Monday, May 20, 2013

वेलकम टू सट्टा बाजार By प्रेम शुक्ल

वेलकम टू सट्टा बाजार

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क्रिकेट में भ्रष्टाचार के लिए बीसीसीआई में बैठे राजीव शुक्ला जैसे ऊंचे ओहदेदार ज्यादा दोषी हैं

दिल्ली पुलिस फिक्सरों को फिक्स करके फिलहाल अपने दामन पर लगनेवाले सारे दागों को धो पोछकर मुस्कुरा रही है। सट्टे और बोली से पैदा हुए क्रिकेट आईपीएल में सट्टेबाजी और स्पॉट फिक्सिंग को उजागर करके वह जैकपॉट मार लेने का दावा कर रही है। उसके इस खुलासे पर दिल्ली और देश का मीडिया भी आफ सीजन कारोबार करने में जुट गया है। लेकिन क्या दिल्ली पुलिस के इस खुलासे का क्रिकेट की उस व्यवस्था पर कोई असर पड़ेगा जिसे देश में बीसीसीआई संचालित करती है। बीसीसीआई की आपात बैठक के बाद बोर्ड के चेयरमैन एन श्रीनिवासन ने क्रिकेट के कारोबार में फैलते भ्रष्टाचार के लिए चिंता तो जरूर जाहिर की लेकिन साथ ही यह भी कह दिया कि इस पर लगाम लगा पाना हमारे लिए संभव नहीं है। क्या वे सही कह रहे हैं? हकीकत तो यह है कि बीसीसीआई में भ्रष्टाचार की कायदे से जांच पड़ताल हो तो खुद श्रीनिवासन और राजीव शुक्ला जैसे लोग जेल के पीछे नजर आयेंगे। आईपीएल के जरिए उभरे क्रिकेट में भ्रष्टाचार पर प्रेम शुक्ल का विश्लेषण-

हर खेल 'गेम' बन चुका है
कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका में जब कोई भ्रष्टाचारी पकड़ा जाता है तो उसे अपने भ्रष्टाचार के मुकद्दमे से रिहाई के लिए व्यवस्था के तमाम भ्रष्टाचारियों से अपनी लूट की रकम का बंटवारा करना पड़ता है। संबंधित विभाग में मामला ताजा रहने तक भ्रष्टाचार फूंक-फूंक कर किया जाता है। क्रिकेट के इस भ्रष्टाचार में संलिप्तता के दौरान बेपर्दा हुए लोगों को इतनी चिंता भी जरूरी नहीं है। हर कोई टीवी कैमरों के सामने नैतिकता की चाहे जितनी कसमें खाए कैमरा हटते ही उनकी नैतिकता का पतन हो जाता है। खेल धर्म की चाहे जितनी बातें की जाएं सच यही है कि लगभग हर खेल 'गेम' बन चुका है अैहर गेम का नियंत्रण खिलाड़ियों की बजाय खेल संस्थानों के संचालकों, प्रायोजकों, जुआरियों और फिक्सरों के हाथ में है। मैच फिक्सिंग के धंधे के पर्दाफाश के मामले में भी हमारा समाज यूरोप से दशकों पिछड़ा हुआ है। अंतर सिर्फ इतना है कि पश्चिम के खेलों में सटोरिए और फिक्सर घुसपैठ का प्रयास करते हैं जबकि हिन्दुस्तान में क्रिकेट नामक खेल के फिक्सर ही उसके नियंता हैं। जब कभी खेल में फिक्सिंग की दुर्गंध आम हो जाती है तो पुलिस या जांच एजेंसियों के सहयोग से किसी श्रीसंत की बलि चढ़ा दी जाती है ताकि खेल की अकूत कमाई को काली नजर न लगने पाए। पहले तो यह समझ लीजिए कि खेल की फिक्सिंग कोई नई चीज नहीं है।

..तो फिक्सिंग पर पूरा ग्रंथ तैयार हो जाएगा
१९१९ में अमेरिकी बेसबॉल कप की फिक्सिंग का पर्दाफाश हुआ था। विश्व कप फुटबॉल, टेनिस के अमेरिकी ओपन-विंबल्डन जैसे टूर्नामेंट में फिक्सिंग आम बात है। घुड़दौड़, बास्केटबॉल, मुक्केबाजी, बैडमिंटन में हुई मैच फिक्सिंग की सिर्फ दशक भर की घटनाओं का सामान्य ब्यौरा भी लिख दिया जाए तो किसी भी विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में पीएचडी के लिए कराए जाने वाले शोध से बेहतर अकादमिक और रोचक ग्रंथ तैयार हो जाएगा। तीन माह पहले ही यूरोप के फुटबाल कप में यूरोपोल मैच फिक्सिंग स्कैंडल सुर्खियों में छाया रहा। यूरोपोल स्कैंडल की जांच में ज्ञात हुआ कि ब्राजील, ग्रीस, फिनलैंड, तुर्की, इटली, जर्मनी आदि में फुटबॉल मैच बीते दशक भर से धड़ल्ले से फिक्स किए जा रहे हैं। सन् २०११ में बोचम में एक कोर्ट ने फुटबॉल मैचों की फिक्सिंग करने वाले एक गिरोह को दंडित किया। इस गिरोह ने कबूल किया था कि उसने १२ यूरोपीय देशों और कनाडा में लगभग ३०० फुटबॉल मैचों को फिक्स किया था। उसी वर्ष फुटबॉल जगत की एक और घटना चर्चित रही जब टैंपर यूनाइटेड को फिनिश लीग से तब निलंबित कर दिया गया जब वह सिंगापुर की एक कंपनी से स्वीकारी गई ३ लाख यूरो की राशि को जायज ठहराने में नाकामयाब रहे।

खेल की बजाय मुनाफाखोरी ही मुख्य उद्देश्य
इसी दौरान 'विकीलिक्स' ने सोफिया की अमेरिकी एंबेसी द्वारा वॉशिंगटन को भेजे गए केबल में किए गए दावे का पर्दाफाश किया जिसमें कहा गया था -'आज बल्गारिया की लगभग सभी टीमों के मालिक या तो संगठित गिरोहों के स्वामित्व के हैं या फिर उनसे जुड़े हुए हैं। ये गिरोह अवैध जुए और मैच फिक्सिंग के बूते ही मोटी कमाई करते हैं और उनका खेल की बजाय मुनाफाखोरी ही मुख्य उद्देश्य है!' फुटबॉल के वैश्विक संगठन फीफा से जुड़े 'फीफप्रो' के डिपार्टमेंट ऑफ कल्चर एंड स्पोट्र्स के अध्यक्ष रिक पैरी ने यूरोपोल स्कैंडल के पर्दाफाश के बाद ब्रिटिश अखबार 'दि गार्डियन' से कहा- 'इसमें कुछ भी नया नहीं है। यूरोपोल में तो फिक्सिंग शुरू से ही रही होगी।' यूरोप और हिन्दुस्तान में अंतर बस यही है कि वहां रिक पैरी जैसे खेल प्रशासक हैं जो काले को काला कहने में संकोच नहीं करते। वहां का समाज अैंर सत्ताधारी वर्ग जब फिक्सिंग में किसी को भी शामिल पाता है तो सामाजिक सम्मान से उसे वंचित कर दिया जाता है। यूरोप और अमेरिका के खेल प्रेमी और प्रशासक पाखंडी नैतिकता की बेजा बहस में उलझने की बजाय रोग के जड़ की शिनाख्त का प्रयास करते हैं।

मालिक मालामाल, खिलाड़ी बेहाल
सैलफोर्ड यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री डेविड फॉरेस्ट ने मैच फिक्सिंग या स्पॉट फिक्सिंग में पंâसने वाले खिलाड़ियों का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि अधिकांश क्लब बदहाली के दौर में पहुंच जाते हैं। क्लब का अधिकांश मुनाफा उसके मालिक डकार जाते हैं। क्लब खिलाड़ियों को नियमित भुगतान नहीं करते जो भुगतान किया भी जाता है वह इतना कम होता है कि अपने खर्च से त्रस्त खिलाड़ी मैच फिक्सरों से सहज सध जाते हैं। जब खिलाड़ी कंगाली के दौर में होगा या संभावित कंगाली उसके मानस पर हावी होगी तो अपराधी ऐसी स्थिति का फायदा उठाने में कामयाब ही होंगे। 'फीफप्रो' ने बीते वर्ष पूर्वी यूरोप के ३,३५७ खिलाड़ियों से बातचीत की तो पाया कि ४१ प्रतिशत खिलाड़ियों को उनके क्लबों ने समय पर भुगतान नहीं किया था। १२ प्रतिशत खिलाड़ियों ने दावा किया कि उन्हें मैच फिक्स करने के लिए संपर्क किया गया था। संपर्क करनेवालों में कई बार क्लबों के मालिक भी शामिल थे। पश्चिमी देशों के खेलों की फिक्सिंग के 'कारटेल' एशियाई गिरोहों के हैं। चीन, भारत, मलयेशिया, थाईलैंड, पाकिस्तान और कंबोडिया के बेटिंग रैकेट ही फिक्सरों की कमान संभालते हैं। हिन्दुस्तान के क्रिकेट की कमान भी फिक्सरों के ही हाथ है।

..तब डालमिया ने कराई थी फिक्सिंग
१९९९ के क्रिकेट विश्वकप का फाइनल खुद तत्कालीन आईसीसी चीफ ने फिक्स किया था। फिक्सिंग के चलते ही फाइनल मैच पाकिस्तान ने कम ओवरों में निपटा दिया। तब यह फिक्सिंग खुद तत्कालीन आईसीसी चीफ जगमोहन डालमिया ने 'निंबस' के प्रमुख हरीश थवानी को सबक सिखाने के लिए की थी। हरीश थवानी जगमोहन डालमिया की मर्जी के खिलाफ विश्व कप क्रिकेट के प्रसारण का अधिकार झटक ले गए थे। सो, थवानी को सबक सिखाना डालमिया अपना परम कर्तव्य मान रहे थे। स्टीव वॉ और मार्क वॉ क्रिकेट में ऑस्ट्रेलियाई प्रभुत्व के शिल्पकार थे। हैंसी क्रोनिए के पर्दाफाश के बाद जब दिल्ली पुलिस के हाथ से जांच सीबीआई को सौंपी गई तो उसे 'इनपुट' मिला था कि स्टीव वॉ क्रिकेट बेटिंग की डी कंपनी के लिए कमान संभालनेवाले शरद शेट्टी की 'बुक' में पार्टनर था।

राजस्थान की जीत, फिक्सिंग का नमूना
जिस राजस्थान रॉयल्स के खिलाड़ी मैच फिक्सिंग के स्कैंडल में इन दिनों सुर्खियों में हैं उसके पहले कप्तान शेन वॉर्न को ऑस्ट्रेलियाई बोर्ड १९९८ में ही बुकी को सूचना देने के आरोप में प्रतिबंधित कर चुका था। आईपीएल के सीजन वन में सबसे सस्ती टीम राजस्थान रॉयल थी। इसका मालिकाना हक पृष्ठभूमि में तत्कालीन आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी के पास था। सबसे सस्ती टीम जिस तरह आईपीएल वन की विजेता बनी वह अपने आप में टूर्नामेंट फिक्सिंग का नमूना है। टीम के वर्तमान मालिक राज कुंद्रा और उनकी ग्लैमरस बीवी शिल्पा शेट्टी के तार दाऊद और छोटा राजन गिरोह से किस तरह जुड़े हैं इसकी पूरी डोजियर इंटेलिजेंस ब्यूरो के पास है। बीते विजेता कोलकाता नाइट राइडर्स का मालिक शाहरुख खान किस तरह छोटा शकील के फोन पर 'हां भाई, जी भाई!' कहता रहा है उसकी कथा दशक भर पहले मुंबई क्राइम ब्रांच में आम थी। शाहरुख खान जब अपनी पीठ का ऑपरेशन कराने गया था तो बेटिंग मार्केट को कंट्रोल करनेवाला एक माफिया सरगना खुद उसकी मिजाजपुर्सी में पहुंचा था। कोलकाता नाइट राइडर्स का एक हिस्सेदार और प्रायोजक रोज वैली नामक चिटफंड कंपनी है। २०१० में रोज वैली 'सेबी' की निगरानी में आ चुकी थी। भारतीय फुटबॉल टीम के लंदन दौरे का प्रायोजकत्व भी इसी कंपनी ने संभाला था, जिसने आखिरी समय पर अपना हाथ खींच लिया था।

माल्या से क्रिकेटर क्या प्रेरणा पाएंगे?
रॉयल चैलेंजर बैंगलोर के मालिक विजय माल्या का कारोबार कभी संदेह से परे नहीं रहा। क्रिकेट में बड़ा जुआ खेलनेवालों में भी उनकी गिनती की जाती है। अपनी कंपनी किंगफिशर के तमाम कर्मचारियों का वेतन और ४०१ करोड़ रुपयों की टीडीएस रकम पचा जानेवाला माल्या आईपीएल की रंगीन रातों पर वैभव लुटाते समय किसी कोण से दिवालिया नहीं नजर आता। माल्या से क्रिकेटर माल लूटने की प्रेरणा नहीं तो क्या खेल भावना की प्रेरणा पाएंगे? बीते वर्ष संसद को केन्द्रीय खेल मंत्री अजय माकन ने खुद बताया था कि आईपीएल और बीसीसीआई को प्रवर्तन निदेशालय फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (फेमा) के तहत १९ नोटिस मार चुका है। आईपीएल और बीसीसीआई प्रवर्तन निदेशालय के आरोपों के अनुसार १०७७ करोड़ रुपयों के घपले कर चुकी हैं।

तो राजीव शुक्ला जेल में होंगे
देवेगौड़ा के प्रधानमंत्रित्व काल के पहले तक यह 'फेमा' 'फेरा' हुआ करता था। यदि आज भी वित्तमंत्री की भृकुटी टेढ़ी हो जाए तो फेमा का मामला प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) में तब्दील हो बीसीसीआई अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन और आईपीएल कमिश्नर राजीव शुक्ला के जेल जाने का पर्याप्त कारण बन सकता है। श्रीनिवासन को वैसे भी केन्द्र सरकार की मेहरबानी से ही जेल की बजाय खुली हवा नसीब है। एन. श्रीनिवासन बीसीसीआई अध्यक्ष होने के साथ-साथ चेन्नई सुपर किंग्स के मालिक भी हैं जिसकी कप्तानी खुद 'टीम इंडिया' के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी करते हैं। सीबीआई के पास जगनमोहन रेड्डी भ्रष्टाचार कांड की जांच के ऐसे तमाम दस्तावेज हैं जिसमें भ्रष्टाचार की फ्रंट कंपनियों में श्रीनिवासन निवेशक हैं। श्रीनिवासन के प्लांट को जगनमोहन रेड्डी के पिता वाईएस राजशेखर रेड्डी ने अवैध जल आबंटन किया। इकोनॉमिक इंटेलिजेंस ब्यूरो का आरोप है कि श्रीनिवासन अपनी इंडिया सीमेंट के साथ-साथ दक्षिण भारत में सीमेंट मूल्य फिक्सिंग का 'कार्टल' भी चलाते हैं।

बेरहमी से क्यों पिटे बर्मन? 
किंग्स इलेवन पंजाब के मालिक और ललित मोदी के रिश्तेदार मोहित बर्मन तो तमाम आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त पाए गए हैं। २००९ में जोहांसबर्ग में आईपीएल के दौरान जब उन्होंने प्रभावशाली दक्षिण अफ्रीकी उद्योगपति अजय गुप्ता के परिवार की एक महिला से छेड़खानी की थी तो उन्हें उनके बॉक्स में ही गिरा-गिरा कर बेदम होने तक पीटा गया था। तब प्रीति जिंटा को प्रभावित करने की फिराक में बीच-बचाव करने गए नेस वाडिया भी चार लात पा गए थे। पुणे वॉरियर्स के मालिक सहारा समूह की जांच पर तो सुप्रीम कोर्ट खुद इन दिनों आमादा है। ऐसे में बीसीसीआई पदाधिकारियों से लेकर क्रिकेट के टिप्पणीकारों तक का मैच फिक्सिंग पर आश्चर्य व्यक्त करना ठीक उसी तरह का शुद्ध पाखंड है जैसे कोलकाता के कोयला व्यापारी संतोष बागरोडिया को केन्द्रीय कोयला (राज्य) मंत्री नियुक्त कर कोयला घोटाले को अंजाम देने वाले प्रधानमंत्री सीएजी की रिपोर्ट के बाद घपले पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं। जैसे नीरा राडिया की मध्यस्थता से दूरसंचार मंत्री बनाने के बाद भी २जी स्पेक्ट्रम घोटाले के पर्दाफाश पर ए. राजा की भूमिका पर पूरा मंत्रिपरिषद आंखें फाड़ता है। जब टी-२० आईपीएल की लगभग हर टीम का मालिक खुद चोरकट है तब खिलाड़ियों से ईमानदारी की उम्मीद क्यों?

http://visfot.com/index.php/current-affairs/9212-welcome-to-satta-bazar.html

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