Sunday, July 1, 2012

चक्रव्‍यूह में फंसाये गये यशवंत, उन्‍हें निकालना जरूरी है

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चक्रव्‍यूह में फंसाये गये यशवंत, उन्‍हें निकालना जरूरी है

1 JULY 2012 3 COMMENTS

♦ अविनाश

खिरी बार यशवंत से जंतर मंतर पर टकराना हुआ था। सामने आने पर न उन्‍होंने कभी हमारी उपेक्षा की, न ही मैंने अपनी तबीयत ढीली रखना मुनासिब समझा। कॉमरेड चंद्रशेखर की हत्‍या की साजिश रचने के मामले में शहाबुद्दीन को कोर्ट से मिली राहत के खिलाफ जंतर मंतर पर लोग जुटे थे। मैंने देखा कि यशवंत अपनी बेटी और बेटे के साथ वहीं आवाजाही कर रहे हैं।

जगजाहिर है कि हमारे-यशवंत के रिश्‍ते कभी सामान्‍य नहीं रहे। उन्‍हें जब भी मौका मिला, वार करते रहे। मैंने कभी पलटवार नहीं किया। जब मोहल्‍ला ब्‍लॉग में सब कुछ अनौपचारिक था, हमने उनके खिलाफ एक एफआईआर होने पर जरूर अपनी रंजिश उतारनी चाही। उससे पहले एक महिला ब्‍लॉगर के खिलाफ की गयी उनकी अभद्र टिप्‍पणी पर भी हमने अपना प्रतिरोध दर्ज किया था। इसकी खुन्‍नस उन्‍होंने भड़ास ब्‍लॉग में मेरे और मेरी पत्‍नी के खिलाफ अश्‍लील दर अश्‍लील टिप्‍पणियां करके उतारी थी।

वे दिन थे और आज का दिन, हममें कभी उनके मुंह लगने की हिम्‍मत नहीं हुई। पर वे वक्‍त-बेवक्‍त लात-दोलात मारते रहे। अभी हाल में जब लोन न चुका पाने की वजह से हमारा मकान नीलामी के कगार पर पहुंच गया, इस खबर को उन्‍होंने अपनी साइट पर सार्वजनिक कर दी। दीगर बात है कि हमने अपना मकान किसी तरह बचा लिया।

यशवंत की एक और आक्रांतकारी आदत से उनके दोस्‍त और दुश्‍मन परेशान रहते हैं। शराब के नशे में आधी रात को वह फोन पर गाली-गलौज करते हैं। एक बार जब वे कुछ ऐसा ही कर रहे थे, मैंने न सुनने या फोन काट देने की जगह जवाब देना शुरू किया। उसने फोन रख दिया। मैंने वापिस फोन किया था, तो उनकी बेटी ने उठाया। कहा कि पापा पान खाने गये हैं। उसकी आवाज इतनी भोली थी कि मेरा गुस्‍सा खत्‍म हो गया। मैंने कहा कि बेटा, पापा आएं तो कहना कि अविनाश अंकल का फोन था।

जिद, जुनून, श्रम और भरपूर स्‍वप्‍न के साथ अपनी राह चलने, मुकाम बनाने वाले यशवंत की चंद बुरी आदतों का खामियाजा उन्‍हें जितना नहीं भुगतना पड़ता है, उससे कहीं अधिक उनके परिवार वाले भुगतते हैं। मुझे दुख है कि एक बार फिर ऐसी नौबत आ गयी है।

कल आधी रात को यशवंत के मित्र और युवा पत्रकार मयंक सक्‍सेना ने अपनी फेसबुक वॉल यशवंत के बारे में व्‍यग्रता से एक सूचना चिपकायी तो हमने उन्‍हें पोक किया कि बात क्‍या हुई है दरअसल। उन्‍हें ज्‍यादा कुछ मालूम नहीं था। बस इतना पता था कि पुलिस उन्‍हें उठा कर ले गयी है। वे मिल कर आये, तब उनसे फोन पर बात हुई। कहा कि यशवंत लॉक अप में थे। उनसे दूर दूर से कुछ बात हुई। वे कह रहे थे कि एक टीवी संपादक के इशारे पर उनके साथ यह सब किया जा रहा है।

सुबह हिंदुस्‍तान अखबार के पन्‍ने पलटते हुए माजरा साफ हुआ…

इस खबर में जितने भी आरोप गिनाये गये हैं, यकीनन उनमें से साठ फीसदी झूठ है, होगा। जिन चालीस फीसदी आरोपों के सच होने की सूरत बनती है, वह शर्तिया शराबनोशी के आलम में किया गया जुर्म होगा। यशवंत को शराब पीकर आपा खोने के मामले में ऐसी एक जोरदार ठोकर मिलनी उनके लिए ही जरूरी थी, पर इस मामले में मुझे कुछ और चीजों की भी गंध आ रही है।

मुझे नहीं मालूम कि कानून इस पूरे मामले को कैसे देखेगा, लेकिन हम इस मामले को ऐसे देखते हैं कि सांस्‍थानिक मीडिया के खिलाफ व्‍यक्ति-संचालित मीडिया की मुहिम को खत्‍म करने की साजिश के तहत यशवंत को चक्रव्‍यूह में फंसाया गया है। अपने मूर्खतापूर्ण अहंकार और जरूरत से ज्‍यादा आत्‍मविश्‍वास के चलते यशवंत आसानी से उस चक्रव्‍यूह की तरफ दौड़ पड़े। हम उम्‍मीद करते हैं कि न्‍यू मीडिया के दूसरे सिपहसालार, मसलन संजय तिवारी, पुष्‍कर, विनीत कुमार, संजीव पांडे, संजीव सिन्‍हा, अनुरंजन झा, निमिष कुमार आदि आदि (कई नाम और हैं…) इस पूरे मामले को ऐसे ही देखेंगे और अपना स्‍टैंड क्‍लीयर करेंगे।

यह वक्‍त साथ आने का है। यशवंत पर संदेह करने और यशवंत से कटने का नहीं है।

(अविनाश। मोहल्‍ला लाइव के मॉडरेटर। प्रभात खबर, एनडीटीवी और दैनिक भास्‍कर से जुड़े रहे हैं। राजेंद्र सिंह की संस्‍था तरुण भारत संघ में भी रहे। उनसे avinashonly@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

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