बेरोजगारी के आलम में बीएड प्रशिक्षण पर संकट के बादल, मदहोश शिक्षा महकमे के लोग।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
बंगाल में बेरोजगारी का आलम तो पिछले दिनों प्राथमिक शिक्षकों के ३५ सौ पदों के लिए अदालती विवादों के मध्य हुई परीक्षा में शामिल ४५ लाख युवाओं की दुर्गति से नंगा हो ही गया है। नई सरकार और परिवर्तन के साल पूरे होने चले। उद्योग कारोबार की कोई दशा नहीं बिनी। नीति निर्धारण में सरकारी विकलांगता का खामियाजा भुगत रहा है युवा भविष्य और वर्तमान। अब छिट फंड को लेकर मचे कोहराम से यह भी उजागर हो गया है कि कितने बड़े व्यापक परिमाण में फर्जी कंपनियों के लिए एजंट कर्मचारी होकर अपना सबकुछ दांव पर लगाया हुआ है। निश्चित नौकरी के लिए अब भी बीएड प्रशिक्षण की प्रासंगिकता बनी हुई है। तकनीकी पेशेवर प्रशिक्षण में लाखों खर्च करके दिवालिया होने वाले युवाओं को नौकरी के नाम पर अस्थाई चौबीसों घंटे का काम दो चार छह महीने या दो चार साल के लिए माहवार दो से दस हजार की दर पर मिलता है। पर बीएड प्रशिक्षण प्राप्त होने पर आजीवन स्थाई नौकरी की उम्मीद बनी रहती है। वर्षों से प्रशिक्षित नौकरी की कतार में खड़े हैं। हजारों शिक्षकों के पद खाली है। धीरे धीरे नियुक्तियां होती हैं। पर कम ही सही होती है और पक्के तौर पर होती है। यह क्षेत्र राज्य पर पसरे सुरसामुखी बेरोजगारी के आलम में शिक्षित युवाओं के लिए किसी मरुद्दान से कम नहीं है। पर हालत यह है कि उसकी हालत नाजुक है। बीएड प्रशिक्षण की पूरी व्यवस्था पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं और शिक्षा महकमे से जुड़े तमाम लोग होशोहवास में नहीं है।
उच्चशिक्षा सचिव विवेक कुमार हालांकि यह दावा करते नहीं भूलते कि राज्य के १८४ कालेजों और १७ डायट में बीएड प्रशिक्षण व्यवस्था का इंतजाम है। इसके अलावा राज्य के प्राथमिक व माध्यमिक स्तर पर अप्रशिक्षित साढ़े उनतीस हजार शिक्षक शिक्षिकाओं को दूरशिक्षा के माध्यम से इसी साल जुलाई महीने से ही प्रशिक्षित किया जा रहा है।लेकिन विवेक कुमार की ही स्वीकारोक्ति है कि जिलावार परिस्थिति एक सी नहीं है। हर जिले में यथेष्ट कालेज न होने के काऱम और किसी किसी जिले में जरुरत से ज्यादा कालेज होने के कारण बीएच प्रशिक्षण के लिए युवाओं को कई कई जिलापार बाधादौड़ पार करनी होगी।विवेक जी को साफगोई के लिए धन्यवाद पर हमने तो देखा है कि टेट परीज्क्षा के दौरान इस बाधा दौड़ का अंजाम क्या हुआ है।अतिरिक्त सचिव मधुमिता राय के मुताबिक ढांचागत असुविधाओं तो रहेंगी। मौजूदा ढांचे के अंतर्गत एकसाथ बड़े पैमाने पर बीएड प्रशिक्षण देने में दिक्कतें तो होंगी ही।
बल्कि उनकी राय है कि इस सिलसिले में राज्य के विश्वविद्यालयों से पहल हो तो शायद बात बने। हमारी शंका तो यह है कि राजनीतिक तौर पर बंधक बने हुए विश्वविद्यालयों से युवाहित में ऐसे किसी कदम की हम तो खैर परिवर्तन राज में भी उम्मीद नहीं कर सकते।
आलू के लिए तरस सकते हैं लोग!अरुप बाबू ने आखिर आलू मार्ग खोज लिया!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
जिन्हें मधुमेह नहीं है और जिनका आलू के बिना रसोई का कामकाज बेकार लगता है, उनके लिए बहुत बुरी खबर है।इस बार आलू की कीमतें आसमान छू सकती हैं। प्याज का काम ही है रुलाना। बाहर से आपूर्ति ठप हुई तो बाजार में प्याज को हाथ लगाने का मतलब है करंट को छूना। वहीं हाल अब आलू का होने जा रहा है। वैसे आलू उत्पादन में बंगाल आत्मनिर्भर है। शीतघरों की मेहरबानी से सड़ा बासी जैसा भी हो हर मौसम आलू से गृहिणी की मुस्कान खिली रह सकती है।ये शीतघर भी राजनीतिक चंदाखोरी का बहुत बड़ा जरिया है। लाखों की दर से वहां से वसूली होती है। आम उपभोक्ताओं की जेबकटी की खास वजह यह है।बिजली कटौती का आम जनजीवन के साथ साथ उद्योग धंधों पर और शीतगृहों पर भी असर पड़ रहा है। बिजली कटौती के कारण शीतगृहों में भंडारित आलू के अंकुरित होने के आसार बढ़ गए हैं।देश के कई इलाकों में हुई बेमौसम बारिश से आलू की पैदावार पर असर पड़ने की आशंका है। वहीं कोल्ड स्टोरेज की लागत बढ़ने से आने वाले दिनों में आलू की कीमतें और बढ़ सकती हैं। प्याज तो निर्यात की वजह से महंगा होता है। लेकिन आलू अब तक विदेशी कारोबार से बचा हुआ है और गनीमत है कि विदेशी मुद्रा के भाव से आलू खरीदना नहीं पड़ता। लेकिन अब खबर है कि पंजाब को आलू भेजा जा रहा है जहां से हम चावल और आटा दोनों मंगाते हैं। वहां से यहां पहुंचते पहुंचते चावल आटे का बाजार दर कैसे आसमान चूमता है बारह महीने ,खाने पीने वाले लोग मसलन बीपीएल के सड़े गले अनाज से जिनका पेट नहीं भरता, वे इसे अच्छी तरह जानते हैं। इस हिसाब से बहिर्मुखी आलू के नखरे तेज हो जाये तो आप क्या करेंगे , सोच लीजिये!
गौरतलब है कि आलू एक सब्जी है। वनस्पति विज्ञान की दृष्टि से यह एक तना है। इसकी उद्गम स्थान दक्षिण अमेरिका का पेरू (संदर्भ) है । यह गेहूं, धान तथा मक्का के बाद सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली फसल है।आलू से अनेक खाद्य सामग्री बनती है जैसे वड़ापाव, चाट, आलू भरी कचौड़ी, चिप्स, पापड़, फ्रेंचफ्राइस, समोसा, टिक्की, चोखा, आदि। आलू को अन्य सब्जियों के साथ मिला कर तरह-तरह कि पकवान बनाये जाते हैं।
वैसे पश्चिम बंगाल में इस साल आलू की बंपर फसल हुई है। लेकिन यहां का ज्यादातर आलू देश के पूर्वी राज्यों में ही खप जाता है। जबकि उत्तर प्रदेश और पंजाब से दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े महानगरों को भी आलू की सप्लाई होती है। ऐसे में महंगे आलू की वजह से आने वाले दिनों में सब्जी खानी महंगी पड़ सकती है।अब हाल यह है कि पंजाब को बंगाल से आलू मंगाना पड़ रहा है।
राज्य के कृषि विपणन मंत्री अरुप राय मंत्रित्व की बजाय पार्टी के कामकाज के लिए बेहतर परिचित है। आखिर आलू राज्य से बाहर भेजकर उन्होंने अपनी कर्मठता का परिचय दे ही दिया।उन्होंने बड़े गर्व से कहा है कि पंजाब को बंगाल से दो हजार चन आलू भेजा गया है।अगले हफ्ते और दो हजार टन आलू इस हफ्ते भेजा जा रहा है। यानी पंजाब और पंजाबियों को बताने का वक्त आ गया है कि ज्यादा मस्ती न करें क्योंकि उनके पेट में बंगाली आलू है। रणवीर कपूर भी अपने पेप्सी विज्ञापन में पंजाबी मुंडे को डांट सकते हैं कि अकड़ते क्यों हो, बंगाल का आलू जो खाते हो!
अरुप बाबू का हालांकि दावा है कि इससे राज्य में तरह तरह के संकटों के अलावा अब कोई आलू संकट नहीं होने वाला।उनके मुताबिक राज्य में इस महीने एक करोड़ टन आलू का उत्पादन हुआ है जो पिछले साल के मुकाबले चार लाख टन ज्यादा है। आपको मालूम पड़ा क्या? आलू का बादजार भाव तो गिरना चाहिए कि नहीं?मंत्री का तर्क है कि राज्य में सालाना साठ लाख टन आलू की खपत होती है। चालीस लाक टन जो ज्यादा उत्पादन हुआ है , उसे बाहर खपाया जा रहा है। चलिये, कारोबार में पिछड़े बंगाल के लिए अरुप बाबू ने आखिर आलू मार्ग खोज लिया।अरुप बाबू ने हालांकि चेता दिया है कि आलू का उत्पादन जरुर बढ़ा है , पर आलू की कामते घटेंगी नहीं। क्योकि आलू को मौजूदा बाजार दर से कम कीमत में बेचने पर किसानों का सर्वनाश हो जायेगा। जाहिर है कि सरकार को किसानों की भी परवाह है।
मालूम हो कि गर्मी का सीजन शुरू होने के साथ ही आलू का दाम भी गरमाने लगा है। सब्जी में बेताज बादशाह आलू के दामों के मामले में दिन प्रतिदिन नखरे बढ़ते जा रहे है। मार्च के अंत में देश भर की मंडियों में आलू की कीमतें करीब 200 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़ चुकी हैं। उत्तर भारत में हुई बेमौसम बारिश से आने वाले दिनों में आलू की कीमतें और भड़क सकती हैं। फिलहाल ज्यादातर आलू खेतों से सीधे कोल्ड स्टोरों मे जा रहा है। पंजाब के कोल्ड स्टोर करीब 70 फीसदी तक भर गए हैं। उत्तर प्रदेश में भी करीब 60 फीसदी तक आलू स्टोरों तक पहुंच गया है। कारोबारियों की दलील है कि स्टोरों की लागत बढ़ने से आगे आलू की कीमतें और बढ़ सकती हैं।दरअसल उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में बिजली की दरें काफी बढ़ गई हैं, इस वजह से कोल्ड स्टोरों को भी अपनी दरें बढ़ानी पड़ी हैं। पीक सीजन के दौरान पंजाब की मंडियों में इस समय करीब 600 रुपये क्विंटल आलू बिक रहा है, जबकि खुदरा में आलू 10-15 रुपये किलो है। आने वाले महीनों में जब कोल्ड स्टोरों से आवक शुरू होगी, तब आलू के दाम में और तेजी आना तय है।मार्जिन से बेपरवाह आलू के वायदा भाव पर तेजी सवार है। 15 फीसदी मार्जिन के बाद यह करीब 12 फीसदी महंगा हुआ है। महीने भर में भाव करीब 34 फीसदी चढ़ चुके हैं। कीमतों में तेजी को देखते हुए नेशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) में आलू वायदा अनुबंधों में शुरुआत से ही 35 फीसदी मार्जिन रखा गया है। वायदा की चाल पर हाजिर बाजार में भी आलू महंगा हुआ है। जानकारों के मुताबिक अब तक मौसम ज्यादा गर्म न होने से खेतों में रखे आलू के खराब होने का डर नही है। इसलिए किसान मंडियों में आराम से आलू ला रहे हैं जिससे से कीमतों में तेजी का रुख है।अब तक गर्मी ज्यादा नही पड़ी है। मौजूदा मौसम में आलू को खेतों में रखने पर नुकसान नही है। इसलिए किसान मंडियों में हड़बड़ी में आलू नहीं ला रहे हैं। लिहाजा बीते दो सप्ताह में आलू 80-100 रुपये महंगा होकर 600-900 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है।एनसीडीएक्स में आलू के अप्रैल, मई, जून अनुबंधों का कारोबार शुरू हुआ है। एमसीएक्स में तेजी को देखते हुए इन अनुबंधों पर शुरू से ही 35 फीसदी का मार्जिन रखा गया।
पिछले साल 16 दिसंबर की रात 23 साल की मेडिकल स्टूडेंट से बर्बर गैंग रेप के बाद पूरा मुल्क आहत था। गौरतलब है कि इस रेप के बाद पीड़िता की मौत हो गई थी। उस बहादुर बेटी के माता-पिता को प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने एनडीटीवी की तरफ से 'डॉटर ऑफ इंडिया' अवार्ड से नवाजा। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सामने उस मां की आंखों से आंसू बहते रहे। उस मां ने प्रधानमंत्री के सामने हाथ जोड़कर कहा, 'जो मेरी बेटी के साथ हुआ वह किसी और बेटी के साथ हर हाल में नहीं होना चाहिए।'
आलू खाकर बेटी को पढ़ाया
उस लड़की के पिता ने टूटे स्वर में कहा कि हम बेटी को मेडिकल की शिक्षा देने की स्थिति में नहीं थे। लेकिन मेरी बहादुर बेटी भी पढ़ाई को लेकर हमेशा ऊर्जा से भरी रहती थी। उसने मुझसे कई बार कहा था, 'पापा जो पैसे मेरी शादी में लगाएंगे उसी पैसे से मुझे पढ़ा दीजिए। हमारे पड़ोसी और परिवार वाले भी कहते थे कि जल्दी से बेटी की शादी कर दो पढ़ाई के चक्कर में मत पड़ो। बेटी परायी संपत्ति होती है। जितने पैसे उसे पढ़ाने में खर्च करोगो उतने में तो उसकी शादी हो जाएगी। लेकिन हम बेटी के कोमल सपनों को तोड़ना नहीं चाहते थे। हमने महीनों आलू खाकर खुद को जिंदा रखा। अपने दोनों छोटे बेटों को भी आलू खिलाकर महीनों रखा। तब जाकर बेटी के उस मुकाम तक पहुंचाया था। लेकिन होना तो कुछ और ही था। इतना कहकर वह भी रोने लगते हैं। पूरे समारोह में गम का सन्नाटा पसर जाता है।
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