सरकारी आंकड़ों में मंहगाई नरम, पर बाजार ओबामा की चपेट में! चीनी चुनौती ने बढ़ाया सरदर्द!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
अमेरिकी अर्थ व्यवस्था की जान भारतीय बाजार में फंसी हुई है। भारत में आर्थिक सुधार लागू न हुए तो यूपीए सरकार का भविष्य तो कारपोरेट इंडिया तय करेगा, लेकिन भारतीय बाजार में पूंजी खपाने में ओबामा नाकाम हुए तो उनका दुबारा राष्ट्रपति चुना जाना असंभव है।ओबामा का बयान आते न आते चीन ने अपने यहां विदेशी निवेश का अनुकूल माहौल होने का दावा पेश कर दिया है, इससे भारत में नीति निर्धारको का सरद्दर्द और बढ़ने वाला है। महंगाई दर में नरमी और ग्लोबल स्तर पर तेजी के संकेतों के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की टिप्पणी से हतोत्साहित निवेशकों द्वारा बिकवाली से शेयर बाजार लगातार चौथे दिन गिरावट का शिकार हुआ। बीएसई का सेंसेक्स 110.39 अंक फिसलकर 17,103.31 और एनएसई का निफ्टी 30 अंक उतरकर 5,197.25 अंक पर रहा। आईटी, मेटल, रीयल्टी, टेक और सीजी वर्ग के शेयरों पर बिकवाली का भारी दबाव देखा गया। कारखाने में बनी चीजों (मैन्चूफैक्चरिंग प्रोडक्ट) के दामों में गिरावट के चलते महंगाई के सरकारी आंकड़े में तो नरमी आई है, पर खाने-पीने की चीजों के दामों में तेजी अब भी बनी हुई है। ऐसे में आम आदमी पर महंगाई की मार बरकरार दिख रही है। हालांकि आरबीआई की ओर से ब्याज दरों में नरमी की उम्मीद बढ़ी है।महंगाई दर में नरमी दिखना राहत की बात है, पर यह बजट के पूर्वानुमान से ऊपर बनी हुई है। वित्त मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक महंगाई दर कुछ माह के भीतर ही 7 फीसदी के दायरे में आ जानी चाहिए। महंगाई की वजह खाद्य वस्तुओं के साथ गैर आधारभूत (नॉन कोर) वस्तुओं की कीमतों में तेजी है। यह चिंता का विषय है। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में हम इस पर काबू पा लेंगे। मोंटेक सिंह अहलूवालिया, उपाध्यक्ष, योजना आयोग का ऐसा कहना है।एशियाई बाजारों में तेजी के संकेतों से बीएसई का सेंसेक्स 28 अंकों की तेजी लेकर 17,241.98 अंक पर खुला। शुरुआती लिवाली के बल पर यह 17,282.30 अंक तक चढ़ा, लेकिन ओबामा के भारतीय निवेश वातावरण में सुधार किए जाने से जुडे़ बयानों पर जोर शोर से चर्चा शुरू होने पर निवेशक निराश हो गए और बिकवाली शुरू कर दी। इसके दबाव में यह 17,079.63 अंक के न्यूनतम स्तर तक लुढ़क गया। आखिर में पिछले कारोबारी सत्र के 17,213.70 अंक की तुलना में 0.64 प्रतिशत अर्थात 110.39 अंक फिसलकर सेंसेक्स 17,103.31 अंक पर आ गया।
चीन के उप वाणिज्य मंत्री वांग छाओ ने पेइचिंग में आयोजित न्यूज ब्रिफींग में कहा कि वर्तमान में विदेशी पूंजी को आकृष्ट करने के लिए चीन के सामने काफी जटिल स्थिति आ गयी है। लेकिन मध्य दीर्घकालीन दृष्टि से देखा जाए, तो चीन में विदेशी पूंजी के निवेश के लिए कई श्रेष्ठताएं मौजूद हैं। अनुमान है कि इस साल चीन में विदेशी पूंजी के निवेश में वृद्धि होगी।इस साल, जनवरी से मई तक विश्व आर्थिक वृद्धि में धीमी गति बनी रहने तथा यूरोपीय कर्ज संकट के लगातार बिगड़ने से प्रभावित होने से चीन में विदेशी पूंजी के निवेश की कुल राशि पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 1.91 प्रतिशत घट गयी। फिर भी चीन के विदेशी निवेश में कुछ अनुकूल रूझान दिखा है। आंकड़ों के मुताबिक इस साल के पहले पांच महीनों में चीन में 47 अरब अमेरिकी डालर की विदेशी पूंजी का प्रयोग किया गया था। मई के महीने में प्रयोग में लायी गयी विदेशी पूंजी की रकम 920 करोड़ डालर से अधिक दर्ज हुई है, जो पिछले साल के मई महीने से थोड़ी बढ़ गयी है, इस तरह पिछले 6 महीनों में पैदा हुई मासिक गिरावट की स्थिति समाप्त हो गयी है और मासिक वृद्धि दर बढ़ने लगी है।
दूसरी ओर योगगुरू रामदेव ने दावा किया कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश काला धन का स्रोत है और उन्होंने मांग की कि केंद्र विदेशों में छिपाकर रखा गया काला धन वापस लाए।रामदेव ने कहा, एफडीआई काला धन का स्रोत है। करीब 80 फीसदी एफडीआई काला धन है। क्यों नहीं एफडीआई का वास्तविक स्रोत सार्वजनिक किया जाए। उन्होंने दावा किया कि यदि संप्रग सरकार विदेश से काला धन लाने में विफल रहती है तो उसे जाना ही होगा।उन्होंने कहा, जो राजनीतिक दल काला धन वापस लाने का वादा करेगा और चुनाव में अच्छे लोगों को उतारेगा, वही देश पर शासन करेगा। रामदेव ने दावा किया कि दिल्ली में नौ अगस्त की रैली निर्णायक और ऐतिहासिक होगी।जब उनसे पूछा गया कि क्या वह कोई राजनीतिक दल की अगुवाई करेंगे, उन्होंने जवाब दिया, मैं तो संन्यासी हूं। मैं यह तय नहीं कर सकता है कि कौन सरकार चलाएगा। लेकिन दिल्ली की रैली इस पर निर्णय लेगी।
चीन के उप वाणिज्य मंत्री वांग छाओ ने कहाः
वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखकर चीन सरकार सक्रिय रूप से खुले द्वार की नीति जारी रखते हुए विदेशी पूंजी को आकृष्ट करने की निरंतर कोशिश करेगी, विदेशी निवेश के पैमाने को बनाए रखने, निवेश के ढांचे को श्रेष्ठ बनाने तथा निवेश नीति का स्तर उन्नत करने का लक्ष्य प्राप्त करेगी और विदेशी पूंजी के निवेश के तरीकों व माध्यमों का विस्तार करेगी और खुलेपन के क्षेत्रों को और विस्तृत कर देगी।
उप मंत्री ने बलपूर्वक कहा कि चीन विदेशी निवेशकों को चीन के नवोदित कारोबारों, आधुनिक कृषि, आधुनिक सेवा उद्योग तथा ऊर्जा व पर्यावरण संरक्षण उद्योग में पूंजी लगाने के लिए प्रोत्साहित करेगा, पश्चिम चीन में विदेशी निवेश के लिए श्रेष्ठ कारोबारों को सूचीबद्ध करने में तेजी लाएगा और विदेशी निवेश को वहां आकर्षित करने की कोशिश करेगा. चीन विदेशी निवेश को अधिक सुविधा देने के लिए प्रबंध व्यवस्था का नवीनीकरण करेगा, सेवा का स्तर उन्नत करेगा और विदेशी पूंजी के निवेश के लिए अच्छे सुव्यवस्थित वातावरण तैयार करेगा।
उप मंत्री वांग ने कहा, इस साल चीन सरकार ने देश में भीतरी मांगों का विस्तार करने तथा आर्थिक वृद्धि को बनाए रखने के लिए सिलसिलेवार कदम उठाए हैं, जिससे धीरे धीरे उपलब्धि हासिल हो रही है। इन कदमों से विदेशी निवेशकों का विश्वास बढ़ गया। अनुमान है कि इस साल चीन में विदेशी पूंजी के निवेश में स्थिर इजाफा होगा ।
उप वाणिज्य मंत्री वांग छाओ ने कहा कि हालांकि चीन के भीतर कारोबारों में उत्पादन लागत बढ़ने के कारण विदेशी निवेश पर थोड़ा असर पड़ा है, किन्तु समग्र स्थिति के अनुसार विश्व में अन्तरराष्ट्रीय आर्थिक पुनरूत्थान आहिस्ते आहिस्ते हो रहा है, विकसित देशों में औद्योगिक बहाली होने लगी है, नवोदित बाजार वाले देशों में विदेशी पूंजी को खींच लेने की शक्ति बढ़ने का भी चीन में विदेशी पूंजी के निवेश पर प्रभाव पड़ेगा।
संयुक्त राष्ट्र व्यापार व विकास सम्मेलन की ताजा रिपोर्ट के अनुसार बहुराष्ट्रीय कंपनियां पूंजी निवेश के लिए जो सब से पसंदीदा देश चुनती हैं, उन में चीन प्रथम स्थान पर है। इस से जाहिर है कि विदेशी निवेशक अभी भी चीन के बाजार और चीन में पूंजी के निवेश पर विश्वस्त हैं।
उप वाणिज्य मंत्री वांग ने कहा कि चीन सरकार ने विदेशी निवेश केलिए वातावरण सुधारने में ढेर सारे काम किए हैं, चीन में कारोबार खोले अधिकांश विदेशी उद्यमी चीन के बाजार एवं चीन में निवेश के प्रति पूर्ण विश्वास रखते हैं। आगे विकास के लिए चीन और अधिक क्षेत्रों को विदेशी निवेशकों के लिए खोलेगा, विशेषकर सेवा उद्योग को खोल देगा और विदेशी निवेशकों को चीन के उच्च स्तरीय निर्माण उद्योग, हाई टेक व आधुनिक सेवा उद्योग में पूंजी लगाने, चीन के पश्चिमी भाग में निवेश करने के लिए प्रेरित करेगा। साथ ही चीनी वाणिज्य मंत्रालय कानून कायदे को और अधिक बेहतर बनाएगा, पारदर्शिता बढ़ाएगा तथा विदेशी निवेश मामलों की जांच व अनुमोदन की प्रक्रिया तथा संबंधित कामकाजों को सरल बनाएगा।
आधा जुलाई खत्म हो चुका है लेकिन देश में मॉनसून की स्थिति अभी भी चिंताजनक बनी हुई है। इस बीच मौसम विभाग ने साफ कर दिया है कि जुलाई में उम्मीद के मुताबिक बारिश नहीं होगी। साथ ही अगर अगस्त-सितंबर में अल नीनो प्रभावित होता है तो स्थिति और भी खराब हो सकती है। खराब मॉनसून की चाल का साफ असर एनसीडीईएक्स पर एग्री कमोडिटी पर देखने को मिल रहा है। एनसीडीईएक्स पर जौ 2 फीसदी की गिरावट के साथ 1,500 रुपये के नीचे कारोबार कर रहा है। हालांकि चने में 1 फीसदी की तेजी आई है और इसका भाव 4,680 रुपये पर पहुंच गया है।एनसीडीईएक्स पर मक्के में 2.5 फीसदी से ज्यादा की उछाल आई है और इसका भाव 1,470 रुपये पर पहुंच गया है। सरसों में भी 2.3 फीसदी की तेजी आई है और भाव 4,300 रुपये पर पहुंच गया है। आलू 3 फीसदी की मजबूती के साथ 1,160 रुपये पर कारोबार कर रहा है। सोयाबीन 3.5 फीसदी की उछाल के साथ 4,600 रुपये पर पहुंच गया है। गेहूं में दबाव देखने को मिल रहा है।एमसीएक्स पर सोने में उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है। फिलहाल सोना 29,275 रुपये पर कारोबार कर रहा है। चांदी में 0.3 फीसदी की गिरावट आई है और इसका भाव 52,600 रुपये के आसपास है। एमसीएक्स पर कच्चा तेल सपाट होकर 4,800 रुपये के नीचे बना हुआ है। एमसीएक्स पर बेस मेटल्स में 0.25 फीसदी तक की गिरावट आई है।मौसम विभाग के मुताबिक पश्चिमोत्तर और कर्नाटक में अब मॉनसून में रिकवरी की उम्मीद पूरी तरह से खत्म हो गई है। हालांकि कई इलाकों में मॉनसून ने जोर जरूर पकड़ा है। लेकिन अभी भी सामान्य से 22 फीसदी कम बारिश हुई है। देश में उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी राजस्थान, पश्चिमी एमपी, मराठवाड़ा, गुजरात, कर्नाटक और तमिलनाडु के कई इलाकों में हालात खराब है। इन इलाकों में अभी भी बेहद कम बारिश हुई है।यहां दलहन और तिलहन के साथ गन्ना, कपास और मक्के की भी खेती होती है। बेशक ऐसी बारिश में इन फसलों की बुआई पर असर पड़ेगा। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक तिलहनों की बुआई में करीब 20 फीसदी की कमी आ गई है।मॉनसून में कमी सरकार की नींद भी उड़ाने लगी है। कृषि मंत्री शरद पवार ने माना कि कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में बारिश की कमी चिंताजनक बात है। बारिश की कमी से निपटने के लिए राज्य सरकारों ने कमर कस ली है।हालांकि शरद पवार ने साफ किया कि अभी सूखे जैसे हालात नहीं हैं और कम बारिश के बावजूद देश में अनाज की कमी नहीं होगी। अनाज के भंडार पर्याप्त होने से बारिश की कमी से अनाज पर असर नहीं होगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा था कि भारत में खुदरा क्षेत्र सहित कई क्षेत्रों में विदेशी निवेश पर प्रतिबंध है। इस स्थिति को देखते हुये उन्होंने भारत में आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने का एक और दौर शुरू करने पर जोर दिया।उन्होंने कहा था कि भारत में खुदरा क्षेत्र सहित कई क्षेत्रों में निवेश करना अभी भी काफी मुश्किल है, ऐसे कई क्षेत्रों में विदेशी निवेश या तो सीमित रखा गया है या फिर इस पर प्रतिबंध है, जबकि निरंतर वृद्धि हासिल करने के लिये यह भारत के लिये जरूरी है।अमेरिकी राष्ट्रपति बाराक ओबामा और अमेरिका कंपनियों को फिर भारतीय मार्केट की जरूरत है। अमेरिकी कंपनियां भारतीय मार्केट में बड़े पैमाने पर आना चाहती हैं। यही कारण है कि ओबामा ने जोर देकर कहा है कि भारत को आर्थिक सेक्टर में बड़े और कड़े फैसले लेने चाहिए। भारत में निवेश का वातावरण खराब होने से अमेरिकी कंपनियां परेशान हो रही हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति की टिप्पणी पर भारत सरकार ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय लॉबी इस तरह की कहानियां फैला रही हैं। ये लॉबी गलत जानकारियां देकर भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था की वास्तविकता को छुपा रही हैं। कंपनी मामलों के मंत्री एम. वीरप्पा मोइली ने कहा कि वोडाफोन जैसी अंतरराष्ट्रीय लॉबी ओबामा को भारत के बारे में सही जानकारियां नहीं दे रही हैं।मोइली ने कहा कि भारत में निवेश के माहौल में गिरावट की सोच अर्थव्यवस्था के मानकों के बजाय कुछ लोगों, उद्यमियों और निवेशकों के बयानों के आधार पर बनाई जा रही है। उन्होंने दावा किया कि निवेश के मामले में अगले दो-तीन महीने में हम एक बार फिर पिछले एक दशक वाली रफ्तार पकड़ लेंगे। उनके मुताबिक, जहां अमेरिका सहित कई देश आर्थिक संकट के दौर से जूझ रहे थे। वहीं, भारत में माहौल एकदम दुरुस्त रहा। भारत दो बार वर्ष 2008 और 2010 के दौरान मंदी के दौर में भी अपनी अर्थव्यवस्था को संभाले रखने में कामयाब रहा है। इस दौरान भारत का एक भी वित्तीय संस्थान नहीं डूबा, जबकि अमेरिका और अन्य देशों में कई वित्तीय संस्थान डूब गए थे।
इस बीच अमेरिकी राष्ट्रपति ने संकेत दिया है कि उनका देश आने वाले समय में दोहरे इस्तेमाल वाली अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी भारत को हस्तांतरित कर सकता है। उन्होंने कहा कि इसका समाधान निकालने के लिए रक्षा विभाग काम कर रहा है।अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक भारतीय समाचार एजेंसी को दिए साक्षात्कार में स्वीकार किया कि भारत को इस तरह की प्रौद्योगिकी मुहैया कराने के लाभ हैं। उन्होंने कहा, हमारे साझा मूल्यों और हितों को देखते हुए मुझे विश्वास है कि हम किसी भी तरह के मतभेद के बावजूद साथ काम करना जारी रख सकते हैं।
ओबामा की ओर से यह भरोसा उस पृष्ठभूमि में आया है, जिसमें दोहरे इस्तेमाल की प्रौद्योगिकी को लेकर दोनों देशों में मतभेद रहा है। इस प्रौद्योगिकी से भारत को वर्षों से उपेक्षित रखा गया है।दोहरे इस्तेमाल की तकनीक से उपेक्षित रखे जाने के कारण भारत का रक्षा और अंतरिक्ष कार्यक्रम प्रभावित हुआ। अमेरिका के कुछ हलकों में इस तरह की चिंता रही है कि इस तकनीक का इस्तेमाल सैन्य उदेश्यों खासकर परमाणु हथियार विकसित करने के कार्यक्रमों में इस्तेमाल किया जा सकता है।
वर्ष 2010 में ओबामा की भारत यात्रा के बाद अमेरिकी सरकार ने दोहरे इस्तेमाल वाली प्रौद्योगिकी से उपेक्षित रखे जाने वाली संस्थाओं की सूची से भारतीय अंतरिक्ष एवं रक्षा संबंधी नौ संगठनों को बाहर करने की घोषणा की थी।
नीति निर्माण को देश का संप्रभु अधिकार बताते हुये वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने सोमवार को कहा कि ओबामा प्रशासन को पहले अमेरिका में संरक्षणवाद और व्यापार प्रतिबंधों को दूर करना चाहिये।अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की इस टिप्पणी कि भारत में आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाया जाना चाहिये, शर्मा ने कहा उन्हें (ओबामा को) अपनी सोच को बताने का अधिकार है लेकिन जहां तक नीति निर्माण की बात है यह हमारा संप्रभु अधिकार है और भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नीति को लेकर माहौल निवेशकों के अनुकूल है।शर्मा ने कई रिपोर्टों का हवाला देते हुये कहा कि भारत में ज्यादातर क्षेत्र प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिये खुले हैं और भारत विदेशी निवेश के लिये आकर्षक स्थल बना हुआ है। उन्होंने कहा कि विभिन्न संकेतक बताते है, विभिन्न नीतिगत उपायों, सुधारों, सरलीकरण, नीतियों को तर्कसंगत बनाने से हमने देश में जो परिवेश बनाया है। आर्थिक सुधारों के रास्ते पर आगे बढ़ते हुये हमने सोची समक्षी नीति को अपनाया है।
शर्मा ने कहा इसके साथ ही ऐसे समय जब अमेरिका में रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं कई भारतीय कंपनियों ने अमेरिका सहित कई देशों में बड़ा निवेश किया है और पांच लाख से अधिक रोजगार सजित किये हैं।उन्होंने कहा कि हम अमेरिका से कहना चाहेंगे कि वह प्रतिबंधों को कम करने में अग्रणी भूमिका निभाये, व्यापार और पूंजी प्रवाह को बढ़ावा दे जो कि दुनिया की सभी अर्थव्यवस्थाओं के लिये अच्छा होगा। अमेरिका को संरक्षणवाद के खिलाफ लड़ाई तेज करनी चाहिये और विश्व व्यापार संगठन की रुकी पड़ी दोहा दौर की विकास वार्ता को सफल बनाने के लिये आगे आना चाहिये।अमेरिका में वीजा फीस बढ़ाये जाने और कई संरक्षणवादी उपायों का भारतीय उद्योग जगत विरोध करता रहा है। भारत सरकार ने भी कई मौकों पर ऐसे संरक्षणवादी उपायों का विरोध किया। बीजा फीस बढ़ाये जाने से भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों का कामकाज प्रभावित हुआ।
शर्मा ने कहा कि बात जब और फैसले लेने की आती है प्रधानमंत्री ने और मैंने भी कहा है कि हम आर्थिक सुधारों के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिये प्रतिबद्ध हैं। सुधारों को बढ़ाने के लिये हम वचनबद्ध हैं। हम आकर्षक निवेश स्थल हैं और आगे भी बने रहेंगे।हालांकि, उन्होंने कहा कि सरकार सभी के साथ विचार विमर्श के बाद ही निर्णय लेती है। सुधारों की धीमी गति को लेकर सरकार उद्योग और विदेशी निवेशकों के एक वर्ग के निशाने पर रही है। विशेषतौर पर बहुब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई अनुमति पर नवंबर 2011 के मंत्रिमंडल के फैसले को सरकार अपने ही एक सहयोगी दल के विरोध के कारण लागू नहीं कर पाई।
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा भारत को दी गई सलाह देश के उद्योग जगत को कोई खास रास नहीं आई है। ओबामा ने भारत में बिगड़ते निवेश माहौल का जिक्र करते हुए कहा है कि सरकार को अब निश्चित तौर पर अपने यहां 'कठोर' आर्थिक सुधारों को लागू करना चाहिए।इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारतीय कॉरपोरेट जगत ने रविवार को कहा कि भारत की समस्याओं का हल देश में ही ढूंढा जाना चाहिए, न कि बाहरी लोगों द्वारा सुझाए गए रास्तों पर चलना चाहिए। हालांकि, इसके साथ ही घरेलू उद्योग जगत ने यह माना है कि देश में आर्थिक सुधार आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं और यहां आर्थिक विकास की रफ्तार धीमी पड़ गई है।ओबामा की ताजातरीन सलाह पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उद्योग जगत ने यह भी कहा है कि भारत अब भी निवेश के लिहाज से आकर्षक देश है। उद्योग जगत का यह भी कहना है कि आने वाले समय में भी भारत में आर्थिक विकास की अच्छी संभावनाएं नजर आ रही हैं।
बराक ओबामा ने वाशिंगटन में एक साक्षात्कार में कहा, 'अमेरिकी कंपनियों का कहना है कि भारत में निवेश करना अब भी काफी कठिन है।'ओबामा की सुधार सलाह पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारतीय कॉरपोरेट जगत ने कहा है कि देश में रिटेल, रक्षा, बीमा और एविएशन समेत कई सेक्टरों में आर्थिक सुधारों के आगे न बढऩे की बात सही होने के बावजूद बराक ओबामा या किसी भी अन्य बाहरी व्यक्ति को यह अधिकार नहीं है कि वह भारत सरकार अथवा यहां के नीति निर्माताओं को किसी बात के लिए निर्देश दे।
मंहगाई के आंकड़े आते ही कारपोरेट इंडिया का दबाव रिजर्व बैंक पर ब्यज दरें घटाने के लिए बढ़ने लगा है। आंकड़ों में मंहगाई घटी है, पर हकीकत की जमीन पर आम आदमी की तकलीफें कम नहीं हुई है। खाद्य वस्तुओं की श्रेणी में जून महीने में सालाना आधार पर सब्जी, 20.48 फीसदी चावल 6.70 फीसदी, गेहूं 7.46 फीसदी तथा दाल 6.82 फीसदी महंगे हुए। सोमवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक जून में थोक मूल्य पर आधारित महंगाई दर घटकर 7.25 प्रतिशत रही, जबकि खाद्य महंगाई मई के 10.74 प्रतिशत से बढ़कर 10.81 पर पहुंच गई। खाद्य महंगाई बढ़ने की वजह सब्जी, गेहूं व दाल की कीमतों में तेजी को बताया जा रहा है। पिछले साल जून में खाद्य महंगाई 9.51 फीसदी के स्तर पर थी।जून के महंगाई दर के आंकड़ों पर उद्योग जगत ने कहा है कि महंगाई में नरमी का रुझान सकारात्मक संकेत है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की महंगाई दर स्थिर बनी हुई है। ऐसे में रिजर्व बैंक को ब्याज दरों में कटौती करनी चाहिए।उपभोक्ताओं के लिए राहत भरी खबर है। जुलाई-सितंबर के दौरान रोजाना इस्तेमाल आने वाले उत्पादों के दाम नहीं बढ़ेंगे। पिछली कम से कम आठ तिमाहियों से इन उत्पादों की कीमतें बढ़ रही थीं। दाम न बढ़ने की वजह यह है कि मार्केटिंग कंपनियों को डर है कि दाम बढ़ाए जाने से उनकी वॉल्यूम ग्रोथ पर असर पड़ेगा। डाबर, मैरिको, ज्योति लैब, गोदरेज कंस्यूमर और इमामी जैसी कंस्यूमर गुड्स कंपनियों के अधिकारियों का कहना है कि इस तिमाही में उनके दाम में कोई खास बढ़ोतरी देखने को नहीं मिलेगी।
उद्योग संगठन सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा कि पिछले साल की तुलना में इस साल महंगाई में नरमी का रुझान है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की महंगाई दर स्थिर है। ऐसे में रिजर्व बैंक को अपनी अगली मौद्रिक समीक्षा में ब्याज दरों में कटौती की जानी चाहिए। इससे कारोबारी भरोसा बढ़ाने के साथ-साथ औद्योगिक विकास को गति देने और आर्थिक वृद्धि दर को रफ्तार बढ़ाने में मदद मिलेगी। बनर्जी ने कहा कि सरकार को आपूर्ति संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिए नीतिगत सुधारों की तत्काल शुरुआत करनी चाहिए।
उद्योग मंडल एसोचैम का कहना है कि मुद्रास्फीति में यह नरमी खाद्य वस्तुएं, खनिज, मेटल और औद्योगिक उत्पादों की कमी से प्रभावित है। संगठन के महासचिव डीएस रावत ने कहा कि सरकार को आपूर्ति बढ़ाने के लिए नीतिगत सुधार करने चाहिए। इसके साथ ही निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए ब्याज दरों में कटौती बहुत जरूरी है। महंगाई दर में नरमी का रुझान देखते हुए रिजर्व बैंक के पास अब ब्याज दरों में कटौती का बेहतर अवसर है।
फिक्की के प्रेसिडेंट आरवी कनोरिया का कहना है कि महंगाई दर में आई कमी को देखते हुए रिजर्व बैंक को अपनी मौद्रिक नीति के रुख पर फिर से विचार करना चाहिए। आर्थिक विकास दर के पहिये को रफ्तार देने के लिए उद्योग जगत को राहत पैकेज देने के साथ-साथ ब्याज दरों में कटौती करने और नीतिगत सुधारों की तत्काल आवश्यकता है।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की तरफ से जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सकल उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई की दर जून में एक माह पहले के 7.55 प्रतिशत के मुकाबले मामूली घटकर 7.25 प्रतिशत रह गई। विनिर्मित वस्तुओं की महंगाई दर 5.02 प्रतिशत की तुलना में मामूली घटकर 5.0 फीसदी पर रही। इस श्रेणी में सूती कपड़ा, रबर व प्लास्टिक उत्पाद, लौह व मशीनरी उत्पादों के दाम पिछले साल की तुलना में कम हुए हैं।
पिछले साल जून में विनिर्मित वस्तुओं की महंगाई दर 7.9 प्रतिशत थी। खाने पीने की चीजों पर नजर डालें, तो सब्जियों की कीमतों में सालाना आधार पर 20.48 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इसी तरह चावल 6.70 फीसदी, गेहूं 7.46 फीसदी महंगा हुआ है, जबकि दालों के दाम पिछले साल के मुकाबले 6.82 प्रतिशत बढ़ गए।
मासिक आधार पर चिकन की कीमत सात फीसदी, चना छह फीसदी, मसूर चार, फल-सब्जियां, अंडा, अरहर, चावल दो फीसदी और चाय, दूध, गेहूं और मीट एक-एक प्रतिशत महंगे हुए। जून में प्राथमिक वस्तुओं की महंगाई दर मई के 10.88 प्रतिशत के मुकाबले 10.46 प्रतिशत रह गई। ऊर्जा समूह की महंगाई दर 11.53 प्रतिशत की तुलना में 10.27 फीसदी रह गई।
ताजा आंकड़ों में अप्रैल की महंगाई दर को 7.55 प्रतिशत से संशोधित कर 7.23 फीसदी कर दिया गया है। महंगाई की दर में नरमी आने से रिजर्व बैंक द्वारा 31 जुलाई को वित्त वर्ष की पहली तिमाही की ऋण एवं मौद्रिक नीति की समीक्षा के समय नीतिगत ब्याज दरों में कटौती किए जाने की उम्मीदें कुछ बढ़ी हैं।
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