Tuesday, February 18, 2014

मध्य वर्ग को खैरात बाँटो और देश बेचो धंधा बेलगाम

मध्य वर्ग को खैरात बाँटो और देश बेचो धंधा बेलगाम

मध्य वर्ग को खैरात बाँटो और देश बेचो धंधा बेलगाम

HASTAKSHEP

पलाश विश्वास

अन्तरिम बजट 2014-14: वित्त मंत्री की सौगात

देश का प्रधानमंत्री अर्थशास्त्री है। योजना आयोग के उपाध्यक्ष अर्थशास्त्री हैं। सारे नीति निर्धारक कॉरपोरेट अर्थशास्त्री हैं, जिनके तार सीधे विश्व व्यवस्था के नियन्त्रक संस्थानों से हैं। लेकिन जायनवादी ग्लोबीकरण महाविध्वँस अभियान के लिये वित्तप्रबंधन का मानवीय चेहरा हमेशा राजनीतिक रहा है। चिदंबरम कुशल राजनेता हैं और पेशे से वकील हैं। उनके अन्तरिम बजट का कुल जमा सार यही है कि मध्य वर्ग को खैरात बाँटकर देश बेचो धंधा बेलगाम। राष्ट्रपति बनने से पहले प्रणव मुखर्जी ठीक यही भूमिका निभाते रहे हैं। वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने आम चुनाव से पहले कार, मोटरसाइकिल, टीवी-फ्रिज और मोबाइल सस्ते कर आम मध्यम वर्ग को लुभाने का प्रयास किया और भूतपूर्व सैनिकों को खुश करने वाले फैसले के तहत सेना में एक रेंक एक पेंशन की लम्बे समय से चली आ रही माँग को स्वीकार करने की घोषणा की।

आर्थिक घोटालों के महाभियोग को रफा दफा करने के लिये वित्तमंत्री ने कोयला, तेल व संचार क्षेत्रों में विकास के बढ़ चढ़कर दावे पेश किये जबकि इन्हीं सेक्टर में राष्ट्रीय संसाधनों की कॉरपोरेट हित में सबसे ज्यादा बंदरबाँट हुयी है। अंध राष्ट्रवाद के चलते रक्षा क्षेत्र को विदेशी निवेशकों को खोल देने के यथार्थ के बावजूद रक्षा घोटालों पर पर्दा पड़ा रहता है और रक्षा कारोबार आधारित कालाधन की महिमा इतनी कि अन्तरिम बजट में भी रक्षा व्यय में दस फीसद इजाफा कर दिया गया है। अगले वित्त वर्ष के लिये रक्षा क्षेत्र का बजट 10 प्रतिशत बढ़ाकर 2,24,000 करोड़ रुपये कर दिया गया। गैर..योजना व्यय 12,07,892 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया है। इसमें खाद्य, उर्वरक और पेट्रोलियम पदार्थों की सब्सिडी के लिये 2,46,397 करोड़ रच्च्पये का प्रावधान किया गया जो कि चालू वित्त वर्ष के 2,45,452 करोड़ रुपये की सब्सिडी से मामूली अधिक है।

चिदंबरम ने कहा ''मौजूदा आर्थिक स्थिति हस्तक्षेप की माँग करती है और इसके लिये पूर्ण बजट आने का इन्तजार नहीं किया जा सकता। विशेषतौर पर विनिर्माण क्षेत्र को तुरन्त प्रोत्साहन की जरूरत है।''

पहले यह समझ लीजिये कि अन्तरिम बजट का प्रयोजन क्यों है। आसन्न लोकसभा चुनाव के लिये अल्पमत भारत सरकार को जनादेश नहीं है कि वे वित्तीय या राजस्व प्रबंधन के फैसले लें। नयी सरकार बनने या चालू सरकार के दोबारा जनादेश लेकर लौटने पर ही बजट पेश किया जा सकता है। इसीलिये अन्तरिम बजट। क्योंकि बिना बजट सरकारी खर्च असंवैधानिक है। योजनाओं के कार्यान्वयन और वेतन भुगतान जैसे काम बिना बजट रुक न जाये, इसलिये तकनीकी तौर पर संसद से नई सरकार के बजट पेश करने तक सरकारी खर्च का प्रथागत अनुमोदन का अवसर है अन्तरिम बजट।

आर्थिक सुधारों के सिपाहसालार चिदंबरम ने अन्तरिम बजट पेश करने के बजाय दरअसल सत्तादल कांग्रेस का चुनाव घोषणापत्र पेश करके संसद और देश को गुमराह किया है। प्रधानमंत्रित्व के प्रबल दावेदार नरेंद्र मोदी के भगवे अर्थशास्त्री और अन्ना ब्रिगेड के प्रधनमंत्रित्व के दावेदार ममता बनर्जी के विकास का मॉडल पीपीपी है। केशरिया टैक्स फ्री इंडिया का एजेण्डा है, जिसके तहत मध्यवर्ग को कुछ रियायतें देकर पूंजी को करमुक्त करने का निर्लज्ज कारोबार है। जिसके तहत ट्रैंजक्शन टैक्स लगना है समान दर पर। गंदी बस्ती और आदिवासी दलित गरीबी रेखा के नीचे जो लोग हैं, उनको टैक्स नेट में लाकर उन पर जो कर जिस दर से लगेगा, उसी दर पर रिलायंस, टाटा, बिड़ला, जिंदल, मित्तल वगैरह वगैरह पर भी टैक्स लगाने का प्रावधान है। यानी जो अब सालाना पाँच-सात लाख करोड़ का टैक्स फोरगान है, वह लाखों करोड़ की रकम होगी और यह रकम देश के बहुसंख्य टैक्स देने में असमर्थ लोगों से वसूला जायेगा। पँजी को जब टैक्स छूट मिलेगी तो प्रत्यक्ष कर खत्म हो जाने से मध्य वर्ग को भी बड़ी राहत मिलेगी। केशरिया मीडिया मुहिम में इस एजेण्डा के पक्ष में जनमत प्रबल है। यानी फील गुड इंडिया के ओपन मार्केट में क्रयशक्ति से लैस मध्य वर्ग और उच्च मध्यवर्ग को अपनी जेबें बचने की हालत इस जनसंहारक प्रस्तावित अर्थतन्त्र से कोई ऐतराज नहीं है।

जमीनी हकीकत लेकिन यही है कि उल्लेखनीय है कि औद्योगिक उत्पादन में पिछले तीन महीने से गिरावट का रुख बना हुआ है। दिसंबर में आईआईपी में 0.6 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गयी। इस समय कारों का बाजार भी मंदा है। फिर भी देश उद्योग जगत ने बजट को उम्मीद से बेहतर बताया और कहा कि परिस्थिति के लिहाज से यह काफी संतुलित बजट है। इसी से साफ जाहिर है कि अन्तरिम बजट के दीर्घकालीन लक्ष्य कॉरपोरेट हितों के अनुकूल ही हैं।

चिदंबरम के पेश अन्तरिम बजट को देखने से साफ जाहिर है कि आगे क्या होने वाला है। उपभोक्ता सामग्री में टैक्स रियायतें देकर समाजवादी तेवर दिखाकर दरअसल वित्तमंत्री ने कर सुधार के व्याकरण का ही उल्लंघन किया है। कर सुधार का बुनियादी सिद्धांत करों का सरलीकरण है और करों को एक रूप बनाना उसका मुख्य मकसद है। आप मद छाँटकर अलग-अलग छूट या टैक्स लागू कर ही नहीं सकते। चिदंबरम ने दरअसल ऐसा ही किया है मोबाइलें, फ्रीज, कारें जैसी उपभोक्ता सामग्री को सस्ता करके मध्य वर्ग और उच्च मध्यवर्ग को खुश करने की कवायद। बजट चूंकि चुनावी है, इसलिये बजट भाषण में पंडित जवाहर लाल नेहरु, इंदिरा गांधी,  मुक्त बाजार के सबसे बड़े प्रवक्ता अमर्त्य सेन से लेकर द्रविड़ संत को भी उद्धृत कर दिया गया। तमिलनाडु के चावल कारोबारी चावल के कारोबार में छूट माँग रहे थे, तो तमिलनाडु में अपना राजनीतिक भविष्य सुधारने की गरज से चावल पर छूट दे दी गयी। लेकिन गेंहू, चीनी, अनाज, तिलहन, दलहन पर अलग से कोई प्रावधान नहीं किया गया है। कारें सस्ती कर दी गयी हैं मध्यवर्ग को खुश करने के लिये लेकिन परिवहन उद्योग के लिये और ऑटो इण्डस्ट्री को कोई राहत नहीं मिली है।

इसी तरह बार-बार अल्पसंख्यकों, पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों का उल्लेख करते हुये वोट बैंक गणित के तहत अलग अलग सत्ता समीकरण को साधने का काम किया है, जिसका न अर्थशास्त्र से सम्बंध है और न वित्तीय प्रबंधन से। किसानों को रियायती ब्याज दर पर कृषि रिण की सुविधा भी जारी रहेगी। शिक्षा ऋण पर छात्रों को 31 मार्च 2009 से पहले लिये गये कर्ज पर ब्याज अदायगी में रोक अवधि का लाभ मिलेगा।

यहीं नहीं, जिस अंसवैधानिक गैरकानूनी राष्ट्रविरोधी नागरिकों की खुफिया निगरानी की कॉरपोरेट योजना से इंफोसिस नंदन निलेकणि के जरिये इंफोसिस को लगातार मार्केट लीडर बनाने का ही काम हुआ, उसके बचाव में बाकायदा सुप्रीम कोर्ट की अवमानना संसदीय विशेषाधिकार की आड़ में पेशेवर वकील चिदंबरम ने कर दी। अपनी इस वकालत में नकद सब्सिडी और जरूरी सेवाओं से आधार को लिंक करने पर सुप्रीम कोर्ट के निषेधाज्ञा के बावजूद उन्होंने गरीबों के हितों का हवाला देकर डिजिटल बायोमेट्रिक रोबोटिक खुफिया निगरानी को जायाज बताने का कमा किया। इसी तरह उन्होंने ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी के विकास के पीपीपी माडल का एजेण्डा भी पेश किया बाकी देश के लिये। सात परमाणु संयंत्रों की घोषणा के साथ-साथ पर्वतीय राज्यों को केंद्रीय मदद के बहाने पूरे हिमालय को ऊर्जा उद्योग का खुलाआखेट गाह बनाते हुये भावी केदार आपदाओं की तैयारी कर दी।

अन्तरिम बजट में करों को छूने की जरुरत ही नहीं थी। नयी सरकार नई दरें लागू कर  के सकती हैं। यहाँ तक कि अगर कांग्रेस फिर चुनाव जीत जाती है या जोड़-तोड़ की राजनीति में फिर चिदंबरम वित्तमंत्री बन जाते हैं, तो ये तात्कालिक रियायतें जो पहली अप्रैल से लागू होनी है, अगर सरकार अलग से अधिसूचना जारी करती है, तो अलग बात है, कभी भी वापस हो सकती हैं। बहरहाल वित्त मंत्री ने एक करोड़ रुपए से अधिक की सालाना आमदनी वाले धनाढ्यों पर पिछले साल सुपर रिच कर के तौर पर लागू दस प्रतिशत का अधिभार जारी रखा है। कंपनियों पर पिछले बजट में लागू आयकर अधिभार भी बरकरार रखे गये हैं।

वित्तीय नीतियों से छेड़छाड़ करने की कोई जरुरत ही नहीं थी। लेकिन चालू वित्त वर्ष के दौरान चालू खाते का घाटा अनुमान से काफी कम होने के मद्देनजर वित्त मंत्री ने सोने के आयात पर लागू प्रतिबंधों और आयात शुल्क पर गौर करने का वादा किया।

लेकिन वित्तमंत्री ने सातवें वेतन आयोग के गठन के बावजूद राजीव गांधी की मर्जी के मुताबिक सेना के लिये एक रैंक एक वेतन की घोषणा कर दी है। तो अब सातवाँ वेतन आयोग क्या झुनझुना बजायेगा और वेतन सम्बंधी इस नीतिगत घोषणा के बाद सातवें वेतन आयोग की क्या वैधता रह जाती है।

परंपरा तोड़कर वित्तमंत्री ने यूपीए सरकारों के एक दशक की उपलब्धियां चुनाव घोषणापत्र की तर्ज पर गिना दीं और आंकड़ों से मनचाहा खेल किया।जाहिर है कि यह तमाशा वैश्विक अर्ततन्त्र या रेटिंग एजंसियों को खुश करने के लिये सिरे से नाकाफी हैं। विकास दर और राजस्व घाटे में कटौती के क्या आयोजन है,उसपर मौन साधते हुये जनता को अर्तव्यवस्था पटरी पर होने का भरोसा दिलाने की कोशिश करते हुये अर्थव्यवस्था चौपट करने के आरोपों का खंडन करने का प्रयास है यह।

नवउदारवादी नीतियों और उत्पादन प्रणाली के विध्वंस,श्रम के विसर्जन और मुनाफाखोर दलाल सेवाक्षेत्र के जरिये प्रोमोटर बिल्डर राज के तहत भारतीय कृषि,कृषिजीवी बहुसंख्य जनगण और जनपदों के विध्वंस की मुक्त बाजारी अर्थव्यवस्था के वित्तमंत्री ने औद्योगिक उत्पादन और कृषि उत्पादन शून्य के आसपास होने के बावजूद आर्थिक विकास के मिथ्या दावों का लाइव प्रसारण के लिये इस अन्तरिम बजट का दुरुपयोग किया है। जैसे हरित क्रांति के कारीगरों को महिमामंडित किया जाता है,जैसे मुक्त बाजार के प्रवक्ता राष्ट्रविरोधी अर्थशास्त्रियों का महिमा मंडन किया जाता है,उसी तरह आईपीएल विशेषज्ञ कृषिकत्ल मंत्री शरद पवार जिनके गृहराज्य और गृहक्षेत्र में विषम कृषि संकट के लिये या तो दुष्काल है या हर साल थोक दरों पर किसानबिना नागा खुदकशी का एकमात्र अनिवार्य विकल्प चुनने को मजबूर है,भारत के सबसे सफल कृषि मंत्री बतौर महिमामंडित किया जा रहा है। इस मिथ्या से बड़ी मिथ्या संसद में अन्तरिम बजट पेश करते हुये कहने का करतब किया है पेशेवर वकील चिदंबरम ने। दो फीसद से कम कृषि विकास दर चारम हीने की अल्पावधि में कैसे चार फीसद से ज्यादा होने वाली है,यह समझ से परे है।

उलटे अन्तरिम बजट में भी परिपाटी तोड़ते हुये देश बेचो ब्रिगेड के महासिपाहसालार ने पहले से मंजूर मुंबई ऩई दिल्ली सत्यानाशी औद्योगिक गलियारे और अमृतसर कोलकाता सत्यानाशी औदोगिक गलियोरे के अलावा  चेनन्ई बेंगलरु, बेंगलुरु मुबंई दो और सत्यानाशी औद्योगिक गलियारे की घोषणा कर दी।जिससे उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम चारों दिशाओं  में जनपदों और खेती के श्मशान घाट पर महासेज और मेगी सिटीज के निर्माण के जरिये देश के भीतर भारतीय सविधान और कायदे कानून के कार्यक्षेत्र से बाहर अनेक रंगबिरंगी संप्रभू अमेरिका बनाने की योजना है। देश बेचो ब्रिगेड की दृष्टि से यह कृषि विकास है और खाद्य सुरक्षा भी। ये महासेज दरअसल विदेशी शक्तियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सैन्य केंद्र होंगे जो राष्ट्रीय सुरक्षा,एकता  और अखंडता के लिये उग्रवादियों,आतंकवादियों और माओवादियों से कहीं बड़ी चुनौती साबित होंगे।

कृपया अब इन मुद्दों को ध्यान में रखते हुये अन्तरिम बजट पर नजर डालें तो देश बेचो ब्रिगेड के राष्ट्रविरोधी जनविरोधी चुनावी एजेण्डे का खुलासा हो जायेगा।

इन्हें भी पढ़ना न भूलें

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