Monday, October 14, 2019

बक्सादुआर के बाघ-2 कर्नल भूपाल लाहिड़ी अनुवादःपलाश विश्वास

बक्सादुआर के बाघ-2
कर्नल भूपाल लाहिड़ी
अनुवादःपलाश विश्वास

पांच

अलीपुरदुआर से लौटे तीन हफ्ते बीत गये।इस बीच सुनील सान्याल का फोन आ गया, सुशीला पूरी तरह स्वस्थ नहीं हुई,इसके बावजूद अस्पताल से उसे छोड़ दिया गया। खबर मिलने पर,गारो बस्ती के लोग आकर उसे अपने साथ उसके घर ले गये हैं।

नवदिशारी पत्रिका का विशेषांक निकल गया।सुशीला के साथ हुए हादसे का पूरा ब्यौरा दो पेजों में छापा गया है।बक्सा इलाके के जंगलात में मनुष्यों की दुर्दशा और उनके प्रति सरकार की उदासीनता को लेकर तथ्यों से समृद्ध एक जोरदार संपादकीय लिखा है सुमन ने। पाठकों में इसे लेकर हलचल मच गयी है।
इसके हफ्तेभर बाद एकदिन सुबह टीके आकर हाजिर हो गये।कहा,उन्होंने अलरेडी आपके खिलाफ केस सजाइया फैलछे,दो चार दिने अरेस्ट कोरबे।आप कुछ दिनेर जइन्य कहीं भूमिगत हो जायें।मामला ठंडा हो जाये तभी फिरा आइसबेन।
-अरेस्ट करेंगे? क्यों,मैंने गलत क्या किया है?
-वह जो आपने अपनी पत्रिका में सरकार की खिंचाई कर दी है, लिखा है कि जंगलात  इलाके के मनुष्यों की  दुःख दुर्दशा के लिए सरकार ही जिम्मेदार है!
-जो लिखा है वह अक्षरशः सच है,झूठ एक भी बात नहीं है।सच कहने,सरकार की आलोचना करने का अधिकार तो गणतंत्र में सबको है-तो फिर मुझे किस कानून से गिरफ्तार कर लेंगे?
-आपने तो दैखताछि पोलपानेर मतो कथा कइत्याछेन!(आप तो देख रहा हूं बच्चों की तरह बातें कर रहे हैं!)इसके बाद गंभीर होकर उन्होंने कहा-अरे महाशय,आपके उस संविधान में जैसा लिखा है,उ सब दिया कि राज्य शासन चले? कोई भी सरकार संविधान माने ना,समझे!उ सब होइत्याछे स्कूल कालेजे छात्र पढ़ाईबार जइन्यो और आपके जैसे विद्वानों के लिए सेमिनार कांफ्रेंस में चर्चा वुर्चा करने के लिए।वास्तव परिस्थिति थोड़ा बूझने की चैष्टा करें,और जितनी जल्दी हो सकें कुछ दिनों के लिए कइलकाता थिका बोरिया बिस्तर समेटकर कहीं छू मंतर हो जाइये।
टीके के निकल जाने के बाद अदिति ने कहा,इन सज्जन ने सही सलाह दी है।सरकार से लड़ने की क्षमता जनता की नहीं है।इसलिए,टीके ने जो कहा है,हमें मान लेना चाहिए।
-तो इसके लिए सब कुछ छोड़कर चूहों की तरह भागकर बिल में घुस जायें! यहां हमारा इतना कामकाज,पत्रिका- इन सबका क्या होगा!
-फिलहाल बंद रखना होगा।गंभीर होकर अदिति ने कहा।
-किंतु कहां जायेंगे,कुछ सोचा है?
-इस पर सोच विचार के लिए  अभी वक्त है।अब चलिये,जस्टिस मजुमदार के साथ उनके चैंबर में एक बार मुलाकात कर लें।देखें,वे क्या कहते हैं।
सब सुनकर जस्टिस मजुमदार ने कहा, आज सत्ता में जो लोग बैठे हैं,जो लोग कभी बात बात पर मार्क्स एंजेल्स के आदर्श उद्धृत करते थे,विप्लव की बाते किया करते थे,उन्हीं लोगों ने वह सब कुछ जलांजलि दे दी है।वे भूल गये कि 1905 में क्रांति के बारे में अपने भाषण में लेनिन ने क्या कहा था।लेनिन ने  कहा था,सिर्फ संग्राम के जरिये ही शोषित श्रेणी को शिक्षित किया जा सकता है।शोषित श्रेणी के संग्राम की बात रही दूर, उनकी तकलीफों, लांछना के बारे में  बात करना भी अब अपराध है।जो बोल रहे हैं ,या लिख रहे हैं,सरकार उनके पीछे पुलिस को लगा रही है।टाइम्स आफ इंडिया की 27 जुलाई की रपट  में क्या लिखा है,आपको यकीनन याद होगा।
`Even after 25 years of Marxist rule in West Bengal,the police still view Marxist literature as `dangerous’..In all recent raids- midnight or otherwise- the police have not only confiscated such materials,but even chided people for reading or keeping them’
-उस रात को सर्च के वक्त मेरे घर से भी मार्क्स एंजेल्स और लेनिन की सारी किताबें आईबी के लोग उठाकर ले गये,मंतव्य किया सुमन ने।
जस्टिस मजुमदार ने कहा, 24 दिसंबर 2004 की एक घटना बताता हूं,सुन लीजिये- उस दिन निमता से वयोवृद्ध निरंजन बसु की गिरफ्तारी के समय पुलिस उनके वहां से जो किताबें उठा ले गयी, उनमें मार्क्सवादी साहित्य के अलावा विनय घोष, सुप्रकाश राय की किताबें भी शामिल हैं।
वे कहते रहे,गणतंत्र के नाम पर एक भयंकर अगणतांत्रिक व्यवस्था में हम जी रहे हैं- जिसमें सरकार की जनविरोधी नीतियों की आलोचना करना या पुलिस संत्रास का विरोध करना अनुचित अन्याय के रुप में लिया जा रहा है।सरकारी नीतियों का विरोध और दंडनीय अपराध समार्थक हो गये हैं।
-इसके परिणामस्वरुप अगर देश के लोग गणतंत्र में,आईन-शासन व्यवस्था में आस्था ही खो दें,तो सांघातिक परिस्थिति की सृष्टि हो सकती है!गंभीर होकर सुमन ने कहा।
- यही तो हो रहा है! देख नहीं रहे हैं- माओवादी,कामतापुरी,अल्फा-ऐसे कितने ही संगठन रोज रोज पैदा हो रहे हैं! इससे एकतरफ तो इन्हें नियंत्रित करने में सरकार को भारी असुविधा हो रही है, तो दूसरी तरफ भारी सुविधा भी हो रही है।जो भी सरकार विरोधी बात करें, माओवादी करार देकर उसे तुरत फुरत जेल में डाल दो!
-किंतु जुडिशियल भूमिका? इन परिस्थितियों में,जब संविधान की रोज रोज अवमानना हो रही है,मानवाधिकार का पल पल उल्लंघन हो रहा है,तब क्या जुडिशियरी चुपचाप मूक दर्शक बनकर यह सब देखती रहेगी?इस सिलसिले में उसके लिए क्या करने को कुछ भी नहीं है?
-है,न्यायपालिका की भूमिका है-संविधान की दी हुई सीमित क्षमता के साथ वे अपनी भूमिका का निर्वाह करने की यथासाध्य चेष्टा कर रही है।इसीसे राजनीतक गलियारों में जुडिशियल ओवर एक्टिविज्म का शोर हो रहा है।
थोड़ा रुककर जस्टिस मजुमदार बोले,but you must remember one thing.For conveyance of justice,courts have to totally depend upon investigation reports of police or other investigating agencies.किंतु पुलिस और दूसरी जांच संस्थाओं को अगर झूठी रपट दाखिल करने को मजबूर कर दिया जाता है तो ऐसे मामलों में कोर्ट से हम कैसे न्याय की आशा कर सकते हैं?
-तो आपका कहना है कि वर्तमान परिस्थितियों में ,देश की कानून व्यवस्था मेरी  कोई मदद नहीं कर सकती-
-Practically speaking,no! पुलिस अगर झूठा केस बनाकर आपके खिलाफ कोर्ट में पेश कर दें,तो जबतक आप उस रपट को झूठी साबित नहीं कर पाते, देश की वर्तमान न्याय व्यवस्था आपसे सहानुभूति जताने के अलावा आपकी कोई मदद कर सकती है,ऐसा मुझे नहीं लगता।
जस्टिस मजुमदार के पास जब सुमन और अदिति आये,तब उनके मन में कोई बड़ी आशाउम्मीद नहीं थी।किंतु उनसे चर्चा के बाद दोनों को लगा कि आशा की आखिरी किरण भी बूझ गयी है।चारों तरफ सिर्फ अंधकार!अराजकता के गहरे घने काले अंधेरे से उनकी निराशा का अंधेरा और घना हो गया।  उसी अंधकार में छुपकर उन्हें जीवन का कुछ समय बिताना होगा। कितना समय? कितने दिन,कितने मास या कितने साल?
इस मुहूर्त पर उच्च न्यायालय के गाथिक स्थापत्य से निर्मित विशाल स्तंभों की छाया में चुपचाप खड़े अदिति और सुमन के मन में उठ रहे इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं दे सकता।शायद स्वयं ईश्वर भी नहीं।

छह

बक्सा दुआर जंगल की गहराई में गारो बस्ती के लोगों ने इन कुछेक दिनों में ही अपना बना लिया है सुमन और अदिति को।
सभ्य जगत से बहुत दूर,जहां इक्कीसवीं सदी के विज्ञान - तकनीक की अभावनीय प्रगति का कोई सुफल नहीं पहुंचा,आधुनिक चिकित्सा शास्त्र की अकल्पनीय उन्नति इनके आदिम जीवन को स्पर्श नहीं कर सकी है,वर्तमान युग के भोग विलासिता के अबाध प्रवाह ने इनकी जीवनयात्रा को कृत्तिम और कलुषित नहीं बनाया है,राकेट युग की सुपरसोनिक गति ने ग्राम्य जीवन के छंद को उद्दाम और अस्थिर नहीं बनाया है,शहरी शापिंग माल में और पांच सितारा होटलों में रातोंरात बने सभ्य करोड़पतियों के बेहिसाब रुपयों के असभ्य प्रदर्शन इन जंगली असभ्य मनुष्यों की आंखें चौंधा नहीं सका है- वहां इस मध्ययुगीन गारो बस्ती में एक चीज की कोई कमी नहीं है। वह है उनका अकृत्तिम प्यार।
दोपहर बाद पहुंचकर यहां कुछ दिन रहने की मंशा जाहिर करते ही गारो बस्ती के नोकमा(गारो भाषा में प्रधान) जास्टिन मोमिन ने उच्छ्वसित होकर कहा,एइटा हमरागुला माइनसेर भाग्य,बाबू लोग एई बस्ती में रहिबेन।बस्तित नोकफान्ते आछे, कोनो दिकदारी नाई,जबतक मर्जी,रहें।किन्तु इहां अपनागुला की तरह शहरी बाबुओं को एक ही मुश्किल,उ खाना पीना की दिक्कत।हमरागुला जंगली माइनसेर खाना पीना आपनागुला शहरी बाबुओं को पसंद होइबे ना।जैसे तैसे करके वह रसोई तो खुद ही बनाना होगा।बस्ती के माइनसे जलावन लकड़ी,बर्तन,चावल दाल-तमाम चीजें आपनाक ला दिबे।
नोकफांते बस्ती के बीचोंबीच अविवाहित युवकों के रहने की जगह है।गारो भाषा में नोक मतलब घर है और फांते माने कुंवारे युवक।सिर्फ बस्ती के  कुंवारे युवक ही नहीं, बस्तीवासी किसी के अतिथि अभ्यागत के आने पर उन्हें इसी नोकफांते के कुटीर में ठहराया जाता है।बस्ती के दूसरे कुटीरों की तरह ही यह कुटीर बांस की चटाई की फर्श और दीवाल,घर के छप्पर पर शाल के पत्तों और घास की बुनावट से बना है,लेकिन लंबाई चौड़ाई में दूसरे कुटीरों के मुकाबले थोड़ा बड़ा है नोकफांते।
-इनके अविवाहित युवकों के रहने की व्यवस्था थोड़ी अद्भुत है,नहीं क्या? नोकफांते कुटीर में अपना सामान सहेजते हुए सुमन से अदिति ने पूछा।
-बिल्कुल अद्भुत नहीं है।गारो समाज मातृतांत्रिक है।इनके समाज में महिलाएं ही सबकुछ नियंत्रित करती हैं - परिवार की विषय संपत्ति पर बेटियों का हक है।बेटों का नहीं।विवाह के बाद लड़कियां नहीं,लड़के ससुराल जाते हैं।इसी सामाजिक नियम के साथ संगति रखकर यह विधि व्यवस्था है।किशोरावस्था पार करने के बाद मां बाप का साथ छोड़कर नोकफांते में रहकर स्वाधीन जीवन यापन में अभ्यस्त होना है, फिर युवावस्था में अपनी अपनी पसंद के मुताबिक जीवन संगिनी चुनकर उसके साथ उसके घर चले जाना है।कहा जा सकता है कि नोकफांते गांव के अविवाहित युवकों के लिए एक तरह का ट्रांजिट कैंप है।
-हमने तो फिर उनकी जगह दखल कर ली है,बेचारे लड़के अब कहां रहेंगे?अपने गर्भ में संतान धारण नहीं किया तो क्या मां का मन है,इसीलिए शायद बस्ती के लड़कों को लेकर अदिति की यह दुश्चिंता है।
-इसकी फिक्र मत करो,देख लेना बस्ती के सभी लोग मिलकर कुछ ही दिनों में एक और नोकफांते बना लेंगे।कम्युनिटी लिविंग किसे कहते हैं,उसके जीते जागते उदाहरण हैं ये लोग।किसी भी आवश्यकता की स्थिति में गांव के सभी लोग मिलकर काम करते हैं।मसलन,तुम्हारे घर का नया छप्पर तैयार करना है- बस्ती के नोकमा यानी प्रधान सबकी राय लेकर एक दिन तय कर देंगे और उसी दिन बस्ती के सारे मर्द औरतें मिलकर छप्पर बनाने का काम कर देंगे।
पहुंचने के बाद की कुछ ही देर में बस्ती के दो युवक चावल,दाल,नमक,तेल से शुरु करके मंजे हुए साफ सुथरे हांडी कड़ाही -यहां तक कि चूल्हा जलाने के लिए जलावन लकड़ी तक ढोकर ले आये।
-हमार नाम रोबार्ट,रोबार्ट माराक,और ये रोबिन मोमिन।नोकमा ने यह सब पठाइछे।हम दोनों आसपासत हैं।कोनोय किछु दरकार होय तो पुकार लेना।उन दोनों की आंतरिकता से आप्लुत हो गयी अदिति।
सांझ बेला नोकमा जास्टिन मोमिन खोज खबर लेने पहुंच गये।
-कोनो दिकदारी नाई न?काइल बिहाने रोबिन आसि मुरगी और अंडा दिया जाइबे। आउर का का लगबे ,ओको कहि दिबेन,फट करि आनि दिबे।आइज राइतेर भोजन हमरा घर थिका निया आइसबे सिन्थिया।
- रोबिन को मैं रुपये दे रहा था,किसी भी तरह लेने को तैयार नहीं हुआ-
-बाबू हम जंगलेर  मानुषगुला गरीब  हबार पारि,पैटे लिखा पढ़ा ना थाइकबार पारे,किंतु आपनागुला माइन्यमान मानुष बस्तीत आइसले उयार देखभाल कइरब ना, इत्ता जंगली हमरागुला को एकदम ना समझें!
इसे लेकर फिर बात बढ़ाना वृथा है।इसलिए विषय बदलकर सुमन ने सवाल किया, सुशीला मिलने नहीं आयी,उसकी सेहत क्या बहुत खराब है?
- खूब ऐकटा सुस्थ ना होय,माताटा कैमन गड़बड़ हया गिछे।घर बाड़ी छाड़ि दिन राइत केवल जंगल में इ बस्तीत उ बस्तीत टो टो करि घुमे रही।उयार साथे देखा होइले आपनागुला कथा कमो।अब जाते हैं,दरकार होइले रोबिनके दिया बुलाय पठाइबेन। रोबिनके रोबार्टके कहिछि, राइते तोरा दुजना एठे शुइति थाकबि,बाबू दिदिमणिर कब कि दरकार नागे।
नोकमा के जाने के बाद अदिति बोली,इन्हें जितना देख रही हूं,उतना ही अचरज हो रहा है।सोच रही हूं कि हमारे स्कूल कालेजों की प्रथागत शिक्षा के साथ,उन्नत मानवता बोध, उत्कृष्ट पारस्पारिक संपर्क और सभ्य आचरण व्यवहार का क्या संबंध है। किसी तरह की प्रथागत शिक्षा न पाकर भी इनकी मानवता और इनके आचरण व्यवहार ने मुझे सिर्फ मुग्ध ही नहीं किया,स्कूल से लिखना पढ़ना न सीखने वाले लोगों के बारे में मेरी धारणा ही  आमूल बदल गयी है।मेरे परिचित अनेक डिग्रीधारी तथाकथित भद्रजनों की तुलना में ये लोग ज्यादा भद्र हैं, अधिक शिक्षित हैं,यह मैं जोर देकर कह सकती हूं।
-क्या कहना चाहती हो तुम? स्कूल कालेज की शिक्षा,डिग्री - इन सबका क्या कोई मूल्य नहीं है?
-मैैंने ऐसा कतई नहीं कहा है।मैंने कहा है प्रथागत शिक्षा और बड़ी बड़ी डिग्रियां किसी व्यक्ति के उन्नत मानवता बोध या सभ्य आचरण व्यवहार की गारंटी नहीं है। इसके लिए दूसरी तरह की शिक्षा जरुरी है।पृथ्वी की श्रेष्ठ किसी यूनिवर्सिटी में जो शिक्षा उपलब्ध नहीं है,इस जंगल के मनुष्यों से हम वह शिक्षा ले सकते हैं।और कुछ न हो, मानवता बोध और सभ्य व्यवहार के शिक्षक बतौर यह सम्मान तो ये सभ्य समाज से उम्मीद कर सकते हैं।
-क्या कहा? सम्मान! उलट इसके हमारे इस तथाकथित शिक्षित सभ्य समाज ने हर तरह से इन्हें कैसे वंचित करके,लांछित करके इन लोगों की क्या दुर्गति कर दी है, देखो! आज ये लोग सहायहीन होकर,निरुपाय होकर,घृण्य कीटों की तरह अपमान और लज्जा की जिंदगी गुजर बसर कर रहे हैं।ठीक उस सुशीला की तरह।

देर रात को घरके नोकफांते के दरवाजे पर बार बार धक्का- बाबू उठेन! लगा रोबर्ट की आवाज है।आरण्यक निःशब्द चीर कर अब रोबिन का ऊंचा कंठस्वर सुनायी पड़ा- दरवाजा खुलेन,सुशीला आइच्चे!
दिनभर की क्लांति की वजह से गहरी नींद में डूब चुके थे दोनों,इसलिए रोबार्ट और रोबिन की बारी बारी चीख पुकार शुरुआत में सुमन या अदिति को सुनायी नहीं पड़ी। अदिति के हड़बड़ाकर दरवाजा खोलते ही,सुशीला  उसे लगभग धक्का मारकर एक तरफ हटाकर दौड़कर नोकफांते के एक कोने में दुबक कर बैठ गयी और वहीं से फिसफिसाकर बोली, शीग्गिर दरवजा बंद करेन,उयारा हमार पीछे पीछे आइसतेछे- दरवाजा बंद करेन,बंद करेन शीग्गिर!
लंबे घर के एक कोने में रखे लालटेन की धूमिल रोशनी में सुशीला को खूब अच्छी तरह देखना संभव नहीं हो  रहा है।फिरभी जितना देखा गया,उसीसे अदिति को लगा उसका शरीर और स्वास्थ्य खत्म है, बिखरी हुई वेशभूषा में उसे पहचानना लगभग मुश्किल है।लालटेन स्टूल के ऊपर से लेकर सुशीला के पास फर्श पर रखकर उसके सामने घुटने मोड़ कर बैठ गयी अदिति।उसके सर के अस्त व्यस्त बालों पर परम जतन से अपना दाहिना हाथ रखते हुए उसने नीची आवाज में सस्नेह सवाल किया,कौन आ रहा है सुशीला ,किससे डरी हुई हो तुम?
सुशीला की फटी हुई सी आंखों के तारों में आंतक।बोली- ओइ,ओइ फारेस्त के लोकगुला, उयारा आमाक धइरबे,आमाक माइरबे-
-यहां फारेस्ट के लोग कहां से आयेंगे? तुम बेफिक्र हो जाओ,कोई तुम्हें मारेगा नहीं-
-ठीक बोलतेछेन,एइखाने केह नाई? किंतु उयारा आमाक सब समय सब खाने पीछा करि घुमै -हमी जेइखाने जाइ,वने जंगले-खाली अमार पीछ पीछे-
सुशीला के सामने बैठकर उसका चेहरा सुमन की तरफ तनिक उठाकर अदिति ने कहा, भीषण अस्वस्थ है यह लड़की,शरीर में सांघातिक इंफेक्शन है,बहुत बदबू लग रही है।उसे इमीडियेटली डाक्टर को दिखाना जरुरी है।
-यहां आसपास बेहतर डाक्टर कोई नहीं है।सिर्फ उसे अलीपुरदुआर ले जाकर किसी नर्सिंग होम में भर्ती कराया जा सकता है-किंतु इसके लिए क्या वह राजी होगी? इसके अलावा बस्ती वालों का भी अपना मतामत होगा।
-सुशीला राजी न हो तो सुनील बाबू को खबर भेजनी होगी,उनकी जान पहचान के किसी अच्छे डाक्टर को अगर वे  भेज सकें-
-सुबह नोकमा से राय मशविरा करके किसी न किसी नतीजे तक पहुंचना होगा।लेकिन तब तक उसे यहां रोका जा सकेगा क्या?
फर्श से उठकर अदिति बोली,रोक लिया जायेगा।कोलकाता से आते वक्त कुछ जरुरी दवायें साथ लायी हूं।सेडेटिव दे देती हूं। इसे लेने के बाद वह कुछेक घंटे सोती रहेगी।देख लेते हैं,इसी मोहलत पर  उसके कपड़े लत्ते बदल कर उसे किस हद तक साफ सुथरा किया जा सकता है!
इसके बाद पल भर वक्त जाया न करके एकदम युद्धकालीन तत्परता के साथ उस लड़की की सेवा में लग गयी अदिति।नींद उड़ी आंखों से सुमन बाकी रात बिस्तर पर बैठे अवाक् देखता रहा अदिति के स्नेहमयी मां का यह अनदेखा रुप।
अगले दिन सुबह राय मशविरा के बाद तय हुआ कि सुनील सान्याल से अनुरोध किया जाये कि वे किसी अच्छे डाक्टर को भेज दें।
इसी मुताबिक उन्होंने एक नामी डाक्टर को गारो बस्ती भेज दिया,जिन्होंने सुशीला को अच्छी तरह जांच कर दवाएं लिख दीं।

पिछले महीनेभर की चिकित्सा से सुशीला की शारीरिक अवस्था में काफी सुधार होने के बावजूद उसके मानसिक रोग में कोई निरामय देखा नहीं जा सका।बीच बीच में आधी आधी रात को वह गायब हो जाती।उस दिन के उस सांघातिक हादसे के बाद जिन्हें लेकर दहशत की जड़ें उसके मन में गहराई तक पैठ गयी हैं,उस फारेस्ट डिपार्टमेंट के लोगों से बचने के उसका चलना फिरना सब कुछ रात में ही होता है। फारेस्ट के लोग दिन में घूमते फिरते रहते हैं,इसलिए रात के अंधकार में सुशीला काफी हद तक आतंक से मुक्त हो जाती है- दतैल वन्य हाथियों और बक्सा के जंगल के भयंकर बाघों से ज्यादा भय उसे खाकी वर्दी पहने उन मनुष्यों से  है।
-इस तरह आधी आधी रात को कहां निकल जाती हो?अदिति के इस सवाल के जबाव में सुशीला ने कहा था,बाघ की खोज में।यह बात अदिति को किसी पागल का अर्थहीन प्रलाप सा लगा था।
आज दस दिनों से सुशीला का कुछ अता पता नहीं है।सुबह नोकमा ने आकर कहा, सुशीला की खबर पाछि।सुखरा बस्ती के जगरु उरांव के साथ कहते हैं ,उयार दोस्ती होइछे।जगरु मानुषटा भालो ना होय,नामजाश्रां (अत्यंत पाजी!झाड़फूंक तुकताक करता रहै, देवी देवता उयार पर उतरता है,कहे रहे, मेला में सङ (बहुरुपी) सजके काली का नाच नाचा करै, नरराक्षस होइया पर समेत साबूत मुरगी चबायै। जगरु के चक्करे पड़ि,कैसे दिकदारी में फंस गयी माइयेटा।अब चलें,बस्ती के मानुषगुलाके खबरटा देना नागे।नोकमा के जाते ही अदिति का प्रश्न,इस नरराक्षस का मामला क्या है,मुझसे थोड़ा खुला करके बोलें।
-तीसेक साल पहले भी,नाना उत्सव पर्व पर उत्तर बंगाल के ग्रामांचल में,खास तौर पर आदिवासीबहुल  इलाकों में जो मेले लगा करते थे, वहां सबसे खास आकर्षणों में सङ का आकर्षण हुआ करता था- काली,शिव, हनुमान के रुप में भेष बनाना,यही सब।  नरराक्षस भी इसी तरह बहुरुपिया है।उसके शरीर में इतनी ताकत होती है ,कमर में मोटी रस्सी बांधकर दस बारह ताकतवर लोग उसे काबू में नहीं रख सकते।उसे खाद्य अखाद्य जो भी दें, खा लेता है- बोतल का टूटा कांच,पर समेत मुरगी,जैसा हम अनेक मैजिक शो में देखते हैं।प्रदर्शनी के वक्त एक चोंगा से और एक आदमी लगातार प्रचार करता रहता - अमुक देव या अमुक देवी उस मनुष्य पर उतरा है, इसीलिए वह राक्षस की तरह खाद्य खा रहा है ,राक्षस की तरह उसकी ताकत है।गांवों के लोग यकीन कर लेते और चौवन्नी अठन्नी उसके सामने पड़ी थाली में डाल देते।
सुनकर अदिति बोली कि ऐसे किसी आदमी के साथ सुशीला की दोस्ती कैसे हो गयी, यही सोच रही हूं।
-निश्चय ही कोई कारण होगा,कारण बिना इस दुनिया में कुछ भी नहीं होता है। दार्शनिक गंभीरता थी सुमन की आवाज में।
- किंतु ऐसा कौन सा कारण हो सकता है उस आदमी का वैसा वीभत्स चेहरा,वैसा गंदा स्वभाव चरित्र जो है!
-अबकी दफा आयेगी तो सुशीला से पूछ कर समझ लेना।

दोपहर बाद अदिति नोकमा के घर गयी थी।गरीबी है,लेकिन घर द्वार झकाझक, साफसुथरा।सबकुछ सजाया हुआ,व्यवस्थित।
नोकमा की दो बेटियां हैं,बेटा एक है। रोबिन नोकमा का बेटा है,यह बात अदिति को उनके घर जाकर मालूम हुई। बस्ती के सभी बच्चों की तरह उनकी पढ़ाई लिखाई प्राइमरी तक हुई।सबसे नजदीक हाईस्कूल राजाभातखाओवा में है,पंद्रह मील दूर।रास्ता घाट नहीं है।यातायात के लिए यान वाहन नहीं हैं।बच्चों को हास्टल में रखकर पढ़ा सकें, ऐसा आर्थिक सामर्थ्य बस्ती वालों का नहीं है।बेटियों में बड़ी की उम्र पच्चीस छब्बीस है तो छोटी अठारह उन्नीस की।बड़ी का नाम सिंथिया है।उसे देखकर ही पहचान गयी अदिति।पहली रात वही भोजन लेकर गयी थी।
सिन्थिया से लंबी  बात करके अदिति को मालूम हुआ कि उसकी छोटी बहन ग्लोबिया को स्त्री रोग की समस्या है।आस पास कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं है।बहुत पहले एक बार अलीपुर दुआर अस्पताल में डाक्टर को दिखाने गयी थी,वह भी सालभर हो गया, सिन्थिया ने बताया।
ग्लोबिया से मुलाकात न हो सकी।सिन्थिया ने ही मेजबानी की। गाय का दूध दुहकर उसने चाय बनाकर पिलायी।अदिति को लगा,सिन्थिया काफी चुस्त और कर्मठ लड़की है। बातों ही बातों में उसे मालूम हो गया ,बचपन में मां की मौत के बाद से संसार का सारा कामकाज उसे ही निबटाना होता है।
नोकमा के घर से लौटकर अदिति ने सुमन से कहा,अलीपुर दुआर जायें तो मेरे लिए कुछ दवाइयां भी ले आयें।
-क्या करोगी दवाइयों से ,डिस्पेंसरी खोलोगी?
-ना,ना,बस्ती के लोगों को हर वक्त थोड़ी बहुत दवाइयों की जरुरत पड़ती है। आपको याद होगा,मैंने तीन महीने की पैरा मेडिकल ट्रेनिंग ली थी।उस वक्त आप कोलकाता में नहीं थे।बहुत संभव है कि झारखंड में थे- वहां के आदिवासियों के बीच  काम कर रहे थे।
-बहुत अच्छा आइडिया है।तुम्हारा वक्त कटेगा औऱ इन लोगों का उपकार भी होगा।अदिति के उत्साह से स्वभावतः सुमन खुश है।वनवास के ये दिन अदिति के कैसे कटेंगे,उसे लेकर वह खूब चिंतित रहा है।

प्रत्येक जंगल की अपनी निजी खास गंध होती है।ऋतु परिवर्तन के साथ वह गंध बदलती रहती है।आज शाम के बाद जोर का आंधी आयी,बारिश तेज हो गयी।बारिश रुक गयी है किंतु इसके साथ जंगल की गंध बदल गयी है।नोकफांते की बांसों की चटाई वाली दीवारों को चीर कर गहरी रात की ठंडी हवाओं के साथ तिरकर वह सोंधी गंध आ रही है। इस गंध से खून में नशा हो जाता है।और इसी नशे में मदहोश जंगल के प्राणी सृष्टि के आनंद में मशगुल हो जाते हैं।
बक्सा के घने जंगल में शाल की पत्तियों के साथ बांस की चटाइयों की दीवारों वाले इस घर में सुमन के बगल में सोते हुए,उसी गंध ने अदिति के खून में नशा कर दिया।उसका सारा शरीर मन उन्मुख उत्ताल हो गया दैहिक मिलन की आकांक्षा से।
सुमन के साथ संबंध के बारह वसंत के मध्य ऐसी तीव्र आकांक्षा ने उसे कभी विवश नहीं किया है,ऐसा भी नहीं है,किंतु एकमात्र अहंकार को कवच बनाकर उसे तब युद्ध करना पड़ा अपने विद्रोही अंगार  की तरह सुलगने वाली देह और उन्मत्त मन के साथ।वह अहंकारी मनुष्य विश्वमित्र मुनि की तरह आंखें बंद करके ध्यान में हैं,नारी की स्वभावजात नाज नखरों से वह क्यों अपना ध्यान तोड़ लेगा,फिर आत्म सम्मान का विसर्जन देकर वह क्यों करने लगी आत्म समर्पण?
बिस्तर के उस तरफ,उसकी गर्म देह से एकदम सटे हुए वह जो पुरुष सोया है,वह नपुंसक भी नहीं है, निश्चित तौर पर अदिति को मालूम है। इतने साल दोनों साथ साथ हैं,यह सच आविस्कार करने में उसे राकेट साइंस पढ़ने की जरुरत नहीं पड़ी।किंतु इस मुहूर्त को जो प्रश्न उसके ज्ञान और बुद्धि से परे है, वह यह कि हवाओं मे बह आयी जंगल की इस गंध से उसकी अपनी देह से थोड़ी दूरी पर सोये इस पुरुष के शरीर में कोई  हलचल क्यों हो नही रही है?
उसकी देह पर हाथ रखकर देख लें,अनुभव करें उसके शरीर का उत्ताप?
ना,यदि इससे सुमनदा की नींद टूट जाये और वह समझ लें कि अदिति उतावली हो रही है!रहने दें,कुछ समय और इंतजार कर लें सुमनदा की नींद टूटने का,जैसे बारह सालों से अनंत तृष्णा के साथ निद्राहीन आंखों से वह प्रतीक्षा करती रही है कितने कबूतरों की पुकारों वाले दोपहर और झर झर वृष्टि झरती श्रावन की रातों में!
पल पल दीर्घ समय प्रतीक्षा में बीत गया, आसमान तोड़कर मेघ तोड़ने बिखेरने वाला अष्टमी का चांद पृथ्वी पर ढल गया, उस रात भी सुमनदा की ओर से कोई आमंत्रण नहीं आया। अंगारतप्त प्रत्याशा किसी वसंत को बुला नहीं सका,सुगंध से मतवाली बक्सादुआर के शाल वन में कोई कली खिली नहीं।

किंतु अगले दिन,ठीक कालबैशाखी आंधी की तरह अप्रत्याशित तौर पर देर रात सुशीला का आगमन हो गया।
-इतनी रात जंगल के मध्य तुम इस तरह आती जाती हो,तुम्हें डर नहीं लगता? अदिति के स्वर में उत्कंठा।
-भय? हमी तो बाघ । जंगले बाघ को किसका डर? आंखें बड़ी करके कहा सुशीला ने।उसकी आंखों में और उसके गले के स्वर में पहले के जैसे आतंक की कोई छाप नहीं थी।
-तुम कैसे बाघ हो?तुम तो मनुष्य हो! सुशीला को समझाने की कोशिश की अदिति ने।
- के कहिछे आमि मानुष?हमी मानुष ना होय,हमी बाघ! कहकर बाघ की तरह हुंकार भरने लगी सुशीला।जगरु कहिछे मंतर पढ़ा जल छिटाइया आमाक बाघ बानाये दिबे!जैमन करि जल पढ़ा छिटकाकर वो नरराक्षस बने।थोड़ा थमकर सुशीला ने कहा, ओइ सालारा आमाक खायछिलो,बाघ हया आमि उयादेर खामो!सुशीला की आंखों में, उसके चेहरे में बाघों की तरह हिंस्रता थी।
सुमन ने अदिति  के चेहरे की ओर देखा।जगरु उरांव के साथ उसकी अंतरंगता का कारण अब धीरे धीरे साफ हो रहा है। सुशीला की कमजोरी का फायदा उठाने में बाज नहीं आया वह बदमाश।उसके प्रतिशोध की आकांक्षा का इस्तेमाल करके उसे पूरी तरह अपने वश में कर लिया है।फारेस्ट के लोगों के बारे में आतंक दूर करके उसके मन में सांघातिक जिघांसा की सृष्टि कर दी!
-उसे इस वक्त थोड़ी नींद की जरुरत है,इशारे से सुमन को घर के एक किनारे ले जाकर अदिति ने कहा।देखें, सुलाकर उसे कब तक रोका जा सकता है।सेडेटिव का डोज आज थोड़ा बढ़ाना होगा।


सात

अगले दिन सुबह रोबार्ट और रोबिन से बस्ती के बगल से बहने वाली छोटी सी नदी से कुछेक बाल्टी पानी मंगवाकर आदिति ने साबुन रगड़ रगड़ कर खूब नहला दिया सुशीला को।उसके पहने कपड़े बदलकर उसे अपने धोये हुए कपड़े पहना दिये।सुंदर तरीके से सर के बाल बनाकर बांध दिये।माथे पर लाल रंग की टीप भी लगा दी।
सुमन को बुलाकर अदिति ने पूछा-देखिये तो जरा,वह कैसे लग रही है,ठीक पहले जैसी है कि नहीं?
सुमन से अदिति कई घंटों के अक्लांत परिश्रम का मूल्य मांग रही है।ज्यादा कुछ नहीं - खूब,अच्छा है,ठीक है- इस तरह के सामान्य प्रशंसावाचक कुछ वाक्य ही काफी थे! किंतु अनेक चेष्टा के बाद भी सुमन उतना भी नहीं कह सका।उसकी कल्पना का वाइल्ड फ्लावर जो कुचलकर छिन्न भिन्न कर दिया गया है,वह फिर पहले का जैसा कैसे हो सकता है? किस तरह वृंत से टूटी कली फिर वन में खिलकर अलि के प्राण में जगाये गुंजन? तुम्हारी हजार कोशिशों के बावजूद वाइल्ड फ्लावर फिर पहले की तरह खिलने वाला नहीं है!उत्तर मन में आया लेकिन मुंह से कह नहीं सका सुमन।
-क्यों,आपने कुछ तो नहीं कहा?
-इतनी जो मेहनत की है,उसे रोक सकोगी क्या? अदिति के प्रश्न को एक और प्रश्न से टालना चाहा सुमन ने।
-नहीं जानती,लेकिन जब तक आंखों के सामने है,तब तक थोड़ी साफ सुथरी रहे न,यही है,और क्या!
इसके बाद बहुत जतन से सुशीला को अदिति ने खाना भी खिलाया था।अहा रे! कितने दिनों से ठीक से खाना भी नहीं खा सकी लड़की ने!
सुमन समझ रहा था कि अदिति की सुप्त और अतृप्त मातृत्व की आकांक्षा इस असहाय लड़की के प्रसाधन और तत्वावधान में मूर्त हो रही है।किंतु उसके इस तरह धीरे धीरे मातृत्व के माया बंधन में जकड़ जाने से उसका परिणाम एकदम सुखद नहीं होने वाला है, यह बात इससे पहले भी अदिति को उसने आकार इंगित से समझाने की कोशिश की है,लेकिन सफल नहीं हुआ सुमन।जितने दिन सुशीला यहां रही,उस पर  सारा मातृस्नेह बरसा दिया।

फिर प्रत्याशित ही उसका नतीजा, सुशीला को लेकर आज अदिति की यह दुश्चिंता। अभी थोड़ा घूम कर आती हूं,कहकर वह फिर लापता हो गयी,सात दिन बीतते न बीतते सुमन से अपनी दुश्चिंता छुपा भी नहीं सकी अदिति।
-आज सात सात दिन बीत गये,उस लड़की की कोई खोज खबर नहीं है।कहां कहां वन में,जंगल में भटक रही है,कौन जानता है।फिर उस आदमी के चंगुल में फंसकर कब वह क्या  कर देगी- मुझे भीषण डर लग रहा है!
सुमन को यही आशंका थी।उसकी नजरों के सामने ही सब कुछ होता रहा- सुशीला को नहलाना, सुलाना- किंतु सुमन अदिति को न रोक नहीं सका।किस हक से रोकता वह? उसने तो खुद अदिति को मातृत्व के अधिकार और संतान सुख से वंचित कर रखा है। उसी सुमन ने,जो देश विदेश नारी के अधिकारों को लेकर सेमीनार कांफ्रेंस करता रहा है!
अपनी फिक्र की कोई छाया सुमन के चेहरे पर पसरते न देखकर अदिति बोली- अच्छा सुमनदा,सुशीला की खोज ली नहीं जा सकती क्या?
सुमन को मालूम है कि चुप्पी से कोई फायदा नहीं होने वाला है।यह दुश्चिंता अदिति को दिन रात कचोटती रहेगी- और उसकी अभिव्यक्ति होगी विचित्र तरीके से- भारी सरदर्द हो रहा है,आज कुछ नहीं खाती,एकदम भूख नहीं है,इत्यादि इत्यादि!
-ठीक है,नोकमा से कहकर देखता हूं!
नोकमा जास्टिन मोमिन ने कहा,सुशीला निच्चय ओइ जगरु उरांव के पास उयार बस्तीत गिछे।पाजीटा किवा तुकताक कइच्चे माइयेटाक! जगरु का सुखरा बस्ती इखान थिका कम से कम दस माइल दूर! जंगलेर भीतर दिया पांव चलाये जाये तो जाइते आइसते सात आठ घंटा।खूब बिहाने रवाना दिले,सइंझार भीतर फिरि आइसते पाइरबेन। जखोन जाइबेन,संगे एकटा लोक दिबो जे रास्ता चीन्हे।जंगले मच्छा (बाघ) आछे,मुंग्मा (हाथी) आछे- ऐका जाने  का साहस जेनो ना करेन।

अगले दिन तड़के विलियम को साथ लेकर जगरु की बस्ती की ओर रवाना हो गया सुमन।विलियम की उम्र बाइस तेइस।विवाह नहीं किया,नोकफांते में रहता है। पढ़ाई लिखाई क्लास सिक्स तक।
घने जंगल के भीतर से होकर लंबा रास्ता।विलियम के हाथों में बड़े साइज की धारदार कटारी।उसे कभी दाहिने तो कभी बांयें चलाकर रास्ते पर  झाड़ियों और पेड़ों की झुकी हुई डालों को साफ करते हुए,चारों तरफ जंगली खोजी नजर डालते हुए सावधानी से वह सुमन के आगे आगे बढ़े चला जा रहा है और बीच बीच में खूब नीची आवाज में बातें कर रहा है।कहा नहीं जा सकता कि हो सकता है कि सामने उस मोड़ पर कंटीली झाड़ी के पीछे बाघ बाबाजी घात लगाकर बैठा हो, या फिर उस मोटे शाल के पेड़ के पीछे झुंड से बिछुड़ा कोई दतैल हाथी निःशब्द इंतजार में खड़ा हो।सुमन को मालूम है कि झुंड से बिछुड़ा दतैल हाथी बाघ से भी भयंकर होता है।
इतनी दूर तक बाघ से मुलाकात नहीं हुई, किंतु हाथियों के  एक झुंड के साथ सामना हो गया- छोटा बड़ा स्त्री पुरुष,समूचा एक संसार।घने जंगल के भीतर थोड़ी सी खुली जगह पर मन भरके सुख चैन के साथ पेड़ों के पत्ते खा रहे थे वे।विलियम ने होंठों पर उंगली रखकर इशारे से कहा- कोनोय आवाज कइरबेन ना।थोड़ा घूमकर हाथियों के झुंड की नजर बचाकर वे चुपचाप आगे निकल गये।
रास्ते में बोल्डरों से भरी एक सूखी नदी पार करना हुआ।अदिति ने कुछ पराठे और आलू की तरकारी शाल के दोने में बांधकर दिया था। इसके साथ दो बोतल पानी भी दे दिया। नदी का पानी पीने से बार बार मना किया है।जंगली बस्तियों में शौचालय नहीं हैं।बस्तीवासी मर्द और औरतें ,सभी नदी  जल में ही शौचकर्म करते हैं।शीत की सुबह की नरम धूप में सूखी नदी के बोल्डर पर बैठकर अदिति के दिये पराठे और तरकारी बांटकर खाते हुए दोनों में बहुत सी बातें होती रहीं।इधर उधर की बातें करते हुए  सुमन ने विलियम से पूछ लिया,कितने साल से हो नोकफांते में?
-सात साल से-
-शादी नहीं करोगे क्या?
-अभी पसंदेर माइये पाई नाई।
-मैंने सुना है कि तुम्हारे यहां शादी का मामला बहुत मजेदार होता है!
-हां,धरेन,आमि जाक पसंद करिम,ताक निया राइतेर बेला बस्ती थिका पलाये जाम।हमरा दुईजनाक तमाम बस्तीर माइनसे खुंजि बेड़ाइबे।वन जंगलात इठि उठि घूम घूमिकै ,शैषकालत् खुंजि पया बस्तीत निया आइसबे।मुरगी काटा होइबे,बस्तीर माइनसे चु ( डांडी में भात सड़ाकर बना हड़िया या राइस बीयर) खाया राइतभर मादल बजाये नाइचबे।बिया शादीर मंतर पइड़बे।नाच गान खावा दावा परव शैष होइले पर, आमि आमार बिया करा दुल्हन निया उयार घरत् जाया थाइकबो।
-मायने कि उस रात से तुम्हारा बाकी जीवन तुम्हारे ससुराल में ही बीतेगा!
-ठीक कइछेन।मुस्कराकर उत्तर दिया शर्मीले विलियम ने।
-कामकाज कुछ करते हो? प्रसंग बदल दिया सुमन ने।
-विशेष किच्छु ना,जंगलेर भीतर बापेर जेटुकु सामाइन्य जमीन आछे उहां एक आधटु खेती करि।उ फसल से  कितना दिन चले? खूब जोर दुई मास।सारा वत्सर काम नाई,रोजगार नाई। कथा आछिल,फारेस्त दिपार्तमेंत वाले हमरागुला बस्तीर माइनसे साल में एक सौ दिनेर काम दिबे- जंगले रास्ता घाट मरम्मत करना, नाली काटना, साफ करना,पौध लगाना,यही सब काम।अभी सालभर में दुई तीन दिन भी काम दिया नाई। जोर जबरदस्ती बिना पइसाय काम कराय लिबे। फारेस्तेर लोग भय दिखाये,ना कइरले घर बाड़ी तोड़कर जंगल थिका भगाये दिबे।
ढेरों ढाक ढोल पीटकर जंगल के लोगों के हक हकूक को लेकर जो कानून पार्लियामेंट में पास हुए,उसकी यह परिणति है! दीर्घश्वास निकला सुमन के सीने से।विलियम से कहा, चलो,अब उठा जाये।

आठ

 
जगरु उरांव के सुखरा बस्ती तक पहुंचने में लगभग ग्यारह बज गये।ये लोग जास्टिन मोमिन की गारो बस्ती से आये हैं,यह सुनकर एक प्रौढ़ घर से निकल आये। उन्होंने कहा,चलेन,आमि दैखाय दितेछि जगरुर घर।
जगरु के घर का छप्पर जंगली घास से बना नहीं है,कारोगेटेड टीन का छप्पर है। बांस की बाड़ से घेरा हुआ आंगन है उसका।वहां कुछ फूल के पौधे हैं।घर का काठ से बना दरवाजा हाट की तरह खुला हुआ है,लेकिन प्रौढ़ के पुकारने पर कोई घर से नहीं निकला। प्रौढ़ ने कहा,उयारा बोध करि घरे नाई।आंगन के एक कोने में बने मचान को दिखाते हुए उन्होंने कहा, आप उहां बइठे एकटु आराम करें,हमी तुरंत देख कर आता हूं जगरुके। निच्चय आसपासत आछे।
उस आदमी को खोज निकालना शायद इतना आसान नहीं होगा।इतनी दूर आने के बाद मुलाकात न हो तो रास्ते का परिश्रम बेकार चला जायेगा।अदिति से उसे मन मन ही मन विरक्ति होने लगी ।उसने उसे परेशान कर दिया था।अभी सुशीला की खबर चाहिए। गुस्सा आने लगा अदिति पर।मचान पर बैग रखकर बोतल निकालकर थोड़ा सा पानी पी लिया।
पंद्रह मिनट के करीब इंतजार करने के बाद सुमन ने देखा,वे प्रौढ़ महाशय भीषण मोटा कद काठी के किसी आदमी को साथ लेकर इधर ही आ रहे हैं।वह आदमी नंगा बदन है। घना काला रंग।छह फुट से ज्यादा लंबा होगा।सब मिलाकर कहा जा सकता है कि पूरी तरह दैत्य जैसा दीख रहा है।उसके नजदीक आने पर आंखों को ,चेहरे को ध्यान से देख लिया सुमन ने।छोटी छोटी उसकी दोनों आंखों की एक जोड़ा चौड़ी भौंहें,मोटे मोटे काला दो होंठ,हाथ पांव और सीने पर घने बाल।सुमन को लगा,इतने कुत्सित चेहरे के किसी आदमी को उसने जीवनभर देखा नहीं है।उसके वाइल्ड फ्लावर ने इतने वीभत्स किसी मनुष्य के साथ रिश्ता बना लिया है! उस आदमी के सीधे सामने आ जाने पर सुमन के पेट में मचोड़ जैसी महसूस होने लगी।
प्रौढ़ ने कहा,एई होइलो जगरु,जाक आपनि खुंइजतेछेन-
उस आदमी ने रोमश अपनी मोटी भौंहें सिकुड़कर कर्कश स्वर में पूछा,कि चाई?
उसके गले की आवाज सुनकर चौंक गया सुमन।उसे ऐसा लगा कि जैसे किसी मिट्टी के बड़े से पानी भरने के खाली बर्तन से यह गंभीर आवाज बन रही है!
-मैं गारो बस्ती से आ रहा हूं ,नोकमा जास्टिन मोमिन ने मुझे भेजा है सुशीला की खोज खबर लेने के लिए-
-सुशीलार कि खबर नागे आपनार? पहले की तरह ही कर्कश और बदतमीज लहजे में भीषण आकृति के उस आदमी के गले की आवाज और उसके सवाल पूछने का लहजा।
-अब कैसी है सुशीला? कुछ दिनों पहले अलीपुरदुआर से डाक्टर बुलाकर हमने उसकी चिकित्सा करायी थी।
बस!सुमन का यह  उत्तर सुनकर मुहूर्तभर में जादू की तरह उस आदमी का चेहरा बदल गया,छवि बदल गयी। उसकी आखें,चेहरे चमकने लगे,जहां क्रूरता का चिन्ह मात्र बाकी न था।गले का स्वर यथासंभव नीचा करके उसने कहा, आप वहीं कइलकाता के बाबू? सुशीला कतोय कहिछे आप दुनो की कथा,आप लोग मनुष्य नहीं,दैवता हैं! चलेन चलेन,घरेर भीतरत चलेन।
सुमन का शक और  गाढ़ा हो गया।यह आदमी जरुर मैजिक जानता होगा।नहीं जान रहा होता मैजिक तो पलभर में उसकी आंखों,चेहरे और गले के स्वर में इतना बदलाव कैसे आ गया? शायद इसी जादू के दम पर ही वह शायद मनुष्य से राक्षस और फिर राक्षस से मनुष्य बन जाता होगा!
-खडा थाइकलेन कैन? चलेन घरेर भीतरत चलेन-
अब तक सुमन समझ नहीं पा रहा था कि क्या करें।इस बार उस आदमी के तगादा पर अनिच्छावश घर के खुले दरवाजे की तरफ उसने कदम बढ़ा दिये।
बस्ती के प्रौढ़ ने कहा,आप लोग भीतर जाकर बातचीत करें,मैं निकल रहा हूं।
विलियम ने भी कहा,मैं भी तुरंत घूम घामके आता हूं।
घर में घुसकर सुमन के बैठने के लिए एक मोड़ा बढ़ाकर जगरु ने कहा, बसेन। इसके बाद बोला,आपको परथम देखि मने कइच्चिलाम,आपने फारेस्त किवा पुलिसेर नोक- सुशीला की खोजे आइच्चेन।आमि भूल कइच्चिलाम! आपनि आमाक माफ करि दें। सहसा उसका विशाल शरीर सामने की तरफ झुकाकर सुमन के दोनों पैरों की तरफ उसने अपना लंबा दाहिना हाथ बढ़ा दिया। इतने अचानक ऐसा हो गया,मोड़ा में बैठे अपने दोनों पांव समेट लेने का मौका भी नहीं मिला सुमन को।
किंतु इस अप्रत्याशित प्रणाम से अन्य एक सुयोग बन गया। इस भयंकर दैत्य को देखकर सुमन के मन में जो आतंक पैदा हो गया था,वह कुछ खत्म हुआ और उस आदमी से सीधे सवाल करने का उस साहस मिला।
-तुम जानते हो कि सुशीला बीमार है-उसका इलाज जरुरी है।मंत्र पढ़कर हो या जादू विद्या से,उसे तुमने यहां रोक क्यों लिया?
यह प्रश्न सुनकर उसके उस कुत्सित चेहरे के मोटे दोनों होंठों के कोण में अद्भुत तरह की हंसी खिल उठी।बोला,बाबू आप भूल कइच्चेन,आमि उयाक वश करि नाई,अयं वश कइच्चे आमाक!
उसकी इस बात पर सुमन को यकीन नहीं हुआ,उसके चेहरे और आंखों के भाव देखकर ऐसा अंदाज लगाकर जगरु बोला,कि कथाटु आपनार विश्वास होइलो ना तो? सब बूझाया कहिले,त्याखन आपनार विश्वास होइबे।ताइले सुनेन-
ऐकदिन राइतत सुशीला आमाक आसि कहे, तयं जैमन मंतर पड़ि जल छिटा दिया मानुषक राक्षस बानाओ,तैमन करि आमाक बाघ बानाये द्याओ।उयाक जिग्गेस कइल्लाम- कैन,तू बाघ बइनते चाहे कैन? अयं कय,जैमन करि फारेस्तेर लोकगुला आमाक खाइछे,आमि बाघ हया उयादेर खामो।आमि जतोइ उयाक बूझाई एटु हबार ना,किच्छुते बूझे ना,दिन राइत हमार इखान पड़ि थाके।कुत्ता बिलाई आपना घरत आसि बसी थाइकले,ताकेओ दुइटा खाइते द्यान,ठीक कि ना?तामाम दिन ना खाया थाइकबो माइयेटा- ताई दुइटा खाइते दिताम।एमनि करि दिन जाय,मास जाय-कैमन जैनो माया पड़ि गैलो माइयेटार ऊपर।खदेड़ दिबार पाइल्लाम ना।दिने दिने आमाक कैमन जैनो वश करि फैलाइछे।आमाक वश करि आमाक दिया बाघ बइनबे अयं।
-तो इसका मतलब क्या निकला? बाघ बना देने का मिथ्या लोभ दिखाकर तुमने ही उसे रोक रखा है!एकदम सीधे और काफी जोर के साथ ये बातें कह दी सुमन ने।
-कि कइलेन,हमी उयाक लोभ द्याखाइछि? उल्टा अयं लोभ दैखाइछे आमाक। उयार शरीलेर लोभ।कहे हमार शरील उयारा खाइछे- एइटा आर कोन कामे लाइगबे! तुई हमार शरीलटा खा, बदले आमाक बाघ बानाय दे।शरीलेर कापड़ खुइला उयार सुंदर शरीलटा आमाक दैखाय! कोनो माइयेर एमोन सुंदर शरील देखि नाई बापेर जन्मे! ऐखोन कहेन,के काक लोभ द्याखाइछे?
थोड़ा रुककर जगरु ने पूछा-आपनिओ बैटा छाओवा,आमिओ बैटा छाओवा,ताइ कथाटक आपनाक करार पारि।एक जन सुंदरी युवती माइये निशीथे शरीलेर लोभ देखाइले,आपनि निजेके रुकते पाइरबेन? कि पाइरबेन ना तो?
पारबो।पारि।मैं ऐसा कर सकता हूं,जबड़ों को सख्त बनाकर मन ही मन बोला सुमन। इतने सालों से अदिति के सुंदर शरीर का लोभ क्या उसे कभी उसके संयम से डिगा सका है तनिक भी? उसके शुभ्र अहंकार पर एक बूंद काला धब्बा लगा सका है क्या?
किंतु यह क्या कर रहा है वह? खुद को सुमन ने संभाल लिया।अपनी तरह एक शिक्षित और विशिष्ट व्यक्ति के साथ वह इस जंगली कुत्सित आदमी की तुलना कैसे करने लगा? यह सोच कर उसने कोई उत्तर नहीं दिया,चुप हो गया सुमन।
-बाबू,आपनाक आउर एकटा कथा कहि।हमार एइ चेहरा देखि कोनो दिन कोनो माइये घैंसे नाइ आमार साथे।घिन्ना करि दूरे भागिछे।जल्लेश्वरेर मेलाय़ जेबार नरराक्षस साइच्छिलाम,राइतेर बेला गेछिलाम शहरेर वेइश्या बाड़ीत।आमाक चेहरा देखि दूर दूर भागाय दिछिलो वेइश्यागुला।डरे रहै कि आमि शायद उयादेर चिबाये खाया लिबो नरराक्षसेर मतो।हाःहाः,एकबार सोचिये, हमार चेहरा देखि माइये गुलार कि परिमाण भय- आदर ना करि उयादेर शरीलेर हाड़ गोड़ चिबोइतेछि कड़ मड़ करिया, कड़मड़, कड़ मड़, हाःहाःहाः,कड़मड़,कड़ मड़! उसके विकट अट्टहास से झन झन बजने लगी घर पर टीन की छत, उसके शरीर की समस्त थल थल मांसपेशी नाचती रही उसकी हंसी के हर झोंके के साथ साथ।
अट्टहास थमते ही ,विषाद की एक छाया उतर आयी उस कुत्सित आदमी के चेहरे पर। गंभीर आवाज में उसने कहा,हमार इ चेहरा देखिक आइज पइज्यंत कोनो माइये राजी हय नाई आमाक बिया कइरते,काछे आइसते।माइयेरा घिन्ना करे आमाक।ताई शरीलेर खिदा मिटे नाई ऐतो दिन।उपासेइ आछिलाम।किंतु उयादेर मतो सुशीला घिन्ना करे नाई आमाक, आदर करिया मिटाइछे हमार अनेक दिनेर जमा शरीलेर खिदा।
सुमन ने सोचा,कितने दिनों से वह खुद उपवास पर है? कितने दिनों की भूख जमा है उसके शरीर में?
जगरु की बातें सुनते सुनते थोड़ा अनमना हो गया सुमन।अब उसने सवाल किया उससे, अब कहां है सुशीला,उसे तो देख नहीं रहा हूं?
-बिहाने घूम थिका उठि केवल टोटो करि घूमि रहती।थोड़ा थमकर जगरु ने कहा, एकदिन आसि कहे, उगुलार संधान पाछि।आमि पूछि, की चीज? तो कय, बाघेर खाल, नख, दांत- एगुला।
-उयाक फिर पूछि,कार काछे आछे ये चीज।जवाब दिया,उ जो बिहारी चोर शिकारी ऐकटा दल आइछे,राजाभातखाओवा बाजारत अड्डा जमाइछे, चोरी करि हाथी बाघ मारे- हाथीर दांत, बाघेर खाल-नख-दांत-एगुला सब भिन मुलुके भेजे,उयादेर काछे। गाली दिया सुशीला कय,गुष्टिर तुष्टि करि उयादेर-हरामजादा गुला अनेक दाम हांइकते छिलो- कइलाम अतो रुपया नाई,बदले आमाक खा।खाइलो,किंतु चीजगुला दिलो ना!
- ओइ चीज गुलार जइन्ये रोज दिन राइत पागल हया घूमतेछे।कि जे उयार माथाय घुसिछे जलेश्वर बाबाई जाने! गंभीर गले में जगरु ने कहा।
-उसे थोड़ा समझा नहीं सकते क्या? उपदेश के स्वर में बोला सुमन।
-चेष्टा कि कम करछि,हमार कथा सुने ना एक्केबारे।आपनार साथ पाठाय दिम। द्याखेन,आपनि यदि समझाइते पारेन।
विलियम लौट आया।कहीं से जुगाड़कर लाया कुछ उबले हुए अंडे और खाल समेत आग में भुनी एक साबूत मुर्गी।सुमन को यह समझने में असुविधा नहीं हुई कि गारो बस्ती से कई योजन दूर इस अपरिचित बस्ती में भी वह नोकमा जास्टिन की दृष्टि के दायरे से बाहर नहीं है,यहां भी अनुगत अनुचर विलियम के मार्फत उनके निर्देशों का ही पालन हो रहा है।मन ही मन उनकी दूरदर्शिता और आंतरिकता की तारीफ किये बिना रहा नहीं गया सुमन से।
एक मोड़े पर केले की पत्ती में झुलसी हुई मुर्गी और उबले हुए अंडे रखकर विलियम ने कहा,ले लें,गरम गरम खाया नैन।
मोड़ा अपने मुख के सामने खींचकर सुमन ने कहा,आओ,हम तीनों बांटकर खा लें।
विलियम ने कहा,हमी खाया आइच्छि।आप खायें।इसके बाद जगरु ने जो कहा, सुनकर अवाक् सुमन।उसने कहा,बिहाने उठिया खाना बानाये राइखछि,सुशीला आइले, पाछत मुई खाम।सुमन ने सहसा आविस्कार किया कि अविश्वसनीय लगने के बावजूद, जगरु के इस भयंकर और कुत्सित चेहरे के पीछे छुपा है सुशीला के लिए लिए एक नरम ह्रदय।
सुशीला के लिए इंतजार नहीं किया जा सकता,देरी होने से जंगल के रास्ते इतनी दूरी रात को तय करनी होगी।जल्दी मचाने लगा विलियम।खाना खत्म करके रवाना होना पड़ा सुमन को।वापसी के रास्ते सुमन सोच रहा था,आज यहां उसने जो देखा और जो सुना,उसमें से कितान वह अतिति को बता सकेगा।

नौ

इतने अल्प समय में ही,अदिति की बस्ती की महिलाओं से खूब बनने लगी है। उनकी अस्वस्थता के दौरान उनकी सेवा, देखभाल करना,उन्हें थोड़ी बहुत दवा वगैरह देना, शरीर स्वास्थ्य को लेकर सलाह देना उसके काम हैं।इन सबके अलावा अदिति ने एक और काम नियमित शुरु कर दिया है- रोज संध्या को महिलाओं को पढ़ाना।बातों ही बातों में अदिति ने सुमन से कहा,राभा लोगों के कोचुक्रु स्क्रिप्ट की तरह गारो भाषा की भी शायद अपनी कोई स्क्रिप्ट कभी रही हो किंतु चर्चा के अभाव में और प्रयोग न करने के कारण वह अब  विलुप्त है।
सुनकर सुमन ने कहा कि भाषा दिवस पर मैंने कोलकाता में कवियों और साहित्यकारों को बांग्ला भाषा के भविष्य को लेकर सीना पीटते और आर्तनाद करते हुए देखा है।किंतु उन्हींके राज्य में रहनेवाले भूमिपुत्रों की भाषा जो खत्म होती  जा रही है,उसे लेकर उन्होंने एक भी बात नहीं की है।
गारो भाषा की किताबें रोमन लिपि में लिखी होने के कारण उन्हें पढ़ने और पढ़ाने में अदिति को कोई असुविधा नहीं हो रही है।इसी बीच गारो भाषा भी कमोबेश उसने सीख लिया है,इसमें उसकी मदद नोकमा की दोनों बेटियां सिंथिया और ग्लोबिया कर रही हैं।बस्ती की अन्य महिलाओं की तरह वे दोनों रोज शाम अदिति के पास नोकफांते कुटीर में आ जाती हैं।
बस्ती वासियों के साथ कुछ दिनों से अंतरंग मेल जोल से अदिति के लिए एक विषय अत्यंत स्पष्ट हो गया है।इनकी दुर्गति की मूल वजह अशिक्षा है।जब तक इनके लिए सरलता से मिलनेवाली उन्नतमान की शिक्षा की व्यवस्था नहीं हो जाती,तब तक ये अत्याचार और वंचना के शिकार होते ही रहेंगे।इसलिए मामूली ही सही,अदिति की बस्ती वालों के विकास की कोशिशों का ज्यादातर हिस्सा शिक्षा को ही केंद्रित है।
शाम को सिंथिया आ गयी।बोली,ग्लोबिया का शरीर खराब होइछे ,आइज आइसते पारबे ना ।रोबार्टे के साथे जयंतीते गेछिलो, मेला बइठछे सिखाने,आयं बायं किवा खाइछे- रोबार्ट छाओवाटाओ ऐमन लोभी,उयार पल्ले पड़िया-
-कोन रोबार्ट? जो हमें जल,जलावन लकड़ी,यह सब लाकर देता है? कल सारा  दिन हालांकि हमने उसे देखा नहीं है-
-हां, हां.ओई! काम धाम किछु नाई-ग्लोबियाक बिया कइरार चाय!आप ही कहें,बिया करि ग्लोबियाक खाओयाबि कि? उलटा बापूक कांधे बसि बसि खाइबे!
- हां,ब्याह के बाद तो रोबार्ट तुम्हारे घर जाकर रहेगा- यही तो तुम्हारा रिवाज है! अच्छा ही तो है,ग्लोबिया को तुम लोगों को छोड़कर ससुराल जाने की जरुरत नहीं होगी,यहां तक कि तुम्हारी शादी के बाद भी तुम दोनों बहनें साथ साथ रह सकोगी।
-सेई दिक् दिया भलो,किंतुक आर एक दिक् दिया भावेन,छाओवागुलार बियार पर रोजगारपाति ना थाइकले,बोझा हया संसार गुलार की दशा होइबे।आगेर दिने जमीन बेशी छिलो,से जमि थिका जे कमाई हइतो-संसार भालोई चइलतो।सेई जमीन भाग हया हया ऐखोन कारो एक बिघा,कारो डेढ़ बिघा।तार थिका वत्सरे कतो रुपया रोजगार हय,आपनिई कहेन?
-समस्या यह नहीं है कि विवाह के बाद लड़का किसके घर जाकर रहेगा।यह मामला कुछ ऐसा है कि वंशानुक्रम में बंटते बंटते हर परिवार के हिस्से में रह जाने वाली खेती की जमीन का परिमाण जैसे घटा है,सालभर उससे होने वाली फसल की पैदावार में जैसे कमी आयी है.उसके साथ साथ अन्य किसी रोजगार का रास्ता खुला नहीं है। तुम्हारे जैसे जंगल में रहने वाले लोगों के लिए सरकार ने किसी समय जो स्कीमों की घोषणा की थी,उनमें से किसी का कार्यान्वयन हुआ ही नहीं है।
थोड़ा रुककर अदिति ने कहा,खेती की जमीन जैसे संपदा है,उसी तरह जंगल भी संपदा है।ठीक से अगर इस्तेमाल करें तो जंगल में भी अनेक तरह के कामकाज और रोजगार की संभावना है।जंगल के लोगों को शिक्षा दीक्षा और ट्रेनिंग देकर उन सभी काम काज के लिए तैयार कर देने से आज की रोजगार समस्या का काफी हद तक समाधान संभव है।मुश्किल यह है कि इसके लिए किसी की कोई कोशिश ही नहीं है- न तुम लोगों की यानी जंगल में रहने वाले लोगों की और न ही सरकार की!
-हमरा कि कइरबो,हमार खातिर ना आछे इस्कूल,ना आछे ट्रेनिंगेर सुविधा!
-मुझे मालूम है कि कुछ भी नहीं है-फिरभी तुम्हें कशिश जारी रखनी होगी।चेष्टा न करके सिर्फ हाथ पांव समेट कर बैठे रहने से कुछ नहीं होने वाला है!
-कैमने चेष्टा कइरबो?
ठीक इस पल जो कर रही हो,उसी तरह- पढ़कर लिखकर।हजार असुविधा हो,इसे तुम्हें जारी रखना होगा।तुम्हारे मन में दृढ़ विश्वास बनाना होगा, इस दुरावस्था से निकलने का एक ही उपाय है- वह है शिक्षा!
-सेइटा होइबार नय-
- नही होगा? क्यों ?
-उयारा बस्तीर माइनसके अन्य कथा बुझाइछे-
-अन्य कथा? कौन सी बात?
- लिखा पढ़ा सीखिया किछु हयार नाई।सब किछु हाथियारेर जोरे हासिल कइरते होइबे!
- कितनी खतरनाक बात है! कौन ऐसा कहता है?
- आपना ठीक ठाक परिचय द्याय नाई,बस्तीर बूढ़ा गुला अापसे कथा कइतेछिल  ताई सुनछि। उयारा हबार पारे कामतापुरी,नक्साल,माओवादी किवा आल्फा - ठीक करा कहा ना पांओ।
-क्या वे बस्ती में अक्सर आते हैं?
-हां,बहुत बार।मास दुएक आगेओ आइच्छिलो,कथा दिछे बस्तीर लोक राजी होइले राइफेल बंदूकेर ट्रेनिंग दिबे-
-बस्ती के लोग राजी हो गये?
  -केह केह राजी, केह केह राजी ना-
-अब ये बातें रहने दो,वे सभी आ गयी हैं।चटाइयां बिछाकर दोनों लालटेन जला दो। अलग अलग उम्र की दस बारह महिलाएं अदिति के सांध्य क्लास में पढ़ने आती हैं।
सुमन के पहुंचते पहुंचते रात हो गयी।
-इतनी देरी कैसे हो गयी?
-अब मत पूछो,वापसी के रास्ते एक जगह एक विशाल दतैल हाथी खड़ा था। विलियम ने कहा कि झुंड से खदेड़ा गया इकलौता दतैल हाथी कहते हैं कि बेहद डेंजरस होता है, मानुष जन देख लें तो चार्ज करता है।हाथी वहीं जम रहा। मन के आनंद में पेडों के पत्ते चबाता रहा तो चबाता ही रहा।वहां से हिलने डुलने का नाम नहीं ले रहा था। बहुत देर तक इंतजार करने के बाद भी गजराज ने रास्ता नहीं छोड़ा तो मजबूरन  बहुत घूम कर आना पड़ा।
-मुलाकात हुई सुशीला से?
-सुशीला से नहीं हुई, किंतु जगरु से मुलाकात हो गयी-
-जगरु ने क्या कहा?
-वह लंबी कहानी है, अभी नहीं, कल सुबह बताउंगा सबकुछ-
-मुझे भी आपसे यहां की ढेर सारी बातें कहनी हैं।

रात के भोजन के बाद क्लांत शरीर के साथ बिस्तर पर लेटने ही जा रहा था सुमन, बाहर नोकमा जास्टिन मोमिन की आवाज।
-बाबू शुति पइच्चेन नाकि?
दरवाजा खोलकर बाहर निकलकर सुमन ने देखा नोकमा के साथ दो अजनबी लोग नोकफांते के नीचे खड़े हैं।एक जना मोटा नाटे कद का है तो दूसरा लंबा दुबला पतला। आधा अंधकार में उनका चेहरा मोहरा साफ दीख नहीं रहा था।
-ये आपनार साथे कथा कहिबार चाहे,नोकमा ने कहा।
-इन्हें तो मैंने पहचाना नहीं,बरामदे की सीढ़ी से आंगन में उतरते उतरते सुमन ने कहा।
-चिन्हा परिचयेर डरकार नाई,केबल डुई चारठु कठा कबार चाई।नाटे कद के मोटे आदमी ने अहमिया भाषा के उच्चारण के साथ कहा।गले के स्वर और मुंह की भाषा से उन दोनों के परिचय के बारे मोटे तौर पर अंदाजा लगा पा रहा है सुमन।बहुत संभव है कि ये अलफा संगठन के लोग हैं।
-जास्टिन कहिछे, डांगरिया कलिकातार परा आहिसा।ईमान  कष्ट करि ऐतो दिन धरिया एई बक्सार जंगले किवा मधुर लोभे पड़िया आछेन।लंबा दुबले से आदमी के गले में श्लेष! सुमन समझ गया कि उसे उकसाने का उनका मकसद है।
कुछ देर चुप रहकर परिस्थिति ठंडे दिमाग से समझ लेने की कोशिश की सुमन ने।इसके बाद बोला,यह तो सुंदरवन नही है,बक्सा का जंगल है।यहां मधु कहां मिलने वाला है?
उत्तेजना पैदा करने के लिए तैयार फंदे से जतन से बचते हुए ,जितना संभव सहज गले से ये बातें कहीं सुमन ने।
किंतु गरम अंगार पर ठंडी हवा  के झोंको का फल हुआ विपरीत।दप से जल उठा वह आदमी।बोला,मधु ना होइले सोना दाना किछु हबो!
-इस जंगल में सोना दाना कभी छुपा हुआ था कि नहीं,ठीक से कह नहीं सकता।
लेकिन अब नहीं है,यह हलफिया कह सकता हूं।वरना खबर मिलने पर पास्को या जिंदल उस सोने की खोज में इस जंगल को उजाड़ देते!
-हेई ना हय दितो! किंतु डांगरिया इटार परा कि करेन,हेइटा कन।(आप यहां क्या कर रहे हैं,यह बतायें।)
-बाघ-
-बाघ? बाघ शिकार करिबलै आहिसा?
-शिकार नहीं,आंकड़े!
-आंकड़े का माने! पान के साथ साबुत कच्चा सुपारी मुंह में डालकर चबाते हुए सवाल किया नाटे कद के मोटा आदमी ने।
-बताता हूं।बक्सा टाइगर प्रोजेक्ट के डिरेक्टर बाघों की जो मौजूदा संख्या बता रहे हैं, मेरी धारणा से वह अतिरंजित है।मैं मौके पर तहकीकात करके अपनी धारणा का सच झूठ जानना चाहता हूं।जान बूझ कर भाषा को जटिल बनाकर दोनों को भ्रम में डालने की कोशिश की सुमन ने।
-म्याला होइछे आपनार बाघेर अनुसंधान!दुई एक दिनेर मइध्ये आपनाक एई जंगल छाइड़ते होइबो।ऊंची आवाज में हुक्म जारी करने के ढंग से लंबे दुबले आदमी ने कहा।
इतनी देर बातें करने के बाद आखिर उन दोनों का असली चेहरा बेनकाब हो गया। सुमन अब निश्चित है,ये अलफा दल के सदस्य हैं।लंबा दुबला बदमिजाज शख्स लीडर है और नाटा मोटा आदमी उसका शागिर्द।ये लोग उसके मजाक के पात्र भी नहीं हैं,खूंखार आतंकवादी हैं- अबतक यह साफ है।बातों ही बातों में कमर में खोंसी हुई पिस्तौल निकालकर सीने और पेट में एक के बाद एक गरम शीशा ये उतार सकते हैं। फिर भी कोशिश छोडने से नहीं चलेगा।इनकी धमकियों में आकर अचानक यहां से निकल जाने पर इतना सारा जुगाड़ तैयारी, इतनी परिकल्पनाएं सब बेकार हो जायेंगी।
-मैं अगर इस बक्सा के जंगल में बाघों की खोज में भटकता हूं तो आप लोगों को कोई असुविधा तो होने की बात नहीं है, एक बार जास्टिन मोमिन की निगाहों में निगाह मिलाने के बाद यथासंभव नरम स्वर में सुमन ने कहा।
-आमरागुलार कि हुविधा, कि अहुविधा, हेइटु आपका मामला नहीं है।आपनाके जैमन कहा होइछे,तैमन करेन।निजेर माल पत्तर हकल गुटाया काइल परशु एई जंगल छाडि चलि जान।हुकुम का स्वर एक और परदा चढ़ाकर लंबे दुबले आदमी ने कह दिया।
अब तक खामोश थे नोकमा।इस बार उन्होंने लंबा दुबला आदमी के मुखातिब होकर कहा- बरदोलोई,आपनाक एकटा कथा कई, मन दिया सुनेन।बाबू और दीदीमणि मिलिया इस बस्ती के लोगों की जैसी सेवा कर रहे हैं।आलीपुर दुआर थिका डाक्तार आनये सुशीलार चिकिच्छा कराइछे,ऐतो ऐतो औषध खरीदे आनिछे शहर थाकि-सेबा कइरछे बस्तीर असुस्थ माइनसेर! निजेदेर रुपया दिया किताबपत्र किनिया बस्तीर माइयेगुलाक लिखापढ़ा शिखाइछे।तोमरागुला  उयादेर बस्ती थाकि भगाइते चाहो, कैन?
-उयारा थाइकले ,आमरागुलार कामे अहुविधा हबो।
-फिन उयादेर भगाइले,बस्तीर माइनसेर असुविधा?तोमरागुला पाइरबेन बस्तीर माइयेगुलाक लिखा पढ़ा सिखाइते?औषध पत्तर दिया, शहर थिका डाक्तार बुलाय, बस्तीर मानुषगुलार दिन राइत चिकिच्छा कइरते? यदि पारेन,भगाये दैन उयादेर।और यदि ना पारेन,उयारा थाइकबे एई बस्तीत,जितना दिन उयादेर मन चाहे। हमी गारो बस्तीर नोकमा हया कइतेछि एई कथा।
कमर में लोडेड पिस्तौल होने के बावजूद ,इस वक्त नोकमा की बात अमान्य करने का साहस बरदोलोई नाम के लंबे दुबले आदमी और उसके नाटे मोटे शागिर्द को नहीं है।क्योंकि उन्हें मालूम है कि नोकमा के शरीर पर खरोंच तक लग गयी तो दलबद्ध जंगली कुत्तों की तरह बस्ती के लोग उन्हें चीरकर खा जायेंगे।
सुमन की तरफ सहसा जाल में बंदी बाघ की तरह हिंस्र दृष्टि डालकर बरदलोई ने अपने संगी का हाथ पकड़कर खींच लिया। फिर लंबे लंबे डग के साथ दोनों शालवन के घने अंधकार में गायब हो गये।सुमन एकटक दृष्टि जमाकर उस अंधकार को देखता रहा।वह निश्चित है,वे जख्मी दोनों बाघ इस बक्सा के जंगल में उसे अब एक दिन भी राहत के सांस लेने नहीं देंगे। छुप कर उस पर नजर रखेंगे। मौका मिलते ही बाघ की तरह घात लगाकर अचानक हमला बोल देंगे,दांत नख निकालकर।
इस आधा अंधकार में जास्टिन मोमिन की शिकारी आंखों की खोजी दृष्टि ने सुमन के माथे पर दुश्चिंता के बिंदू बिंदू पसीना को नजरअंदाज नहीं किया।अपने घर की तरफ कदम बढ़ाने  से पहले उन्होंने सुमन को आश्वस्त किया-इसे लेकर बेमतलब चिंता ना करें। जाइये, घरे जाया ऩिच्चिंते घुमान,राइत होइछे अनेक।
नोकमा को आश्वस्त करने का अधिकार है। इस पचपन साल की उम्र में भी अट्ठाइस साल पहले खाली हाथ बाघ से लड़ने के चिन्ह अभी स्पषट हैं,उनके सीने और उनकी पीठ की लोहे की तरह सख्त पेशियों में।

अगले दिन नोकफांते के बरामदे में बैठकर चाय का गिलास हाथ में लेकर बहुत कुछ सोचने लगा सुमन।पिछली रात की घटना से पूरी तरह साफ हो गया कि नोकमा के आश्वासन के बावजूद बक्सा का यह जंगल उसके लिए सुरक्षित आश्रय नहीं है।अब उसे चिंता होने लगी कि ,इस वक्त ठीक कहां जाने पर वह सुरक्षित रह सकेगा-शहर में, पहाड़ों में या समुंदर में?
नहीं,कहीं भी नहीं।सिर्फ वह ही क्यों,आज कोई भी सुरक्षित नहीं है- चौबीसों घंटे स्पेशल प्रोटेक्शन गार्डों के सुरक्षाघेरे में इस देश का प्रधानमंत्री तक सुरक्षित नहीं है।वह तो एक आम आदमी है!
सामने एक मोड़ा खींचकर बैठ गयी अदिति।-इतना क्या सोचने लगे हैं?
-सोच रहा हूं कि शायद यहां से हमारा डेरा डंडा उखड़ने का वक्त हो गया है,गंभीर स्वर में कहा सुमन ने।
-यहां से कहां जायेंगे,इसे लेकर कुछ सोचा है? या फिर कोलकाता में?
-कोलकाता में! क्या कह रही हो तुम?वहां तो पुलिस घात लगाये बैठी है,घर में कदम रखते ही अरेस्ट कर लेगी।
-तो फिर कहीं और? थोड़ा सोचने के बाद अदिति ने कहा ,मुंबई में मेरी एक बुआ रहती हैं,बांंद्रा में-
-फिर वह से हांके जाने पर दिल्ली में तुम्हारी मौसी के घर।फिर रांची या भुवनेश्वर में! इसतरह कितनी बार कहां कहां भागती रहोगी तुम?
भारी माहौल को हल्का बनाने के लिए अदिति ने कहा,किताबों की एक लिस्ट तैयार की है।इसे सुनील बाबू के पास भेजना है,उनसे कहना है कि जितनी जल्दी संभव हो ,ये किताबें भेज दें-
-किंतु उसके लिए रुपये पैसे? साथ जो लाये थे,सभी तो खत्म हैं!
-मेरे हाथों की ये चूड़ियां और गले में यह माला अब इस जंगल में किस काम आयेंगे,कहिये ना?
-सिर्फ इतने ही गहने तुम्हारे लिए आखिरी सहारा है!
- होने दीजिए आखिरी सहारा! लेकिन मुझे लगता है कि इन्हें किसी काम में लगाने का इससे बेहतर मौका मुझे फिर नहीं मिलने वाला है!
सुमन अचरज से अदिति का चेहरा देखता रह गया।इतने दिन एकसाथ रहकर भी वह अदिति को पहचान नहीं सका।
या,किसी दिन उसने अदिति को पहचानने की कोशिश ही नहीं की?


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