Sunday, October 20, 2013

असप्तकोटि यक्षप्रश्न द्वि

असप्तकोटि यक्षप्रश्न द्वि

पलाश विश्वास


प्रथमा


तमाम मित्रों से आग्रह है कि कृपया इस पहेली को बूझने में मेरी मदद करें कि आरक्षण महायुद्ध के रथी महारथी तमाम मोर्चे पर जमकर युद्धरत हैं, लेकिन बहुजनों के खिलाफ जारी सर्वात्मक कारपोरेट आक्रमण के खिलाफ उनके शब्दकोश निःशब्द क्यों हैं ?


जबकि इसवक्त नियुक्तियां हो ही नहीं रही हैं और रोजगार है ही नहीं और यह आलम खुला बाजार कारपोरेट राज के निरंकुश हो जाने के कारण बना है?


फिर गौर करें, प्रतिरोध की जमीन पर खड़े हुए बिना अस्मिता और पहचान की खंडित विमर्श के तमाम झंडेवरदार कारपोरेट राज में मलाईदार हैसियत वाले मैनेजर,मंत्री,संतरी सबकुछ हैं।


अब यह सोचने समझने का वक्त बेहद नाजुक है कि हमारे मसीहा हम अंध भक्तों, हम भेड़ बकरियों को कहां किस किस दिशा में हांक रहे हैं।


इस पहेली को सुलझाये बिना,इस चक्रव्यूह को तोड़ने का उपाय नहीं है।

कृपया अपनी राय दें ताकि इसपर बहस की जा सकें और समाधान को कोई तरकीब निकालकर मोर्चा भी बनाया जा सकें।


हर दाने का हिसाब मांग कर अपना हिस्सा मांगा जा सकें।


यह करोड़पतिया सवाल नहीं है और न पुरस्कार सम्मान का कारपोरेट कोई बंदोबस्त है।


आज रविवार है और आगे दिवाली है।


बिसात बिछने से पहले सुरासुर महासंग्राम में किसी स्वप्नादेश से थोड़ा सा अमृत हाथ लगे,तो चाख लीजै।


हालांकि सुदर्शन चक्र से भी डरते रहिये।


सोने के तमाम खजाने अलग खुल रहे हैं।


हम तो बस दिमाग के बंद दरवाजे खिड़कियां खोलने का निवेदन मात्र कर रहे हैं।


हमें सीधे लिख सकते हैं या फिर फेसबुक दीवाल पर अपनी अपनी अमुल्य सूक्तियां टांग सकते हैं महापंडितों की तर्ज पर।


कृपया एसएमएस न भेजें। इससे किसीके कारपोरेट प्राण बचने की संभावना नहीं है और न ही इस तरह आपके अमूल्य विचार हम किसी माध्यम में सहेज सकते हैं।


द्वितीया


हम लगातार लिखते रहे हैं कि लालू ने चारा खाया तो उसे जेल हो गयी।अच्छा हुआ। कानून का राज कायम हो गया। संविधान लागू हो गया।कभी न मिले उसको बेल।


इससे क्या कि उसने हिंदी अस्मिता को स्थापित किया।देहात के मुहावरों को प्रतिष्टा दी। पत्रकार को खुद रांधकर मछली भात खिलाया।

इससे क्या चारा उसने नहीं खाया, पर मुख्यमंत्री वे थे और उनके राजकाज में चारा  घोटाला हुआ।


बाकी देवासुरों के राजकाज में कहीं किसी घोटाले की कोई सूचना नहीं है। बाकी जिसने कोई पापकर्म किया हो और उस पर कार्रवाई हो तो यह एफआईआर भारतीय अर्थ व्यवस्था,शुधार अश्वमेध और विकास दर आंकडों के विरुद्ध होगा।


प्रधानमंत्री बेहद ईमानदार हैं और उनके राजकाज में हुए घोटालों में उनका कोई हाथ ऩहीं है। लिहाजा लालू को बेल न मिले, चुन चुन कर सीबीआई तोता लोगों को ठिकाना लगा दें जो भारत में सामाजिक बदलाव के जिम्मेदार हैं। जो दिल्ली लखनऊ और दूसरी राजधानियों के समीकरण बदलने के जिम्मेदार हैं।


बहुत बेहतर हो कि लालू के बाद बहन मायावती, मुलायमसिंह यादव, शिबू सोरेन, मधु कोड़ा, करुणानिधि, जयललिता, शरद यादव, राम विलास पासवान जैसे असुर संस्कृति के दिग्गजों को जेल के सींकचों में डाल दिया जाये।

इससे भारत में भ्रष्टाचार का अंत हो जायेगा। चूंकि इनके अलावा कोई औप भ्रष्ट हैं ही नहीं। शारा कालाधन इन्हीं के खातों में है। बेहिसाब अकूत संपत्ति सिर्फ इन्हीं की है।


भारत में खुले बाजार की अर्थव्यवस्था से ही विकास संभव है और इसीसे गरीबी हटेगी। जिन्हें हम धर्मांद समझते हैं,युद्ध अपराधी मानते हैं, वे सारे लोग दरअसल इस अर्थव्यवस्था और कारपोरेट राज को मजबूत करते हैं।रक्षा सौदों में कमीशन बिना हथियार मिलते नहीं हैं। कमीशन खाने वाले लोग चाहे लाखों करोड़ खाते रहे हैं,पर देश को तो महाशक्ति बना दिया। विकास के लिए जरुरी है कि दूध देने वाली गाय की लातें हजम की जाये और देश की अर्थव्यवस्था के तमाम दिग्गजों को सालाना लाखों करोड़ की टैक्स छूट के अलावा उनके विरुद्ध घोटालों के अमर्यादित तमाम मामले तुरंत रफा दफा है।


राडिया टेपों को तुरंत बिना देर पवित्रतम धर्मग्रंथ मान लिया जाये क्योंकि अब विकास हमारा धर्म है।


हम मानते हैं कि सत्तावर्ग के तमाम लोग दूध के धुले हैं और महिषासुर वध धारिमक कर्मकांड हैं।


महिष से यादवों का बहुत तगड़ा नाता है।


महाराष्ट्र में यादवों का साम्राज्य रहा है, जिनका आर्यों से लगातार संघर्ष होता रहा है।


सत्रहवीं अठारवी सदी तक भारत भर में शूद्र राजाओं का राज रहा है। लार्ड क्लाइव की ओर से कोलकाता के शोबाबाजार के राजा नवकृष्णदेव की राजबाड़ी से शूद्र राजाओं को असुर महिषासुर बनाने की जो रघुकुल रीति चली आयी, उससे ओबीसी लालू महिषाषुर बना दिये गये और उनका वध शास्त्रसम्मत है।


स्वर्ग की देवसंस्कृति में सारी अनैतिकता नैतिकता है,ऐसा पवित्र ग्रंथों और मिथकों का सारतत्व है।


तो कोयला घोटाला पर इतना हंगामा क्यों बरपा है?


फेयर एंड लवली लगाने के बजाय सुंदरियों को अपने चेहरे पर कोयले की कालिख पोतनी चाहिए क्योंकि वही सर्वोत्तम सौंदर्य प्रसाधन है।


कोयला खाकर लोग कितने सेहतमंद डिओड्रेंट है।


इससे बेहतर तेल पीने से और चमकेगा सौंदर्य,भारतीय अर्थव्यव्स्ता में तेल पीने वालों की चांदनी पर गौर कीजिये।


यह करोड़पतिया सवाल नहीं है और न पुरस्कार सम्मान का कारपोरेट कोई बंदोबस्त है।


आज रविवार है और आगे दिवाली है।


बिसात बिछने से पहले सुरासुर महासंग्राम में किसी स्वप्नादेश से थोड़ा सा अमृत हाथ लगे,तो चाख लीजै।हालांकि सुदर्शन चक्र से भी डरते रहिये। सोने के तमाम खजाने अलग खुल रहे हैं।

हम तो बस दिमाग के बंद दरवाजे खिड़कियां खोलने का निवेदन मात्र कर रहे हैं।


हमें सीधे लिख सकते हैं या फिर फेसबुक दीवाल पर अपनी अपनी अमुल्य सूक्तियां टांग सकते हैं महापंडितों की तर्ज पर।चाहे तो गुगल प्लस या ट्विटर पर भी।


कृपया एसएमएस न भेजें।


इससे किसीके कारपोरेट प्राण बचने की संभावना नहीं है और न ही इस तरह आपके अमूल्य विचार हम किसी माध्यम में सहेज सकते हैं।


No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Welcom

Website counter

Census 2010

Followers

Blog Archive

Contributors