सावधान! मोदी आ रहा है
संजय जोशी की बीजेपी से छुट्टी हो गई। 'मराठी छोकरे' को 'गुजराती ताव' से पंगा लेना इतना महंगा पड़ेगा, शायद ही किसी ने सोचा हो, वो भी तब जबकि साल 2005 में बीजेपी से इस्तीफे के बाद 2011 में वापसी आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के दखल के बाद हुई। तो क्या मोहन भागवत की भी अवमानना हुई है? बीजेपी और आरएसएस के जानकार बताते हैं कि हां, संजय जोशी को बीजेपी से निकाला जाना सीधे तौर पर मोहन भागवत के लिए किसी सदमे से कम नहीं।
दरअसल, मुंबई कार्यकारिणी से विदाई के बाद संजय जोशी रेलयात्रा वो भी दूसरे दर्ज के स्लीपर क्लास के जरिए वाया गुज़रात होते हुए दिल्ली जाना चाहते थे। उनके समर्थकों की मांग थी कि वो ऐसा करें ताकि गुजरात में पड़ने वाले हर रेलवे स्टेशन पर उनके स्वागत में जमावड़ा हो और नरेंद्र मोदी को आईना दिखाया जाए। लेकिन इसकी खबर जैसे ही संघ के रणनीतिकारों को लगी उन्होंने किसी भी विवाद से बचने के लिए संजय जोशी को वाया फ्लाइट दिल्ली जाने का निर्देश दिया। यहां तक कहा कि भूलकर भी गुजरात की ओर रुख नहीं करना। संजय जोशी ठहरे स्वयंसेवक-प्रचारक, अक्षरशः आदेश का पालन किया और हवाई जहाज़ से दिल्ली चले आए, लेकिन बेचैन समर्थकों से रहा नहीं गया। दिल्ली से गुजरात तक अचानक नरेंद्र मोदी के खिलाफ पोस्टर और बैनर लटक गए। शान में ये गुस्ताखी मोदी के बर्दाश्त के बाहर थी।
जानकारों के मुताबिक, मोदी ने फौरन पहले से पस्त और त्रस्त 'आलाकमान' से संजय जोशी की पार्टी की सदस्यता रद्द करने की मांग की। मांग न मानने पर अंजाम भुगतने की चेतावनी दोबारा जारी की, जो वो मुंबई की बैठक से पहले पुरुषोत्तम रुपाला और दूसरे गुजराती नेताओं के जरिए दे चुके थे कि 'या तो संजय जोशी या नरेंद्र मोदी? बोलो बीजेपी का नेता कौन? म्यान में सिर्फ एक ही तलवार रहेगी।' आलाकमान यानी नितिन गडकरी को मानो सांप सूंघ गया। सूत्रों के मुताबिक, पूरे मामले पर उन्होंने बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी और संघ के बड़े प्रचारक सुरेश सोनी से बातचीत की। दोनों ने उन्हें फैसला लेने के लिए पूरी आज़ादी दी। आनन-फानन में संजय जोशी को संदेश भिजवाया गया कि वो ज़िम्मेदारियों से खुद हटने का ऐलान करें या फिर पार्टी ही उन्हें हटाने का कड़ा फैसला लेगी। संजय जोशी ने फौरन गडकरी की मंशा भांपते हुए उन्हें यूपी के कार्यभार से मुक्त करने का आग्रह करते हुए चिट्ठी भेज दी। यहीं पर खेल उलट गया। बीजेपी नेता प्रकाश जावड़ेकर ने गडकरी के आदेश के मुताबिक प्रेस कांफ्रेन्स में कहा कि 'संजय जोशी ने अध्यक्ष को चिट्टी लिखकर पार्टी से मुक्त होने की इच्छा जाहिर की है, लिहाज़ा उन्हें बीजेपी से मुक्त कर दिया गया है, यानी पार्टी से छुट्टी दे दी गई है।' यानी चिट्ठी में जो मांग की ही नहीं गई, उस पर हुक्म सुना दिया गया। संजय जोशी ने यूपी के कार्यभार से मुक्ति मांगी थी लेकिन बीजेपी ने उन्हें प्राथमिक सदस्यता से निकाल बाहर किया। 23 मई से 9 जून के महज़ 16 दिनों में दूसरी बार गडकरी समेत पूरी बीजेपी नरेंद्र मोदी के सामने लंबलेट हो गई।
नितिन गडकरी के नज़दीकी सूत्रों के मुताबिक, संजय जोशी को बीजेपी में वापसी का फैसला उनका नहीं था। ये फैसला आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के दबाव में लिया गया था। फैसले पर नरेंद्र मोदी को शुरु से ऐतराज़ था। ऐतराज़ यहां तक था कि बीच में जब नरेंद्र मोदी दिल्ली दौरे पर आए तो उन्होंने इस फोरेंसिक रिपोर्ट पर भी सवाल उठाया कि मोदी का सीडी कांड नकली था। जानकारों के मुताबिक, मोदी ने बीजेपी नेताओं को वो सारे सुबूत मुहैया कराए जिनके जरिए अश्लील हरकत में संजय जोशी के शामिल होने की बात पुख्ता हो जाती है। सूत्रों के मुताबिक़, जिस फोरेंसिक जांच में सीडी नकली होने का दावा किया गया था, उस पर मोदी ने ये कहकर उंगली उठाई कि 'सीडी को फर्जी साबित करने की बात मध्य प्रदेश पुलिस की तरफ से कही गई। आखिर सीडी की जांच का केस बीजेपी शासित भोपाल में ही क्यों दर्ज किया गया, अहमदाबाद या दिल्ली में केस दर्ज क्यों नहीं कराया गया?' मोदी की ओर से संजय जोशी के खिलाफ और भी कई आरोपों की बाबत शिकायतें मय सुबूत बीजेपी नेताओँ को मुहैया कराई गईं, जिसका ब्यौरा नागपुर भी भेजा गया।
जाहिर तौर पर, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के पास सिवाय चुप रहने के कोई चारा नहीं बचा। असहाय भागवत अपने लाडले संजय जोशी को कुटिल सियासत की बलि चढ़ने से रोक नहीं सके। जाहिर तौर पर, मोदी ने संगठन के सीने पर चढ़कर ठीक वैसे ही अपनी बात मनवा ली, जैसे बीजेपी के 'डी-फोर' नेताओं की छाती पर चढ़कर मोहन भागवत गडकरी को नागपुर से दिल्ली लाए और दोबारा कार्यकाल के लिए बीजेपी के संविधान में संशोधन तक करवा डाला। लिहाज़ा मोदी ने भी ठोक-बज़ाकर मोहन भागवत को भी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और खाकी निक्कर की हद में रहने का संकेत दे दिया।
मोदी का अगला लक्ष्य दिल्ली के किले पर सीधे चढाई करने का है, जाहिर है जो लड़ाई ठनी है, उसमें वो मोहन भागवत पर भी बीस साबित हुए हैं। लोग भले ही उन्हें तानाशाह कहें लेकिन उन्होंने ये तो दिखा ही दिया कि दमदारी से सियासत कैसे की जाती है। अब गुजरात विधानसभा के नतीजे तय करेंगे कि मोदी का अगला क़दम क्या होगा? जानकारों के मुताबिक, नतीजे पक्ष में आए तो पुरुषोत्तम रुपाला को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाकर मोदी सीधे दिल्ली कूच करेंगे। जाहिर तौर पर मोदी की आहट ने बीजेपी के आला नेताओं की बचैनी बढ़ा दी है। सवाल है कि बलि का अगला बकरा कौन? बीजेपी और आरएसएस में सन्नाटा पसर चुका है कि बोलो नहीं, बस चुपचाप धड़कनें थामकर अपनी खोहों में दुबके रहो, क्योंकि गुजरात का शेर दिल्ली आने वाला है।
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