Saturday, February 13, 2016

अबाध पूंजी वर्चस्व में कितना राष्ट्रवाद बचा है और कितना राष्ट्र? राष्ट्र की नीलामी करने वाले ही राष्ट्रवाद के झंडेवरदार! जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी हमारी उस जननी का रातदिन सौदा कौन कर रहा है? हमारी जन्मभूमि को गैसचैंबर कौन बना रहा है? इस स्वर्ग को नर्क कौन बना रहा है? जेएनयू में जो कुछ हुआ,वह एक गहरी साजिश के तहत अंजाम तक पहुंचा है और अब राष्ट्र के हत्यारे ही खुलकर बेशर्म प्रवचन की देवभाषा के तहत राष्ट्र को एक दमनकारी हथियार के तौर पर उनके खिलाफ इस्तेमाल कर रहे हैं,जो रोहित वेमुला के लिए न्याय की गुहार सबसे तेज लगा रहे थे। अब राष्ट्र के हत्यारे ही खुलकर बेशर्म प्रवचन की देवभाषा के तहत राष्ट्र को एक दमनकारी हथियार के तौर पर उनके खिलाफ इस्तेमाल कर रहे हैं,जो रोहित वेमुला के लिए न्याय की गुहार सबसे तेज लगा रहे थे। राष्ट्र को जो नीलाम कर रहे हैं,मां का जो अविराम चीरहरण कर रहे हैं,उनका मिशन सिर्फ #Shutdown JNU या #India First नहीं है। उनके इंडिया से असली भारत का नामोनिशान मिटाना उनका मिशन है।क्योंकि उनके इंडिया में फालतू जनता मिसफिट है। उनका मिशन उच्चशिक्षा के सारे मंदिर मस्जिद ध्


अबाध पूंजी वर्चस्व में कितना राष्ट्रवाद बचा है और कितना राष्ट्र?

राष्ट्र की नीलामी करने वाले ही राष्ट्रवाद के झंडेवरदार!

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

हमारी उस जननी का रातदिन सौदा कौन कर रहा है?


हमारी जन्मभूमि को गैसचैंबर कौन बना रहा है?


इस स्वर्ग को नर्क कौन बना रहा है?


जेएनयू में जो कुछ हुआ,वह एक गहरी साजिश के तहत अंजाम तक पहुंचा है और अब राष्ट्र के हत्यारे ही खुलकर बेशर्म प्रवचन की देवभाषा के तहत राष्ट्र को एक दमनकारी हथियार के तौर पर उनके खिलाफ इस्तेमाल कर रहे हैं,जो रोहित वेमुला के लिए न्याय की गुहार सबसे तेज लगा रहे थे।


अब राष्ट्र के हत्यारे ही खुलकर बेशर्म प्रवचन की देवभाषा के तहत राष्ट्र को एक दमनकारी हथियार के तौर पर उनके खिलाफ इस्तेमाल कर रहे हैं,जो रोहित वेमुला के लिए न्याय की गुहार सबसे तेज लगा रहे थे।


राष्ट्र को जो नीलाम कर रहे हैं,मां का जो अविराम चीरहरण कर रहे हैं,उनका मिशन सिर्फ #Shutdown JNU या #India First नहीं है।


उनके इंडिया से असली भारत का नामोनिशान मिटाना उनका मिशन है।क्योंकि उनके इंडिया में फालतू जनता मिसफिट है।


उनका मिशन उच्चशिक्षा के सारे मंदिर मस्जिद ध्वस्त करके मंदिर मस्जिद के नाम पर पिर फिर देश का बंटवारा करना है।


उनका मिशन सारे विश्वविद्यालय,उच्चशिक्षा और शोध बंद करके मनुस्मृति के तहत अस्पृश्यों,बहुजनों और विधर्मियों को ज्ञान के अधिकार से वंचित करके मनुस्मृति राज रका रामराज्य का निर्माण।

Manusmriti plays the ObC Card to sustain the Apartheid regime,media tuned accordingly!

https://www.youtube.com/watch?v=-dpvsGm-ma8


पलाश विश्वास

हम बहुसंख्य जनगण मंडल कमंडल महाभारत के अस्मिता कुरुक्षेत्र में निमित्तमात्र मारे जाने को नियतिबद्ध हैं।लेकिन अंग्रेजी हुकूमत में जो तमाम कायदे कानून बनाये थे,सैकड़ों वे तमाम कानून बिना किसी संदसदी बहस के गिलोटिन के तहत खत्म कर दिये गये और आजाद भारत के सत्तावर्ग ने स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानियों के दमन के लिए जो तमाम कानून बनाये थे,वे जस के तस ही नहीं हैं,बल्कि आज भी आम जनता के खिलाफ लागू हो रहे है।


इसे वैदिकी सभ्यता का वेद कहें या उपनिषद या मनुस्मृति,आप तय करें।


इन कानूनों में सर्वोत्तम कानून राष्ट्रद्रोह का कानून है।


हमारे माननीय हुक्मरान की स्मृतियां अगर धोखा नहीं दे रही हों तो आपातकाल का वह दौर याद भी कर लें जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक के तमाम कार्यकर्ता भूमिगत थे या मीसाबंदी थे क्योंकि किसी इंदिरा गांधी ने उनके खिलाफ इसी कानून का इस्तेमाल किया था।जिस कानून का महिमामंडन वे रोहित वेमुला की आत्महत्या से गले में पड़े फंदे को निकालने के लिए बंशर्मी की हद तक कर रहे हैं।


अंग्रेजी हुकूमत के लिए उनकी नीतियों के खिलाफ किसी भी आवाज को कुचलने के लिए इस कानून का इस्तमेाल अनिवार्य था।


तमाम स्वतंत्रता सेनानियों,शहीदों और राष्ट्रनेताओं के खिलाफ राष्ट्रद्रोह कानून का इस्तेमाल अंग्रेजी हुकूमत ने किय़ा था।


इस इतिहास से हमारे धर्मांध हुक्मरान अनजान हों तो कोई ताज्जुब भी नहीं है क्योंकि उनके इतिहास में केसरिया कोई स्वतंत्रता सेनानी,शहीद और राष्ट्रनेता नहीं हैं,बल्कि वे तो उनके खिलाफ जासूसी और गवाही के लिए इतिहास में दर्ज हैं।


उसी इतिहास की पुनरावृत्ति हो रही है।क्योंकि रामराज्य के राष्ट्रनेता भी वे ही हैं जो सेनानियों,शहीदों और राष्ट्रनेताओं के खिलाफ जासूसी और गवाही के लिए इतिहास में दर्ज हैं।


अंग्रेज जिन हालात में राष्ट्रद्रोह कानून का इस्तेमाल ब्रह्मास्त्र के बतौर कर रहे थे,आज भी वे ही हालात हैं और हुक्मरान भी वे ही हैं।सिर्फ चेहरे बदल गये हैं।बाकी वही रघुकुल रीति सनातन है।


आगे भिन भिन राज्य में चुनाव हैं औ धर्म संकट यह है किः

रोहित वेमुला अगर एससी है तो भी ओबीसी और एसटी साथ है.. रोहित वेमुला अगर ओबीसी है तो भी एससी और एसटी साथ है.. रोहित वेमुला अगर एसटी है तो भी ओबीसी और एससी साथ है.. रोहित वेमुला अगर भारतीय है तो भी एससी,ओबीसी और एसटी साथ है.. प्रश्न ये उठता है कि रोहित बेमुला अगर एससी है तो हिन्दू है या नहीं? प्रश्न ये उठता है कि रोहित बेमुला अगर एसटी है तो हिन्दू है या नहीं? प्रश्न ये उठता है कि रोहित बेमुला अगर ओबीसी है तो हिन्दू है या नहीं? प्रश्न ये उठता है कि रोहित बेमुला अगर एससी और हिन्दू है तो बजरंग दल कहाँ है? प्रश्न ये उठता है कि रोहित बेमुला अगर ओबीसी और हिन्दू है तो RSS कहा है? प्रश्न ये उठता है कि रोहित बेमुला अगर एसटी और हिन्दू है तो भाजपा किधर है? ~Aalok Yadav



राष्ट्र को जो नीलाम कर रहे हैं,मां का जो अविराम चीरहरण कर रहे हैं,उनका मिशन सिर्फ #Shutdown JNU या #India First नहीं है।


उनके इंडिया से असली भारत का नामोनिशान मिटाना उनका मिशन है।क्योंकि उनके इंडिया में फालतू जनता मिसफिट है।


उनका मिशन उच्चशिक्षा के सारे मंदिर मस्जिद ध्वस्त करके मंदिर मस्जिद के नाम पर पिर फिर देश का बंटवारा करना है।


उनका मिशन सारे विश्वविद्यालय,उच्चशिक्षा और शोध बंद करके मनुस्मृति के तहत अस्पृश्यों,बहुजनों और विधर्मियों को ज्ञान के अधिकार से वंचित करके मनुस्मृति राज रका रामराज्य का निर्माण।


अबाध पूंजी वर्चस्व में कितना राष्ट्रवाद बचा है और कितना राष्ट्र?

राष्ट्र की नीलामी करने वाले ही राष्ट्रवाद के झंडेवरदार!

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

हमारी उस जननी का रातदिन सौदा कौन कर रहा है?


हमारी जन्मभूमि को गैसचैंबर कौन बना रहा है?


इस स्वर्ग को नर्क कौन बना रहा है?


रोहित वेमुला के लिए देशव्यापी न्याय युद्ध के खिलाफ मनुस्मृति को जवाबी प्रहार करना ही था।


यह हमेशा होता रहा है कि जब भी परिवर्तन के लिए छात्र युवा प्रतिरोध में गोलबंद हो जाते हैं,उन्हें तोड़ने के लिए उनके आंदोलन में घुसपैठ होजाती है और आंदोलन बिखर जाता है।


न्याय की गुहार लगानेवालों को कुचलने का बहाना चाहिेए,फिर राष्ट्र के कंधे पर सवार तानाशाह फरियादी का गला तेज धार तलवार से उतार ही देता है।


सत्तर के दशक से यही दस्तूर है और जेएनयू में पिर इतिहास दोहराया जा रहा है।


जो राष्ट्र के महानायक होने थे वे चामत्कारिक ढंग से खलनायक,अपराधी और राष्ट्रद्रोही हैं और जो खलनायक,अपराधी और राष्ट्रद्रोही हैं,वे राष्ट्रवाद के कार्निवाल में नाच रहे हैं।


हिंदी की कोई भी फिल्म देख लीजिये तो समझ में आ जायेगी कि अंधा कानून किस चिडिया का नाम है और कैसे किसी को भी अपराधी बनाया जा सकता है।


हम बार बार आगाह कर रहे थे कि सत्ता बेहद फरेबी है।बच्चों ने घुसपैठियों का ख्याल नहीं रखा और वे कटघरे में है।


राष्ट्र को जो नीलाम कर रहे हैं,मां का जो अविराम चीरहरण कर रहे हैं,उनका मिशन सिर्फ #Shutdown JNU या #India First नहीं है।


उनके इंडिया से असली भारत का नामोनिशान मिटाना उनका मिशन है।क्योंकि उनके इंडिया में फालतू जनता मिसफिट है।


उनका मिशन उच्चशिक्षा के सारे मंदिर मस्जिद ध्वस्त करके मंदिर मस्जिद के नाम पर पिर फिर देश का बंटवारा करना है।


उनका मिशन सारे विश्वविद्यालय,उच्चशिक्षा और शोध बंद करके मनुस्मृति के तहत अस्पृश्यों,बहुजनों और विधर्मियों को ज्ञान के अधिकार से वंचित करके मनुस्मृति राज का रामराज्य का निर्माण।


हमारे आदरणीय मित्र आनंद तेलतुंबडे ने सही लिखा हैः

The BJP Government is completely exposed in using the state power in support of its student's wing- Akhil Bharatiya Vidyarthi Parishad, which was totally isolated in the campuses all over the country in the flare up over the institutional killing of Rohith Vemula. Instead of learning a lesson from this episode, it has chosen to use its fascist fangs in suppressing the democratic activities of students in university campuses.

यह राष्ट्र क्या है?

राष्ट्र क्या धर्म है?

राष्ट्र क्या भूगोल है?

राष्ट्र क्या विशुद्ध देवभूमि है?

राष्ट्र क्या इतिहास है?

राष्ट्र क्या रामायण  है?

राष्ट्र क्या धर्मग्रंथ है?

राष्ट्र क्या महाभारत है?

राष्ट्र क्या कुरुक्षेत्र है? राष्ट्र क्या चक्रव्यूह है,जहां अभिमन्यु का वध ही नियति है और धर्म भी?


हमारे लिए बिना लोकतंत्र ,बिना नागरिक अधिकार ,बिना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता,बिना सूचना के अधिकार,बिना मेहनतकशों के हकहकूक,बिना मानवाधिकार कोई राष्ट्र नहीं है।


हमारे लिए राष्ट्र बनाने वाले नागरिकों के खिलाफ नरसंहार करने वालों का धर्म और राजकाज राष्ट्र नहीं है।


राष्ट्र नागरिकों से बनता है,राजसूय यज्ञ और अश्वमेधसे कोई राष्ट्र नहीं बनता और दमन में शंबूक वध की वही निरंतरता है।


हम पहले ही लिख चुके हैंः

मनुस्मति तांडव के चपेट में देश! नालेज इकोनामी में रंगभेदी भेदभाव और फासिज्म के कारोबार को दलितों का मामला कौन बना रहा है? तो इस दलील का मतलब यह है कि चूंकि रोहित ओबीसी था तो उसके साथ जो हुआ,वह अन्याय नहीं है और अन्याय हुआ भी है तो दलितों को देशभर में तूफां खड़ा करने की हिमाकत करनी नहीं चाहिए। इसी सिलसिले में सनी सहिष्णुता के प्रवक्ता और सेंसर बोर्ड का कायाकल्प करने के लिए असहिष्णुता बकने के धतकरम से परहेज करने वाले एक बहुत बड़े फिल्मकार का ताजा इंटरव्यू है कि दलित की पीड़ा तो दलित ही जाणे रे।गौर करें कि दलित ने अगर खुदकशी की है तो सवर्ण का विरोध अप्रासंगिक है और ओबीसी ने अगर खुदकशी की है तो महाभारत अशुध हो गया,शुद्धता का यह रंगभेदी पाठ है। कौन जिंदा रहेगा ,कौन मर जायेगा,इसकी परवाह जनता को भी नहीं है क्योंकि वह धर्म कर्म में,जात पांत में मगन है।यही शुद्धता का मनुस्मृति राष्ट्रवाद है।सनी सहिष्णुता वसंत बहार है,सनी लीला है। बाकी सारे जनसरोकार,मेहनतकश आवाम की चीखें,सामाजिक यथार्थ के मुताबिक कुछ भी राष्ट्रद्रोह है,आतंक है,उग्रवाद है और उसका दमन अनिवार्य सैन्यराष्ट्र में।



हमारे लिए राष्ट्र की सर्वश्रेष्ठअभिव्यक्ति यही हैः


रोहित वेमुला अगर एससी है तो भी ओबीसी और एसटी साथ है.. रोहित वेमुला अगर ओबीसी है तो भी एससी और एसटी साथ है.. रोहित वेमुला अगर एसटी है तो भी ओबीसी और एससी साथ है.. रोहित वेमुला अगर भारतीय है तो भी एससी,ओबीसी और एसटी साथ है.. प्रश्न ये उठता है कि रोहित बेमुला अगर एससी है तो हिन्दू है या नहीं? प्रश्न ये उठता है कि रोहित बेमुला अगर एसटी है तो हिन्दू है या नहीं? प्रश्न ये उठता है कि रोहित बेमुला अगर ओबीसी है तो हिन्दू है या नहीं? प्रश्न ये उठता है कि रोहित बेमुला अगर एससी और हिन्दू है तो बजरंग दल कहाँ है? प्रश्न ये उठता है कि रोहित बेमुला अगर ओबीसी और हिन्दू है तो RSS कहा है? प्रश्न ये उठता है कि रोहित बेमुला अगर एसटी और हिन्दू है तो भाजपा किधर है? ~Aalok Yadav


इसी के खिलाफ दरअसल राष्ट्रद्रोह का यह महाभियोग है।


हम पहले ही साफ कर चुके हैं कि हम किसी भी तरह की राष्ट्रद्रोही गतिविधियों का समर्थन नहीं करते।



अपने के राष्ट्रवादी साबित करने के लिए हमें गिरगिट प्रजाति के धर्मांतरण में अपने मनुषत्व और विवेक का विसर्जन देना नहीं है।


जिस वैदिकी सभ्यता के नाम है यह धरमोन्माद,उके मौलिक ग्रंथ वेद और उपनिषद ही हैं।


पुराण और महाकाव्यों के मिथकों का हिंदुत्व कमसकम हमारा हिंदुत्व नहीं है।


वेदों और उपनिषदों में कहां अस्पृश्यता हैं,बतायें?

किस वेद और उपनिषद में जाति है और जन्मजात कर्मफल के तहत जन्म जन्मान्तर उसी जाति के तहत नियतिबद्ध मनुष्यता की नियति है?


वेदों और उपनिषद में वैलांटाइन डे से ज्यादाप्रेम की स्वतंत्रतता है।


वेदों और उपनिषद में उन्मुक्त सहवास है।अभिसार है।लेकिन स्त्री के खिलाफ भेदभाव की वैधता कहां है?कहां लिंगभेद हैं?


वेदों और उपनिषदों में कहां है कि सत्ता का धर्म ही धर्म है और राष्ट्र की सत्ता और मानवाधिकार में कोई अंतर्विरोध है?


वेदों और उपनिषद में ईश्वर की सत्ता को चुनौती है तो वेदों को चुनौती देने वाला समूचा चार्वाक दर्शन है और किसी ने नहीं कहा कि चार्वाक दर्शन और भौतिकवाद हिंदुत्व के खिलाफ है?


वेदो में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश कहां हैं बतायें?



जेएनयू में जो कुछ हुआ,वह एक गहरी साजिश के तहत अंजाम तक पहुंचा है और अब राष्ट्र के हत्यारे ही खुलकर बेशर्म प्रवचन की देवभाषा के तहत राष्ट्र को एक दमनकारी हथियार के तौर पर उनके खिलाफ इस्तेमाल कर रहे हैं,जो रोहित वेमुला के लिए न्याय की गुहार सबसे तेज लगा रहे थे।


जो अभियुक्त थे,वे ही तय कर रहे हैं कि कौन राष्ट्रद्रोही हैं और कौन देश भक्त।टीवी पर बजरंगी दहाड़ रहे हैं और मां दुर्गा का खुल्ला आवाहन कर रहे हैं असुर वध के लिए।


पूरे परिदृश्य से रोहित की तस्वीर हटा ली गयी है।


हत्यारे देव देवी की सजी धजी मूर्तियां अगरबत्ती की सुगंध से महमहा रही हैं।


इतनी जो दुर्गन्ध फैली हुई ती दसों दिशाओं में नई दिल्ली में सफाईकर्मियों की निरंतर हड़ताल के बाद,उस पर डियोड्रेंटका छिड़काव हो चुका है।


हत्यारे चेहरे अब देवराज इंद्र के चमचमाते सहस्रमुख हैं,जहा खून का कोई निशान है ही नही ताकि खून की नदियां फिर अबाध बह सकें।


अमेरिका और यूरोप में भी रात दिन चौबीसों घंटे लाइवस्ट्रीम सूचना प्रवाह के बावजूद प्रामाणिक सूचनाओं के लिए लोग प्रिंट ही पढ़ते हैं।मोबाइल व्हाट्सअप डिजिटल क्रांति में भारत में प्रिंट से किसी को मतलब ही नहीं है।


फासिज्म की सरस्वती वंदना के मुताबिक पाठ के बजाय दर्शन ही ज्ञान है जो ऐप्स है या फिर तकनीक है,अंतिम सत्य नहीं है।


इसीलिए सुपारीकिलर तमाम परदे पर फतवे जारी कर रहे हैं और इंडिया बेच रहे हैं सनसाते हैसटैग के साथ सूचना एमबुश मर्केटिंग से।शुध देशी के विज्ञापनों की तरह यह रसायन भी जहरीला है और उस जहर के हजार फन राजपथ पर मस्ती से झूम रहे हैं और उनके इंडिया में अवांछित तमाम मनुष्यों को डंस कर ही रहेंगे।


हम जनमजात शरणार्थी हैं।जंगल में हमारा जनम हुआ।


जहरीले सांपों के साथ हमारा बचपन बीता और भेड़ियों से लेकर शेरों का जलवा भी हमने कम नहीं देखा।


जिंदगी में बिजलियां चमचमाने से पहले गोबर माटी कीचड़ की दुनिया के दलदल में हमारे लिए दसों दिशाएं काली अमावस्या ही थी।


आज चारों तरफ त्रिशुली चामत्कारिक अलौकिक आलोकवर्षा में फिर वे अंधेरी रातें लौट आयी हैं,जब हमें शरारत से रोकने के लिए नानी दादी किस्म की सबसे प्यारी हंसीं औरतें हमें भूत प्रेत दैत्य दानव राक्षस असुर वगैरह के किस्से सुनाकर डरा दिया करती थीं और कहती थीं कि कटकटेला अंधियारों से डरो।


हमने बचपन से अपने हमेशा जागते हुए पिता और पुरखों की विरासत से बचपन से ही सीख लिया था कि वे तमाम भूत प्रेत,राक्षस,दैत्य दानव असुर हमारे ही स्वजन हैं।


हमने बचपन से अपने हमेशा जागते हुए पिता और पुरखों की विरासत से बचपन से ही सीख लिया था कि वह डरावनी अमावस्या की रात हमारी मेहनतकशों की दुनिया है जिसे चांदनी में बदलने के लिए मेरे पिता और हजारों हजारं पीढ़ियों तलक हमारे तमाम पुरखे लड़ते रहे हैं।


तभी हमने सीख लियाथा कि सांपों का जहर इंसान के जहर से ज्यादा खतरनाक नहीं होता।


उस जहर का पुरजोर असर अब मालूम पड़ रहा है कि इस देश के नागरिकों को होशोहवाश गुम है और उन्हें कल तक रोहित के लिए न्याय की गुहार लगाते देखने के बाद राजमार्ग पर रोहित के हत्यारों के नंगे नाच में राष्ट्र दिख रहा है।हत्यारों के फतवे में राष्ट्रवाद सुनायी पड़ रहा है।


इसीलिए आनंद तेलतुबंड़े ने लिखा हैः


PDR does not hold any brief for those who indulge in anti-national activities but certainly objects to gross misuse of this label to suppress democratic rights of the students. In view of the fact that the hangings of both Afzal Guru as well as Yakub Memon have not been beyond controversy, the students' questioning them cannot be termed sedition or anti-national activity. It is the same fascist definition of anti-nationalism that had prompted the Hyderabad University administration to clumsily punish the five Dalit students which led to one of them, Rohith Vemula, committing suicide. In both, the sinister role of ABVP and BJP in making the university administrations to crawl and police to terrorize the non-ABVP students is completely exposed.  

The higher education campuses are not factories to produce inert charge to feed corporate mills. They are fundamentally expected to shape future thought leaders of the country endowed with critical faculties for sustenance of democracy. Analyzing, reviewing, criticizing, protesting, agitating and being alive to issues of national life are an integral part of this process. It cannot be suppressed by labeling it sedition or anti-national activity. Exercising checks on the Government is the right of people that is subsumed in democracy and cannot be subverted by such sentimental ploys. The students who partake in such activities must rather be respected for their concern for the future of the country than those who opportunistically choose to be on the side of the state and exhibit their pseudo patriotism. It is sad that the so called nationalists who blame every evil to colonial powers shamelessly cling to colonial provisions of sedition and other such draconian acts to terrorize people.    

In the light of the above, CPDR demands immediate release of both the JNUSU President, Kanhaiya Kumar and Prof S. A. R Geelani and quashing of Sedition charges against them and unknown persons.

Dr Anand Teltumbde

General Secretary, CPDR, Maharashtra



इस पर गौर करें,हमारे अजीज दोस्त अरुण खोटे का ताजा स्टेटस इस प्रकार हैः

जे एन यु के छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैय्या की गिरफ़्तारी की कड़ी निंदा करता हूँ l


कल जबसे जे एन यु के छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैय्या की गिरफ़्तारी की सूचना आई है तब से बहुत असहज, व्यथित और चिंतित हूँ l कल ही सुबह वायरल हुई कन्हैया के भाषण की क्लिप के साथ यह चिंता बहुत बढ़ गई थी l


आज़ादी के बाद शायद पहली बार "जातिवाद-ब्राह्मणवाद" के खिलाफ उठे स्वत स्फूर्त जन उभार के अभी एक बड़े आन्दोलन में बदलने की शुरुवात भी नहीं हुई थी कि उसे कुचलने के कुचक्र चलने लगे l


रोहित के बलिदान के बाद से ही मैं अपनी बातचीत के दौरान पुरे देश भर के दलित सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ताओं से इस खतरे से सतर्क हो कर इस स्वत स्फूर्त स्थिति को जातिवाद ब्राह्मणवाद के खिलाफ एक सचेत आन्दोलन में बदलने की दिशा में कार्य करने की आवश्यकता पर जोर दे रहा था l


सबसे बड़ा खतरा भी बाहर से ज्यादा अंदर से था l


"जातिवाद-ब्राह्मणवाद" के खिलाफ दलित नेतृत्व में देशव्यापी आन्दोलन को "सामंतवादी- साम्प्रदायिकता" के खिलाफ आन्दोलन में बदलने की कोशिशों बदलने खतरा रोहित वेमुला के शहीद होने के बाद से ही पैदा हो गया थाl


अम्बेडकरवादी छात्र संगठनों के नेतृत्व में हैदराबाद से शुरू हुआ आन्दोलन कब छिटक कर जेएनयु में वामधारा में समाहित हो जायेगा इसका पूरा खतरा शुरू से ही था जो अब और स्पष्ट होता जा रहा है l


एक ऐसे दौर में जब पहली बार "जातिवाद- ब्राह्मणवाद" के खिलाफ पुरे देश में व्यापक इतिहासिक जन उभार पैदा हो रहा था और जो एक बहुत बड़े बदलाव का सपना सजोय देशव्यापी आन्दोलन की दिशा में बढ़ रहा था फिर आखिर क्या जरुरत थी इस पुरे आन्दोलन की दिशा को "सामंतवाद- साम्प्रदायिकता" के खिलाफ आन्दोलन में बदलने की l


इक बार फिर आपने रणनीतिक चुक कर दी है l


या फिर एक सोची समझी रणनीति के तहत दबे कुचले वर्ग के नेतृत्व में जातिवाद- ब्राह्मणवाद के खिलाफ उबरते देशव्यापी आन्दोलन की दिशा को "सामंतवादी- साम्प्रदायिकता" के खिलाफ आन्दोलन बदलने की कोशिश हो रही हैl


कामरेड ! आखिर आपकी पालटिक्स क्या है ?????????


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