Tuesday, April 28, 2015

भूकंप के बहाने हिंदुत्व का यह हिंसक आवाहन, बजरंगियों का घृणा अभियान तेज प्राकृतिक आपदा से बडी आपदा है बचाव और राहत के बहाने राजनीति और राजनय इस आत्मघाती धर्मोन्मादी मुक्तबाजार के महाविध्वंस से बचना है तो मोहनतकशों, अस्मिताओं और सीमाओं के आर पार मनाओ मुक्तकामी जनता का महोत्सव मई दिवस। पलाश विश्वास


भूकंप के बहाने हिंदुत्व का यह हिंसक आवाहन, बजरंगियों का घृणा अभियान तेज

प्राकृतिक आपदा से बडी आपदा है बचाव और राहत के बहाने राजनीति और राजनय
इस आत्मघाती धर्मोन्मादी मुक्तबाजार के महाविध्वंस से बचना है तो मोहनतकशों, अस्मिताओं और सीमाओं के आर पार मनाओ मुक्तकामी जनता का महोत्सव
मई दिवस।

पलाश विश्वास
नेपाल में हालात का जायजा लेने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हवाई सर्वेक्षण की खबर आज इकोनामिक टाइम्स की बड़ी खबर है।क्या स्वतंत्र और संप्रभू देश की हैसियत से हम किसी बाराक हुसैन ओबामा या नितान्याहु के भारत के हवाई सर्वेक्षण की तैयारी के सिलसिले में यह नजीर पैदा कर रहे हैं.समयरहते इस सवाल पर गौर जरुर करें।

इसी के मध्य भूकंप के बहाने हिंदुत्व का यह हिंसक आवाहन के तहत बजरंगियों का घृणा अभियान तेज से तेजहोता जा रहा है शत प्रतिशत हिंदुत्व वाले हिंद राष्ट्र के फासिस्ट कारपोरेट एजंडा के तहत।

प्राकृतिक आपदा से बडी आपदा है बचाव और राहत के बहाने राजनीति और राजनय।नेपाल में राजनयिक युद्ध के तहतभारत के एकादिकार को तोड़ने केलिए मैदान में है अमेरिका और चीन भी।

जबकि काठमांडो और एवरेस्ट के आसपास के मीडिया चकाचौंध को छोड़ जहां भूकंप पीड़ित मलबे में दबे हैं,वहा कोई राहत या बचाव याखोजअभियान है नहीं और सारे नेपाल पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कब्जा हो गया है।

इस आत्मघाती धर्मोन्मादी मुक्तबाजार के महाविध्वंस से बचना है तो मोहनतकशों, अस्मिताओं और सीमाओं के आर पार मनाओ मुक्तकामी जनता का महोत्सव मई दिवस।


Modi Likely to Make Aerial Survey of Nepal Devastation

New Delhi:
Our Political Bureau


HIMALYAN RELIEF OPS NDA government is treating the crisis in neighbourhood at par with such crises in the past in Uttarakhand and Jammu and Kashmir
The Modi government is giving the devastating earthquake in Nepal equal importance as that of a similar crisis within the country with all possible relief being provided to the affected and the possibility of PM making an aerial survey of the affected areas in near future.



पहले पेज पर अरुण जेटली की देशी विदेशी पूंजी के लिए पिछला टैक्स एकमुश्त माफ करने और मुकम्मल टैक्स होली डे देने की खबर के अलावा जिस पर कल हमने अंग्रेजी में जो लिखा वह जेटली के वीडियो के साथ हस्तक्षेप पर कल ही लग गया था।कृपया देखेंः

The corporate lawyer of Dow Chemicals does ensure full tax Holiday for Desi Videshi capital



इसके साथ ही आज हस्तक्षेप में खबर लगी हैः

Govt cancels licences of 8,975 NGOs for failing to file annual returns


अब आप समझ लें कि कारपोरेट कंपनियों को टैक्स होलीडे,शर्म कानून खत्म और एकमुश्त सत्रह सौ गैरजरूरी कानून को खत्म करने के साथ साथ कारपोरेट टैक्स में पांच फीसद छूट के बाद सिर्फ विदेशी निवेशकों को  6.4 बिलियन डालर का टैक्स माफ के बाद अब  देशी विदेशी पूंजी के लिए मुकम्मल टैक्स होली डे के ऐलान के मध्य एक साथ 8,975 एनजीओ के लाइसेंस रद्द करके इस महादेश में समाज सेवा के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एकाधिकारी वर्चस्व किस एजंडा के तहत है।

ग्रीन पीस पर शिकंजा कसा हुआ है जो जल जंगल जमीन के हकहकूक के जनांदोलनों का समर्थन कर रहा था तो बाकी एनजीओ भी पर्यावरण आंदोलन से जुड़े हुए थे।

दूसरी ओर पर्यावरण हरी झंडी के बिना अरबों डालर के विदेशी पूंजीनिवेश वाली परियोजनाएं तमाम कायदे कानून बदलकर या उनकी धज्जियां उड़ाकर सुप्रीम कोर्ट और संविधान की अवमानना के तहत रोज रोज प्राकृतिक संसाधनों की लूटखसोट और नीलामी के तहत जो प्रकृति के साथ बलात्कार है,जो तटीयइलाकों में परमाणु विध्वंसे के आयोजन के साथ परमाणु रिएक्टरों का मेला लगाकर रेडियो एक्टिव सुनामी का सृजन है,तो आपदाएं प्राकृतिक हैं या मानवीय समझ लीजिये।

प्रकृति मनुष्यता और सभ्यता को अपने संसाधनों से समृद्ध करता है।बिना कोई बाजार सजाये इस कायनात में हर जीवित अजीवित वजूद के वास्ते अपनी नियामतें बरकतें बिना भेदभाव मिसते रहने की ही नैसर्गिक व्यवस्था है।

प्रकृति ने न धर्म बनाया और न प्रकृति की कोई राजनीति है।सीमाें और अस्मिताएं उसके लिए बेमायने हैं।इसलिए प्राकृतिक आपदाएं सीमाओं और अस्मिताओं के आर पार समूची मनुष्यता का स्पर्श कर लेती हैं।

अस्मिताओं के आरपार ,सीमाओं के आर पार मनुष्यता और सभ्यता के वजूद के लिए प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने की गरज से पर्यावरण संरक्षण सबसे जरुरी है जो मुक्तबाजार के खिलाफ है।मुक्ताबाजारी विकास पर्यावरण,प्रकृति और मनुष्यता का सर्वनाश है।

इस कायमत से बचना है तो अंध राष्ट्रवाद के चश्मे को छोड़ खुली आंखों से देख लें कि प्रकृति से जुड़ें कृषि आजिविका वाले समुदायों के कत्लेआम से जो शापिंग माल, फ्लिपक्रट,अमेजन,स्नैपडील.अली बाबा,अलीपे की थ्रीजी फोर जी फाइव जी सेनसेक्सी सनी लियोन मैन फोर्स का जलवा है,जो कराकेटकैप्सूल का खटियातोड़ फलाहार है और जो जापानी तेल का श्रृंगार है,जो मुक्मल मुक्तबाजारी कार्निवाल है,उसमे कहां कहां सुनामियों और भूकंप का सृजन कर रहे हैं कल्कि अवतार।

भूकंप के बहाने हिंदुत्व का यह हिंसक आवाहन देखिये।

बजरंगियों के घृणा अभियान बेहद तेज है।
नेपाल की संप्रभुता और स्वतंत्रता की परवाह किये बिना भारत की केसरिया कारपोरेट सत्ता ने वहां राजकाज शंभाल लिए है।

मानवीय त्रासदी के वक्त मदद की बात अलग है,लेकिन वहां सारे सरकारी महकमों के सचिवों को भेजकर वहां के प्रशासन को टेकओवर करने का क्या मतलब लगाया जाये। बचाव और राहत का नजारा हम हर साल अपने यहां आम जनता के  साथ प्राकृतिक आपदाओं के साथ सत्ता के केल में

इस पोस्टर को जरुर छापें।हिंदुत्व के इस घृणा अभियान में जाने अनजाने बता दिया गया है कि संघ परिवार ने नेपाल में लोकतंत्र की हत्या करके  हिंदू राष्ट्र और राजतंत्र की वापसी के लिए कैसे और क्या क्यो इंतजाम किये हैं।

इस आत्मघाती धर्मोन्मादी मुक्तबाजार के महाविध्वंस से बचना है तो मोहनतकशों,अस्मिताओं और सीमाओं के आर पार मनाओ मुक्तकामी जनता का महोत्सव मई दिवस।

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

यूट्यूब से न जाने क्यों मेरा यह वीडियो हटा दिया गया है।जिसमें हमने हिमालय को साझा विरासत बताते हुए हिमालयान व्यायस के हिमालयन टाक्स के तहत इंटरव्यू में हिमालयी भूगोलके सारे देशों के एक साझा आपदा प्रबंधन मेकानिज्म बनाने की अपील की थी ठीक केदार आपदा के बाद।

फिर हमने आने वाले भूकंपों की भी चेतावनी का वीडियो अलग से जारी किया था।जो संजोग से यूट्यूब पर अब भी है।

Webcam video from 31 December 2012 2:53

An Warning against massive earthquakes Imminent in the Himalayan Region.

दरअसल सत्तर के दशक से नैनीताल समाचार और पहाड़े के तमाम अंकों को उठाकर देखें तो हम हिमालय से सरोकार रखने वाले तमाम लोग भूगर्भीय हलचल के अकादमिक विश्लेषण के बजाय हिमालय से छेड़छाड़ के खिलाफ सुंदर लाल बहुगुणा जी की चेतावनी ही दुहराते रहे हैं कि हिमालय एक एटम बम है,फटेगा तो न मनुष्यता बचेगी और न सभ्यता।

हमारे गुरुजी खड़गसिंह वाल्दिया ने केदार जलसुनामी के वक्त भी हिमालयी क्षेत्र के पर्यावरण के संरक्षण की बातें सिलसिलेवार कीथी जैसा कि हम उनसे अपने छात्र जीवन में ही सुनते रहे हैं।अब अर्थशास्त्रियों की हरिअनंतविकासगाथा की तरह भूगर्भ शास्त्रियों की रात दिन चौबीसों घंटे जारी विश्लेषण हमारी समझ से बाहर है।

हजारों करोड़ साल पहले बने हिमालय में भूगर्भीयसंरचना की वजह से ही ये आपदाएं आ रही हैं और आगे इससे भी परलयंकार आपदायें आने वाली हैं,तो इन हजारों करोड़ सालों तक इन्ही प्लेटीय घर्षण और टकराव और भूगर्भीय संरचना के बावजूद हिमालय के उत्तुंग शिखरों और ग्लेशियरों के साथ नवउदारवाद की संतानों के धर्मोन्मादी राजकाज में ही हिमालयऔर इस पूरे महादेश के वजूद के लिए महासंकट क्यों है,यह पहेली कुछ हमारी समझ में आ नहीं रही है।

हजारों करोड़ों साल तक हिमालय का इतना दोहन उत्पीड़न कभी नहीं हो रहा था।न टिहरी समेत तमाम जलबिजली परिटोजनाएं बनी थी और न विकास के नाम पर वनों के अंधाधुंध विनाश के तहतपहाड़ों पर इतने तेजी से सीमेंट के जंगल उगाये गये थे।
न इन हजारों करोड़ों सालों में गंगा की अविरल धारा को कदम कदम पर बांधा गयाथा और न ब्रहमपुत्र को बांधने के लिए चीन में परमाणु धमाके की तैयारियां थी।न एवरेस्टऔर मानसरोवर तक सड़क और रेलमार्ग बिछाकर उन्हें पर्यटन स्थल बनाने का कोई आयोजन रहा है।

भूगर्भीय संरचना में प्राकृतिक कारण से जो बदलाव आये हों हम नहीं कह सकते,लेकिन भूमि उपयोग सिरे से बदल जाने से,हिमालयी कृषि को बाकी महादेश की तरह खत्म कर दिये जाने से मुक्तबाजारी विकास का जोकयामती मजर हैं,उसके खिलाफ हम और हमारे साथी कम से कम चार दशक से लगातार आवाज बुलंद करते रहे हैं।


अब हमारे सहकर्मी डा.मांधाता सिंह ने लिखा हैः

भूकंप तो प्राकृतिक आपदा है जिसका हम सबको मिलजुलकर सामना करना चाहिए मगर ऐसे लोगों को धित्कारना भी चाहिए जो ऐसे मौकों पर भी अपनी गंदी हरकतों से बाज नहीं आते. कल यानी बीती रात को धरती के पास से कास्मिक रेज गुजरने और बिहार, झारखंड ओडीशा मध्यप्रदेश वगैरह में रात डेढ से रात तीन बजे के बीच भूकंप आने की खबर जानबूझकर अफवाह होते हुए भी फैलाई गई. यह ऐसै तत्वो का काम है जो चाहते हैं कि लोगों का ध्यान बंट जाए. भूमि अधिग्रहण जैसी जरूरी बहस भटक जाए. गजेंद्र के मामले भी तमाम जटिलताएं पैदा करके कोशिश की जा रही है कि भूमि अधिग्रहण की बहस किसान सहायता पर केंद्रित हो जाए. भूमि ही नहीं रहेगी तो सहायता का क्या अस्तित्व रह जाएगा.

एक और बड़ी साजिश की जा रही है. कारपोरेट के हाथों बिक चुके लोग किसानों की जमीन का सौदा करके अपना कर्ज चुकाना चाहते हैं. इस भूमि अधिग्रहण बिल की सबसे बड़ी खामी यह कि इसमें सिर्फ मुआवजे की बात की जा रही है. उजड़े किसानों का पुनर्वास कैसे होगा, इसपर कोई बात नहीं कर रहा है. दरअसल होना यह चाहिए कि सरकार के भुमि बैक से उतनी ही जमीन देकर उजड़ रहे लोगों को तत्काल बसाने का प्रावधान होना चाहिए. किसान को किसान ही बने रहने का प्रावधान होने की भी बात करनी चाहिए. यह भी प्रावधान हो कि उसकी जिस जमीन पर जो उद्योग लगे उसमें उस किसान को अगर वह चाहे तो उसे मालिकाना हक का शेयर मिले. मेरे कहने का मतलब सिर्फ यह है कि उजाड़े जा रहे किसान को बतौर किसान पुनर्वासित किया जाए. और इसपर भी बिल में प्रावधान होना जरूरी है. जमीन अधिग्रहण के सवाल पर उपजी सामाजिक समस्या पर बहस होनी चाहिए. जिसे आप फिर से बसा नहीं सकते उसे उजाड़ने का क्या हक है आपको. चंद पैसे देकर किसान को दरबदर किया गया तो वह दर दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हो जाएगा. क्या कारपोरेट कोखुश रखकर और बदले में किसानों को भिखारी बनाकर यह देश खुशहाल रह पाएगा.? यह बड़ा सवाल है और किसी भी वजह से इसपर बहस बंद नहीं होनी चाहिए.

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