Monday, May 21, 2012

Fwd: उत्तराखंड के कालिदास शेरदा



---------- Forwarded message ----------
From: Bhishma Kukreti <bckukreti@gmail.com>
Date: 2012/5/21
Subject: Re: उत्तराखंड के कालिदास शेरदा
To: Tara Tripathi <nirmaltara@gmail.com>


शेर दा  के निधन से आंचलिक भाषाई साहित्य को आघात लगना लाजमी है .शेर दा के विचार मैंने वीरेंद्र पंवार जी के व शेर दा के एक इंटरव्यू में जाना. गिर दा, शेर दा जैसे भाषा प्रेमियों की जगह भरना कठिन ही है.किन्तु उनके  द्वारा उठाये गये कामों को आगे बढाना भी हम सबका कर्तव्य  बनता है.
उनके चले जाने पर शोक तो होगा ही किन्तु हमे साथ साथ सौं भी खानी पड़ेगी कि भाषाई आन्दोलन को ठंडा नहीं होने देंगे.यही सच्ची  श्रधांजलि  होगी
प्रभु उन्हें सद्गति दें!

2012/5/21 Tara Tripathi <nirmaltara@gmail.com>
उत्तराखंड के कालिदास शेरदा
      शेरदा चले गये।  मेरा उनका वर्षों साथ रहा। सचमुच वे अनपढ़ थे। यदि अनपढ़ नहीं होते तो इतनी ताजी उपमाएँ कहाँ से लाते?  कहाँ  से वह पीड़ा लाते जो उनकी कविता के 'हरे गौ म्यर गौ' में व्यंजित है। कहाँ से वह आग निकलती जो उनकी कविता के 'तू चित जगूने रये, मैं फोंछिन खेलने  रऊँ' में दिखाई देती है। जिसकी तुलना केवल अंग्रेज कवि  शेली की कविता 'मौब आफ ऐनार्की' से की जा सकती है।  'पार्वती को मैतुड़ा देश'  तो कालिदास को भी पीछे छोड़ देती ह। इस कविता में  ' पार्वती को मैतुड़ा देश मेरो मुलुक कतु छ प्यार, डानकना में ज्यूनि हँसे छ, स्वर्ग बटी चै रूनी तारा'  ही नहीं अन्य पंक्तियों में भी प्रकृति का मानवीकरण देखने लायक है।
     पेट की आग को बुझाने के लिए शेरदा ने गीत नाट्य प्रभाग में नौकरी की। यहीं से  जनरुचि की मंचीय कविताओं का सृजन करने से आम जनता उन्हें हास्य रस के कवि मानने लगी। फलतः शेरदा के भीतर छिपा महान कवि मंचीय कविताओं के कुहासे में खे गया।
     उनकी कविताएँ कहीं एक जगह पर एकत्र नहीं थीं। कुछ वर्ष पूर्व डा. प्रयाग जोशी के आग्रह पर उन्होंने अपनी कविताओं को खोजना और भूली बिसरी कविताओं को फिर से याद कर संकलित करना आरंभ किया। फलतः उत्तराखंड को 'शेरदा समग्' के रूप में  उनकी कविताओं का संग्रह उपलब्ध हुआ।
     इस ग्रन्थ की पांडुलिपि का आद्योपान्त अध्ययन करने के बाद मुझे लगा कि यह एक ऐतिहासिक अमूल्य संग्रह है पर  इसमें  शेरदा का मूल कवि मंचीय कविताओं के कुहासे में  कहीं खो गया है।  अतः मैंने उनसे बार-बार अनुरोध किया कि वे अपनी सबसे प्रिय और चुनी हुई रचनाओं का अलग से संकलन प्रकाशित करें।  सौभाग्य से यह संकलन प्रो. शेरसिंह बिष्ट द्वारा लिखित विस्तृत भूमिका के साथ  'शेरदा संचय' के नाम से प्रकाशित हुआ.  इसमें वे कविताएँ संकलित हैं जो शेरदा को विश्व के प्रथम श्रेणी के कवियों में स्थापित कर सकती है।
       वे चले गये। उनके साथ कुमाऊनी कविता का एक युग समाप्त हो गया। वह युग  एक गरीब घर के वर्षो तक होटलों में बर्तन मलते रहे, सेना के ट्रकों की ड्राइवरी करते रहे, पेट की आग को बुझाने के लिए बेमन से सरकारी योजनाओं पर कविता लिखने के लिए विवश और रंगमंच की वाहवाही से भ्रमित होकर चपल के ल्याछा यस जैसी अनेक कविताओं को लिखने के लिए प्रेरित होने के बाद भी अपनी अस्मिता को बरकरार रखने वाले अनपढ़ व्यक्ति की देन है। 
      शेरदा और शैलेश मटियानी समान परिस्थियों से उठ कर साहित्य के आकाश में चमकने वाले ऐसे नक्षत्र हैं जो साहित्य के आकाश में सदा देदीप्यमान रहेंगे।
     उनकी स्मृति को शत शत प्रणाम।

--
nirmaltara



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Regards
B. C. Kukreti


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