Wednesday, April 17, 2013

Fwd: [बहुजनांचा भीमटोला] प्राचीन भारतीय इतिहास में "आर्य" नामक कोई भी वंश...



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From: Rajanand Meshram <notification+kr4marbae4mn@facebookmail.com>
Date: 2013/4/17
Subject: [बहुजनांचा भीमटोला] प्राचीन भारतीय इतिहास में "आर्य" नामक कोई भी वंश...
To: बहुजनांचा भीमटोला <bhimtola@groups.facebook.com>


प्राचीन भारतीय इतिहास में "आर्य" नामक कोई भी...
Rajanand Meshram 8:10am Apr 17
प्राचीन भारतीय इतिहास में "आर्य" नामक कोई भी वंश नही हुआ
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आधुनिक संसार को काफी खतरनाक समस्याओं ने चपेट में लिया है, उसमे कुछ प्राकृतिक है तो कुछ मानव निर्मित. व्यक्ति ने पहले अपने समस्याओं को सुलझाने का कार्य किया और प्राकृतिक समस्याए बड़ते गयी. अभी मानव के पास दो प्रकार की समस्याए है. दोनों प्रकार के समस्याओं से निपटने के लिए उचित शक्ति की जरुरत होती है. एक दुसरे के सहयोग के बिना कोई वैश्विक समस्याए हल नही होगी. इसलिए वैज्ञानिक और सामाजिक विचारवंत सोच रहे है की कौनसी विचारधारा इस दोनों प्रकार के समस्याओं से राहत दे सकती? ज्यादातर देशों का बुद्ध की ओर रुख है. करीब डेड सौ देशों में बौद्ध फ़ैल चुके है. धर्मो का युग ख़त्म हो रहा और "धम्म" का युग आ रहा है. इव्होल्युशन यानि नैसर्गिक परिवर्तन और रिव्होलुशन यानि मानवी परिवर्तन, जिसे हम "क्रांति" कहते है. विश्व में सिन्धु सभ्यता भी एक महानतम् क्रांति रही है. उसके बाद विश्वव्यापी "धम्म" क्रांति का "जनतांत्रिक" दौर सुरु हुआ.

धम्मक्रांति को जानने के पहले सिन्धु सभ्यता और धम्म क्रांति के बिच का फासला भी ठीक से जानना जरुरी है. उसका सफ़र कैसे रहा? इस विषय पर आने से यह पता चलता है की, भारत में "हिन्दू धर्म" के पहले "सिन्धु सभ्यता" का दौर रहा, जिसके सबुत "हड़प्पा" और "मोहनजोदड़ो" शहरों के उत्खनन से साबित हुए है. वह प्राकृतिक आपदाओ में पूर्णतः लुप्त हुयी. बाद में सिन्धु नदी के तट पर विकसित हुए सभ्यता को "हिन्दू सभ्यता" कहा जाने लगा. हिन्दू सभ्यता ही हिन्दू धर्म है, जो वेदों को प्रमाण मानते है. तथा उसपर पर विश्वास करते है, वह हिन्दू है. भारत में वैदिक सभ्यता का विकास हुआ. करीब एक हजार साल तक उसका प्राचीन भारत पर असर रहा. वैदिक सभ्यता का मुख्य आधार यज्ञ पूजा रहा. जो ईश्वर को खुश करने के लिए की जाती थी. जिस घटना का कोई कारण पता नही होता उसे लोग भगवान की कृति समझते थे. ठीक उसी ढंग से प्राचीन काल के भारतीय जनता के दिमागों में खेल चालू था. जो श्रम करके अपनी उपजीविका करते थे उसे श्रमण कहा जाता था और जो श्रम करने से डरते थे, जो सिर्फ दिमागी कार्य ही करना चाहते थे, ऐसे आलसी लोगों को ब्रह्म (ज्ञानी) ब्राम्हण कहते थे.

भारतीय विख्यात इतिहास तज्ञ, नवल 'वियोगी' लिखते है, "पूर्व पाषाण युग के अंत में ईसा पूर्व- १०,००० के लगबग असभ्य मनुष्य के मस्तिष्क में विचित्र विकास हुआ और उसने नवीन पाषाण युग में प्रवेश किया....इसा पूर्व ६ सहस्त्राब्दी के मध्य में इसने कृषि करना सिखा...तथा उसी के साथ पशुपालन भी सुरु किया...मिट्टी के बरतन भी बनाने लगा...इसा पूर्व ५ वी सहस्त्राब्दी के लगबग ताम्ब्र युग का प्रारम्भ हुआ...सिन्धु सभ्यता भी इसी युग के परिवार की सभ्यताओ मे से एक है. इसी युग की तिन प्राचीनम सभ्यताओं में "दजला फरात" नदी के किनारे "मेसोपोटामिया", "नील के किनारे "मिश्र" तथा "सिन्धु नदी" के किनारे "हड़प्पा" ने जन्म लिया और खूब फली-फुली....मोहनजोदड़ो का शब्दार्थ ही "मुर्दों का टीला" है ...इसमें सबसे ऊँचा "स्तूप टीला" है. उसकी ऊंचाई ७० फुट है...सन १८५६ में मुल्तान-लाहोर रेल्वे लाईन १०० मील के हिस्से के निर्माण का काम करनेवाली अंग्रेज कंपनी के ठेकेदार "जेम्स विलियम वर्टन" ने ...सब से पहले यह पाया...की उपलब्ध वस्तुए १५००-२५०० इसा पूर्व की है." (सिन्धु-घाटी सभ्यता के सृजनकर्ता शुद्र और वणिक, सन- १९८५, भूमिका)

डॉ. भारत पाटणकर लिखते है, "इन्द्र इस ॠग्वेदीय नायक को "पुरम्दर" – शहरों को तोडनेवाला कहते है.... 'हरियुपिया' (हरप्पा) नगरी पर हल्ला करके उसे नष्ट करने का सबूत ॠग्वेद (६.२७.५) में (वधिदिन्द्रो वरशिखस्य शेषो अभ्यावर्तिने चायमानाय शिक्षन् | वृचिवतो युद्धरियूपीयांयोहन्पूर्व अर्धेभियसापरो दर्त ||) आया है.... जो सिन्धु सभ्यता के निर्माता थे, उनके शहरों को लुटा और उसे "दस्यु" (दास) कहा... "पनी", व्यापारी (वाणी) भी उनका नाम था. (हिन्दू की सिन्धु? सुगावा प्रकाशन, सन- १९९३).... डॉ. कुलकर्णी लिखते है, "ॠग्वेद में कुल १०२८ सूक्ते, उसे लगबग ३९० ॠषिओं ने लिखी. उसमे से कुछ सूक्ते महिलाओं ने भी लिखी है." (दैनिक लोकमत, नागपुर, २६ अप्रैल २००७) .... वेदों कृतियाँ के बारे में इतिहास तज्ञ, प्रा. मा. म. देशमुख लिखते है, "१९ वे शतक में लगबग २०० साल पहले ब्राह्मणों ने वेदों का गठन किया होगा." (बौद्ध धम्म आणि शिवधर्म, जुलाई- २००७, पृष्ट-७)

वैदिक धर्म का दूसरा नाम हिन्दू धर्म है. इस काल में समाज जितने वाले व्यक्ति या टोलियों को "आर्य" (श्रेष्ट) कहा जाता था. आर्य कौन थे? इसका साक्षात्कार सन १९४६ में, विश्व विख्यात प्रगाड़ विद्वान् डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने अपने "हूँ वेअर द शुद्राज?" संशोधन पर ग्रन्थ के '७ वे अध्याय' मे दिया है, "यह सिद्ध हो चूका है की, शुद्र अनार्य नही है. तो वे क्या थे? उसका उत्तर है १. शुद्र आर्य है. २. शुद्र क्षत्रिय है. ३. शूद्रों का स्थान क्षत्रियों मे उच्च था, क्योंकि प्राचीन काल मे कई तेजस्वी और बलशाली राजा शुद्र थे. यह मत इतना अनोखा है की इसे लोग मानने कों तयार न होंगे. अतेव, अब प्रमाणों की जाँच की जाए. प्रमाण महाभारत, शान्ति पर्व, (६०, ३८-४०) मे है."

निसर्ग निर्मित भूकंप, भूचाल मे जैसे हालत बस्तियों की होती है, उसी प्रकार जमींन की उथल-पुथल हुयी है. ठीक वैसे ही प्रकार का परिणाम खुदाई में पाया गया. खुद डॉ. बाबासाहब अम्बेडकरने भी स्वीकार किया है की सिंधु संस्कृति पर किसी ने भी हमला नही किया और ना उनके पुक्ता सबूत मिले है. मनगढ़ंत वेदों को प्रमाण मानकर वर्ण, जाती और धर्म के चाहनेवाले सिन्धु संस्कृति पर हमला होने का दावा कर रहे है, हम वेदों का भी विचार करे तो सुरु मे वेद तीन ही थे. चौथा वर्ण बाद मे बना. इसका मतलब वेद हमेशा विकशित होते गए, वेद का मतलब वेध या निचोड़ है.

सिन्धु सभ्यता का विनाश कृतिम कारणों से नहीं तो भूचाल जैसे नैसर्गिक कारणों से हुआ था. जो लोग विदेशी हमला उसका कारण मानते है, वे वंशवादी है, जो वंश के नाम पर मानव समाज में भेदभाव पैदा कर झगड़ा करना चाहते है और उसमे अपनी रोठी शेंकना चाहते है. अगर बौद्ध साहित्य पढ़ते है तो पता चलता है की प्राचीन भारत में आर्य नाम का कोई वंश नही था, वह एक विशेषण है, आर्य का मतलब "श्रेष्ठ" है, न की वंश. इसलिए आर्य बनाम अनार्य, नाग, मुलनिवाशी संकल्पना मनगढ़ंत है. यह जातिवादी, हिन्दुधार्मीय, बामसेफ, बीएसपी, एम्बस, भारत मुक्ति मोर्चा का संशोधन बेबुनियाद है. वह केवल हवा पर निर्भर है, हकीकत पर नहीं.

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