हथियारों के बाजार में राष्ट्रीय सुरक्षा दांव पर
मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
बाजार अभी सदमों के दौर में है। तरह तरह के संकट से जूझ रहे बाजार के सामने राष्ट्र की साख को लेकर भी अब संकट पैदा हो गया है। जब राष्ट्र की साख ही दांव पर हो तो सरकार से आर्थिक मामलों में सकारात्मक पहल की उम्मीद कैसे की जा सकती है। पिछले दिनों चीन के खिलाफ छायायुद्ध भड़काकर हथियर उद्योग ने रक्षा बजट में सत्रह प्रतिशत वृद्धि करवा ली। कृषि और सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं की कामत पर। राजकोषीय घाटे पर ईंधन के दबाव की हमेशा चर्चा होती रहती है पर सैनिक होड़ और ऱक्षा बजट. रक्षा सौदों को संवेदन सील बताकर इनपर चर्चा नहीं होती।चालू वित्त वर्ष में 80-85 फीसदी ऑर्डर रक्षा सेक्टर से मिले हैं। मौजूदा वित्त वर्ष में रक्षा सेक्टर से कुल 450 करोड़ रुपये का ऑर्डर मिला है, जो पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले दोगुना है। ऐसे में उम्मीद है आनेवाले समय में रक्षा सेक्टर से मिलने वाले ऑर्डर में और बढ़ोतरी होगी। अभी आर्मी चीफ वी. के. सिंह के प्रधानमंत्री को लिखे सैनिक तैयारियों सेसंबंधित पत्र के खुलासे से यह मुद्दा खुलकर सामने आ गया है, जिसे पवित्र संवेदनसील मामला बताकर खारिज करने की कोशिशें तेज हो गयी हैं। गौर करने लायक है कि इस सिलसिले में हथियार बाजार से जुड़े किन व्यक्तियों और कंपनियों के लिए मालामाल होने की भारी संभावना है। पर इस ओर किसी की नजर नहीं है। आर्मी चीफ के करतबों को ही मुद्दा बनाया जा रहा है, जैसे कि राष्ट्रीय सुरक्षा कोई मुद्दा है ही नहीं। सिंह का पत्र मीडिया में लीक होने के बाद समाजवादी पार्टी, जनता दल :यू: तथा राजद ने उन्हें बर्खास्त किये जाने की मांग की है। सरकार के साथ विपक्ष भी इस बात पर सहमत है कि उनकी सुरक्षा संबंधी चिंताएं सार्वजनिक नहीं होनी चाहिए थी।
गौरतलब है कि भारी-भरकम रक्षा बजट वाले देश भारत को दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार माना जाता रहा है। दिल्ली के प्रगति मैदान पर 29 मार्च को सातवां डिफेंस एक्सपो-2012 शुरू हो रहा है। एक अप्रैल तक चलने वाली इस रक्षा प्रदर्शनी में 37 देशों की 567 कंपनियां भाग ले रही हैं। चीन भी इस एक्सपो में भाग ले रहा है। रक्षा मंत्रालय और फिक्की के तत्वावधान में आयोजित डिफेंस एक्सपो का उद्घाटन रक्षामंत्री एके एंटनी करेंगे।हर दो साल में आयोजित होने वाले इस एक्सपो में 50 हजार करोड़ रुपए के सौदे होने की उम्मीद है। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने आम बजट में देश की सीमाओं की सुरक्षा को खास तवज्जो दी है। इसके साथ ही मौजूदा वित्तीय वर्ष में कई महत्वपूर्ण संरक्षा सौदों के परवान चढ़ने की उम्मीद बढ़ गई है। इनमें एयर फोर्स के लिए युद्धक विमानों का सौदा भी शामिल है।इस बार 17 फीसद इजाफे के साथ एक लाख, 93 हजार 407 करोड़ रुपये प्रस्तावित किए गए हैं। पिछले वर्ष इस मद में एक लाख, 64 हजार 415 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तावित किया गया था। इस बार के प्रस्तावित बजट में 79.500 करोड़ रुपये अत्याधुनिक आयुध प्रणाली और मिलिट्री हार्डवेयर के मद में हैं। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने अपने बजट भाषण में कहा कि यह आवंटन मौजूदा जरूरत के मद्देनजर है। देश की रक्षा की अगली आवश्यकताओं को भी पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी।बढ़े बजट के साथ जिन रक्षा सौदों को मूर्तरूप दिए जाने की उम्मीद है, उनमें 126 विभिन्न भूमिका वाले युद्धक विमान, 145 अल्ट्रा लाइट होवित्जर तोपें, 197 हल्के उपयोग वाले हेलीकॉप्टर सहित तीनों सेनाओं के लिए अन्य आयुध और प्रणाली शामिल हैं। मुखर्जी ने अपने भाषण में बताया कि प्रस्तावित बजट 79,500 करोड़ रुपये रक्षा उपकरणों की खरीद के मद में रखे गए हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम-1980, देश की सुरक्षा के लिए सरकार को अधिक शक्ति देने से संबंधित एक कानून है।बेकार बना है यह कानून जो नागरिकों के जनांदोलनों का दमन तो कर सकता है पर ऊंचे पदो पर बैठ उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकता जो राष्ट्र की सुरक्ष से खलकर अकूत धन पैदा करके देशबक्ति का ढोंग रचाते है। यह कानून केंद्र और राज्य सरकार को गिरफ्तारी का आदेश देता है!अगर सरकार को लगता कि कोई व्यक्ति उसे देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाले कार्यों को करने से रोक रहा है तो वह उसे गिरफ्तार करने की शक्ति दे सकती है। सरकार को ये लगे कि कोई व्यक्ति कानून-व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में उसके सामने बाधा खड़ा कर रहा है तो वह उसे गिरफ्तार करने का आदेश दे सकती है। साथ ही, अगर उसे लगे कि वह व्यक्ति आवश्यक सेवा की आपूर्ति में बाधा बन रहा है तो वह उसे गिरफ्तार करवा सकती है। इस कानून के तहत जमाखोरों की भी गिरफ्तारी की जा सकती है। इस कानून का उपयोग जिलाधिकारी, पुलिस आयुक्त, राज्य सरकार अपने सीमित दायरे में भी कर सकती है।
फौज में 14 करोड़ के घूसकांड में सीबीआई रक्षा मंत्री एके एंटनी से भी गवाह के तौर पर पूछताछ कर सकती है। सूत्रों के मुताबिक जांच एजेंसी ने सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह से दोबारा औपचारिक शिकायत और दस्तावेज सौंपने को कहा है। सीबीआई सिर्फ रिश्वत की पेशकश की ही नहीं बल्कि टाट्रा ट्रक की पूरी डील की जांच करेगी। सीबीआई ने रक्षा मंत्रालय से टाट्रा डील से जुड़ी तमाम फाइलों को सहेज कर रखने को कहा है।सेनाध्यक्ष वीके सिंह ने आरोप लगाया था कि उन्होंने टाट्रा ट्रक डील में 14 करोड़ की घूस की पेशकश की जानकारी रक्षा मंत्री को मौखिक तौर पर दी थी। सीबीआई के मांगने पर अब जनरल वीके सिंह ने जांच एजेंसी से कहा है कि वो 30 मार्च तक ये सारे दस्तावेज उसके सुपुर्द कर देंगे।वीके सिंह के खुलासे और रक्षा मंत्री के संसद में बयान देने के बाद सीबीआई मंगलवार को हरकत में आई। रक्षा मंत्रालय ने मंगलवार की शाम जनरल वीके सिंह और तेजिंदर सिंह के बीच बातचीत का एक ऑडियो टेप सीबीआई को सौंपा। सीबीआई उस टेप की सच्चाई की जांच कर रही है
थलसेना प्रमुख को रिश्वत देने की पेशकश का खुलासा होने के बाद अब बीजेपी बजट पर मंत्रालयों के लिए होने वाली चर्चा में रक्षा मंत्रालय के बजट पर चर्चा की मांग करेगी। 1990-91 के बाद से लगातार आयात में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। पिछले तीन सालों से तो स्थिति यह है कि हमारे अपने कल-कारखानों में हम जितना उत्पादन करते हैं, उससे कहीं ज्यादा आयात करते हैं। हमारी औसत टैरिफ दर बहुत कम हो गयी है। खासकर 90 के दशक के मुकाबले में अब यह 11-12 प्रतिशत रह गयी है जबकि आप औसतन एक्साइज ड्यूटी देखेंगे तो वह इससे ऊंची है। छोटे उद्योगों को जो संरक्षण दिया हुआ था वह सब खत्म कर दिया है।इस दरम्यान हथियार उद्योग लगातार मालामाल होता रहा।20 साल पहले बाजारीकरण की जो प्रक्रिया शुरू की गयी थी, राज्य को समेटने और अर्थव्यवस्था को दुनिया भर के बाजारों के लिए खोलने की जो शुरुआत हुई थी, वह एक उच्चस्तरीय स्थिति तक पहुंच गयी है। अब भारत को भी बाजार अर्थव्यवस्था मानना पड़ेगा।अब असली संकट यह है कि तमाम दूसरी चीजों की तरह ही राष्ट्रीय सुरक्षा भी बाजार अर्थ व्यवस्था के हवाले है। पहले भारतीय बाजार पर ऱूस का वर्चस्व था। लेकिन अमेरिका और इजराइल के साथ बने नये संबंधों की वजह से और खासकर भारत और अमेरिका के बीच हुए परमाणु समझौते के बाद अमेरिका और यूरोप की हथियार और सैनिक साजोसामान कंपनियों की नजर भारत पर है। जाहिर है कि प्रतिद्वंद्विता बढ़लने से बाजार के स्वभाव के अनुसार कारपोरेट लाबिइंग, मीडिया हाइप और रिश्वतखोरी में रक्षा सौदों में इजाफा के साथ साथ इजाफा हुआ। देशभक्ति का गदगद माहौल बनाकर इस हकीकत को छुपाया जा रहा है क्योंकि काजल की कोठरी में हर चेहरे पर कालिख पुती हुई है। चीन के पास डॉलर हैं। चूंकि हिन्दुस्तान में रुपये की पूर्ण परिवर्तनीयता नहीं की गयी है, यहां टे्रड एकाउंट यानी जो करेंट एकाउंट है वह तो पूरी तरह से खोल दिया गया है। आप कई तरह के बार में कंपनियों को खरीद सकते हैं। बैंक खाते खोल सकते हैं। शेयर बाजार में पैसा लगा सकते हैं। करेंसी टे्रड यानी मुद्र्राओं के उतार-चढ़ाव वाले कारोबार में हिस्सा ले सकते हैं। य़ानी खुला खेल फर्रऊखाबादी। आर्मी चीफ के खत के खुलासे से अब यह खेल सत्ता के गलियारे से आम लोगों के सामने बेनकाब हो रहा है और सत्ता वर्ग को राष्ट्रीय सुरक्षा से ज्यादा इस संकट का खतरा है । वह भौखलाया हुआ है।
हथियारों के आयात के मामले में चीन को पीछे छोड़ते हुए भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश बन गया है जो वैश्विक हथियार बिक्री का 10 फीसदी खरीदता है। स्वीडन के सुरक्षा मामलों के थिंक टैंक ने कहा है कि पिछले पांच वर्षो (वर्ष 2007 से 2011 के बीच) में भारत के हथियारों की खरीद में 38 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। द स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिप्री) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि भारत के ठीक पीछे चीन और पाकिस्तान हैं जिनके हथियारों का आयात वैश्विक बिक्री का करीब पांच प्रतिशत है।सिप्री ने कहा कि पाकिस्तान ने इस अवधि के दौरान 'काफी संख्या में लड़ाकू विमान (चीन से 50 जे एफ-17 और अमेरिका से 30 एफ-16) खरीदे हैं।' उसने बताया कि वर्ष 2006 से 2007 के बीच दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश रहा चीन अब चौथे स्थान पर पहुंच गया है जो इस देश के हथियार उद्योग में सुधार और हथियारों के बढ़ते निर्यात को दर्शाता है।
सिप्री ने कहा कि चीन अब दुनिया का छठां सबसे बड़ा हथियार निर्यातक देश बन गया है और उससे आगे केवल अमेरिका, रूस, जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन हैं। उसने कहा कि हालांकि चीन का हथियार निर्यात बढ़ रहा है लेकिन इस मुख्य कारण यह है कि पाकिस्तान चीन से और ज्यादा हथियार आयात कर रहा है। बीजिंग को किसी अन्य महत्वपूर्ण बाजार में बड़ी सफलता नहीं मिली है।सिप्री के आकलन के मुताबिक भारत में आने वाले 15 साल में करीब 100 अरब डालर के हथियार और विभिन्न प्रणालियां खरीदेगा। सिप्री ने भारत द्वारा हाल ही में किये सौदों जैसे 126 लड़ाकू विमानों और अन्य लड़ाकू विमानों के सौदे शामिल हैं।
केंद्र सरकार ने इसी महीने छह रक्षा कंपनियों को देश में कारोबार करने से 10 साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया। इनमें से चार विदेशी कंपनियां हैं। प्रतिबंध 2012 से लागू रहेगा। आर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) के एक पूर्व प्रमुख को रिश्वत मामले में आरोपी बनाए जाने के बाद यह कदम उठाया गया।प्रतिबंधित कंपनियां हैं, सिंगापुर टेक्नोलॉजीज, इजरायल मिलिटरी इंडस्ट्रीज, जर्मन रेनमेटल एयर डिफेंस, रसिया कारपोरेशन डिफेंस तथा दो भारतीय कंपनियां।
सेना प्रमुख द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रधानमंत्री को लिखे पत्र के लीक हो जाने का मामला संसदीय बहस और देशभक्ति का मामला नहीं है, यह भारत को ङथियारों के बाजार पर दांव पर लगाने का मामला है।सेना प्रमुख को पद से हटाए जाने की मांग भी की जाने लगी है। इस बीच, रक्षा मंत्री ए के एंटोनी ने उपयुक्त कार्रवाई किए जाने का वादा किया है।यह मामला रफा दफा करने का पुराना दांव पेंच है। राष्ट्रीय सुरक्षा को दांव पर लगाकर हथियारों की दलाली से जो लोग मालामाल हो रहे हैं, उन्हे बचाने का राजनीतिक आईपीएल है।मीडिया में छपी रिपोर्ट के अनुसार जनरल सिंह ने अपने कथित पत्र में लिखा है कि देश की राष्ट्रीय सुरक्षा दांव पर लगी है। संसद सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे अहम मुद्दे की गोपनीयता के मीडिया में लीक होने पर गंभीर चिंता जताए जाने के बाद एंटोनी ने कहा, 'मैंने इन बातों को काफी गंभीरता से लिया है। प्रधानमंत्री तथा अन्य सहयोगियों से मशविरा करने के बाद हम उपयुक्त कदम उठाएंगे।मजे की बात यह है कि भारतीय थलसेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह की चिट्ठियों को लेकर चल रहे विवादों के बीच बृहस्पतिवार को केन्द्रीय रक्षामंत्री एके एंटनी ने कहा कि भारतीय सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों पर सरकार का विश्वास बना हुआ है, और वे अपना काम कर रहे हैं। सेनाध्यक्ष जनरल सिंह का प्रधानमंत्री को लिखा पत्र लीक होने के मामले में एंटनी ने कहा कि जिसने भी पत्र लीक किया है, वह राष्ट्रविरोधी है, और यह हरकत केवल दुश्मनों की मदद करेगी। उन्होंने यह भी कहा है कि रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इसके साथ ही एंटनी ने ऐलान किया कि आर्मी चीफ की चिट्ठी लीक होने की जांच इंटेलिजेंस ब्यूरो करेगी। रक्षा मंत्री प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा है कि किसी भी डील में कहीं भी कोई शिकायत मिली तो उसे रद्द कर दिया जाएगा।
इसके उलट सेना की बदहाल स्थिति पर पीएम को लिखी चिट्टी लीक होने पर राजनीतिक दलों के विरोध का सामना कर रहे जनरल वीके सिंह को पूर्व सेना प्रमुख शंकर रॉय चौधरी का समर्थन मिला है। शंकर रॉय चौधरी ने कहा कि वीके सिंह ने कुछ भी गलत नहीं कहा है। पहले भी सेना प्रमुख रक्षा मंत्रालय और प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखते रहे हैं लेकिन उन्होंने कहा कि चिट्ठी का लीक होना गंभीर मामला है। उन्होंने कहा कि जनरल सिंह ने जो बातें चिट्ठी में कही हैं वो सौ नहीं हजार फीसदी सच हैं। उन्हें भी अपने कार्यकाल के दौरान ऐसी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। जनरल चौधरी ने यह भी कहा कि सेना की दिक्कतों के बारे में मिलिट्री ऑफ डिफेंस को कई वर्षों से जानकारी है।जनरल चौधरी ने कहा कि कोई हैरानी की बात नहीं कि इस सब पर पाकिस्तान हंस रहा होगा। जनरल मलिक ने कहा कि जनरल सिंह द्वारा उठाए गए संवेदनशील मुद्दों की प्रकृति देखते हुए इसे सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए था।
जी डी बख्शी, रिटायर्ड मेजर जनरल ने लोकप्रिय दैनिक हिंदुस्तान में जो लिखा है, उस पर तनिक गौर फरमायें। जनरल ने लिखा है कि थल सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह के ताजा खुलासे ने मीडिया और संसद में हंगामा खड़ा कर दिया है। यह पहला वाकया है, जब एक आर्म्स लॉबिस्ट ने इतनी बेशर्मी से सेवारत सेनाध्यक्ष को रिश्वत देने की पेशकश की है। जाहिर है, रिश्वत प्रकरण ने सेना की नाराजगी और बढ़ गई है। बहरहाल, अब इस प्रकरण का मुख्य और नाटकीय किरदार मीडिया अभियान की नाटकीयता के जरिये सेनाध्यक्ष को कलंकित करने की कोशिश में है। उसने आर्मी चीफ के निष्कासन का मंच तैयार किया है। संभवत: इसी लॉबी ने सेनाध्यक्ष को जन्मतिथि विवाद में उलझाने की भी कोशिश की थी। यह भी कीचड़ उछाला गया था कि रक्षा मंत्री के दफ्तर में सेनाध्यक्ष की अनुमति से माइक्रोफोन चिपकाया गया था और उन्हीं के इशारों पर मंत्रालय में नौकरशाहों की आपसी गुफ्तगू की फोन टैपिंग की जा रही थी। खैर, ये आरोप मनगढ़ंत निकले।दरअसल, आर्म्स लॉबी की मंशा है कि सेनाध्यक्ष को इस तरह से उलझाया जाए कि वह माफिया के खिलाफ जाने की हिम्मत न दिखा पाएं। ऐसे में, यह साफ लगता है कि हथियार खरीद से जुड़े कई माफिया इस खेल में संगठित तौर पर शामिल हैं, ताकि एक ईमानदार सेनाध्यक्ष को तंत्र से उखाड़ फेंका जाए, जो खुद सेना से भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकने के लिए दृढ़ हैं। तो क्या सेनाध्यक्ष के आयु विवाद को इसलिए उठाया गया था?
जनरल ने लिखा है कि इस पूरे प्रकरण में सैन्य समुदाय के लिए गंभीर चिंता की बात क्या है? जाहिर है, हथियारों को हासिल करने की धीमी प्रक्रिया। किसी भी प्रमुख हथियार प्रणाली को भारत में लाने और उसे अपने शस्त्रगार में शामिल करने में 20 से 30 साल गुजर जाते हैं। हकीकत यह है कि भारतीय फौज को अब तक मंझोले तोप भी उपलब्ध नहीं कराए गए हैं, जबकि बोफोर्स तोपों की भरपाई के लिए यह जरूरी है। भारत में बोफोर्स तोपों को लाए हुए 27 साल हो गए हैं। तब से छह बड़ी गन निर्माता कंपनियां ब्लैक लिस्टेड हैं। सेना का हेलीकॉप्टर बेड़ा पुराना पड़ चुका है और इसे अब तक नहीं बदला गया है। वहीं एयर डिफेंस गन और मिसाइलों की अपनी जरूरतें हैं।यही नहीं, मुख्य जंगी तोपों में ज्यादातर तो रात में गोला उगलने में अक्षम हैं। इसकी तुलना में चीन और पाकिस्तान अपनी सैन्य क्षमता को तेजी से मजबूत बना रहा है। चीन का कुल रक्षा बजट अब 180 बिलियन डॉलर हो गया है, जबकि हमारा 38 बिलियन डॉलर है। यह चीन के रक्षा बजट की तुलना में नगण्य है। देश को यह बताया जाता है कि हथियार खरीद की प्रक्रिया इतनी धीमी इसलिए है कि मंत्रालय नहीं चाहता है कि कोई और घपला हो। अभिप्राय यह कि किसी भी बिचौलिए या भ्रष्टाचार की भनक को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इसके लिए ईमानदारी पर ज्यादा जोर डाला जाता है। हालांकि किसी की भी यह राय हो सकती है कि इस तरह की प्रक्रिया से ऑर्म्स लॉबिस्ट उनके जूतों के सामने गिड़गिड़ाएंगे। उन्हें हथियार खरीद प्रक्रिया को प्रभावित करने से पहले दस बार सोचना पड़ेगा। लेकिन आश्चर्य यह है कि आर्म्स लॉबिस्ट इस काम को अब और खुल्लमखुल्ला कर रहे हैं। उनकी गतिविधियां बढ़ गई हैं, तभी तो सीधे सेनाध्यक्ष से ही रिश्वत की पेशकश की जाती है। क्या यह बिना शक्तिशाली राजनीतिक संरक्षण या शह के मुमकिन है? इस पूरे घिनौने प्रकरण से यह साफ हो जाता है कि आर्म्स लॉबिस्ट न केवल खुल्लमखुल्ला रिश्वत की पेशकश करते हैं, बल्कि वे पहले से ज्यादा शक्तिशाली हो गए हैं। इसीलिए वे सेवारत सेनाध्यक्ष को आंखें दिखाने की हिमाकत कर रहे हैं। अलबत्ता, ये संकेत काफी भयावह हैं। यह धारणा कि हथियारों के बिचौलिए पद पर आसीन सेनाध्यक्ष को हुक्म दे सकते हैं, काफी खतरनाक है। इस तरह की गतिविधियों को जड़ से तुरंत उखाड़ फेंकने के लिए सख्त कदम की जरूरत है। भारत कोई 'बनाना रिपब्लिक' नहीं है, जहां हथियार माफिया और वाहन डीलर मिलकर सरकार चलाएं और सेनाध्यक्ष को ललकारने की हिम्मत दिखाएं।
इस बीच लोकप्रिय टीवी चैनल आजतक के मुताबिक सेना प्रमुख जनरल वी. के. सिंह ने देश की सुरक्षा चिंताओं के बारे में स्वयं द्वारा प्रधानमंत्री को लिखे गए पत्र के लीक होने को 'घोर राजद्रोह' का मामला करार दिया है। साथ ही उन्होंने पत्र के स्वयं के स्तर पर लीक होने के आरोपों को भी खारिज किया।वीके सिंह ने पत्र में सेना के लिए साजो-समान की कमी का मामला उठाया था। पत्र के लीक होने से बेहद नाराज सिंह ने गुरुवार को एक बयान जारी कर कहा कि यह एक घोर राजद्रोह का मामला है।उन्होंने कहा कि पत्र के लीक होने के स्रोत का पता लगाया जाना चाहिए और उसे दंडित किया जाना चाहिए. सेनाध्यक्ष ने साथ में कहा कि उनकी छवि खराब करने की कोशिश की जा रही है. इस तरह की गतिविधियों को बंद करना होगा।
जनरल सिंह ने यह भी आरोप लगाया कि उनकी छवि खराब करने की कोशिश की जा रही है। सरकार यह पता लगाने में जुट गई है कि सेना प्रमुख वीके सिंह का प्रधानमंत्री को लिखा पत्र लीक कैसे हुआ? सरकार ने चिट्ठी लीक होने की जांच के लिए आईबी को आदेश दिए हैं। यह चिट्ठी सबसे पहले भास्कर व डीएनए में प्रकाशित हुई जिसके बाद संसद में काफी बवाल मचा।
इस बीच रक्षा मंत्री ने आर्मी चीफ को हटाए जाने की अटकलों को खारिज कर दिया है। ए के एंटनी ने यहां डिफेंस एक्सपो में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि सरकार को आर्मी चीफ सहित सेना के तीनों प्रमुखों पर पूरा भरोसा है। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ाई से निपटने की बात दोहराते हुए कहा, 'सीबीआई की सिफारिश पर 6 कंपनियों को ब्लैकलिस्ट किया गया है। इनमें चार विदेशी जबकि दो हिंदुस्तानी कंपनियां हैं। इन्हें 10 साल के लिए ब्लैकलिस्ट किया गया है। इनमें इजराइल, रूस, जर्मनी और सिंगापुर की कंपनियां शामिल हैं।'
उधर, यूपीए की अहम सहयोगी तृणमूल कांग्रेस भी आर्मी चीफ वीके सिंह के बचाव में आ गई है। हालांकि, कांग्रेस के एक सांसद ने सेनाध्यक्ष को बर्खास्त करने की मांग की है। तृणमूल सांसद अंबिका बनर्जी ने जनरल का पक्ष लेते हुए कहा कि उन्हें विश्वसनीय सूत्रों से सेना के लिए होने वाली खरीद में गड़बड़ी की जानकारी मिली थी। उन्होंने कहा, 'जनरल वीके सिंह एक ईमानदार व्यक्ति हैं। हम चाहते हैं कि रक्षा खरीद मामले की सीबीआई जांच हो। रक्षा खरीद में करोड़ों का घोटाला होता है। चाहे वो सेना के लिए हो या किसी अन्य अंग के लिए। मैंने अपनी चिट्ठी में ले. जन. दलबीर सिंह का नाम लिया क्योंकि उस वक्त वो रक्षा खरीद के प्रभारी थे।'
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