Friday, September 13, 2013

By चन्द्रशेखर करगेती मैं तो जा रहा हूँ, आप आ रहें हैं ?

Status Update
By चन्द्रशेखर करगेती
मैं तो जा रहा हूँ, आप आ रहें हैं ? 

21-22 सितम्बर को होने वाले श्रीनगर सम्मलेन के लिये महज एक हफ्ता रह गया है. समीर रतूड़ी ने सूचित किया है कि उनके पास अभी केवल 20-25 लोगों की ही सहमति पहुँची है. मुझे तो उम्मीद थी कि Facebook पर कुछ लोग तो होंगे, खासकर युवा जो सिर्फ बातों से ऊपर उठ कर कर्म के स्तर पर भी कुछ करने को उद्यत होंगे! खैर....

जो लोग उत्तराखंड को इस बेबसी से उबारने के लिये कोई रास्ता तलाशने को बेचैन हों और श्रीनगर सम्मलेन में भाग लेना चाहते हों वे समीर रतूड़ी को 095360-10510 पर इत्तिला कर दें, उन्हें मालूम तो हो कि उन्हें 50 लोगों की व्यवस्था करनी है या 500 की...

उत्तराखण्ड पुनर्निर्माण

जून 2013 के तीसरे सप्ताह में आई भीषण आपदा से उत्तराखण्ड अभी तक नहीं उबर पाया है। जनता न तो यह समझ पायी है कि यह दुर्भाग्य उसके हिस्से आया क्यों और न ही उसे आगे के लिये कोई रास्ता मिल पा रहा है। सरकार और प्रशासन पूरी तरह लकवाग्रस्त हैं और चिन्ताग्रस्त नागरिक अपनी-अपनी तरह से इन गुत्थियों को सुलझाने में लगे हैं । 

अधिक व्यवस्थित रूप से इन उत्तरों को ढूँढने के लिये 21 तथा 22 सितम्बर (शनि तथा रविवार) 2013 को श्रीनगर (गढ़वाल) में एक सम्मेलन किये जाने का निर्णय लिया गया है । श्रीनगर पहले भी तमाम प्राकृतिक (1803 का भूकंप, 1894 की बाढ़ आदि) तथा मानवकृत आपदाओं (1970 आदि) को झेल चुका है । इस बार भी अतिवृष्टि और मानवविरोधी विकास का बहुत बड़ा खामियाजा उत्तराखण्ड के इस सांस्कृतिक-शैक्षिक केन्द्र ने भोगा । 

विचार-विमर्श हेतु कुछ बिन्दु इस प्रकार हो सकते हैं:-

जून 2013 आपदा का गहनतम विश्लेषण, विभिन्न इलाकों की स्थिति की समीक्षा, शासन-प्रशासन की गैर जिम्मेदारी का मिजाज। जमीन, जंगल तथा जल सम्पदा के सरकारी तथा निजीकरण और संरक्षित क्षेत्रों से ग्रामीणों को अलग कर देने के दुष्परिणाम; खनन, जल विद्युत परियोजनाओं व नदी तटों पर अवैज्ञानिक तरीकों से सड़क व भवन निर्माण के दुष्परिणाम । गाँवों का निराशाजनक यथार्थ, गाँव से शहर-कस्बों तथा पहाड़ से मैदान को पलायन के कारण और निदान । अनियंत्रित तीर्थाटन-पर्यटन और मैदान केन्द्रित औद्योगीकरण से उत्पन्न समस्यायें, रोजगार और उद्यमिता के नये और व्यावहारिक तरीके । जल विद्युत उत्पादन का जनहितकारी तरीका तथा वैकल्पिक ऊर्जा की सम्भावनायें । माफिया, नेता और नौकरशाहों की गिरफ्त में फँसे भ्रष्ट राजनीतिक तंत्र और नकारे प्रशासन की असफलता तथा 72वें -73वें संविधान संशोधन कानूनों की सम्भावनायें ।

इन और इन जैसे अन्य मुद्दों पर बातचीत के लिये तैयार होकर आयें और सम्मेलन से दिमाग को और अधिक साफ कर अपनी जगह वापस जायें । हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि यह सम्मेलन आपदा से जर्जर उत्तराखंड के पुनर्निर्माण के लिये हो रहा है, महज बौद्धिक विलास के लिये नहीं । इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये हमें ग्रामीणों, महिलाओं और उन युवाओं की बहुत अधिक जरूरत है, जो उत्तराखंड का भविष्य खुशहाल बनाने के लिये जूझ सकें । इस सम्मेलन की सूचना आपको इसी रूप में फैलानी है । यह कहने की जरूरत नहीं कि इस आयोजन को सफल बनाने में हम आपसे वैचारिक ही नहीं, आर्थिक सहभागिता की भी अपेक्षा रखते हैं । 

साभार : राजीव लोचन शाह

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