केसरिया मुकाबले दीदी अब अपराजेय,वाम के साथ आवाम नहीं
बंगाल में हर चौथा वोटर अब केसरिया, शत प्रतिशत हिंदुत्व फतवा मुकाबले ध्रूवीकरण जनता का,बाकी मुद्दे समीकरण बेमतलब
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
संकेत दिल्ली के चुनावों में मिल चुके थे।नई किस्म की राजनीति की जीत वहां जितनी हुई,उसका जो प्रचार हुआ,उसके मुकाबले सच यही था कि शत प्रतिशत हिंदुत्व के फतवे देश में ध्रूवीकरण अब तेज से तेज होता जा रहा है।
अमित शाह के दिग्विजयी घोड़ों का कब तक कहां तक सीबीआई और केंद्रीय एजंसियां साथ दे पायेंगी,शक है।
बंगाल में कंफर्म हो गया कि जो आम जनता इस धर्मोन्माद के खिलाफ है,वह भाजपा को हराने वालों का साथ देगी।कोई फतवा जरुरी नहीं है।
दिल्ली में वह ताकत आप रही है और कांग्रेस का सूपड़ा इसीलिए साफ हुआ है।आत्मध्वंस के जिस पथ पर तेजी से बढ़ रहा है संघ परिवार के मोदी ब्रांड हिंदुत्व का अश्वमेध घोड़ा,उसके रास्ते में ऐसे ही मोर्चाबंदी अब होती रहेगी।
मौका था वाम के लिए।
बहुजनों के लिए भी मौका था।
मौका था वाम बहुजन गोलबंदी का भी।
ऐसा लेकिन होना असंभव ही है।
अनिल सरकार और तुलसीराम जैसे लोग याद आते रहेंगे और तेलतुंबड़े की लोग सुनेंगे भी नहीं।
साख से बेदखल वाम,जनांदोलनों से ,जनता के मुद्दों से बेदखल वाम के साथ आवाम नहीं है कहीं और न कहीं हकीकत की जमीन पर खड़ा है वाम।
इसीतरह बहुजन समाज का अता पता ही नहीं चल रहा है।दिल्ली में कांग्रेस की तरह साफ है बहुजन तो बंगाल में तो वह मैदान छोड़कर भागा हुआ है अरसे से।
बंगाल में भाजपा के मुकाबले फिलहाल ममता बनर्जी के अलावा भाजपा को हराने वाला कोई शूरवीर नहीं है।
वनगांव उपचुनाव में शरणार्थी आंदोलन का चेहरा जो बेनकाब हुआ सो हुआ क्योंकि नागरिकता के सवाल को शरणार्थियों के वजूद को वोट बैंक समीकरण में तब्दील करने की कोशिश पर खड़ा था भाजपा की जीत का समीकरण और शरणार्थी दलित नेताओं का भगवाकरण तेज हो गया रेवड़िया खाने के लिए।
वोटबैंक बजरिये ,नागरिकता आंदोलन बजरिए मतुआ वंशजों के केसरिया अभियान को मतुआ आंदोलन के वोटरों ने मुंहतोड़ जवाब दिया है।
कपिल कृष्ण ठाकुर 140 हजार वोटों से जीते थे और उनकी विधवा ममता वाला ने प्रबल केसरिया तूफान के मुकाबले दो लाख वोटों से वाम उम्मीदवार को हराया।
हर हथकंडे अपनाकर वनगांव में तीसरे स्थान पर रही भाजपा।
यही जीत दरअसल ममता बनर्जी या तृणमूल कांग्रेस की नहीं है।
यह जीत केसरिया उन्माद के खिलाफ वोटरों की अभूतपूर्व गोलबंदी की जीत है।
जैसे दिल्ली में अरविंद केजरीवाल कीईमानदारी का कोई पुरस्कार नहीं है दिल्ली का मसनद।
होता तो लोकसभा चुनाव में दिल्ली उन्हें बेरहमी से खारिज यूं न करती।
भाजपा के किसरिया शत प्रतिशत जनसंहारी नरमेध अभियान के खिलाफ भाजपा को हराने के लिए अरविंद की ताजपोशी की है दिल्ली ने।
जनपक्षधर ताकतें,इस समीकरण को जितना जल्दी समझ लें उतना ही तेज होगा संघ परिवार के पतन का सिससिला,जो शुरु हो चुका है।
इसके साथ ही साफ हो गया कि बंगाल की जनता बंगाल को केसरिया उपनिवेश बनाने को कतई तैयार नहीं है।
कांग्रेस और वामसमर्थक आम मतदाताओं ने केसरिया धर्मोन्माद को हराने के लिए दीदी का साथ दिया है।
दीदी का वोट फीसद घटने के बजाय मतदान कम होने के बावजूद 46 फीसद के करीब है तो वाम वोट 26 फीसद के करीब रह गया है।
लेकिन वनगांव संसदीय उपचुनाव और कृष्णगंज विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को पच्चीस फीसद वोट पड़े हैं।लोकसभा में भाजपा को बंगाल में सोलह फीसद वोट पड़े थे।
यानी कि बंगाल में अब जब हर चौथा वोटर केसरिया है और केसरिया के मुकाबले वाम कहीं भी नहीं है तो आवाम के पास आप और ममता बनर्जी जैसे ही विकल्प होंगे।
जैसे इसी वजह से बंगाल से सीबीआई महिमा से ममता की गिरफ्तारी होने की स्थिति में भी, मुकुल और दूसरे तृणमूलियों के फेंस इधर उधर होने के बावजूद धर्मोन्मादी नरमेध दिग्विजय अभियान से बचने का रास्ता खोजने के लिए बंगालियों के पास ममता बनर्जी के अलावा कोई दूसरा विकल्प है नहीं और तय हो गया कि अब ममता अपराजेय है।वाम वापसी असंभव है।
यूपी ,बिहार और अन्य्तर जहां चुनाव होेंगे,कश्मीर में जनादेश के खिलाफ भाजपा की सरकार बन जाने के बाद वामपंथ और बहुजन के मुकाबले क्षत्रपों के अंब्रेला के नीचे आने के अलावा आम जनता का शत प्रतिशत हिंदुत्व हिंसा से बचने का कोई रास्ता निकलने के आसार नहीं है।
जाहिर है कि विनाशकाले विपरीत बुद्धि के तहत आत्मध्वंस का,शत प्रतिशत हिंदुत्व एफडीआई का रास्ता चुन लिया है संघ परिवार ने।
मुकुल राय ने अपने चेलों के जरिये वनगांव में भाजपा को हराने की हरसंभव कोशिश की है और पार्टी पर भी उनकी दावेदारी है।
वनगांव के उपचुनाव में साफ हो गया कि दमदम से भाजपा के तपन सिकदर को जिताने के लिए सीपीएम के सुभाष चक्रवर्ती की जो ताकत रही है, वह ताकत उनकी नहीं रही है और तृणमूल चाहे दो फाड़ हो या तीन फाड़,दीदी के मुकाबले बंगाल में अब कोई नहीं है।
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