Monday, July 9, 2012

आदर्श ग्राम का सच

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आदर्श ग्राम का सच
 
उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार की अंबेडकर ग्राम योजना की तर्ज पर उत्तराखण्ड़ में शुरू की गयी अटल आदर्श ग्राम योजना सफल होती नजर नहीं आ रही है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर उत्तराखण्ड में यह योजना गत वर्ष मई माह में ६७० ग्राम पंचायतों में शुरू की गयी थी। इसके बाद भाजपा सरकार
ने चयनित गांवों में १९ ऐसी योजनाएं लागू की जिनमें गांव वालों को मूलभूत सुविधाएं देने की बात थी। इन योजनाओं के लागू होने की द्घोषणा तो की गयी लेकिन जमीनी हकीकत इसके बिल्कुल उलट है जिसका प्रमाण गोविंदपुर गांव है। ऊधमसिंह नगर जिले की गदरपुर तहसील में बसे इस में योजना लागू होने के एक साल बाद भी अटल आदर्श ग्राम योजना का कोई असर नहीं दिखाई दे रहा है।

गोविंदपुर में अटल आदर्श ग्राम योजना के तहत एक मात्र पंचायत भवन का निर्माण कराया गया। पंचायत भवन में कई विभागों के कार्यालय स्थापित किये गये। लेकिन ये कार्यालय नाम मात्र के ही रहे। इनमें अधिकारी मात्र खानापूर्ति के लिए आते हैं वो भी महीने में सिर्फ एक-दो बार ही। इसका सीधा सा प्रमाण इन विभागों के पास लोगों की कम शिकायतों का पहुंचना है। यहां बने सभी विभागों के पास एक साल में कुल मिलाकर आधा दर्जन शिकायतें ही आई। जिनमें से किसी का समाधान नहीं किया गया।

भाजपा सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर कुल १९ योजनाएं अनुमन्य की गई। जिनमें विद्युतीकरण से लेकर पेयजल सुविधा, माध्यमिक शिक्षा, मातृ शिशु कल्याण केन्द्र, आंगनबाड़ी केन्द्र, ग्रामीण स्वच्छता, पंचायत भवन, सरकारी सस्ता गल्ला विक्रेता, कृषि निवेश आपूर्ति केन्द्र, साधन सहकारी समिति, पोस्ट ऑफिस सुविधा, बैकिंग सुविधा, दूरभाष सुविधा तथा सिंचाई की व्यवस्था कराना आदि को प्राथमिकता दी गयी थी। लेकिन गोविंदपुर गांव को देखकर ऐसा नहीं लगता कि यहां ऐसी किसी भी योजना के तहत काम हुआ है। इनमें से अधिकतर सुविधाएं यहां हैं ही नहीं। यहां जिन सुविधाओं का अभाव है उन्हें पड़ोसी गांव गूलरभोज में दिखाकर अधिकारी पल्ला झाड़ रहे हैं। जबकि अटल आदर्श गांव योजना के प्रावधान में यह है कि एक ही स्थान पर सभी अनुमन्य १९ योजनाएं संचालित होनी चाहिए।

रुद्रपुर से करीब २५ किलोमीटर दूर गोविंदपुर गांव में कुल १४९६ मतदाता हैं। जबकि गांव की आबादी ४००० से अधिक है। गांव के पूर्व प्रधान राजू गुप्ता बताते हैं कि पहले इस गांव में ४०५ बीपीएल कार्ड धारक (गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले) थे जो अब ११२ ही रह गए हैं। जबकि इनमें गोविंदपुर के साथ ही चंदायन के भी बीपीएल कार्ड धारक शामिल हैं। सस्ती खाद्यान्न योजना यहां दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती। पूर्व प्रधान बताते हैं कि यहां का सरकारी अस्पताल ग्रामसभा कोपा में है। जबकि प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र गूलरभोज में चलाया जाता है। यह स्वास्थ्य केन्द्र पहले से ही बना था बस इसका नाम गोविंदपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लिख कर अधिकारियों ने प्राथमिक चिकित्सा योजना की इतिश्री कर दी। इसके आगे राजू कहते हैं कि गोविंदपुर के मरीज पहले से ही उस अस्पताल में जाते थे। अटल आदर्श ग्राम योजना के लागू होने के बाद भी दूसरे गांव इलाज के लिए जाना पड़े तो फिर आदर्श ग्राम का ढिढोंरा पीटने की क्या जरूरत है।

गोविंदपुर की पंचायत सदस्य लक्ष्मी के अनुसार अटल आदर्श ग्राम के संविधान में यह स्पष्ट है कि कम से कम महीने में एक बार सभी संबंधित विभागीय अधिकारियों के साथ ही गांव के पंचायत सदस्य संयुक्त रूप से एक बैठक करेंगे। जिसमें कार्यों की समीक्षा की जायेगी। यही नहीं बल्कि इस संविधान में ग्रामवासियों की समस्याओं के समाधान के लिए उचित कदम उठाने के भी निर्देश दिए गए हैं। लेकिन अभी तक एक बार भी अधिकारियों ने ग्राम पंचायत सदस्यों के साथ बैठक नहीं की है। समीक्षा और समस्याओं के समाधान तो बहुत दूर की बात है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि अधिकारी अटल आदर्श ग्राम को लेकर कितने गंभीर हैं।

गोविंदपुर के सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता राजेन्द्र जोशी के अनुसार गांव में सिर्फ तीन सुविधाएं हैं। जिनमें पंचायत द्घर, प्राथमिक विद्यालय और तीसरा कोटा (राशन डीलर की दुकान) है। इसके अलावा इस गांव में अटल आदर्श ग्राम योजना के तहत मुहैया कराई गयी कोई सुविधा नहीं है। सभी सुविधाओं के लिए ग्रामीणों को दूसरे गांवों का रुख करना पड़ता है। अगर आदर्श ग्राम में मिलने वाली सुविधाओं की समीक्षा करें तो विद्युतीकरण के नाम पर यहां कुछ नहीं हुआ है। पेयजल सुविधा पहले से भी गई गुजरी हो गई है। पहले भी सुबह और शाम दो-दो द्घंटे जल आपूर्ति होती थी। आज भी पेय जल की स्थिति वैसी ही है। कई जगह नल के पाइप जंग खा गए हैं और उनसे रिसाव हो रहा है जिसके कारण ज्यादातर पानी द्घरों में पहुंचने की बजाय गलियों में ही बह जाता है।
स्थानीय पत्रकार अमित गुप्ता बताते हैं कि माध्यमिक शिक्षा के नाम पर यहां एक प्राइमरी स्कूल बना हुआ है जिसमें पांच अध्यापक नियुक्त होने हेैं। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। यहां मुश्किल से एक-दो अध्यापक ही दिखाई देते हैं। हाईस्कूल और इंटर की पढ़ाई पूरी करने के लिए छात्रों को कई किलोमीटर दूर दिनेशपुर या गदरपुर जाना पड़ता है। इसी तरह मातृ शिशु कल्याण केन्द्र और आगनबाड़ी केन्द्रों की स्थापना भी गोंविंदपुर में नहीं हो सकी है।

गांव के किसान हरदीप सिंह कहते हैं कि जब गोविंदपुर को अटल आदर्श ग्राम द्घोषित किया गया था तो सबसे ज्यादा खुशी यहां के किसानों को हुई थी। खेती बाड़ी करके गुजर बसर करने वाले लोगों को बताया गया कि उनकी फसलों के लिए पानी की समुचित व्यवस्था कराने का दायित्व सरकार का होगा। लेकिन इस द्घोषणा के बाद यह तक नहीं देखा गया कि उनकी फसलों को पानी मिल रहा है या नहीं। कई किसानों ने अपने खेतों में ट्यूबवेल लगवाने की मांग की लेकिन उनकी मांग अनसुनी कर दी गई।

किसान नेता चौधरी राय सिंह के अनुसार अटल आदर्श ग्राम का किसानों सेकोई सरोकार नहीं है। यही वजह है कि गोविंदपुर में न तो कृषि निवेश आपूर्ति केन्द्र है और न ही साधन सहकारी समिति। टेम्परेरी तौर पर गूलरभोज के संस्थानों में इनके बोर्ड लगाकर औपचारिकता पूरी कर ली गई है।

ग्राम प्रधान संतों देवी कहती हैं कि हमारे ग्राम को सरकार द्वारा अटल आदर्श गांव द्घोषित करने से कोई फर्क नहीं पड़ा। अटल आदर्श ग्राम द्घोषित होने से पूर्व यह गांव जैसा था आज भी वैसा ही है।

वहीं दूसरी तरफ ग्राम पंचायत विकास अधिकारी पीएल वर्मा ने कहा कि सभी विभागों के अपने दायित्व हैं जिन्हें वे पूरा कर रहे हैं। लेकिन जब उनसे विभागों के दायत्वि पूछे गये तो वे जवाब नहीं दे पाये। ब्लॉक विकास अधिकारी विमल कुमार से जब गोंविंदपुर की प्रोग्रेंस रिपोर्ट पूछी गई तो उन्होंने यह कहकर मजबूरी जता दी कि वह बीमार हैं, कुछ ही समय पहले उनका हार्ट का ऑपरेशन हुआ है। गोविंदपुर के लेखा विभाग अधिकारी वीके सती ने बताया कि १२वें वित्त वर्ष २००९-२०१० के तहत यहां ६ ़८० लाख के निर्माण कार्य हुए हैं। जिनमें अधिकतर खड़ंजा निर्माण है। इसी तरह गांव के ३ किलोमीटर क्षेत्रफल में नाली सफाई के तहत एक लाख रुपये का खर्च हुआ है।


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