Wednesday, December 25, 2013

बिटिया जिंदाबाद! जब विदा होगी तो बहुत रुलायेगी बिटिया! মেয়ের টিউশনের টাকায় জেলমুক্ত বাবা

बिटिया जिंदाबाद! जब विदा होगी तो बहुत रुलायेगी बिटिया!

মেয়ের টিউশনের টাকায় জেলমুক্ত বাবা


पलाश विश्वास


यह हावड़ा के राजचंद्रपुर की उस बिटिया की तस्वीर है ,जिसने मजदूर बाप के हत्या के आरोप में जेल जाने के बाद परिचारिका बतौर काम करने वाली मां के भरोसे कक्षा सात से एमए तककी पढ़ाई ही ट्यूशन से पूरी नहीं की,बल्कि ट्यूशन के रुपये से अपने बाप के लिए न्याय की कानूनी लड़ाई लड़ती रही लगातार दस साल और आखिरकार दस साल बाद अपने बेगुनाह बाप को जोल से छुड़ा लिया।इलाके के तमाम लोगों को मालूम था कि वह बेगुनाह था।सारे रिश्तेदारों को मालूम था कि वह बेगुनाह था।लेकिन बिटिया की लड़ाई में कोई साथ नहीं था।उसने अकेले जीती यह जंग। इस बहादुर बिटिया की लड़ाई इरोम शर्मिला से कम नहीं है।इस बिटिया को हमारा सलाम।और दुनिया भर की बेटियों का आभार कि वे हमें जो दे रही हैं,हम उसे लौटाने में असमर्थ हैं।लाचार हैं।क्योकि आखिरकार हम स्त्री विद्वेषी पुरुषतंत्र के धारक वाहक हैं।


इलाहाबाद में जब मैं सड़कों पर धूल फांक रहाथा 1979 सर्दियों में,तब इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शोध की कोशिश में भी अन्य विभागों और छात्रावासों में आना जाना रहा है।तभी रामराज के डेरे में भी जाना हुआ।उसी दरम्यान उर्मिलेश से भी मित्रता हुई। उसी दौर के मित्र हैं शैलेंद्र,तेइस साल से हमारे सहकर्मी। उनकी बड़ी बिटिया की व्याह पिछले छह दिसंबर को हो गयी।मैं अपने सहकर्मी राम बिहारी के साथ संस्करण छोड़ने के बाद रात के करीब डेढ़ बजे लिलुआ में रेलवे आफिसर्स क्लब के विवाह मंडप पर जब पहुंचा तो विशुद्ध वैदिकी रस्मो रिवाज के साथ विवाह विधिवत संपन्न हो रहा था।उस वक्त हमारे मित्र रो नहीं रहे थे। 15 तारीख को वे काम पर लौटे। बाकी कोई नहीं हैं। हमारे मित्र डा. मांधाता सिंह कैंसर पीड़ित अपने बड़े भाई का आपरेशन कराने पिछले छह महीने से बीएचयू अस्पताल के चक्कर काट रहे हैं और गनीमत है कि अबकी दफा आपरेशन सही सलामत हो गया।रामबिहारी बिटिया गोल्डी के लिए दूल्हा खोजने आरा अपने देश गये हुए हैं। डा. मांधाता भी दिल्ली में नौकरी करी बिटिया के लिए कई सालों से दूल्हा खोज रहे हैं। बिटिया सुंदर है। कमा भी रही है। लेकिन हर दूल्हा बिकाऊ है। भाव इतने ऊंचे हैं कि बात बन नहीं रही है। और पारिवारिक पृष्ठभूमि ऐसी कि बिटिया प्रेम विवाह के लिए न तैयार है और न घर के लोग जाति धर्म के मामले में कोई ढील बरतने को तैयार हैं।रामबिहारी की भी एक सी समस्या है।


ऐसे में बहुत खुशी  हुई कि जैसे अपने साथी कृष्ण कुमार साह और गंगा प्रसाद की बेटियों की शादी उनके रिटायर करने से पहले बहुततरीके से संपन्न हो गयी,वैसे ही शैलेंद्र ने रिटायर होने से पहले बड़ी बिटिया को विदा कर दिया। छोटी सुंदर है और बहुत अच्छी नौकरी पर है,उसकी शादी भी शैलेंद्र रिटायर होने से पहले कर देना चाहते हैं।


लेकिन बिटिया की शादी के बाद शैलेंद्र का जो हाल देख रहा हूं,उससे बेहद चिंतित हूं। अभी दो दिन पहले मैं रास्ते में ट्रापिक की वजह से फंस  गया था और शैलेंद्र को मालूम भी है कि मैं हर हाल में बिना सूचना दिये दफ्तर से गायब होने से बचता हूं और कहीं भी रहूं,वक्त पर दफ्तर पहुच ही जाता हूं। पूरे पैंतीस साल की आदत है।लेकिन मैं पंद्रह मिनट की दूरी पर ही था कि उसका फोन आया मोबाइल पर।उसने पूछा कि कहां हो।मैंने बता दिया कि दस पंद्रह मिनट में आता हूं।


दफ्तर पर पहुंचा तोदेखा कि वह पसीने से लथपथ।रक्तचाप उसका बढ़ गया और मुझसे बात करने से पहले उसे बेहोशी सी होने लगी है।अब मैं कोई जोखिम नहीं उठा सकता।


मैंने उससे कहा कि कंप्यूटर पर आंख मत फोड़ो,छोड़ दो और घर चले जाओ।सारे पेज मैं छोड़ दूंगा।तब उसकी रुलाई अंदर से जैसे बाहर निकल पड़ी।बोला,बिटिया विदा हो गयी और  तब से रो ही रहा हूं। आंख तब भी नहीं फूट रही है।


यूं बातों ही बातों में उसने एकबार कहा भी था कि जिसकी बेटी न हुई तो वह अभागा है। मेरी कोई बेटी नहीं है।सगी,चचेरी तहेरी मिलाकर घर में तेरह बहनेंथी तो ममेरी और फुफेरी बहने भी असंख्य।एक एक कर चली गयी। हमारे पिताजी अत्यंत उदार थे विवाह के मामले में।उनके हिसाब से लड़का लड़की काबिल हों तो बाकी किसी बात की फिक्र नहीं करनी चाहिए।सारी बहनों की शादी हो गयी और घर में कभी कोई तनाव हुआ ही नहीं।


अब मेरे भाई पंचानन की बिटिया निन्नी दस साल की है। पिछली दफा बसंतीपुर जब गया तो नन्हीं सी थी लेकिन हमारे कहीं से आने पर सबसे पहले पानी वहीं ले आती थी।मेरे खाने सोने की फिक्र भी उसे बहुत थी। तहेरे भाई अरुण की बेटी कृष्णा अब बड़ी हो गयी है और विश्वविद्यालय जो मेरी बहुत अच्छी मित्र है और मुझसे कुछ नहीं छुपाती है।मैंने उससे वादा किया हुआ है कि उसे उसके पसंद का जीवन जीने की आजादी देने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ुंगा।कह दिया है कि जब भी वह व्याह करेगी,अपने पसंद के मुताबिक करेगी और जब चाहेगी तभ,हम कोई दबाव उसपर पड़ने नहीं देंगे।इसीतरह मेरी तहेरी बहन वीणा की बिटिया सुचित्रा फैशन डिजाइनर थी तो हमने उस परकिसी किस्म का दबाव डालने से बहन बहनोई दोनों को मना कर दिया।सुचित्रा के प्रेम प्रसंग के दौरान भी उसने हमसे सलाह मशविरा किया और अंततः उसने अंतरजातीय विवाह कर लिया। हमारे घर में किसी भी भाई ने कोई दहेज नहीं लिया और न ससुराल से कोई उपहार लिये।इसी स्रत पर पिताजी और हम पारिवारिकविवाहों में शामिल होते रहे हैं।हमने अपने भाइयों और बहनों को साफ साफ कह दिया है कि हमारे परिवार में किसी के साथ रंग,नस्ल,धर्म,भाषा और जाति के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए और लड़की लड़केदोनों को विवाह का निर्णय लेने की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए। हम न बेटे और न बेटियों की शादी के लिए दूल्हे दुल्हन की खोज कर रहे हैं और इसका फैसला उन्हीं लोगों पर छोड़ दिया है।


लेकिन हम अपने मित्रों को इसके लिए अब भी राजी नहीं कर सके हैं।जाहिर है कि उनकी समस्या न सुलझने से हम महज चिंतित हो सकते हैं,कोई मदद करने की हालत में नहीं हैं।दहेज की रकम जुटाना मेरे बस की बात है नहीं।


लेकिन बिटिया कलेजा का टुकड़ा होती है,ऐसा हमने अपने मित्रों से सीखा है।

डा.मांधाता सिंह के टिफिन हर रोज रानी बिटिया तैयार करके भेजती है और हम सबकी फरमाइश बी वही पूरी करती है।उसकी रेसिपी फिर हम लोग घर में आजमाते हैं।

सायद कल ही अपने अग्रज मित्र ने बिटिया की क्लिक सेनिकली अपनी तस्वीर फेसबुक पर भेजी तो मैंने शैलेंद्र के अनुभव को याद करते हुए लिखा,बिटिया जिंदाबाद। विदा होते वक्त बहुत रुलायेगी बिटिया।


इसी परिप्रेक्ष्य में जो इस वक्त हम देश दुनिया में होते देख रहे हैं,अपनी अपनी बिटिया रानी को सही सलामतविदा करने  और तजिंदगी उसकी खैर मनाते रहने की फिक्र होने लगी है।पुरुषतंत्र इतना निर्मम सामंती जमाने में भी नहीं रहा है।मध्ययुग में भी स्त्री इतनी असुरक्षित नहीं रही है,जैसे आज है।


फिरभी हाल के वर्षों में इस देश में जो भी प्रतिरोध आंदोलन संभव हुआ, उसकी अगुवाई किसीन किसी घर की लाड़ली ने ही किया, शायद स्त्री की इस स्वाभाविक सामाजिक नेतृत्व पर ही प्रतिशोधात्मक बदले की कार्रवाई कर रहा है वर्चस्ववादी पुरुष तंत्र।


सोना सोरी, इरोम शर्मिला से लेकर अरुंधती राय,कबीर कला केंद्र, सीमा आजाद,बांगाला देश में पक्ष विपक्ष का नेतृत्व,पाकिस्तान में तालिबान का प्रतिरोध,तसलिमा नसरीन का निर्वासित जीवन,हाल के वर्षों में भूमि और भूमि सुधार आंदोलन,चिपको आंदोलन, उत्तराखंड महिला मंच,उत्तरा,मणिपुर की माताएं,गुवाहाटी की सड़क पर नंगी दौड़ा दी गयी आदिवासी लड़की,हमारी लाड़ली बेचियों की कितनी तस्वीरें हैं,जो हबंगाल की कामदुनी तक फैली हुई है।दहेज देने के लिए पूरी तरह तैयार भाई बाप परिवार और समाज अपनी इन बेटियों को आखिर उनके किये के बदले क्या क्या दे पा रहे हैं,सवाल बुनियादी लेकिन यह है।


ये निजी अनुभव आपको एक मजदूर बिटिया की दस सालों से कैद अपने निर्दोष बाप को रिहा कराने की बचपन से लेकर युवावस्था की ताजा कथा को सुनाने के लिए आपको मैं शेयर कर रहा हूं।



Murder convict acquitted after 10 yrs

OUR LEGAL REPORTER

The high court on Tuesday acquitted a man who has spent nine-and-a-half years in jail on the charge of murdering his friend. Jagat Kumar Sarkar's graduate daughter raised money for his prolonged legal battle by giving private tuition.

The division bench of Justice A. Bose and Justice S. Sadhu ordered immediate release of the Bally resident, lodged in Alipore Central jail.

"The police, particularly former sub-inspector of Bally police station, Asit Kumar Sen, had drawn up a false case against Jagat Kumar Sarkar and fabricated a story that he had surrendered at the police station and admitted having murdered friend Sakti Chakrabarty," the bench observed.

Sarkar, who had been arrested on May 14, 2004, and Chakrabarty were colleagues at a small lathe factory in Howrah. The prosecution claimed that a drunk Sarkar had murdered Chakrabarty by hitting his head with a hammer.

The case diary submitted by the police in the trial court read: "Around 5.55am on May 14, 2004, Jagat Kumar Sarkar came to Bally police station and told the police that he had murdered one of his friends, Sakti Chakrabarty. He also said he had kept the body beside a culvert. The body and the murder weapon were recovered."

An additional sessions judge of Howrah pronounced Sarkar guilty and sentenced him to life imprisonment on March 2008.

The high court division bench, however, observed: "Actually, the police had first recovered Chakrabarty's body from beside the culvert and then arrested Sarkar and charged him with murder." The judges also held that there was no evidence that Sarkar had brought the body to the spot near the culvert.

"During his stay at Alipore Central jail, Sarkar taught drawing to fellow prisoners. He also took an active role in the production of Alokananda Roy's Balmiki Pratibha," Sarkar's counsel Jayanta Narayan Chatterjee said.

Sarkar's daughter Jhuma, who graduated in history and is doing an MA, said: "My faith in his innocence prompted me to raise money for the legal battle by giving private tuition. My mother works as a domestic help. She brought me up. I had resolved that I would not marry before my father's innocence was proved."

http://www.telegraphindia.com/1131225/jsp/calcutta/story_17716098.jsp#.UrrQGdIW3p8


মেয়ের টিউশনের টাকায় জেলমুক্ত বাবা

অশোক রায় ও সুপ্রকাশ চক্রবর্তী


বাবা কোনওদিন পিঁপড়েও মারতে দেননি৷ অথচ সেই বাবাই কিনা মানুষ মেরেছেন! কী করে হয়? মানতে পারেনি সপ্তম শ্রেণির ছাত্রী ঝুমা সরকার৷


মানতে কেউই পারে না৷ কয়েকদিন বাদে সবাই ভুলেও যায়৷ কিন্ত্ত ভোলেনি ঝুমা৷ দশ বছর জেল খাটার পর বাবাকে সে ফিরিয়ে এনেছে৷ মঙ্গলবার কলকাতা হাইকোর্ট জানিয়েছে, ঝুমার বাবা জগত্‍ সরকার নির্দোষ৷ কারণ, অভিযোগ প্রমাণই করতে পারেনি পুলিশ৷ দিন কয়েক আগে একই ভাবে ১২ বছর জেল খাটার পর মুক্তি পেয়েছিলেন অপরাজিতা বসু৷ হাইকোর্টের মতে, তিনিও ছিলেন 'সম্পূর্ণ নির্দোষ'৷ কিন্ত্ত মুক্তি পেলেও কলঙ্ক ধুয়ে যায় কি! পাড়া-পড়শিরা মুখ ফিরিয়ে নিয়েছে৷ চেনা মানুষগুলি হঠাত্‍ই হয়ে পড়েছে অচেনা৷


বছর দশেক আগে যখন বাবাকে ধরে নিয়ে যায় পুলিশ, তখন ঝুমার বয়স মাত্র ১১-১২৷ সপ্তম শ্রেণিতে পড়ে৷ আইনের চোখে তার বাবা 'খুনি'৷ কিন্ত্ত নিজের দরবারে বাবা নির্দোষ৷ কারণ, পিঁপড়েও মারতে দেয়নি যে৷ পণ করেছিল, বাবাকে সে ফিরিয়ে আনবেই৷ কিন্ত্ত বললেই কী হয়! একে ওইটুকু মেয়ে৷ তায় বাড়িতে হাঁড়ির হাল৷ রাজমিস্ত্রির কাজ করে বাবা আর কত টাকাই রোজগার করতেন! হাওড়ার অতিরিক্ত জেলা ও দায়রা আদালতের ফাস্ট ট্র্যাক কোর্ট বাবাকে যাবজ্জীবন আঁধার কুঠুরিতে পাঠিয়ে দেয়৷ দু'মুঠো ভাতের জন্য মা শুরু করেন পরিচারিকার কাজ৷ কিন্ত্ত পড়াশুনোটা বন্ধ করেনি ঝুমা৷ দাঁত চেপে লেখাপড়া চালিয়ে যায়৷ মাধ্যমিকের গণ্ডি পেরোনোর সময় আনন্দ হয়েছিল খুব৷ একই সঙ্গে দুঃখও৷ বাবা তো জেলে৷ মাধ্যমিক পাশ করে টিউশন শুরু করে ঝুমা৷ নিজের পড়ার খরচ এবং বাবার জন্য আইনি লড়াইয়ের খরচ৷ একটু একটু করে সে ভাঁড়ে টাকা জমায়৷ একই সঙ্গে ডিঙোয় উচ্চ মাধ্যমিকের চৌকাঠ৷ তার পর কলেজ৷ টিউশনের টাকা জমিয়েই ঝুমা আইনজীবী ঠিক করে৷ বাবাকে মুক্ত করতেই হবে৷ শিক্ষিত মেয়ে৷ বিয়ের সম্বন্ধও এসেছে অনেক৷ কিন্ত্ত যতদিন বাবা না-ফিরছে, ততদিন বিয়ে নয়৷ নিজের সাধ-আহ্লাদ জলাঞ্জলি দিয়েছে ঝুমা৷ এতদিনে সেই লড়াই সার্থক৷ ১০ বছর বাদে মঙ্গলবার কলকাতা হাইকোর্ট যখন বেকসুর খালাস ঘোষণা করল প্রৌঢ় জগত্‍ সরকারকে, তখন এমএ-র ছাত্রী ঝুমার দু'চোখে জল নেমে এসেছে৷ আত্মহারা বাবাও৷ রাজমিস্ত্রির মেয়ে এত জোর পেল কোত্থেকে! অবাক জগত্‍বাবু৷


২০০৪-এর ১৪ মে বালির রাজচন্দ্রপুরে রেল স্টেশনের ধারে কালভার্টের নীচে শক্তি চক্রবর্তী নামে এক ব্যক্তির দেহ উদ্ধার হয়৷ তিনিও ছিলেন পেশায় রাজমিস্ত্রি৷ বালি থানার তত্‍কালীন এসআই অসিতকুমার সাউ স্বতঃপ্রণোদিত হয়ে খুনের মামলা রুজু করেন৷ পুলিশের দাবি ছিল, জগত্‍বাবু নিজেই থানায় এসে বলেন তিনি শক্তিবাবুকে খুন করে দেহটি ফেলে দিয়েছেন৷ তাঁকে গ্রেপ্তার করে পুলিশ৷ বন্ধুকে খুনের দায়ে জগত্‍বাবুর যাবজ্জীবন সাজা হয়৷ মঙ্গলবার কলকাতা হাইকোর্টের বিচারপতি অনিরুদ্ধ বসু এবং বিচারপতি শিবশঙ্কর সাধুর ডিভিশন বেঞ্চ জানিয়ে দেয়, 'হত্যা ও দেহ লোপাটে যে জগতের হাত আছে, এটা প্রমাণ করতেই পারেনি পুলিশ৷ দু'জন যেহেতু একসঙ্গে রাজমিস্ত্রির কাজ করতেন, তাই বন্ধুকে খুনের অভিযোগে তাঁকে গ্রেফতার করা হয়েছিল৷' ঝুমার আইনজীবী জয়ন্তনারায়ণ চট্টোপাধ্যায় বলেন, 'খুনের অস্ত্রগুলি একটি চাষের জমি থেকে উদ্ধার করা হয়৷ সেগুলির কোনও ফরেন্সিক পরীক্ষা করানো হয়নি৷ পুলিশের দাবি ছিল, জগতের স্ত্রীর সঙ্গে শক্তির অবৈধ সম্পর্ক আছে৷ সেই রাগেই শক্তিকে খুন করেন জগত্‍৷ পুলিশের ওই অভিযোগের পক্ষে কোনও প্রমাণ পুলিশ দিতে পারেনি৷ আদালতের রায়ে আমরা খুশি৷'

রায় ঘোষণা হতেই পুরোনো কথা ঘিরে ধরে ঝুমাকে৷ তিনি বলেন, 'আমি তখন খুবই ছোট৷ একদিন স্কুল থেকে ফিরে শুনি কাউকে খুনের দায়ে বাবাকে পুলিশ ধরে নিয়ে গিয়েছে৷ বিশ্বাস হয়নি৷ বাবা কোনওদিন আমাদের ভাই-বোনকে একটা পিঁপড়ে পর্যন্ত মারতে দিত না৷ তখনই প্রতিজ্ঞা করি, বাবাকে নির্দোষ প্রমাণ করবই৷'


ভোর ৪টেয় ঘুম থেকে উঠে মা অঞ্জুদেবী বেরিয়ে পড়তেন বাড়ি বাড়ি কাজ করতে৷ আর মেয়ে বাড়ির কাজকর্ম সেরে রান্না করে যেতেন বাড়ি বাড়ি টিউশন পড়াতে৷ ভাই বাপন তখন খুবই ছোট৷ টিউশন থেকে ফিরে স্কুল৷ স্কুল থেকে ফিরে আবার টিউশন৷ ঝুমা বলেন, 'এই লড়াইয়ে সবসময় পাশে থেকেছেন জেঠু গোবিন্দ সরকার৷ আজও তিনি পাশে আছেন৷ এখন আমি রবীন্দ্রভারতীতে এমএ করছি৷'


অনটনের সংসারে ভাই মাঝপথেই পড়া ছেড়ে দিয়ে একটি বেসরকারি সংস্থায় কাজে ঢুকেছে৷ রায় ঘোষণার পর বাড়ি গিয়েও দেখা মেলেনি তার৷ আর রোজকার মতো অঞ্জুদেবী এ দিনও বাড়ি বাড়ি কাজে বেরিয়ে গিয়েছেন৷ বাড়িতে ঝর্নার ঠাকুমা নবতিপর আলাপি সরকার টালির চালার ছোট বাড়িটার জানলার পাশে উদাস বসে৷ বললেন, 'আমার ছেলে যে এ কাজ করতে পারে না৷ আগেই জানতাম৷ এতগুলি বছর কী কষ্টে যে কাটিয়েছি৷' ঝুমার জেঠু গোবিন্দবাবুর কথায়, 'সত্য একদিন প্রকাশ পাবেই, এই বিশ্বাস থেকেই লড়াই শুরু হয়েছিল৷ তাই ছিলাম লড়াকু মেয়েটার পাশে৷'


লড়াই আপাতত শেষ৷ এতদিন বিয়ের কথা ভাবেনইনি৷ এ বার কি সংসার পাতার কথা ভাববেন লড়াকু মেয়ে?


बांग्ला दैनिक एई समय से साभार



মেয়ের লড়াইয়ে খুনির তকমা থেকে মুক্ত বাবা

নিজস্ব সংবাদদাতা • কলকাতা

ছর দশেক আগে বাবার যখন যাবজ্জীবন জেল হয়, মেয়ে তখন সপ্তম শ্রেণির ছাত্রী। বিশ্বাস করত, বাবা খুনি নয়। টিউশনি করে জমানো টাকা আর একরাশ জেদ সম্বল করে সেই মেয়েই আইনি লড়াইয়ে মুক্ত করে আনল বাবাকে। ১০ বছর জেল খাটার পরে মঙ্গলবার হাইকোর্টের রায়ে বেকসুর খালাস হলেন খুনের অপরাধে যাবজ্জীবন সাজাপ্রাপ্ত হুগলির রাজচন্দ্রপুর প্রফুল্লনগরের জগৎ সরকার। হাইকোর্টের বিচারপতি অনিরুদ্ধ বসু ও বিচারপতি শিবশঙ্কর সাধুর ডিভিশন বেঞ্চ বলেছে, সম্পূর্ণ মিথ্যে অভিযোগে জগৎবাবুকে ফাঁসানোর জন্য মামলা সাজিয়েছিল পুলিশ।

স্বামীকে খুনের দায়ে ১৩ বছর জেলে থাকার পর অপরাজিতা (মুনমুন) বসু সম্প্রতি বেকসুর খালাস পেয়েছিলেন। জেলে জগৎবাবুর সঙ্গে পরিচয়ও হয়েছিল তাঁর। কিন্তু দু'জনের কাহিনির ওই বেকসুর খালাসের অংশটুকু এক হলেও বাকিটা একেবারেই আলাদা। জগৎবাবুকে মুক্ত করার কাণ্ডারী যখন তাঁরই মেয়ে, তখন মুনমুন মুক্তির পরেও তাঁর দুই ছেলেকে একটি বারও দেখতে পাননি। ছেলেরা জানিয়ে দিয়েছে, তারা মায়ের সঙ্গে দেখা করতে চায় না। এ দিন হাইকোর্টের রায় শোনার পরে মুনমুন বলেন, "জীবনের একটা বড় অংশ চার দেওয়ালের ঘেরাটোপে কেটে গেল। জগৎ নিশ্চয়ই খুশি। ওকে মুক্ত করল ওর সন্তান। আর আমি মুক্ত হয়েও ছেলেদের এক বার দেখতেও পাইনি। একে কি মুক্ত হওয়া বলে!"

*

সুখী পরিবার। খুনের মামলায় জড়ানোর আগে স্ত্রী, ছেলে-মেয়ের সঙ্গে জগৎ।

আর ঝুমা? কিছু দিন আগে বিয়ের কথা উঠতেই 'না' করে দিয়েছিলেন বর্তমানে রবীন্দ্রভারতী বিশ্ববিদ্যালয়ে ইতিহাসে স্নাতকোত্তর প্রথম বর্ষের ছাত্রীটি। পণ করেছিলেন, বাবাকে বেকসুর প্রমাণ না করা পর্যন্ত বিয়ে নয়। মঙ্গলবার তাঁর বাবাকে বেকসুর খালাস ঘোষণা করে দুই বিচারপতির ডিভিশন বেঞ্চ জানিয়েছে, এ দিনই রায়ের প্রতিলিপি জেলে পৌঁছনোর ব্যবস্থা করতে হবে। দেখতে হবে যাতে কালক্ষেপ না করে জগৎবাবুকে মুক্তি দেওয়া হয়। পুলিশের দাবি ছিল, ২০০৪ সালের ১৪ মে জগৎবাবু থানায় এসে জানান, তিনি তাঁর বন্ধু শক্তি চক্রবর্তীকে খুন করেছেন এবং দেহটি রাজচন্দ্রপুর রেল স্টেশনের কাছে কালভার্টের নীচে ফেলে দিয়েছেন। শক্তিবাবুর দেহ ও খুনের অস্ত্রগুলি জগৎবাবুর সাহায্য নিয়েই উদ্ধার হয় বলেও দাবি করেছিল পুলিশ। যার ভিত্তিতে হাওড়া আদালত জগৎবাবুকে যাবজ্জীবন কারাদণ্ড দেয়।

কিশোরী ঝুমার যদিও স্থির বিশ্বাস ছিল, বাবা খুনি নন। তাঁর কথায়, "শুনলাম, শক্তি চক্রবর্তীকে খুন করে বাবা নাকি আত্মসমর্পণ করেছেন। সে জন্য যাবজ্জীবন কারাদণ্ড হল তাঁর। এর বেশি কিছু বুঝিনি, জানতেও পারিনি তখন।" মাধ্যমিকের পর থেকে গৃহশিক্ষকতা করে বাবাকে ছাড়ানোর জন্য টাকা জমিয়েছিলেন ঝুমা। তা নিয়ে দেখা করেছিলেন আইনজীবী জয়ন্তনারায়ণ চট্টোপাধ্যায়ের সঙ্গে। সামান্য টাকাতেই আপিল মামলা করতে রাজি হন জয়ন্তবাবু।

*

মঙ্গলবার হাইকোর্টে ঝুমা। —নিজস্ব চিত্র।

মঙ্গলবার হাইকোর্টের ডিভিশন বেঞ্চ বলেছে হত্যা ও দেহ লোপাটে যে জগৎবাবুরই হাত আছে, পুলিশ তা প্রমাণ করতে পারেনি। যে সব অস্ত্র উদ্ধার হয়, সেগুলি ফরেন্সিক পরীক্ষার জন্য পাঠানোই হয়নি। এক জনকে দোষী সাব্যস্ত করার সময়ে নিম্ন আদালত এই বিষয়গুলি খতিয়ে দেখেনি বলেও মন্তব্য করেছে কোর্ট। বলেছে, পুলিশের চার্জশিটের উপরে ভরসা করেই জগৎবাবুকে যাবজ্জীবন কারাদণ্ডের সাজা দেওয়া হয়েছিল। জয়ন্তবাবুর কথায়, "মামলার কাগজ পড়ে দেখি হাওড়া কোর্টের রায়ে অসংখ্য ত্রুটি। সন্দেহের অবকাশ থাকলে কখনওই শাস্তি দেওয়া যায় না। প্রকৃত অপরাধী ছাড়া পেলেও কোনও নিরপরাধ মানুষকে যেন শাস্তি দেওয়া না হয়, এটাই দেশের বিচার ব্যবস্থার মূল কথা।" পেশায় রংমিস্ত্রি জগৎবাবুই ছিলেন পরিবারের একমাত্র রোজগেরে। আর্থিক অনটনের পাশাপাশি মানসিক টানাপোড়েনের মধ্যেই কৈশোর কেটেছে ঝুমা ও তাঁর ভাই বাপনের। অল্পশিক্ষিত মা পরিচারিকার কাজ শুরু করেন। ঝুমা জানান, বাবা খুনের অপরাধে সাজাপ্রাপ্ত বলে পরিচিতদের কাছে অনেক সময়ে লাঞ্ছনার শিকার হতে হয়েছে তাঁদের। আবার জেঠু গোবিন্দ সরকারের মতো কাউকে কাউকে পাশেও পেয়েছেন। কিন্তু হতাশা অনেক সময়েই চেপে বসত। ঝুমার কথায়, "ছোটবেলায় বন্ধুরা যখন তাদের বাবার গল্প করত, আমি আর ভাই চুপচাপ শুনতাম। ভাবতাম, আমাদের জীবনটা এমন কেন হল!" জেলে জগৎবাবু অভিনয় করতেন। ভাল ছবি আঁকেন, গান করেন।

ভাস্কর্য নির্মাণেও পটু। জেলে ছবি আঁকা ও ভাস্কর্যের কাজও শেখাতেন। ঝুমা বলেন, "আমারও খুব ইচ্ছে ছিল সে সব শেখার। কিন্তু সুযোগ হয়নি। অলকানন্দা রায়ের নির্দেশনায় 'বাল্মীকি প্রতিভা'য় অভিনয় করেছিলেন বাবা। দেখতে গিয়েছিলাম। বাবাকে মঞ্চে দেখে আমি-মা-ভাই অঝোরে কেঁদেছি। মনে মনে বলেছি যে করেই হোক, মানুষটাকে গারদের বাইরে বের করতে হবে।" দেরিতে হলেও হাইকোর্টের এই রায়ে বিচারব্যবস্থায় ফের বিশ্বাস ফিরে পেয়েছেন ঝুমা। "শনিবার বাবার সঙ্গে শেষ কথা হয়েছে আমার। তখনও জানতাম না যে, মুক্তি এত কাছে। রায়ের পরে আর কথা হয়নি ওঁর সঙ্গে। মা'কে জানিয়েছি। কারও আনন্দ আর বাঁধ মানছে না।" তার মধ্যেও লক্ষ্যে অটল মেয়েটি বলেন, "একটা লড়াই জিতলাম ঠিকই। তবে অনেক পথ চলা বাকি। নিজের পায়ে দাঁড়াতে হবে। শিক্ষক হতে চাই। এখন সেই স্বপ্ন পূরণের লড়াই জেতার প্রস্তুতি নেব।"


बांगाल दैनिक आनंदबाजार से साभार

'We are women. There's no future for us'

- Plight of teenager who was raped twice in three days mirrors the world we live in

PRONAB MONDAL, RITH BASU AND MOHUA DAS

The family of a gang-rape victim had tried to escape the stigma that scalded their daughter in the aftermath of the incident and shifted 6km away. But they couldn't.

On Monday night, the 16-year-old, raped twice in three days in October, attempted suicide by setting herself on fire after the landlord of the shanty and others in the locality gave the family a one-month deadline to leave the locality.

She had been abducted and raped a second time while returning home after lodging a police complaint.

The tragedy of the family exemplifies how a woman is victimised over and over again.

"Before giving the house on rent to the family, we had no idea that their girl had been raped in Madhyamgram three months ago. Had we known about the incident, we wouldn't have allowed them to rent the house," said Bela Sil, the landlady. "We have asked them to vacate the house within one month."

The family of four was paying Rs 2,000 a month for the one-room shanty with tiled roof not far from the airport.

The victim's father said he was being subjected to constant pressure from the friends of the accused to withdraw the police complaint, something that pushed the teenage girl over the edge.

It didn't help matters that the landlady was a relative of the prime suspect's friend. That man had allegedly been threatening the family to withdraw the complaint.

The landlady's daughter lives near Madhyamgram and she apparently was the first to recognise the girl and say that she shouldn't be allowed to live there.

"A month ago Dipali came to visit her parents and saw the girl. She raised a hue and cry," said one of the victim's neighbours in the new locality.

A neighbour of the family in Madhyamgram, where they lived earlier, said: "The father was scared. He told us that he was leaving the area so that his daughter could start a normal life where no one would be aware of her plight."

That was not to be. The trauma returned to haunt them again and again.

"My daughter had become very depressed after whatever happened to her in October. She would hardly speak. But the trigger for the suicide attempt was Minta Sil, a cab driver and friend of the main accused, Chhotu Talukdar. He came to our house frequently and abused her and threatened us," said the father, a taxi driver.

"This verbal abuse, in which they called my girl names that I cannot repeat was like killing her every day. Some of the neighbours would also taunt her. She set herself on fire after all this," he added.

The girl's mother said Monday was the fourth day on the trot that Minta and Tapan Sil — the son of the landlord and Minta's cousin — came to their house drunk and abused the girl.

Hours after the teenager's suicide attempt on Monday, the police had appeared to be trying to dilute the case. Santosh Nimbalkar, deputy commissioner of police, Bidhannagar commissionerate, had said: "It has been alleged that the teen was not on good terms with her mother and they were seen fighting every now and then. The family has yet to lodge a complaint about threats that the girl has allegedly been receiving."

The officers of Airport police station did not bother to visit the spot and ascertain what prompted the girl to set herself on fire.

Asked, an officer of the police station today said: "We collected statements from some of the local residents who spoke of a family feud. Now it appears that those whom we spoke to belong to the group who wanted the family to leave the locality."

Police, however, arrested Minta and the landlady's son Ratan on Wednesday. They have been charged with criminal intimidation. The Barrackpore court has sent them to police custody for three days.

Social activists who have been working towards gender equality were not surprised by the police reaction. "The entire process starting with the police to the medical to the courtroom is an experience that is humiliating and debilitating (for a rape victim)," said Anuradha Kapoor of Swayam.

And the state mechanism is ill equipped to deal with the kind of trauma that these women face.

"As luck would have it, the new house we moved into was owned by Minta's aunt. He soon found out about our whereabouts and the threats renewed," said the father. A broker had found them the new house. "The friends and relatives of the accused have gradually driven my daughter to this," said the girl's mother.

The girl is admitted at RG Kar Medical College and Hospital with over 60 per cent burns, sharing a ward with several other women where fear of infection looms large.

According to the hospital authorities, the girl's condition was critical.

"We are monitoring her condition closely but it is difficult to say anything about her chances of survival before 72 hours," said a hospital official.

Some women from the CPM visited the hospital to protest the atrocities against her and ended up shouting slogans on the hospital premises.

The state doesn't do enough to protect rape victims, said Urmi Basu of New Light who works towards protection of women and children from the red light areas. "Life is never the same for them because at every step they need to revisit the trauma…. Be it investigators taking down the narrative, medical staff running tests or legal representatives in court, lack of training needed to deal with a woman in distress adds to their vulnerability. Lack of skills and understanding contribute to increasing the trauma," she said.

The girl's mother said the family had received "no help from the state government".

"We have already spent Rs 3,400 on medicines since Monday. On top of that the ayahs are charging Rs 600 per shift," said the father.

"It's like being raped again and again," said Anuradha of Swayam, who has witnessed cases where a survivor has lost her job or her place of residence and put to shame after being sexually assaulted.

"Put the blame where it is due and give her dignity at every level," she added, stressing on the role that family and neighbours can play too.

The last thing that the teenager told her mother on Monday? "We are women. There's no future for us…."

Additional reporting by Soumen Bhattacharjee

http://www.telegraphindia.com/1131225/jsp/calcutta/story_17717105.jsp#.UrrP0tIW3p8

Intern blogs on autonomy

OUR BUREAU


*

Asok Ganguly arrives at his office in Calcutta on Tuesday. (PTI)

Dec. 24: An intern who has accused a former judge of sexual misconduct has addressed questions on whether and when she would file a police complaint, saying she has the "discernment to pursue appropriate proceedings at appropriate times".

"I request that it be acknowledged that I have the discernment to pursue appropriate proceedings at appropriate times. I ask that my autonomy be respected fully," the intern said in a blog in a segment titled "police complaint".

The blog sought to rebut the contents of former judge Asok Ganguly's letter to the Chief Justice of India, which was made public yesterday.

In the letter, the former judge had denied the charges levelled against him, questioned the validity and fairness of the Supreme Court probe and spoken of "a concerted move to tarnish my image as I had the unfortunate duty of rendering certain judgments against powerful interests…."

The intern responded through a blog dated December 23 on the website of the Journal of Indian Law and Society.

Delhi police have not yet filed an FIR against Ganguly, saying they had written to the intern thrice and are awaiting her statement without which specific charges cannot be framed.

Supreme Court lawyer Ajay Agarwal today said Delhi police should immediately contact the law intern and go to her place to record her statement.

"Since the matter is now in public domain, they should not wait for her email. Women police officers should rush to meet her and ask her to record her version. If she declines, then there is no case," said the lawyer who is not connected with the case.

Delhi police officers said they would write to the law intern again. "As per information available with us, she is in (a city) and we will send our team whenever she responds. We will ensure her privacy," said Madhur Verma, additional deputy commissioner.

The intern said in the blog today: "It has been widely reported in the news today that former Justice A.K. Ganguly has written a letter to the Hon'ble Chief Justice of India. Several questions have been raised in the past few weeks, and I think it is appropriate at this stage, for me to answer some of them."

Dividing the blog into four parts, the intern said in the first segment titled "Timing and intent of the blog": "After the incident, when I returned to college, NUJS Kolkata, I spoke to some of my faculty about the incident at different times. Since the incident occurred during an internship, and the university did not have a policy against sexual harassment of women students during internship, it was indicated to me that any action would be ineffective.

"I was also informed that the only route for me was to file a complaint with the police, which I was reluctant to do. However, I felt it was important to warn young law students that status and position should not be confused for standards of morality and ethics. Hence I chose to do so via a blog post."

On "deposing before the three-member committee" of the Supreme Court, she said: "I did not question the jurisdiction or intent of the Hon'ble three-member judges' committee at any point, and had full faith that they would establish the truth of my statements. I sought confidentiality of proceedings keeping in mind the gravity of the situation, as well as the privacy of everyone involved.

"The committee acted with great discretion given the delicate nature of the case, and I appreciate that. The prima facie finding of (the) three-judge committee is well known to all."

She touched upon the publication of "details of my statement" and drew attention to a "timeline for clarity".

"18th November 2013: I appeared in person before the Hon'ble three-judge committee, and gave oral statement before the committee. I also submitted a written statement to the committee, signed by me before them in person.

"29th November 2013: I sent an affidavit, signed and sworn on the same day, to Ms Indira Jaising, additional solicitor-general of India, disclosing to her the details of my sexual harassment, and requested her to seek appropriate action. The contents of the affidavit are substantially the same as the statements made by me before the committee.

"Even after the operative portion of the report of the committee, was made public, many eminent citizens and legal luminaries continued to deride the committee's findings, and malign me. Hence, I found it necessary to clarify the details of my statement to preserve my own dignity as well as that of the Supreme Court. Therefore, I authorised Ms Indira Jaising, additional solicitor-general of India, to make my statement public.

"At this stage, I believe that anyone claiming that my statements are false is showing disrespect not just to me, but also to the Supreme Court of India."

The intern concluded the blog by saying: "Again, I would like to state that I have acted with utmost responsibility throughout, keeping in mind the seriousness of this situation. Those who have been spreading rumours and politicising the issue, are doing so out of prejudice and malice to obfuscate the issue and escape scrutiny and accountability."

http://www.telegraphindia.com/1131225/jsp/frontpage/story_17718358.jsp#.UrrPeNIW3p8



অশোকের চিঠি নিয়ে মুখ খুলল না কেন্দ্র

ব্লগেই পাল্টা সরব অভিযোগকারিণী

নিজস্ব সংবাদদাতা • কলকাতা

দু'জনেই নীরব ছিলেন। ২৪ ঘণ্টার মধ্যে নীরবতা ভাঙলেন। দু'জনেই।

সোমবার সুপ্রিম কোর্টের প্রধান বিচারপতিকে চিঠি লিখেছিলেন প্রাক্তন বিচারপতি অশোক গঙ্গোপাধ্যায়। তাঁর বিরুদ্ধে ওঠা যৌন হেনস্থার অভিযোগ খারিজ করে সুপ্রিম কোর্টের তদন্ত কমিটির এক্তিয়ার ও কর্মপদ্ধতি নিয়ে একাধিক প্রশ্ন তুলেছিলেন তিনি। অভিযোগকারিণীর বয়ান কী ভাবে অতিরিক্ত সলিসিটর জেনারেল ইন্দিরা জয়সিংহ সংবাদমাধ্যমে প্রকাশ করলেন, তা নিয়েও ক্ষোভ জানান।

মঙ্গলবার ফের ব্লগে আত্মপ্রকাশ করে অভিযোগকারিণী নিজের মতো করে বেশ কিছু প্রশ্নের জবাব দিলেন। অশোকবাবুর বিরুদ্ধে চক্রান্তের অভিযোগ অস্বীকার করে সুপ্রিম কোর্টের কমিটির তদন্ত-রিপোর্টের উপরেই সম্পূর্ণ আস্থা রাখছেন বলে জানালেন। কেন তিনি পুলিশের কাছে যাননি আর কেনই বা ইন্দিরাকে তাঁর বয়ান প্রকাশ করতে অনুরোধ করেছিলেন, দিয়েছেন তার ব্যাখ্যাও। "সংবাদপত্রে দেখলাম, সুপ্রিম কোর্টের প্রাক্তন বিচারপতি অশোককুমার গঙ্গোপাধ্যায় দেশের প্রধান বিচারপতিকে একটা চিঠি লিখেছেন। গত কয়েক সপ্তাহে গোটা বিষয়টি নিয়ে নানা প্রশ্নও উঠেছে। আমার মনে হয়, এ বার কিছু প্রশ্নের উত্তর দেওয়া দরকার," লিখেছেন তিনি।

আগের দিন অশোকবাবু তাঁর চিঠিতে লিখেছিলেন তাঁর আশঙ্কা, কায়েমি স্বার্থে আঘাত লাগা প্রভাবশালী শিবিরের একাংশ তাঁকে হেনস্থা করার চক্রান্ত করেছে। সুপ্রিম কোর্টের তিন বিচারপতিকে নিয়ে গড়া তদন্ত কমিটি কোন এক্তিয়ারে প্রাক্তন বিচারপতির বিরুদ্ধে অভিযোগের তদন্ত করল এবং সেই রিপোর্টের আইনি বৈধতাই বা কী, প্রশ্ন তোলেন অশোকবাবু। তিনি লেখেন, ওই মহিলা ইন্টার্ন নিজে থেকে অভিযোগ দায়ের করেননি। তদন্ত কমিটি তাঁকে ডেকে পাঠানোর পরই তিনি বয়ান দেন।

এ দিন অভিযোগকারিণী তাঁর ব্লগ-পোস্টে পাল্টা অভিযোগের সুরে লিখেছেন, "যাঁরা নানা রকম গুজব রটাচ্ছেন এবং বিষয়টায় রাজনীতির রং লাগাচ্ছেন, তাঁরা আসলে গোটা ব্যাপারটা গুলিয়ে দিতে চাইছেন। দায় এড়াতে চাইছেন।" কেন তিনি ঘটনার বেশ অনেক দিন পরে ব্লগ লিখলেন, কী ভাবে তদন্ত কমিটির সামনে হাজির হলেন, কেন ইন্দিরাকে তাঁর বয়ান প্রকাশ করতে বললেন, কেন তিনি পুলিশের কাছে যাচ্ছেন না নিজের বিরুদ্ধে ওঠা এই চারটি প্রশ্ন বেছে নিয়ে উত্তর দিয়েছেন অভিযোগকারিণী।

এ দিন ব্লগে মেয়েটি লিখেছেন, ওই ঘটনা ঘটার পরে তিনি কলকাতায় ন্যাশনাল ইউনিভার্সিটি অব জুরিডিক্যাল সায়েন্সেস-এ ফিরে এসেছিলেন। বিভিন্ন সময়ে বিভাগের কয়েক জন শিক্ষককে ঘটনাটা জানিয়েওছিলেন। কিন্তু বিশ্ববিদ্যালয়ে ইন্টার্নদের জন্য যৌন হেনস্থা সংক্রান্ত কোনও নীতি না থাকায় সেখান থেকে বিশেষ কার্যকরী পদক্ষেপের আশা ছিল না। অনেকেই পরামর্শ দিয়েছিলেন পুলিশের কাছে যাওয়ার। কিন্তু অভিযোগকারিণী তাতে খুব একটা আগ্রহী ছিলেন না। "কিন্তু আমার মনে হচ্ছিল, নবীন ছাত্রছাত্রীদের সতর্ক করা দরকার। তারা যেন কারও পদমর্যাদা বা প্রভাব-প্রতিপত্তি দেখে ন্যায়নীতি বা মূল্যবোধের ব্যাপারটা গুলিয়ে না ফেলে। তাই ব্লগ লেখার সিদ্ধান্ত।"

বিচারপতি গঙ্গোপাধ্যায় তাঁর চিঠিতে সুপ্রিম কোর্টের কমিটির কর্মপদ্ধতি নিয়েও প্রশ্ন তুলেছিলেন। অভিযোগকারিণী কিন্তু লিখেছেন, "বিষয়টির স্পর্শকাতরতার দিকটি মাথায় রেখে কমিটি অত্যন্ত বিবেচনার সঙ্গে এগিয়েছে। কমিটির প্রাথমিক রিপোর্টে কী পাওয়া গিয়েছে, তা এখন সকলেই জানেন।" কমিটির ভূমিকায় সন্তোষ প্রকাশ করে তাঁর বক্তব্য, তিনি কোনও সময়েই কমিটির এক্তিয়ার বা উদ্দেশ্য নিয়ে প্রশ্ন তোলেননি। "কমিটির উপরে আমার পূর্ণ আস্থা ছিল। পরিস্থিতির গুরুত্ব বিবেচনা করে আমি শুধু চেয়েছিলাম, প্রক্রিয়াটি গোপন থাকুক।"

অতিরিক্ত সলিসিটর জেনারেল ইন্দিরা জয়সিংহ কী ভাবে গোপন বয়ান বিলি করলেন, তা নিয়ে প্রশ্ন তুলেছিলেন বিচারপতি গঙ্গোপাধ্যায়। অশোকবাবুর দাবি, ইন্দিরা যে বয়ান প্রকাশ করেন, তাতে ২৯ নভেম্বর তারিখ ছিল। অথচ তার দু'দিন আগেই, ২৭ নভেম্বর তদন্ত কমিটি তার রিপোর্ট জমা দিয়ে দিয়েছিল। তা হলে অভিযোগকারিণী ২৯ তারিখ বয়ান দিলেন কী ভাবে? অভিযোগকারিণীর জবাব, "১৮ নভেম্বর কমিটির কাছে আমি ব্যক্তিগত ভাবে হাজির হয়ে মৌখিক বয়ান দিই। লিখিত বয়ানটিও তাঁদের সামনে সই করে জমা দিই। ২৯ নভেম্বর আমি সেই বয়নটিই একটি হলফনামার আকারে অতিরিক্ত সলিসিটর জেনারেল ইন্দিরা জয়সিংহের কাছে পাঠাই।"

অশোকের প্রশ্নের উত্তরে আগের দিন ইন্দিরা বলেন, অভিযোগকারিণীর অনুরোধ মেনেই তিনি বয়ানটির প্রতিলিপি সংবাদমাধ্যমে প্রকাশ করেছিলেন। এ দিন অভিযোগকারিণীও একই কথা লিখেছেন ব্লগে। "কমিটির রিপোর্টের কিছু অংশ জানাজানি হওয়ার পর থেকেই বহু গণ্যমান্য মানুষ, যাঁদের মধ্যে আইন জগতেরও অনেকে রয়েছেন, তাঁরা নানা প্রশ্ন তুলতে শুরু করেন এবং আমার সম্পর্কে কুৎসা রটাতে থাকেন। ওই পরিস্থিতিতে আমার মনে হয়েছিল, নিজের সম্ভ্রম এবং সুপ্রিম কোর্টের মর্যাদা রক্ষা করতে হলে আমার নিজের বয়ানের খুঁটিনাটি সম্পর্কে কিছু ব্যাখ্যা দেওয়া প্রয়োজন। সেই কারণে আমার বক্তব্য প্রকাশ্যে আনার ব্যাপারে অতিরিক্ত সলিসিটর জেনারেল ইন্দিরা জয়সিংহকে দায়িত্ব দিয়েছিলাম।"

অনেকেই প্রশ্ন তুলেছেন, বিষয়টি নিয়ে এত হইচইয়ের পরেও অভিযোগকারিণী পুলিশের কাছে যাচ্ছেন না কেন। মেয়েটির বক্তব্য, "উপযুক্ত সময়ে উপযুক্ত পদক্ষেপ করার মতো বুদ্ধি আমার আছে। কখন কী করব, সেই ব্যাপারে আমার স্বাধীনতাটুকু যেন সম্মান করা হয়।"

অশোকবাবু অবশ্য অভিযোগকারিণীর এ দিনের ব্লগ নিয়ে কোনও কথাই বলতে চাননি। সুপ্রিম কোর্টের প্রধান বিচারপতির কাছে চিঠি পাঠানোর পরে তাঁর পরবর্তী পদক্ষেপ কী হবে সে ব্যাপারেও মুখ খুলতে চাননি। তবে তাঁর ঘনিষ্ঠ মহল আশা করছে অশোকবাবু যেহেতু কমিটি গড়ার প্রক্রিয়া নিয়েই প্রশ্ন তুলেছেন, প্রধান বিচারপতি ওই কমিটি বাতিল করে দিতেও পারেন। এর ফলে ওই কমিটির সিদ্ধান্তের আর কোনও ভিত্তি থাকবে না। যদি প্রধান বিচারপতির কাছ থেকে সাড়া না মেলে, ওই চিঠিটি নিয়ে সুপ্রিম কোর্টে রিট আবেদনও করতে পারেন অশোক। এ ছাড়াও কারও কারও মতে, অশোক মানবাধিকার লঙ্ঘনের অভিযোগ তুলে সংবিধানের ৩২ নম্বর ধারায় মামলা করতে পারেন। আবার সংবিধানের ২১ নম্বর অনুছেদ অনুযায়ী মর্যাদার অধিকারের প্রশ্নে সুপ্রিম কোর্টের প্রধান বিচারপতির বিরুদ্ধে মানহানি মামলাও করা যেতে পারে।

অশোকের চিঠির পরে কেন্দ্র কী ভাবছে? সরকারি ভাবে মন্তব্য না করলেও কেন্দ্রের অন্দরমহলের খবর, তারা ওই চিঠিকে বিশেষ গুরুত্ব দিচ্ছে না। প্রাক্তন বিচারপতির বিরুদ্ধে ওঠা অভিযোগগুলিকেই গুরুত্ব দিয়ে তাঁকে সরানোর প্রক্রিয়া চালিয়ে যেতে চাইছে তারা। প্রাক্তন সলিসিটর জেনারেল হরিশ সালভের মতে, চিঠি লিখে নিজের বিপদই বাড়ালেন অশোক। অভিযোগকারিণীর দিকে আঙুল তুলে তিনি সন্দেহ আরও উস্কে দিলেন। রাজ্যসভার বিরোধী দলনেতা অরুণ জেটলিও বলছেন, ''সিজারের পত্নীর সব সময় সন্দেহের ঊর্ধ্বে থাকা উচিত। নৈতিকতার দায় নিয়ে সরে যাওয়াই উচিত অশোকের।"



চাপানউতোর


অশোক গঙ্গোপাধ্যায়

অভিযোগকারী মহিলা ইন্টার্ন

• প্রাক্তন বিচারপতির বিরুদ্ধে তদন্ত করার এক্তিয়ার সুপ্রিম কোর্টের নেই। ওই কমিটির রিপোর্টের কোনও আইনি ভিত্তি নেই।

• অতিরিক্ত সলিসিটর জেনারেল অভিযোগকারিণীর বয়ানের প্রতিলিপি বিলি করেছেন বলে শুনেছি। আশা করি সংশ্লিষ্ট মহলের অনুমতি নিয়েই তিনি এ কাজ করেছেন।

• সুপ্রিম কোর্ট কমিটি গড়ার আগে ও পরে ওই ইন্টার্ন কোনও অভিযোগ দায়ের করেননি। কমিটির নির্দেশে তিনি তাঁর বয়ান দিয়েছেন।

• বিষয়টির স্পর্শকাতরতা মনে রেখে কমিটি অত্যন্ত বিবেচনার সঙ্গে এগিয়েছে। প্রাথমিক রিপোর্ট কী বলছে, সকলে জানেন।

• ২৯ নভেম্বর আমি হলফনামা সই করে অতিরিক্ত সলিসিটর জেনারেলের কাছে পাঠাই। আমার বক্তব্য প্রকাশ্যে আনার ব্যাপারে ওঁকেই আমি দায়িত্ব দিয়েছিলাম।

• বিভাগের শিক্ষকদের জানিয়েছিলাম। তবে পুলিশের কাছে যেতে চাইনি। কিন্তু ক্রমশ মনে হচ্ছিল কমবয়সিদের এ বিষয়ে সতর্ক করা দরকার।




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