Sunday, August 25, 2013

अंधविश्वास पर आस्था भारी, ग्राम गोला में धुलेण्डी पर होता है खौफनाक मंजर..


अंधविश्वास पर आस्था भारी, ग्राम गोला में धुलेण्डी पर होता है खौफनाक मंजर.. 



सरोकार देवास | हाटपीपल्या (सिलवेस्टर जेम्स)। विज्ञान कितनी ही तरक्की क्यो न कर ले लेकिन अंधविश्वास का समाप्त करने में भी सफल नही हो पाया है। क्योकि ग्रामीण अंचलों में आज भी अंधविश्वास पर आस्था भारी है।हम बात कर रहे है हाटपीपल्या से 20 किलोमीटर तथा हाटपीपल्या- आष्टा मार्ग से महज 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम गोला की जहाँ प्रत्येक वर्ष की धूलेन्डी की शाम करीब 6 बजे धार्मिक आस्था का हैरतअंगेज गल घूमाने का आयोजन होता है। जो भी यह दृश्य देखता है उसके रोंगटे खडे हो जाते है।क्योकि लोहे के नुकीले हुक में गांव के पडियार चैनसिह की पीठ में छेदकर उसमें हुक पिरोकर उसे उल्टा लटकाकर करीब 20 फीट ऊंचाई पर चारो ओर घुमाया जाता है।यह नजारा देख अंधविश्वास में डूबे श्रद्धालु जयकारे लगाने लगते है और सारा वातावरण जयकारो से गूंज उठता है।इस अनूठे आयोजन को देखने के लिये दूर दराज से हजारो श्रद्धालु आते है। ग्रामीणो की आस्था ग्राम चिलखी के विजेन्द्रसिह सेन्धव का कहना है कि बाबा में हमारी पूर्ण आस्था है इस अवसर पर सच्चे मन से मांगी गई मुराद पूरी होती है।श्रद्धलुओ का मानना है कि पडियार चैनसिह के अन्दर देवता का वास है। लैसे ही गल घुमाया जाता है उपस्थित लोग भगवान मेघनाथ के जयकारे लगाने लगते है। क्या है प्रक्रिया होली का डान्डा गढने से करीब चार दिन पूर्व से ही चैनसिह पडियार अन्न जल त्याग देते है केवल भक्तो द्वारा चढाई जाने वाली शराब गटकते है गांव वालो के मुताबिक बाबा एक दिन में 50 से 60 लीटर शराब पी जाते है। यह क्रम होली की पडवा अर्थात धूलेन्डी तक चलता है। मगर बाबा का जलवा रंगपंचमी तक चलता है। उसके बाद ही वे सामान्य स्थिति में आ जाते है।इस आयोजन के 5 दिन पूर्व से ही बाबा को बाने बैठा दिया जाता है जहाँ गांव की महिलाये धार्मिक रीति रिवाज के साथ प्रतिदिन हल्दी लगाने की रस्म अदा की जाती है। धूलेन्डी के दिन शाम 4 बजे महिलाये गल घूमने वाले स्थान पर पूजा सामग्री लेकर जाती है तथा शाम 6 बजे बाबा को ढोल ढमाके के साथ मंगल गीत गाते हुये दुल्हे की तरह सजाकर ले जाया जाता है। हुक पिरोते समय दर्द नही होता खाण्डेराव बाबा के रूप में पहचाने जाने वाले चैनसिह पडियार को लोहे के नुकीले हुक पीठ की चमडी में पिरोते समय दर्द नही होता है और खून भी नाम मात्र का निकलता है।इन हुको के सहारे जीन बार गल घुमाने के पश्चात बाबा की पीठ की चमडी से लोहे के नुकीले हुक निकाल लिये जाते है।घाव ठीक करने के लिये उन्हे किसी प्रकार के ईलाज की जरूरत नही पडती है। घावो पर हल्दी व भभूत लगाने से चन्द दिनों में घाव ठीक हो जाते है। शराब के नशे में धूत बाबा भक्तो को भभूति के साथ गेहूँ, गुड आदि का प्रसाद देते है तथा मन्नत मांगने वालो को उनका दु:ख दर्द व अन्य बाधायें दूर करने का भरोसा दिलाते है।इसी के साथ बीता हुआ व आने वाले कल के बारे में बताते है।जिस समय बाबा को गल पर घूमाया जाता है उस समय लटकते समय पीट की चमडी 8 से 10 इंच तक तन जाती है। जिसे देख लोग सहम जाते है ऐसा खौफनाक मंजर देखना किसी चमत्कार से कम नही है। क्या कहना है पडियार चैनसिह का कहना है कि यह प्रथा हमारे पुरखो के समय से चली आ रही है। मै मेघनाथ हूँ रावण ने जो पाप सीताजी के साथ किये थे उसकी सजा मै भुगत रहा हूँ कलयुग की समाप्ती तक यह सजा हमारा खानदान भुगतता रहेगा। पुलिस व प्रशासन बेखबर प्रत्येक वर्ष होने वाले इस खौफनाक मंजर को देखने हजारो लोग जाते है लेकिन पुलिस व प्रशासन इससे बेखबर है। और लोग आंखे होकर भि अंधे बने हुवे है..
 — withSarpmitra Akash Jadhav.

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