By hastakshep | June 11, 2012 at 8:18 am | One comment | आजकल
अमित पाण्डेय

अपने कुछ मित्र महान क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेन्दुलकर की महानता के कायल हो गये हैं. उन्होंने जनता का पैसा बचाने की सोची है दिल्ली का सरकारी बँगला नहीं लेकर. पर आपको जानना चाहिए कि आज से करीब सात साल पहले एक सीरीज में तेन्दुलकर मैन आफ द सीरीज हुए थे. इनाम स्वरूप उन्हें फरारी कार मिली जिसको देश में लाने पर सचिन को टैक्स के रूप में एक मोटी रकम चुकानी थी. तेन्दुलकर के लिये कार भी जरूरी थी और टैक्स का न देना भी. उन्होने तत्कालीन मुख्यमंत्री से कर में छूट देने का आग्रह किया और अपने मन की मुराद पूरी कर ली. हांलांकि शिवसेना ने उस समय इस बात का बड़ा विरोध किया था और बाल ठाकरे ने सामना में लेख भी लिखा था।
हो सकता है कि उस समय सचिन की मानसिक प्रौढ़ता में कुछ कमी रही हो या फिर सचिन इसके दूरगामी वीभत्स परिणाम को नहीं सोच पाये हों, कारण जो हो एक बार विरोध का सामना करना पड़ा, जलालत झेलनी पड़ी और कुछ रूपये भी देने पड़े. सचिन अब इस चीज को दोबारा नहीं. दोहराना चाहते. वैसे भी क्रिकेट खिलाड़ियों का रूटीन इतना व्यस्त है कि उन्हें दिल्ली आने या रहने की फुरसत ही कहां? वास्तव में ये फैसला एक "चतुर" फैसला है, ना कि कोई महान फैसला जैसा कि कुछ लोग और भारतीय मीडिया सचिन को महान बनाकर दिखाना चाहते हैं.
उनका घर लेने से ज्यादी जरूरी ये है कि वे जिस काम के लिये गये हैं उसको कितना कर पाते हैं और किसी क्षेत्र में ना सही कम से कम खेल के लिये ही क्या कर पाते हैं? क्या वे कलमाड़ी जैसे लोगो का रास्ता रोकने में कुछ सहायता कर पायेंगे, क्या वो बी.सी.सी.आई को खेल मंत्रालय के तहत ला पायेगे? इसके लिये आवाज उठा पायेंगे? राजीव शुक्ला और शरद पवार जैसे धुरंधरों को हटा पायेंगें, इन पर लगाम लगा पायेंगे? सही पूछिये तो सचिन को इस पर ध्यान देने की जरूरत है. इस देश ने, जिसने उन के लिए सब कुछ दिया उसको सरकार बँगला क्या होटल का भाड़ा भी दे देगी पर हासिल क्या होगा ये देखने की बात है?
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