मुक्त बाजार भारत की राजनय,हिंदुत्व और धर्मनिरपेक्षता!
पलाश विश्वास
मुक्त बाजार भारत की राजनय अब विश्वबैंक और अंतरराष्टीय मुद्राकोष के दिशानिर्देशों से तय होता है। विदेश नीति व्हाइट हाउस और पेंटागन से तय होती है। भारत चीन सीमा विवाद और जल संसाधन के बंटवारे पर पड़ोसी देशों से द्विपक्षीय वार्ता तो होती नहीं है। ईरान में भूकंप के बाद चीन में मची भूकंपीय तबाही से ब्रह्मपुत्र के उत्स पर परमाणु धमाके से पहाड़ तोड़कर बांध बनाने के उपक्रम पर भारत ऐतराज करने की हालत में भी नहीं है क्योंकि भारत चीन जल समझौता जैसी कोई चीज नहीं है। हिमलयी क्षेत्र में उत्तराखंड, हिमाचल , बंगाल का पहाड़ी क्षेत्र, सिक्किम भूगर्भीय दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है। कुमांयूं गढ़वाल में भूकंप के इतिहास की निरंतरता बनी हुई है। भूस्खलन तो रोजमर्रे का जीवन है। फर भारत सरकार को न तो हिमालय की चिंता है और न जल संसाधनों की सुरक्षा की और न ही वहां रहने वाले आम जनता के जानमाल की।हिमालय के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और हिमालयी जनता का अमानवीय दमन ही राजकाज है।बांग्लादेश ने भारत के साथ संयुक्त उपक्रम के लिए करार पर दस्तखत किये जिसके तहत कोयले से संचालित 1,320 मेगावाट बिजली के संयंत्र के लिए 1.6 अरब डालर का निवेश किया जाएगा और इस पर अगले पांच साल में काम शुरू होने की संभावना है। यह बांग्लादेश का अब तक का सबसे बड़ा करार है।दोनों देशों ने तीन सौदों पर दस्तखत किये हैं जिसके तहत बागेरहाट के रामपाल में संयंत्र को बांग्लादेश-भारत फ्रेंडशिप पावर कंपनी प्राइवेट लिमिटेड संचालित करेगी। सहमति के तहत 70 प्रतिशत निवेश बाजार से कर्ज के तौर पर लिया जाएगा वहीं शेष राशि बराबर-बराबर बांग्लादेश पावर डवलपमेंट बोर्ड और भारत की एनटीपीसी प्रदान करेंगे।खास बात तो यह है कि दक्षिम एशिया समेत बारत के पर्यावरण के लिए बेहद जरूरी सुंदरवन के अस्तित्व के खिलाफ ये बिजली संयंत्र निजी हित के लिए लगाये जा रहे हैं, इसका बांग्लादेश के पर्यवरणकर्मी कड़ा विरोध कर रहे हैं। जब अपने देश में पर्यावरण कानून, समुद्री तट सुर्क्षा कानून , वनाधिकार कानून, संविदान की पांचवी और छठीं अनुसूचियों, धारा ३९ बी , ३९ सी, स्थानीय निकायों की स्वायत्तता, मौलिक अधिकारों,नागरिक और मानव अधिकारों की धज्जियां उड़ाकर विकास के नाम पर मूलनिवासी बहुजनों को कारपोरेट हित में निजी कंपनिोयों के लाभ के लिए नित नये कानून पास करके संशोधन करके जल जंगल जमीन से बेदखल किया जा रहा हो, सेज और परमाणु संयंत्र की बहार हो, बड़े बांध और ऊर्जा प्रदेश बन रहे हैं, जनांदोलनों का सैनिक राष्ट्र निरकुंस दमन कर रहा हो, तो बांग्लादेशमें जनप्रतिरोध की क्या परवाह होगी भारतीय विदेश नीति को? जब हमें बांग्लादेश या नेपाल या भूटान के हितों का ख्याल नहीं रखना है तो हम कैसे अपेक्षा करते है कि चीन हमारे हितों का ख्यल रखेगा!
चीन के सिचुआन प्रांत में आए शनिवार सुबह आए शक्तिशाली भूकंप में मरने वालों की तादाद बढ़कर 203 हो गई है। इसके अलावा 11,000 से अधिक लोग घायल हुए हैं। कल आए भूकंप से सर्वाधिक प्रभावित यान शहर में मरने वालों की संख्या 164 है। लुशान कस्बे में करीब 15 लाख लोग भूकंप से प्रभावित हुए हैं।आज सुबह चीन के पीले सागर में 5.0 तीव्रता का एक भूकंप आया। चाइना अर्थक्वेक नेटवर्क के मुताबिक सुबह तकरीबन सात बज कर 21 मिनट पर आए इस भूकंप का केंद्र 10 किलोमीटर की गहराई में था। चीन के सरकारी मीडिया ने जानकारी दी है कि सिचुआन प्रांत के लुशान कस्बे में शनिवार को सात की तीव्रता का भूकंप आया। इस भूकंप के बाद कमोबेश 1165 झटके आए जिनमें से कुछ की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर पांच से अधिक थी जिसकी वजह से बचाव अभियान और मुश्किल हो गया।
इसी के मध्य तिब्बत के इलाके में ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध और पनबिजली घर बनाने को लेकर चीन ने भारत के एक प्रस्ताव को टाल दिया है। भारत ने चीन की योजना की साझा समीक्षा के लिए संयुक्त टीम बनाने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन चीन ने यह कहकर इसे टाल दिया कि वह एक जिम्मेदार देश है और अपने पड़ोसी देशों के साथ किसी तरह का गलत आचरण नहीं करेगा।
जानकारों के मुताबिक, पिछले महीने डरबन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने चीन के राष्ट्रपति शी चिन फिंग से मुलाकात के दौरान यह मसला उठाया था। अब जब विदेश मंत्रालय ने चीनी अधिकारियों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया तो चीनी अधिकारियों ने पड़ोसी देशों को किसी तरह का नुकसान नहीं होने देने की बात कही। लेकिन जानकारों का कहना है कि भारत, चीन से यह जोर देकर आग्रह करता रहेगा कि साझा समीक्षा के लिए दोनों देश या तो एक जल आयोग का गठन करें या फिर अंतर सरकारी बातचीत करें या एक संयुक्त टीम बनाने की भारत की सलाह मान लें। गौरतलब है कि चीन ने तिब्बत के इलाके में ब्रह्मपुत्र पर तीन बड़े बांध बनाने का काम शुरू किया है। उत्तर-पूर्व में तिब्बत के इलाके से होकर ब्रह्मपुत्र भारत में प्रवेश करती है। चीन फिलहाल इन नदियों से भारत में जलप्रवाह की जानकारी एक विशेषज्ञ स्तर की व्यवस्था के तहत भारत को देता है। उसका कहना है कि यह व्यवस्था काफी है।
बांग्लादेश के साथ यह समझौता खासकर ऐसे समय हुआ , जब बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र की लड़ाई तेज है और इसके जवाब में पाक समर्थक इस्लाणी कट्टरपंथी अल्पसख्यकों को निशाना बनाये हुए हैं।तो दूसरी तरफ नये सिरे से भारत में हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्रवाद का उन्माद बड़े ही वैज्ञानिक और बाजार प्रबंधन के बतौर राजनीतिक विकल्प और विकास के वैकल्पिकक चामत्कारिक माडल के रुप पेश किया जा रहा है। भारत की अल्पमत सरकार बाबरी विध्वंस, सिख नरसंहार, गुजरात नरसंहार और भोपाल गैस त्रासदी के युद्ध अपराधियों को सजा दिलाने के बजाय केंद्र में साझे तौर पर दुधारी दो दलीय सत्ता में न सिर्फ उनके साझेदार हैं, बल्कि हिंदू राष्ट्र के ध्वजावाहकों के साथ मिलीभगत के तहत विदेशी निवेश ,विनिवेश, अबाध पूंजी प्रवाह, विकासदर, वित्तीय घाटा, निवेशकों की आस्था, बुनियादी ढांचा के नारों के साथ नागरिकता संशोधन कानून पास करके. आधार कार्ड परियोजना के तहत देश की आधी आबादी के नागरिक मानवाधिकार संवैधानिक रक्षाकवच को निलंबित करके जनसंहार अभियान चला रही है। खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश का पुरजोर विरोध करने वाले संघ परिवार को विमानन क्षेत्र से लेकर रक्षा क्षेत्र तक में विदेशी पूंजी के अबाध वर्चस्व से कोई आपत्ति नहीं है। रेलवे और राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं को बलात्कार विरोधी स्त्री उत्पीड़नविरोधी कानून के प्रावधानों में जैसे पुलिस और सेना को, सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून , आतंकवाद निरोधक आईन को छूट दी गयी, उसी तरह की छूट देकर जनहित में पुनर्वास और मुआवजा के दिलफरेब वायदों के साथ बिना भूमि सुधार लागू किये भूमि अधिग्रहण संशोधन कानून पास कराने की तैयारी है तो पेंशन और भविष्यनिधि तक को बाजार के हवाले करने के लिए,पूरे बैंकिंग सेक्टर को कारपोरेट के हवाले करके जीवन बीम निगम के साथ साथ भारतीय स्टेट बैंक के विध्वंस के जरिए आम जनता की जमा पूंजी पर डाका डालनेकी तैयारी है।कालेधन की यह अर्थव्यवस्था चिटफंड में तब्दील है औरकोयले की कोठरी में सत्तावर्ग के सभी चेहरे काले है। ऐेसे में नेपाल हो या बांग्लादेश, कहीं भी धर्मनिरपेक्षता व लोकत्ंत्र की लड़ाई हिंदुत्व के लिए बेहद खतरनाक है।
मसलन नेपाल में राजतंत्र के अवसान के बाद बारत की हिंदुत्ववादी राजनय के ेमात्र एजंडा वहां राजतंत्र की बहाली है। इसवक्त नेपाल में बड़े जोर शोर से प्रचार अभियान चल रहा है कि भारत में नरेंद्र मोदी के अमेरिकी समर्थन से प्रधानमंत्री बन जाने से भारत हिंदू राष्ट्र बन जायेगा और इसीके साथ नेपाल में एकबार फिर राजतंत्र की स्थापना हो जायेगी। फिर शांति और संपन्नता कायुग वापस आ जायेगा। जाहिर है कि भारत का हिंदुत्ववादी सत्तावर्ग उसीतरह लोकतंत्र के विरुद्ध है जैसे कि जायनवादी कारपोरेट साम्राज्यवाद। भारतीय सत्तावर्ग कमसेकम अपने अड़ोस पड़ोस मे लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता बर्दाश्त कर ही नहीं सकते और कट्टरपंथ को बढ़ावा देने के लिए हर कार्रवाई करता है। वरना क्या कारण है कि पाकिस्तान से अभी अभी आनेवाले हिंदुओं को नागरिकता दिलाने की मुहिम तो जोरों पर होती है, वहीं विभाजन पीड़त हिंदू शरणार्थियों की नगरिकता छिने जाने पर, उनके विरुद्ध देशव्यापी देशनिकाले अभियान के खिलाफ कोई हिंदू आवाज नहीं उठाता। बांग्लादेश, पाकिस्तान और बाकी दुनिया में बाबरी विध्वंस के बाद क्या हुआ, सबको मालूम है, लेकिन इस वक्त बांग्लादेश में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के जीवन मरण संग्राम के वक्त उनका समर्थन करने के बजाय संघ परिवार की ओर से सुनियोजित तरीके से रामजन्मभूमि आंदोलन ने सिरे से जारी किया जाता है। यहीं नहीं, संघ परिवार की ओर से पेश प्रधानमंत्रित्व के दो मुख्य दावेदारों में से एक बाबरी विध्वंस तो दूसरा गुजरात नरसंहार मामले में मुख्य अभियुक्त है। इसपर मजा यह कि धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद का झंडा उठाये लोगों को गुजरात नरसंहार का अभियुक्ततो सांप्रदायिक लगता है, लेकिन बाबरी विध्वंस का अभियुक्त नहीं। वैसे ही जैसे सिखों को हिंदू मानने वाले संघ परिवार ने आपरेशन ब्लू स्टार में न सिर्फ कांग्रेस का साथ दिया,बल्कि सिखों के जनसंहारके वक्त भी कांग्रेस का साथ देते हुए वह हिंदू हितों का राग अलापता रहा और बाद में अकाली दल के साथ पंजाब में सत्ता कासाझेदार हो गया। दंगापीड़ित सिखों को न्याय दिलाने का कोई आंदोलन न संघ परिवार ने छेड़ा और न अकाली सत्ता की राजनीति की इसमें कोई दिलचस्पी रही।
पिछले दिनों राजधानी नयी दिल्ली में बांग्लादेश के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक शहबाग आंदोलन के समर्थन में देशभर के शरणार्थियों ने निखिल भारत शरणार्थी समन्वय समिति के आह्वान पर धरना दिया और प्रदर्शन किया। इस कार्यक्रम में हिदुत्व का कोई सिपाहसालार नजर नहीं आया और न अराजनीति और राजनीति का कोई मसीहा। जबकि बांग्लादेश में अबभी एक करोड़ हिंदू हैं। रोज हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं, पर अयोध्या के रथी महारतियो को रोज बांग्लादेश में ध्वस्त किये जा रहे असंख्य हिंदू धर्मस्थलों, रोज हमले के शिकार होते हिंदुओं की कोई परवाह है।बुनियादी सवाल तो यह है कि क्या उन्हें भारतीय हिदुओं की कोई परवाह है? हिंदुत्व के नाम पर जो बहुसंख्य मूलनिवासी बहुजन संघपिरवार की पैदल सेना है, समता और सामाजिक न्याय, समान अवसरों और आर्थिक संपन्नता के उनके अधिकारों की चिंता है? उसके प्रति समर्थन है? देवभूमि और पवित्र तीर्थ स्थलों,चारो धामों, पवित्र नदियों पर कारपोरेट कब्जा के खिलाफ वे कब बोले?वास्तव में वे रामरथी नही, बल्कि जनसंहार और बेदखली के शिकार इस अनंत वधस्थल पर जारी अश्वमेध अभियान के ही वे रथी महाऱथी है। बहुसंख्य आम जनता के हक हकूक के खिलाफ आर्थिक सुधारों का हिंदुत्व राष्ट्रवादियों ने कब विरोध किया, बताइये! विकास का हिंदुत्व माडल पर क्या कारपोरेट वर्चस्व नहीं है और क्या इस माडल की कारपोरेट मार्केटिंग नहीं हो रही है,जिसे विश्व व्यवस्था और कारपोरेट साम्राज्यवाद का बिना शर्त समर्थन हासिल है?
इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भारत के स्वतंत्रता संग्राम में पूर्वी बंगाल के स्वतंत्रता सेनानियों की मार्मिक याद दिलाते हुए शरणार्थी नेता सुबोध विश्वास नेसवाल खड़े किये कि पाकिस्तान से आये हिंदू शरणार्थियों पर बहस हो सकती है तो क्यों नहीं पूर्वी बंगाल के विभाजन पीड़ित शरणार्थियों को लेकर कोई सुगबुगाहट है।इस आोजन का कारपोरेट मीडिया में क्या कवरेज हु, हमें नहीं मालूम। सभी कोलकातिया अखबारों के दफ्तर नई दिल्ली में मौजूद हैं और इस कार्यक्रम में करीब करीब सभी राज्यों से प्रतिनिथधि मौजूद थे , जो बोले भी,पर कोलकाता में किसी को कानोंकान खबर नहीं है। हम अपनी ओर से अंग्रेजी और हिंदी को छोड़ बांग्ला में भारत में शरणार्थियों काहालत और बांग्लादेस के ताजा से ताजा अपडेट दे रहे हैं, पर यहां के नागरिक समाज में कोई प्रतिक्रिया , कोई सूचना नहीं है। आम जनता तो सूचना ब्लैक आउट के शिकार हैं ही। बहरहाल शहबागग आंदोलन के प्रति समर्थन जताया जा रहा है, वहां अल्पसंख्यक उत्पीड़न रोकने के लिए आवाज उठाये बिना। उधर जमायते है तो इधर भी जमायत है और इसी के साथ वोट बैंक हैं। राजनीति के कारोबारी जाहिर है कि मुंह नहीं खोलने वाले। लेकिन अराजनीति वाले कहां हैं? उनकी हालत तो एक मशहूर पत्रकार नारीवादी धर्मनिरपेक्ष आइकन की जैसी हो गयी है जो गुजरात के नरसंहार के विरुद्ध निरंतर लड़ने वाले लोगों के विरुद्ध नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश का आरोप लगा रही हैं या फिर बहुजन आंदोलन के उन मसीहाओं की तरह जो मोदी केप्रधानमंत्रित्व के लिए यज्ञ महायज्ञ में सामाजिक बदलाव और आजादी के आंदोलन को निष्णात करने में लगे हुए हैं।जिस वैकल्पक मीडिया के लिे हमने ौर हनमारे अग्रज साथियों ने पूरा जीवन लगा दिया , वहां भी हिंदुत्व का वर्चस्व है। `हस्तक्षेप' को छोड़कर सोशल मीडिया में हर कहीं इस मामले में चुप्पी है।
बांग्लादेश में ब्राह्मणवादविरोधी दो सौ साल पुराना मतुा आंदोलनका दो सौ साल से निरंतर चला आ रहा बारुणि उत्सव बंद हो गया है और मौजूदा हालात में न वहां इस साल कोई तीज त्योहार और न ही दुर्गापूदजा मनाने की हालत में हैं एक करोड़ हिंदू।इसतरह हमले जारी रहे तो वे तसलिमा के लज्जा उपन्यास के ायक की तरह एक न एकदिन भारत आने को मजबूर हो जायेंगे। जिस शरणार्थी समस्या के कारण भारतीय सेना को बांग्लादेस मुक्ति संग्राम में दखलदेना पड़ा, वह फिर मुंह बांए खड़ी है। क्या भारतीय राजनय के लिए यह चिंता की बात नहीं है। और हिंदुत्व के ध्वजावाहकों के लिए लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के स्वयंभू रथि महारथियों के लिए!
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