प्लीज़ ! बहन जी को भ्रष्टाचार करने दो, दलित हैं न………..
मायावती बनाम दलित
कँवल भारती
इसी 6 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने मायावती की बेहिसाब सम्पत्ति के मामले में 9 साल से चल रहे मुकदमे को रद्द कर दिया। सीबीआई ने यह मुकदमा 2003 में दर्ज कराया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसे गैर कानूनी भी करार दे दिया है। अवश्य ही मायावती के लिये यह खबर राहत भरी है। पर, क्या दलितों के लिये भी यह खबर राहत भरी होनी चाहिए? मेरी दृष्टि में तो नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यदि दलित नायक भी होगा, तो वह भी समाज का ही निर्माण करेगा। लेकिन हमारे दलित बुद्धिजीवियों की अजीब स्थिति है। फेसबुक पर उनके कमेंट मायावती के भ्रष्टाचार के पक्ष में हैं। जब एस0 आर0 दारापुरी ने अपनी वाल पर मायावती के भ्रष्टाचार पर सवाल उठाया, तो उनका खूब विरोध हुआ। मायावती के मामले में अक्सर दलितों की प्रतिक्रिया यह होती है कि 'कौन भी नहीं है।' इसका सीधा अर्थ है कि सब भी हैं, तो मायावती को भी होना चाहिए। सब नंगे नाच रहे हैं, हमारे नेता को भी नंगा नाचना चाहिए। और हद तो तब होती है, जब यही लोग अपनी वाल पर वामपंथी नेताओं की आलोचना करते हैं। ये भी तरीके से करोड़ों रुपये की अचल सम्पत्ति खड़ी करने वाली अपनी नेता का बचाव करते हैं और वामपंथियों को वर्ण और वर्ग का फर्क समझाते हैं।
मेरी चिन्ता यह है कि दलितों को इस बात से कोई परेशानी क्यों नहीं होती कि एक साधारण अध्यापिका से राजनीति में आईं मायावती के पास 111 करोड़ रुपये की सम्पत्ति कैसे हो गयी? क्या वह आसमान से उनके ऊपर टपकी? उन्होंने इतनी सारी अचल सम्पत्ति अपने और अपने परिवार के लोगों के नाम से कैसे खरीद ली? क्या इसमें भ्रष्टाचार की जरा भी गन्ध दलित बुद्धिजीवियों को नहीं आती? सीबीआई ने गलत एफ0आई0आर0 दर्ज नहीं करायी थी। पर, गलत अब हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट ने उसके सारे किये कराये पर पानी फेर दिया। सीबीआई के एक अधिकारी ने कहा भी है कि उनकी जाॅंच पूरी हो चुकने के बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने उन्हें निराश कर दिया है। दरअसल, जिससे राजनीतिक लाभ लेना होता है, केन्द्रीय सत्ता उसे इसी तरह छूट देती है।
यह बात एकदम समझ से परे है कि मायावती अपने आप को पाक-साफ कैसे कह सकती हैं? वे कहती हैं कि उनके समर्थकों ने उन्हें उपहार दिये हैं, उसी से उन्होंने जमीनें और जायदादें खरीदी हैं। सवाल यह है कि ये उपहार लोगों ने मुझे क्यों नहीं दिये? यह सवाल हॅंसने के लिये नहीं है, वरन् समझने के लिये है। मैं जानता हूॅं कि उपहार किसे और क्यों दिये जाते हैं? सरकारी सेवा में रह कर मैंने उपहार का अर्थ अच्छी तरह समझ लिया है। छोटे अधिकारी बड़े अधिकारियों को उपहार देते हैं, ताकि उनकी कृपा उन पर बनी रहे। मायावती को भी उपहार देने वाले लोग वही थे, जो उनकी 'कृपा' चाहते थे। इधर 'भेंट' आयी, और उधर 'कृपा' हो गयी। 'जाओ, तुम्हारा काम हो जायगा'। मेरी हैसियत यह कृपा देने वाली नहीं है, इसलिये मुझे उपहार नहीं मिल सकते। क्या यह रिश्वत नहीं है? क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है? इसे यदि जायज ठहराया जा सकता है, तो ए0 राजा को जेल क्यों भेजा गया? और यदि यह जायज नहीं है, तो मायावती को जेल क्यों नहीं भेजा गया?
मायावती की सम्पत्ति का विवरण भी देख लिया जाय। राज्यसभा में नामांकन दाखिल करते समय उन्होंने अपनी सम्पत्ति का जो ब्यौरा दिया था, उसके आधार पर 'अमर उजाला' ( 7 जुलाई 2012 ) ने उसका विवरण इस तरह दिया है- 13़.73 करोड़ से अधिक बैंक खाते में, 10.20 लाख रुपये की नकदी, 1034.260 ग्राम सोने के आभूषण, 96.53 लाख रुपये के हीरे, 18.5 किलो की चाॅदी का डिनर सेट ( कीमत 9.32 लाख रुपये ), 15 लाख की कलाकृतियाॅं, दिल्ली के कनाट प्लेस में 936 करोड़ और 9.45 करोड़ रुपये की दो इमारतें, नयी दिल्ली में 61.86 करोड़ की रिहायशी इमारत और लखनऊ में 15.68 करोड़ की इमारत। जिस दिल्ली में दो, तीन कमरों का घर हासिल करने के लिये लोगों की पूरी जिन्दगी निकल जाती है, वहाॅं मायावती के दो व्यावसायिक भवनों के अलावा एक विशाल किलानुमा महल भी है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी मायावती को तो राहत पहुॅंचा सकता है, पर उन दलितों को नहीं, जिन्होंने अपनी आँखों में परिवर्तन का सपना लेकर कांशीराम और मायावती को आंबेडकर के बाद अपना नेता माना है।

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