कॉमरेड बहादुर धपोला को लाल सलाम !… जय जगत
By शमशेर सिंह बिष्ट on May 8, 2011
एक जमाने के कुमाऊँ के प्रसिद्ध नक्सलवादी नेता बहादुर सिंह धपोला 10 मार्च 2011 को कोटमन्या में अपने स्थाई निवास में सुबह-सुबह योग करते हुए, अपने नश्वर शरीर को यहीं छोड़कर अपनी चिर स्थाई महायात्रा में चल दिये। यह खबर जब मिली तो यकीन नहीं हुआ क्योंकि आज भी 69 वर्ष की उम्र में 40 किमी. तक सफर पैदल चल कर आते थे। अपने अंतिम चरण के जीवन में स्वामी रामदेव के परम भक्त बन गये थे। मार्क्स के भौतिक द्वन्दवाद की जगह रामदेव जी के योग का प्रचार करने लग गये थे। हमने अपने छात्र जीवन में बहादुर धपोला का नाम सुना था, जब यह विदित हुआ कि इन्होंने सामन्तवाद के खिलाफ जबर्दस्त संघर्ष छेड़ा है। चौकोड़ी के संघर्ष के लिये वे हमेशा याद किये जायेंगे। उनकी शारीरिक बनावट ही ऐसी थी कि उनसे सीधे भिड़ने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता था। अपने युवा अवस्था में उनका उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी से भी घनिष्ट सम्बन्ध रहा, जितना वाहिनी के नेताओं को गलियाते उतना ही संकट के समय मदद भी करते थे। तर्क-विर्तक में विश्वास कम, मार्क्सवाद के मूलभाव में विश्वास अधिक था।
बहादुर धपोला बागेश्वर के भतौड़ा गाँव के मूल निवासी रहे हैं। काण्डा इण्टर कॉलेज से प्रथम श्रेणी में इण्टर ही पास नहीं किया बल्कि उत्तर प्रदेश में 7वाँ स्थान प्राप्त किया, बी.एस.सी. करने के लिए अल्मोड़ा आये। यहाँ से नैनीताल गये। वहीं नक्सलवादी नेताओं के सम्पर्क में आये, लगभग 5-6 वर्ष घर से गायब ही हो गये। मार्क्सवाद से भरकर 1970 में घर वापस आ गये। उससे पहले मुरादाबाद जेल में रहे। लेकिन घर आने के बाद कौसानी में लक्ष्मी आश्रम में 8 वर्ष से रह रही स्व. चंचल सिंह कार्की की पुत्री गंगा कार्की से विवाह हो गया। मार्क्सवाद व सर्वोदय का समन्वय धपोला जी के जीवन में आ गया, जैसा एक उम्र के बाद अधिकांश कामरेड के जीवन में आता है। विवाह होने के बाद धपोला स्थाई रूप से अपने ससुराल में बस गये। लेकिन कोटमन्या का बिष्ट स्टेट के समीप होने के कारण संघर्ष जारी रहा। इसीलिये आपात काल में इन पर एन.एस.ए. मीसा जैसे कठोर कानून लगाये गये तथा 22 माह तक जेल में रहे। जब बागेश्वर में गिर्दा के निर्देश में 'थैक्यू मिस्टर ग्लाड' किया गया तो पूरी सुरक्षा की जिम्मेदारी धपोला जी ने निभाई थी।
बहादुर धपोला बिना अपनी पत्नी गंगा के अधूरे रह जाते। गंगा का ही भगीरथ प्रयास रहा दो पुत्र सुरेन्द्र व शैलेन्द्र शिक्षा विभाग में अच्छे पदों पर सेवारत हैं। बहादुर को कभी-कभी 10 मिनट सहन करना मुश्किल होता था। परन्तु गंगा ने पूरे जीवन भर सह कर नये सृजन के साथ धपोला को अन्तिम सलाम कहा!
धपोला जी 'नैनीताल समाचार' व अन्य पत्र-पत्रिकाओं से शुरू से जुड़ गये थे पर 1984 के बाद 'नैनीताल समाचार' के गम्भीर पाठकों में शामिल हो गये। उन्होंने अपने इलाके में 'नै.स' के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान ही नहीं दिया बल्कि 'नै.स.' के दौरे पर निकले साथियों की भी भरपूर मदद की और वे इस पत्र व इससे जुड़े कार्यकर्ताओं के लिए चिन्तित रहते थे।
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