Wednesday, August 6, 2014

शिकारी शार्क मछलियां निगल रहीं समुंदर,कंपनियां होंगी बेदखल अब और विदेशी होगा खुदरा कारोबार विनिवेश का नया तरीका लाने की तैयारी खुदरा कारोबार में मल्टी ब्रांड एफडीआई और ईटेलिंग के ईकामर्स माध्यमे एकमुश्त कृषि और कारोबार को खत्म कर देने की जुगत है । पलाश विश्वास

शिकारी शार्क मछलियां निगल रहीं समुंदर,कंपनियां होंगी बेदखल अब और विदेशी होगा खुदरा कारोबार

विनिवेश का नया तरीका लाने की तैयारी

खुदरा कारोबार में मल्टी ब्रांड एफडीआई और ईटेलिंग के ईकामर्स माध्यमे एकमुश्त कृषि और कारोबार को खत्म कर देने की जुगत है ।


पलाश विश्वास



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विनिवेश का नया तैयारी लाने की अब तैयारी है क्योंकि बैंकिंग ,बीमा और सारे सरकारी उपकरमं के बेसरकारी करण पूरा हुए बिना सारे संसाधनों का बंदर बांट असंभव है।

केसरिया कारपोरेट बिल्डर प्रोमोटर जियानी धर्मोन्मादी राजकाज की सर्वोच्च प्राथमिकता इसीलिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और विनिवेश हैं। इसी बंदोबस्त के तहत शिकारी शार्क मछलियां निगल रहीं समुंदर,कंपनियां होंगी बेदखल अब और विदेशी होगा खुदरा कारोबार।


न खेत बचेंगे और न बचेगा कारोबार।

बचेगा कबंधों का हुजूम और बचेगा राजनीति व्यापार।

अरबपति बचेंगे,मारे जायेंगे बाकी सारे लोग

चाहे अब हो करोड़ों का कारोबार।


खुदरा कारोबार में मल्टी ब्रांड एफडीआई और ईटेलिंग के ईकामर्स माध्यमे एकमुश्त कृषि और कारोबार को खत्म कर देने की जुगत है ।


छोटे व्यापारियों ने खुदरा क्षेत्र में बड़े औद्योगिक घरानों के प्रवेश के मद्देनजर बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए आम बजट में इस क्षेत्र पर एक विनियामक गठित करने की मांग की है।तो इसी के मध्य सीमा तोड़कर खुदरा वर्चस्व की होड़ मची है ।मसलन स्टील और बिजली क्षेत्र की कंपनी जिंदल स्टील ऐंड पावर ने टीएमटी सरिया के खुदरा कारोबार में कदम रख दिया है।


आम आदमी पार्टी सरकार ने एक महत्त्वपूर्ण फैसले में पूर्ववर्ती शीला दीक्षित सरकार की ओर से राष्ट्रीय राजधानी में बहु ब्रांड खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) को दी गई मंजूरी के फैसले को खारिज कर दिया तो सर आंखों ,पलक पांवड़े पर बिठाकर उसकी कदमबोशी कर रहे सत्ता तबके ने उस अरश से फर्श पर गिरा दिया और उसकी तो कमर ही तोड़ दी गयी।


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लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, 'एकल ब्रांड खुदरा कारोबार में 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति है। अभी तक बहु ब्रांड खुदरा कारोबार में एफडीआई की कोई अनुमति नहीं दी गई है।' वर्तमान नीति के तहत बहु ब्रांड खुदरा क्षेत्र में 51 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति तब दी गई जब संप्रग सरकार ने इस नीति की घोषणा की और भाजपा ने इसका विरोध किया था।

पदभार ग्रहण करने के बाद सीतारमण ने संकेत दिया था कि विदेशी कंपनियों को देश में मेगा स्टोर खोलने की अनुमति नहीं दी जायेगी।

दूसरी तरफ इन वर्षों में चीन में ई वाणिज्य का तेज़ विकास हो रहा है, पिछले साल ई वाणिज्य की धनराशि 100 खरब युआन से अधिक हो गई है। जो पूरे सामाजिक खर्च का 10.9 प्रतिशत है। चीन दुनिया में सबसे बड़ा ऑनलाइन खुदरा बाजार बन गया है।भारत की होड़ चीन से है।इस क्षेत्र को कितना संभावनापूर्ण माना जा रहा है, उसकी एक मिसाल यह भी है कि आज 6 अरब डॉलर के सकल बाजार मूल्य के साथ फ्लिपकार्ट की हैसियत संगठित खुदरा कारोबार करने वाली किसी भी कंपनी से अधिक हो गई है।


ताजा खबरों के मुताबिक सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए सरकार विनिवेश के नए तरीके अपनाने पर विचार कर रही है। सीएनबीसी आवाज़ को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक 10 तारीख को होने वाली सेबी की बोर्ड बैठक में इस नए तरीके के अलग-अलग विकल्पों पर विचार हो सकता है।


सूत्रों का कहना है कि वित्त मंत्रालय ने सेबी से विनिवेश का नया तरीका तलाशने को कहा है। वित्त मंत्रालय और सेबी के अधिकारियों के बीच चर्चा जारी है। नए तरीके में रिटेल निवेशकों को 30-40 फीसदी तक रिजर्वेशन मिल सकता है। विनिवेश की प्रक्रिया अभी के मुकाबले काफी तेज हो सकती है। विनिवेश के लिए 3 अलग-अलग विकल्पों पर विचार मुमकिन है।


सूत्रों की मानें तो सरकार विनिवेश का बिल्कुल नया तरीका चाहती है। ओएफएस में रिटेल निवेशकों को ज्यादा रिजर्वेशन देने का विकल्प है। वहीं एफपीओ के तहत विनिवेश की प्रक्रिया तेज करने का विकल्प है।



डालरनत्थी सर्वनाशी अर्थव्यवस्था का पेंडुलम डोल रहा है और शिकारी शार्क मछलियां शिकार पर निकली समुंदर निगल रही हैं,बड़ी छोटी मछलियां बेखबर हैं क्योंकि बाजार के पैमाने और तथ्य सांढ़ संस्कृति के मुताबिक तिलस्मी भी हैँ और दिलफरेब भी।मसलन डॉलर के मुकाबले रुपये में आज जोरदार गिरावट देखने को मिली है। डॉलर के मुकाबले रुपया आज 4.5 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गया है। 1 डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 65 पैसे की जोरदार गिरावट के साथ 61.49 पर बंद हुआ है। मंगलवार को रुपया 60.84 पर बंद हुआ था। आज डॉलर 11 महीने के ऊपरी स्तर पर पहुंच गया है।


डालरनत्थी अर्थव्यवस्था का शेयर सूचक अब यह कि कमजोर रुपये से सहारा पाकर घरेलू बाजार में कच्चे तेल का दाम करीब 1 फीसदी बढ़ गया है। एमसीएक्स पर ये 6000 रुपये के स्तर पर पहुंच गया है। एमसीएक्स पर कच्चा तेल अगस्त वायदा 1.06 फीसदी की तेजी के साथ 6011 रुपये पर कारोबार कर रहा है। जबकि नायमैक्स पर अभी भी ये 6 महीने के निचले स्तर पर है और 98 डॉलर के नीचे कारोबार कर रहा है। गौर करने वाली बात ये है कि अमेरिका में भंडार घटने के के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सुस्ती छाई हुई है। कल एपीआई की रिपोर्ट आई थी, जिसके मुताबिक वहां क्रूड का भंडार 55 लाख बैरल गिर गया है। आज अमेरिकी एनर्जी डिपार्टमेंट भी अपनी रिपोर्ट जारी करेगा।


कॉमैक्स पर सोने का भाव 1300 डॉलर के नीचे बना हुआ है। हालांकि, रूस-यूक्रेन की बीच तनाव बढ़ने से सोने में बढ़त आने की संभावना है। वहीं, चांदी 20 डॉलर के नीचे है।


पर्याप्त सप्लाई होने की वजह से कच्चे तेल की कीमतों पर दबाव जारी है। नायमैक्स पर कच्चा तेल 98 डॉलर के नीचे है। ब्रेंट क्रूड का भाव 105 डॉलर के नीचे बना हुआ है।



हालांकि शार्क मछलियों का हश्र भी काले अफ्रीकी गैंडों जैसा हो सकता है। काले अफ्रीकी गैंडों का तो शिकारियों ने लगभग पूरी तरह से सफ़ाया कर दिया है। अब ऐसे गैंड़े कुछ अफ्रीकी देशों के राष्ट्रीय उद्यानों में संरक्षित क्षेत्रों में ही पाए जाते हैं। शायद, कुछ वर्षों के बाद, शार्क मछलियों की कुछ प्रजातियों को एक्वैरियम में ही देखा जा सकेगा। हर साल लाखों शार्क मछलियों का शिकार किया जाता है। चीन और कुछ अन्य एशियाई देशों में शार्क मछलियों के परों से पके शोरबे की बड़ी मांग है। वैज्ञानिकों ने इन शार्क मछलियों को विलुप्त होने से बचाने के लिए इन्हें पकड़ने के काम पर कुछ पाबंदियाँ लगाने के लिए अपनी आवाज़ उठाई है।


लेकिन यह आम लोगों की कथा व्यथा जैसी ही पर्यावरण जीवनचक्र की तस्वीर है खूनी नरभक्षी शार्कों के एकाधिकारी वर्चस्व की कथा किंतु अलग है।



इसीलिए बाघों और शार्क मछलियों के विलुप्त हो जाने की कथाओं के मध्य भारतीय मुक्त बाजार व्यवस्था में शिकारी शार्क मछलियों का यह बिंब विरोधाभाषी लग सकता है।


हमारे अग्रज आनंद स्वरुप वर्मा ने नेपाल में नरेंद्र मोदी की विलक्षण वाक् शैली का अद्भुत नजारा पेश करके बताया है कि पर्यावरण बंधु बाघ कैसे नरभक्षी हो जाते होंगे।तो युवा तुर्क अभिषेक श्रीवास्तव ने ग्राउंड  जीरो से केसरिया सत्ताकाल का जो लेखाजोखा अब तक का पेश किया है,वह विपरीतधर्मी विरोधाभासों का पुलिंदा ही हैं।


इसीके मध्य आनंद तेलतुंबड़े ने शैफरन निओलिबरिलज्म पर ईपीडब्लू में लिखा है और हम उसकी हिंदी जल्दी पेश करने वाले हैं।


हालीवूड फिल्मों में नरभक्षी शिकारी शार्क मछलियों की धूम है।तो भारतीय डालर उपनिवेश में इन्ही शार्क मछलियों का राज अब निरंकुश होता जा रहा है।


न खेत बचेंगे और न कारोबार।


मुद्दे पर आयें।आज ही बंगाल में पीपीपी माडल गुजरात के तहत निरंकुश प्रमोटर राज के लिए नई शहरीकरण नीति जारी की गयी है और सरकारी गैरसरकारी जमीन पर आवासीय व्यवसायिक निर्माण के लिए प्रोमोटरों बिल्डरों को थोक भाव से छूट दी गयी है।कहा जा रहा है कि इससे आवास की समस्या खत्म हो जायेगी।हर सर के साथ छत नत्ती हो जायेगी।


कहा जा रहा है कि इसतरह घास को बढ़ने की इजाजत है और गधों को चरने की भी इजाजत।प्रोमोटरों के अपने प्रोजेक्ट में जलाशय वगैरह डालने होंगे तो टैक्स म्युटेशन वगैरह में भी इफरात छूट।


इसपर हम बाद में चर्चा करते रहेंगे।


केसरिया कारपोरेट पद्मप्रलय जारी रखने के लिए संघ परिवार अब सत्तापक्ष के अलावा विपक्ष की भूमिका भी हाईजैक करने लगा है।कांग्रेस का मामला यह जाहिर है ही नहीं।


जिस पार्टी में माताजी अध्यक्ष, पुत्र उपाध्यक्ष,बेटी निकटभविष्य में महासचिव और शायद दामादजी कोषाध्यक्ष हों,उस पार्टी के अंधभक्तों को छोड़कर बाकी किसी को उससे किसी तरह की विपक्षा भूमिका की उम्मीद है तो हैरत होगी।


उत्तराखंड की उलटबांसी में उपचुनावों से लेकर पंचायत चुनावों तक में ढहतीं केसरिया दीवारों से भी हालात बदलेंगे नहीं और इसका इंतजाम यूपी में हो रहे अविराम दंगों के दुश्चक्र से जाहिर है।गुजरात विशेषज्ञों को राजनीतिक  खेल में मात देना शाही जमाने में असंभव ही है।


गौर करने वाली बात है कि अंतरराष्ट्रीय वैश्विक संगठनों से भारत में जनांदोलनों, पर्यावरण और जनअधिकारों से जुड़े बवालिया गैर सरकारी संगठनों यानि एनजीओ को फंडिग पर रोक भारतीय विदेशनीति और राजनय का मुख्य कार्यभार है क्योंकि अब प्रधानमंत्री  और भारत सरकार के पोर्टल से केसरिया एनजीओ नेटवर्क तैयार हो रहा है।आप राय बतायें।परियोजना बनायें।


ग्राउंड वर्क करें और देशी विदेशी फंडिग का पूरा इंतजाम रहेगा।


ताजा उदाहरणःराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सम्बद्ध भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का विरोध किया है। संघ ने कहा है कि अगर सरकार ने इस आशय का विधयेक पेश किया तो वह अन्य यूनियनों के साथ तत्काल हड़ताल करेगा।


देखते रहिये अब कि  बीएमएस सहित विभिन्न केंद्रीय श्रमिक यूनियनों की सात अगस्त को बैठक होगी जिसमें बीमा क्षेत्र में एफडीआई सीमा बढ़ाने के मुद्दे तथा श्रम कानूनों में प्रस्तावित सुधारों पर आगे के कदम का फैसला किया जाएगा। बीएमएस के महासचिव वजेश उपाध्याय ने कहा कि हम संप्रग के समय से ही बीमा विधेयक के खिलाफ हैं।



आपमें प्रतिरोध विरोध का दम तो है नहीं,उनके भरोसे बैठे रहिये,सरगढ़ाकर शूतुरमुर्ग की तरह।लेकिन समझ लीजिये कि यह पैट्रियट मिसाइल प्रतिरोधक इसलिए क्योंकि इंश्योरेंस बिल पर तनातनी बढ़ गई है। इंश्योरेंस सेक्टर में एफडीआई सीमा 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी करने वाले इस बिल पर सहमति बनाने के लिए बुलाई गई सर्वदलीय बैठक टल गई है। यही नहीं, सरकार की मुश्किलें इस बात से बढ़ गई हैं कि एआईएडीएमके भी इस मुद्दे पर विपक्ष के साथ हो गई है। हालांकि सरकार को अब भी उम्मीद है कि वो इसी सत्र में बिल पास करा लेगी।


इंश्योरेंस में एफडीआई के मुद्दे पर विपक्ष भी बंट गया है। समाजवादी पार्टी का कहना है कि वो शुरू से ही एफडीआई का विरोध कर रहे हैं। बीजेपी के करीबी समझे जाने वाले एआईएडीएमके ने कांग्रेस का साथ देने का फैसला किया है। उधर यूपीए के घटक एनसीपी ने इंश्योरेंस बिल का समर्थन किया है।


वहीं अगर सरकार इस बिल को अपने आप पास नहीं करा पाती है तो संसद के संयुक्त अधिवेशन का विकल्प खुला है। हालांकि सरकार के मुताबिक संयुक्त अधिवेशन की नौबत नहीं आएगी। फिलहाल एनडीए को राज्य सभा में 64 सीट हासिल हैं और बिल पास कराने के लिए 122 सीटें चाहिए। एनसीपी से 6 और बीजू जनता दल 7 के सहयोग से 13 वोट और मिल सकते हैं। वहीं एआईएडीएमके से सरकार को 11 वोट की उम्मीद है। इसी के चलते बीएसपी, एसपी मिली तो 24 वोट और मिल जाएंगे और बिल पास कराया जा सकेगा।



इसीतरह मुक्त बाजार व्यवस्था के खिलाफ चीखने चिल्लाने के लिए संघ परिवार का किसान आदिवासी आंदोलन, मजदूर महिला और छात्र युवा  आंदोलन भी पूरे जलवे में हैं।


कोई आंदोलन नहीं है कोई आवाज बुलंद नहीं है मुक्त बाजार के खिलाफ नहीं,बाजारु हिंग्लिश के खिलाफ नहीं,नालेज इकोनामी के खिलाफ नहीं,बेइंतहा बेरोजगारी हायर फायर छंटनी और आटोमेशन के खिलाफ नहीं, न ही अविराम जारी बेदखली के खिलाफ, न ही प्रतिरक्षा से लेकर मीडिया और खुदरा बाजार  तक में एफडीआई के खिलाफ,न बेसरकारीकरण और विनिवेश के खिलाफ,न विनियंत्रण और विनियमन के खिलाफ और न ही डालर प्रभुत्व के खिलाफ कोई मुद्दा है इस प्रायोजित मुख्य विपक्ष के लिए।


लेकिन इस फर्जी मुद्दों और फर्जी आंदोलन में सभी रंग केसरिया में सरोबार हैं और सभी झंडे खून से सराबोर हैं।


उनका विरोध मातृभाषा को प्राथमिकता देने वाली त्रिभाषा फार्मूला को सिरे से खत्म करने पर भी नहीं है।


सीसैट के तहत संपर्क भाषा क्रांति की दिशा में धकेली जा रही है युवा पीढ़ी।


अंग्रेजीपरस्त सत्ता तबके के सारे हित साधते हुए अंग्रेजी भाषा के खिलाफ धर्मोन्मादी जिहाद की घोषणा है।यह हिंदी प्रेम भी नहीं है।सत्ता से नत्थी हिंदी में राजकाज भी उतना ही जनविरोधी है जितना अंग्रेजी।हिंदी में जो धर्मोन्मादी केसरिया तड़का है,वह तो अंग्रेजी और दूसरी भारतीयभाषाओं में अनुपस्थित है।


इसी हिंदी प्रेम की आड़ में सत्तावर्ग ने लेकिन जनसंहारी नीति निर्माण की सूचनाें सिरे से गायब कर दी है।संसद का बजट सत्र है और जनता के मुद्दे पर संसद के भीतर बाहर समानधर्मी सन्नाटा है।


आदिवासियों को जल जंगल जमीन आजीविका से उजाड़ने वाले सलवाजुड़ुम वर्ग का आंदोलन है आदिवासियों के धर्मांतरण के खिलाफ।


यह सबकुछ अरबपति  वर्ग के उमड़ते हुए वर्णनस्ली वर्चस्व के विरुद्ध खंड खंड अस्मिता आंदोलनों के बहुपरिचित भंवर जैसा है,जिसका ग्लोबीकरण,उदारीकरण और निजीकरण से कोई विरोध है ही नहीं।


मसलन,तेलंगना अस्मिता के मध्य आंध्र का विभाजन हो गया और तेलंगाना आंदोलन की ऐतिहासिक विरासत के धारक वाहक उत्तराधिकारियों ने वहां सत्ता की कमान धारण कर ली वैसे ही जैसे बंगाल में वाम अवसान के बाद मां माटी मानुष की सरकार ने।


जैसे कि बंगाल में माटी का धंधा अब धरती उगले सोना ही सोना है,उसीतरह तेलंगना से कृषि जीवी लोगों के हक हकूक बहाल होने की कोई खबर फिलहाल नहीं है। न तेलंगना महाविद्रोह के समय की तरह आदिवासी इलाकों में जारी निजाम के कायदे कानून खत्म होने के आसार हैं।


तेलंगाना से ताजा खबर यह है कि अलग राज्य बन जाने के बाद वहां सौ किसानों की जानें चलीं गयीं कृषि संकट की वजह से।


पवार समय का कारपोरेट दुष्काल खत्म हो जायेगा देश में दसों दिशाओं में पद्म प्रलय से और चुनावी विज्ञापनों की और से आसमान से अच्छे दिन बरसेंगे मूसलाधार ऐसा प्रचार अभियान लेकिन अब भी जोरों पर है।


दूसरी ओर,सलवा जुडुम भूगोल से और सघन बेदखली की खबर ब्रेक हुई है।छत्तीसगढ़ में 4 अल्ट्रा मेगा इस्पात संयंत्रों की स्थापना की जाएगी। राज्य सरकार ने केंद्र को इन परियोजनाओं में सहयोग का आश्वासन दिया है।


जाहिर है कि यह भी पीपीपी गुजराती विकास कामसूत्र का नया अध्याय है,जिसके पन्ने हर राज्य में हर क्षेत्र में और सीमाओं के आर पार खुल रहे हैं।बांग्लादेश और नेपाल में भी।


अधिकारियों ने बताया कि ये अल्ट्रा मेगा स्टील प्लांट बस्तर जिले के डिलीमिली, बिलासपुर के दगोरी, दंतेवाड़ा जिले के गीदम और राजनंदगांव में स्थापित किये जायेंगे। आधिकारिक सूत्रों ने आज यहां बताया कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने राज्य में 4 अल्ट्रा मेगा इस्पात संयंत्रों की स्थापना के लिए केन्द्र सरकार को राज्य की ओर से हर संभव सहयोग का आश्वासन दिया है।


कश्मीर की समस्याएं उलझी हुई है और उस उलझन से किसी का कोई लेना देना नहीं है लोकिन ग्यारह साल बाद वाजपेयी और लद्दाख की जनता का सपना आने वाली 12 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरा करने जा रहे हैं।


जी हां, वाजपेयी ने लद्दाख में रहने वाले लोगों के लिए 24 घंटे बिजली देने का सपना देखा है। 11 साल बाद वाजपेयी और लद्दाख की जनता का सपना आने वाली 12 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरा करने जा रहे हैं। वह 1700 करोड़ रुपए के प्रोजैक्ट का शिलान्यास कर सपने को हकीकत में बदलेंगे।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कारगिल में चुतक और लेह में बाजगो जल विद्युत परियोजनाओं का भी लोकार्पण करेंगे।


यह विकास है या नंगा युद्धोन्माद या थोक रक्षा सौदों की तैयारी या प्रितरक्षा में विदेशी पूंजी बेइंतहा झोंकने का स्थाई बंदबस्त है यह,ऐसा हम फिलहाल बता नहीं सकते।


दूसरे चरण के आर्थिक सुधारों की बेसब्र कारपोरेट वकालत की जेटली चिदंबरम युगलबंदी है तो दूसरी हरित क्रांत की बुलेट ट्रेन भी निकल पड़ी है भारतीय जनगण को रौंदने के लिए।


हम पहले ही पीपीपी माडल के भूमि अधिग्रहण के बारे में लिखते रहे हैं और एफडीआई के इंटरनेशनल नार्म के बारे में।


दूसरी हरित क्रांति से अभिप्राय है संपूर्म रियल्टी प्रोमोशन क्रांति और कृषिजीवी तबके का सफाया।


बेशर्म तरीके से बताया जा रहा है कि मुक्तिकामी कृषिजीवी जनता की मुक्ति जीएम,यानि जिनेटिकेली मोडीफाइड बीजों में हैं और अमेरिका में इन बीजों के किसी दुष्प्रभाव के बारे में पता नहीं चला है।


मनसैंटा के खिलाफ जो जनविद्रोह है,उसे सिरे से ब्लैक आउट करते हुए डंके की चोट पर बीज क्रांति की तैयारी है संपूर्ण स्वदेशी।


जैसे केंद्र में श्रम संशोधन कानून पास होने से पहले ही राजस्थान में सारे श्रम संशोधन लागू कर दिये गये,ठीक उसीतरह बंगालमें पीपीपी गुजराती के मध्य निर्माण विनिर्माम के लिए भूमि लूट का पूरा इंतजाम कर दिया गया है सेजविरोधी सत्ताकाल में।


फ्लिपकर्ट,अमेजन,स्नैप डील और वालमार्ट वे शार्क मछलियां हैं, जो लगती बेहद आकर्षक और निरीह हैं,लेकिन जिनकी आदतें नरभक्षी हैं। इनमें आपस में मारामारी प्रबल है।जो जाहिरा तौर पर सत्तावर्ग का स्वाभाविक आचरण है।


एकाधिकारवादी वर्णनस्ली वर्चस्व के साथ साथ कारपोरेट प्रतिद्वंद्विता का किस्सा हरिकथा अनंत है।


याद करें,सत्तर अस्सी के दशक में नुस्ली वाडिया और धीरुभाई अंबानी की प्रतिद्वंद्विता को तो सिंगुर छोड़ने के रतन टाटा के उस प्रेस कांफ्रेस को भी याद करें कि कैसे उन्होंने सिंगुर आंदलन की पृष्ठभूमि में कारपोरेट प्रतद्वंद्विता का आरोप लगाया था।


अब मुक्त बाजारी पृष्ठभूमि में कारपोरेट देशी विदेशी कंपनियों में सेक्टरवाइज वर्चस्व की हिस्सेदारी तय हो गयी है।मसलन तेल गैस में रिलायंस तो पोर्ट में अदाणी, इस्पात में टाटा तो माइनिंग में वेदांता का वर्चस्व निर्विवाद है।


टेलीकाम में वर्चस्व की लड़ाई बेहद घनघोर रही है और इसीका नतीजा नीरा राडिया टेप प्रकरण है।


इसी तरह आटो,ऊर्जा,इंफ्रा,बीमा,प्रतिरक्षा,चिकित्सा ,शिक्षा,औषधि और रसायन, रेलवे, विमानन,परिवहन,उपभोक्ता सामग्री, सौंदर्य प्रसाधन,मीडिया,मनोरंजन और बाकी तमाम सेक्टरों में भयानक मारामारी है।


लेकिन खुदरा बाजार में जो कुरुक्षेत्र सजा है,उसमें अबकी दफा कुरु वंश के साथ पांडवों का सर्वनाश भी तय है।


गनीमत है कि अभी मल्टी ब्रांड सेक्टर में एफडीआई की इजाजत नहीं है लेकिन ईटेलिंग ईकामर्सके फंडे से पूरा खुदरा कारोबार और एक के साथ एक फ्री बतर्ज ईटेलिंग रिटेलिंग इंफ्रा के लिए भूमि अधिग्रहण निरंकुशका चाकचौबंद इंतजाम है।


अब फ्लिपकार्ट,स्नैपडील,अमाजेन और वालमार्ट में जो आपसी प्रतिद्वंद्विता है वह टेक ओवर का गेस स्टार्टअप है।आवारा लपट पूंजी ईटेलिंग रिटेलिंग के जरिये खुदरा कारोबार की सारी देशी कपनियों के अलावा प्रतिद्वंद्वी दूसरी विदेशी कंपनियों को निगलने वाली हैं तो खेत बी नहीं बचेंगे।


गुजरात में तो कारपोरेटकंपनियं को सस्ती दरों पर जमीन देना ध्येय वाक्य है और ऐसा करिश्मा बंगाल में कामरेडों ने भी सालाना 1300 रुपये के बदले एक हजार एकड़ जमीन की गिप्ट टाटामोटकर्स की दी थी और उस जमीन पर परियोजना के लिए टाटा को बैेंकों से दो सौ करोड़ रुपये महज एक प्रतिशत ब्याज पर मिला था।


सेज से लेकर स्मार्ट बुलेट तक टैक्स होलीडे का विस्तार है तो करों में छूट का सिलसिला जारी है लेकिन मनरेगा खारिज है और सब्सिडी भी समझ लीजिये खारिज है।


भारत में एकमुश्त कृषि आजीविका जल जंगल जमीन नागरिकता और कारोबार हड़पने के लिए अब शार्क मछलियां शिकार पर निकली हैं।बीमा,खुदराबाजार और बैंकिंग सेक्टर में विनिवेश और एफडीआई का एजंडा पूरा हो जाये तो गरीबों की क्या औकात,ज मध्यवर्ग है,उच्चमध्यवर्ग है,वह बी एअर इंडिया बने जाने को है।सामाजिक समता समरस डायवर्सिटी सामाजिक न्याय का यह केसरिया एजंडा है।


बिजनेस स्टैंडर्ड की इस खबर को पढ़कर अंदाजा लगाये कि परिभाषाओं और पैमाने बदल देने से विकास का गल्प किस तरह लहलहाने लगता है।भारत में गरीबों का जितना आंकड़ा दुनिया गिनती है, उसमें अच्छा खासा बदलाव हो सकता है। दरअसल विश्व बैंक क्रय शक्ति समतुल्य सूचकांक (पीपीपी इंडेक्स) में बदलाव तो कर ही चुका है, अब वह वैश्विक गरीबी रेखा में भी बदलाव करने जा रहा है। इन दोनों बदलावों के बाद देश में गरीबों के आंकड़ों में भी व्यापक फेरबदल हो सकता है। माना जा रहा है कि देश में गरीबों की संख्या भारत सरकार और विश्व बैंक की मौजूदा गणना से भी काफी कम हो सकती है।

विश्व बैंक के मुताबिक फिलहाल वैश्विक स्तर पर गरीबी की रेखा के लिए 1.25 डॉलर को आधार माना गया है। लेकिन यह 2005 के पीपीपी सूचकांक पर आधारित है। इसके आधार पर 2010 में भारत में गरीबों की संख्या करीब 40 करोड़ थी। लेकिन पीपीपी सूचकांक में बदलाव इस बात का संकेत है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से बड़ी है और इसकी क्रय शक्ति भी पहले के अनुमानों से अधिक है। इसका मतलब है कि यहां गरीबों की संख्या पिछले अनुमान से कम होगी। विश्व बैंक गरीबी की रेखा को बदले हुए सूचकांक के मुद है।ताबिक ढालने के लिए बदल ही रहा है, लेकिन अर्थशास्त्रियों का शुरुआती जोड़घटाव यही बता रहा है कि भारत में गरीबों की संख्या कम होने जा रही है।

लेकिन वे आगाह कर रहे हैं कि यह महज आंकड़ों की कवाय लेकिन नए आंकड़े जारी होने के बाद न केवल भारतीय अर्थव्यस्था के प्रति धारणा में बदलाव होगा बल्कि विकसित और विकासशील देशों के बीच वैश्विक स्तर पर संसाधनों की साझेदारी का गणित भी इससे गड़बड़ा सकता है। वैश्विक स्तर पर गरीबी के आंकड़ों का कोई खास इस्तेमाल नहीं होता है, लेकिन विकास पर बहस के दौरान ये इशारा करते हैं कि विकसित देशों को किस गरीब देश को वित्तीय मदद करनी चाहिए।


एमडीजी ने कहा था कि 1 अमेरिकी डॉलर से नीचे की आय पर जीवन यापन करने वाले लोगों की संख्या 1990 से 2015 के बीच आधी की जानी चाहिए। विश्व 2015 तक दुनिया को सतत विकास के जो लक्ष्य अपनाने थे, उनमें कहा गया था कि 2030 तक गरीबी को खत्म कर दिया जाए। लेकिन अगर आंकड़ोंं की बाजीगरी से यह पहले ही काफी कम हो जाती है तो क्या होगा?


नया पीपीपी सूचकांक, जो 2005 में संशोधित हुआ था, हलचल मचा चुका है। संशोधित सूचकांक में बताया गया है कि जितना सोचा गया था, भारत उससे बड़ी अर्थव्यवस्था है और यहां के लोगों की क्रय शक्ति भी काफी ज्यादा है। पीपीपी सूचकांक अंतरराष्टï्रीय तुलना कार्यक्रम के तहत विक सित होता है, जिसे विश्व बैंक चलाता है। इस कार्यक्रम के तहत विश्व मेंसैकड़ों जिंसों और सेवाओं की कीमतों की तुलना होती है। इसके अंत में आपको पता चलता है कि विभिन्न देशों में किसी एक ही जिंस की कितनी मात्रा 1 अमेरिकी डॉलर में मिल सकती है।



सहारा समय के मुताबिक ऑनलाइन रिटेल कंपनी फ्लिपकार्ट ने कहा कि वह विलय एवं अधिग्रहण की अपनी योजना को आगे बढ़ाएंगे।

एक अरब डॉलर जुटाने के बाद कंपनी ने एक फॉर्मर वेंचर कैपिटिलिस्ट को हायर किया है।ऑनलाइन रिटेलिंग में फ्लिपकार्ट को टक्कर देने वाली एमेजॉन और स्नैपडील भी कुछ हफ्तों पहले विलय एवं अधिग्रहण की दिशा में आगे बढ़ने के लिए वेंचर कैपिटिलिस्ट को हायर कर चुकी हैं।

सिलिकॉन वैली की वेंचर कंपनी कैनन पार्टनर्स के दिल्ली ऑफिस में बतौर एसोसिएट काम करने वाले निशांत वर्मन को फ्लिपकार्ट ने अपनी इस बिजनेस स्ट्रैटेजी को पूरा करने की जिम्मेदारी सौंपी है।फ्लिपकार्ट की योजना स्टार्टअप्स में भी इनवेस्ट करने की है।


कंपनी के चीफ पीपल ऑफिसर एम माहेश्वरी ने कहा, 'फ्लिपकार्ट को हम भारत में 100 अरब डॉलर की पहली कंपनी बनाने की योजना पर चल रहे हैं। इस दिशा में विलय और अधिग्रहण हमारे विजन का हिस्सा है।'


उन्होंने कहा कि कंपनी ने पिछले दो सालों के सीनियर पोजीशन के लिए कम से कम 20 लोगों को हायर किया है और 'इस तरह के टैलेंट से हमारी बिजनेस वैल्यू बढ़ेगी।'

साउथ अफ्रीकी कंपनी नैस्पर्स और टाइगर ग्लोबल मैनेजमेंट से इनवेस्टमेंट हासिल करने के बाद पिछले हफ्ते कंपनी के को फाउंडर सचिन बंसल ने घोषणा की थी किफ्लिपकार्ट वियरेबल डिवाइसेज, फैशन टेक्नोलॉजी, मोबाइल इंटरनेट और रोबोटिक्स के क्षेत्र में दिलचस्पी दिखाने वाली कंपनियों का अधिग्रहण करेगी। बंसल ने कहा, 'हम सभी क्षेत्रों पर निगाह रखे हुए हैं।'


फ्लिपकार्ट पहले ही फैशन पोर्टल मिंट्रा को 37 करोड़ डॉलर में खरीद चुकी है।



इसी के मध्य  विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) ने 1,528.38 करोड़ रपये मूल्य के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के 14 प्रस्तावों को मंजूरी दी है। इनमें एसीएमई सोलर एनर्जी तथा सिंकलेयर्स होटल्स का प्रस्ताव शामिल है।

एफआईपीबी ने 4 जुलाई को अपनी बैठक में इन प्रस्तावों पर चर्चा की थी। आधिकारिक बयान के अनुसार बोर्ड ने छह कंपनियों के प्रस्तावों को खारिज कर दिया है जबकि सात अन्य के एफडीआई प्रस्ताव को टाल दिया है।

मंजूरशुदा प्रस्तावों के तहत फार्मा कंपनी लौरस लैब्स 600 करोड़ रपये, एसीएमई 275 करोड़ रपये, सिंकलेयर्स होटल्स 41.52 करोड़ रपये तथा गोल्डन एग्री रिसोर्सेज इंडिया 485.9 करोड़ रपये निवेश करेगी। एजीलेंट टेक्नालाजीज, एचएलजी इंटरप्राइजेज, गस्टाड होटल्स व तीन अन्य के प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया है।


देश में जुलाई माह में विनिर्माण और सेवा क्षेत्र की वृद्धि चीन के मुकाबले तेज रही। हालांकि, इस दौरान दुनिया के उभरते बाजारों में उत्पादन वृद्धि की गति कुल मिलाकर धीमी रही। एचएसबीसी ने यह जानकारी दी। एचएसबीसी के उभरते बाजारों के सूचकांक (ईएमआई) में यह संकेत मिला है।

जुलाई के दौरान एचएसबीसी का भारत के लिये विनिर्माण और सेवा क्षेत्र का संयुक्त सूचकांक 53 अंक रहा जबकि इस दौरान चीन संबंधी यह सूचकांक 51.6 अंक, ब्राजील का 49.3 और रूस का 51.3 अंक दर्ज किया गया। 50 अंक से उपर के सूचकांक को गतिविधियों में विस्तार का सूचक माना जाता है।

यह सूचकांक खरीदार प्रबंधकों के सर्वेक्षण के आधार पर तैयार किया जाता है। जुलाई में उभरते बाजारों वाला एचएसबीसी पीएएमआई सूचकांक घट कर 51.7 अंक रह गया। जून में यह 52.3 अंक पर था। इससे दुनिया के उभरते बाजारों में उत्पादन वृद्धि काफी धीमी रही है।

एचएसबीसी के मुख्य अर्थशास्त्री क्रिस विलयम्सन ने कहा, 'उभरते बाजारों की आर्थिक वृद्धि लगातार कमजोर बनी हुई है, विशेषकर विकसित देशों के उत्पादन में आई तेजी से इनकी तुलना करने में इनमें सुस्ती दिखाई देती है।' विकसित देशों में आर्थिक वृद्धि की रफ्तार जुलाई में तेज हुई है। मई 2007 के बाद यह सबसे तेज रही है।

एचएसबीसी की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बाजारों में आने वाले समय में कमजोर रहने की संभावना है। दुनिया की सबसे बड़ी चार उभरती अर्थव्यवस्थाओं में जुलाई में भारत के बाद ब्राजील में उत्पादन में मजबूती रही।

झारखंड, गोवा में अवैध खनन और निर्यात से करोड़ों का नुकसान : शाह आयोग

नई दिल्ली : न्यायमूर्ति एमबी शाह आयोग ने अपनी रिपोर्ट में झारखंड में 22,000 करोड़ रुपये का अवैध खनन, गोवा से 2,747 करोड़ रुपये का अवैध अयस्क निर्यात और ओड़िशा में कंपनियों द्वारा खुल्लम खुल्ला अतिक्रिमण का खुलासा किया है।

आयोग की सोमवार को संसद में पेश रिपोर्ट में नियमों का घोर दुरपयोग किये जाने का आरोप लगाते हुये कंपनियों को दिये गये खनन पट्टे निरस्त करने, नुकसान हुये राजस्व की वसूली और खनन कंपनियों के साथ साठगांठ करने वाले अधिकारियों को दंडित करने का सुझाव दिया गया है।

न्यायमूर्ति एम.बी. शाह आयोग का गठन देश में लौह अयस्क और मैगनीज अयस्क के अवैध खनन और निर्यात की जांच के लिये किया गया था। कई जानी मानी कंपनियों टाटा स्टील, सेल और एस्सल माइनिंग के अलावा उषा मार्टिन और रंगटा माइन्स जैसी छोटी और मध्यम दर्जे की कंपनियों का नाम नियमों का उल्लंघन और गलत कार्यों में सामने आया है।

आयोग ने कहा है कि अकेले झारखंड में ही सार्वजनिक क्षेत्र की सेल, निजी क्षेत्र की टाटा स्टील तथा अन्य कंपनियों ने 22,000 करोड़ रुपये के लौह अयस्क और 138 करोड़ रपये के मैग्नीज अयस्क का कानून अधिकार के बिना ही अवैध खनन किया। आयोग ने अपनी पहली रिपोर्ट में कहा था कि 18 कंपनियों के पट्टे डीम्ड विस्तार के तहत चल रहे थे जिनमें पर्यावरण मंजूरी नहीं मिली थी जबकि 22 खानों में नियमों का उल्लंघन करते हुये खनन कार्य किया जा रहा था। आयोग ने कहा है कि भारतीय खान ब्यूरो और राज्य सरकार के आंकड़ों में लौह अयस्क उत्पादन में 5.34 करोड़ टन उत्पादन का अंतर है।

ओड़िशा पर आयोग की दूसरी रिपोर्ट में कहा गया कि टाटा स्टील और आदित्य बिड़ला समूह की एस्सल माइनिंग एण्ड इंडस्ट्रीज उन्हें पट्टे पर दिये गये क्षेत्र से आगे बढ़कर खनन कार्य कर रही थी। आयोग ने कहा है कि ओडिशा में जहां पट्टा क्षेत्र के 15 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में अतिक्रमण किया गया है वहां खनन पट्टे को निरस्त किया जाना चाहिये। आयोग ने यह भी कहा है कि अतिरिक्त क्षेत्र से किये गये अवैध खनन का आकलन किया जाना चाहिये और पट्टाधारक से इसकी कीमत वसूली जानी चाहिए। इसके अलावा, उपयुक्त दंड भी लगाया जाना चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक सरकार को निर्देश दिया था कि पट्टा क्षेत्र से बाहर किये अतिक्रमण क्षेत्र में खनन से हुए नुकसान की वसूली प्रति हेक्टेयर एक करोड़ रपये के हिसाब से की जानी चाहिये। हालांकि, न्यायालय ने कहा, ओडिशा में पर्यावरण प्रणाली काफी संवेदनशील है, सघन वन है, हाथियों का सबसे बेहतर प्रवास और गलियारा है, इसलिए यहां प्रति हेक्टेयर दो करोड़ रुपये का मूल्‍य वसूला जाना चाहिए।

अमेजन को टक्कर देता फ्लिपकार्ट

सिर्फ सात साल में एक अरब डॉलर की कंपनी बन चुकी फ्लिपकार्ट अब भारत के बाजार में अमेजन को टक्कर देना चाहती है. इसे शुरू करने वाले दोनों भारतीय भी कभी अमेजन में ही काम करते थे.

ई कॉमर्स में काम करने वाली फ्लिपकार्ट का कहना है कि उसने 60 अरब रुपये (एक अरब रुपये) जुटा लिए हैं और इस काम में सिंगापुर की जीआईसी कंपनी भी उसका साथ दे रही है. कभी दुनिया की सबसे बड़ी ऑनलाइन शॉप अमेजन में काम करने वाले सचिन और बिन्नी बंसल ने भारत में 2007 में फ्लिपकार्ट की शुरुआत की. इसकी कामयाबी की वजह से इसे भारत की अमेजन भी कहा जाने लगा है.

सचिन बंसल का कहना है, "हमारी ताजा फंडिंग ई कॉमर्स के बाजार में एक बड़ी उपलब्धि है. बहुत कम इंटरनेट कंपनियां इस तरह सार्वजनिक तौर पर इतने पैसे जुटा पाती हैं." भारत में ऑनलाइन बाजार बढ़ रहा है और पिछले साल करीब 2.3 अरब डॉलर का कारोबार हुआ है. बंसल की कंपनी फ्लिपकार्ट ने म्यूजिक और किताबों के साथ अपना बिजनेस शुरू किया था. लेकिन उन्होंने बहुत तेजी से दूसरी चीजों को भी बेचना शुरू किया. उनका कहना है कि इस तरह की फंडिंग से यह साफ है कि भारत में भी कई अरब डॉलर की कंपनियां बन सकती हैं.

भारत में अमेजन को टक्कर देता फ्लिपकार्ट

टेक्नोपैक की एसोसिएट वाइस प्रेसिडेंट प्रज्ञा सिंह का कहना है कि निवेशक इस बात को समझ रहे हैं कि वे जिस कंपनी में निवेश कर रहे हैं, उन्हें मदद की भी जरूरत है. इससे पहले फ्लिपकार्ट को न्यूयॉर्क की टाइगर ग्लोबल मैनेजमेंट एलएलसी का समर्थन मिला था. उसने इसी साल एलान किया कि वह एक अरब डॉलर के निशान को पार कर चुकी है. उसका कहना है कि उसके 2.2 करोड़ रजिस्टर्ड यूजर हैं और वह हर महीने 50 लाख पैकेट की डिलीवरी करता है.

मई में फ्लिपकार्ट ने अपनी प्रतिद्वंद्वी मिन्त्रा को खरीद लिया, जो भारत में फैशन की दुनिया की सबसे बड़ी ऑनलाइन दुकान थी. वहां क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करने वालों की संख्या बहुत कम है और कई लोग कार्ड होते हुए भी उसका इस्तेमाल नहीं करना चाहते हैं. फ्लिपकार्ट की सबसे बड़ी खूबी "पे ऑन डिलीवरी" है, यानि डिलीवरी के वक्त पेमेंट किया जा सकता है.

अमेरिकी कंपनी अमेजन भारत में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रही है. वह पिछले साल ही भारतीय बाजार में उतरी है और वहां भारी इश्तिहार देने के अलावा ऑर्डर वाले दिन ही डिलीवरी का भी वादा कर रही है. उसने एलान किया है कि वह भारत में बड़े गोदाम भी बनाने वाली है.

टेक्नोपैक की सिंह कहती हैं कि भारत में ई कॉमर्स की कामयाबी बहुत हद तक मोबाइल फोन से जुड़ी है. भारत में ज्यादातर लोग मोबाइल से ही इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं.

एजेए/एमजी (एएफपी, एपी)

मर्जर, एक्विजिशन से बिजनेस बढ़ाएगी फ्लिपकार्ट

Aug 6, 2014, 09.00AM IST

[ माधव चंचानी | बंगलुरू ]

एक अरब डॉलर जुटाने के बाद देश की सबसे बड़ी ऑनलाइन रिटेल कंपनी फ्लिपकार्ट ने मंगलवार को कहा कि उसने विलय एवं अधिग्रहण की अपनी योजना को आगे बढ़ाने के लिए एक फॉर्मर वेंचर कैपिटिलिस्ट को हायर किया है। ऑनलाइन रिटेलिंग में फ्लिपकार्ट को टक्कर देने वाली एमेजॉन और स्नैपडील भी कुछ हफ्तों पहले विलय एवं अधिग्रहण की दिशा में आगे बढ़ने के लिए वेंचर कैपिटिलिस्ट को हायर कर चुकी हैं।

सिलिकॉन वैली की वेंचर कंपनी कैनन पार्टनर्स के दिल्ली ऑफिस में बतौर एसोसिएट काम करने वाले निशांत वर्मन को फ्लिपकार्ट ने अपनी इस बिजनेस स्ट्रैटेजी को पूरा करने की जिम्मेदारी सौंपी है। फ्लिपकार्ट की योजना स्टार्टअप्स में भी इनवेस्ट करने की है। कंपनी के चीफ पीपल ऑफिसर एम माहेश्वरी ने कहा, 'फ्लिपकार्ट को हम भारत में 100 अरब डॉलर की पहली कंपनी बनाने की योजना पर चल रहे हैं। इस दिशा में विलय और अधिग्रहण हमारे विजन का हिस्सा है।' उन्होंने कहा कि कंपनी ने पिछले दो सालों के सीनियर पोजीशन के लिए कम से कम 20 लोगों को हायर किया है और 'इस तरह के टैलेंट से हमारी बिजनेस वैल्यू बढ़ेगी।' साउथ अफ्रीकी कंपनी नैस्पर्स और टाइगर ग्लोबल मैनेजमेंट से इनवेस्टमेंट हासिल करने के बाद पिछले हफ्ते कंपनी के को फाउंडर सचिन बंसल ने घोषणा की थी फ्लिपकार्ट वियरेबल डिवाइसेज, फैशन टेक्नोलॉजी, मोबाइल इंटरनेट और रोबोटिक्स के क्षेत्र में दिलचस्पी दिखाने वाली कंपनियों का अधिग्रहण करेगी। बंसल ने कहा, 'हम सभी क्षेत्रों पर निगाह रखे हुए हैं।' फ्लिपकार्ट पहले ही फैशन पोर्टल मिंट्रा को 37 करोड़ डॉलर में खरीद चुकी है। वहीं एमेजॉन ने बेसेमर वेंचर पार्टनर्स के वाइस प्रेसिडेंट अभिजीत मजूमदार को हायर किया है जो कॉरपोरेट डिवेलपमेंट फंक्शन को देखेंगे। दिल्ली की कंपनी स्नैपडील ने वेंचर फर्म पलाश वेंचर के हेड ऑफ इनवेस्टमेंट अभिषेक कुमार को इसी जिम्मेदारी के लिए हायर किया है।

फ्लिपकार्ट को रिकॉर्ड फंडिंग, देश की सबसे बड़ी कंपनी बनने की राह में फ्लिपकार्ट

NDTVIndia, Last Updated: जुलाई 29, 2014 07:53 PM IST


बेंगलुरु में फ्लिपकार्ट के सीईओ सचिन बंसल मीडिया से मुख़ातिब हुए। फ्लिपकार्ट के सीईओ बंसल का कहना है कि फ्लिपकार्ट इतने भर से संतुष्ट नहीं है। कंपनी मानती है कि अगले पांच साल में वह छह लाख करोड़ रुपये जुटा सकती है। बंसल का कहना है कि अगर ऐसा हुआ तो फ्लिपकार्ट देश की सबसे बड़ी कंपनी होगी।


फिलहाल पांच लाख करोड़ की टीसीएस भारत की सबसे बड़ी कंपनी है। वैसे फ्लिपकार्ट की ये कामयाबी शानदार है।


उल्लेखनीय है कि 2007 में महज चार लाख रुपयों से सचिन और बिन्नी बंसल ने कंपनी शुरू की। 2014 में यह कंपनी 30,000 करोड़ की बताई जा रही है।


लेकिन सबसे ख़ास बात यह है कि अमेजन छोड़कर आए इन दोनों उद्यमियों सचिन और बिन्नी बंसल ने भारत में इस अलग तरह के कारोबार को बिल्कुल शून्य से शुरू कर इस मुकाम तक पहुंचाया है। ये ट्रेंड सेटर कामयाबी है जो भारत में ख़रीददारी का तरीक़ा बदल रही है।

E-Tailers Upload New Life to Land Deals

RAVI TEJA SHARMA

NEW DELHI





Online shopping creates necessity for setting up warehouses, reviving hopes for land owners disappointed by FDI deadlock

A spurt of activity in the online shopping business in India has given a fresh lease of f life to hundreds of land owners who bought land to build warehouses a few years back but were disappointed after a much touted policy of FDI in multi-brand retail became a non-starter.

Amid an investment war, with the American online retail giant Amazon announcing a war chest of $2 billion for India just after Flipkart raised $1 billion in a fresh round of i funding, these companies have begun a massive hunt for warehousing facilities t around the country. i While Amazon is planning to lease over a million square feet of warehousing space within this calendar year to set up what it calls fulfillment centres, Flipkart has recently leased 500,000 sq ft of space across the country and is fitting them out to commission them before this Diwali.

"Flipkart wants to gear up its supply chain for the Diwali rush, which is the equivalent of the Christmas sale season in the US when players like Amazon do a big chunk of their business," says a property consultant who has knowledge of Flipkart's plans.

The Indian online retailer has already sounded out property consultants about its plan to lease 2 million sq ft of warehouses for Diwali 2015. "The space will be leased by April 2015 and will be fitted out by July , just ahead of the festive season," says the consultant.

The policy on FDI in multi-brand retail did not find many takers and eventually became a non-starter because of stiff local sourcing and upfront investment norms.

Amazon had announced last month that it is setting up five more fulfillment centres in Delhi, Chennai, Jaipur, Ahmedabad and on the outskirts of Gurgaon and together with its existing facilities on the outskirts of Mumbai and Bangalore, it has almost doubled its total storage capacity to over half million square feet.

According to another property consultant, Amazon has already leased 16,000 sq ft of warehousing space in Delhi's Mohan Cooperative area and 250,000 sq ft of space in Bhiwandi near Mumbai. It is now looking for space in other cities too.

A spokeswoman for Amazon said, "As a company policy, we do not comment on what we may or may not do in the future." CBRE which did the Mohan Cooperative deal declined to comment. JLL, which did the Bhiwandi deal, also declined to comment. Flipkart was not available for comment.

Another online retailer Snapdeal currently has 40 fulfillment centres in 15 cities. This will be expand to 30 cities within a year.

"We're looking at building 500,000 sq ft of warehousing space in the next one year," says Rohit Bansal, co-founder and chief operating officer of Snapdeal.com The property consultant quoted earlier said Amazon is looking at warehousing space in Jaipur, Ludhiana, Chennai, Hyde rabad, Ahmedabad, and another one in the NCR near Gurgaon. Flipkart too is looking at spaces in newer cities such as Ahmeda bad, Hyderabad, Kochi and Chennai to ex pand its presence.

Finding quality warehousing space, how ever, is a tough task, especially if companies are looking outside of the NCR and Mumbai towards smaller centres. "Developers in Mumbai and NCR have matured enough and are building warehouses with specifi cations matching international company requirements. It is now starting to catch up in other cities as well," says Nirav Kothary head industrial services at property con sultancy JLL.

In cities such as Bangalore, Chennai, Hyd erabad, Jaipur, Lucknow and others a bulk of the large deals are for built-to-suit ware houses, says Anckur Srivasttava, chairman of GenReal Property Advisers, which is working with a few online retailers to lock in space.

According to an estimate, about 70% of the investment by these ecommerce companies goes into setting up the back-end infrastruc ture that includes the warehouse and logis tics facilities.








Aug 06 2014 : The Economic Times (Kolkata)

First of Distress Cries from Newborn Telangana: 100 Farmers Take Lives

RAJI REDDY KESIREDDY

HYDERABAD





New govt fails to help its agrarian populace with waivers, proper power

Telangana is witnessing an epidemic of suicides by farmers who are struggling to repay loans and cope with the distress caused by deficient monsoon rainfall. At least 100 farmers are reported to have taken their lives in the last two months in India's newest state, where the Telangana Rashtra Samithi came to power aided by a promise to write off farm loans.

The revival of monsoon in recent days has bypassed parts of south India, particularly Telangana where the deficit was 48% until August 5. The national shortfall was 19%. No significant progress has been made on loan waivers in a state where some 50 lakh farmers . 50,000 crore in crop owe at least ` loans to banks. Last fortnight, the TRS government announced it would write off up to ` . 1 lakh per farmer, aggregating ` . 19,000 crore.

The distress situation appears more alarming in Telangana as agriculture is largely borewell-dependent in the state where power shortage is severe. Banks have stepped up pressure on farmers to repay loans, apart from declining new loans and threatening to declare them defaulters to initiate recovery of money .

Thousands of irate farmers across Telangana took to the streets protesting erratic power supply to agriculture pumpsets and threatening to attempt suicide. In some cases, the protests became violent and the police used batons to disperse crowds of farmers.

"The most affected in rural India are tenant farmers who do not have access to the formal banking system and are left to de pend on the mercy of private moneylenders," said All India Kisan Sabha vice president Sarampally Malla Reddy .

Reddy accused the public sector research organisations of failing to bring out quality seeds to help farmers attain high yields at affordable prices.

"The farming community is forced to depend on private seed producers and in the process fall prey to sellers of spurious seeds."

Accusing the Telangana government of displaying "reckless apa thy," Donthi Narasimha Reddy, a member of the consultative committee of the Cotton Advisory Board, said that cotton growers have been worst affect but farmers growing other commercial crops are starting to also take their lives.

Kisan Sabha's Malla Reddy said that out of the more than 2,000 suicides reported last year in undivided Andhra Pradesh, nearly 1,400 deaths were in Telangana region and the rest in coastal Andhra and Rayalaseema.

Telangana agriculture minister Pocharam Srinivas Reddy refused to acknowledge the rise in suicides and accused opposition parties of instigating farmers.

Congress legislature party leader K Jana Reddy demanded that the government must "act responsibly" by releasing new loans and subsidising interest on loans over ` .1 lakh availed.

BJP's floor leader G Kishan Reddy said the government should speak to New Delhi and ensure at least nine hours of uninterrupted power supply to agriculture.

"Many farmers are being compelled to sow seeds once again, thereby increasing overall cost of farm inputs sizeably ."





Aug 06 2014 : The Economic Times (Kolkata)

SWAMI SPEAK - Green Revolution 2.0

Honour Norman Borlaug on his centenary by approving GM crops Swaminathan S Anklesaria Aiyar






The most conclusive evidence is that three trillion meals with genetically-modified foods have been eaten in the US with no evidence at all of ill-effects

Patrick Moore, co-founder of Greenpeace but now a strong critic of that organisati on, is livid about the hypocrisy and pseudoscience of activists opposing genetically-modified (GM) foods. These, he says, are critical to increasing agricultural yields, reducing hunger and conquering poverty . He seeks to raise funds to prosecute Greenpeace and other GM opponents for crimes against humanity in international courts.

This is relevant in today's debate in India on GM crops. Many Indian activists have long opposed GM foods, claiming to be saviours of humanity against wicked multinationals promoting monster foods. But Moore would say that the real monsters are the activists. He sees them as ideologues of pseudoscience determined to hurt farm incomes and yields, thus prolonging hunger. These, he says, are crimes against humanity .

Guilty Without Evidence The last UPA government didn't approve even field trials, let alone commercial cultivation, of GM foods. But now the Genetic Engineering Approval Committee has cleared field trials (under stringent controls) of 15 GM crops including rice, brinjal, mustard and chickpeas. This is not approval for commercial sales. It is simply approval to test the varieties. Yet, ideologues oppose even testing.

In effect, they have declared GM foods guilty of being dangerous without evidence, and refuse to permit tests that would establish the evidence.

A major farmers' group like Chengal Reddy's Federation of Farmers Associations has long campaigned in favour of GM crops, saying these are essential to raise farm incomes, and reduce pesticide use. Chengal Reddy points out that farmers spray conventional brinjal with pesticide 30-35 times per crop, whereas Bt brinjal will require only five sprayings.

Far from being more dangerous, Bt brinjal is much safer because of lower pesticide content. Environment minister Prakash Javadekar says no final decision has yet been taken.

Umbilical Cord Called Funds International NGOs now have enormous budgets and channel millions of dollars into developing countries to spread their ideas, good or bad.

Many Indian NGOs now depend critically on dollar inflows for their fortune, fame and future prospects. This explains why they exude so much passion on western agendas like GM crops, while saying relatively little about environmental disasters that India actually needs to focus on, like millions of deaths and disease caused by polluted water and air, the destruction of acquifers by farmers using free electricity to pump excessive amounts of water, and fertiliser misapplication that ruins our soil.

There is no space in this column to go into all the issues relating to GM crops. Suffice to say that the same activists opposing GM foods earlier opposed Bt cotton, a GM variety , as dangerous and useless. In fact, Bt cotton helped double cotton yields, greatly reduced pesticide use and converted India into a major cotton exporter. Over 90% of cotton farmers switched to the Bt variety . Instead of admitting their folly, the activists keep insisting that Bt cotton is actually a disaster, and that poor farmers have been misled by the propaganda of seed companies into adopting Bt cotton. The activists have told repeated lies and published bogus research -which has consistently been proved false in detailed reviews in top scientific magazines like Nature.

It's worth highlighting Mark Lynas, once a famous crusader against GM crops. He has now reversed his anti-GM beliefs as unscientific and untenable given growing evidence that GM foods are potential saviours of the human race, not dangers. The most conclusive evidence, he says, is that three trillion meals with GM foods have been eaten in the US with no evidence at all of ill-effects. Europeans who oppose GM foods conveniently forget their fears when visiting the US as tourists, and happily eat GM food there -with no ill-effects.

In Nature's Footsteps Indian activists who once embraced Lynas now sneer that he is not a scientist and so cannot judge the matter.

However, Moore is a scientist of high repute, and says the same thing. 2014 is the 100th anniversary of the birth of Norman Borlaug, founder of the Green Revolution. The world faced a Malthusian food crisis after World War II, given rapid population growth after the introduction of mass vaccinations and antibiotics.

Environmentalists like Paul Ehrlich predicted global disaster. But Borlaug's hybrid wheat experiments produced new dwarf varieties that revolutionised yields, increasing farm incomes and food availability at the same time. He has been praised for saving one billion lives, more than anybody in history .

Borlaug was an outspoken supporter of GM crops. He blasted anti-GM activists as alarmists ignorant of nature and spreading falsehoods based on imaginary dangers. "There is no evidence that biotechnology is dangerous. After all, Mother Nature has been doing this kind of thing (crossing genes) for god knows how long."

He dismissed anti-GM activists as people who had not produced a kilo of food but yelped about biosafety.

Prakash Javadekar, as environment minister, you must kindly honour Borlaug on his centenary by accepting his position on GM crops, and promoting the research that he held essential for the future of humanity .







Aug 06 2014 : The Economic Times (Mumbai)

Flipkart may Ink BPO Deal with Aegis







Flipkart is in the process of signing a call centre outsourcing deal with Essar Group's Aegis, as the e-commerce company looks to manage increasing scale of its business, reports Jochelle Mendonca from Mumbai.

Flipkart reached $1 billion in sales last fiscal and is on track to breach the $3-billion mark this fiscal. 8



Aug 06 2014 : The Economic Times (Mumbai)

Armoury Full, Big Boys of E-tail Prepare for Battle

MADHAV CHANCHANI

BANGALORE





The Rat Race Begins Flush with cash, Flipkart, Snapdeal and Amazon hire former VC pros to lead acquisition of cos and also invest in startups to steal a march over each other

Days after mopping up $1 billion `6,000 crore) in funding, India's (.

top online retailer Flipkart said it has hired a former venture capitalist to lead its mergers and acquisition team. Rivals Amazon and Snapdeal too in recent weeks have brought in former investors to direct a similar charge as the big boys of Indian online retail prepare to go shopping themselves.

Nishant Verman, earlier an associate in the Delhi office of Silicon Valley venture firm Canaan Partners, will now lead the charge at Flipkart to acquire companies and also invest in startups.

"At Flipkart, we are building India's first $100-billion compa ny and inorganic growth is a strong component of that vision," said Mekin Maheshwari, chief people officer at Flipkart.

The online commerce company has hired at least 20 people in senior positions in the past two years and "this kind of talent adds value to our business", Maheshwari said. Last week, while announcing the investment led by South Africa's Naspers and Tiger Global Management that valued his company at $7 billion, co-founder Sachin Bansal said Flipkart will acquire "interesting companies". in wearable devices, fashion technology, mobile Internet and robotics if it finds such ventures. "We are looking across the board," said the 32-year-old entrepreneur, who set the ball rolling in May with an estimated $370-million buyout of fashion portal Myntra.

Cross-town rival Amazon India has roped in Abhijeet Muzumdar, former vice-president at Bessemer Venture Partners, to lead its corporate development function, while Delhi-based Snapdeal chose Abhishek Kumar -the head of investments at venture firm Palaash Ventures -for a similar role.

A spokeswoman for Amazon India declined comment for this article and the company's investment strategy in India. Experts are of the view that these three etailers, who are flush with cash, will look to buy or invest in hot technology startups as well as single-category retailers as they battle for leadership.

"It is going to be a war," said Avnish Bajaj, managing director at venture firm Matrix Partners India. A day after Flipkart's fund-raising announcement, Amazon's Jeff Bezos said he will invest up to $2 billion to grow his India operations.

Snapdeal, which is on the road for more money, has already received funding of $233 million this year from several investors, including eBay. These companies have picked their M&A heads with care and it is no coincidence that all three executives tasked to hunt for acquisitions are former investors skilled at evaluating emerging ventures.

"So while what they did in a venture fund is important, what they did before is equally as relevant," said Sunit Mehra, partner at executive search firm Hunt Partners.

For instance, Flipkart's Verman who has worked in Microsoft's corporate development team at Seattle, helped see through the acquisitions of digital marketing service aQuantative and telecom application maker Tellme. The deals were together estimated to be worth over $7 billion (Rs 42,000 crore). In India, Verman aims to "support India's thriving startup ecosystem by investing in entrepreneurs who are working on disruptive ideas."

Muzumdar, who will look after investments and M&A in India and Southeast Asia for Amazon, was earlier an investment banker at Edelweiss Capital and UBS. He also led Bessemer's investments in Snapdeal and match-making portal Matrimony.com. Kumar, who joined as head of corporate development at Snapdeal, earlier led new ventures at media firm TV18 Broadcast.

Analysts said that while acquiring single-category online retailers might be the immediate focus for all three leaders pitted in a race for top honours in India's online retail in dustry estimated to reach Rs 50,000 crore by 2016, they will also compete fiercely to buy key technology mak ers in areas like payments and mobile. "We will see consolidation in the market," said Saloni Nangia, head of retail at advisory Technopak.

What is clear though is that these moves will not be made in a hurry. In a recent interview with ET, Snapdeal cofounder Kunal Bahl said "The gen eral track record of integrating large acquisitions has been poor.

The ones that have paid off much better have been more strategic and deeply integrated."

The online marketplace has so far bought three startups group buying site Grabbon, sports and fitness por tal esportsbuy and online market place Shopo.in.

Apart from Myntra, Flipkart bought electronics portal Letsbuy last year and has acquired smaller ventures such as digital distribution ventureMime360, online readers community WeRead and Bollywood content portal Chakpak.


Aug 06 2014 : The Economic Times (Kolkata)

PLAYING A NEW ROLE - BJP's Cousins from Sangh Parivaar New Opposition

NISTULA HEBBAR

NEW DELHI





IT'S OUR RIGHT Just because a BJP govt is in place does not mean that organisations which have worked for years on certain issues will not raise objections..., says RSS With Cong down to 44 in LS, RSS, Swadeshi Jagaran Manch and Bharatiya Kisan Sangh confront govt on issues

The first 65 days of the Narendra Modi-led government have not only signified a break from the old order at the centre but also thrown up a new sort of opposition. With the largest opposition party, the Congress, reduced to a stump of 44 Lok Sabha members, the more evenly balanced Rajya Sabha has turned more consequential. However, the most successful interventions in government policy have been made not by the opposition parties but the ruling BJP's student wing, ABVP, and fraternal organisations of the party's ideological mentor Rashtriya Swayamsevak Sangh ­ the Swadeshi Jagaran Manch and the Bharatiya Kisan Sangh.

The moratorium on field trials of GM crops, the rolling back of the four-year underg raduate programme at Delhi University and, most recently, the agitation on the Civil Services Aptitude Test have all been marked by opposition from within the Sangh Parivar. In Parliament, on the other hand, the government has faced the wrath of the formal opposition in the Rajya Sabha on its stand on the Israeli bombing of Gaza and now the Insurance Bill.

Is this the face of new oppositional politics in the era of a single party wielding majority in Parliament?

Political scientist Zoya Hasan, whose latest work `Congress After Indira: Policy, Power and Political Change 1984-2009' seems particularly prescient now, does not quite see the interventions of the Sangh Parivar affiliates as opposition to the government.

"The RSS and its affiliates cannot be seen as an opposition to the government. Some interventions cannot be seen as opposing a government the RSS worked so hard to get elected," Hasan said, adding, "You cannot ignore the fact important appointments in this government have been made at the behest of the RSS. At best you can say that the RSS can be an opposition within the government, and more realistically as having influence on it."

RSS' publicity chief Manmohan Vaidya defended the interventions, telling ET, "Just because a BJP government is in place does not mean that organisations which have worked for years on certain issues will not raise objections when they see something they don't agree with."

So if the RSS has an "influence" on the government, is the oppositional space in Parliament fated to lie in the upper house? " At the moment, it may look this way , since there is comfort in numbers here, and very credible voices from the Congress have been speaking," said Rajeev Gowda, newly-elected Rajya Sabha member and Congress spokesman. "The circumstances, however, are in no way permanent, both in terms of political development and the character of the upper house," he added.

The government will not be able to draw comfort from the numbers in the Rajya Sabha for another two and a half years, though.

Congress leaders admit that the party will have to increasingly play oppositional politics outside Parliament.

"We will have to fight on ideological issues, and take to the streets," said a senior Congress leader, who did not wish to be named. "In that, we are handicapped as for the last 10 years organisational and ideological matters have been allowed to drift."

Hasan terms Congress a "classic party of governance, which doesn't have the large flank of organisational strength that the RSS provides to the BJP". It is now forced to contend with a government as well as opposition of sorts rooted in its national rival.




Aug 06 2014 : The Economic Times (Kolkata)

COUNTER Point - US Fed Rate Fears, Cheaper China may Stump Indian Markets


MUMBAI





When former US Fed chairman, Alan Greenspan, who enjoyed a 'rock star' status among Americans during his tenure, warned of a significant correction in stocks last week, many on Wall Street sat up and took notice. The remark came amid concerns that the Fed would increase rates soonerthan-expected, which spooked global markets last week.

The weakness rippled through broader emerging markets including India which, so far in 2014, has enjoyed one of its best bull runs since 2009. While perennial optimists consider the recent turbulence as just a hiccup before the next round of rally starts soon, many experienced hands on Dalal Street are gearing up for an onerous toil to spot winners over the next few months.

In short, gone are the magical days when it seemed making money in the stock market was so simple. A key reason for the runup in many stocks in the past six months was because of the limited supply of shares; there was hardly any share sales by companies until more recently, while foreign institutional investors (FIIs) and the affluent locals were lapping up whatever came their way amid the election euphoria.

Now, this is going to change. The government is lining up huge sales of its equity in companies, while many private firms, too,

are queuing up to tap the primary market, resulting in a huge supply of paper over the next many months. The point is if FII inflows are slowing, who will absorb this large supply of paper? Another reason for India optimists to worry is that FIIs are taking fancy to Chinese stocks, which have gained almost 8% in the last month against the 0.5% decline in the Sensex. Analysts are describing the recent gains in the battered Chinese stocks as a prelude to a bull run there. In that case, there is a possibility of FIIs increasing their allocations to cheaper China at the expense of expensive India.

Interestingly, the quality of FII inflows has changed in the past month or so. A large chunk of the flows that have come in from overseas investors in the last month or so are from those overseas fund managers with limited experience in India.

As a broker puts it, their knowledge about India is at best based on the returns data available on Bloomberg, which highlights the stock market's fabulous run so far this year. The experienced foreign fund managers are only too happy to dump their pricey shares in capital goods, infrastructure and power sectors on them and move to technology and pharma.

Some of the influential Dalal Street names are taking it easy when it comes to broad bets.













Aug 06 2014 : The Economic Times (Mumbai)

Online Threat: Cos Tighten Offline Screws

WRITANKAR MUKHERJEE

KOLKATA





Brands like Sony, Samsung and Canon ban stores from selling items via e-commerce sites

Sony, Samsung, Panasonic and other top electronics brands are trying to crack down on brick-and-mortar stores selling their products online, threatening to cut off supplies or penalise them financially as they look to curb the practice of `predatory' discounts.

Lenovo and Canon, along with the three named above, have issued trade advisories banning stores from selling cellphones and other items made by them online directly or indirectly via e-commerce companies.

The yawning gap between prices quoted by popular online shopping sites such as Flipkart, Amazon and Snapdeal and their offline counterparts has added to woes of electronic goods makers in India, some of which are grappling with slipping sales at their brick-and-mortar stores. Manufacturers of electronic goods allege that while some offline traders and distributors list products on online marketplaces and sell them at lower margins, others list products at the manufacturer recommended price, but the host website ends up offering deep discounts by way of coupons and cashback schemes, creating a wide gap in pricing between products available online and offline. We are trying to weed out unhygienic practices to create a healthy environment between online and offline markets," said Amar Babu, managing director at Lenovo India. The company has asked retailers to comply with the trade agreement, which maps out a certain geographical territory where the retailer can sell, he said, adding that Lenovo is also engaging with popular online marketplaces to see how best the impact on offline retailers can be minimised. Panasonic India managing director Man ish Sharma said while the online channel is important, the current situation demands a well-considered set of terms and conditions. Panasonic is trying to maintain price levels to eliminate the confusion among consumers. Email queries sent to Samsung, Sony, Flipkart and Snapdeal remained unanswered till as of press time. A spokesperson for Amazon India said sellers determine the price of products they list and sell on its platform. Two industry executives, who did not wish to be named, said brands such as Sony and Samsung have also entered into an unwritten "gentleman's agreement" with some online stores to ensure that products are not sold below the manufacturer-recommended price or the dealer price. This initiative, formalised about a week ago, has already substantially reduced the gap between the price of some smartphones and tablets. Pulkit Baid, director of electronic retailer the great Eastern, said the move will help create a level-playing field. "The unsustainable pricing in online has been affecting profitability of the offline stores," he said. The chief executive of a leading retail chain, which was selling through online platforms, said some smartphone brands have threatened financial penalties besides supply curbs if products are sold online. However, Canon India executive vice-president Alok Bharadwaj was of the view that an unwritten agreement would not be effective in the long run. He said Canon has decided not to offer any sales incentives to offline distributors who sell online. The company will offer different models for online and offline trade, he added. "We have realised that it is not possible to reach a definite conclusion on how to curb predatory discounts online, hence we are trying to create a mechanism of co-existence with some tolerance to ensure the brand is protected and consumers don't feel cheated," Bharadwaj said. A curb on deep online discounts has been a long-standing demand of offline traders, especially top retail chains. Some brands such as Lenovo, Dell, Nikon and LG have even advised customers against specified online marketplaces, saying products may not be genuine and there












Aug 01 2014 : The Economic Times (Kolkata)

Flipkart, Amazon Gear up to Flex New Muscles

RADHIKA P NAIR

BANGALORE





Etailers plan to open more warehouses, step up hiring and acquire companies

Deep discounts for customers and big incentives for merchants who sell on their marketplace is what Flipkart, India's largest online retailer, is planning as it aims for fourfold growth in sales over the next twelve months.

In the aftermath of the biggest round of fund-raising in India's internet industry, Flipkart and challenger Amazon plan to open more warehouses, hire in larger numbers and acquire companies with newer products or technology as they battle for supremacy in one of the fastest growing markets for online commerce globally.

"It is still day-one of Indian ecommerce," said Amit Aggarwal, vice-president and India

country head at Amazon. On Wednesday, Amazon founder Jeff Bezos said he will spend $2 `12,000 crore) to build billion (.

operations in India without offering a timeframe. The announcement coming a day after Flipkart declared funding of $1 billion from a host of global investors is viewed as the strongest call for battle be tween the two protagonists.

This month, Amazon will add a new category and also increase the range of books and electronics ­ its two main product lines in India -as it powers ahead to reach sales of ` . 6,000 crore this fiscal. In the past year, 8,500 sellers have hawked their wares on Amazon's marketplace.

Flipkart, which adopted a marketplace model last year, aims to increase the number of sellers to 50,000 in the next year from the current level of over 4,000.



Aug 01 2014 : The Economic Times (Kolkata)

Searchlight - THE BATTLE ROYALE - The Game Starts Now

ARCHANA RAI






Prepare to be delighted this Diwali if you plan to shop online on India's top portals. In store for you will be an array of products at rock-bottom prices, a chance to try out apparel at home and return it, if you don't like and the option to pick the time when the delivery boy can come by. All this and more will be fuelled by money from the largest round of fund raising in the Indian consumer internet industry, announced this week. Within a day of Flipkart's `6,000 crore fund raising, Jeff Bezos was ready with his riposte, a war chest of `12,000 crore for India

Top managers who learned to win at any cost during poker sessions on business school campuses around the globe will tell you that it is the chap with the most chips who wins. Ironically, as the play-off begins for top honours in India's online retail industry, it is the lone B-school graduate amongst the top three players who holds the least number of chips in a game where more money is now coming from large corporations and not risk capital investors who placed the initial bets.

To hold his own against Jeff Bezos's Amazonian pile of $2 billion and Sachin Bansal's stash that is largely from South Africa's Naspers, which reportedly picked up half the tab in the recent $1 billion fund raise by Flipkart, Wharton Business School graduate Kunal Bahl will have to persuade his company's corporate backer eBay to shell out much more for Snapdeal than it has done so far. Or he must find new backers willing to wager money drawn from their balance sheets.

With hopes of a quick public listing receding for India's top online retailers, risk capital investors looking for a speedy cash-out will step back while sovereign wealth funds-Singapore's GIC is an investor in Flipkart and state-owned Temasek is backing Snapdeal--remain in the game.

This will also leave the field open for several large Indian companies that have watched from the sidelines.

Mukesh Ambani, whose stores have sold everything from groceries to jewellery and footwear to Indian consumers, has both the money and the gumption for a long-drawn encounter. The Reliance group can also tout prior experience; it was an early investor in India's first ever online retailer, Fabmart.com. The portal which morphed into the Fabmall chain of grocery stores was bought by Kumar Mangalam Birla's group; he too is a contender to join the sweepstakes. Until now, very little rupee capital has gone into building online retail in India, billionaires like Wipro chairman Azim Premji and Infosys cofounder Narayana Murthy being the exceptions. While the Wipro chairman's family office has invested in both Snapdeal and fashion portal Myntra, now a part of Flipkart, Murthy's Catamaran has floated a joint venture with Amazon.

Risk capital investors can point to China, where they have earned handsome returns from investments in online portals like cosmetics retailer Jumei, discount retailer Vipshop or online mall JD.com, but they are all in the shadow of Chinese giant Alibaba.

India, with one of the fastest-growing online retail markets in the world, is the only chance that true game-players have for a shot at being number one. Bezos knows that, which is why he is rattling his pile of chips at the table.

For IIT-Delhi's Bansal who chose a campus placement at Amazon before starting out on his own, this is a chance to best the master at his own game. His recent assertion that "we were like a little kid waiting to grow up, we now have..." appears prophetic.

Indian online retail is indeed, an adult game.

investors looking for a speedy cash-out will step back while sovereign wealth funds-Singapore's GIC is an investor in Flipkart and state-owned Temasek is backing Snapdeal--remain in the game.

This will also leave the field open for several large Indian companies that have watched from the sidelines.

Mukesh Ambani, whose stores have sold everything from groceries to jewellery and footwear to Indian conth the money and the gumption sumers, has both the money and the gumption for a long-drawn encounter. The Reliance group can also tout prior experience; it was an early investor in India's first ever online retailer, Fabmart.com. The portal which morphed into the Fabmall chain of grocery stores was bought by Kumar Mangalam Birla's group; he too is a contender to join the sweepstakes. Until now, very little rupee capital has gone into building online retail in India, billionaires like Wipro chairman Azim Premji and Infosys cofounder Narayana Murthy being the exceptions. While the Wipro chairman's family office has invested in both Snapdeal and fashion portal Myntra, now a part of Flipkart, Murthy's Catamaran has floated a joint venture with Amazon.

Risk capital investors can point to China, where they have earned handsome returns from investments in online portals like cosmetics retailer Jumei, discount retailer Vipshop or online mall JD.com, but they are all in the shadow of Chinese giant Alibaba.

India, with one of the fastest-growing online retail markets in the world, is the only chance that true game-players have for a shot at being number one. Bezos knows that, which is why he is rattling his pile of chips at the table.

For IIT-Delhi's Bansal who chose a campus placement at Amazon before starting out on his own, this is a chance to best the master at his own game. His recent assertion that "we were like a little kid waiting to grow up, we now have..." appears prophetic.

Indian online retail is indeed, an adult game.










Aug 01 2014 : The Economic Times (Kolkata)

ET Q&A - In the Cart: Amazon 2 Flipkart 1







Mobile will be a Focus Area: Amit Agarwal

LOGISTICS Our investment in lo gistics and fulfillment will continue. This helps reduce costs for sellers and enables them to invest into their business further dent focus on SMBs (small and me

INVESTMENT We have been aggressively investing all this while, in categories, in infrastructure. We just added five more fulfillment centres. We are witnessing never-seen before growth rates

BATTLE ROYALE:

It's been a fairytale rise so far for Indian e-comm's flagbearer Flipkart. Now enter its real enemy from Amazon with financial muscle and ready for some `junglee' fight. Who will survive to tell the tale? Watch this space... You ain't seen nothing yet.

What is the time frame for the investment of $2 billion?

We do not share a time frame for the investments. However, this signals our continued investment into the country. We have een aggressively investing all this while, in categories, in infrastructure. We just added five more fulfillment centres. We are witnessing never-seen before growth rates. When will you reach $1 billion in sales?

We cannot disclose the exact time. But across all parameters, we are growing rapidly. As Jeff has clearly said India has become the fastest growing country for Amazon. What will Amazon's strategy look like in India now?

We will keep adding more categories and bringing more sellers. You should see us expanding selection and make it easy for any seller to come online and offer the best and most convenient delivery experience for customers. Mobile will be a focus area. Right now more than 35% of our traffic is coming from mobile and that is amazing. We expect it to continue to grow. Our investment in logistics and fulfillment will continue. This helps reduce costs for sellers and enables them to invest into their business further. How about acquisitions?

We are always looking at organic and inorganic ways to improve customer experience. Is the joint venture with Catamaran -Taurus Business and Trade Services -Amazon's answer to Flipkart's WS Retail? I can tell you what the JV is. It will have an independent focus on SMBs (small and medium businesses). We have seen a strong traction from SMBs.

This is a JV with Amazon Asia and has nothing to do with us.


Killer Sharks vs. Killer Whales - YouTube

Video for Killer sharks► 4:28► 4:28

www.youtube.com/watch?v=6zOrUT0smV8

Mar 1, 2013 - Uploaded by ABC News

Any shark, including the killer shark is deadly afraid of orcas and will always try ... +SneakingViper Great ...

Shark Week - Killer Sharks | Viciously Attacked - YouTube

Video for Killer sharks► 2:27► 2:27

www.youtube.com/watch?v=pdjjvkdrBU0

Aug 2, 2011 - Uploaded by Discovery

Watch Shark Week's KILLER SHARKS Tuesday, August 2, 2011 at 9PM e/p on Discovery.

Killer Sharks vs. Killer Whales Video - YouTube

Video for Killer sharks► 4:28► 4:28

www.youtube.com/watch?v=io69Du-7Eo4

Mar 1, 2013 - Uploaded by BullsEye

Tonight ABC's tiny Rivera brings us a look at what happens when killer whales vs killer sharks beat candidacy ...









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