Wednesday, 17 April 2013 09:50 |
अख़लाक़ अहमद उस्मानी जब भारत के लोग 1919 में महात्मा गांधी समर्थित और मौलाना महमूद हसन, मौलाना मुहम्मद अली जौहर, मौलाना हसरत मोहानी, मौलाना अबुल कलाम आजाद समेत कई मुसलिम नेताओं की अगुआई में हिजाज यानी मक्का और मदीना के पवित्र स्थल ब्रिटेन के हाथों में जाने के डर से खिलाफत आंदोलन चला रहे थे, अब्दुल अजीज इब्न सऊद ब्रिटेन के साथ मिल कर उस्मानिया खिलाफत और स्थानीय कबीलों को मार भगाने के लिए लड़ रहा था। अंग्रेजों के दिए हथियार और आर्थिक मदद से अब्दुल अजीज इब्न सऊद ने वर्तमान सऊदी अरब की स्थापना की और वर्षों से 'वक्फ' यानी 'धर्मार्थ समर्पित सार्वजनिक स्थल' वाले मक्का और मदीना के संयुक्त नाम 'हिजाज' को भी 'सऊदी अरब' कर दिया गया। इस्लाम के पांच फर्जों में अंतिम लेकिन अनिवार्य, हज के लिए श्रद्धालुओं को मक्का और मदीना आना ही होता है। कल तक हिजाज में पूरी इस्लामी बिरादरी की सहमति से कानून चलता था, अब उस पर सऊद और इब्न अब्दुल वहाब के 'अलशेख' परिवार का कब्जा हो चुका था। बाद में 'इख्वान' यानी भाई का झूठा नाम देकर साथ लाए गए बद््दु कबीलों को भी सऊद परिवार ने 1930 के सबीला युद्ध में मार भगाया। 1938 में पेट्रोलियम मिलने के साथ ही सऊदी अरब ऊर्जा क्षेत्र का सरताज बन गया। लेकिन लाख टके का सवाल यही है कि लाल सागर, अरब सागर, अदन और फारस की खाड़ी से घिरे वर्तमान सऊदी अरब की छाती में अब भी क्या दुनिया चलाने जितना तेल बचा है? सोकल, कासोक और कालटैक्स के बाद अमेरिका की मर्जर कंपनी अरेबियन अमेरिकन आॅयल कंपनी यानी 'आरामको' ने व्यवस्थित रूप से 1943 में सऊदी अरब में तेल उत्पादन का कार्य शुरू किया। सैकड़ों तेल कुओं वाले सऊदी अरब को तरल सोने की खान के रूप में 'घावर' तेल कुआं मिला, जो दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक कुआं है। सऊदी अरब पिछले साल नवंबर तक रोजाना 95 लाख बैरल कच्चा तेल उत्पादन करता था। पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन 'ओपेक' ने माना है कि सऊदी अरब ने तेल उत्पादन पांच लाख बैरल प्रतिदिन घटा दिया है। दो घटनाओं ने सऊदी अरब के वर्तमान तेल उत्पादन के दावे को लेकर दुनिया के कान खड़े कर दिए हैं। 2011 मेंविकीलीक्स ने एक खुलासा किया। सऊदी अरब सरकार के सौ फीसद स्वामित्व वाली सबसे बड़ी तेल कंपनी आरामको के पूर्व उपाध्यक्ष सादाद अल हुसैनी ने अमेरिकी राजदूत को बताया था कि सऊदी अरब जितना तेल रिजर्व का दावा करता है, लगता है वह उससे चालीस फीसद कम है। दूसरी घटना मैट सिमन्स की पुस्तक 'ट्विलाइट इन डेजर्ट' थी। सऊदी पेट्रोलियम इंजीनियर्स के सर्वे के आकलन की व्याख्या सिमन्स ने पेश करते हुए कहा था कि साल 2004 जितना तेल सऊदी अरब कभी उत्पादित नहीं कर पाएगा। पहले से सतर्क और शक्की मिजाज के अलसऊद परिवार ने 1982 में ही किसी भी बाहरी एजेंसी के साथ तेल संसाधन, उत्पादन और रिजर्व के तथ्यों को साझा करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। हर साल करीब पचीस लाख बाहरी लोग हज करने सऊदी अरब में आते हैं। हज, वर्ष में एक निश्चित समय यानी हिजरी कैलेंडर के आखिरी माह 'जिलहिज्ज' में ही होता है। जिलहिज्ज माह के अलावा बाकी ग्यारह महीनों में पवित्र शहर मक्का और मदीना की यात्रा करने पर उसे 'उमरा' कहा जाता है। हज और उमरा मिला कर साल भर में करीब 1 करोड़ 20 लाख लोग आते हैं। सऊदी अरब की शाही सरकार हज के अलावा बाकी ग्यारह महीने होटल और संसाधन विस्तार के लिए निर्माण कार्य चलाती रहती है ताकि हज उद्योग को 2025 तक 1 करोड़ 70 लाख हाजियों के योग्य बनाया जा सके। लेकिन इसकी कीमत बहुत बड़ी है। पहली तो यह कि मक्का और मदीना समेत कई शहरों में इस्लामी पुरातत्त्व को बेरहमी से ढहा दिया गया, और दूसरी, सादगी से किया जाने वाला हज लगातार महंगा होता जा रहा है। इस्लाम में पांच प्रमुख फर्ज में होने की वजह से हर आम और खास मुसलमान हज पर जाना चाहता है। लेकिन हज पर्यटन का जो खून सऊदी सरकार के मुंह लगा है वह काफी विकृत है। अमीर हाजियों के लिए मक्का में काबा के पास महंगे और लग्जरी होटल; और गरीब हाजियों को मक्का के बाहर छोटे और अस्तव्यस्त सराय में ठहरना होता है। क्यों सऊदी अरब की सरकार भारत समेत हर देश के हाजियों पर भारी-भरकम टैक्स लगाती है लेकिन अनगिनत सरकारी प्रतिनिधिमंडलों में मुफ्त का हज करने वाले हर देश के स्थापित मुसलिम नेताओं और अफसरों को खुश करने में लगी रहती है? http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/20-2009-09-11-07-46-16/42602-2013-04-17-04-21-09 |
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सऊदी का बुझता चिराग
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