# द्रोपदी दुर्गति
#गीता महोत्सवे
#पलाश विश्वास
EXCLUSIVE: HSBC Indian list just doubled to 1195 names. Balance: Rs 25420 crore
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New Delhi | Mon, Feb 9, 2015
Global 'leak' reveals names of businessmen, politicians; set to widen scope of SIT black money probe.
The List: Who's Who & How Much
Full List: Top 100 HSBC account holders with Indian addresses
Impact: Reactions galore after HSBC revelation
Explained: What's new, why it's important
Swiss Leaks: HSBC sheltered murky cash linked to dictators, arms dealers
Swiss Leaks: New law, new loophole, new business for giant global bank
Govt reacts: Any additional names will be brought under probe, says Jaitley
- See more at: http://indianexpress.com/#sthash.hVogEB4e.dpuf
Feb 09 2015 : The Economic Times (Kolkata)
PM on Course to Make India Ideal Destination
Reliance Group Chairman Anil Ambani says Prime Minister Narendra Modi's focus on governance, taxation and transparency will make India the ideal business destination.
# द्रोपदी दुर्गति
#गीता महोत्सवे
द्रोपदी महानायिका है भारतीय महाकाव्य महाभारत की,जो हिंदुत्व के सिद्धांतों की आधारभूमि है और इसीकी कोख से जन्मी है गीता,जिसे भारत का राष्ट्रीयग्रंथ बनाने की तैयारी है।
हिंदू राष्ट्र के लिए गीता महोत्सव जिस धर्म अधर्म जातिव्यवस्था कर्मसिद्धांत पर आधारित है वह गीता है और श्रीकृष्णमुखे गीतोपदेश कुरुक्षेत्र के मैदान में दिया गया,जिसे आधुनिक भारत के महाभारत में पल दर प्रतिपल दोहरा रहे हैं तमाम बजरंगी,साधु संत से लेकर हिंदुत्व अश्वमेध के घोड़ों पर सवार सिपाहसालार तमाम।
कुरुवंश के ध्वंस के निमित्त राजा द्रुपद के यज्ञ की अग्नि से आभिर्भूत द्रोपदी पांडवं और कौरवों के आत्मध्वंस की वजह बना दी गयी इस कथा में।
द्रोपदी अत्यंत सुंदर है और उसकी सुंदरता की तुलना एकमात्र ग्रीक ट्रेजेडी कीनायिकाओं के सौंदर्य से की जा सकती है और वह हेलेन की तरह ग्रीक महाकाव्यइलियड की महानायिका है।
हेलेन भी ट्राय के युद्ध की वजह बतायी जाती है।
हेलेन से अलग लेकिन द्रोपदी रसोई की महारानी है।हर तरह की रेसिपि में मास्टरब्लास्टर जो नारी होने की अनिवार्य शर्त है।
द्रोपदी में बाकी हिंदू शास्त्रों के मुताबिक आदर्श नारी के सारे गुण हैं।
वह कुशाग्र बुद्धि की अधिकारिणी और मनुस्मृति अनुशासन के अनुपालन में सतत प्रतिबद्ध है।
स्वयंवर सभा में ब्राह्मण वेष में उपस्थित अर्जुन को पहचानने में और स्वयंवर से पहले मन ही मन उसका अभिषेक करने में उसे कोई भूल नहीं हुई और वह यह भी जानती थीं कि चिड़िया की आंख पर निशाना कर्ण भी साध सकते थे।
इसीलिए अपने वाक्यवाण से उसने कर्ण के साथ साथ दुर्योधन को भी स्वयंवर सभा से लहूलुहान करके भगा दिया।
जब कौरवों और पांडवों में राज्य के बंटवारे पर सुलह हो गया और इंद्रप्रस्थ का महातिलिस्म बनकर तैयार हो गया तब किंकर्तव्यविमूढ़ दुर्योधन की खिल्ली उड़ाती उसकी हंसी महाभारत में कुरुक्षेत्र की बिसात में तब्दील हो गयी जो द्रोपदी के प्रतिशोध की आग से सजाया गया।
# द्रोपदी दुर्गति
#गीता महोत्सवे
वहीं द्रोपदी जब माता कुंती के आदेशानुसार पांच पतियों को पूर्वजन्म के फल मुताबिक स्वीकार करने को मजबूर होती है या चीरहरण के वक्त पांच धुरंधर पतियों के उपस्थित होने के बावजूद धर्म की बार बारी दुहाई देने वाले अतिआदरणीय भीष्मपितामह,विदुर इत्यादि की उपस्थिति में एकदम एकाकी और असहाय होकर भगवान श्रीकृष्ण से मदद की गुहार लगाती है तो पूरे भारतीय महादेश तो क्या मानव सभ्यता में पुरुषतांत्रिक समाज में स्त्री सत्ता की प्रतीक बन जाती है द्रोपदी और उत्तरआधुनिक स्त्री विमर्श कीनियति भी वही द्रोपदी दुर्गति है।
# द्रोपदी दुर्गति
#गीता महोत्सवे
अब फिर हिंदू साम्राज्यवाद के पुनरूत्थान गीता महोत्सवे वही द्रोपदी दुर्गति है।
धर्मांतरण की पूरी लड़ाई लेकिन स्त्री देह की जमीन पर लड़ी जा रही है,लव जिहाद से लेकर वैदिकी वैलेंटाइन महापर्व तक।
सत्ता की फिर वह लड़ाई द्रोपदी की देह पर देहमुक्ति के बाजार में।
प्रेम से उदात्त और नैसर्गिक भाव मानव सभ्यता मे कुछ और नहीं है।
वह प्रेम लेकिन हर धर्म में हर समाज में विशुद्ध पुरुष वर्चस्व का मामला है।
ट्राय का युद्ध इसलिए हुआ कि हेलेन नाम्नी अत्यंत सुंदरी कन्या ग्रीक सभ्यता के अनुशासन भंग करने के अपराध में शाश्वत खलनायिका बन गयी।
युद्ध हुआ ही इसीलिए कि उसने अपना प्रेम चुना जो वास्तविक अर्थो में आज भी पुरुष का एकाधिकारवादी वर्चस्व है।
# द्रोपदी दुर्गति
#गीता महोत्सवे
द्रोपदी ने प्रेम किया तो अर्जुन से ही था लेकिन शास्त्रीय विधि और कथा सौन्दर्यबोध और गीता वक्तव्य के मुताबिक जब उसने अपने पूर्व जन्म फल के मुताबिक पांच पांच पतियों का वरण कर लिया,तो भी अर्जुन के प्रति उसके विशेष प्रेम की वजह से सशरीर स्वर्ग अभियान में पहला पतन लेकिन द्रोपदी का हुआ।
यहां तक कि महाभारत युद्ध का चरमोत्कर्ष लेकिन न भीष्म पितामह की इच्छा मृत्यु है ना कौरव वीरों के शोक में विलाप करती औरते हैं और न मृत विध्वस्त वैदिकी सभ्यता के महाश्मशान में मंडराते गिद्ध और चील का उन्मुक्त उल्लास है।
वह चरमोत्कर्ष लेकिन आततायी अश्वत्थामा के घात लगाकर माता द्रोपदी की संतानों का वध है।
हिंदुत्व कुल मिलाकर वहीं वध संस्कृति है और द्रोपदी की देह मन और उसका मातृत्व और प्रेम अनंत उत्पीड़न का शिकार उसी तरह आज भी।
मुक्त बाजार में भोगी समाज और पुरुषवर्चस्व के राजकाज ,धर्म अधर्म में देहमुक्ति आंदोलन और स्त्री सशक्तीकरण का यही प्रस्थानबिंदू है।
# द्रोपदी दुर्गति
#गीता महोत्सवे
मैं तो परमाणु उत्तरदायित्व कानून पर अमेरिकी सरकार के लिए देशप्रेमियों के देश बेचो बयान को आज रोजनामचे का विषय बनाना चाहता था कि अमेरिकी प्रेसीडेंट बाराक ओबामा के उदात्त उद्गार धर्म स्वतंत्रता की कुल डिप्लोमेसी वहींच है।
हमने बाराक ओबामा से पूछा था कि गुजरात नरसंहार के मामले में उनका क्या स्टैंड है।
जाहिर है कि जब हमारी राजडनीति और सत्ता हम प्रजाजनों को कोई जवाब नहीं देती तो व्हाइटहाउस को भारत के किसी गुलाम प्रजाजन का क्या जवाब होता।
जवाब भारत से मिला।
जवाब संघ परिवार से मिला।
जवाब केसरिया सहनागरिकों से मिला।
एक प्रति प्रश्न हमारे पुरातन मित्र नव दलित आंदोलन के पुरोधा और मानवाधिकार जलसुनवाई के तहत मानवाधिकार कर्मी डा. लेनिन रघुवंशी का आयाः
गुजरात जनसंहार पर भारतीय जनता का स्टैंड क्या है।
मुंबई में फिलीस्तीनियों के हक हकूक के लिए सालिडेरेटी के नेता और मनवाधिकार कर्मी फिरोज मीठीबोरवाला ने टिप्पणी की कि वाजिब सवाल है।
निःसंदेह।
दोनों हमारे प्रिय मित्र हैं।उनकी निरंतर सक्रियता का मैं हर हाल में समर्थन करता हूं।
लेकिन उनके इस प्रतिप्रश्न से मेरा ओबामा को किये प्रश्न का प्रसंग सिरे से बदल गया है और मुझे यह कहते हुए झिझक नहीं है कि इस प्रतिप्रश्न से बाराक ओबामा वैसे ही जवाब के उत्तरदायित्व से मुक्त है जैसे मोदी सरकार के मेमोरेंडम से जैसे अमेरिकी कंपनियां भारत में भविष्य में होने वाली परमाणु और औद्योगिक दुर्घटनाओं की जिम्मेवारी से एकमुश्त बरी हो गयी हैं।
हम लगातार इस बारे में अपडेट देते रहे हैं।
हमारे मतामत और सारे संदर्भ प्रसंग तथ्य हमारे ब्लागों के अलावा हस्तक्षेप में भी रोजाना छपते रहे हैं।जिसके गुगल प्लसे के फालोअर ही पचास हजार पार हैं।
अखबारों में हर भाषा में भारत अमेरिकी राजनय का कच्चा चिट्ठा खुला है और इसके अलावा हमारे अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने विदेशी बैंकों के भारतीय खाताधारकों का पर्दाफाश किया है।
नये सिरे से उन तथ्यों को शायद अब दोहराने की जरुरत नहीं है।
रक्षा में विदेशी पूंजी और मेकिंग इन का किस्सा धारावाहिक है।
बजट तैयारियों की कारपोरेट लाबिइंग भी बेपर्दा है।
Aaj Tak shared Newsflicks Hindi's photo.
#SwissLeaks से सामने आई #HSBC की लिस्ट में नेताओं की दिलचस्पी क्यों नहीं ---http://newsflicks.com/story.php?story_id=2830
इस आलेख के साथ ताजा तथ्य भी नत्थी होगें।
हिंदुत्व के गीतामहोत्सव की असल कोख को पहचाने बिना भारतीय अर्थव्यवस्था और भारतीय नागरिकों के इस दस दिगंत सर्वनाश का मामला खुलता नहीं है।
इसीलिए आज का रोजनामचा यह
# द्रोपदी दुर्गति
#गीता महोत्सवे
कल रात घर वापसी के वक्त जब हमारे ड्राइवर केशरिया रंगे दिल्ली के संभावित चुनाव परिणाम में केसरिया फीका हो जाने के अंदेशे से बेहद उदास थे तो हमने हल्के से टिप्पणी कर दी कि कोई जरुरी नहीं कि दसों दिशाओं में कमल ही कमल खिले।
हमने कहा कि वैसे दुर्गा पूजा के लिए कमल जितना जरुरी है वैसे ही बाकी देवदेवियों के लिए दूसरे फूल भी जरुरी हैं।
दूसरे फूल नहीं खिले तो देवमंडल में महामारी हो जायेगी जो मारामारी होगी वह अलग।
मसलन बंगाली तो दुर्गा पूजा अब कुछ सौ साल से पहले से करते रहे हैं लेकिन यहां शिव के उपासक अनार्य थे और काली कीउपासना अनंत काल से चली आ रही है।
जाहिर है कि धतुरा और लाल जबा न खिले तो केसरिया भी नहीं खिलेगा।
दिल्ली में ही जब कमल खिलता दीख नहीं रहा है, तो बंगाल में कमल खिलने की उम्मीद लेकर हताश होने की जरुरत तो है नहीं।
हमने कहा कि घास फूल के मुकाबले में तो अब लाल जबा फूल की वसंत बहार होने के आसार ही ज्यादा लग रहे हैं।
हमने यह भी कहा कि बिहारो में लालू नीतीश एकजुट है तो सूखी नदी में पतवाक खेते हुए कैसे कमल बो सकते हैं मांझी मसीहा।
# द्रोपदी दुर्गति
#गीता महोत्सवे
फिर विशुदा की अतिप्रिय द्रोपदी कथा शुरु हो गयी कि दीदी के मुकाबले कमलदल का असली चेहरा फिर वही द्रोपदी है।
पिर द्रोपदी की देह पर खिलते कमल की चर्चा जोरों से चली।
वैलेंटाइन डे कोलकाता में सरस्वती पूजा बतौर मनाया जाता रहा है और वैलेंटाइन डे धर्मांतरण महोत्सव है।
इसी प्रसंग में सहयात्री सहकर्मी चित्रकार सुमित गुहा ने कहा कि बच्चे बपैदा करने से तय होना है धर्म अधर्म।हिंदुओं की आबादी बढ़ाने खातिर बहुविवाह की हिंदुत्व पेशकश भी है।
हिंदुत्व के शंखनाद के साथ संत समागम में खुलकर इस्लाम मुताबिक चार शादियों की इजाजत है तो धर्म शास्त्र सम्मत द्रोपदी के चार पतियों की व्यवस्था लागू करने में हर्ज क्या है।
अगर पुरुष को बहुविवाह करने की इजाजत है तो स्त्री को क्यों नहीं।
फिरोज मीठीबोरवाला की तर्ज पर हमें कहना पड़ा कि वाजिब सवाल है।
# द्रोपदी दुर्गति
#गीता महोत्सवे
इसी सिलसिले में हम यह द्रोपदी कथा को बांच रहे हैं,जो दरअसल गीता महोत्सव के तहत स्त्री आखेट का मोहत्सव अर्थात मनुस्मृति अनुशासन है।
द्रोपदी के तो पांच मान्य पति रहे हैं।
वैदिकी कथानुसार कौन देव,कौन देवी,कौन अवतार वर्णशंकर नहीं है,यह भी कहना मुश्किल है क्योंकि पुत्र का वर देने वाले महापुरुष या देव स्त्री का पति हो यह भी जरुरी नहीं है।
नियोग की सनातन व्यवस्था है और उसके लिए स्त्री के मतामत अनिवार्य है नहीं।
अंबिका और अंबालिका और विदुर को कोख में जनने वाली माता की इच्छा अनिच्छा का सम्मान भी नहीं किया गया है और इसी नियोग से शास्त्र सम्मत धृतराष्ट्र जन्म है तो पांडु का पांडुवर्ण भी इसी अनिच्छाकृत नियोग से है।वह धर्म है विशुद्ध वैदिकी।
महाभारत को लिखने वाले ऋषिवर स्वयं माता सत्यवती के कुहासा अभिसार का परिणाम हैं तो माता कुंती एक पति के बावजूद छह छह देवों के संतानों की माता हैं।
बाकी कथा बेहद संवेदनशील है कि ईश्वरों की जन्मकथा में भी भारी घालमेल है और उसकी चर्चा तनिक संवेदनशील हो सकती है।
पुराण और पौराणिक,वैदिकी साहित्य के पाठक खुदै समझ लें बाकी किंवदंतियों और लोक में तो यह खुल्ला खेल फर्रूखाबादी है।
कुल मिलाकर कथा वहीं
# द्रोपदी दुर्गति
#गीता महोत्सवे
एक द्रोपदी कथा यह भी हैः
If winter's here, can theatre be far behind? | ||||||
FOR 10 DAYS, THE ACADEMY OF FINE ARTS IN CALCUTTA BECAME A SORT OF MULTIPLEX FOR INDIAN THEATRE, AS GROUPS FROM ALL OVER THE COUNTRY CAME TO PARTICIPATE IN NANDIKAR'S 30TH NATIONAL THEATRE FESTIVAL.BUT TWO PLAYS FROM THE NORTHEAST GENERATED THE BIGGEST BUZZ — HEISNAM KANHAILAL'S DRAUPADI AND ANUP HAZARIKA'S CHARANDAS CHOR. DEBOJYOTI CHAKRABORTY CAUGHT UP WITH THE TWO DIRECTORS FOR A TETE-A-TETE
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ABOUT DRAUPADI
Draupadi is a story about marginalised people who are continually oppressed by the powers that be. The protagonist, Draupadi (played by Heisnam Sabitri), an indigenous woman, fights against the atrocities being committed against her tribe. Ultimately, her husband Dulna is arrested and killed by the police. Draupadi, too, falls in their clutches. So what inspired Heisnam Kanhailal to stage Draupadi? "Torture and gang rape by security forces are regularly reported in Manipur. And this has been going on for a long time. We were trying to figure out how to register a powerful protest against this through the medium of theatre. Then, I was given this story of Mahasweta Devi by a friend in November 1999. Immediately, I began working on it and finished adapting it into a play in January 2000." The play was censored and hasn't been staged in Imphal since that year, although it has won accolades all over the country. This March, after 14 years, Draupadi will return to the stage in Manipur's capital.
Heisnam Kanhailal is the grand old man of Northeast theatre. He was awarded the Padma Shri in 2004 and is the founder-director of Kalakshetra Manipur. He was awarded the Sangeet Natak Akademi Award in direction in 1985 and in December, 2011, he was awarded the Sangeet Natak Akademi Ratna Award (the highest-ranked and most valued Akademi award).
Draupadi has got a tremendous response here. The first show was sold out in no time and you have been requested to stage a second show. Did you expect to generate such huge interest?
I think it's because of the love for this kind of theatre in Calcutta.
The story ends with a magnificent final scene in which Draupadi faces her abusers, naked and bloody, but fiercely strong. Your wife, Heisnam Sabitri, plays the role of Draupadi in the play. Did you have any apprehensions when recreating the scene on stage?
In the first show in Imphal, we did not go all the way. It was more of a suggestion. But we realized that wouldn't work. The scene had to really disturb the audience, hound the audience.
We were invited to New Delhi for a festival organised by the National School of Drama in 2000. I consulted a few of my women friends and they asked me to go ahead with it.
So, we played out the nude scene at our next show at the Shri Ram Centre auditorium. We got an incredible response. Highly respected and educated artistes like Sonal Mansingh rushed to the green room. They touched Sabitri's feet.
Next, we came back to Imphal and did two shows. Trouble started from the third show. A group of educated, articulate women, decried the play; they started treating Savitri as a notorious woman. Another group, surprisingly comprising mostly men, said it should be done. These two groups began to fight each other in the daily newspapers.
But in 2004, life imitated art when a group of Manipuri women walked through Imphal to the Assam Rifles headquarters and disrobed to protest the killing and alleged rape of Thangjam Manorama (who was picked up from her home by the 17th Assam Rifles. The next morning, her bullet-riddled corpse was found in a field. An autopsy revealed semen marks on her skirt suggesting possible rape.)
On the morning after this incident, local newspapers began to write: "Draupadi was played out in life". They began calling me chingu (which in Manipuri means a wise man who can predict the future).
Ordinary people tend to stay away from theatre these days. There's a feeling that theatre is a pastime for intellectuals. Very few theatre groups keep the audiences in mind or take risks.
That's very true. Conventional theatre in India has borrowed heavily from Europe. It's intellectual, academic. Why should we do erudite theatre? We have to stop preaching to the audience; the audience is more intelligent than you think. My goal is to convey my sensibilities to the audience, to alert the audience, to move the audience.
That is why I founded Kalakshetra and began to experiment. We believe in the notion of a workshop that is a laboratory or research theatre rather than a production company.
We try to transform our ancestral traditions and give them contemporary cultural expressions. Of course, this has its risks and challenges. There are imperfections at times but it is worth doing.
You have such a large body of work. Among your own plays, which is your favourite?
There are four actually. Pebet, which was first produced in 1975 and is still continuing. Then Memoirs of Africa that was first produced in 1985. Draupadi and finally Rabindranath Tagore's Dakghar, which we produced in 2006.
What do you seek in an actor?
Stage presence and clarity of thought.
Finally, what is one lesson of life that theatre has taught you?
Theatre makes you more social, takes away inhibitions and teaches humility.
About Charandas Chor Originally a Rajasthani folk tale, Charandas Chor was adapted for a play in Chattisgarhi by Habib Tanvir. The play is about a thief who promises his guru that he will never tell a lie. The guru asks him to give up his bad habits if he wants to become his disciple. He attempts to show his sincerity by offering never to do four things — eat off golden plates, ride an elephant at the head of a procession, marry a queen, and accept the throne of a country. The guru then tells him that he should also give up speaking lies. The thief consents and things take a queer turn…
ABOUT CHARANDAS CHOR
Anup Hazarika is at the forefront of theatre in Assam. The National School of Drama graduate has done mobile theatre for over five years, acted in 20 films and dabbled in television and short films before turning to serious theatre.
You and your wife, Pakija Begum (who plays a central role in Charandas Chor), are in the same profession. Is it an advantage or a disadvantage for your spouse to be in the same trade?
I would say it is an advantage because we never run out of topics to talk about. We enjoy discussing theatre all day.
No ego clashes?
Of course, there are arguments. If there are no disagreements, we can't improve. We are each other's biggest critics. But we complement each other really well because my wife is basically an actor and I am primarily a director. So, we get to hear different perspectives. I enjoy where she takes a role after I conceive it.
What do you think of Menaka, which your wife has directed?
Menaka was Pakija's first directorial venture. The character of Menaka is fantastic and Pakija suits it very well. I think the play will have great longevity.
Mobile theatre is huge in Assam. What prompted you to leave mobile theatre and start
serious theatre?
Mobile theatre is a different kind of experience. There you perform in front of thousands of people. Also, I think there are around 14 mobile theatre troupes in Assam and each troupe supports around 100 families. I wanted to concentrate on the quality of my work and do good work. I am thankful to mobile theatre because I earned some money there and invested it in amateur theatre.
If a youngster wants to take up theatre professionally, is it a viable career option?
Like any other profession, they need to dedicate themselves to theatre. They need to hone their craft, they need to grow and doors will open automatically. But the road isn't easy. People's mentalities also need to change. Like in Guwahati, there is this attitude that people only come to the theatre if somebody invites them. Buying a ticket and going out to watch a play seems a little alien to them.
Some much respected film actors, like for example Denzel Washington, when they shifted to theatre, critics panned them. Why do you think that happens?
In theatre, the audience essentially views a long shot or wide shot, so you need larger movements, larger gestures. The stage has its own requirements and techniques, which you need to master.
What do you need to be a good actor?
You need to understand yourself first, then you must have the ability to put yourself in someone else's shoes and finally you need to let go of your inhibitions.
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6 दिन पहले - Prabhatkhabar: बदायूं : विश्व हिंदू परिषद नेता साध्वी प्राची ने ''लव जिहाद'' के मुद्दे पर भड़काऊ टिप्पणी करके एक नए विवाद को जन्म दे दिया है और साथ ही हिंदू महिलाओं को चार बच्चे पैदा करने की सलाह देने वाले अपने बयान को सही ठहराया.
गोली लगना 'बच्चा पैदा करने जैसा है' - BBC Hindi
www.bbc.co.uk/hindi/.../07/140701_britain_police_women_killing_fma
02/07/2014 - ब्रिटेन में एक महिला को गोली मारने के बाद पुलिस ने कहा कि वह मरेंगी नहीं, ये सिर्फ़ 'बच्चे पैदा करने जैसा' है. बाद में महिला की मौत हो गई.
Royal Patrika - ज्यादा बच्चे पैदा करना है तो ...
https://www.facebook.com/royalpatrika/posts/688669884583818:0
ज्यादा बच्चे पैदा करना है तो हिन्दू संगठनों को हिन्दुओं को पढऩे से रोकना और गरीब बनाना पड़ेगा -हिन्दू संगठनों को मिलेगा मुस्लिम विरोध का एक और हथियार...
फेसबुक मीडिया - 'हिन्दुओं को चार बच्चे पैदा ...
https://hi-in.facebook.com/FacebukMedia3/posts/868459469856452
'हिन्दुओं को चार बच्चे पैदा करना होगा' साक्षी महाराज और VHP के इस बयान पर भांड मीडिया और सेक्युलर दोगले मिल कर कुत्ते की तरह मुंह उठा कर विधवाविलाप तो कर...
4 बच्चों के विवाद में कूदे VHP के अशोक सिंघल, कहा- 4 बच्चे पालने की दिक्कत जरूर दूर करेंगे भगवान
ABP News - Jan 18, 2015
नई दिल्ली: साक्षी महाराज और साध्वी प्राची के बाद अब विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल ने भी की 4 बच्चे पैदा करने की वकालत की है. वीएचपी के वरिष्ठ नेता अशोक सिंघल ने कहा है कि, ''4 बच्चे पैदा करने पर उन्हें पालने में कोई दिक्कत नहीं आएगी, क्योंकि भगवान सारी समस्याओँ को खुद ही दूर कर देते हैं.'' इसके अलावा अशोक सिंघल ने कहा कि परिवार नियोजन पर अमल करने से हिंदुओं की आबादी लगातार घटती ही जा रही है. इससे पहले बीजेपी सांसद और साध्वी प्राची समेत वीएचपी नेता प्रवीण तोगड़िया ने भी चार बच्चे पैदा करने की वकालत की थी. क्या कहा था साध्वी प्राची ने? साध्वी ने प्राची ने कहा, ...
VHP का अगला टारगेट कॉमन सिविल कोड
नवभारत टाइम्स - Jan 16, 2015
तभी साक्षी महाराज का यह बयान आया था कि हर हिंदू महिला को कम से कम 4 बच्चे पैदा करने चाहिए। जिसके बाद वीएचपी ने इसे सपोर्ट किया। वीएचपी के एक नेता ने कहा कि बीजेपी भी कॉमन सिविल कोड की बात करती है, लेकिन जब तक दबाव नहीं बनाया जाएगा तब तक वह इसे लागू नहीं करेगी। साथ ही इसके पक्ष में माहौल बनाना होगा ताकि विपक्षी पार्टियां इसका विरोध ना कर सकें। उन्होंने कहा कि मीटिंग में यह भी चर्चा की गई कि हम लोगों को यह बताएंगे कि अगर मुस्लिम आबादी इसी तरह बढ़ती रही तो ऐसा वक्त आएगा जब हिंदू धर्म से दूसरे धर्म में जबरन धर्मांतरण का खतरा बढ़ जाएगा। इसके लिए पूरी प्लानिंग से काम ...
एक अलगाववादी नेता ने जम्मू कश्मीर के मुस्लिम बहुसंख्यक चरित्र को कायम रखने के लिए मुसलमानों से एक से अधिक शादियां करने और यथासंभव बच्चे पैदा करने का आह्वान किया है। हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे मोहम्मद कासिम ने शनिवार को अपनी पार्टी मुस्लिम दीनिमहाज द्वारा जारी एक बयान में कहा, "हम संपन्न मुसलमानों से एक से अधिक शादियां करने और यथासंभव बच्चे पैदा करने की अपील करते हैं।"
दुख्तरान-ए-मिल्लत की प्रमुख आसिया अंद्रा�बी के पति कासिम ने कहा, "जम्मू कश्मीर में शरणार्थियों को बसाया जाना इस राज्य के मुस्लिम बहुल दर्जे को बदलने की चाल है।" उन्होंने कहा कि कश्मीरी मुसलमान अपने विनाश में खुद ही भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने कहा, "लडकियों देर से ब्याही जा रही हैं जिसका मतलब कम बच्चे पैदा करने की क्षमता है। देर से शादी करने के पीछे जो बहाना दिया जाता है वह यह है कि युवतियां (दुल्हनें) आर्थिक रूप से स्थिर (स्वावलंबी) होनी चाहिए।"
कासिम ने कहा, "फिर शादी के बाद, जन्म नियंत्रण नारे जैसे "हम दो हमारे दो" और "पहला अभी नहीं, दूसरा कभी नहीं" लगातार इन दंपतियों पर थोपे जा रहे हैं।" उन्होंने कहा कि आर्थिक समस्या के डर से कम बच्चे पैदा करना कुछ नहीं बल्कि अज्ञानता है। उन्होंने कहा कि यह आpर्यजनक है कि देश में 80 फीसदी हिंदू जनसंख्या होने के बाद भी हिंदू नेता महिलाओं से पांच बच्चों को जन्म देने का आह्वान कर रहे हैं।
बोलीं साध्वी , मैंने चार बच्चे पैदा करने की वकालत की थी, 40 नहीं
प्रभात खबर - Feb 2, 2015
मालूम हो कि भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने हाल में सभी हिन्दुओं से चार-चार बच्चे पैदा करने की अपील की थी. विश्व हिन्दू परिषद नेता प्रवीण तोगडिया ने भी उनके सुर में सुर मिलाये थे. हालांकि खबरों के मुताबिक पार्टी नेतृत्व ने साक्षी महाराज को उनके बयान के लिये फटकार लगायी थी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनके विकास के एजेंडे पर असर डाल रहे ऐसे बयानों और विवादों को रोकने के लिये पार्टी नेताओं को हिदायत दी थी. विपक्षी दलों द्वारा इन विवादों को मोदी सरकार के हिन्दूवादी एजेंडा के तौर पर पेश किये जाने के मद्देनजर प्रधानमंत्री ने ऐसे बयानों को रोकने पर खास जोर दिया था ...
4 बच्चे पैदा करने को कहा, 40 पिल्ले तो नहीं: साध्वी प्राची
Sahara Samay - Feb 1, 2015
भाजपा नेता साध्वी प्राची उत्तर प्रदेश के विश्व हिंदू परिषद के सम्मेलन में विवादित बयान देकर फंस गयी हैं. उन्होंने अपने संबोधन में कहा, 'मैंने चार बच्चे ही पैदा करने को कहा था तो भूकंप आ गया, 35-40 पिल्ले पैदा करने को तो नहीं कहा था.' प्राची ने एक समुदाय विशेष पर टिप्पणी की, 'ये लोग जो 35-40 पिल्ले पैदा करते हैं और फिर लव जिहाद फैलाते हैं उस पर कोई बात नहीं करता. मेरे बयान पर मीडिया वालों ने मुझसे पूछा कि आपने क्या कह दिया, इससे तो विकास रुक जाएगा. मैंने उनसे भी कहा कि मैंने बिल्कुल ठीक कहा है.' प्राची ने मंच से समाजवादी पार्टी के नेताओं पर भी निशाना साधा. उन्होंने अपने ...
'हिंदुस्तान को दारुल इस्लाम बनाना चाहते हैं 35-40... पैदा करने वाले'
Jansatta - Feb 2, 2015
विश्व हिंदू परिषद नेता साध्वी प्राची ने ''लव जिहाद'' के मुद्दे पर भड़काऊ टिप्पणी करके एक नए विवाद को जन्म दे दिया है और साथ ही हिंदू महिलाओं को चार बच्चे पैदा करने की सलाह देने वाले अपने बयान को सही ठहराया है। प्राची ने कल यहां आयोजित 'विराट हिन्दू सम्मेलन' में कहा ''वे हमारी बेटियों को लव जिहाद के माध्यम से फंसा रहे हैं ये जो 35-40… पैदा करते हैं वे लव जिहाद फैला रहे हैं….ये लोग हिन्दुस्तान को दारुल इस्लाम बनाना चाहते हैं।'' उन्होंने कहा ''जब मैंने टिप्पणी की तो ऐसा बवाल मचा मानो देश में भूकंप आ गया हो। मीडिया ने कहा कि तुमने चार बच्चों का बयान देकर हंगामा खड़ा कर दिया ...
भगवाधारी भगोड़ों की सीख और हिंदू धर्म
Legend News - Feb 3, 2015
हिन्दुओं की आबादी बढ़ाने के नाम पर कभी अति उत्साह में तो कभी व्यक्तिगत कुंठा का शिकार होकर सीमाएं लांघने का जो काम कुछ अतिवादी संत और साध्वी कर रहे हैं, वह दरअसल देश की फिजा में ज़हर घोल रहे हैं । सच तो यह है कि ऐसी सोच उनकी अपनी- अपनी राजनैतिक, सामाजिक व शारीरिक कुठाओं से उपजी है जिन्हें वे पिछले काफी समय से हिंदुओं पर थोपने का प्रयास कर रहे हैं। थोक मेंबच्चे पैदा करने की नसीहत वाला ये आंकड़ा दोनों ही धर्म के लोगों के लिए खासी परेशानी खड़ी कर सकता है । ये नसीहतें कुछ यूं परोसी जा रही हैं जैसे हिन्दू धर्मावलंबी इनके जड़ खरीद गुलाम हों और इन्हें उनके निजी जीवन ...
साध्वी प्राची के बयानों से भाजपा ने किया किनारा
Nai Dunia - Feb 2, 2015
बदायूं। हर हिंदू के चार बच्चे पैदा करने वाले बयान पर कायम विश्व हिंदू परिषद की नेत्री साध्वी प्राची ने अब लव जिहाद पर आग उगली है। हालांकि भाजपा ने उनके बयानों से किनारा करते हुए कहा कि सरकार का पूरा ध्यान सिर्फ विकास और अच्छे प्रशासन पर है। ऐसे बयानों से पार्टी का कोई लेना देना नहीं है। इससे पहले साध्वी ने रविवार को विहिप के एक कार्यक्रम में चार से अधिक बच्चे पैदा करनेवाले कुछ हिंदुओं को सम्मानित किया था, जिसमें 11 बच्चों के पिता एक बुजुर्ग भी शामिल थे। सोमवार को साध्वी ने लव जिहाद पर मोर्चा खोलते हुए कहा कि 35-40 बच्चे पैदा करने वाले लोग हमारी बेटियों को फंसाने ...
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खुद को हिंदू महासभा का कद्दावर नेता बताने वाले स्वामी ओमजी क्यों कर रहे हैं अरविंद केजरीवाल को गोली मारने की बात, क्लिक करके पढ़िए...
खुद को हिंदू महासभा कद्दावर नेता बताने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार स्वामी...
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तानाजी कांबले युवा बहुजन एक्टिविस्ट है और उनका यह मंतव्य गौरतलब हैः
कौन डर रहा है, किसने डरना चाहिए, कौन डर रहा है, कौन डरा रहा है, किसने १० - १० बच्चे पैदा करना चाहिए
कौन बेवकूफ बन रहा है, कौन बेवकूफ बना रहा है, निशाना (लक्ष्य) कौन है, निशाने की बन्दुक किसके कंधे के ऊपर रखी है, बन्दुक (निशाना) किसने पकड़ी है, अस्सल में मांजरा (षडयंत्र) क्या है
ओबीसी बेवकूफ बन रहा है, ओबीसी को ब्राह्मण मुर्ख (बेवकूफ) बना रहा है, निशाना (लक्ष्य) ओबीसी है, निशाने की बन्दुक मुसल्मान की तरफ है, ओबीसी को मारना चाहते है, लेकिन धमकाया जा रहा है मुसलमान को, देश में ब्राह्मण की सत्ता है, फिर भी ब्राह्मण डर रहा है, ब्राह्मण डर के मारे मुस्लमान को डरा रहा है, लेकिन ब्राह्मण ओबीसी को मारना चाहता है मुसलमान को नहीं
देश में ओबीसी जनसंख्या करीबन ६२% है, देश आझाद होने के पहले १९३४ की जनगणना के अनुसार ओबीसी ५२% था, मुस्लिम लोग पाकिस्तान चले गए, पाकिस्तान के ओबीसी भारत में आ गए मतलब देश आझाद (१९४७) होने के बाद ओबीसी की संख्या बढ़ गई ओ आजतक ओबीसी की जातवार जनगणना नहीं हुई, ६२% ओबीसी अगर सही आझाद हुवा तो, जिसकी जीतनी संख्या भारी, उसकी उतनी देश के हर क्षेत्र पर सत्ता की भागीदारी (हिस्सेदारी)
भारत की जनसंख्या १२४ करोड़ है, उनमे से ब्राह्मण बनिया सिर्फ ६% है, मुस्लिम १४ % ओबीसी ६२% है. हजारों सालों से ब्राह्मण बनिया इस देश पर राज कर रहे है, ब्राह्मण बनिया भारत के हर क्षेत्र की सत्ता छोड़ना नहीं चाहते, इसलिए बेगुनाह मुस्लमान (५५,००० सलाखों के पीछे है) के सीने पर बन्दुक तानकर ओबीसी को गुलाम रखने के लिए हर ब्राह्मण चिल्ला रहा है हिन्दू मतलब ओबीसी के हर घर में गुलाम पैदा हो, चार चार बच्चे पैदा किये तो उनकी परवरिश में माता पिता भिखारी बने और ओबीसी गुलाम का गुलाम रहे ओ ओबीसी किसी भी सत्ता का हिस्सेदारी नहीं बने
इस देश में कभी भी ओबीसी खतरे में नहीं था और नहीं रहेगा, मुस्लमान भी कभी खतरे में नहीं था और नहीं रहेगा
हजारों सालों से ब्राह्मण खतरे में था और आगे भी खतरे में रहेगा, जब जब ब्राह्मण को ज्यादा खतरा महसूस होता है, तब तब ब्राह्मण चिल्ला था नहीं की बचाव बचाव नहीं या, भागो भागो नहीं, बल्कि धर्म संकट में है, हिन्दू धर्म संकट में, धर्म की रक्षा करो, धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा
हिन्दू का मतलब : हीन + दू = घाणेरडा गलिच्छ रहनेवाला दूसरा = काला चोर = काफिर = हिनकस = शूद्र = राक्षस, दानव, दास, दस्यु, असुर
लेकिन आज का हिन्दू धर्म मतलब = वर्णाश्रम धर्म = वैदिक धर्म = ब्राह्मणी धर्म
हिन्दू धर्म की रक्षा करना मतलब धर्म की रक्षा नहीं बल्कि ब्राह्मणों की रक्षा करना ताकि ब्राह्मण ओबीसी के ऊपर राज करे
हिन्दू धर्म की रक्षा करना मतलब आ बैल मुझे मार (ओबीसी को), आवो आवो ब्राह्मण हमारे ऊपर राज करो, आवो आवो ब्राह्मण हमारी सब धन सम्पति लेलो, हमारी माँ, बेटी, बहन, पत्नी सब तुम्हारी हो गई, इसलिए ब्राह्मण ओबीसी की शादी में ओबीसी से कहलवाता है "मम भार्या समर्पयानी" मतलब मेरी पत्नी तुम्हे (ब्राह्मण) को दान कर रहा हूँ, इसलिए ब्राह्मण पहले ओबीसी की पत्नी के साथ पहली रात (हनीमून) मनाता है और बाद में ओबीसी को, ओ लड़की देता है, इसलिए ब्राह्मण लड़की का पहला हात पकड़ता है और बाद में उस ओबीसी के हात में लड़की ओ सपूर्त करता है, लेकिन कहता है ये पहली मेरी पत्नी है बाद में तुम्हारी पत्नी, मै जब चाहूँ तब उसका उपभोग ले सकता हूँ इसलिए तो धर्म बनाया है, शूद्रों को सिर्फ कर्मण्य वादिके रास्ते मा फलेसु कदाचन की तरह सेवा करना है, इसलिए ओबीसी भाइयो जागो उठो सही तरह से भाई, मित्र, और शत्रु को पहचानों
चार या चालीस बच्चे किसके लिए और क्यों पैदा करना है, कुत्ते की तरह चालीस बच्चे पैदा करने के बजाय एक या दो बच्चे शेर की तरह पैदा करों और अपने समाज को जागृत बनाके देश पर राज करो अपना अपना हिस्सा, वाटा, हक्क अधिकार छीन के लेलो, जिसने हमारा हक्क अधिकार छीना उसका जीना हराम करो.
Feb 09 2015 : The Economic Times (Kolkata)
D-St Likely to be Rattled by Man Who will Control Delhi
Mumbai:
Our Bureau
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Weak Q3 results, strong US jobs data & deepening Eurozone crisis may also hurt sentiment
Stock investors may have to brace for turbulence this week amid indications that a victory for Aam Aadmi Party in the Delhi elections, strong US jobs data and a deepening crisis in the Eurozone may spark a selloff. Although an AAP victory would do little to change national political equations, Dalal Street may view such an outcome as a setback for the Narendra Modi-led Bharatiya Janata Party.
The stock markets will most likely open weak on Monday, after most exit polls on Saturday predicted an AAP win. An average of five exit polls gave AAP 41 seats, BJP 27 and Congress 2 in the 70-member Delhi assembly. On Friday, the BSE's mid-cap index fell 1.1%, the small-cap index declined 1.8% while the benchmark Sensex dropped 0.5%.
"There might be a small correction because the markets have factored in a result in line with exit polls, though the mar gin for AAP in exit polls is con siderably high er," said Nirmal Jain, chairman of India Infoline.
Some brokers believe selling by traders scurry ing to liquidate bets built on borrowed money may precipitate the market's slide, especially in midand small-cap stocks. Disappointing December quarter earnings of Indian companies are also weighing on sentiment.
Feb 09 2015 : The Economic Times (Kolkata)
Modi Forms 3 Sub-groups of CMs under NITI Aayog
New Delhi:
Our Bureau
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FUTURE CHANGES Move could cut number of schemes & even end the not-so-popular ones
Heeding the longpending demand of states, Prime Minister Narendra Modi on Sunday formed a sub-group of chief ministers under NITI Aayog to suggest further rationalisation of 66 centrally funded schemes. This could prune the number of programmes, transfer some of them to the states and even end the not-sopopular ones.
The BJP-led National Democratic Alliance government also set up sub-groups on skill development and Swachh Bharat Abhiyan. "The NITI Aayog would constitute three sub-groups of chief ministers to study the 66 centrally sponsored schemes, recommend how NITI Aayog can promote skill development and creation of skilled manpower within states and decide on institutional mechanisms to be evolved and technological inputs for ensuring that commitment to Swachh Bharat becomes a part of our life in perpetuity ," an official statement said.
"The first sub-group will look into which amongst the 66 centrally sponsored schemes are required to continue and which can be cut down or transferred to states," Finance Minister Arun Jaitley said, adding that the sub-group will submit its views within a month and a half.The 14th Finance Commission headed by former Reserve Bank of India Governor YV Reddy had proposed a significant increase in the quantum of funds that the Centre gives to the states as their share of central tax revenue as well as a major jump in the amount that they mount that they can spend on their own with out being ac countable to the Centre.
The Centre's assistance to states for the 66 schemes was . 3.38 lakh crore ` in 2014-15, more than double the amount of ` . 1.36 lakh crore in 2013-14.
Flagship central schemes include Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee scheme, Bharat Nirman, Sarva Shiksha Abhiyan and Pradhan Mantri Grameen Sadak Yojana.In the 11th Plan period (2007-12), the provision for central schemes stood at over . 6.6 lakh crore.` At one point, there were as many as 360 such schemes and their number has come down to 66 last year from 147.
At present, states are allocated money under central schemes for development work such as roads, sanitation, education and social welfare programmes.States have to spend the money allocated as per guidelines.
The recently constituted National Institution for Transforming India (NITI Aayog) has replaced the over six-decade old Planning Commission as a think-tank for the Centre and state governments and to suggest policy directions.
The Prime Minister is the chairperson of the body that comprises a governing council of chief ministers and lieutenant governors of all states and Union territories, a vice chairman, two full-time members, part-time members and ex-officio members, besides a secretary-level officer designated as CEO of the institution.
Addressing the first meeting of the governing council of NITI Aayog, the Prime Minister identified "alleviation of poverty" as the biggest challenge.
"Prime Minister also asked all states to create two task forces under the aegis of the NITI Aayog -one task force would focus on poverty alleviation and the other would focus on future development of agriculture in the state, and how the Centre can assist the state in this regard," the statement said.
Modi asked the chief ministers to personally monitor factors that slow down projects.
Feb 09 2015 : The Economic Times (Kolkata)
FOR CONNECTION TO HINTERLAND - Govt Eyes $2B in Foreign Funds for Ports' Expansion
Ruchika Chitravanshi
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New Delhi
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The government is planning to raise nearly $2 billion (about `. 12,400 crore) in overseas funding for expansion of major ports in the country as well as to execute rail and road projects to connect them to the hinterland.
The shipping ministry is likely to soon finalise the proposal for a dozen major ports that have a combined US dollar denominated income of about $400 million a year, officials said, adding that the plan will require the nod of the finance ministry and the Reserve Bank of India. "Ports are not hard pressed for money but we want access to cheaper funds. We can use our dollar denominated earnings as a security to raise more finance and it will be hedging for our funds as well," a senior government official said. Most of the ` . 2.96 lakh crore investments envisaged in major and non-major ports by 2020 has to come from the private sector.
However, public funds will be required for activities such as deepening of port channels, and expansion of rail and road connectivity from ports to the hinterland.India allows foreign direct investment up to 100% under automatic route for construction and maintenance of ports.
For road connectivity projects alone, about ` . 27,000 crore is required. Some of the funds can also be used for financing the Rail Corporation, which is being set up with participation of all the 12 major ports, exclusively for building port connectivity rail projects.
The shipping ministry is still in the process of deciding the mechanism of fundraising, the official cited earlier said.
"Getting access to cheaper overseas funds is a good idea since connectivity is a key issue for ports.Corporatisation of major ports at this point is important as it will make raising money much easier," said Manish Agarwal, leader-capital projects and infrastructure at PwC India.
The shipping ministry is in talks with some foreign banks for extra commercial bor rowing, officials said, adding that the ministry is al so exploring the option of access ing long-term fi nance through pension funds.
During 2013-14, the ministry had awarded 16 pro jects amounting to an estimated . 18,640.83 crore under public-pri` vate partnership mode for capacity addition of 159.65 MT in the major ports.
The ports sector has the potential to absorb huge investments given India's 7,500 km long coastline and plans to develop it as preferred route to transfer cargo to hinterland, a shift that will ease pressure on the road and rail resources.
Feb 09 2015 : The Economic Times (Kolkata)
DestiNation India
Anil D Ambani
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PM's focus on governance, taxation and transparency will help us enter the business-friendly club
If Prime Minister Narendra Modi has one ambition, it is to improve India's dismal ranki ng in the ease of doing busine ss index -currently languishing at 142, just above the West Bank and Gaza -as part of a comprehensive strategy to attract investors, rejuvenate the economy , create a global manufacturing hub and generate millions of jobs for young Indians.
In the immediate analysis, he would want to see India rapidly climb up the ranks, to count at least among the top 50. I am ever confident that this will happen sooner than anyone imagines. For, I know that if there's any one teaching of the Mahatma the PM has closest to his heart, it is that about being the (force of) change that one would like to see.
His government has already announced a series of far-reaching reforms, with more lined up in the forthcoming Budget and beyond. My interactions with investors, regulators, law enforcement agencies and other government bodies tell me that there are a number of further areas that require immediate attention. Critical to improving the ranking will be putting in place a host of legislative changes while making sure that those in charge of enforcement clearly understand that the thrust is to empower and encourage, not just to police and punish.
The PM is keen that India establishes global benchmarks in areas such as governance, taxation and transparency . For this to happen, investors need to be reassured that India's legislative regime is predictable, stable, transparent, time-bound and in line with global best practices. These principles should also apply broadly to litigation policy , bankruptcy law and arbitration.
Wrongs Hurt the Right
It is common knowledge that tax authorities are used to challenging every order passed against them. This needs to be change because it denies law-abiding taxpayers their rightful dues in a timely manner. For corporates, these may include tariff orders by an electricity regulator, a telecom tribunal or some other forum, with every decision now being appealed right up to the Supreme Court.
What's more, the prevailing practice of confiscation of security deposits and encashment of bank guarantees amounts to forms of extreme punitive action that lead to inevitable, but totally avoidable, litigation.
With regard to the bankruptcy law, an efficient and effective insolvency system builds confidence among credit providers, resulting in reduced borrowing costs. It also fosters confidence among international investors. The T K Viswanathan Committee has made recommendations in this regard that need to be implemented at the earliest. Also needed is a credible, sustainable basis for settling employee claims and separation of workmen to allow clean closures of unviable businesses.
In such cases, the administrator needs to be given the power to waive or reduce penalties and interest payments. An agency should supervise bankruptcies as the National Company Law Tribunal's operation has been stayed by the Supreme Court.
Let me also suggest that the arbitration law should ensure that the process follows a strict `terms of reference' approach to set out all issues clearly . Time limits are needed for each stage, ensuring that the exercise is completed in six months. The government and state-run units should be precluded from appointing ex officio or retired bureaucrats as arbitrators. And judicial interventi on subsequent to awards being passed should be minimal.
A well-defined and structured exit policy for businesses is essential, thus hastening the winding-up proc l ess. We have to find a way out to minii mise judicial delays and ensure timebound closure to commercial disputes. The Contract and the Specific Relief Acts need to be reviewed to z sanctify such accords and to ensure speedy compliance. Stay orders on projects should be granted only in ex l treme cases.
India should also sign treaties with more countries with which it i does business regularly , so that the enforcement of foreign judgments can be streamlined. f The government has been talking about improving infrastructure. In order to achieve that, steps should be s taken to ensure clarity of title through digitisation of land records, sing le-window registration and mutation processes, and a streamlined system for land-use conversion. Similarly, labour law reforms should speed up the process of shutting units with adequate compensation to workers.Self-certification of various labour laws should be implemented to end `inspector raj'.
We should also aim for convergence and e-enablement of all licensing and registration processes to provide for a unified, comprehensive, time-bound and process-based review that leads to the grant of speedy approvals. A combined digital application form instead of different paper-based ones for various departments will simplify the process.
In the area of environmental clearances, let me suggest that these should be made through a single window and be time-bound. Environment compliance assistance centres shou ld be set up in the states to facilitate information exchange between regulators and industry .
Tax reforms is another important area where arbitrary powers of seizure, search, arrest and inspection need to be curtailed. Assessment reopening needs to be curbed as this leads to huge liabilities and penalties being imposed. Assessments should be transparent and not be reopened in the wake of retrospective amendments. Tax refunds should be automatic and faster. There needs to be uniform interpretation of tax laws.
We all understand that at times, amendments are necessary , but these should involve a consultation paper with a reasonable time for suggestions from all stakeholders. An emerging issues task force should consider issues raised by business chambers and provide clarifications in 60-90 days. The government needs to set up infrastructure to ensure that advance rulings are made in six months. The domestic threshold for RS 25 crore this should be lowered to ` from RS 100 crore.
Make Taxes Certain
On transfer pricing, a distinction ne eds to be made between the role of In dian multinationals as shareholders of foreign subsidiaries and as lend ers and guarantors. A specific com bined mechanism is needed to deal with transfer pricing and advance pricing arrangements (APAs) forcustoms and income tax, doing away with the special valuation branch for customs valuation. This will assume greater significance as `Make in In dia' gathers pace.
There is a strong view that the gen eral anti-avoidance rule (Gaar) shou ld not be introduced. Instead, a speci fic anti-avoidance rule (Saar) should be put in place after consultations. A change is also needed in the approa ch of the Central Board of Direct Ta xes and the Central Board of Excise and Customs, with regard to the ac countability of officers, complaints of harassment and excessive assess ments. Revenue targets should not be overly aggressive and apparently harsh orders should be avoided.
In line with international norms, group companies should be allowed to file consolidated returns to set off losses of each other. This will avoid the current anomaly of one group unit paying huge taxes while anoth er carries forward huge losses.
Building social and physical infra structure and skill development sho uld be incentivised. Standardisation of public-private partnership (PPP) contracts will go a long way toward transparency and consistency . With regard to vicarious liability , prosecu tion against directors and senior ma nagers should be launched only after sanction by a senior-level official givANIRBAN BORA ing reasons and justifying the action.
The three Ds -democracy , demo graphics and demand -have been in India's favour. A very welcome four th D -decisiveness -has now been introduced in abundance by Prime Minister Modi and his able team of ministers, including finance minis ter Arun Jaitley and commerce and industry minister Nirmala Sithara man. This offers great hope that Ind ia will soon shake off its image of bei ng a risky and difficult place for busi nesses, and instead become a safe, predictable and profitable destinati on for investors.
I have not the slightest doubt that this will happen very , very soon. For, if there's one life principle that PM Narendrabhai is inspired by , it is Swami Vivekananda's message abo ut Arjuna-like single-mindedness in the pursuit of one's goals, "Take up one idea. Make that one idea your life. Dream of it, think of it, and live on it... this is the way to success."
For Prime Minister Narendra Mo di, changing the way India does busi ness is one such idea.
The writer is chairman, Reliance Group
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