सिंगरौली के विकास का काला सच
अब्दुल रशीद
सिंगरौली (मध्य प्रदेश)
बंदिशे तो होती है लेकिन वक्त पर बंदिशों का जोर नहीं होता ठीक इसी तरह वक्त की कलम किसी की मोहताज़ नहीं होती और वक्त के कलम से लिखी दास्तां अमिट होती है। शायद यही वजह है कि वक्त के कलम से लिखी हकीकत न तो मिटाई जा सकती है और न ही बदली जा सकती है क्योंकि वह मानवता के चहरे पर साफ झलकती है। जिसके निशान सदियों तक मौजूद रह कर अपनी दास्तां सुनाते रहते हैं। जब किसी गांव का विकास होता है तो वक्त की कलम विकास से होने वाले नफा नुकसान का विश्लेषण निष्पक्ष रूप से करती रहती है। सिंगरौली जिले के विकास के साथ – साथ होने वाले कुप्रभाव के निशान को भी सहज रूप से देखा जा सकता है लेकिन शर्त है देखने वाले के आंखों पर न तो कार्पोरेट जगत का और न ही राजनैतिक चश्मा लगा हो,क्योंकि मानवीय संवेदना को मानवीय दृष्टिकोंण से देखा जाए तो ही जिंदगी की कड़वी सच्चाई को देखा जा सकता है।
सिंगरौली जिसे देश की उर्जाधानी भी कहा जाता है और इसे काले हीरे का गढ भी माना जाता है। यह सब तो है सतही हकीक़त लेकिन ज़मीनी हकीक़त कुछ और है। यह ऐसा जिला है जहां से पैदा होने वाली बिजली अधिकांश महानगरों को रौशन करता है और खुद रौशनी को मोहताज है। यह जिला ऐसे काले हीरे का गढ है जहां मौत का काला साया धूल और धुएँ के रुप में फैला है और मासूम जिंदगी को अपनी आगोश में लेकर गहरी नींद में सुला रह है। इस बात से न तो सरकार को कोई फर्क पड़ता है और न ही यहां पर स्थापित हो रहे परियोजनाओं के आकाओं को। आदिवासी बाहुल्य इलाका और गरीब जनता से सरोकार है तो बस जमीन जो परीयोजना लगाने के काम आती है और वोट जो सरकार बनाने के लिए बेहद जरुरी होता है। पर्यावरण दिवस पर अखबारों में विज्ञापन रूपी समाचारों की झड़ी लग जाती है मानो बस अब यहां से प्रदूषण का खात्मा हो जाएगा लेकिन यह सब खबरे बस कागज़ पर लिखी जाती है और कागज़ पर ही दम तोड़ देती है।
अकूत प्राकृतिक संपदा कोयला और पानी सिंगरौली को वरदान स्वरूप मिला है और यही कारण है उर्जा उत्पादन करने वाले कारपोरेट घराने इस ओर आकर्षित होते रहे है। रिलायंस, बिड़ला और डीबी पॉवर समेत यहां 15 से अधिक कंपनियां कोयले के खनन और बिजली निर्माण के लिए सक्रिय होने के लिए तेज रफ्तार से काम को अंजाम दे रही हैं। खदान और परियोजना के लिए यहां पर बड़ी संख्या में पेड़ काटे गए हैं। नियमानुसार एक काटे गए पेड़ के बदले यहां पांच पेड़ लगाने का नियम है, जो केवल कागजों पर ही दिखता है। यही वजह है कि यह क्षेत्र धुंआ और कोयले की धूल के गुबार में डूबा रहता हैं।
महत्वपुर्ण तथ्य (ग्रीनपीस के रिपोर्ट के अनुसार)
1- देश में चुनिंदा 88 अति प्रदूषित औद्योगिक खण्ड के विस्तृत पर्यावरण प्रदूषण सूचकांक पर सिंगरौली 9वें स्थान पर है। इसके 81.७३ अंक यह साफ –साफ संकेत करते हैं कि यह क्षेत्र खतरनाक स्तर पर प्रदूषित है।
2- इलेक्ट्रिसिटे द फ्रांस की एक अप्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार उत्पादन के लिए निम्नस्तरीय कोयले के उपयोग के कारण सिंगरौली के थर्मल पावर प्लांटो से हर साल लगभग ७२० किलोग्राम पारा (मर्करी) निकलता है।
3- इसके फलस्वरूप सिंगरौली गाँव के लोगों को अनेक तरह की स्वास्थ समस्याएँ रहती हैं जिनमें सांस की तकलीफ टीबी चर्म रोग पोलियो जोड़ों में दर्द और अचानक कमजोरी तथा रोजमर्रे की सामान्य गतिविधियों को करने में कठिनाई जैसी अनेक समस्याएँ हैं।
4- इस रिपोर्टें में इस बात को भी उजागर किया गया है कि किस तरह विभिन्न खनन एवं औद्योगिक गतिविधियों ने ग्रामीण जीवन को नुक़सान पहुंचाया है लेकिन इन गतिविधियों के संचालकों से किसी ने भी स्वास्थ्य सेवा एवं बुनियादी सुविधाओं को मुहैया कर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहे कुप्रभाव को कम करने की जिम्मेदारी नहीं ली है।
(5) सन 2007 के बाद 26,000 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि कोयला खनन के लिए दी जा चुकी है, देश में कोयला जंगलों के लिए सबसे बडा खतरा बनता जा रहा है। कोयला मंत्रालय उत्तर भारत में कोयला उत्पादन बढाने के लिए और अधिक वन भूमि की मांग कर रहा है। साथ ही यह आरोप भी लगा रहा है कि वन मंजूरी प्रक्रिया ऊर्जा उत्पादन की दिशा में दिक्कतें पैदा कर रही है। सरकार के अधीन चलने वाली कोल इंडिया लिमिटेड समेत कोल कंपनियों के पास कोयला खनन के लिए दो लाख हेक्टेयर से अधिक जमीन है जिसमें 55 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र भी शामिल है।
(6) यह वन ब्लाक 'नो गो' क्षेत्र की श्रेणी में आता है और वन एवं पर्यावरण मंत्रालय व कोयला मंत्रालय के बीच झगडे की जड़ बन गया है। प्रधानमंत्री कार्यालय भी कोयला मंत्रालय के पक्ष में खडा हो गया है।
सिंगरौली में कंपनियों की मेहरबानी के चलते शुद्ध वातावरण और स्वच्छ हवा में जिंदगी जीना अब सपनों की बात जैसी लगने लगी है। प्रदूषित वातावरण का ही परिणाम है कि यहां के लोगों में बीमारी से लड़ने वाली प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगी है और उन्हें कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है यहां भारी संख्या में लोग हाई ब्लड प्रेशर,गुर्दे की बीमारी दमा और टीबी की गिरफ्त में आ जाते हैं।
काले हीरे की इस नगरी में बीमारी का प्रकोप तेजी से बढ रहा है, सबसे चिंताजनक बात यह है कि यहां के बच्चे भी गम्भीर बीमारी से ग्रसित हो रहे हैं। बेहतरीन खनिज नीति पर खुश होने वाली सरकार को लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर हो कर विचार करना चाहिए। क्योंकि विकास के साथ – साथ विनाश के संयोग को किसी भी तरह से तर्कसंगत और न्यायसंगत नहीं माना जा सकता है।

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