोटे से मैदान में इनकी कार्य कुशलता और टीम स्पिरिट में खेल सकने की क्षमता की परीक्षा हो जाय, तभी राष्ट्रीय स्तर पर इसकी उम्मीदवारी पर विचार किया जान उचित होगा.

. 'आप' के उभार से उत्साहित भी हुआ. बहुत विचार करने, और भारतीय इतिहास में छिपे बिखराव की बीमारी के लक्षणों और इस बीमारी को लगातार बढ़ाती कांग्रेसी धृतराष्ट्र की अन्धी राजनीति की मूल्यहीन आपाधापी और लगातार सशक्त होते वंशवाद या नव-सामन्तवाद के संक्रमण से देश को बचाने के लिए छद्मरहित मोदी का व्यक्तित्व ही एकमात्र विकल्प नजर आ रहा है.

आसुरी प्रवृत्तियों का दमन करने के लिए उमा नहीं दुर्गा का ही वरण किया जाता है.

Like ·  · Share · 4 hours ago ·

Abhishek Srivastava

हमारे एक अजीज़ मित्र हैं जिन्‍हें प्‍यार से हम Abhai गोंडवी पुकारा करते हैं। अपनी पत्‍नी और बच्‍चे के साथ आम सुखी जीवन जीते हैं, नौकरी करते हैं और रहे-रहे कविताएं-गज़लें करते रहते हैं। पिछले पांच साल से ज्‍यादा हो गए इन्‍हें एक ब्‍लॉग बनाए जिस पर अपनी कविताएं ये नियमित पोस्‍ट करते हैं। इन्‍हें चाहने वालों की भी एक बिरादरी है, लेकिन उसका हिंदी के मुख्‍यधारा के साहित्‍य-फाहित्‍य और उसकी गलाज़त से कोई लेना-देना नहीं। यहां न कोई लेखक है, न पाठक। इस बिरादरी में सब आमफ़हम लोग हैं जो अपनी बेहद आम जिंदगी की जद्दोजेहद में से कुछ वक्‍त कीबोर्ड को दे देते हैं।


जिस अश्‍लील दौर में कुमार विश्‍वास जैसे घटिया मानसिकता वाले मंचीय कवियों का बोलबाला है, उसमें अभय जैसे कुछ लोग चुपचाप एक कोने में पड़े कविताकर्म में जुटे हुए हैं, बगैर किसी पद-प्रतिष्‍ठा-रैकेट-पुरस्‍कार-नेटवर्क की कामना के। क्‍या यह मामूली बात है कि कोई सिर्फ अपनी अंत: प्रेरणा के सहारे बिना किसी आग्रह के कविताएं लिखता जाए? इस मोहभंग के दौर में कहां से आती है ऐसी अंत: प्रेरणा?


मैं अमूमन गोंडवी की कविताएं-गज़लें कभी-कभार पढ़ता हूं, लेकिन आज अचानक एक कविता ने विशेष ध्‍यान खींच लिया, सो साझा कर रहा हूं।

hum sab kabeer hain: आदमी बनने की शर्त

kahekabeer.blogspot.com

Seema Mustafa

A FB friend asked me about my stand on Kashmiri pundits on messenger and this is what I wrote back to him: "My stand is that it was and continues to be terrible; that steps should have been taken urgently to ensure their return in security and dignity; that it was essential to retain the secular character of the Valley and indeed Jammu and Kashmir that persons like Jagmohan and the Muslim extremists were so keen to destroy; and that even now the state should rise above politics of the Bjp kind and move to rehabilitate the thousands who have suffered so greatly. The Kaahmiris in the valley must be persuaded to help restore circumstances and environment for the return of the pundits to their homes . I believe in this passionately and peace cannot come unless this wrong is righted." I believe that most Kashmiris want this to happen and have been saying so at every opportunity. But the politician class that has politicised the entire issue to factor out the people, is just not interested. And deliberately so as it helps their communal politics. Alas something that could have been easily resolved has been allowed to fester and turn into burning wounds.

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Gladson Dungdung

If exercising my fundamental rights, the right to freedom of expression, is a full proof of being and anti-national, then indeed, I would like to do this exercise again and again,

If standing against heinous crime, injustice and gross human rights violation committed by our brave soldiers is enough to brand me either as an extremist or their supporter, then also I'm not going to give up my passion of struggle for human rights, fundamental freedom and social justice,

And of course, if my fight to save my ancestral land, territory and resources, makes me anti-state, then too, I take pledge that I shall fight for it till my last breath – Gladson Dungdung

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Avinash Das

अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ईमानदार पुलिसवालों से दिल्‍ली की जनता की लड़ाई में साथ देने की अपील कर रहे हैं। ये तो क्रांति का एजेंडा है, जब सेना से अपील की जाती है कि जनविरोधी राजसत्ता के खिलाफ आप उल्‍टी तरफ से लड़ें। मुझे केजरीवाल की नीयत पर शक है। ये आदमी सब कुछ पलट देने की जिद ठाने बैठा है।


"जो है उससे बेहतर चाहिए

पूरी दुनिया को साफ करने के लिए मेहतर चाहिए!"

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  • Prakash K Ray, Kumar Gaurav and 32 others like this.

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  • View 4 more comments

  • Susmit Priyadarshi Mr. Kejriwal seems to be pessimist whose thinking is biased, use aisa lagta hai sirf wo hi imandar hai jo uske saath hai baaki sabhi beimaan hain..........isse jyada pessimistic approach shayad hi dekhne ko mile...

  • 31 minutes ago · Like

  • Prakash K Ray कब कहा मैंने कि वो लालो-गुहर मांगता है

  • इश्क़ की राह में मुझसे मेरा सर मांगता है

  • इस ज़मीं पर नहीं उसकी कहीं कोई भी मिसाल...See More

  • 24 minutes ago · Like · 2

  • Jey Sushil अभी दास दरभंगवी देगा आपको जवाब- Prakash K Ray

  • 24 minutes ago · Like

  • Prakash K Ray ये जो दास अज़ दरभंगा है

  • आदमी बहुत भला चंगा है

  • कहता है अपनी ग़ज़लों में

  • दुनिया तमाशा है, दंगा है

  • 16 minutes ago · Like · 1

Arvind Kejriwal

We are protesting to demand accountability from the Delhi Police. They need to do more than just investigations. They need act on complaints filed by residents and not collude with criminals. The culture of bribes, hafts has to stop.


We call upon the citizens to join this protest. If you believe that you have had enough and that the Delhi police needs to change its approach to law & order enforcement for a better city, Join us in our protests. Your government is standing firmly with you, for you.

Like ·  · Share · 9,3141,397669 · 40 minutes ago ·

Jagadish Roy added a new photo.

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Gladson Dungdung

Since, the adverse police and CID reports allege that I'm involved in anti-state activities and I'm also one of the sympathizer of the CPI-Maoist, which led to impounding of my passport, therefore, I'll be having press conference today (20th January, 2014) at 3 PM at SDC, Dr. Kamil Bulke path, Ranchi. Therefore, all the Journalists are media persons are cordially invited to cover the PC.

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Jaipur Literature Festival- Condemn corporate crimes

http://www.kractivist.org/press-release-jaipur-literature-festival-condemn-corporate-crimes/

--

Adv Kamayani Bali Mahabal

+919820749204

skype-lawyercumactivist

Hey folks, coined this term " Kracktivism ", check out my blog   

http://kractivist.wordpress.com/Kracktivism


Blog for girl child-  http://fassmumbai.wordpress.com/  


Blog for Kashmir -http://kashmirsolidaritymumbai.wordpress.com/


Blog for KKM defence Committee-  http://kabirkalamanch.wordpress.com


https://twitter.com/#!/Kracktivist


https://www.facebook.com/kamayani



*I carry a torch in one hand

And a bucket of water in the other:

With these things I am going to set fire to Heaven

And put out the flames of Hell

So that voyagers to God can rip the veils

And see the real goal.......

Rabia (Rabi'a Al-'Adawiyya)

Please endorse and share widely if you agree...

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A writer's life is a highly vulnerable, almost naked activity. We don't have to weep about that. The writer makes his choice and is stuck with it. But it is true to say that you are open to all the winds, some of them icy indeed. You are out on your own, out on a limb. You find no shelter, no protection – unless you lie – in which case of course you have constructed your own protection and, it could be argued, become a politician to define the real truth of our lives and our societies is a crucial obligation which devolves upon us all. It is in fact mandatory.

-Harold Pinter

Like past years, the organizers and individuals participating in Jaipur Literature Festival have revealed their deplorable callousness towards collapsing ecosystem, rampant human rights violations and corrupt practices of many of its sponsors. Three years back when the issue of sponsorship by notorious corporations like Rio Tinto, Shell, Shell, Coca Cola, Tata, DSC etc. was brought out, the director of the festival William Dalrymple told media that they would examine the issue. It is clear that they did not do that. It seems the philosophy of the festival is guided by the dictum 'We are not here as the guardians or gatekeepers of morality and we have not looked at the colour of money.' as expressed by Sanjoy Roy then. Mr Roy is the head of the company that organises the festival.

Once again we request them to ponder over the public relations exercise and the facade of Corporate Social Responsibility (CSR) of companies that sponsor and partner for this festival. The credentials of some of the sponsors of the festival present a very disturbing picture:

> Coca Cola Company has dried up groundwater and local wells that has forced residents to rely on water supplies from outside their areas and the immorality of the Company's water-intensive bottling plants in Plachimada, Kerala and Kala Dera, Rajasthan. The same situation is witnessed in and around the areas of almost 52 water-intensive bottling plants of the company in India.

> The US government institutions like American Centre have failed to reveal as to why there are some 702 military installations of world's super power throughout the world in 132 countries along with 8,000 active and operational nuclear warheads?

We must remember how US Congress that recommended the passage of the US Information and Educational Exchange Act on January 27, 1948 declared that "truth can be a powerful weapon". Drawing lessons from the amendments to the US Foreign Relations Authorization Act of 1972 in July 2010 that banned disseminating within the USA any "information about the United States, its people, and its policies" prepared for dissemination abroad with the aim to engage in a global struggle for minds and wills to bolster its "strategic communications and public diplomacy capacity on all fronts and mediums – especially online". This reveals that US government's relationship with the non US citizens is not healthy.

> DSC Limited, the principal sponsor till the last year and the sponsor of the main literary prize awarded at the event, was awarded 23% higher rates in the matter of scam ridden Commonwealth Games as per the observation of Central Vigilance Commission.

Is literature interested only in lies that create a make belief reality? If writers at the festival believe that a better life is possible and should be achieved, it would be germane for them to ponder how being complicit in promoting status quo is contrary to their beliefs? Is it not possible that a literature festival supported by unethical and immoral business enterprises is an exercise aimed at clinical manipulation masquerading as a feel good event akin to be an act of hypnosis?

The writers at the festival must ponder over: what is the immoral equivalent of taking sponsorship from such corporations and institutions that destroy environment and violet people's rights in most brazen manner. One hope the Jaipur Literary festival and those participating in it will pay heed to Pinter's advice and undo its unwitting acts of Faustian bargain before it is too late.

We appeal to the writers attending the festival that commenced on 17th January, 2014 to condemn corporate crimes, motivated public opinion engineering and state sponsored acts against humanity and disassociate from events that are sponsored by dubious sources.

Sd/-

Anand Swaroop Verma

Prakash K Ray

Gopal Krishna

Abhishek Srivastava

Panini Anand

Jitendra Kumar


क्या थम जाएंगी अब किसानों की आत्महत्याएं

मनोहर गौर

तीन साल से भी अधिक समय से लंबित साहूकारी बिल पर आखिर पिछले हफ्ते राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद महाराष्ट्र में अवैध साहूकारों के खिलाफ कार्रवाई का रास्ता खुल गया है। सब जानते हैं कि विदर्भ में किसानों की आत्महत्या की घटनाओं के पीछे एक कारण अवैध साहूकारी भी रहा है। कुछ साल पहले महाराष्ट्र सरकार ने विदर्भ में जारी किसानों की आत्महत्याओं के वास्तविक कारणों की खोज और उसके लिए उपाय की दृष्टि से डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक अध्ययन दल का गठन किया था। इस दल ने अपनी सिफारिशों में अवैध साहूकारी को किसानों की आत्महत्याओं के लिए एक प्रमुख कारण माना था। हालाँकि किसानों की आत्महत्याओं के लिए यही एकमात्र कारण नहीं बताया गया था। बल्कि खेती में बढ़ती लागत, फसलों को उचित और पर्याप्त भाव नहीं मिलना, बढ़ता कर्ज तथा सरकारी उदासीनता भी इसका कारण रही है।

राजनीतिक हाथ

यह छिपी बात नहीं है कि गांव से लेकर शहरों तक अवैध साहूकारी सिर्फ इसलिए फल-फूल रही है, क्योंकि इसके सिर पर हमेशा राजनीतिक हाथ रहा है। बल्कि राजनीतिक लोग खुद यही काम करते रहे हैं। कुछ साल पहले विदर्भ के विधायक दिलीप सानंदा के पिता के खिलाफ भी साहूकारी के आरोप लगे थे और मामले को दबाने की कोशिश करने का आरोप तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख पर आया था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार पर दस लाख का जुर्माना भी लगाया था।

गांवों में खेती-बाड़ी के कागजात के अलावा सोने-चांदी के जेवरों को गिरवी रख 36 से 48 प्रतिशत वार्षिक ब्याज वसूला जाता है। शहरों में भी आभूषण-व्यवसायी जेवरात गिरवी रख प्रतिमाह 4 प्रतिशत की दर से ब्याज वसूलते हैं। पहले महीने का ब्याज शुरुआत में ही वसूल लिया जाता है और गरीब तथा मध्यवर्ग इसकी बलि चढ़ता रहता है। चूंकि यह कभी भी सबसे आसान और बिना किसी गारंटी के मिलने वाला कर्ज होता है, इसलिए शहरों में भी लोग कभी न कभी इस दौर से गुजरते ही हैं। प्रशासन से लेकर सरकार तक सबको इसकी जानकारी होने के बावजूद कभी इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती। इसलिए कहा जाता है कि साहूकारी प्रथा के खिलाफ चाहे जितने कानून बन जाएं इसे खत्म करना आसान नहीं है। साहूकारी से राजनीति तक का सफर ही इस प्रथा को फलने-फूलने में मदद करता है।

किसानों की आत्महत्याओं में कमी

विदर्भ में पिछले दो-तीन सालों में किसानों की आत्महत्याओं के आंकड़ों में उल्लेखनीय कमी आई है। इस दौरान कुदरत भी विदर्भ पर काफी मेहरबान रही है। अच्छी बारिश के अलावा खुले बाजार में किसानों को अच्छा भाव मिलना भी इसके पीछे एक बड़ा कारण रहा है। आंकड़े बताते हैं कि विदर्भ में जहां वर्ष 2006 में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 1449 थी, वहीं वर्ष 2013 में वह घटकर 752 पर रह गई है। इसमें धान उत्पादक किसानों का आंकड़ा भी जोड़ दिया जाए तो यह संख्या बढ़कर 824 हो जाती है। विशेषज्ञों का दावा है कि खुले बाजार में बेहतर भाव मिलने के साथ ही अगर सरकार ने भी फसलों को बेहतर भाव दिया तो इन आंकड़ों को शून्य पर लाया जा सकता है।

विदर्भ में मुख्यत: वर्धा, यवतमाल, अमरावती, अकोला, वाशिम और बुलढाणा जैसे कपास तथा सोयाबीन उत्पादक जिलों में ही किसानों की आत्महत्याएं अधिक होती रही हैं। बुलढाणा जिले में जहां वर्ष 2006 में 320 किसानों ने आत्महत्या की थी, वहीं वर्ष 2013 में यह संख्या घटकर 120 पर आ गई है। उसी तरह वाशिम में 185 से घटकर 56, अमरावती जिले में 270 से 159, यवतमाल जिले में 359 से 219 और अकोला जिले में किसानों की आत्महत्या की घटनाएं 174 से घटकर 128 रह गई हैं। सरकार का दावा है कि किसान-आत्महत्या की घटनाओं में कमी का कारण इन क्षेत्रों में 10 हजार करोड़ की निधि का आना तथा प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के सहायता पैकेजों का उचित तरीके से क्रियान्वयन ही रहा है। किसानों की आत्महत्याओं का कारण कर्ज का बढ़ता बोझ, सिंचाई के अभाव में फसलों का गिरता उत्पादन और पूरी तरह से प्रकृति पर निर्भर किसानों में घर करती निराशा रहा है। इसमें विभिन्न कारणों से कुछ कमी आई है तो इसे बरकरार रखने की जरूरत आज सबसे अधिक है।

लंबित विधेयक

महाराष्ट्र सावकारी नियंत्रण विधेयक 2010 से केंद्र के पास लंबित था। राज्य सरकार को बार-बार यह विधेयक दुरुस्ती के लिए वापस भेजा गया। अभी दिसंबर में ही नागपुर में संपन्न महाराष्ट्र विधानमंडल के शीतकालीन अधिवेशन में विपक्ष ने नारेबाजी कर वाकआउट कर दिया था। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इस कानून के बाद राज्य में साहूकारी पर रोक लग जाएगी? या यह कानून भी बाकी कानूनों की तरह केवल एक कानून बनकर रह जाएगा? इस विधेयक में चक्रवृद्धि दर से ब्याज की वसूली पर रोक लगाई गई है। अलावा इसके ब्याज की राशि मूल धन से अधिक नहीं होनी चाहिए। बिना लाइसेंस के साहूकारी करने वालों को 5 साल की कैद और 50 हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान विधेयक में किया गया है। मल्टीस्टेट को-ऑपरेटिव बैंकों के लिए भी यह कानून लागू होगा।

तरीका बदला

ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत बैंकों का काम करने का अपना तरीका और दस्तूर है। बैंक उस वक्त तक किसानों को कर्ज नहीं देते जब तक कि पहले का कर्ज चुकता न कर दिया जाए। फसल के बरबाद होने पर किसान के लिए पहले के कर्ज को चुकता करना मुश्किल होता है। बैंकों से मिलने वाला कर्ज भी बहुत कम होता है। ऐसे में साहूकार ही किसानों के काम आता है। दूसरे, साहूकारी विरोधी कानून बनाने की मांग के उठने के बाद से ही साहूकारों ने अपने धंधे का तरीका ही बदल लिया है। उन्होंने खेती-किसानी के काम आने वाली सामग्री की दुकान लगा ली है और तीन से चार फीसदी माहवारी की दर पर बीज और खाद जैसी चीजें देने लगे हैं। गांवों में बिना कागज-पत्र के बरसों से साहूकारी का धंधा चल रहा है और तय है कि इस कानून के बाद भी यह ऐसे ही चलता रहेगा। सरकार को साहूकारी पर रोक लगाने के साथ ही बैंकों की व्यवस्था में सुधार करना चाहिए था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं है। ऐसे में पिसेगा किसान ही। साफ है कि उसकी स्थिति और खराब ही होगी।

About The Author

मनोहर गौर, लेखक नागपुर (महाराष्ट्र) स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।



Adivasi Adsn

क्या इससे भी बड़े सबूत कि जरुरत है, कि BJP लिंक maoist के साथ है/ दोस्तों maoist जो हैं, business और कॉर्पोरेट का नया चेहरा है इससे जितना जल्दी हो सके समझ लें / सरकार एक तरफ तो ग्लैडसन डुंगडुंग का पासपोर्ट जब्त करती है, दूसरी ओर ऐसे बिज़नस मैन को बचाने के लिए विदेश भेजेगी/ कांग्रेस तो पाखंडपण कि सीमा लाँघ गयी BJP तो पाखंडियों से ही भरा हुआ है/ इसका सीधा-सीधा मतलब ये है कि महेंद्र कर्मा समेत ३० कांग्रेसियों को मारने का ठेका भी बीजेपी ने ले रखा था/ कांग्रेस को जल्दी समझ में आ जाये तो ठीक है, वरना केंद्र सरकार जाने वाली है http://www.thehindu.com/news/national/other-states/businessman-with-maoist-links-held-near-raipur-airport/article5591053.ece

Businessman with Maoist links held near Raipur airport

thehindu.com

He was travelling in BJP MP's car

Like ·  · Share · 24 minutes ago near New Delhi · Edited


  • Adivasi Adsn दोस्तों इससे जितना ज्यादा हो सके शेयर करें वरना हम एक दो को टारगेट किया जायेगा, और हम आदिवासियों की लड़ाई अधूरी रहेगी, दर असल हम ज्यादातर आदिवासी मूकदर्शक ही बने रहते हैं/ मेरे साथ सब ठीक चल रहा है चलने देते हैं/ दोस्तों अपनी बर्बादी का इंतज़ार मत करो, जल्दी से आओ और अपने दुश्मन को पहचानो

  • 9 minutes ago · Like

Abhinav Sinha via Akshay Kale

Historiography of Caste: Some Critical Observations and Some Methodological Interventions

academia.edu

Historiography of Caste: Some Critical Observations and Some Methodological Interventions

Unlike ·  · Share · 40 seconds ago ·

Economic and Political Weekly

A bank transaction tax to replace all taxes will have a disastrous impact on the economy.


http://www.epw.in/editorials/hare-brained-proposal.html

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Jagadishwar Chaturvedi

जयपुर साहित्य महोत्सव-2-


अमर्त्य सेन ने कहा लेखक और रचनाकार देश की राजनीति व उत्थान के प्रमुख स्रोतहैं। ये वो कड़ी हैं, जो कि गांव से शहर तथा देश-विदेश की भावनाओं को एक दूसरे तक पहुंचाते हैं।

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Bodhi Sattva

ऐसे विज्ञापन देख कर खून खौलता है


ऐसी सरकार, व्यवस्था, तंत्र और नेता को धिक्कार है

जिसने इतने सालों में दिया सिर्फ दो वक्त की रोटी का अधिकार...

और 81 करोड़ बुक्खड़ों को क्या कहें...

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Economic and Political Weekly

Nepal Elections: How did the Maoists suffer such a humiliating defeat in such a short period? Was this only due to "poll rigging" as they have claimed? What are the reasons behind their defeat?


Read: http://www.epw.in/commentary/maoist-defeat-nepal.html

Jai Kaushal shared Shrimant Jainendra's photo.

हिन्दी दलित आत्मकथाओं में सर्वाधिक चर्चित प्रो. तुलसीराम की आत्मकथा 'मुर्दहिया' का दूसरा भाग 'मणिकर्णिका' राजकमल प्रकाशन से छप कर आ गया है..बधाई उन्हें..

दलित आत्मकथाओं में सबसे चर्चित तुलसीराम की 'मुर्दहिया' का दूसरा भाग 'मणिकर्णिका' राजकमल प्रकाशन से छप कर आ गया है | गौरतलब है कि इससे पहले किस्तों में यह तद्भव में छप रही थी | मुझे भी बेसब्री से इसका इंतजार है |

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Economic and Political Weekly

WHO might have declared India polio-free but challenge remains of treating and rehabilitating those who have already been crippled by the disease.


An Economic and Political Weekly editorial:http://www.epw.in/editorials/we-have-overcome.html

Kamayani Bali Mahabal

‪#‎Racism‬ – Kumar Vishwas of AAP – insults Kerala Nurses ‪#‎sexist‬ ‪#‎joke‬- Kractivism

» #Racism – Kumar Vishwas of AAP – insults Kerala Nurses #sexist #joke - Kractivism

kractivist.org

Earlier , When man was sick, he used to go to hospital poor man he was satisfied there, as the t nurses came from Kerala– black ( kaali peeli ), hecould only call them ' sister ' and always thpought she should remain sister. Many nurses from kerala, thats why do not put up their pics on facebook p...

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Amalendu Upadhyaya

गुरू जी तो हमारे संविधान की प्रासंगिकता पर भी प्रश्नचिन्ह लगाया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि आरएसएस, भारत के संघीय ढाँचे के विरूद्ध है। उनकी किताब 'बंच ऑफ थाट्स'या 'विचार नवनीत'में पूरा एक अध्याय है जिसका शीर्षक ही है "एकात्मक शासन की अनिवार्यता"

गुरू गोलवलकर को त्याग दिया मोदी ने

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देश के संघात्मक ढाँचे के विरोधी थे संघ और गोलवलकर    एल.एस. हरदेनिया पिछले रविवार (12 जनवरी 2014) को गोवा में एक आमसभा को संबोधित करते हुये गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आरोप लगाया कि केन्द्र की वर्तमान सरकार हमारे देश के संघीय ढाँचे को कमजोर कर रही है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि…

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Reyazul Haque

जैसे ये किसानों को फेंक देते हैं जब गांव के गांव हथियाने निकलते हैं; ठीक उसी तरह जैसे आदिवासियों को धकिया देते हैं जब जंगल के जंगल अपने कब्जे में करने का नक्शा कागज़ पर तैयार करते हैं। साहित्य का असल मकसद क्या है, उसे वे तय करना चाहते हैं जिसे वे स्वान्तः सुखाय से शुरू करते हैं। वे कई बार अपने यहां विरोध के स्वर को भी उठने देते हैं ताकि विरोधियों को लगे कि वह एक खुला मंच है और वे वहां जाने में कोई पाप न देखें। लेकिन यह मुआवज़े से ज्यादा कुछ नहीं होता है। जैसे वे किसानों को देते हैं, आदिवासियों को देते हैं, ठीक उसी तरह वे विरोधी विचारों को भी मुआवज़ा देने में कोई गुरेज़ नहीं करते। इस तरह वे विरोधी विचार को एक तरह से खरीद लेते हैं और उसकी धार को कुंद कर देते हैं। मुआवज़ा लेने के बाद जिस तरह किसान या आदिवासी अपनी ज़मीन या जंगल की लड़ाई जारी रखने का नैतिक अधिकार खो देता है, उसी तरह लेखक भी अपने विचार की लड़ाई फिर नहीं लड़ पाता।

हाशिया: जयपुर साहित्‍य उत्‍सव के विरुद्ध त्रैमासिक पत्रिका 'भोर' का वक्‍तव्‍य

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Pankaj Chaturvedi

बस्‍तर में सुकमा वाले मार्ग पर कांगेर संरक्षित वन क्षेत्र है , वहां चूने और पानी के मिलन से बनने वाली गुफाओं और उसके भीतर की अजब दुनिया को देखना विलक्षण अनुभव हेा आप अचानक कई लाख साल पीछे की दुनिया में चले जाते हैं , इस गुफा में नीचे उतरने के लिए सबसे पहले आपका मोटापा आडे आ सकता है क्‍योंकि पहला ही मार्ग बामुश्किल तीन फुट रेडियस का हैा भीतर पतली सी पट्रटी पर चलना है कोई 370 मीटर गहराई में घुप्‍प अंधेरा, हवा की गुंजाईश नहीं बस एक गाईड के हाथ में ली हुई सोलर लालटेन के सहारे चूने की कठोर हो गई आक़तियों को देखें, यहां एक चित्र में वे छोटी छोटी मछली भी दिखेंगी जिनकी आंखें नहीं होती, क्‍योंकि वे पीढियों से घुप अंधेरे में हैंा यहां नई बन रही आक़तियां भी हैं और सदियों पुरानी संगमरमर की तरह चिकनी हो गई भीा लगातार लोगों के आवागमन और रोशनी के कारण कार्बन डाय आक्‍साईड व मोनो आक्‍साईड का प्रभाव इन धवल आक़तियों पर दिखने लगा हेा ये सफेद उजली से धुंधली हो रही हैं ा मैंने यहां पत्‍थरों की देा लेयर में बीच करैत सांप का बच्‍चा सोते हुए देखा ा कांगेर घाटी के जंगल में उडने वाली गिलहरी और बोलने वाली मैनेा नहीं देख पाया, ये दोनो जीव अल्‍सुबह ही दिख पाते हैं, यहां के जल प्रपातों की चर्चा आगे कभी करूंगा ा और अधिक फोटो मेरे ब्‍लाग पर देख सकते हैं http://pankajbooks.blogspot.in/

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Economic and Political Weekly

Do Indian voters penalise candidates with criminal charges?


A detailed analysis: http://www.epw.in/special-articles/how-indian-voters-respond-candidates-criminal-charges.html

Navbharat Times Online

देवयानी मामले के बाद BJP के पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी को अमेरिका के लिए एक और मुसीबत बताया गया है।


पढ़ें पूरी खबर: http://navbharattimes.indiatimes.com/world/america/time-magazine-sees-narendra-modi-as-americas-other-india-problem/articleshow/29015442.cms

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Reyazul Haque posted in 4 groups.

हाशिया: ...क्योंकि गलियां हमारी हैं

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बर्तोल्त ब्रेष्ट की चिंता में समतापूर्ण समाज की तखलीक थी. उनकी हर रचना में चाहे वह उनके नाटक हों, कविताएं हों या छोटी कहानियां, अपने समय की पूंजीवादी बुराइयों और विस्तारवादिता, ढोंग, सैन्यशाही और नस्लपरस्ती के खिलाफ़ उनके मजबूत स्वर उनमें सुनायी देते हैं. ब्रेष्ट ने इन कविताओं में जिन प्रवत्तियों की…

  • Reyazul Haqueदलित लेखक संघ Dalit Lekhak Sangh (Dalit Writers Forum)
  • आम आदमी पार्टी के फासिस्ट उभार पर और इस उभार पर फिदा वामपंथियों के लिए बेर्तोल्त ब्रेष्ट की एक कविता

  • जर्मनी में

  • जब फासिस्ट मजबूत हो रहे थे

  • और यहां तक कि

  • मजदूर भी

  • बड़ी तादाद में

  • उनके साथ जा रहे थे

  • ...

  • हमने पार्टी में साथियों से कहा

  • वे हमारे लोगों की जब हत्या कर रहे हैं

  • क्या हम इंतजार करते रहेंगे

  • हमारे साथ मिल कर संघर्ष करो

  • इस फासिस्ट विरोधी मोरचे में

  • हमें यही जवाब मिला

  • हम तो आपके साथ मिल कर लड़ते

  • पर हमारे नेता कहते हैं

  • इनके आतंक का जवाब लाल आतंक नहीं है

  • http://hashiya.blogspot.in/2007/06/blog-post_20.html

Gopal Rathi shared Artist Against All Odd (AAAO)'s photo.

लड़ाई जारी है.../ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जारी है-जारी है अभी लड़ाई जारी है। यह जो छापा तिलक लगाए और जनेऊधारी है यह जो जात पॉत पूजक है यह जो भ्रष्टाचारी है यह जो भूपति कहलाता है जिसकी साहूकारी है उसे मिटाने और बदलने की करनी तैयारी है। यह जो तिलक मांगता है, लडके की धौंस जमाता है कम दहेज पाकर लड़की का जीवन नरक बनाता है पैसे के बल पर यह जो अनमेल ब्याह रचाता है यह जो अन्यायी है सब कुछ ताकत से हथियाता है उसे मिटाने और बदलने की करनी तैयारी है। यह जो काला धन फैला है, यह जो चोरबाजारी है सत्ता पाँव चूमती जिसके यह जो सरमाएदारी है यह जो यम-सा नेता है, मतदाता की लाचारी है उसे मिटाने और बदलने की करनी तैयारी है। जारी है-जारी है अभी लड़ाई जारी है।

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Rajiv Nayan Bahuguna

वैसे मैं स्वयं को एक राजस्थानी अधिक मानता हूँ , क्योंकि राजस्थान ने ही मेरी सुधियों को घुटनों के बल चलना सिखाया , लेकिन जन्मतः मैं उत्तराखंड का निवासी होने के तथ्य से भी नहीं मुकर सकता . मेरे गृह प्रदेश की ग्रह दशा जन्म से ही वक्री है . सत्तारूढ़ कांग्रेस ने संभवतः आत्म विसर्जन का निश्चय कर लिया है , इसी लिए उत्तराखंड में विजय बहुगुणा अपने अक्षम्य दंभ और जन द्रोही रवैय्ये के बावजूद स्थानापन्न है. साथियो , यदि यथास्थिति विद्यमान रही , तो कमर कसो , और गण शत्रुओं को दफा करो . चीड और विजय बहुगुणा उत्तराखंड की मिटटी और पानी के दुश्मन हैं . दोनों बाहरी प्रजाति हैं , इनका उन्मूलन करो , तभी हम आर्थिक , सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से आत्म निर्भर हो पायेंगे .

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  • You, Surendra Grover, Salman Rizvi, Sudhakar Uniyal and 39 others like this.

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  • Rajiv Nayan Bahuguna भाई चीड स्थानीय प्रजाति नहीं है , इसे अपने आर्थिक लाभ के लिए अंग्रेजों ने रोपा था , और विजय बहुगुणा को ज़म्मिने कब्जाने के लिए दिल्ली के दलालों ने थोपा

  • 2 hours ago · Like · 5

  • Sheeshpal Negi per vijay bhauguna to esthaniya hai

  • 2 hours ago · Like · 1

  • Puran Singh Bhandari क्योकि विजयी बहुगुणा की बहिन रीता बहुगुणा भी हाई कमान मै अच्छी पैठ रखती है। शिला दीक्षित की तरह वो हाई कमान को तब पता चला जब वो 25500 से हारी। यही हाल अब उत्तराखंड मै भी होने जा रहा है।

  • about an hour ago · Like · 2

  • Jitendra Bisht पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी दोनों पहाड़ के काम नही आरही है

  • about an hour ago · Like · 2


चन्द्रशेखर करगेती

17 hours ago ·

  • एक ग्याडू मुखबिर की कुछ ख़बरें...
  • खबर न० 01 :- रेस में रोड़ा बने होटल
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  • बल भैजी, सूबे में इन दिनों सियासी रेस चल रही है । इस रेस में राज्य की एक बड़ी मैडम भी भागीदारी कर रही हैं । उम्र काफी अधिक हो गई है और कभी-कभी दिमाग भी साथ छोड़ने लगता है, चाहती कुछ हैं और जबान से कुछ और निकलता है, इसके बाद भी रेस लगा रही हैं । चूंकि रेस सियासी है, इस कारण उम्र को कौन पूछ रहा, रफ्तार तो आ ही जाती है । ऊपर से किसी चिरकूट ने समीकरण भी समझा दिया है, कि बड़ा मुकाम हासिल करने के लिए चौरतरफा सहयोग की दरकार होती है ।
  • बल भैजी, चिरकूट ने मैडम को समझा दिया गया है कि तीन तरफा सहयोग तो है ही, यानी तीन समीकरण तो अपने पक्ष में पहले से हैं, बस चौथे समीकरण यानी दिल्ली दरबार का दिल और जीत लो । बाजी और कुर्सी दोनों आपकी l यह बात मैडम की समझ में तुरंत आ गई और निकल पड़ीं दिल्ली दरबार की परिक्रमा करने ।
  • इधर मैडम दिल्ली को निकली और उधर मैडम के विरोधी सर्किट भी सक्रिय हो गए । उन्होंने मेडम के खिलाफ पोल-खोलो अभियान चला दिया । मैडम दिल्ली में जाकर अपने लिए इमारत खड़ी कर आती हैं और इधर, पोल खोल सर्किट पार्टी दिल्ली पहुंचकर उस इमारत को ध्वस्त कर देती है । मैडम के होटलों से लेकर उनके चिंटुओं की हरकतें तक दिल्ली दरबार में मय सबूत मुहैया करा दी गयीं ।
  • अब दिल्ली के गलियारों में प्रदेश के एक खास इलाके में बने मैडम के होटलों को कौन नहीं जानता और ये भी जानता है कि इन्हें नियम कायदे को ताक पर रखकर इन्हें बनाया गया है ।
  • मुखबिर की मानें तो अब मैडम को खुद भी लगने लगा है कि रेस जीतने की उनकी संभावना लगातार कम होती जा रही है । वैसे भी रेस में हिस्सा लेने के कारण नुकसान ही नुकसान हो रहा है, और चिंटू लोग परेशान हो रहें है वो अलग से । इस कारण वह अब अपना गेम समेटने में लग गई हैं । यानी होटलों और चिंटूओं ने मैडम का गेम बिगाड़ दिया ।
  • खबर न० 02 :- अलर्ट मोड में वजीर साहब
  • ========================
  • बल भैजी, सियासतदांओं का महिला प्रेम कोई नई बात नहीं है । खासकर उत्तराखंड तो शुरू से ही इन चीजों के लिए सुर्खियों में रहा है । बड़े से बड़े सियासी दिग्गज इस रोग के शिकार हुए और अपनी फजीहत कराई । कुछ पुराने किस्से तो अब भी चटखारे लेकर कहे और सुने जाते हैं ।
  • हालिया किस्सा एक वजीर साहब का है । वजीर साहब नए हैं और युवा भी । जोड़-गुणा के गणित ने जोर मारा तो वजीर की कुर्सी भी मिल गई । कुर्सी मिलने के कुछ ही दिन हुए थे कि दिल्ली दरबार से एक फरमान आया । फरमान था दिल्ली की एक बाला को नौकरी पर रखने का । नए नवेले वजीर साहब, ऊपर से दिल्ली दरबार का फरमान । वह ना नहीं कर पाए ।
  • लड़की को अपने ही ऑफिस में एडजस्ट करना पड़ा । उस लड़की ने आफिस का कामकाज कितनी कुशलता से किया यह तो वजीर साहब ही जानें पर जैसे ही उसने आफिस संभाला वजीर साहब का गेटअप ही बदल गया । देखते ही देखते छोरा पहाड़ का से लाट साहब जैसे दिखने लगे । खैर कोई बात नहीं.।
  • सबकुछ ठीक ठाक चलता रहा था पर जब से सीडी कांड हुआ वजीर साहब पूरी तरह से एलर्ट मोड पर आ गए हैं । ठोंक बजाकर काम करने लगे हैं । अपने आफिस की बाला से तो इस अंदाज में बात करते हैं जैसे वह बिजली के नंगे तार पर पैर रख रहे हों । मजाल है कि उससे बात करते समय वजीर साहब मुस्करा दें ।
  • मुखबिर की मानें तो दरअसल वजीर साहब को लगता है कि पूरा जाल उन्हीं के लिए बिछाया गया है । उन्हें रंगे हाथ पकड़ने की साजिश हो रही है । चूंकि वजीर साहब खुद को थोड़ा बहुत सैद्धांतिक भी मानते हैं और अपनी इमेज को लेकर सतर्क भी रहते हैं । इस कारण गरम दूध में मुंह जलाने के बदले मट्ठे को भी फूंक-फूंककर पीने लगे हैं ।
  • खबर न० 03 और अंत में..... वे दो बड़े अफसर कौन ?
  • ==============================
  • बल भैजी, सूबे के हाई प्रोफाइल सेक्स स्कैंडल की तपिश भले ही कम हो गई हो, पर यह आग अंदर ही अंदर अब भी सुलग रही है ।
  • सचिवालय के दो बड़े हाकिम तो जेल के अंदर हो चुके हैं अब दो और हाकिमों के नाम सामने आ रहे हैं । इन्हें लेकर चर्चाओं का बाजार गरम है।
  • कहते हैं कि इन दोनों ने भी बहती नदी में जमकर गोते लगाए हैं । चूंकि दोनों बहुत बड़े हाकिम हैं, इस कारण खाकी भी उन तक पहुंचने का साहस नहीं जुटा पा रही है ।
  • साभार : दैनिक जनवाणी
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  • -Palash Biswas ऎसी खबरें और चाहिए।लगातार चाहिए।शैली मारक है।जारी रखिये

  • about a minute ago · Like

  • Palash Biswas तोपंदाजी जारी रखिये।

TaraChandra Tripathi

अरविन्द केजरीवाल चक्रव्यूह के बीच में केवल रथ के पहिये के बल पर संघर्ष करता अकेला अभिमन्यु बाकी हम लोग या पांड्वों का नपुंसक आक्रोश. असलियत वही अट्ठाहास करता दुर्योधन ' सूच्याग्रं न दास्यामि बिना युद्धेन केशव. . चिचियाता राहुल और दहाड़्ता मोदी. धैं कस.

वैसे आप की नीति भी कुमाऊनी के तात्ते खूँ जल मरूं तो नहीं है. लगे हाथ संसद की हतपतास. आप के भीतर भी तो कई बाप हैं जो केवल चुनाव जीतने के मकसद से इससे जुड़े हैं. बिन्नी तो आपने देख ही लिया.

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  • You, Kiran Tripathi, Umesh Chandra Pant and Lokesh Pande like this.

  • Umesh Tiwari अरविंद चक्रव्यूह में अकेला नहीं है, संसद का चुनाव लड़ना ज़रूरी है। अगर चुनाव चक्रव्यूह है तो मोदी, राजीव भी नहीं बचेंगे।

  • 3 hours ago · Edited · Like

  • Prakash Tripathi Agree with u sir. Lokshabha election is not Delhi assrmbly election.Kejriwal is facing great difficulty in running Delhi.With so many imatured and opportunist around him how he will lead the country.

  • 2 hours ago · Like

H L Dusadh Dusadh

मित्रों!इंडिया टुडे (हिंदी)का नया अंक आज बाज़ार में आ गया है.यदि आप विश्व कवि ढसाल के कद्रदान हैं,यह अंक जरुर खरीदें.इसमें ढसाल साहब से जुडी दुर्लभ सूचनाएं व तस्वीरे तो छपी ही है,मेरा भी एक खास लेख है.मैंने इस लेख में बताया है कि दलित और मुख्यधारा के बुद्धजीवियों की उपेक्षा के चलते ढसाल साहब 'नोबेल 'पुरस्कार जीतने से वंचित रहे.ढसाल में ही नोबेल विजेता होने की सबसे अधिक खूबियाँ रही,ऐसा मेरा लेख साबित करता है.

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  • Ak Pankaj, Pramod Ranjan, Hiralal Rajasthani and 40 others like this.

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  • Hare Ram Singh क ई बार ऐसा हुआ है कि प्रतिभाशाली बहुजन पीछे रह गये और दाँतनिपोरन महाराज चौबे आगे चले गये

  • 4 hours ago · Like · 1

  • Rakesh Yadav Kya Sir aap chhoto ke muh lagste hai ye manuvadi kisi sc st obc ks samman nahi ket sakate

  • 4 hours ago · Like · 1

  • Banwari Paswan PLZ, TELL ABOUT DHASAL KI UPLABDHI SAMAZ KO UTHANE ME

  • 2 hours ago · Like

  • Dilip C Mandal @rakesh yadav ji, 2012 में मरने वालों में राजेंद्र यादव और ओम प्रकाश वाल्मीकि का जिक्र खोजने से आपको निराशा ही हाथ लगेगी. 2013 में मरने वालों की लिस्ट में खोजिए. दोनों नाम प्रमुखता से और पूरे सम्मान के साथ दर्ज हुए मिल जाएंगे.

  • about an hour ago · Like

  • Palash Biswas खरीद लीजिये।नेट पर भी पढ़ स‌कते हैं।

  • a few seconds ago · Like

  • Palash Biswas कोधन्यवाद,दुसाधजी को छापने के लिए।

  • a few seconds ago · Like

  • Palash Biswas दिलीप को।

H L Dusadh Dusadh

Finding myself-dhasal-2

'I will share with you the secret of my success. I never compared myself with anyone else .I never consulted anyone else on whether what I was writing was right or wrong. I wrote as I felt all the way.the important thing was to find one's own ways of writing.the only rule I followed was not to miss in my writing any of the subtleties and nuanse of the life I lived.for what makes one speak or write is the themes that create an excruciating turmoil inside you, heighten your sensitivity ,and leave you tenderly troubled . This is the short of inner disturbance from which my poem come.

Both my indivisual and my collective life have been through such tremendous upheavals that if my personal life did'nt have poetry to fall back on I would not have reached thus far.i would have become a top gangster,the owner of a brothel,or a smuggler.'

I am here now only because my poetry has brought me up to this point in my life.The biggest influence on me has been that of major European poets. It was the Marathi little magazines that made me aware and awake.when I regarded myself victim of the caste system,it was the little magazines where I found a refuge that I could have faith in.

I have led a head-on kind of life .i have always done what I felt I must do.i have not run away.therefore ,when I got involved in the life of the child of a prostitute ,I have friendly re;lationship with her.i have friendly relationship with a pimp, too.i am so nautral and non-judgememtal .a deep belief that humanity is a person's greatest source of strength is ingrained in me.that is where I come from.this is why I was able to capture in my work such nice nuances of life.golpitha is only a observation.-namdeo dhasal

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TaraChandra Tripathi

16 hours ago ·

  • अब तक कुल बारह बार विमान यात्राएँ करने का अवसर मिला है। दो बार अमरीका गया। चार यात्राएँ कुवैत एयरवेज के नाम रहीं। दिल्ली से चले तो कुवैत तक आधे से अधिक यात्री रोटी.रोजी की तलाश में मध्यपूर्व की ओर प्रस्थान करते हुए दिखे। सामान के नाम पर अधिकतर के पास गठरियाँ थीं। लेकिन जब कुवैत से न्यूयार्क की ओर चले तो विमान भी चकाचक और यात्री भी। गठरियाँ कुवैत में ही उतर चुकी थीं। सहयात्रियों में कुछ अल्प परिधाना गौरांग बालाएँ और कुछ असूर्यपश्या महिलाएँ। शेख। नख से शिख तक जैसे अंधकारीय या वैधव्य की तरह रंगहीन श्वेत परिधान में आच्छन्न। भोजन करते हुए भी हल्का सा पट इतना उठता था कि प्रकाश भी भीतर ताक झाँक न कर पाये। उनके बीच हम जैसे अधिकतर लोग, कुछ मध्यम परिधाना लिपिस्टिका महिलाएँ। आजीवन शाकाहारी होने और शाकाहारी होने की सूचना अंकित कराने पर भी परिचारक की भूल से कुछ ऐसा अंगीकार कर बैठे कि पहले ही ग्रास में जिह्वा को गोवंश की भनक लग गयी।
  • अगली छः विमान यात्राएँ ऐअर इंडिया से कीं। दो बार जापान के लिए और एक बार ब्रिटेन। विमान में लगा ही नहीं कि हम घर से बाहर हैं। अधिकतर यात्री और विमान पत्तन कर्मियों से लेकर विमान परिचारकों तक भारतीय। पहली बार निर्मला जी दिल्ली से ही अस्वस्थ चल रहीं थी। काफी कष्ट में थीं। दवाएँ थीं तो सही, पर वैमानिकी नियमों के डर से उन्हें सामान में रख दिया गया था। तब पता लगा कि आवश्यक दवाएँ अपने साथ रखी जा सकती है।
  • इस बार की यात्रा वर्जिन ऐटलांटिक के विमान से की। कुछ नये अनुभव हुए। इधर दो तीन साल में विमान पत्तनों पर सुविधाओं का काफी विस्तार हो चुका है। टैक्सी से उतरते ही परिचारक मिल जाते हैं। दो सौ रुपये का टिकट लीजिए। आपका सामान परिचारक वहन करेगा और सीधे सीधे संबंधित विमान कंपनी के पटल पर ले जाएगा। आपको केवल उसका अनुसरण करना है। अस्वस्थ है तो तो पहियों वाली कुर्सी हाजिर है। पूरी तरह निःशुल्क। और साथ में वाहक भी। इस सुविधा को देख कर पूर्णांग भी विकलांगों का अभिनय करते हुए से दिखे। प्रव्रजन पटल से पार होते ही लगभग एक किलोमीटर से भी अधिक दूरी तक विभिन्न विमान सेवाओं के प्रतीक्षालय हैं. इसलिए वृद्धों विकलांगों और रुग्णों के लिए बग्धी की भी व्यवस्था की गयी है। पर जब सुविधा मिल ही रही हो तो अभिनय में क्या जाता है। हीथ्रो विमानपत्तन पर बग्धी नाम सुन कर आश्चर्य हुआ। बग्घी या बैटरी चालित रिक्शा, जिसमें पाँच या छःयात्रियों के बैठने की व्यवस्था होती है। निर्मला जी की रुग्णता के कारण अपनराम भी विकलांग सेवा अंगीकृत करनी पड़ी।
  • इस सुविधा के व्यामोह में विदेशी मुद्रा लेना ही भूल गये। जब तक याद आयी, हम सीमा पटल को पार कर परदेशी हो चुके थे। अब कुछ नहीं किया जा सकता था। जेब में केवल पिछली यात्रा से बचे तीन पाउंड थे। हीथ्रो विमानपत्तन पर ब्रिटिश सिम खरीदने के लिए भी न्यूनतम पाँच पाउंड की आवश्यकता होती। गनीमत यह थी कि अजित ने टैक्सी की व्यवस्था कर रखी थी। केवल उसे फोन करने की आवश्यकता पड़ सकती थी। खैर जो होगा देखा जाएगा के अन्दाज में आगे बढ़ गये।
Sumit Guha

LAST JOURNEY

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  • हीथ्रो आव्रजनपटल से मुक्त होते ही विदेशी विनिमय पटल की तलाश की। पाउंड भारत में 86 रुपयेकी दर से उपलब्ध था। पर इस पटल पर 111 रुपये की दर से मिला। पूरे बारह हजार रुपये में 105 पाउंड और कुछ खिरची से संतोष करना पड़ा। जैसे ही आगे बढे टैक्सी चालक के हाथ की पटिृका में निर्मला जी ने मेरा नाम देख लिया। चैन भी मिला और उतावली में ठगे जाने का अहसास भी। यह ठगी नहीं थी। खुला खेल था। रसीद साथ में थी। मरता क्या न करता का खेल। नही ंतो....जाये ंतो जायें कहाँ....
  • इस बार की विमान यात्रा में बाराती होने का सा अनुभव हुआ। सारी यात्रा खाते पीते ही गुजर गयी। जो चाहिए हाजिर है। दरिद्र सम्पनों या इकानामी श्रेणी के यात्रियों के लिए भी बोदका की सौगात है। न पीने वाले भी चखने के मूड में हैं। पिछली यात्राओं में तो कुछ अपेक्षा करने पर परिचारकों या परिचारकाओं के चेहरे पर कुछ मलिनता का आभास हो जाता था पर इस बार ऐसा नहीं लगा। क्षमा करें, 'अतिथि देवो भव' की थ्योरी तो हमारे पास है पर प्रैक्टिकल हम लोगों ने इनके लिए तो नही छोड़ दिया है?
  • दीवाली से पहले नरहरि का स्नान होता था। नहाने के बाद दादी के साथ मैं भी नरहरि नरहरि पाप पराये घर पुन्य हमारे घर का उच्चारण करते थे। कहीं यहाँ भी वही मंत्र तो नहीं है सिद्धान्त हमारे घर, व्यवहार उनके घर....
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झारखंडी भाषा संस्कृति अखड़ा

दिल्ली में पले बढे जार्ज के पिता रेमिस केरकेट्टा गुमला के दरगांव और मां जबेरिया तिग्गा झडगांव की हैं। पिता कृषि मंत्रालय में काम करते थे। उनका निधन हो चुका है। पांच भाई बहनों में वह सबसे छोटे हैं। पढायी लिखाई दिल्ली के सहोदय सीनियर सेकेंडरी स्कूल में हुई। पहली बार स्कूल के एनुअल फंक्शन में गाने का अवसर मिला। इसके बाद चर्च के कई कार्यक्रमों में भी गीत गाये। 12वीं के बाद दिल्ली के एक डांस ट्रूप और 'बिंदास ब्वायज' बैंड का हिस्सा बने। वर्ष 2008 में जब मुंबई की एक एयरलाइंस में फलाइट पर्सर की नौकरी मिली तो इसने उनके सपनों को पंख दिया।

मुंबई में धूम मचा रहे हैं जार्ज केरकेट्टा - गुमला के झडगांव और दरगांव से नाता - चीन, बैंकाक और कोरिया में भी जमाया है रंग मुंबई की पार्टियों में धूम मचाने वाल...See More

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S.r. Darapuri

फर्जी पुलिस मुठभेड़ राज्य द्वारा नागरिकों की सुनियोजित हत्याएँ हैं. इस में पुलिस और राज्य की साम्प्रदायिक मानसिकता की भी भूमिका है. अतः पुलिस को राजनेताओं के नियंत्रण से मुक्त कर जनता के प्रति उत्तरदायी बनाने के लिए पुलिस सुधारों को लागू करना बहुत ज़रूरी है.

आमिर खान के "सत्यमेव जयते" सीरियल के आगामी एपिसोड में पुलिस सुधारों का मुद्दा ही उठाया गया है ताकि पुलिस को शासक वर्ग की पुलिस की जगह जनता की पुलिस बनाया जा सके.

My story Troubled Galaxy Destroyed dreams: हेडली और पाकिस्तान सच्चा, अदालत और सीबीआई झूठी- वाह...

troubledgalaxydetroyeddreams.blogspot.com

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Reyazul Haque with Abhishek Srivastava

लीजिए Vishnu भाई, आपका सपना पूरा हुआ. पहली किस्त पोस्ट कर दी गई है. आगे की पोस्टें भी आती रहेंगी. उम्मीद है कि आप कहानी पूरी करेंगे.

हाशिया: विरोध प्रदर्शन: विष्णु शर्मा की कहानी/पहली किस्त

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Sumit Guha added a new photo.

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Palash Biswas

http://antahasthal.blogspot.in/2014/01/blog-post_17.html

अंतःस्थल - कविताभूमि: पारो का अवसान

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कथा देवदास के आत्मध्वंस केंद्रित है।पुरुषवर्चस्व की कथा में पारो देवदास की छाया है।उसी छाया में ही उसका वजूद है।

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Palash Biswas

http://www.hastakshep.com/intervention-hastakshep/views/2014/01/14/%E0%A4%87%E0%A4%B8-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%82-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%86%E0%A4%96%E0%A4%BF%E0%A4%B0

इस बाजारू राजनीति की आखिरी मंजिल भुखमरी

hastakshep.com

भारत में अस्पृश्यता और जातिव्यवस्था दरअसल नस्ली भेदभाव की फसल है पलाश विश्वास इस महादेश में दो विश्वविख्यात अर्थशास्त्री नोबेल विजेता हैं। डॉ. अमर्त्य सेन और डॉ. मोहम्मद युनूस। दोनों जायनवादी युद्धक विश्व व्यवस्था के डॉ. मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह आहलूवालिया और आनंद शर्मा से बड़े कारिंदे हैं। उनका क...

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Jeffrey Dean via SystemicCapital.com

Overseas support to Naxals alarms govt

systemiccapital.com

NAGPUR: Left wing groups abroad have stepped up support for the Indian Naxalite movement and their so-called people's war. Some recent developments, including formation of the 'International Commit...

Like ·  · Share · January 17 at 8:14pm

Satya Narayan

भारत के मज़दूरों का माँग-पत्रक आन्‍दोलन

यह नयी पहल इस मामले में महत्वपूर्ण है कि मज़दूर अलग-अलग झण्डे -बैनर के तले नहीं बल्कि 'मज़दूर माँग-पत्रक आन्दो़लन' के एक ही साझा बैनर के तले अपनी माँगें रख रहे हैं। अलग-अलग मालिकों से लड़ने में मज़दूर खण्ड–खण्ड में बँट जाते हैं जिसका सीधा फ़ायदा मालिकों को होता है। इसलिए 'मज़दूर माँग-पत्रक आन्दोलन' पूरे मज़दूर वर्ग की माँगों को देश की हुक़ूमत के सामने रख रहा है।

http://www.workerscharter.in/workers-charter

Workers' Charter - Workers' Charter Movement

workerscharter.in

मज़दूर माँग-पत्रक आन्‍दोलन का परिचय Please scroll down for English version भारत की शहरी और ग्रामीण मज़दूर आबादी असहनीय और अकथनीय परेशानी और बदहाली का जीवन बिता रही है। इसमें असंगठित क्षेत्र के ग्रामीण और शहरी मज़दूरों तथा संगठित क्षेत्र के असंगठित मज़दूरों की दशा सबसे बुरी है। उदारीकरण-निजीकरण के बीस…

Like ·  · Share · January 17 at 9:49pm

Priyanka Vidrohi

Protest against the visit to JNU of Pranab Mukherjee, the executioner of Afzal Guru and the titular head of the killer Indian state. Assemble at the Paschimabad bus stop, 18th January, 10. 30 am

Like ·  · January 17 at 10:35pm

Satya Narayan

काम की तलाश में लगातार नयी जगहों पर भटकते रहने और पूरी ज़िन्दगी अनिश्चितताओं से भरी रहने के कारण प्रवासी मज़दूरों की सौदेबाज़ी करने की ताक़त नगण्य होती है। वे दिहाड़ी, ठेका, कैजुअल या पीसरेट मज़दूर के रूप में सबसे कम मज़दूरी पर काम करते हैं। सामाजिक सुरक्षा का कोई भी क़ानूनी प्रावधान उनके ऊपर लागू नहीं हो पाता। कम ही ऐसा हो पाता है कि लगातार सालभर उन्हें काम मिल सके (कभी-कभी किसी निर्माण परियोजना में साल, दो साल, तीन साल वे लगातार काम करते भी हैं तो उसके बाद बेकार हो जाते हैं)। लम्बी-लम्बी अवधियों तक 'बेरोज़गारों की आरक्षित सेना' में शामिल होना या महज पेट भरने के लिए कम से कम मज़दूरी और अपमानजनक शर्तों पर कुछ काम करके अर्द्धबेरोज़गारी में छिपी बेरोज़गारी की स्थिति में दिन बिताना उनकी नियति होती है।

http://www.mazdoorbigul.net/Charter-of-demand-education-series-6

माँगपत्रक शिक्षणमाला - 6 प्रवासी मज़दूरों की दुरवस्था और उनकी माँगें मज़दूर आन्दोलन के एजेण्�

mazdoorbigul.net

काम की तलाश में लगातार नयी जगहों पर भटकते रहने और पूरी ज़िन्दगी अनिश्चितताओं से भरी रहने के कारण प्रवासी मज़दूरों की सौदेबाज़ी करने की ताक़त नगण्य होती है। वे दिहाड़ी, ठेका, कैजुअल या पीसरेट मज़दूर के रूप में सबसे कम मज़दूरी पर काम करते हैं। सामाजिक सुरक्षा का कोई भी क़ानूनी प्रावधान उनके ऊपर लागू नहीं हो…

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Vijay Kumar Singh

WAKE UP

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Umar Khalid

AAP and its so called change. DSU's critique of the same! Abhinava Srivastava

Democratic Students' Union: The Façade of AAP: An emergent 'saviour', not of the common masses,...

dsujnu.blogspot.com

Even almost a month after the Aam Aadmi Party formed the government in Delhi, the dust around it refuses to settle down. The media has been abuzz since the declaration of the Delhi election results about the success and spread of the AAP and their prospects in the upcoming Lok Sabha elections. This ...

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Satya Narayan

वह अपने को प्रगतिशील और जनवादी कहता है तो सिर्फ इसलिए कि आज साहित्य के बाज़ार में इसी ''प्रगतिशीलता'' और ''जनवाद'' की कीमत है, इसलिए कि निर्वीर्य बुर्जुआ समाज 'अन्त के दर्शन' के अतिरिक्त अब और कोई भी नारा नहीं दे सकता, और इसलिए भी कि प्रबुद्ध और जागरूक पाठक आज भी प्रगतिशील माने जाने वाले साहित्य की तलाश करता रहता है। साथ ही, वह यह भी भली-भाँति समझता है कि आज भी अपने को वामपन्थी कहना ही साहित्य के इतिहास में स्थान पाने का पासपोर्ट है। वह प्रगतिशील और जनवादी लेखकों और जन संस्कृति कर्मियों के संगठन, संघ और मंच बनाता है, पर इन शब्दों का निहितार्थ तो दूर, शायद शब्दार्थ तक भूल चुका है।

http://ahwanmag.com/archives/1709

प्रगतिशील साहित्य के युवा पाठकों से . . .

ahwanmag.com

वह अपने को प्रगतिशील और जनवादी कहता है तो सिर्फ इसलिए कि आज साहित्य के बाज़ार में इसी ''प्रगतिशीलता'' और ''जनवाद'' की कीमत है, इसलिए कि निर्वीर्य बुर्जुआ समाज 'अन्त के दर्शन' के अतिरिक्त अब और कोई ...

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Vijay Kumar Singh via Greenpeace India

CONGRESS / GOVERNMENTS ARE THE ENEMIES OF THE ENVIRONMENT & THE PEOPLE WHO OPPOSING THIS LOOT , ARE BEING , RAPED & KILLED, IN THE NAME OF LAW & ORDER .

Amnesty, Greenpeace see red in Moily's green clearances - India - dna

dnaindia.com

Amnesty International India on Wednesday asserted that recent changes to India's environmental clearance procedures are likely to undermine the human rights of communities affected by mining projects. Greenpeace India, on the other hand, has demanded Moily's resignation (as environment minister) sin...

Like ·  · Share · January 16 at 7:23pm

Tajinder Heer via Akhil Kumar

माँगपत्रक आन्दोलन की ओर से दिल्ली के सभी मज़दूरों को इंक़लाबी ललकार! - Workers' Charter Movement

workerscharter.in

पहली बार दिल्ली में किसी सरकार या मुख्यमन्त्री ने मज़दूरों से कुछ ठोस वायदे किये हैं। लेकिन ये सभी वायदे अपने आप पूरे नहीं हो जायेंगे। हम मज़दूरों को हमसे किये गये वायदों की याददिहानी करानी होगी। क्योंकि बिना जन-दबाव के शायद ही दिल्ली सरकार ये वायदे पूरे करे। सरकार ये वायदे पूरे करके हम पर कोई अहसान...

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Vidya Bhushan Rawat

जिस बड़ी संख्या में वर्णधर्मी विशेषज्ञ पत्रकार, बुद्धिजीवी, सामाजिक आंदोलन आदि लोग केजरीवाल की शरण में नतमस्तक हो रहे हैं मैं उनकी बुद्धिमत्ता पे हैरान नहीं हूँ क्योंकि मंडल के प्रथम चरण में १९९० में सबने जब अपने विचारधारा का बाहरी कपडा उतारा तो अंदर से मनुवादी जनेऊ साफ़ दिखाई दी. आज आप को शक नहीं होना चाहिए इसीलिये शुद्रो और दलितो में भी जनेऊधारी अभी उधर दिखाई देंगे। इस बात को कहने में कोई विरोधाभास नहीं के भारत में वामपंथी आंदोलन के खात्मे के लिए ये जनेऊधारी छद्म वामपंथी जिम्मेवार हैं जिन्होंने मार्क्सवाद को ब्राह्मणवाद का एक्सटेंशन बना दिया और समय मिलने पर पलटी मारने में भी देरी नहीं की. देखते हैं के संघ के 'शुद्ध' ब्रह्मणो के साथ हमारे मार्क्सवादी और समाजवादी ब्राह्मण कैसे तालमेल बिठाते हैं। दुखद है के भारत में आज भी हमें विभिन्न विचारो को इन नजरिये से देखना पड रहा है क्योंकि अरविन्द भाई कहते हैं के उन्हें तो पता ही नहीं के लेफ्ट और राईट क्या होता है. हकीकत यही है के जहाँ से अरविन्द केजरीवाल आते है वहाँ विचार वगैरिअह कुछ नहीं सिर्फ वहाँ व्याज और लाभ ही विचारधारा है.

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  • Reyazul Haque, चन्द्रशेखर करगेती, Ashok Dusadh and 40 others like this.

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  • Rajesh Tyagi सच यह है कि एक तरफ स्तालिनवादियों ने और दूसरी तरफ अम्बेडकरवादियों ने क्रान्ति के उद्देश्य को भारी क्षति पहुचाई है। इन्होने सर्वहारा को, जिसमें दलित भी शामिल हैं, पूंजीवाद के साथ बांधे रखा है और पूँजीवाद ने जातीय उत्पीडन को सुरक्षित रखा है।

  • 9 hours ago · Edited · Like · 1

  • Manoj Kumar janeo to sosak aur gai sosak ka sat pratish pahchan bhi to hai.

  • 9 hours ago · Like

  • Aniket Wagh jay bhim jay joti

  • 8 hours ago · Like

  • Ved Kala निसंदेह 'आप' अभी अनुभवों कि कमी के चलते बहुत सी समस्यों से घिरी हुई है । लेकिन साथ ही हमें ये भी स्वीकार करना पड़ेगा कि ये वो लोग हैं जो परम्परागत बातो; सामान्य शब्दों मैं कहें तो- ये कमंडल और मंडल कि राजनीती मैं अपनी आस्था नहीं जताती । 'आप' तो भारतीय...See More

  • 6 hours ago · Like · 1

चन्द्रशेखर करगेती

बल भैजी,


जब बीमारी का इलाज डॉक्टर करने से मना कर दे, तब ग्याडू को भी धार्मिक अनुष्ठान याद आते है, और शायद एक ग्याडू के साथ ऐसा हो तो उसके पास करने को ऐसा ही कुछ होता, बल भैजी द्यप्त नचाओ रे !


अब भैजी किसी राज सत्ता में भागीदारी करने वाले नेताजी के साथ ऐसा हो जाये और वे जन सेवा की बजाय तांत्रिक अनुष्टान को ज्यादा महत्व दे तो समझ लेना चाहिए कि चिरकुट लोग सक्रिय हो गये, वरना नेताजी के लिए जन सेवा से बड़ा तो कोई और अनुष्ठान था ही नहीं ?


बल भैजी, अगर नेताजी को लगने लगा है कि अब जिंदगी के कुछ दिन शेष बचे हैं तो जनता के लिए ना सही अपनी पार्टी के वोट बैंक के लिए ही कुछ कर जाओ ! भगवान रक्षा करे नेताजी की, अभी तो उन्होंने ग्याडूओं के समाज का बहुत सा कल्याण करना है !


बल भैजी, राज्य में जन सेवा न होने के पीछे कारण यह कि अपने नेताजी तांत्रिक टाईप के सर्किटों के कब्जे में हो गये हैं, तब ऐसे में जन सेवा को कौन पूछे ? वैसे सूना है कि एक बड़े साहब ने अपने तांत्रिक भाई को खास इस अनुष्ठान के लिए दून के एक फ़ार्म हाउस में टिकाया हुआ है, उन्होंने नेताजी को घुट्टी पिलाई है कि उनके भाई के तान्रिक अनुष्ठानों से बड़े बड़े भूत भाग गये, बीमारी तो छोटी चीज हुई बल, सो नेताजी भी वहीं पर आसन लगाये बैठे है ! एक ग्याडू कल गप्प हांक रहा था, बल कि दून के ऐसे ही फ़ार्म हाउसों में अपने कई मोटी तोंद वाले साहबों ने भी कई बार अपने गर्मी वाले भूत को भाग्वाया है, अभी उनमें से कुछ लोग जन्नत की सैर भी कर आयें है, कुछ अभी लाइन में लगे हुए है ?


चेतु भूला, तु देख तो देरादून मा, ज़रा तांक झाँक कर तो किसी फ़ार्म हाउस में, आज बड़ा धुँवा उठा रहा है बल वहाँ, बड़े बड़े साहब भी अपनी चिलम के साथ इस अनुष्ठान में पहुंचे है जिगर की आग शांत करवाने, तु भी जा तो यजमान बन कर, क्या पता पंडित जी तेरा भी कुछ भला करवा दें ?


देख आ तो भुला, कैमरा मत ले जाना, नेता जी और साहब उसे देख बिदक जाते है बल !

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H L Dusadh Dusadh

मित्रों!आज,१९ जनवरी के अमर-उजाला में 'आधे रास्ते पर बुझा एक एक तारा,फिर भी मिलती रहेगी रौशनी'शीर्षक से जेएनयू के प्रो.तुलसीराम का परिनिवृत नामदेव ढसाल पर एक लेख छपा है.लेख पठनीय है.आज लखनऊ में 'इंडिया टुडे' का ताज़ा अंक लेने गया तो बुद्धू बन गया.यहाँ २२ जनवरी अंक हाथ लग गया.बाद में पता चला ढसाल साहब पर इसमें मेरा जो लेख छपा है,उसका डेट २९ जनवरी है और मुख पृष्ठ पर हिस्ट्री के सबसे काइयां और लोकतंत्र को एनजीओ के हाथो में सौंपने की साजिश करनेवाले केजरीवाल की तस्वीर है.मेरे अनुरोध की रक्षा करने में कहीं आप बुद्धू न बन जाईयेगा .

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Abhishek Srivastava

Pls endorse the statement and share it widely if you agree.

जनपथ : An appeal to the organisers and participants of Jaipur Literature Festival

junputh.com

Unlike ·  · Share · 7 hours ago ·

Virendra Yadav

केजरीवाल ने कहा कि -

"यह विचारधारा क्या होती है जी ! यह लेफ्ट और राईट क्या होता है जी ?

अपनी पार्टी तो शंकर जी की बरात है जी ..काम होना चाहिए जी . बहस होनी

चाहिये जी . अपना देश में इतनी डायवर्सिटी है जी . यह तो अच्छा है जी कि

मेधा भी हैं और मीरा भी हैं जी ! प्रशांत भी हैं और विश्वास भी हैं जी ..अपन की

विचारधारा स्वराज है जी ."

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  • You, Mohan Shrotriya, Dilip Khan, Hyder Ginwalla and 82 others like this.

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  • Tahira Hasan aap ,s refusal to define its ideology is really a big problem. their strategy on issues like dalit ,minority and neoliberalization is not clear. how can they goahead and function with out ideology

  • about an hour ago · Like · 3

  • Nagendra Chaudhari Wah re farjiwal

  • about an hour ago · Like

  • Harinarayan Thakur डाइवर्सिटी तो सबसे बड़ी विचारधारा है- जीओ और जीने दो. फिर दूसरी पार्टी, व्यवस्था और विचारधारा को गरिया कर सत्ता में आना कौन-सी डाइवर्सिटी है ?

  • 52 minutes ago · Like · 1

  • Sunil Yadav यहां आप भी है और खाप भी है जी...(संदर्भ: दिल्ली सरकार के कानून मंत्री सोमनाथ भारती की अगुवाई में आप कार्यकर्ताओं द्वारा अफ़्रीकी नागरिकों के साथ नस्लवादी और खापवादी व्यवहार)

  • 41 minutes ago · Like · 2

  • Palash Biswas शून्यता का महातिलिस्म गढ़ा जा रहा है।

  • a few seconds ago · Like

Ak Pankaj shared आदिवासी साहित्य - Adivasi Literature'sphoto.

महज लिखने की कला में पारंगत हो जाने से यह आवश्यक नहीं है कि आपने विषय की परंपरा और संस्कृति को भी बखूबी जान लिया है. आदिवासी साहित्य वही है जो आदिवासियत की परंपरा और उसके विश्वदृष्टिकोण के अनुरूप लिखा गया है. समष्टि आधारित आदिवासी ध्वनि, संगीत, भाषा, जीवन परंपरा और प्रकृति से अनजान लेखकों का साहित्य कभी भी आदिवासी साहित्य नहीं हो सकता. वह साहित्य तो आदिवासी साहित्य बिल्कुल नहीं है जिसे सिर्फ शोध, पर्यवेक्षण और कलात्मक कौशल से लिखा जा रहा है.

कुछ खास पेशों के साथ खास दक्षता और अनुभव की जरूरत होती है. यह दक्षता व अनुभव सिर्फ अध्ययन, पर्यवेक्षण और शोध से नहीं आती. हर पेशे का अपना एक सांस्कृतिक विश्व होता है. उसकी एक परंपरा होती है. इसलिए महज लिखने की कला में पारंगत हो जाने से यह आवश्यक नहीं है कि आपने विषय की परंपरा और संस्कृति को भी बखूबी जान लिया है. आदिवासी साहित्य वही है जो आदिवासियत की परंपरा और उसके विश्वदृष्टिकोण के अनुरूप लिखा गया है. समष्टि आधारित आदिवासी ध्वनि, संगीत, भाषा, जीवन परंपरा और प्रकृति से अनजान लेखकों का साहित्य कभी भी आदिवासी साहित्य नहीं हो सकता. वह साहित्य तो आदिवासी साहित्य बिल्कुल नहीं है जिसे सिर्फ शोध, पर्यवेक्षण और कलात्मक कौशल से लिखा जा रहा है. - वंदना टेटे

Like ·  · Share · 12 · 2 hours ago ·

Gladson Dungdung

When the state grabs your land in the name of development,

When your democratic government snatch your livelihood resources for the sake of the nation,

When the state displaces you from your ancestors' territory in the name of greater common good,

When the police fire on you to capture your natural resources for the interest of the nation,

And, of course, When the State hand over your resources to the corporate sharks in the name of economic growth,

Just keep silent if you want to be a good citizen,

When you see an innocent person being killed by the police,

Just close your eyes, mouth and ear,

Think that the brutal killing of innocent person is done in the pride of the nation,

Indeed, you'll be the nationalist one,

When you are tortured by the security forces,

Just bear the pain, suffering and sorrow for the sake of the nation,

You'll be the mostly saluted,

When you hear about a women being raped by the brave soldiers,

Just clap for their bravery work,

You'll be called a proud citizen,

However, if you believe in human rights, fundamental freedom and social justice,

Stand up against the state sponsored heinous crime, violence and terrorism,

And of course, take for guaranteed,

The exercising of your right to freedom of expression is a full proof of being the anti-state,

You'll be branded as extremist, their supporter or at least their sympathizer,

You are the anti-national like me my friends.

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Jagadishwar Chaturvedi

जयपुर साहित्य महोत्सव-4-


दलित साहित्य के लेखक नीरव पटेल ने कहा, हिंदू धर्म में जातियों को सबसे ज्यादा बढ़ावा दिया जाता है। अन्य धर्मों में भी ऐसी स्थिति है। ऐसे लोग दलितों के लिए बात करते हैं, जिन्हें उनके बारे में जानकारी तक नहीं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक विंग समरसता मंच समाजों में दलितों के लिए काम करती है। वे खुद कम्युनल हैं और समरसता की बात करते हैं। गुजरात में विपरीत परिस्थितियां हैं, जिसमें दलित साहित्य सृजन करना बड़ा कठिन है। वह मनु लैंड है, मोदी लैंड है। इरफान खान ने साहित्यकार ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविताओं के अंश पढ़े। कहा, सिनेमा सपनों का सिनेमा है। यथार्थ से दूर ले जाने का सिनेमा है। इसमें दलित साहित्य का बोलबाला कम है।

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Reyazul Haque and 2 other friends shared a link.

Dalit musician banned at Guruvayoor temple | The Indian Express

indianexpress.com

A dalit percussion artiste was banned from performing within the precincts of the famous Sree Krishna Temple at Guruvayoor in Kerala, bringing back the spectre of caste-based discrimination. The temple in Thrissur district is open to all Hindus.

  • Reyazul Haque via Meena Kandasamy
  • How caste continues to define Hinduism

  • According to Babu, "Certain temple staff members belonging to upper class Hindu spotted the Dalit performing at the temple. They complained to the temple authorities, who asked me through an agent not to repeat the performance in the temple. I have been banned on caste basis."'

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H L Dusadh Dusadh

about an hour ago ·

  • Namdeo Dhasal: A poet with a panther's hunger for justice
  • Comment Share Text size: A A AJanuary 15, 2014 18:29 IST
  • Sudheendra Kulkarni pays tribute to friend, poet and Dalit activist Namdeo Dhasal who passed into the ages on Wednesday.
  • I was woken up early in the morning by an sms beep on my mobile. Unusual for a message to arrive so early, I said to myself. It was from H L Dusadh, a tireless Dalit activist from Delhi and a friend of several years. "Dear sir! yeh message sms karte huye meri ankhon se jhar-jhar ansoo bah rahe hain. pata nahi yah jaan kar aap par kya gujregi. vishv kavi namdeo dhasal nahi rahe. cancer se aakrant dhasal saheb ne adhe ghante pahle, 4.30am, bombay hospital me antim saans li." (With tears in my eyes, I have to inform you that world poet Namdeo Dhasal is no more. He passed away at Bombay Hospital at 4.30 am).
  • Only a few weeks ago, Dusadh and I had called on Dhasal at the hospital, where he had been battling cancer for over three months. The news of his demise left me sad. A good human being has left this world. The world of Indian poetry has lost a revolutionary voice that roared for justice and human dignity, and against caste oppression in Hindu society.
  • And the Dalit movement in Maharashtra and India is today without an honest leader who had been boldly navigating through a terrain of dogma and confusion to explore new ideological intersections.
  • When I last met this greatest Dalit poet in Marathi, I was both sad and happy. Sad because hospital is not the place where you ever wish to see someone you admire and not the place where you ever expect to see someone who has all his life been a courageous combatant against social inequality and injustice. The founder of Dalit Panthers, he was himself a panther in his poetry and political activism -- hungry for a society without exploitation and injustice. Seeing a person like him, lying in the ICU, was distressing.
  • But I was also happy because, as soon as he saw me, a smile blossomed on Namdeoji's face, overcoming the pain of cancer treatment and the discomfiture of a nasal catheter. Just a week earlier, he was in a very critical condition. The doctors had given up hope. Yet, to the great relief of his near and dear ones, he recovered enough to welcome visitors with a friendly smile and even engage them in a conversation.
  • The first thing he asked me was: "How is Atalji?" It moved me deeply. He had great admiration and respect for former prime minister Atal Bihari Vajpayee. He remembered that when he was similarly hospitalised in Bombay Hospital in 1981, Atalji had visited him and wished him speedy recovery. "Atalji is a rare leader with a large and kind heart, a true poet-leader," he had told me in one of our meetings last year at his modest home in Andheri.
  • Although I was somewhat familiar with Namdeoji's poetry and journalistic writings -- in recent years, he had become a regular columnist at Saamna, a Marathi newspaper founded by the Shiv Sena -- it is only in the past few years that I had come to know him closely.
  • I first met him at a function in Mumbai organised by Dusadh, who is the founder of the Bahujan Diversity Mission. This broad platform of Dalit activists and organisations has been demanding that India's economic and business landscape must reflect our country's social diversity. In other words, the gross under-representation of Dalits, tribals and other backward classes in business, commerce and commerce-related professions must end, and these numerically large sections of our society must get their fair share in the nation's economic pie.
  • I supported this demand. Namdeoji, who spoke after me said something very significant. "For many years, we in the Dalit movement had been agitating over issues of emotive nature. But we did not pay enough attention to business and commerce. India's economic and social realities are now changing rapidly. Educated Dalit youth should not look only for government jobs. They should come forward, and prove their mettle by seizing the new opportunities being created by India's growing economy."
  • He went a step further and praised the establishment of the Dalit Indian Chamber of Commerce and Industry, a novel and farsighted initiative of Milind Kamble, a young Dalit entrepreneur, and Chandrabhan Prasad, a renowned Dalit thinker.
  • This is what had impressed me the most about Namdeoji, who was once described as the 'Poet of the Underground'. Unlike some Dalit intellectuals, he was non-doctrinaire in his thinking, and open to self-questioning. His deep veneration for Dr Babasaheb Ambedkar remained undiminished all through his life. Nevertheless, in private conversations with his friends and colleagues, he did not hide his disillusionment with the Ambedkarite movement in Maharashtra and the rest of India.
  • Last year, Namdeoji and his wife Mallika Amar Sheikh had invited me and my wife Kamaxi for lunch at their place. Since it was Diwali day, Malika had prepared a special festive meal. What amazed me was that the warm hospitality that we received had a typical Hindu touch.
  • I presented my book Music of the Spinning Wheel: Mahatma Gandhi's Manifesto for the Internet Age to Namdeoji. The book's theme intrigued him. He patiently listened to my explanation about the universality of Gandhi's message of truth and non-violence. I especially emphasised that there was a strong convergence in the advocacies of Gandhi and Ambedkar in matters of social justice. Namdeoji said, "I agree that Mahatma Gandhi was a great man. There is a need for the Ambedkarite movement to re-evaluate him." The significance of this remark will be better appreciated by those who know the bitter criticism that many Ambedkarites still reserve for the Mahatma.
  • Ill-health had chased Namdeoji, who founded the Dalit Panthers in 1972, for a good part of his 65 years. But he exhibited incredible will power to overcome many adversities in his life. And helping him in all his battles was his wife, who is the daughter of Amar Shaikh, a revolutionary poet who played a pivotal role in the Samyukta Maharashtra Movement in the late 1950s. Mallika is also a poet and writer in her own right.
  • More than his own health condition -- he had been suffering from myasthenia gravis for many years -- what had mellowed down this rebel in the latter part of his life was his anguished realisation that the Dalit movement in India had become directionless and leaderless. It had not only got splintered, but its various factions had been playing second fiddle to bigger national and regional parties.
  • The Communist movement had disillusioned him long ago. However, this painful development had a positive lesson for a non-dogmatic leader like him. He had concluded that the Dalit movement had to honestly introspect on its own shortcomings and explore new ideological directions. The posthumous publication of some of his writings might reveal his revisionist thought process.
  • When I met Namdeoji, for what was to be the last time, in Bombay Hospital, what made me especially happy was his indomitable hope in the future of the struggle for justice and equality. He said that the Dalit and non-Dalit sections of Indian society should work together even more closely to make a new breakthrough in the struggle. "When I come out of the hospital, this is what I wish to do," he said.
  • Alas, he could not come out of the hospital alive.
  • His last words, as he bade goodbye to me, were: Jai Bhim, Jai Bharat!
  • I saluted this gutsy but self-questioning poet with the same slogan. And I do so again today.
  • Here are a few lines from Namdeo Dhasal's poem Kamatipura. He lived in the early part of his life in Arab Galli in the vicinity of Kamatipura, the red-light area in old Mumbai's working class district. (Translated into English from Marathi by Dilip Chitre).
  • This is hell
  • This is a swirling vortex
  • This is an ugly agony
  • This is pain wearing a dancer's anklets
  • Shed your skin, shed your skin from its very roots
  • Skin yourself
  • Let these poisoned everlasting wombs become disembodied.
  • Let not this numbed ball of flesh sprout limbs
  • Taste this
  • Potassium cyanide!
  • As you die at the infinitesimal fraction of a second,
  • Write down the small 's' that's being forever lowered.
  • Here queue up they who want to taste
  • Poison's sweet or salt flavour
  • Death gathers here, as do words,
  • In just a minute, it will start pouring here.
  • O Kamatipura,
  • Tucking all seasons under your armpit
  • You squat in the mud here
  • I go beyond all the pleasures and pains of whoring and wait
  • For your lotus to bloom.
  • -- A lotus in the mud.
  • Sudheendra Kulkarni served as an aide to former Indian prime minister Atal Bihari Vajpayee between 1998 and 2004. He was also active in the BJP from 1996 to 2013, and worked closely with L K Advani. Kulkarni resigned from the BJP in January 2013. He welcomes comments at sudheenkulkarni@gmail.com.
  • Sudheendra Kulkarni Related News: Namdeoji, Dalit Panthers, Kamatipura, Sudheendra Kulkarni, BJP
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Amalendu Upadhyaya

खुफिया एजेंसियां लगातार सवालों में घिरे होने के बावजूद संसद के प्रति जवाबदेह नहीं हैं और चुनी गयी सरकार के समानांतर बिना जवाहदेह हुये एक अराजक और अमरीका-इजराइल जैसे देशों के हितों के आक्रामक रक्षक संगठन की तरह काम करने लगी हैं जो इस देश की संप्रभुता व स्वायत्ता को चुनौती देने जैसा है- रिहाई मंच

खुफिया एजेंसियों की संसद के प्रति जवाबदेही तय की जाये

hastakshep.com

राजनीतिक दलों के समक्ष अपने मुद्दे रखने के लिये रिहाई मंच आज से करेगा मंथन- मो0 शुऐब लखनऊ 19 जनवरी 2014। आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर अपने विभिन्न मुद्दों को लेकर देश की सभी राजनीतिक दलों से उन पर उनकी स्थिति स्पष्ट करने के लिये रिहाई मंच के लाटूश रोड स्थित कार्यालय पर आज से…

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Aam Aadmi Party

The Aam Adami Party has constituted a seven-member committee to formulate its economic policy. The members of this committee are:


1. Mr Aseem Srivastava : Aseem is a noted environmental economist. He has also authored the book "Churning The Earth: The Making Of Global India"


2. Ms. Atishi Marlena: She is a scholar and a member of Aam Adami Party's policy team


3. Mr. Dilip Pandey: He is Aam Adami Party's spokesperson and secretary of Delhi unit


4. Mr. Laveesh Bhandari: He is a leading economist and analyst.


5. Ms. Meera Sanyal: She is former CEO and Chairperson of Royal Bank of Scotland


6. Mr. Prithvi Reddy: He is member of Aam Adami Party National Executive


7. Mr. Sanjiv Aga: He is a former corporate executive

Like ·  · Share · 3,105418389 · about an hour ago ·

Ak Pankaj

हमारा अपना ही घर-राज्य जबरन छावनी और कटघरे में तब्दील कर दिया गया है. एकतरफा पूछताछ चल रही है और हम कभी भी मारे जा सकते हैं.


यह कार्रवाई कभी भी वैचारिक नहीं हो सकती साथियो.

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Jagadishwar Chaturvedi

जयपुर साहित्य महोत्सव में फिल्म अभिनेता इरफान ने कहा इनदिनों फिल्म की स्क्रिप्ट या कहानी महत्वपूर्ण नहीं है,महत्वपूर्ण है अभिनेता की 100करोड़ रुपये की कमाई दिलानेवाली इमेज। जो अभिनेता 100करोड़ रुपये या उससे ऊपर की कमाई करा सकता है लेखक तदनुरुप फिल्म कहानी लिख देता है। इससे कहानी और अभिनय दोनों गायब हो गए हैं । इस कथन में दम है धूम-3 इस कथन का आदर्श नमूना है। न कहानी, न अभिनय! सिर्फ सूँ-सूँ !!

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  • Ashutosh Singh, Jai Kaushal and 34 others like this.

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  • Syed Safder Hussain Suman साहब, जो बिकता है वही बाज़ार में दिखता है तो इसमे गलत क्या है, आज तमाम अभिनेता/निर्माता इसी काम में लगे है ।

  • 8 hours ago · Like

  • मनीष कुमार सिंह जय हो इसका अगला नमूना हो सकता है ....

  • 8 hours ago · Like

  • Arti Pandey चोरी जैसी असामाजिक गतिविधियों को भी महिमा मंडित कर न केवल लोकप्रियता हासिल की जा रही बल्कि सराहा भी जा रही है...

  • 6 hours ago · Like

Palash Biswas पंडित जी,तो आप जयपुर उत्सव की रपट दे रहे हैं।

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Uday Prakash

अरविंद केजरीवाल के ये दोनों इंटरव्यू देखने के बाद कोई भी यह मान लेगा कि स्टार जर्नलिस्ट भी एक ईमानदार जन-प्रतिनिधि के सामने कितना छोटा हो जाता है।

http://www.ndtv.com/article/india/don-t-think-somnath-bharti-made-racist-comments-arvind-kejriwal-tells-ndtv-highlights-472661

Don't think Somnath Bharti made racist comments, Arvind Kejriwal tells NDTV: highlights

ndtv.com

Delhi Chief Minister Arvind Kejriwal spoke with NDTV's Barkha Dutt.

Like ·  · Share · 15 hours ago ·

  • Pankaj Chaturvedi, Prakash K Ray, Koyamparambath Satchidanandan and98 others like this.

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  • View 34 more comments

  • Vijay Sharma Dradarsh Prakash, यह भी कि अरविंद जी की सादगी नमो -ममो के साथ वामो की तान्त्रिक गूढ, जटिल पेन्चदार, भयानक -बोगस, कान्चा-कऴवा ज्ञान सरणी को भी मुँह चिढाती ,अंगूठा दिखाती है ।

  • अपने काम की बात यही है। बाकी नमो -ममो कीचड़ लुन्ठित अपने में पहले से हैं ।

  • ...See More

  • about an hour ago · Like

  • Himanshu S Pandey ओह! मैं समझा था Mum के आगे O लगाया है आपने।:)

  • about an hour ago · Like

  • Ankit Francis Uday Prakash बुरा न मानिये तो..सुना है आप भी 'आप' ज्वाइन करने वाले हैं..??

  • 55 minutes ago · Like · 1

  • Manoj Khare Mai bhi 'Mamo' (hindi me) ko lekar Mummy par ataka hua tha...!!!

  • 37 minutes ago · Like

  • Palash Biswas उदय जी ,आप किस किसको ईमानदार मानते हैं,सूची देदें तो ईमानदारों को पहचान लेने में स‌ुविधा हो जायेगी।हमारे पास ऎसी दिव्य डृष्टि है नहीं।

  • a few seconds ago · Like

Abhinav Sinha

University Community for Democracy and Equality (UCDE) calls upon all students-teachers and karamcharis to join a

VICTORY MARCH, 9 AM, Kalina Campus, MU.

The revocation of suspension of Prof. Neeraj Hatekar is a huge victory for Campus Decmocracy! Long Live student-teacher-karamchari unity!

Please Join in Huge Numbers!

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Economic and Political Weekly

Can the Aam Aadmi Party (AAP) shirk the ills of crony capitalism when capitalism by nature, is crony?


An Economic and Political Weekly editorial:http://www.epw.in/editorials/can-aap-slay-dragon.html

Like ·  · Share · 60624 · 8 hours ago ·

S.r. Darapuri shared Lahore - The City of Gardens's photo.

Saadat Hassan Manto ws a great story teller !

Saadat Hassan Manto, died on January 18, 1955 in #Lahore, the most widely read short-story writer of the Urdu language. He is best known for his short stories, "Bu" (Odour), "Khol Do" (Open It), "Thanda Gosht" (Cold Meat), and his magnum opus, "Toba Tek Singh", born on 11 May 1912 at Samrala in Punjab's Ludhiana district in a Kashmiri Muslim family of barristers. In a literary, journalistic, radio scripting and film-writing career spread over more than two decades, he produced twenty-two collections of short stories, one novel, five collections of radio plays, three collections of essays, two collections of personal sketches and many scripts for films. Manto arrived in Lahore sometime in early 1948 from Bombay where his friends had tried to stop him from migrating to Pakistan because he was quite popular as a film writer. In Lahore, he lived near several prominent intellectuals and thus found a stimulating atmosphere around him. His only problem was how to cater for his family. Lahore at that time did not have many opportunities to offer. He was tried for obscenity half a dozen times, thrice before and thrice after independence. Some of Manto's greatest work was produced in the last seven years of his life, a time of great financial and emotional hardship for him. "A writer picks up his pen only when his sensibility is hurt." Saadat Hasan Manto to a court judge. ✔ Like Lahore - The City of Gardens to see more similar posts on your wall

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Reyazul Haque

पहले आप, पहले आप, फिर मोदी


Modi already has his model of development or business friendly approach in place. What was lacking was the right model in electoral politics: AAP has filled up that gap, providing the winning model of cementing lower class agency with upper middle class hegemony.

Pehele AAP, pehele AAP, phir Modi at Sanhati

sanhati.com

[Abstract : While AAP might undercut BJP/Modi, they are however part of the same tendency in Indian politics. It is directly linked to the new forms of (neoliberal) capital and the ongoing class struggle.]

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Shewli Hira shared #OccupySF's photo.

MONSANTO - the monster...

Just as the Pharaohs of old, the modern rulers and elitists seek to control your food supply. "There is no quicker way to a mans heart than through his mouth" as they say. If you don't get the reference to ancient Egypt. Instead of sounding like an ignorant fool in the commentary. I suggest you learn ancient history. Thanks (Z)

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Satya NarayanPrograssive writers association

'तुम बदलोगे, युग बदलेगा' -- गायत्री परिवार और युग निर्माण योजना वाले तो पहले से ही यह कह रहे हैं। आजकल कम्‍युनिस्‍ट आंदोलन को लगातार कोसने, विरक्ति प्रकट करने और नसीहत देने वाले कुछ पूर्व कम्‍युनिस्‍ट प्रोफेसर विचारक भी आध्‍यात्मिक मुद्रा में इस बात पर काफी बल दे रहे हैं, इधर-उधर यात्राएँ करके भाषण देते हुए मार्क्‍स से बुद्ध की ओर यात्रा कर रहे हैं।



'व्‍यक्तित्‍व-विकास का गुरुकुल' यानी 'अच्‍छे कम्‍युनिस्‍ट कैसे बनें!'

January 19, 2014 at 12:22pm

--कविता कृष्‍णपल्‍लवी

इन दिनों ब्‍लॉगों और फेसबुकों से बहुत सारी नयी-नयी सूचनाएँ मिलती रहती हैं और ज्ञान प्राप्ति होती रहती है।

कुछ लोग आत्‍मविकास, आत्‍म संघर्ष और व्‍यक्तित्‍व-विकास की काफी बातें कर रहे हैं। वैसे वे लोग स्‍वयं को पूरी तरह समाज-कार्य को समर्पित और मार्क्‍स से लेकर माओ तक को मानने वाला बताते हैं, पर उनका अमली काम कुछ अलग ही होता है। पहली बात, माओ ने भी 'स्‍व के विरुद्ध संघर्ष' (फाइट अगेन्‍स्‍ट सेल्‍फ') की, जीवन शैली-कार्यशैली में सुधार की और आत्‍मालोचना की बात की थी, पर वह ल्‍यू शाओ ची की 'अच्‍छे कम्‍युनिस्‍ट कैसे बनें' की हेगेलियन और निम्‍न पूँजीवादी कैरियरवादी लाइन से एकदम अलग थी। माओ का स्‍पष्‍ट ज़ोर था कि वर्ग संघर्ष की प्रक्रिया में सामूहिक तौर पर भागीदारी के दौरान ही यह सम्‍भव है। सिर्फ बंद कमरे की बैठकों, भाषणों, कक्षाओं से यह होने से रहा। 'चीज़ों को बदलो और चीज़ों को बदलने की प्रक्रिया में स्‍वयं को बदलो' -- माओ की द्वंद्वात्‍मक भौतिकवादी पहुँच ही सही संज्ञान सिद्धान्‍त है। मुझे तो यह समझ में नहीं आता केवल मानव सभ्‍यता का इतिहास-भूगोल वगैरह पढ़कर, लेखन-कला, भाषण देने की कला, शुद्ध हिन्‍दी और अंग्रेजी भाषा, उच्‍चारण आदि-आदि सीखकर कोई कम्‍युनिस्‍ट कैसे बन जायेगा? यही सब सीखकर वह सिविल सर्विसेज़ में जाने या किसी प्रा‍इवेट कम्‍पनी का योग्‍य अधिकारी बनने की भी तो सोच सकता है! ऐसे गुरुजी से यह जानने की उत्‍सुकता होती है कि अपने सुदीर्घ अध्‍यवसाय से अपने गुरुकुल से उन्‍होंने कितने ऐसे शिष्‍य तैयार किये, जो अपने समय, ऊर्जा और आय के एक अच्‍छे-खासे हिस्‍से को क्रान्तिकारी परिवर्तन के मुहिम में, कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में लगाते हों या पूरा जीवन समर्पित कर चुके हों। मेरा ख़याल है, एक भी ऐसा नहीं होगा। यह मध्‍यवर्ग बड़ा चालाक होता है। क्रान्ति के नाम पर किसी 'मिट्टी के माधो' से यदि मँगनी का ज्ञान मिल जाये, तो लेकर चलते बनो, अपना कैरियर बनाओ, बदले में गुरुजी को जीवन भर श्रद्धेय मानते रहो और कभी-कभार कुछ भौतिक मदद भी कर दो। दूसरी ओर यह भी हो सकता है कि जीवन में और कुछ कर पाने में और क्रान्तिकारी जीवन में भी विफल होकर गुरुजी ने आत्‍मतुष्टि के लिए यह वृत्ति चुन ली हो। मार्क्‍सवादी होने के साथ-साथ आम्‍प्‍टे, अन्‍ना, विनोबा टाइप संत बनने का जो अपना दोहरा आनंद है, वह अद्वितीय तो है ही! मुझे तो बस माओ की यह सीधी-सादी सी ही बात जँचती है कि लोगों को कहके नहीं करके सिखाना होता है और जिसने करके सीखा है, वही सिखा सकता है।

एक सज्‍जन से इसी विषय पर बात हो रही थी, उनका कहना था कि यदि हम और कुछ नहीं कर पाते तो समाज में कुछ तार्किक, संवेदनशील, जनवादी चेतना के नागरिक तैयार कर पायें तो यह भी तो एक प्रगतिशील काम है।  मेरा कहना  था कि नहीं, यह एक प्रतिगामी काम होगा। ऐसा ''प्रगतिशील बुर्ज़ुआ नागरिक'' इसी व्‍यवस्‍था की मशीनरी का ज्‍यादा अहम पुर्जा बनेगा, उसका स्‍थान नीति निर्धारण, योजना निर्माण और क्रियान्‍वय-प्रबन्‍धन में होगा। ऐसी कोई भी सुधार की कार्रवाई यदि क्रान्तिकारी परिवर्तन की किसी वृहत्‍तर योजना का जैविक अंग नहीं है, मात्र एक या कुछ व्‍यक्तियों का प्रयास है तो वह ख़तरनाक़ सुधारवादी कार्रवाई  के अतिरिक्‍त और कुछ नहीं सिद्ध होगा। यह कुल मिलाकर वही सड़ेला प्रतिगामी सिद्धान्‍त का एक रूप है कि स्‍वयं को बदलो और एक-एक नागरिक को बदलो, समाज बदल जायेगा। 'तुम बदलोगे, युग बदलेगा' -- गायत्री परिवार और युग निर्माण योजना वाले तो पहले से ही यह  कह रहे हैं। आजकल कम्‍युनिस्‍ट आंदोलन को लगातार कोसने, विरक्ति प्रकट करने और नसीहत देने वाले कुछ पूर्व कम्‍युनिस्‍ट प्रोफेसर विचारक भी आध्‍यात्मिक मुद्रा में इस बात पर काफी बल दे रहे हैं, इधर-उधर यात्राएँ करके भाषण देते हुए मार्क्‍स से बुद्ध की ओर यात्रा कर रहे हैं।

Saradindu Uddipan

Our Traditional Method of Food Preservation and Food Security.


Dayamani Barla,s Photo

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Aranya Ranjan

मित्रों बर्फ एक्सप्रेस तैयार है हनुमान चौक से थत्युड़ वाया जुड्डो जमुना पुल। जिसको भी बर्फ के मजे लेने हैं वो एक्सप्रेस के आवारा घुमन्तू ड्राइवरों से सम्पर्क कर सकते हैं।

Like ·  · Share · 2 hours ago ·

Vidya Bhushan Rawat likes an article on Indiatimes.

Shame. Where are the 'ministers' who have been roaming and raiding.. why cant they raid these shelter house.

Cold claims 6 lives on rainy night in Delhi - The Times of India

Indiatimes

Six homeless persons lost their lives to the chill and rain on Friday night. The bodies found one after another on Saturday around Kashmere Gate threw into focus the state's failure to make a shelter plan and a policy for the homeless

Like ·  · 11 hours ago via Indiatimes ·


Satya Narayan

13 hours ago ·

  • एक वरिष्‍ठ उम्रदराज महोदय हैं गिरिजेश तिवारी जो व्‍यक्तित्‍व रूपान्‍तरण की परियोजना चलाते हैं और अपने को खांटी मार्क्‍सवादी व तगड़े क्रान्तिकारी मानते हैं (अब ये दीगर बात है कि आज तक उनकी इस परियोजना से कोई क्रान्तिकारी नहीं निकला, सब के सब बुर्जुआ प्रतिष्‍ठानों में सेटल हो जाते हैं), उनके क्रान्तिकारी साहित्‍य को जनता के बीच पहूँचाने को लेकर अजीब से उपायों से हम परेशानी में हैं। उनका कहना है कि क्रान्तिकारी साहित्‍य को जनता के बीच मुफ्त में बांटा जाना चाहिए। निश्चित रूप से ऐसा किया जाना चाहिए पर जब तक समाजवादी सत्‍ता नहीं आती तब तक ये तभी सम्‍भव है जब या तो बड़े बड़े कॉर्पोरेट घराने आपको सहयोग करें (जैसे की वो गीता प्रेस को करते हैं) या गिरिजेश तिवारीजी ही कोई जादु कर दें। अब गिरिजेशजी ये भी बोल रहे हैं कि इन्‍होने ऐसा किया भी है (शायद इन्‍होने एक या दो छोटी बुकलेट छपवाकर बांटी थी, जो एक अकेले व्‍यक्ति के आर्थिक बलबुत्‍ते पर भी संभव है) पर अगर आपको हजारों शीर्षकों की हजारों प्रतियां बांटनी हो तब आपका रास्‍ता क्‍या हो। क्‍या आप ऐसा कर सकते हैं। तब आपके पास एकमात्र रास्‍ता यही होगा कि किताबों की छपाई कीमत कम से कम किताब खरीदने वाले से वसुली जाय (उसमें भी ऐसा हो सकता है कि बिल्‍कुल जरूरी किताबों की कीमत छपाई से कम रखी जाय व जनसहयोग से उसकी पूर्ति की जाय) व अन्‍य खर्च जनसहयोग से जुटाये जायें। पर हमारे वरिष्‍ठ महोदय को इससे सख्‍त आपत्ति है। उनका कहना है कि ये तो व्‍यापार हो जायेगा। इससे तो टर्नओवर आने लग जायेगा।
  • तब फिर क्‍या किया जाय। एकमात्र रास्‍ता यही है कि क्रान्तिकारी किताबें ना छापी जाय, लोगों तक ना पहूँचायी जाय व तब तक बैठकर "व्‍यक्तित्‍व विकास" की ऐसी परियोजनाएं चलायी जायें जैसी हमारे गिरिजेशजी चला रहे हैं,उससे निकले सिविल सर्विस अधिकारी शायद कभी ऐसी क्रान्तिकारी किताबें छापने में हमारी मदद कर दें।
  • इस संदर्भ में गिरिजेश जी का वक्‍तव्‍य नीचे दे रहा हूँ।
  • (क्रान्तिकारी साहित्य छापना और उसे अधिकतम लोगों तक पहुँचाने का प्रयास करना निश्चय सी सराहनीय काम है. यह क्रान्ति की सेवा है. हम सभी लोग साहित्य से ही प्रेरित होकर इन्कलाब की धारा में आये हैं. मगर इसे व्यापार बनाना किसी भी तरह सराहनीय नहीं है. हमारी पीढ़ी ने जिन किताबों से सीखा, वे बेची नहीं गयी थीं. वे बाँटी गयी थीं.
  • मैंने भी अर्थव्यवस्था सही होने पर थोड़ा ही सही साहित्य छापने और बिखेरने का काम किया है और आगे भी दुबारा आर्थिक परिस्थिति के अनुकूल होते ही प्रकाशन के काम को लगातार करते रहने का मेरा मन है. मगर मैं उन सब किताबों के पहले पन्ने पर ही लिख देता हूँ –
  • "यह पुस्तक अमूल्य है. इसके प्रकाशन का उद्देश्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण से युवाओं को लैस करना है. इसको किसी भी हालत में किसी के द्वारा खरीदा या बेचा नहीं जा सकता."
  • अपना साहित्य छापने और वितरित करने के लिये क्रान्तिकारी संगठन अपने आर्थिक ढाँचे का निर्माण और इस्तेमाल करते रहे हैं. अधिक से अधिक उस को आगे भी प्रकाशित करते रहने के लिये लोगों से प्रतीकात्मक सहयोग राशि लेते रहे हैं. न कि साहित्य के व्यापार से अपना आर्थिक ढाँचा खड़ा करते हैं. और कीमत कम होना तो व्यापार की एक शर्त भर है. कम कीमत पर अधिक टर्न ओवर होता है. इतनी सी बात तो हर व्यापारी जानता है. और व्यापार तो व्यापार ही है. वह पूँजीवाद ही है. व्यापार क्रान्ति नहीं हो सकता. अगर एक क्रान्तिकारी भी व्यापार ही करता है, तो मुझे उसको 'क्रान्तिकारियों में व्यापारी और व्यापारियों में क्रान्तिकारी' ही कहना पड़ रहा है और मेरी समझ से ऐसा कहना गलत नहीं है.)
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    • Harsh Vardhan, Kalpesh Dobariya and 27 others like this.

    • Satya Narayan उनका मुल्‍यांकन तो मैने किया ही नहीं है। वैसे उनकी व्‍यक्तित्‍व विकास की परियोजना का सार संक्षेप यहां है।

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    • 'व्‍यक्तित्‍व-विकास का गुरुकुल' यानी 'अच्‍छे कम्‍युनिस्‍ट कैसे बनें!'

    • --कविता कृष्‍णपल्‍लवी   इन दिनों ब्‍लॉगों और फेसबुकों से बहुत सारी नयी-नयी सूचना...See More

    • By: Kavita Krishnapallavi

    • 13 hours ago · Like · 4

    • Satya Narayan जहां तक जनचेतना की हकीकत बयां करने की बात है तो दुनियाभर के भगोड़े और निठल्‍ले अपने अपने बिलों में बैठे बैठे क्रान्तिकारी परियोजनाओं पर बहुत सारा कीचड़ उछालते रहते हैं। जनचेतना की सेहत पर ना तो कल उससे असर पड़ा था और ना ही आज पड़ेगा।

    • 13 hours ago · Like · 5

    • Satya Narayan जनचेतना की हकीकत बयां करने वालों से कभी एक बार भी ये पूछ कर देखों की उनमें से क्‍या दो चार भी आज मज़दूर बस्तियों में काम कर रहे हैं।

    • 13 hours ago · Like · 3

    • Mayank Tripathi iss desh ke leftist movement ki sabse badi trasdi hai ye..ek doosre ki taang kheechne mein marx ko hazaron baar sooli pe chadha diya aapne...aap shreshth hai..par kam se kam apne hi ek comrade ka samman karna seekh le...aur maine to girijesh tiwari ko musahar bastiyon mein jaate kayi baar dekha..khair yaha bahas chalana meri mansha nahi..

    • 13 hours ago · Edited · Like · 2

    • दिनेशराय द्विवेदी अगर कुछ लोग ऐसा करते हैं कि इस तरह की किताबें छाप कर बाँटते हैं तो उस में क्या ऐतराज हो सकता है। जो बेच कर पहुँचा सके वह बेच कर पहुँचा दे। पर क्रान्ति को किताबे मदद करती हैं लेकिन क्रान्तियाँ किताबों की मोहताज नहीं होतीं।

    • 13 hours ago · Like · 5

    • Satya Narayan दिनेशराय द्विवेदी जी ऐसा करने से हमें कोई दिक्‍कत नहीं है। अगर कोई ऐसा कर पाता है तो अच्‍छी बात है पर आज के दौर में व्‍यापक तौर पर हजारों किताबों को कैसे पहूँचाया जाय, बात ये हो रही थी। जनचेतना आज सैंकड़ो किताबें हिन्‍दी अन्‍ग्रेजी व पंजाबी में प्रकाशित कर रही है। अब उनको मुफ्त बांटने का कोई मैकेनिज्‍म हमें नजर नहीं आ रहा सिवाय इसके कि कम से कम लागत वसुली जाय। पर इन महोदय को उससे भी दिक्‍कत है।

    • 13 hours ago · Like · 4

    • दिनेशराय द्विवेदी यदि किसी को ऐतराज है तो हुआ करे। आप अपना काम करें। पहले लिखी तो जाएँ। अनेक बार तो ऐसा होता है कि किताबों को मुफ्त बाँटने के लिए छपवाने वाले तैयार रहते हैं। इन विवादों का कोई अर्थ नहीं है। जैसे भी हो चेतना के विस्तार का काम होता रहना चाहिए।

    • 13 hours ago · Like · 2

    • Shamshad Elahee Shams इस पोस्ट से भारत में क्रान्ति की लपटे उफन उफन कर पड़ेंगी ...... मुबारक हो सत्य नारायण जी.

    • 12 hours ago · Like · 3

    • Ashwini Aadam क्या बात है बात, बदलाव की हो रही है और बदलाव के नैतिक पक्ष को लोग भूल से गए हैं खुद को क्रांतिकारी घोषित करना शायद दुनिया का सबसे आसान काम हो गया है याद रखिये महोदय कि आपके इस अनर्गल प्रलाप से हर व्यक्ति अपना काम करता रहेगा बस आपका समय और ऊर्जा नष्ट हो...See More

    • 11 hours ago · Like · 3

    • Kalpesh Dobariya Satya Narayan भाई : इनसे पूछियेगा तो अपने NGO टाइप व्यक्तित्व-विकास-परियोजना के लिए चंदा इकठ्ठा करते हैं की नहीं ? बहुतो से १०००-१००० की बंधी रकम लेते हैं । कुछ कुछ ५ हज़ार से १० हज़ार प्रति माह बंधी रकम भेजते हैं । बिना कोई क्रांति-कार्य किये , बिन किसी...See More

    • 11 hours ago · Like · 3

    • Ashwini Aadam ये सारी बाते पूछने की जरुरत नहीं है कितना पैसा कहाँ से आता है और कहाँ खर्च होता है ये सारी बाते उनहोंने पहले ही सार्वजनिक किया हुआ है p.c.p. और उनकी वाल पर पहले जानकारी दुरुस्त करिए फिर बात करिए.....

    • इसका अंदाजा शायद पहले ही था उन्हें आखिर तथाकथित वामपंत और इसके अनुचरों को वे तब से देख और समझ रहे हैं जब शायद आप और मैं पैदा भी नहीं हुए थे ।

    • 11 hours ago · Like · 1

    • Kalpesh Dobariya बात पैसे इकट्ठे करने की नहीं हैं। बात इन पैसो के उपयोग की हैं । जिसे इस दक्यानुसी , निम्न पूंजीवादी , सामाजिक सुधारवादी आर्गेनाईजेशन पे खर्च करते हैं ? ... और अश्विनी आदम , एक पोस्ट दिख दो इनकी , जिसमे इन्होने क्रांति के मिचानिच्स के समीकरण पर रौशनी डाली हो । इन्हें स्त्री-दलित विमर्श के नाम पर TRP बटोरना आता हैं बस ।

    • 11 hours ago · Like

    • Kalpesh Dobariya पूछो उनसे, आज तक क्रांति-प्रतिक्रांति के मुद्दे पर, वर्ग-चेतना के आधार पर दो शब्द भी लिखे हैं क्या ? हर-बार स्त्री और दलित विमर्श से TRP बटोरते रहते हैं । मार्क्स और लेनिन ने क्रांति के लिए ये रास्ता कहा सुझाया ? ये गैर-पार्टी-वादी आत्मसंतुष्टि के लिए नए नए नुस्खे आजमाते हैं , क्रांति के नाम से भी कांपते हैं ये । मेरा इन्हें एक ही सुझाव हैं की औरो को पढ़ाने से पहले खुद मार्क्स-लेनिन को पढ़ ले , तो बेहतर होगा ।

    • 11 hours ago · Like

    • Ashwini Aadam तो आप की नज़र में क्रान्ति क्या है.....

    • सामाजिक सुधार सामाजिक बदलाव का प्रथम अध्याय है मित्र....

    • लेनिन या मार्क्स ने भी आरंभिक स्तर पर इसी बात पर जोर दिया यह बताने की ज़रूरत नहीं है मुझे आप 'क्रान्तिकारी' हैं मैं तो बस अभी विचारों को तपा रहा हूँ .......See More

    • 11 hours ago · Like · 1

    • Ashwini Aadam और अब बहस की गुंजाइश नहीं है पहले अपनी जानकारी और धरणा मज़बूत बनाइये फिर बात करते हैं.......

    • आपसे बात कर के अच्छा लगा....

    • कोई तो है जो समाज के बारे में सोच रहा है ...See More

    • 11 hours ago · Like

    • Kalpesh Dobariya खुद बदलो-समाज बदलेगा ! निरा आदर्शवाद ! आप भी उन्ही की तरह मार्क्सवाद की ABCD तक नहीं जानते ! लेनिन ने सुधारवाद पर कहा- किस किताब में जोर दिया , ये आप नहीं बता पायेंगे , मैं जानता हूँ , क्योंकि ना लेनिन ने ऐसा कहा हैं , ना आपने उसे पढ़ा हैं । और इनका संग...See More

    • 11 hours ago · Like

    • Ashwini Aadam हा हा हा हा हा

    • कभी कभी पूंजी के व्यवहार से भी आते हैं " आपके मजदूर"........

    • 11 hours ago · Like

    • Masaud Akhtar ओह... सब बुर्जुआ प्रतिष्ठान में शामिल हो गए जिससे कि आप क्रान्ति करने में विफल रहे शायद....नहीं तो अब तक आप क्रांति कर चुके होते ... आपके साथ मेरी पूरी सहानुभूति है

    • 9 hours ago · Like · 2

    • Samar Anarya कामरेडों पर हमलों से फ़ुरसत मिले तो कभी भाजपाइयों, संघियों और वैसे ही अन्य लोगों पर भी नजरेइनायत कर दिया करें Satya Narayan जी।

    • 6 hours ago · Like · 2

    • Satya Narayan Samar Anarya जी कॉमरेडों पर कोई हमला नहीं किया जा रहा है। क्रान्ति के नाम पर ये जो कुछ करते हैं और जो आरोप ये दुसरों पर लगाते हैं उसका एक जवाब दिया गया हैं। अगर आपको इतनी ही कॉमरेड की चिन्‍ता हो रही है तो उन्‍हे बोलिये कि दुसरों पर अनर्गल आरोप ना लगायें।

    • 6 hours ago · Like

    • Samar Anarya अरे वाह। यहाँ मुझे, Shamshad भाई, Masaud भाई और तमाम लोगों को जो लगा वह आपको लगा ही नहीं।

    • 6 hours ago · Like · 2

    • Samar Anarya बाकी आप क्रान्ति क्यों नहीं कर पाये? इसके लिये भी हमीं ज़िम्मेदार हैं?

    • 5 hours ago · Like · 1

    • Abhaya Pathak जनता का काम जनता के पैसे(सहयोग) से ही होना चाहिये ,किसी ब्यक्ति विशेष के द्वारा नही । हमने तो परचे तक 50 पैसे की सहयोग राशि लेकर सफलता के साथ छापे और बाँटे हैँ ।

    • एक बात और , आजादी के समय टाट-बिड़ला की गोद मे बैठ उनके सहयोग से बनी तथाकथित " जनकल्याण कारी मिश्रित अर्थब्यवस्था " का सच और परिणिति हम जानते ही है ।

    • 4 hours ago · Edited · Like · 1

    • Harsh Vardhan satya bhaie main aapki baat se poori trh sehmat hoon.krantikaari sahitya jo asal men chapta hai usmen vigyapan nhi hote isliye vo seedhe tour pe janta ke sehyog se hi chap sakta hai.aapki yeh baat bilkul sahi hai ki sahitya ka mulya uski lagat ke aas-paas rakh kar hi use krantikaari pryaas mana jana chahiye anytha vo vyapaar ho jayegaa.

    • 4 hours ago · Like · 1

    • Satya Narayan Samar Anarya जहां तक भाजपाइयों और संघियों पर हमले की बात है तो आप ये देख लीजियेगा। इसके अलावा भी बहुत कुछ है पर अभी यही सही । http://ahwanmag.com/archives/3425

    • सितम्‍बर-दिसम्‍बर 2013

    • ahwanmag.com

    • देश में नये फासीवादी उभार की तैयारी भारतीय राज्यसत्ता का निरंकुश एवं जनविरोधी चर...See More

    • 4 hours ago · Like · 2

    • Satya Narayan Shamshad Elahee Shams Samar Anarya गिरिजेश तिवारी जी को आप ये सुझाव देते तो अच्‍छा रहता क्‍योंकि पहले कमेंट उन्‍ही का था। बाकी अगर कोई भी गलत सुझाव हमें देगा या हमारे उपक्रम पर अपनी बात रखेगा तो हमारा ये भी अधिकार है कि हम अपनी बात रखें। आपको अगर इस बा...See More

    • 4 hours ago · Like · 2

    • Satya Narayan Samar Anarya जी इतना चिन्‍ता मत कीजिये। आपके रोकने से क्रान्ति नहीं रूकेगी और ना ही आपके चा‍हने से हो जायेगी। ना ही हम ये दावा कर रहे हैं कि हम आज ही क्रान्ति करने वाले थे जो आप जैसे महा‍रथियों ने रोक दी।

    • 3 hours ago · Like · 7

    • Satya Narayan Masaud Akhtar जी इतनी चिन्‍ता मत कीजिये। गिरिजेश तिवारी के शिष्‍य बुर्जुआ प्रतिष्‍ठानों में शामिल हुए हैं। भारत में क्रान्तिकारी नौजवान (भले ही वो संख्‍या में कितने ही कम क्‍यों ना हो) आज भी काम रहे हैं और अपने जैसे लोगों को जुटा रहे हैं। जहां तक क्रान...See More

    • 3 hours ago · Like · 3

    • Somendra Dhayal sir , aapse ek request hai jo krantikari literature hai use aap pdf me uplabdh karwane ki kosis kare Satya Narayan

    • 3 hours ago · Edited · Like

    • Satya Narayan Somendra Dhayal उसकी भी तैयारी चल रही है। कुछ दिक्‍कतों के कारण अभी तक हो नही पाया है। पर आपको बिगुल और आह्वान की पीडीएफ नियमित मिल रही है ना ?

    • 3 hours ago · Like

    • Somendra Dhayal ok thanks sir ji,aahwan me is book ka link provide karwaye...(आरक्षण पक्ष विपक्ष और तीसरा पक्ष) Narayan

    • 2 hours ago · Edited · Like

    • Satya Narayan Somendra Dhayal Check reservation booklet now. Uploaded.

    • 2 hours ago · Like

    • Somendra Dhayal ok

    • 2 hours ago · Like

    • Somendra Dhayal thanks sir

    • 2 hours ago · Like

    • Masaud Akhtar भारत के क्रांतिकारी नौजवान क्रांतिकारी साहित्य को व्यापार बनाकर उसे बेचने के क्रांतिकारी कार्य संपादित करने में लगे हैं..... कृपया उनका हौसला अफजाई कर क्रान्ति को शीघ्र घटित होने में सहयोग करें Samar Anarya............ अब देखिये यहीं Satya Narain जी इसमें उलझ अपना कितना समय बर्बाद कर दिए... ये न होता तो कुछ कितानें बेच क्रान्ति को कुछ और पास ला दिए होते

    • about an hour ago · Like · 2

    • Satya Narayan भारत के ये क्रान्तिकारी नौजवान मात्र क्रान्तिकारी साहित्‍य को ही लोगों के बीच ले जाने में नहीं लगे हुए है बल्कि मज़दूर बस्तियों से लेकर विश्‍वविद्यालय कैम्‍पसों तक क्रान्तिकारी विचारों को लेकर संगठित करने में लगे हुए हैं। आप जैसे अकर्मक बुद्धिजीवियों को तो क्रान्तिकारी साहित्‍य लोगों तक पहूँचाने का उपक्रम एक व्‍यापार ही लगेगा क्‍योंकि आपको तो कुछ करना नहीं है।

    • about an hour ago · Like · 1

    • महाभारत जारी है अगर तिवारी जी का यह संकल्प है तो बड़ी अच्छी बात है, हम सभी को खुश होना चाहिए. जनचेतना या किसी और प्रगतिशील प्रकाशन ने बहुत सी क्रन्तिकारी किताबे एव साहित्य छापी है, खरीद कर मिहनतकस जनता के बीच वे वितरण कर सकते है. वे चाहे तो इस नेक काम के लिए चंदा भी मा...See More

    • about an hour ago · Like · 3

    • Masaud Akhtar जब क्रांतिकारी नौजवानों का ठेका आपने ले रखा है तो फिर हम अकर्मक के सिवा क्या हो सकते हैं भला ..... अकर्मक तक ठीक है पर बुद्धिजीवी नहीं हूँ सर जी

    • about an hour ago · Like

    • महाभारत जारी है इतना निराश मत होइए, क्रन्तिकारी काम करने के लिए बहुत बड़े श्रेणी का बुद्धिजीवी होना जरुरी नहीं है, दर्द होना चाहिय, पूँजी के विरुद्ध खड़ा होने का साहस होना चाहिए, जुल्मो सितम के खिलाफ घृणा होनी चाहिय और कुछ करने का जज्बा होना चाहिय. मिहनतकास वर्ग से जुड़ेगे तो रास्ता निकल ही आयेगा. अपने को अकर्मक कहने की नौबत नहीं आये गी.

    • about an hour ago · Like · 2

    • Masaud Akhtar मैं निराश नहीं हूँ महाशय ... और न ही कभी क्रांतिकारी होने का दावा किया है... जहां तक रही अकर्मक होने की बात तो महान क्रान्ति कर्म में लगे क्रांतिकारी महोदय द्वारा मेरे एक कमेन्ट से मेरे बारे में जान ली गयी तथ्यात्मक जानकारी है और मैं इतने महान क्रांतिकारी को गलत कैसे कह सकता हूँ

    • 56 minutes ago · Like · 1

    • महाभारत जारी है कामयाबी पास आने के लिए सिर्फ आँखों में जुल्मो सितम के खिलाफ नफ़रत और हाथों में पत्थर नहीं, पास में वैज्ञानिक समाजवाद की किताबे और उसे समझने की उत्कट जज्बा होना बहुत जरुरी है.

    • 41 minutes ago · Like · 2

Satya Narayan

क्रान्तिकारी आन्‍दोलनों से अपनी व्‍यक्तिगत कमजोरियों की वजह से भागे और साथ में बेईमान (कुछ ईमानदार भी होते हैं जो चुपचाप अपनी कमजोरी समझकर किसी और काम धन्‍धे में लग जाते हैं) पतित लोगों की आपसी एकता बहुत जल्‍द बनती है और तब एकमात्र काम इनके पास यही बचता है कि वर्तमान में क्रान्तिकारी परिवर्तन में लगे हुए या फिर लगने की सोचने वाले लोगों के बीच क्रान्तिकारी परिवर्तन की पूरी योजना को बदनाम करें। इसके लिए ये लोग तमाम तरह के व्‍यक्तिगत लांछन लगाते हुए घुमते रहते हैं।

वैसे गौर करने वाली बात तो ये है कि इनमें से कोई भी मज़दूर वर्गीय सक्रिय राजनीति से नहीं जुड़ता है बल्कि क्रान्तिकारी आन्‍दोलनों के लिए 'कन्‍सलटेन्‍सी फर्म' खोलना, मीडिया में अच्‍छे पदभार ग्रहण करना या फिर कोई एनजीओ खोलकर बैठना आदि आदि करते हैं।

Like ·  · Share · 23 minutes ago ·

जनज्वार डॉटकॉम

देशभर में भड़के सिख विरोधी दंगों में हजारों निर्दोष सिखों की जानें गयी थीं. पूरे देश में करीब 10 हजार से अधिक सिखों का नरसंहार हुआ. अकेले दिल्ली में ही 4 हजार से अधिक सिख मारे गए. दिल्ली के उच्च मध्यमवर्गीय रिहायशी इलाकों को योजनाबद्ध तरीके से निशाना बनाया गया. उनके गुरुद्वारों, दुकानों एवं घरों को लूटकर आग के हवाले कर दिया गया...http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-06-02/69-discourse/4716-opration-blue-star-kee-hakeekat-for-janjwar-by-arvind-jaitilak

Like ·  · Share · 23 minutes ago ·

Arvind Kejriwal

Three separate incidents related to law & order have come to light in recent weeks. The incident with the Danish woman, another one where a woman burnt alive and inaction against repeated complaints by residents of a drug racket. The SHOs refused to act on all those who were guilty. We met the home minister and asked for action against all three of them. If no action is taken, AAP MLAs will sit on a Dharna. We are demanding that accountability be fixed for inaction.


I request supporters & citizens NOT to come for this Dharna due to the republic day preparation in the area.

Like ·  · Share · 22,7492,6951,320 · 5 hours ago ·

Avinash Das

अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने 26 जनवरी के जश्‍न को जनविरोधी बता दिया है। यह तो बगावत है - भारतीय गणतंत्र से बगावत। तो क्‍या अरविंद केजरीवाल भगत सिंह, पाश और बाबा नागार्जुन की विद्रोही परंपरा के सिपाही हैं? सत्तर के दशक की अधूरी संपूर्ण क्रांति का यह एक्‍सटेंशन है। मुझे बाबा नागार्जुन की यह कविता याद आ रही है।


किसकी है जनवरी, किसका अगस्‍त है?

कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्‍त है?


सेठ है, शोषक है, नामी गला-काटू है

गालियां भी सुनता है, भारी थूक-चाटू है

चोर है, डाकू है, झूठा-मक्‍कार है

कातिल है, छलिया है, लुच्‍चा-लबार है

जैसे भी टिकट मिला, जहां भी टिकट मिला

शासन के घोड़े पर वह भी सवार है


उसी की जनवरी छब्‍बीस, उसी का पंद्रह अगस्‍त है

बाकी सब दुखी है, बाकी सब पस्‍त है


कौन है खिला-खिला, बुझा-बुझा कौन है

कौन है बुलंद आज, कौन आज मस्‍त है?

खिला-खिला सेठ है, श्रमिक है बुझा-बुझा

मालिक बुलंद है, कुली-मजूर पस्‍त है

सेठ यहां सुखी है, सेठ यहां मस्‍त है

उसकी है जनवरी, उसी का अगस्‍त है


पटना है, दिल्‍ली है, वहीं सब जुगाड़ है

मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है

फ्रिज है, सोफा है, बिजली का झाड़ है

फैशन की ओट है, सबकुछ उघाड़ है

पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है


गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो

मास्‍टर की छाती में कै ठो हाड़ है!


गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो

मज़दूर की छाती में कै ठो हाड़ है!


गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो

घरनी की छाती में कै ठो हाड़ है!


गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो

महल आबाद है, झोपड़ी उजाड़ है

ग़रीबों की बस्‍ती में उखाड़ है, पछाड़ है


धत् तेरी, धत् तेरी, कुच्‍छों नहीं! कुच्‍छों नहीं

ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है


ताड़ के पत्‍ते हैं, पत्‍तों के पंखे हैं

पंखों की ओट है, पंखों की आड़ है


किसकी है जनवरी, किसका अगस्‍त है!

कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्‍त है!


सेठ ही सुखी है, सेठ ही मस्‍त है

मंत्री ही सुखी है, मंत्री ही मस्‍त है


उसी की है जनवरी, उसी का अगस्‍त है...


Baba Nagarjun

Like ·  · Share · 24 minutes ago ·

Aam Aadmi Party

Arvind Kejriwal has left the Delhi Secretariat for North Block to protest against the Delhi Police. There is heavy security deployment at the North Block. All roads to North Block have also been barricaded.

Like ·  · Share · 5,390653390 · 2 hours ago ·

Lalit Surjan shared a link.

Modi playing up his humble background a hypocrisy: Brinda

thehindu.com

Calling him a "hypocrite," CPI (M) Politburo member Brinda Karat on Sunday lashed out at the Bharatiya Janata Party's prime ministerial candidate Narendra Modi for trumpeting his humble background as a tea-seller. Ms. Karat dared Mr. Modi to state a "single example" where he has issued license to a…

Like ·  · Share · about an hour ago ·

Aam Aadmi Party

"There are incidents of rape after rape in Delhi, the police say the inquiry is on, but just an inquiry is not enough. Someone from the department should be held accountable. The Delhi Police has to be held responsible for the continuing rapes.

We met the Home Minister and demanded suspension of SHO, but they refused. On Saturday a lady from Uganda's High Commission sent this letter praising Somnath Bharti that women are being brought to India on the pretext of jobs but pushe...See More

Like ·  · Share · 3,146442567 · 42 minutes ago ·

Satya NarayanMulnivasi Karmachari Sangh

हर जगह गरीब-मजदूर आबादी ने बताया कि उन्हें श्रम कानून के तहत अन्य सुविधाएं तो मिलना दूर रहा, न्यूनतम मज़दूरी तक नहीं मिलती है। इन अभियानों में महिलाओं ने भी 6 फरवरी को दिल्ली सचिवालय पर चलने के लिए अपने नाम लिखवाए और खुद कहा कि जब तक हम मिलकर लड़ेंगे नहीं तब तक हमें अधिकार नहीं मिलने वाले और मालिक लोग हमें कीड़े-मकोड़े से ज्यादा नहीं समझते। कार्यकर्ताओं ने भी 'दिल्ली मांगपत्रक अभियान' के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि यह आपकी लड़ाई है और इसके लिए आपको एकजुट होना होगा। न्यूनतम मजदूरी, ई.एस.आई., पी.एफ. मिलना हमारा अधिकार है और हम इसे लड़कर लेंगे। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने भी चुनाव जीतने से पहले कई वायदे किए थे, जैसे कि उन्होंने एक वायदा यह किया था कि ठेकाप्रथा समाप्त करेंगे। इसलिए, यह जरूरी है कि हम उन्हें ये वायदे याद दिलाएं और इन्हें जल्द से जल्द लागू करने का दबाव बनाएं।

Like ·  · Share · 11 · 3 hours ago ·


Satya Narayan हर जगह गरीब-मजदूर आबादी ने बताया कि उन्हें श्रम कानून के तहत अन्य सुविधाएं तो मिलना दूर रहा, न्यूनतम मज़दूरी तक नहीं मिलती है। इन अभियानों में महिलाओं ने भी 6 फरवरी को दिल्ली सचिवालय पर चलने के लिए अपने नाम लिखवाए और खुद कहा कि जब तक हम मिलकर लड़ेंगे न...See More

शाहाबाद डेयरी और रोहिणी सेक्टर-26 में चला मांगपत्रक अभियान - Workers' Charter Movement

www.workerscharter.in

उत्तरी-पश्चिमी दिल्ली मज़दूर यूनियन और स्त्री मज़दूर संगठन ने 'मांगपत्रक आन्दोलन'...See More

Satya Narayan

'Essential Stalin' is one of the best selections from the writings of Stalin and includes many rare writings of Stalin.


This selection has been compiled by Bruce Franklin and is essential to understand the theoretical and political contributions of Stalin. Franklin's introduction of this selection brilliantly places Stalin and his writings in perspective and is an independent work. Franklin himself was an anti-Stalin who later, especially in the light of the writings of Mao and contributions of the Great Proletarian Cultural Revolution in China and also as a result of his own research, came to believe that Stalin was one of the greatest leaders of proletariat, a great Marxist theoretician and a key figure of the 20th century.

http://janchetnabooks.org/?product=the-essential-stalin

The Essential Stalin

janchetnabooks.org

'Essential Stalin' is one of the best selections from the writings of Stalin and includes many rare writings of Stalin. This selection has been compiled by Bruce Franklin and is essential to understand the theoretical and political contributions of Stalin. Franklin's introduction of this selection b...

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Samit Carr shared Aam Aadmi Party's photo.

The Delhi Police has deployed a total of 25 companies (1,200 policemen) in Central Delhi to stop the protest. The Delhi Police have stopped Chief Minister A...See More

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Vallabh Pandey

कोई कह रहा था दिल्ली में धारा 144 लगी है ....हमारे लिए तो कोई नई बात नहीं है, बनारस जिले में पिछले 6 साल से लगभग लगातार धारा 144 लगी हुयी है किसी न किसी बहाने से, ... कुछ "झोला छाप" ऐलानिया इसे तोड़ते भी रहे हैं, सबको अपनी बात कहने का लोकतान्त्रिक अधिकार है न .... (पुरानी फोटो)

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Abhinav Sinha

New Article on 'Red Polemique' on theorizations of Caste and Caste System:

http://redpolemique.wordpress.com/2014/01/18/historiography-of-caste-some-critical-observations-and-some-methodological-interventions/

Historiography of Caste: Some Critical Observations and Some Methodological Interventions

redpolemique.wordpress.com

● Abhinav SinhaIn almost all the cases, the entire gamut of writings, research papers and various other kinds of essays on the caste-system, begin with some sentences or phrases that have been so o...

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Economic and Political Weekly

G Arunima's new blog-post: How xenophobia and intolerance spark the worst instances of violence - as seen in AAP's stance in Khirki as well as Kumar Vishvas' supposed 'jokes' on Malayalis.


http://www.epw.in/blog/g-arunima/%E2%80%98difference%E2%80%99-delhi.html



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