जेल में 90 फीसदी गरीब-भूमिहीन बंद
झारखण्ड में कैदियों के मामले में उजागर हुईं गंभीर अनियमितताएं
वर्षों से विचाराधीन कैदियों के मुकदमों की गति बेहद धीमी है. जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि नक्सल प्रभावित इलाकों जैसे खूंटी व लातेहार में आरोपियों को अबतक सम्मन नहीं पहुंचाए गए हैं...
राजीव
झारखंड़ राज्य में बेगूनाह आदिवासियों को माओवादी कहकर जेलों में वर्षों से बंद कर रखा जा रहा है, ये मानने के लिए राज्य के डायरेक्टर जेनरल ऑफ़ पुलिस जीएस रथ तैयार नहीं है.केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश द्वारा राज्य के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंड़ा को हाल में लिखे गए पत्र में मंत्री रमेश ने मुख्यमंत्री को राज्य के जेलों में वर्षों से कैद रहे बेगूनाह आदिवासियों के साथ न्याय हो, इस ओर पहल करने को लिखा है.
यद्यपि डीजीपी रथ मंत्री जयराम रमेश के इस विचार से कि बेगूनाह आदिवासियों को फर्जी मूकदमें में फंसाकर जेल में बंद कर दिया गया है, से इत्तेफाक नहीं रखाते है.डीजीपी रथ का कहना है कि कानून प्रतिबंधित संगठनों के सदस्यों को कारागार में डालने के लिए बनाया गया है न कि आदिवासियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए.
गौरतलब है कि झारखंड़ उच्च न्यायालय ने 18 मई को एक कमिटी का गठन वैसे मूकदमों के निगरानी के लिए किया था जिस मूकदमें में आरोपियों पर प्रतिबंधित संगठनों के कथित सदस्य होने का इल्जाम लगाया गया है तथा ऐसे मूकदमें की न्यायीक कार्रवाई त्वरित गति से चलायी जा सके.जांच कमिटी की रिपोर्ट रांची के ज्यूडीशियल कमिश्नर एभी सिंह ने सौंप दी है.
रिपोर्ट में खूंटी के विचाराधीन कैदियों के वर्षों से बेहद धीमी गति से चल रहे मूकदमों का खास जिक्र किया गया है तथा जांच समिति ने यह भी पाया है कि माओवादी के नाम पर जेल में बंद लोगों में 90 प्रतिशत गरीब व भूमिहीन आदिवासी है.जांच रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नक्सल प्रभावित इलाकों जैसे खूंटी व लातेहार में आरोपियों तक सम्मन तक नहीं पहुंचाए गए हैं.
हालांकि डीजीपी रथ सम्मन नहीं पहुंचाए जाने से इंकार करते है.उनका कहना है कि यह सत्य है कि पुलिस अकेले नक्सली प्रभावित इलाके जैसे खूंटी व लातेहार जाकर सम्मन नहीं पहुंचाती है बल्कि पुलिस बल के साथ उन्हें भेजा जाता है.हमलोग पुलिसकर्मियों को मरने के लिए ऐसे इलाकों में नहीं भेज सकते है.हालांकि जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि सम्मन का नहीं पहुंचना ऐसे मूकदमों के वर्षों से लंबित रहने का एक बहुत बड़ा कारण है.
हाल ही में हजारीबाग पुलिस द्वारा गिरफतार नक्सली कमांडर नवीन मांझी के गिरफतारी पर डीजीपी रथ कहते हैं कि हजारीबाग-बोकारो-गिरिडीह एरिया में सक्रिय नक्सली संगठन पर यह करारा प्रहार है, परंतु भाकपा (माओवादी) पर गिरफ़्तारी का कोई खास असर नहीं पड़ेगा.
माओवादियों ने नवीन मांझी को सबजोनल कमांडर अजय महतो से हुए तकरार के बाद हाशिये में डाल दिया था और नवीन मांझी के इसी असंतुष्टी का परिणाम है उसकी गिरफतारी. इससे जाहिर है कि माओवादियों के बीच संगठनात्मक दरार आ गयी है.
गौरतलब है कि झारखंड़ उच्च न्यायालय द्वारा गठित जांच कमिटी के रिपोर्ट के आलोक में पुलिस को दायर किए गये आरोप पत्रों की जांच करनी चाहिए, जिससे न्यायालय पर झूठे मूकदमों का जहां बोझ कम होगा वहीं मूकदमें की कार्रवाई में तेजी आएगी.
इस प्रक्रिया को अपनाने से राज्य पुलिय व्यवस्था के प्रति आदिवासियों के रूख में भी बदलाव आएगा. आदिवासी पुलिस व्यवस्था को संशय के दृष्टि से देखते है. ऐसा करने पर पुलिस पर उनका भरोसा फिर से कायम होगा.पुलिस आखिर आम आदमी के सुरक्षा के लिए ही तो है फिर गरीब, भूमिहीन आदिवासियों के प्रति ऐसी ज्यादातियां क्यों ?
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