Monday, July 9, 2012

अर्थ व्यवस्था संभाली नहीं जा रही तो इतिहास में दर्ज​ चमड़े​ ​ का सिक्का चलाने के तजुर्बे से शायद सबक लेते हुए प्लास्टिक के नोट चला दिये!

अर्थ व्यवस्था संभाली नहीं जा रही तो इतिहास में दर्ज​ चमड़े​ ​ का सिक्का चलाने के तजुर्बे से शायद सबक लेते हुए प्लास्टिक के नोट चला दिये!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

अमेरिका से फिसड्डी और असक्षम घोषित कर दिये गये प्रधानमंत्री से अर्थ व्यवस्था संभाली नहीं जा रही तो उन्होंने इतिहास में दर्ज​ चमड़े​ ​ का सिक्का चलाने के तजुर्बे से शायद सबक लेते हुए प्लास्टिक के नोट चला दिये।भारत के सत्तावर्ग पर दौलत की बरसात हो रही है , पर निनानब्वे फीसद जनता खुले बाजार की अर्थ व्यवस्था से बाहर दम तोड़ रहे हैं या बेबस खुदकशी कर रहे हैं या प्रतिवाद दर्ज करने के जुर्म में मारे जा ​​रहे हैं। समावेशी विकास की जगह समाहित दौलत ने ले ली है। वित्त मंत्रालय की सर्वोच्च प्राथमिकता कालाधन खपाने और छुपाने की है, घोटालों के पर्दाफाश सेसत्तावर्ग का कुछ उखड़ता नहीं , बल्कि जंतर मंतर के लाइव शो से तमाशे का मजा कुछ और आता है। जाते जाते प्रणव मुखर्जी ​​ने अर्थव्यवस्था का ऐसा बेड़ा गर्क किया है राजनीतिक बाध्यताओं के चलते कि मनमोहन से कुछ करते नही बन रहा। कारपोरेट इंडिया और वैश्विक पूंजी को आर्थिक सुधार दनादन लागू करने की पड़ी है, पर ज्यादातर राज्यों पर नियंत्रण न होने की वजह से राजनीतिक बाध्यताएं खत्म नहीं हो पा रही है। एक ममता बनर्जी ने नाक में दम कर दिया है, बाकी क्षत्रप गरज रहे हैं, बरसेंगे तो जलजला आ जायेगा। सबसे भारी दो राज्यों उत्तर​ ​ प्रदेश और बिहार में कांग्रेस के पांव टिकाने की जगह नहीं है। ऐसे में अमेरिका से खारिज प्रधानमंत्री ने प्लास्टिक के नोट जारी करके और​ ​ आर्थिक सुधार लागू न कर पाने की बेबसी में बाबुओं पर नकेल थामकर अपनी दक्षता साबित करने की आखिरी कोशिश की है। वैश्विक स्तर से मिलेजुले संकेतों के चलते बाजार पर कुछ दबाव है। ऐसे में तेजी के समय भी निफ्टी का फिहलाह 5,500 के स्तर से ऊपर जाने की उम्मीद नहीं है। वहीं गिरावट के समय निफ्टी का 5,000 के नीचे नहीं जाएगा। हालांकि वैश्विक संकेतों की इसमें अहम भूमिका होगी।दरअसल भारतीय अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती और आर्थिक नीतियों को लकवा मारने के लिए अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। और दुनिया की एक बेहद अहम पत्रिका, सीधे-सीधे कहिए सबसे ताकतवर अमेरिकी पत्रिका। इस ढिलाई के लिए मनमोहन की ओर उंगलियां उठा रही है। मनमोहन के नेतृत्व पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। उनकी काबलियत को कम आंका जा रहा है।मनमोहन सिंह के पतन का जिक्र करते हुए टाइम ने लिखा है। पिछले तीन सालों में वो शांत आत्मविश्वास जो कभी उनके चेहरे पर चमकता था, गायब हो गया है। लगता है वो अपने मंत्रियों को नियंत्रित नहीं कर पा रहे और उनके नए मंत्रालय, वित्त मंत्रालय का अस्थायी कार्यभार, सुधारों को लेकर बहुत इच्छुक नहीं है, ये वो सुधार हैं जिनसे उस उदारीकरण को जारी रखा जा सकेगा जिसकी शुरूआत में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी।

देश के शेयर बाजारों में सोमवार को गिरावट रही। प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 129.14 अंकों की गिरावट के साथ 17391.98 पर और निफ्टी 41.80 अंकों की गिरावट के साथ 5275.15 पर बंद हुआ। बम्बई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 शेयरों वाला संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 71.19 अंकों की गिरावट के साथ 17449.93 पर खुला। सेंसेक्स ने 17485.79 के ऊपरी और 17343.55 के निचले स्तर को छुआ।

अमेरिका से घुड़के जाने और नरेंद्र मोदी को मचान पर चढ़ाने के बाद गार को रफा दफा करने की कार्वाई तेज हो गयी है ौर इसी सिलसिले में जीएएआर की गाइडलाइंस को अंतिम रूप देने के लिए संबंधित लोगों की राय जानने के लिए महत्वपूर्ण बैठक वित्त मंत्रालय में खत्म हो गई है। माना जा रहा है कि मामले पर अगली बैठक अगस्त के मध्य में होगी।वित्त सचिव आर एस गुजराल अगुवाई में हो रही इस बैठक में एफआईआई के प्रतिनिधि भी शामिल थे। बैठक में सरकार ने कई उदाहरणों पर चर्चा की। एफआईआई के मुताबिक ड्राफ्ट गाइडलाइंस में और सफाई की जरूरत है।बैठक में अंतर्राष्ट्रीय टैक्स मामलों के जानकार टी पी ओस्तवाल भी मौजूद थे। टी पी ओस्तवाल का कहना है कि फिलहाल सरकार जीएएआर के मसले पर पॉजिटीव है।टी पी ओस्तवाल के मुताबिक आगे जो भी फैसला लिया जाएगा वो सोच समझ कर और लोगों की परेशानियों को ध्यान में रखकर लिया जाएगा।जनरल एंटी एवोएडेंस रूल(जीएएआर) पर ड्राफ्ट गाइडलाइंस जारी होने के साथ ही मॉरिशस और सिंगापुर जैसे देश सरकार पर दबाव बनाने में जुट गए हैं। ताकि उनके देशों से भारत में होने वाले निवेश पर जीएएआर को लागू नही किया जाए।

इस बीच फार्च्यून पत्रिका ने दुनिया की सबसे बड़ी 500 कंपनियों की सूची में आठ भारतीय कंपनियों को शामिल किया है। इन कंपनियों में इंडियन आयल तथा रिलायंस इंडस्ट्रीज को 100 सबसे बड़ी कंपनियों में रखा गया है।फार्च्यून 500 में शामिल आठ भारतीय कंपनियों में से पांच सार्वजनिक क्षेत्र की हैं। इंडियन आयल को इसमें 83वां स्थान दिया गया है। पिछले साल यह 98वें पायदान पर थी। मुकेश अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज को 99वें स्थान पर रखा गया है। वह सूची में 100 सबसे बड़ी कंपनियों में शामिल होने वाली भारत की पहली निजी कंपनी है।इस सूची में भारत की टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, भारत पेट्रोलियम, हिंदुस्तान पेट्रोलियम, ओएनजीसी तथा एसबीआई शामिल है। सूची में सिटीग्रुप तथा आर्सेलरमित्तल भी है जिनकी बागडोर भारतीय मूल के अधिकारियों के हाथ में है। इस साल की फार्च्यून 500 सूची में रायल डच शैल पहले नंबर पर हैं। उसके बाद एक्सान मोबिल, वालमार्ट स्टोर्स, बीपी, सिनोपेक ग्रुप हैं।

अर्थव्यवस्था की सुस्ती को लेकर बढ़ रही उद्योग जगत की चिंताओं को समझने की पहल केंद्र सरकार ने शुरू कर दी है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद [पीएमईएसी] के अध्यक्ष सी. रंगराजन ने सोमवार को उद्योग संगठनों के प्रमुखों से मुलाकात की और अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने को लेकर विचार विमर्श किया। इंडिया इंक ने हालात सुधारने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक को तत्काल आर्थिक सहायता पैकेज का एलान करने का मशविरा दिया है।

शीर्ष उद्योग चैंबर सीआइआइ की तरफ से रंगराजन के समक्ष अर्थव्यस्था की मौजूदा चुनौतियों पर एक रिपोर्ट पेश किया गया। सीआइआइ के अध्यक्ष आदि गोदरेज ने कहा कि तत्काल आर्थिक पैकेज नहीं लाया गया तो हालात और बिगड़ेंगे। खतरा इस बात का है कि बाद में आर्थिक पैकेज से भी स्थिति नहीं सुधरेगी। सीआइआइ अध्यक्ष ने कहा कि गठबंधन सरकार की मजबूरी और वर्ष 2008-09 से अलग स्थिति होने के बावजूद बीच का रास्ता निकाला जा सकता है। सीआइआइ सहित तमाम उद्योग चैंबरों ने ब्याज दरों में कटौती की मांग की। इस संदर्भ में हाल ही में चीन सहित तमाम देशों में ब्याज दरों में कटौती का उदाहरण भी दिया गया।

सभी उद्योग चैंबरों ने आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने का अपना चिरपरिचित सुझाव दिया। वस्तु व सेवा कर [जीएसटी] को तत्काल लागू करने, डीजल व अन्य पेट्रोलियम उत्पादों को नियंत्रणमुक्त करने, आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने वाले महत्वपूर्ण विधेयकों को संसद के आगामी सत्र में पास कराने सहित तमाम सुझाव दिए। फिक्की की तरफ से पेश प्रपत्र में कहा गया है कि अगर सभी पक्ष जीएसटी को लागू करने और इसकी दर 16 फीसद तय करने को सहमत हो जाते हैं तो आर्थिक विकास की दर में एक फीसद अतिरिक्त वृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है।

बैठक के बाद एसोचैम के अध्यक्ष राजकुमार धूत ने कहा है कि वैश्विक हालात खराब हैं लेकिन देश की अर्थंव्यवस्था घरेलू वजहों से ज्यादा बिगड़ी है। घरेलू अर्थव्यवस्था का जिस तरह से प्रबंधन किया जा रहा है उससे इसके सुधरने की उम्मीद नहीं है। धूत के मुताबिक यूरो संकट का भारत की अर्थंव्यवस्था पर उतना असर नहीं पड़ेगा जितना कि चालू खाते में घाटे की बिगड़ती स्थिति का।

देश के प्रधानमंत्री की क्षमताओं पर लगातार सवाल उठते जा रहे हैं। जहां एक ओर अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका टाइम ने मनमोहन सिंह को एक असफल प्रधानमंत्री बताया है, वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी मनमोहन सिंह से काफी नाराज दिखाई दे रहे हैं।दुनिया की जानी मानी अमेरिकी मैगजीन टाइम के मुताबिक मनमोहन सिंह एक असफल प्रधानमंत्री हैं। अपने ताजा अंक में टाइम मैगजीनन इस मुद्दे पर कवर स्टोरी छापी है। इस कवर स्टोरी में प्रधानमंत्री को अंडरएचिवर करार दिया गया है।तीन साल पहले मनमोहन सिंह में जो आत्मविश्वास झलक रहा था वो अब गायब है। अब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री के साथ-साथ वित्त मंत्री भी हैं। उनके पास पूरा मौका है कि वो मौजूदा माहौल को बदल डालें। लेकिन ऐसा कोई संकेत नहीं मिल रहा है। उदारीकरण के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए आर्थिक सुधार से जुड़े जो कदम उठाने चाहिए थे, उसमें इनकी दिलचस्पी नहीं दिख रही है। जबकि कुछ साल पहले उदारीकरण की शुरुआत उन्होंने ही की थी।आज के माहौल में भारत आर्थिक सुधार की रफ्तार में किसी भी तरह की सुस्ती बर्दास्त नहीं कर सकता है। फिर भी विकास और रोजगार को बढ़ावा देने वाले कानून संसद में अटके पड़े हैं। ऐसे लगता है कि राजनेता अपने असल मकसद से भटक गए हैं और उन लोकलुभावन कदमों में उलझे हैं जिनसे सिर्फ वोट मिल सके।ऐसे लगता है कि अपने ही मंत्रियों पर उनका कोई नियंत्रण नहीं रहा। भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोपों से सरकार घिरी है। आर्थिक सुधार को कोई दिशा देने में नाकामी के आरोप लग रहे हैं। घरेलू और विदेशी निवेश को निराशा हाथ लग रही है। मतदाताओं का भी भरोसा घट रहा है, क्योंकि महंगाई बढ़ रही है। घोटालों की झड़ी लगने से सरकार की विश्वसनियता पर सवाल उठने लगे हैं। कुछ लोगों का तो मानना है कि यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह को खुलकर काम करने नहीं देती हैं।

टाइम ने नीतिगत फैसले लेने में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की नाकामियों के चलते उन्हें अंडरएचीवर करार दिया है। टाइम के इस लेख ने मुख्य विपक्षी दल बीजेपी को प्रधानमंत्री पर हमला बोलने का मौका दे दिया। बीजेपी ने मनमोहन पर अपने पुराने आरोप दोहराते हुए कहा कि इससे देश की छवि विदेशों में खराब हो रही है। यही नहीं, पार्टी ने मनमोहन के बहाने सोनिया गांधी पर भी हमला बोला है। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद का कहना है कि सोनिया के चलते मनमोहन के हाथ बंधे हैं।वहीं प्रधानमंत्री के बचाव में उतरी सरकार और कांग्रेस पार्टी ने टाइम मैगजीन के सहारे ही बीजेपी पर पलटवार किया। बीजेपी को टाइम मैगजीन में छपे 2002 के उस लेख की याद दिलाई जिसमें वाजपेयी के काम-काज के तौर तरीके पर तमाम टिप्पणियां की गई थीं।

नीतीश कुमार ने कहा है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से उन्हें किसी बड़े आर्थिक फैसले लेने की उम्मीद नहीं है। साथ ही उनका कहना यह भी है कि भले ही प्रधानमंत्री ने वित्तमंत्रालय भी संभाल लिया हो लेकिन उनकी सरकार में ठोस फैसले लेने का साहस नहीं है।

नीतीश कुमार ने बिहार के पावर प्लांट के लिए कोयला नहीं मिलने पर केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। उनका कहना है कि बरौनी थर्मल पावर स्टेशन के लिए सरकार की ओर से कोल लिंकेज के लिए कोई मदद नहीं मिल पाई। वहीं यह प्लांट योजना साल 2006 में केंद्र सरकार की मदद की बाट जोह रही है। इस मुद्दे पर उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी मुलाकात की लेकिन परिणाम नकारात्मक ही मिले हैं।

बिहार के मुख्यमंत्री के अनुसार राज्यों की तरक्की में कांग्रेस अड़ंगे लगाती है। राज्यों को कोयला आपूर्ति में केंद्र सरकार असफल रही है। वहीं कांग्रेस राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आगे बढ़ने नहीं देना चाहती है। नीतीश कुमार ने चेतावनी देते हुए कहा है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए पटना में 6 नवंबर को विशाल रैली होगी

कहा जा रहा है कि जाली नोटों की समस्या को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने सोमवार को कहा कि वह प्लास्टिक मनी शुरू करने पर काम कर रहा है और इसे प्रायोगिक आधार पर जल्द ही जारी किया जाएगा। रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एच.आर.खान ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा, ' प्लास्टिक नोटों के जाली नोट बनाना बड़ा मुश्किल है। इसलिए हम चार पांच सेंटर्स पर प्रायोगिक तौर पर प्लास्टिक के नोट शुरू करने की योजना बना रहे हैं। 'उन्होंने कहा कि इस दिशा में काम चल रहा है। इस तरह के नोट जयपुर, शिमला, भुवनेश्वर आदि में जारी किए जा सकते हैं। प्रयोग के तौर पर दस रुपये के प्लास्टिक नोट जारी किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि कागज के नोट छापना जहां महंगा पड़ता है वहीं उनकी सही रहने की अवधि भी कम रहती है। इसके विकल्प के रूप में प्लास्टिक के नोट जारी करने पर विचार किया जा रहा है। इससे जहां लोगों को कटे-फटे नोटों से निजात मिलेगी, वहीं इसे धोकर चमकाया भी जा सकेगा। उन्होंने बताया कि केंद्रीय बैंक के पांच क्षेत्रीय केंद्र इसे जल्द ही बाजार में जारी करेंगे। इससे जालसाजी पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। साथ ही यह लंबे समय के लिए टिकाऊ भी होगी। कागज की मुद्रा का औसत जीवन एक साल है, जबकि प्लास्टिक की मुद्रा का औसत जीवन पांच साल होगा। इसके अलावा आरबीआइ को इसे छापने पर कागज की मुद्रा के मुकाबले कम राशि खर्च करनी पड़ेगी।पायलट प्रोजेक्ट के तहत इन सब बातों का अध्ययन भी किया जाएगा। साथ ही यह भी देखा जाएगा कि इसका पर्यावरण पर कोई बुरा असर तो नहीं पड़ रहा। प्रोजेक्ट सफल होने पर ही इसे देशभर में जारी किया जाएगा। नकली नोटों के धंधे पर पाबंदी लगाने के लिए सबसे पहले ऑस्ट्रेलिया ने पॉलीमर नोट को अपनाया था।अब न्यूजीलैंड, रोमानिया, पापुआ न्यू गिनी, बरमुडा, ब्रुनेई और वियतनाम में भी प्लास्टिक के नोट ही चलाए जा रहे हैं।

करीब 25 साल पहले जब फोर्थ पे कमीशन लागू हुआ था, तब इस सिस्टम को सिविल सर्वेंट्स के लिए लागू किया गया था। 1997 में पेश पांचवें वेतन आयोग के लागू होने पर वेरिएबल पे की एक अलग स्टैटेजी की सिफारिश की गई थी। इसमें बेहतर प्रदर्शन करने वालों को एक्स्ट्रा इंक्रीमेंट देने और खराब प्रदर्शन करने वालों को इंक्रीमेंट न देने की सलाह दी गई थी।

आगामी अप्रेजल सीजन में सत्ता के गलियारों की गुपचुप बातचीत में वहीं शब्द गूंजेंगे, जो हर साल अप्रैल में कॉरपोरेट ऑफिसों में सुनने में आते हैं। ये शब्द कुछ और नहीं बल्कि वेरिएबल पे और की रिजल्ट एरिया हैं। सरकार इस साल कई मंत्रालयों के बाबुओं के लिए परफॉमेंस-लिंक्ड-इंसेंटिव सिस्टम शुरू करने की तैयारी में है। कैबिनेट सेक्रेटरी अजीत सेठ की अध्यक्षता वाली एक समिति ने इस प्लान को हरी झंडी दिखा दी है। सरकारी बाबुओं के लिए वेरिएबल पे का सिस्टम शुरू करने से सरकार के काम करने की क्षमता में सुधार होगा। इसके तहत इंसेंटिव किसी डिपार्टमेंट की परफॉर्मेंस के आधार पर तय किया जाएगा। किसी डिपार्टमेंट का प्रदर्शन कैसा रहा, यह इस पर निर्भर करेगा कि उसने कितनी अच्छी तरह सालाना टारगेट हासिल किया है। डिपार्टमेंट को ये टारगेट कम खर्च में अचीव करना है।सरकारी बाबुओं के कामकाज की निगरानी और उनका इवैल्यूएशन करना यूपीए के दूसरे कार्यकाल के अहम एजेंडा में शामिल है। राष्ट्रपति ने जून 2009 में संसद को संबोधित करते हुए इस एजेंडा का जिक्र किया था। सरकारी अफसरों को फिलहाल ऐड-हॉक आधार पर बोनस दिया जाता है। इसलिए किसी पहल या रिस्क लेने की खास वजह ही नहीं बचती।

ऐसे में वेरिएबल पे कंपोनेंट का सिस्टम शुरू होने से अफसरों के इस रवैये में बदलाव आएगा। इससे अधिकारियों की इनकम बेसिक सैलरी के 40 फीसदी तक बढ़ सकती है। सरकार के चीफ परफॉर्मेंस ऑफिसर प्रजापति त्रिवेदी ने इंडिया इंक के एचआर प्रोफेशनल्स के साथ बातचीत में हाल ही में कहा था, 'सरकार ने प्रयोग के तौर पर परफॉर्मेंस-बेस्ड इनसेंटिव स्कीम शुरू करने का फैसला किया है। उम्मीद है कि यह इस साल शुरू हो जाएगा।'

कैबिनेट सचिवालय में सेक्रेटरी (परफॉर्मेंस मैनेजमेंट) के तौर पर काम कर रहे त्रिवेदी ने कहा, 'बार-बार डांटकर या धमकी देकर आप अधिकारियों से बेहतर काम की उम्मीद नहीं कर सकते हैं... हमारे पास दुनिया का सबसे बेहतरीन इवैल्यूएशन सिस्टम्स हो सकता है... लेकिन अगर इंसेंटिव सिस्टम न हो तो, परफॉर्मेंस में सुधार नहीं लाया जा सकता।'

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