Sunday, April 21, 2013

बंगाल के लिए भारी पड़ा सुदीप्त नाम​!

बंगाल के लिए भारी पड़ा सुदीप्त नाम​!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​

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​पुलिस हिरासत में एसएफआई नेता सुदीप्त मित्र की दुर्भाग्यजनक मौत के बाद फिर सुदीप्त सेन के नाम से बंगाल में कहर बरपा हुआ है। बंगाल एक भयानक चक्रवाती तूफान में फंस गया है। यहां अब हर कालबैशाखी समुद्री तूफान का आकार ले रहा है।कब सुनामी आ जाये , सुंदरवन के वजूद के बावजूद इसका कोई ठिकाना नहीं है। वर्टिकली राजनीतिक परिचय में दोफाड़  बंगाल के ​​लिए इस अप्राकृतिक मानवनिर्मित आपदा से बच निकलने का फिलहाल कोई रास्ता नहीं दीख रहा है।पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से कहा गया है कि शारदा ग्रुप के मामले में हम कुछ नहीं कर सकते। फर्जी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने का काम सेबी, रिजर्व बैंक और कंपनी मामले के मंत्रालय का है। सनद रहे कि केन्द्र सरकार की ओर से कहा जाता है कि कार्रवाई राज्य सरकारों को करनी चाहिए।अब कहा जा रहा है कि चिटफंड मामले में ममता दीदी कार्रवाई कर रही हैं और  सुदीप्त सेनी की गिरफ्तारी के लिए लुक आउट नोटिस भी जारी किया गया है। लेकिन इससे पहले पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से कहा गया  कि श्रद्धा ग्रुप के मामले में हम कुछ नहीं कर सकते। फर्जी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने का काम सेबी, रिजर्व बैंक और कंपनी मामले के मंत्रालय का है। सनद रहे कि केन्द्र सरकार की ओर से कहा जाता है कि कार्रवाई राज्य सरकारों को करनी चाहिए।तृणमूल कांग्रेस के सांसद सौगत रॉय ने कहा कि राज्य सरकार इस मुद्दे पर बहुत ज्यादा कुछ नहीं कर सकती है। उन्होंने कहा, 'हम इस मसले पर बहुत ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। इस तरह की कंपनियों के खिलाफ बाजार नियामक सेबी, रिजर्व बैंक और कंपनी मामलों के मंत्रालय को कार्रवाई करनी चाहिए। रॉय ने कहा कि इसके लिए पर्याप्त कानून हैं और नियामकों को राज्य से उम्मीद करने के बजाय इस मसले का हल निकालने के लिए संयुक्त रूप से प्रयास करने चाहिए।फरार चल रहे सेन की गिरफ्तारी पर चटर्जी ने कहा कि इस पर विचार चल रहा है, लेकिन अभी तक कोई आदेश जारी नहीं किया गया है। सेबी ने सामूहिक निवेश योजनाओं पर कठोरता बरतनी शुरू कर दी है। मई 2012 में उसने कोलकाता की एक कंपनी के खिलाफ आदेश जारी किया था और उसे आम निवेशकों से पैसा नहीं जुटाने के निर्देश दिए थे। दिसंबर 2012 में सेबी ने एक अन्य आदेश में पैसा जुटाना जारी रखने के लिए कंपनी के खिलाफ मुकदमा चलाने का इरादा जाहिर किया था। 10 अप्रैल को सेबी ने पश्चिम बंगाल की एक कंपनी द्वारा जारी की गई आलू बॉन्ड जैसी योजनाओं से निवेशकों को सावधान करने के लिए एक अन्य आदेश जारी किया था।


एसएफआई के प्रदर्शन के बाद घटनाक्रम ​​तेजी से मुड़ा और सुदीप्त की मौत के विरोध में दिल्ली में योजना भवन के सामने बंगाल के वित्तमंत्री अमित मित्र से बदसलूकी हो गयी। आरोप है कि प्रदर्शनकारियों ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी नहीं बख्शा। अस्वस्थ ममता बंगाल लौट आय़ी ।गुस्साई ममता बनर्जी ने योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया पर अपना रोष उतारते हुए घटना को षड्यंत्र बताया।दीदी प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री से मिले बिना कोलकाता चली आयी और अपनी पार्टी को बेलगाम छोढ़ दिया। घटना के तत्काल बाद तृणमूल कांग्रेस समर्थकों ने कोलकाता सहित राज्य के कई हिस्सों में माकपा कार्यालयों और नेताओं को निशाना बनाना शुरू कर दिया।लोकसभा में तृणमूल के नेता सुदीप बंदोपाध्याय ने घटना के लिए सीधे-सीधे माकपा नेता प्रकाश करात और सीताराम येचुरी पर आरोप जड़ दिया। उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले दोनों नेताओं ने बंग भवन का घेराव किया था। अब पर्दे के पीछे खड़े होकर ऐसी घटना करा रहे हैं।वाममोर्चा चेयरमैन विमान बसु ने दिल्ली में एसएफआइ [स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया] समर्थकों की ओर से बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा का विरोध जताए जाने की निंदा की। बसु ने कहा कि इस प्रकार के विरोध के तरीके की राजनीति वाममोर्चा नहीं करती है।


मुख्यमंत्री दिल्ली गयी थीं तब, जब राज्य में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी यहां गुजराती विकास माडल का प्रदर्शन करके निवेशकों को नैनो के बाद एकबार फिर गुजरात ले जा रहे थे। दीदी राज्य की बेहाल​ ​ आर्थिक हालत सुधारने के लिए केंद्र से मदद मांगने गयी थीं। द्रमुक के केंद्र सरकार से समर्थन वापस लेने की स्थिति में दिल्ली में उनके पक्ष में माहौल बन ही रहा था।पंचायत चुनाव को लेकर अदालती विवादों के मध्य कांग्रेस की ओर से उन्हें फिर मनाने का कार्यक्रम था। पर सुदीप्त की मृत्यु के खिलाफ उग्र प्रदर्शन से नाराज दीदी ने एक झटके से यह संवाद तोड़ दिया। नतीजा क्या हुआ?


नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व का विरोद करते हुए बिहार के लिए बारह हजार करोड़ का पैकेज ले गये। ओड़ीशा के नवीन पटनायक भी अपने राज्य के लिए केंद्रीय मदद लेने में कामयाब हो गये। उत्तर प्रदेश को तो पहले ही मदद मिल चुकी है। अब दीदी फेसबुक के पन्ने रंग करके बंगाल के ​​खिलाफ केंद्र के सौतेला बर्ताव की शिकायत करती नजर आ रही है। वे चुनाव आयोग से भिड़ गयी हैं कि राज्य में कानून व्यवस्था की हालत देश में अव्वल है , लिहाजा राज्य में पंचायत चुनाव के दरम्यान केंद्रीय वाहिनी की जरुरत नहीं है।


दिल्ली में दीदी पर हुए कथित हमले की खबर पैलते ही राजनीतिक ​​उन्माद में माकपा के कार्यालयों पर जो हमले हुए, जिसतरह आगजनी की वारदातें हुईं, उससे राजनीतिक हिंसा का माहौल बुरी तरह बिगड़ गया और हाईकोर्ट में चुनाव आयोग ने इसका हवाला भी दिया।फिर प्रेसीडेंसी कालेज में हमला हो गया।


इस राजनीतिक ध्रूवीकरण से राज्य में वित्तीय प्रबंधन भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है। राजनीति के कारण जहां उद्योग नीति, भूमि नीति जैसे नीति निर्धारण के अनिवार्य काम लटके पड़े हैं,उसीतरह राजनीतिक संरक्षण से सालाना १५ हजार करोड़ के चिटफंड कारोबार पर कोई अंकुश लग नही पाया। नतीजतन, पहले से राजनीति तनाव के उग्रतम माहौल में श्रद्धा समूह के भंडाफोड़ से सुदीप्त सेन का नाम राज्य सरकार और बंगाल के लिए दानवीय हो गया है। राज्यभर में राजनीतिक मुद्दों पर प्रदर्शन और हिंसा का सिलसिला चल ही रहा था कि अब फिर नये सिरे से राज्यभर में चिटफंड कंपनियों की धोखाधड़ी के शिकार लोग सड़कों पर उतर आये हैं। बेरोजगारी के आलम में जो लोग इन कंपनियों के हक में लाखों करोड़ों का कारोबार कर रहे थे, वे अब अपना जान माल बचाने के फेर में हैं, वे भी पीड़ित जनता की कतार में शामिल हो गये हैं और चिटफंड के पीछे मंत्रियों, सांसदों , नगरपालिका प्रधानों, अन्य नेताओं के नाम चीख चीखकर पुकार रहे हैं।​


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​एक अनंत भूलभूलैय्या में फंसी है मां माटी मानुष की सरकार।जो जयराम रमेश हर संभव मदद के लिए पैरों पर खड़े थे, कमलनाथ दीदी कहते हुए अघा नहीं रहे थे, प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी की ओर से  हरसंभव दीदी को खुश रखने की जो हिदायतें थीं, सबकुछ बदल गया है,। जयराम रमेश कानून का हवाला दे रहे हैं कि स्थानीय निकायों का चुनाव नहीं हुा तो सामाजिक योजनाओं में केंद्रीय अनुदान बंद हो जायेगा। पहले से बदहाल राज्य में अगर ऐसा हुआ तो ग्रामीण रोजगार बंद होने की हालत में स्थिति कितनी विस्फोटक होगी, अंदाजा लगाया जाना बाकी है, शारदा और सुदीप्त का अनुकरण करते हुए क्योंकि दीदी भी मजबूरन चिटफंड पर देर सवेर कार्रवाई करेंगी ही, बाकी चिटफंड कंपनियां कारोबार समेट कर गायब होने लगे तो हर कोने में खड़ा सुदीप्त वनजर आयेगा और धरा का धरा रह जायेगा लुक आउट नोटिस। राजनीतिक जो प्रतिद्वंद्वी धूल चाटते नजर आ रहे हैं, वे भी पूरी संगठनात्मक शक्ति के साथ जनता को सड़कों पर गोलबंद करने लगेंगे तो दोनों सुदीप्त के आगे सरकार और प्रशासन को बेबस ही नजर आना है।पूर्ववर्ती सरकार पर दोषारोपण करके चिटफंड कंपनियों को मौजूदा राजनीतिक संरक्षण के आरोप को इस विस्फोटक हालत में कारिज करना मुश्किल है। खासकर ऐसे समूहों द्वारा संचालित अखबार और टीवी चैनल तक बंद होने लगे हैं, जिनके उद्घाटन में मुख्यमंत्री समेत सत्तादल के तमाम बड़े नाम थे।वर्ष 2010 में वैश्विक स्तर पर छाई मंदी के दौरान जब पूरे देश का मीडिया संकट से जूझ रहा था, तब पश्चिम बंगाल के मीडिया में अचानक तेजी देखने को मिली थी। राज्य के मीडिया जगत में अब तक अनजान शारदा समूह अचानक नई ऊंचाई छू रहा था। समूह ने एक के बाद एक कुल 10 मीडिया संस्थान अपने नाम कर लिए। समूह ने चैनल 10 (अब राइस समूह), बंगाल पोस्ट, सकालबेला, आजाद हिंद, प्रभात वार्ता, परमा और सेवन सिस्टर्स पोस्ट शुरू करके मंदी की गिरफ्त में फंसे मीडिया बाजार में तेजी ला दी थी।कलम का उद्गाटन तो खुद ममता बनर्जी ने किया।हकीकत यह है कि राज्य में बड़ी संख्या में बंगाली चैनलों को चिटफंड कंपनियों के माध्यम से ही पैसा मिला है। इस पूंजी पर लगी नियामकीय बाधाओं के चलते अब इन मीडिया संस्थानों का परिचालन बाधित हुआ है। राज्य के उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा कि भले ही दोषियों को पकडऩे के प्रयास जारी हैं, लेकिन एक बिंदु के बाद राज्य सरकार कुछ खास नहीं कर सकती। उन्होंने कहा, 'हम सेबी और रिजर्व के नियमों के मद्देनजर इस तरह की कंपनियों पर गौर करेंगे। अगर अनियमितताएं पाई जाती हैं तो हम कार्रवाई करेंगे लेकिन हम जल्दबाजी में कोई गिरफ्तारी नहीं कर सकते।




कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस सरकार पर गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी श्रद्धा ग्रुप को बचाने का आरोप लगाया। डूबने के कगार पर पहुंची कंपनी जमाकर्ताओं को पैसा नहीं दे पा रही है और जमाकर्ता अपने पैसे की मांग करते हुए सड़कों उतर आए हैं।


प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप भट्टाचार्य ने कहा कि केंद्र ने चिटफंड के मुद्दे पर राज्य को आगाह किया था। उन्होंने कहा, 'दुर्भाग्य से राज्य सरकार ने कदम नहीं उठाया क्योंकि सत्तारूढ़ दल से जुड़े कुछ लोगों का इस ग्रुप के साथ गहरा संबंध है। उन्होंने कहा, 'यदि राज्य सरकार ने कदम उठाया होता हो तो इतने सारे लोग प्रभावित नहीं होते।' केंद्रीय मंत्री दीपा दासमुंशी ने कहा, 'यह नहीं कहा जा सकता कि राज्य सरकार को चिटफंड के बारे में मालूम नहीं था। वह किसे बचा रही है? उसे सफाई देनी होगी।'


चिटफंड के खिलाफ अपनी आवाज मुखर करने वाले तृणमूल कांग्रेस सांसद सोमेन मित्रा ने कहा, 'मैंने राज्य में चिटफंड के कुकुरमुत्ते की तरह उगने के बारे में पहले ही प्रधानमंत्री को लिखा था। जिन लोगों ने इन चिटफंड में धन निवेश किया है वे गरीब लोग हैं। उन पर बहुत बुरा असर पड़ा है।'


राज्य के परिवहन व खेल मंत्री मदन मित्रा खुद आरोपों के गेरे में हैं और वहीं कह रहे हैं कि  राज्य में आम जनता से रुपया ठगनेवालों के खिलाफ राज्य सरकार कड़ी कार्रवाई करेगी। आम जनता को पैसा दिलवाने के लिए भी कदम उठाया जाएगा। उक्त बातें मदन मित्रा ने राजबांध में राहुल फाउंडेशन में कार्यक्रम में हिस्सा लेने के बाद पत्रकारों से कही।न्होंने कहा कि राज्य सरकार लोगों के साथ ठगी करनेवाले संस्थाओं के खिलाफ कार्रवाई करने की योजना बना रही है। मुख्यमंत्री आम जनता के हित के लिए कदम उठाएंगी।


बताया जा रहा है कि दीदी चिटफंड कंपनियों की अनियमितताओं की जांच के लिए आयोग का गठन करने वाली है। पर मामला इतनी आसानी से दबने वाला नहीं है।आर्थिक तौर पर पूरी तरह लुट चुके लोग, जो कि आत्महत्या तक करने की नौबत तक पहुंच गये हैं, सिर्फ जांच पड़ताल तहकीकात से संतुष्ट​ ​नही होने वाले। सुदीप्त गिरफ्तार भी हो, तोबी शायद कोई पर फर्क पड़े, लोगों को इस संकट से निकलने के उपाय करने होंगे। बेरोजगारी खत्म करने के कारगर उपाय करने होंगे ताकि इतने वायपक पैमाने पर लोग ऐसे अवैध धंधे में शरीक न हो। अल्प संचय प्रणाली को पुनर्जीवित करना होगा ताकि लोगों को वैध निवेश जोखिमविहीन लगे। सबसे ज्यादा जरुरी है राजनीतिक तनाव और हिंसा के माहौल को खतम करना। जब तक ऐसा नहीं होता, न तो स्थानीय निकायों का चुनाव संभव है, न सरकारी कामकाज और न ही आर्थिक प्रबंधन और न औद्योगिक विकास, कारोबार और निवेश के लिए अनुकूल माहौल। सबसे खतरनाक बात तो यह है कि विपुल जनादेश के साथ सत्ता में आयी सरकार बड़ी तेजी से जनता की आस्था खोने लगी है। यह अनास्था समस्याओं को और जटिल बनायेगी, सुलझायेगी नहीं।




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