Monday, October 14, 2019

बक्सादुआर के बाघ-5 कर्नल भूपाल लाहिड़ी अनुवादःपलाश विश्वास

बक्सादुआर के बाघ-5
कर्नल भूपाल लाहिड़ी
अनुवादःपलाश विश्वास


अठारह

सब सुनकर अदिति ने कहा,जमानत पर रिहाई का मतलब तो यह हुआ कि आपको फिर कोलकाता जाना होगा।
-हां, सुनवाई का  दिन तय होने पर जाना होगा। अच्छा ही हुआ,कोलकाता से संपर्क एकदम टूट गया था।अरेस्ट होने के डर से कंधे पर खड़्ग हर वक्त लटक रहा था,इसलिए भाग कर आने के बाद कोलकाता लौट नहीं पा रहा था।अब जा सकुंगा।डर डर कर नहीं,सीना तानकर।
अदिति ने ख्याल किया है कि इन कुछ महीनों में सुमन का स्वास्थ्य टूटा है। किंतु इसके बावजूद चेहरे पर एर प्रशांति आयी है।आोंखें चमकने लगी हैं।
सुमन ने कहा कि अबकी दफा गया तो तुम्हारे लिए किताबें,दवाइयां -वगैरह लेता आउंगा।इसके अलावा एक और बात है। जेब में रुपये पैसे एकदम नहीं है।यहां कुछ खर्च है।मैंने कोलकाता में अपना घर बेच देना तय किया है। इस सिलसिले में दो चार लोगों से बातचीत भी की है।
-पुरखों की रिहायशी जमीन बेच देंगे?
- पुरखों की उस रिहायशी जमीन से अब रिश्ता क्या रह गया है? अब हमारा जो कुछ भी है,वह यहीं है,इसी जंगल में!
-किंतु भविष्य के लिए किसी सहारे की भी कोई बात होती है।विपदा आपदा आती जाती है,बीमारी सीमारी है। इस पुश्तैनी घर के अलावा तो आपका कुछ भी नहीं है!
-नहीं माने? इस बस्ती के लोग क्या अपने नहीं हैं? इनके घर दुआर क्या मेरे घर दुआर नहीं हैं?
-वह न हो मान लिया।किंतु एक वक्त तो ऐसा भी आयेगा, जब आपके काम करने की क्षमता नहीं रहेगी।बीमार पड़ गये तो अस्पताल जाकर चिकित्सा कराने की जरुरत होगी। तब कहां जायेंगे,कहां रहेंगे आप?
-तब जो होगा सो होगा।किंतु तुम? तुम कहां रहना चाहती हो,कहो,यहां या कोलकाता में?
होंठों के कोण में थोड़ी सी मुस्कान खिलने के बाद अदिति ने कहा,कुछ दिनों पहले आपने मुझसे एक सवाल किया था।पूछा था कि ,अगले जनम में कहां जन्म लेने की इच्छा है।याद है वह सवाल?
-सवाल ही नहीं,जवाब भी याद है।तुमने कहा था,सिर्फ अगले जनम में नहीं, एक के बाद एक सात जनम तक तुम यहीं गारो वस्ती में जन्म लेना चाहती हो।
- तो समझ लीजिये.यहां सात बार जन्म लेना अगर है तो मेरे लिए कहीं अन्यत्र जाकर रहना संभव है क्या?
-संभव है,किंतु बूढ़ी उम्र में बार बार उतनी दौड़ भाग,बक्सादुआर टु कोलकाता, कोलकाता टु बक्सादुआर, इतनी कवायद शायद तुम्हारे शरीर के लिए सह पाना मुश्किल होगा।कहते ही हा हा करके हंस उठा सुमन।अदिति ने बहुत दिनों से सुमन को इस तरह दिल खोलकर हंसते नहीं देखा ।
मुलाकात होते ही नोकमा ने कहा, बस्तीर माइनसे ठीक कइच्चे आपनागुलार जइन्यो बस्तीर ठीक माझत ऐकटा नतून घर बानाये दिबे।नोकफांते थाकिया आपनागुलार अनेक असुविधा होइतेछे।
-हमें कोई असुविधा नहीं हो रही है, सही है लेकिन अपना ठिकाना खोकर तुम्हारे फांतों को भीषण असुविधा हो रही है।किंतु नया घर बनाने के लिए तो रुपये पैसों की जरुरत होगी। इस वक्त मेरे पास रुपये पैसे कुछ नहीं हैं।
-रुपया पइसा नाइगबे कैने?  बांसेर चटाइेर फर्श,बांस के दड़मार दीवार,ऊपर बिचालीर छप्पर- एगुला तो ऐकटाओ खरीद करा नागे ना,जंगलेई मिले।जे कयटा शालेर खूंटी नागे,ए बस्ती,ओ बस्ती थिका चाहि आइनबे।खरीद मइध्ये दुईटा दसटा लोहे की कीलेंं।समस्त बस्तीर माइनसे मिलिया घरटा बानाइबे,लेबार खर्च ऐक पइसा भी नाई।
-सुमन ने किताबों में कम्युनिटी लिंविंग के बारे में पढ़ा है,आंखों से कभी देखा नहीं है।उस दिन बक्सा के इस जंगल में ,गारो बस्ती में बैठकर उसने चाक्षुस देख लिया।
देखा,बस्ती के सारे लोगों,बच्चा बूढ़ा स्त्री पुरुष ने मिलकर- सभी ने एकजुट होकर सुबह से संध्या तक  के परिश्रम से कुछ ही घंटों में घर का ढांचा तैयार कर दिया। बाकी रहा छप्पर बनाने का काम।फिर एक दिन सबने मिलकर हाथोंहाथ घास बिचाली से बना दिया छप्पर भी।तीसरे दिन,घर के भीतर सोने के लिए बांस का मचान,चीजें रखने के लिए बांस के ताक,रसोई के लिए मिट्टी का चूल्हा, वगैरह तैयार कर दिये।इन तीन दिनों में लगातार सुमन और अदिति की एकदम आंखों के सामने चलचित्र की तरह घट गयी एक अविश्वसनीय घटना।
सुमन अदिति का यह नया घर नोकफांते से दो सौ गज की दूरी पर है।बस्ती के लोगों ने हाथोंहाथ नोकफांते से सुमन और अदिति के सारे सामान ढोकर उनका नया संसार सजा दिया।बस्ती के वृदध पुरोहित ने आकर मंत्र पढ़कर शांति स्वस्त्यान भी कर  दिया।देवता को समर्पित एक मोटी सोटी देशी मुर्गी की बलि चढ़ा दी।उत्सर्ग किया भात सड़ाकर तैयार राइस बियर जिसे ये चु कहते हैं।बस्ती के तमाम औरत मर्द वह चु पीकर रातभर मादल के ताल में नाचते रहे।
पहले दिन से ही ,बस्ती के लोग सुमन और अदिति को पति पत्नी मानते हैं। उनके रिवाज के मुताबिक ,पति पत्नी का नये घर में पहली रात एक साथ सोना मना है। इसलिए उन्होंने बार बार सुमन और अदिति को खींचकर अपने साथ शामिल कर लिया नाचते हुए झुुंड में।उनके हाथ पकड़कर वे रातभर नाचते रहे।
गृहप्रवेश के अगले दिन से ही नये घर के बड़े से आंगन में महिलाओं का क्लास शुरु हो गया।सुमन ने कहा, मेरा जरुरी कामकाज निबट गया तो मैं लड़कों का क्लास भी शुरु कर दूंगा।सोच रहा हूं,कल राजाभातखाओवा जाउं।
-क्यों,अचानक राजाबातखाओवा क्यों? अदिति का प्रश्न।
-बीडीओ के साथ मुलाकत करनी है।जंगल के लोगों में किसी के पास वोटर कार्ड, राशनकार्ड, बीपीएल कार्ड - यह सब कुछ नहीं है।जितनी जल्दी हो,इन सबकी व्यवस्था करनी है।वहां काम खत्म करके अलीपुरदुआर घूम आउंगा। सुनील सान्याल के साथ मुलाकात करके कोर्ट में चल रहे केसों के बारे में खबराखबर लेनी है।
-अकेले ही जायेंगे?
- ना, नोकमा को साथ लेकर जाउंगा।मैं चाहता हूं कि इसके बाद वे अपना कामकाज खुद कर सकें।
-कर सकेंगे? पढ़ना लिखना कुछ भी तो नहीं जानते हैं।
-इसे लेकर चिंता मत करो,धीरे धीरे सब सीख लेंगे।

बीडीओ आफिस जाकर देखा, बीडीओ साहब आफिस में नहीं आये हैं।दिनभर में आयेंगे या नहीं,आफिस में कोई सही सही बता नहीं सका।हेड क्लर्क ने कहा,साहेब बंगले में हैं,बहुत संभव है कि उनकी तबीयत खराब है।
-कल आयेंगे क्या?
-मैं तो भगवान नहीं हूं,कैसे कहूं, बताइये? कुर्सी से उठकर पिओन को बुलाकर  हेड क्लर्क ने कहा,ओहे,बंशी,टेलीफोन देखते रहना।मैं थोड़ी चाय पीकर आता हूं। यह कहकर वे दोनोें के मुंह के सामने गटगट करके निकल गये।
यह अभिज्ञता सुमन के लिए कोई नया नहीं है।उसे मालूम है कि इसी तरह के काले साहबों के सौजन्य से आज तक इस जंगल के लोगों का वोटर कार्ड नहीं बन पाया, राशन कार्ड नहीं बना,बीपीएल लिस्ट में उनके नाम शामिल नहीं हो सके।सुमन यह भी जानता है कि यह सब हासिल करने के लिए जास्टिन मोमिन के जूतों के सोल कई दफा बदलने होंगे।
साहब की बेहतर स्वास्थ्य की कामना करते हुए उनके दफ्तर के दरवाजे पर धरना देने से कोई फायदा नहीं है।नोकमा से सुमन ने कहा, चलिये, अलीपुरदुआर चलते हैं।वहां कोर्ट में काफी काम बाकी है।
आम जनता के लिए कोर्ट कचहरी बहुत कठिन ठिकाना है।सर्वत्र दलालों का राज।उन्हें प्रणामी दिये बिना एक कदम भी आगे बढ़ना मुश्किल होता है।किंतु यहां सुमन की तरह आम आदमी के लिए त्राता बनकर सुनील सान्याल उपस्थित हैं।उनके सौजन्य से कोर्ट में चल रहे मुकदमों के बारे में मौजूदा हालत जानने में सुमन और नोकमा को खास कठिनाई नहीं हुई।
रोबार्ट मर्डर केस में कोर्ट के निर्देश पर पुलिस की जांच में काफी प्रगति हुई है। जिस फारेस्ट गार्ड ने राइफल की बट से रोबार्ट को पीटकर मार डाला, पुलिस ने उसे चिन्हित कर लिया है।बहुत जल्द उसे गिरफ्तार करके कोर्ट में पेश कर दिया जायेगा।
तालचिनि थाने में पुलिस फायरिंग केस में भी पुलिस की जांच में थोड़ी प्रगति हुई है। जिलाधीश और अदालत ने जिले के पुलिस सुपर को जांच तेज करने का आदेश दे दिया है। सुनील सान्याल ने कहा कि अगर देखते हैं कि एसपी जांच में टालमटोल कर रहे हैं तो मैं कोलकाता हाईकोर्ट में दरख्वास्त लगा दूंगा,जिससे महामान्य अदालत न्यायिक जांच का आदेश जारी कर दें।इसे लेकर मैंने कोलकता मैं अपने वकील दोस्तों से इसी बीच बातचीत कर ली है।
जास्टिन मोमिन हर वक्त सुमन और सुनील सान्याल की बातचीत ध्यान से सुन रहे थे,बीच बीच में दो चार सवाल भी कर रहे थे।उन्हें याद आने लगा,चार साल पहले पुलिस ने किस तरह राभा बस्ती के तेरह साल के सुलेमान को पीछे से गीली मार दी थी। उन्हें याद आने लगा कि फारेस्ट गार्डों ने किस अमानुषिक तरीके से सुशीला के मरद का कत्ल करके फूल की तरह सुंदर उस लड़की से बलात्कार किया था।याद आया कि कैसे उस वक्त वे सभी असहायबोध के शिकार हो गये थे।उस भीषण संकट से कैसे उबर सकें, जंगल के लोग कोई उपाय खोजे नहीं पा रहे थे।पिछले दस बारह साल के दौरान कई दफा जन सुनवाई हुई, कोलकाता और अलीपुरदुआर से बड़े बड़े जज मजिस्ट्रेट आये और उन्होंने उनका दुःख दर्द सुना।किंतु हुआ कुछ नहीं।
किंतु आज सुमन और सुनील सान्याल की बातचीत सुनते हुए जास्टिन मोमिन के मन में नई आशा,नई उद्दीपना की सृष्टि होने लगी।उन्हें लगने लगा कि उन दोनों की कोशिशों से शायद अबकी दफा जंगल के मनुष्यों को न्याय मिलेगा।इतने समय से फारेस्ट डिपार्टमेंट के लोग और पुलिस उन पर जो अन्याय अत्याचार कर रहे हैं,उसका अवसान होगा।
किंतु इस वक्त जंगल में एक और गंभीर समस्या पैदा हो गयी है,उसे लेकर नोकमा बेहद चिंतित हैं।यह समस्या बरदोलोई और उसके दल बल को लेकर है।बक्सा के जंगल में काफी संख्या में लोगों को बरदोलोई यह समझा सका है कि कोर्ट कचहरी से कुछ होना जाना नहीं है- पुलिस और वन विभाग के अफसरों की गोली का जबाव गोली से देना होगा।हाल में बरदोलोई और उसके शागिर्दों की जंगल में आवाजाही बढ़ गयी है। नोकमा को खबर मिली है,जंगल में कुछ हथियार लाकर वे बस्ती के लोगं को ट्रेनिंग देने की तैयारी में हैं।
उस दिन चर्च से निकलने के बाद उन लोगों ने जिस तरह सुमन को धमकाया है, वह घटना सुनने के बाद भीषण चिंतित हैं जास्टिन मोमिन। अपने लिए उतना नहीं, उससे कहीं ज्यादा सुमन की सुरक्षा को लेकर उनकी यह दुश्चिंता है। नोकमा को मालूम है कि बरदोलोई से खतरे की बात करके सुमन को घर में रोका नहीं जा सकता।उन्हें यह भी मालूम है कि बरदोलोई को मौका मिला तो वह बख्शेगा नहीं।
अलीपुरदुआर पहुंचते ही सुमन ने किताबों की एक लंबी लिस्ट सुनील सान्याल को थमा दी थी।वे किताबें आ गयी हैं।दो अलहदा बंडल हाथों में लटकाये,सुनील सान्याल को धन्यवाद कहकर वे दोनों फिर राजाभातखाओवा की बस पकड़ने के लिए रवाना हो गये।
नोकमा को यह चिंता सताने लगी कि बस से उतरकर,घने जंगल के मध्य लंबे पंद्रह मील रास्ता उन्हें संध्या उतरने से पहले तय करना होगा। किन्तु उन्हें मालूम नहीं है कि जंगल के इस लंबे पथ पर किस मोड़ पर,किस झाड़ी की आड़ में संगी साथियों को लेकर उनके इंतजार में घात लगाये बैठा होगा बरदोलोई।

उन्नीस

किताबें पाकर बहुत खुश हो गयी अदिति।सुमन ने कहा,दाम नोट करके रखना। सुनील सान्याल को यह दाम चुकाना होगा।
-सिर्फ इन किताबों का? इससे पहले भी कितनी दफा उन्होंने किताबें भेजी हैं-
- उनके दाम भी जोड़ लेना।इसके साथ ग्लोबिया के नर्सिंग होम का बिल,मेरी जमानत के रुपये-यह सब जोड़कर कमसकम सत्तर अस्सी हजार तो होंगे ही।सोच रहा हूं,अगले हफ्ते कोलकाता जाकर घर बेचने का मामला फाइनल करके आता हूं।तुम जाओगी मेरे साथ?
-मैं जाकर भला क्या करुंगी?
-अपने मां बाप से मिलकर आ जाना।इतने दिनों से तुम्हारी कोई खबर ना पाकर वे खूब दुश्चिंता कर रहे होंगे।
एक दीर्घश्वास निकल आया अदिति के सीने से। बोली,दुश्चिंता? मुझे लेकर दुश्चिंता करना उन्होंने बहुत दिन पहले छोड़ दिया है!
अदिति के ह्रदय में जमा अव्यक्त वेदना हठात् कभी कभार इसी तरह दीर्घश्वास में निकल आती है।
उस वेदना का उत्स सुमन के लिए अनजाना नहीं है।जो अभिमान, हठात् किसी दुर्बल मुहूर्त पर अदिति के गले के स्वर में इसतरह अनुकंपन सिरज देता है,उसके कारण के बारे में अनुसंधान का प्रयोजन नहीं है।
ऐसा भी नहीं है कि अदिति के प्रति सुमन को सहानुभूति न हो।वह उसकी सूक्ष्म अनुभूतियों के प्रति उदासीन नहीं है। किंतु अपने ही तैयार पिंजड़े में वह कैद हो गया है। जिसे तोड़ने में पल पल उसका ह्रदय रक्ताक्त ,क्षत विक्षत हो रहा है। फिरभी किसी भी तरह से वह अपने इस स्वेच्छा बंधन से मुक्ति का उपाय खोज नहीं पा रहा है।
संध्या को अदिति की छात्राएं झुंड बनाकर आ गयीं।प्रतिदिन उनकी संख्या दो चार करके बढ़ रही है।केवल गारो बस्ती से नहीं,लड़कियां राभा बस्ती से छोटी सी नदी पार करके आ गयी हैं।साल के इस वक्त नदी की धारा पतली है, इसलिए नदी के आर पार जाने में कोई असुविधा होती नहीं है।
अदिति को राभा बस्ती की लड़कियों से खबर मिली, हाथियों का एक दल आस पास के जंगल में घूम फिर रहा है।पिछली रात उन्होंने राभा बस्ती के खेतों में उतर कर फसल तबाह कर दी है।आज यहां आते वक्त उन्होंने बच्चों समेत हाथियों के उस झुंड को देखा है।
-उन्हें देखकर तुम्हें डर नहीं लगता? रात को तो उसी रास्ते से तुम्हें लौटना है, अगर वे पीछा करें तो?
- झुंड में रहें तो वे कुछ हीं करते।डर सिर्फ झुंड से भटके दतैल हाथियों को लेकर है। वे पीछा करें तो बच नहीं सकते।
अदिति ने सुमन से कहा कि चिड़ियाघर में पांवों में जंजीर बंधे बंदी हाथी देखा है।खुले जंगल में जंगली हाथी कभी देखा नहीं है, कल नदी किनारे जायेंगे,यदि वे दीख जायें।
-वे क्या एक जगह बैैठे  रहते हैं?भोजन की खोज में जंगलभर में भटकते रहते हैं।
-किस्मत में हो तो देख सकुंगी।क्या आप हमारे साथ जायेंगे?
-कब?
-कल दोपहर बाद।
-ठीक है,सुमन ने हामी भर दी।अदिति का मन भारी है। हो सकता है कि इससे उसका मन थोड़ा हल्का हो जाये।


अगले दिन ढलती हुई दोपहर को  उन दोनों ने नदी की तरफ कदम बढ़ा दिये। बस्ती के दक्षिण तरफ वह नदी है।मौजूदा हालत देखकर वर्षाकाल में उसके रुद्र रुप की कल्पना भी नहीं की जा सकती।शरीर के शूखे हाड़ पंजर की तरह दिगंत विस्तृत बोल्डरों के मध्य प्रवाहमान शीर्ण धारा एकदायौवन मदमत्ता द्विकुल प्लाविता नदी का वजूद ढो रही है,बहुत हद तक बक्सादुआर की क्रमशः संकुचित हो रही वनभूमि में अस्तित्व के संकट में निमज्जमान अवलुप्तप्राय भूमिपुत्रों की तरह।
सुमन ने कहा,पहाड़ों में जंगल काटकर साफ कर देने से नदी की यह दुर्गति है। ग्रीष्मकाल में पानी नहीं रहता।बस्ती वालों को पांच छह मील दूर जाकर ट्यूबवेल से पानी ढोकर लाना पड़ता है।जंगल के मनुष्यों की इस दुर्गति के लिए संपूर्ण तौर पर हम जैसे सभ्य समाज के लोग जिम्मेदार हैं।हमारे जैसे शिक्षित मनुष्यों का लोभ अपरिसीम है।
वर्षाकाल में नदी के आरपार जाने के लिए एक लोहे का झूलता हुए पुल मांधाता जमाने  का है।लंबे अरसे से मरम्मत और देखभाल न होने से वही टूटती हुई सी है। वर्षा काल में इस झूलते हुए पुल से होकर कांपते हुए सीने के साथ जान हथेली में लेकर बस्ती के लोगों को पार करना पड़ता है- बोल्डरों के ऊपर से भीषण गर्जन कर रही,मुख में फेन उठे जंगली घोड़े की तरह दुरंत गति में कूद कूदकर चल रही, फूल कर बढ़ रही नदी का तीव्र जलस्रोत।
नदी के किनारे होकर कुछ दूर जाने के बाद भी हाथियों के झुंड का दर्शन नहीं हुआ।नदी के किनारे शालवन में धीरे धीरे छाया दीर्घ से दीर्घतर होने लगी।तीव्र से तीव्रतर होने लगा मिलन को तृष्णातुर झींगुरों का लगातार आर्तनाद।
संध्या होते ही छात्राएं आ जायेंगी।सुमन ने कहा,तुम्हारा भाग्य आज खराब है। संध्या होने लगी है,चलो ,लौट चलें।
नदी के किनारे से बस्ती तक शालवन के भीतर मीलभर का संकरा रास्ता।सुमन और अदिति शालवन में घुसकर बस्ती की ओर दो सौ गज भी जा नहीं सके,हठात् उनके पीछे सूखी हुई पत्तियों की खस खस आवाज। सुमन ने पीछे मुड़ते ही लंबा दुबला पतला बरदोलोई और उसके मोटे शागिर्द को देखा।उन दोनों के हाथों में उन्हें निशाना बांधे स्टेनगन।बरदोलोई ने दांत मुंह बिगाड़कर कहा,लीडर होने का बहुत शौक हो गया है। चलिये हमारे साथ,आपकी लीडरगिरि का काम तमाम करते हैं।
-कैसा लीडर? किनका लीडर? शांत गले में सुमन ने सवाल किया।
सुमन का यह निर्विकार आचरण देखकर वह आदमी पगला गया।बोला, भोला बन रहे हैं! जानते नहीं हैं,किनके लीडर हैं?एई जंगलेर हकल मानु ऐखोन आपनार कथाय उठे बसे।आपनि मानुगुलाक इमन वश कइरेछेन!आमरागुलाक बस्ती थिका भागाय दिछे ! कइचे, बस्तीत घुसले  पांव भागि तोड़ि दिबे!
-साला,पांव तोड़ि दिबे! उयादेर दैखाय दिम,के किसका पांव टूटे! चलेन, आगे चइलेन! सुमन की पीठ पर स्टेनगन की नल दबाकर धमकाते हुए कहा मोटे शागिर्द ने।
अचानक शाल के पेड़ों की आड़ से निःशब्द निकलकर आ गये पचासेक लोग। सुमन को पहचानने में दिक्कत नहीं हुई,वे सारे गारो बस्ती के लोग हैं।शायद शाल के पेड़ों के पीछे चुपचाप इंतजार कर रहे थे।उनके हरेक के कंधे पर माजल लोडार बंदूक बरदोलोई और उसके मोटे शागिर्द को निशाना बांधे।पलभर में चारों तरफ से उन्होंने दोनों हमलावरों को घेर लिया।सबके अंत में एक मोटे शाल के पेड़ के पीछे से निकल आये नोकमा।गंभीर गले में उन्होंने कहा,बरदोलोई,यदि जान बांचाइते चाहो,हथियार माटीत फेंको!
दोनों को हिचकते देखकर ,नोकमा ने जोर से धमकाया,फेंको हथियार!
नोकमा का बाघ की तरह गर्जन सुनकर सुमन को लगा, बरदोलोई और उसका शागिर्द अगर गर्भ धारण किये होते तो निश्चित तौर पर उनका गर्भपात हो गया होता। उस गर्जन से ,कंपते हुए अवश हाथों से हथियार गिर गये माटी पर।संग संग बस्ती के दो लोंगों ने वे दोनों हथियार बटोर लिये।
नोकमा ने बरदोलोई  की कमीज का कालर पकड़कर हिलाते हुए कहा,फिर यदि एई बस्तीत पांव राखिस,सेई पांव निया घरत वापस जाओवा पाबि ना।जा,भाग जा, कहकर बरदोलोई का गला पकड़कर धक्का  दिया नोकमा ने।साथ ही भारी बूट पहने पांव से उसके पिछवाड़े कसकर एक लात  लगी दी।किसी तरह खुद को गिरने से बचाकर,मुंह से एक भी शब्द कहे बिना पूंछ समेट कर दोनों भाग खड़े हुए।
सुमन ने इतने दिन जास्टिन मोमिन को गारो बस्ती के नोकमा के रुप में देखा है।आज पहली बार उन्हें देखा बक्सा जंगल के बाघ के रुप में,सुना उनका बाघ गर्जन।

उन दोनों को लेकर सभी चले गये तो नोकमा ने सुमन से कहा,आपने कामटा एक्केबारे ठीक करेन नाई।आपनाक आमि कतो बार कइछि,जंगले ऐकला जाइबेन ना, कैवल बाघ भाल्लुक हाथी ना,बक्सादुआर जंगले और भी अनेक जंतु जानवर घात लगाये आछे आपनाक खाबार नागि।
सुमन ने एकबार अदिति की ओर देखा। मारे आतंक उसका चेहरा एकदम पीला पड़ गया।भय से उसका सारा शरीर थर थर कांप रहा था।हो सकता है कि बेहोश होकर गिर जाये अभी।सुमन ने आगे बढ़कर उसे जल्दी से पकड़ लिया।
उसे अब अहसास हो गया है कि नोकमा की सलाह की उपेक्षा करना उचित न था, खास तौर पर अदिति का ख्याल रखते हुए।नोकमा ने बार बार उसे सावधान किया है, बरदोलोई मौके के इंतजार में है,मौका मिलते ही हमला कर देगा।अब वह समझ चुका है कि नोकमा की यह चेतावनी का मकसद उसे सिर्फ भय दिखाकर जंगल में उसके आजाद घूमने फिरने पर रोक लगाने का नहीं है।
इस घटना के बाद एक बात और साफ है कि नोकमा के साथी बरदोलोई की गतिविधियों पर पल पल नजर रख रहे हैं।साथ साथ वह यह भी समझ गया कि बक्सा जंगल में उसके हर कदम पर छाया की तरह उसका अनुसरण कर रहे हैं नोकमा जास्टिन के लोग।आज भी इसका कोई व्यतिक्रम हुआ नहीं।इसी से उन दोनों के जीवन की रक्षा हो सकी।
इस घटना से भीषण घबड़ा गयी अदिति।चलते हुए उसके पांव कंप रहे थे।सुमन और नोकमा दोनों तरफ उसके दोनों हाथ पकड़कर उसे किसी तरह घर तक ले आये। सुला दिया बिस्तर पर।



बीस


उस घटना के बाद हफ्ताभर बीत गया।मन में बैठा डर हटाते हुए अब अदिति काफी स्वस्थ है।देर रात को सुशीला आयी।उसके शरीर स्वास्थ्य में सुधार हुआ है,किंतु आंखों में,चेहरे पर अस्वाभाविक भाव बने हुए हैं।बातचीत अब भी उलट पुलट।
घर में घुसकर चारों तरफ बड़ी बड़ी आंखों से देखने के बाद कहा,आपनागुलाक नतून घरटा भालोई बाइंधठे।बस्तीर लोकगुला आपनाक नतून घर बांधि दिलो आर फारेस्तेर लोकगुला हमार बांधा घर तोड़ि दिलो।
-क्यों इसी बस्ती में तुम्हारा घर है,तुम्हारे मां बाप हैं,तुम तो वहीं रह सकती हो। सुशीला का हाथ पकड़कर सस्नेह बोली अदिति।
-घर आछे,मां बाप आछे,किंतुक हमार मरदटा नाई! फारेस्तेर लोकगुला ताक खाइछे। बाघ हया आमि उयादेर खामो! कहते कहते उसकी आंखों और चेहरे में फिर वहीं हिंसा।
उसे शांत करते हुए उसके सिर पर हाथ फेरते हुए अदिति ने कहा,बहुत दिनों बाद तुम्हें देख रही हूं।कहां थी इतने दिनों से?
-कुथाय जामो? जगरुर उखानेई पड़ि आछि।उयारे कतो कई आमाक बाघ बनाये दे।बनाय ना।खाली कहे,दूर बोका,माइनसे कि कखनो बाघ बइनबार पारे?
- जगरु ने ठीक ही तो कहा है,अदिति ने उसे समझाने की कोशिश की।
- ना ठीक कहे नाई,मिछा कथा कहिछे।अयं निजे राइक्षस बइनबार सके,आउर अमाक बाघ बनाइते सके ना?मिथ्युक,महा मिथ्युक ओई जगरु!
थोड़ा शांत होकर उसने सुमन से पूछा -जगरु कइछे,आपनाक नाकि हाजते भरछिलो?
-हां।
-कैन? आमि तो सुनछि ,चोर डाकाइत आउर खूनि माइनसेक हाजते भरे!आपनि कोनटाय कइराछेन?
-इसमें से कुछ नहीं-
-ता होइले आपनाक हाजत भइरलो कैन?
-हम सरकार के खिलाफ बोले हैं।
-सरकार केडा? कौन बस्तीत थाके?
सुशीला की बात सुनकर हा हा हंसता रहा सुमन कुछ देर,फिर बोला,बस्ती में नहीं,कोलकाता में बड़ा एक लाल रंग का बाड़ी है,वहां रहती है।
-आपनि आमाक लोकटाके दिखाय दिबेन,आमि उयाक खामो!
अदिति ने सुमन की ओर देखा।यह पागल लड़की क्या कह रही है?
-क्यों,उसे क्यों खाओगी? भौंहें सुकुड़कर अदिति ने पूछा।
थोड़ा सोचकर सुशीला ने सुमन को दखाकर कहा,जगरु आमाक कहिछे, ऐई बाबू मानुष ना होय, भगवान! अलीपुरदुआर थिका डाक्तर आनि हमार चिकिच्छा कराइछे, औषध पत्र खरीद आनि आमाक खिलाइछे! आमाक खबर लिबार जइन्य पैदल जंगल पार करि इत्ता दूर सुखरा बस्तीत गिछे! सेई भगवानक जे हाजते भइरछे,आमि ताक खामो, आमि ताक खामो! खाया शेष कइरमो!
चीखती हुई झींगुरों की पुकारों वाली रात के अंधेरे में मिल गयी सुशीला।


सुमन ने अदिति के चेहरे की तरफ देखा। घर के कोने में रखी लालटेन की रोशनी में खोजने की चेष्टा की कि ममत्व स्नेह की स्निग्ध ज्योत्स्ना मिटाकर कहीं उसकी आंखों में और चेहरे पर ईर्षा की जलती हुई धूप ने कोई रक्तिम आभा तो सिरज नहीं दी।
इतने अरसे से सेवा जतन करके जिसने उसे स्वस्थ बनाया,उस अदिति के लिए इस लड़की ने तनिक कृतज्ञता नहीं दिखायी,प्रशंसा में एक वाक्य भी नहीं कहा।किंतु उसने सुमन को मन ही मन भगवान की जगह बैठा दिया है।फिर अपने मन के इस भाव को बताने में उसे कोई दुविधा भी नहीं है।तनिक लज्जा भी नहीं है इस लड़की को! छुपकर या गोपनीय तरीके से नहीं,एकदम खुल्लम खुल्ला कहा- दूसरी एक नारी,सुमन की जीवन संगिनी अदिति के सामने ही।
काफी देर तक चेहरे की ओर देखते रहने के बावजूद सुमन को वहां अदिति के मन के भाव का कोई आइना देखने को नहीं मिला। सिर्फ आज नहीं,किसी भी दिन नहीं देखा।इसका कारण सुमन की बुद्धिमत्ता और पर्यवेक्षण क्षमता का अभाव नहीं है।नारी चरित्र के बारे में उसकी अज्ञानता भी नहीं है।
असल में यही अदिति का स्वभाव है।अपने मन की समस्त चिंता भावना,आंधी झंझा छुपाकर रखती है।कभी आंखों के भाव में या मुंह की भाषा में उसकी अभिव्यक्ति होती नहीं है। बतौर सुमन की नित्य संगिनी इन लंबे दस बारह सालों में उसकी अपनी तमाम आशाओं आकांक्षाओं, साध आह्लाद उसने अपने मन की गहराइयों में छुपा रखा है।समस्त व्यथा वेदना और अभियोग को सीने के अंदर दफना दिया है।अपने यौथ जीवन के कठिन पलों में भी इन सबका कोई आभास सुमन को नहीं मिला है। हो सकता है, बाहर कि दुनिया को लेकर हर पल व्यस्त, बोहेमियन जीवन में अभ्यस्त सुमन ने अपने घर में इस मनुष्य के सूक्ष्म भावों, संवेदनाओं,अनुभूतियों को समझने की कोई चेष्टा ही नहीं की हो।शायद अपने प्रति अदिति का उजाड़ कर देने वाला गभीर निःस्वार्थ निःशब्द प्रेम ,उसके आत्मत्याग का सही मूल्यांकन भी उसने न किया हो और इसीलिए हो सकता है कि उसने इतने दिनों से अपनी जीवन संगिनी को पत्नी की प्राप्य मर्यादा से वंचित कर रखा हो।
सुशीला के जाते ही अदिति ने कहा,जानते हैं सुमनदा,इस लड़की को लेकर बीच बीच में मुझे भारी दुश्चिंता हो जाती है कि कब वह क्या कर गुजरे!उसकी आंखों पर ध्यान दिया है ?ठीक बाघ की तरह हिंस्र!
-देखा है।उसके मन में हर वक्त प्रतिहिंसा की आग आग धू धू जल रही है।वही आग उसकी आंखों में है।कोई आब्सेशन उसे दिन रात हांक रहा है,जो पलभर उसे स्थिर होने नहीं देता।सुशीला बाघ बनकर बदला चुकाना चाहती है।इसलिए पागल की तरह दौड़ रही है इधर उधर-कहां से हासिल करें बाघ के नख, बाघ के दांत! महीनों के बाद महीनों से धरना देकर जगरु के यहां इस उम्मीद में पड़ी हुई है कि वह मंत्र पढ़कर उसे बाघ बना देगा!
-मुझे सबसे ज्यादा भय उसके रात बिरात जंगल जंगल भटकते फिरने को लेकर है। कितनी तरह के सांप खोप,जंगली जंतु जानवर- किसी भी दिन कोई दुर्घटना घट सकती है!
-क्या करोगी बताओ?चेष्टा तो तुमने कम नहीं की है।किंतु उसे रोक सकी क्या?
-अच्छा ऐसा करने से कैसे रहेगा? अगर हम उसे किसी तरह भुला बरगलाकर अलीपुरदुआर ले जायें और उसे वहां किसी अच्छे मनोरोग विशेषज्ञ को दिखायें?
-कोशिश करके देखा सकता है।इस बार अलीपुरदुआर जाकर सुनील सान्याल से पता करेंगे कि वहां ऐसा कोई अच्छा सा डाक्टर है या नहीं।

अगले दिन अलीपुरदुआर से सुनील सान्याल की चिट्ठी लेकर चला आया एक आदमी।तालचिनि थाने पर पुलिस के गोली चलाने के वक्त वहां उपस्थित जनता को भड़काने के आरोप में जिस केस में सुनील सान्याल और सुमन को अरेस्ट किया गया था और उन्हें एक रात हाजतवास भी करना पड़ा था,उस केस में परसो सुनवाई की तारीख तय हुई है।
पत्रवाहक मार्फत खबर इसी बीच नोकमा और बस्तीवालों को मालूम हो चुकी थी। नोकमा ने आकर सुमन से कहा,कोर्टे आपनार मुकदमार सुनानी के दिन बस्तीर लोकगुला अलीपुरदुआर कोर्ट जाइबार चाहे।
- अदालत कक्ष में मुकदमे की सुनवाई होगी।दोनों पक्ष के वकीलों के बीच सवाल जबाव चलेगा।बस्ती के इतने लोगों को वे अदालत कक्ष में घुसने ही नहीं देंगे।वे लोग वहां जाकर क्या करेंगे?
- कोर्टेर घरेर बाहिरे खड़ाइया चिल्लाइबे।कहिबे,जज साहेब,पुलिस मिछा कथा कहिछे।कहिबे,पुलिसेर मिछा कथाय विश्वास करिया सुनीलबाबू आउर सुमनबाबू का ऩ्याय न करेन।पुलिस जखोन गुलि चालाय,हमरागुला बस्तीत समस्त माइनसे थानाय हाजिर छिलाम।आमरा ऐतोगुला माइनसे साक्षी आछि,बाबू दुजनाय तखोन थानाय आछिलेन ना- हाजिर ना थाइकले बाबूरा हमरागुला माइनसेक भड़काय की करिया? पुलिस मिछा कथा कहि बाबूदेर फंसाइछे,आपनि उयादेर एक्केबारे विश्वास ना करेन।
-जज साहेब भीतर में बैठे इन सारी बातों को भी नहीं सुन पायेंगे।पुलिस डंडे मारकर तुम सबको कोर्ट परिसर से खदेड़ देगी।
-खदेड़ दिले हमरागुला कोर्टेर सामने रास्ताय खड़ाये आउर जोर से, आउर जोर से चिल्लाइबो!


बहुत समझाने बूझाने के बावजूद सुमन नोकमा और बस्तीवालों को रोक नहीं सका। सिर्फ गारो बस्ती से नहीं,जंगल की सभी बस्तियों से कई हजार लोग अलीपुरदुआर  कोर्ट परिसर में जाकर हाजिर हो गये।सिर्फ कोर्ट परिसर ही नहीं,कोर्ट संलग्न रास्तों पर छा गये बक्सादुआर जंगल के असंख्य मनुष्य।
सुनवाई के वक्त जज साहब ने सुमन से पूछा,कोर्ट ने सिर्फ आपको हाजिर होने के लिए कहा है,आप अपने साथ जंगल के इतने लोगों को लेकर क्यों आये हैं?
-मैं उन्हें साथ नहीं लाया,वे खुद ही चले आये।
सुमन के पक्ष के वकील ने खड़े होकर कहा कि -सर,ये सारे लोग गवाही देने आये हैं।थाने में जिस रात गोली चली,घटना के वक्त ये सारे लोग वहां हाजिर थे।जंगल की बस्तियों के करीब दो हजार लोग।
-इन दो हजार लोगों को आप गवाह बनाना चाहते हैं?
-हां, सर,अगर आपकी इजाजत मिले!
- मिस्टर राय, क्या कह रहे हैं आप? दो हजार लोग गवाही देंगे?
-ठीक कह रहा हूं,आप तो दो चार गवाहों के साक्ष्य पर यकीन नहीं करेंगे।दो हजार गवाह एक ही बात कहेंगे तो आपको यकीन होगा कि घटना के वक्त सुमन चौधुरी या सुनील सान्याल,दोनों मौके पर नहीं थे।पुलिस के गोली चलाने से बहुत पहले वे थाना छोड़कर निकल चुके थे।इसलिए,उनके उपस्थित जनता को भड़काने का कोई सवाल ही नहीं उठता।
-मिस्टर राय,आप शा्यद कुछ ज्यादा ही बोल रहे हैं।भूल गये हैं कि अदालत मजाक करने की जगह नहीं है।नाराज होकर बोले जजसाहेब।
-वेरी सारी सर।मैं आपसे माफी चाहता हूं।
-ठीक है,आपके गवाहों को बुला लीजिये।

दोनों पक्ष के वकीलों के सवाल जबाव के बाद न्यायाधीश नें मुकदमे का फैसला सुना दिया।सुमन चौधुरी और सुनील सान्याल बेकसूर रिहा।साथ साथ,तालचिनि थाने पर तीन बस्ती वालों की गोली मारकर हत्या के लिए पुलिस के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का हुक्म जारी हो गया।
यह फैसला सुनते ही कोर्ट के बाहर इंतजार में खड़े जंगल के करीब दो हजार लोग उल्लास से फट पड़े।उन्होंने सुमन और सुनील सान्याल को कंधे पर बिठाकर अलीपुरदुआर के राजपथ पर शोभायात्रा निकाल दी।शहर के लोगों ने जंगल के हजारों लोगों की यह अभूतपूर्व जय यात्रा को अचरज से देखा।

इक्कीस




अगले दिन सुबह बीडीओ आफिस पहुंचकर सुमन अवाक् हो गया। जो वरिष्ठ क्लर्क उस दिन उन्हें तुच्छ ताच्छिल्य करते हुए उनके सामने से होकर गट गट बाहर निकल गये थे,उन्होंने ही सुमन और नोकमा को दफ्तर में घुसते देखकर कुर्सी छोड़कर खड़े होकर गद गद कंठ से कहा,आइये सुमनबाबू,आइये! एक कुर्सी बढ़ाते हुए हाथ जोड़कर कहा,बैठिये। कहिये,मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?
क्लर्क के आचरण में हठात् हुए इस परिवर्तन का कारण ह्रदयंगम न कर पाने से तनिक हतप्रभ सुमन ने विह्वल नेत्र से तेल से सरोबार टकला सर, पचास से ज्यादा उम्र के उस सज्जन की ओर देखकर उनके अंतर से विनय प्रस्रवण का उत्स संधान में व्यर्थ होकर इति उति दृष्टि डालकर देखा, अचानक उसकी दृष्टि क्लर्क की मेज पर रखे सहेजकर रखे अखबारों के पन्नों पर फिसल गयी।अलीपुरदुआर वार्ता के पहले पेज पर बस्तीवालों के कंधें पर बैठे सुमन की तस्वीर। उसे कंधे पर लिये हजारों मनुष्यों की शोभायात्रा।
पलभर में सबकुछ सुमन के लिए पानी की तरह साफ हो गया।उसे समझने में असुविधा नहीं हुई कि क्यों वरिष्ठ क्लर्क की मेजबानी में यह अति हो गयी।
क्लर्क ने विनय के साथ कहा कि बीडीओ साहेब बंगले में ही हैं।कई दिनों से उनकी तबीयत खराब है।आप कृपया दो मिनय बैठिये,मैं अभी उन्हें बुलाकर लाता हूं। कहते ही वे नजदीक में ही साहब के बंगले की तरफ भागे।
बीडीओ साहब भी भागे भागे चले आये।उनकी बातें सुनकर उन्होंने कहा,यह सब लेकर आप परेशान न हों।तीन महीने के भीतर बस्तीवालों को राशन कार्ड,वोटर कार्ड, बीपीएल कार्ड - सबकुछ मिल जायेगा।वंशी को बुलाकर कहा,इनके लिए चाय लेकर आओ।
इतनी देर से दफ्तर के एक कोने में खड़े नोकमा भी उनकी कृपा दृष्टि से वंचित न हुए।एक खाली कुर्सी दिखाकर बोले,खड़े क्यों हैं? बैठिये! चाय पीते पीते बीडीओ साहेब ने कहा,सुना है कि बस्ती में भारी पेयजल संकट है,बहुत दूर से पानी ढोकर लाना  पड़ता है।जितनी जल्दी संभव हो,मैं वहा ट्यूबवेल लगाने की व्यवस्था करता हूं।
इतने दिनों से नहीं सुना,आज सुन रहे हैं, मन ही मन बोला सुमन।इतने दिनों से एक लीटर पानी के लिए सात किमी पैदल चलना पड़ा है,आज बस्ती वालों के घर के दरवाजे पर हजार लीटर पानी पैदल चला आ रहा है।पीसी सरकार का मैजिक! वाटर आफ इंडिया! सुमन ने कोलकाता के न्यू एम्पायर में यह जादू बहुत पहले देखा है।आज यहां बीडीओ के आफिस में बैठे वह एक और मैजिक शो देखने लगा।
मैजिक शो देख रहा है और मन ही मन सोच रहा है सुमन।मैजिक शो में जिस तरह जादूगर के हाथों में जादू की छड़ी होती है,उसी तरह गणतंत्र नामक विराट मैजिक शो में भी एक जादू की छड़ी है।यह संख्या की छड़ी है।गणतंत्र में संख्या का मतलब शक्ति है।संख्या की यह छड़ी जिसके पास हो,वह जो मर्जी सो कर सकता है। वह एमएलए बन सकता है,एमपी बन सकता है,मुख्यमंत्री बन सकता है,प्रधानमंत्री बन सकता है- यहां तक कि राष्ट्रपति भी बन सकता है।यह छड़ी हाथ में हो तो अल्पसंख्यक के मतवाद और इच्छा को रोड रोलर की तरह पहियों के नीचे रौंदा जा सकता है,जादुई करिश्मे के तरीके से उसके शरीर को दो टुकड़ा कर दिया जा सकता है।
संख्या की यह छड़ी हाथ में हो तो जिनके पास यह संख्या शक्ति नहीं है,उन्हें वंचित किया जा सकता है,लांछित किया जा सकता है- यहां तक की उनकी हत्या भी कर दी जा सकती है।
संख्यागरिष्ठ सत्तादल की ताकत से महाबलि पुलिस तेरह साल के राभा किशोर को बिना दोष गोली से उड़ा सकती है।संख्यागरिष्ठ सत्तादल की मदद से पुष्ट वन दफ्तर के कर्मी सुशीला के पति का खून कर सकते हैं और सुशीला से बलात्कार कर सकते हैं।
संख्या छड़ी का इतना ही जोर है कि जिनके हाथों में यह छड़ी है,उन पर आईन कानून या न्याय प्रणाली कुछ भी लागू नहीं है।उस शक्ति के सामने न्यायाधीश भी असहाय हो जाते हैं।इच्छा होने के बावजूद न्याय नहीं होता, अपरादियों को उनके किये की उचित सजा नहीं मिलती। संख्यागरिष्ठ सत्तादल की मदद से समाजविरोधी समाज में सर्वत्र सीना तानकर घूमते रहते हैं।टिंबर माफिया, कोयला माफिया, तेल माफिया और बालू माफिया ईमानदार अफसरों को अपने ट्रकों के पहियों के नीचे कुचल देते हैं। तेल माफिया सबके समाने ड्यूटी पर तैनात कलेक्टर पर पेट्रोल छिड़ककर उन्हें जिंदा जला देता है।संख्यागरिष्ठता की ताकत से सत्ता में बैठकर कोई किसी ईमानदार अफसर का बीस साल में पैंतालीस बार तबादला कर देता है।
सुमन की तरह नोकमा भी मैजिक देख रहे हैं।लंबे अरसे से बहुतों ने बंदूक की गोलियां खायी हैं,अनेक बार बलात्कार होते रहे,अनेक लांछना अपमान सहते रहे बक्सादुआर के मानुष।उन्हींमें से एक ,गारो बस्ती के जस्टिन मोमिन बीडीओ आफिस में बैठे संख्या का मैजिक देख रहे हैं ।संख्या की प्रचंड शक्ति को महसूस कर रहे हैं। महसूस कर पा रहे हैं,सिर्फ ट्यूबवेल नहीं,राशन कार्ड,वोटर कार्ड या बीपीएल कार्ड ही नहीं,इस संख्या के दम पर वे और भी बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं।
अभी कुछ ही दिनों पहले,इसी आफिस के क्लर्क ने दुत्कारते हुए उन्हें  खदेड़ दिया था, आफिस में घुसने तक नहीं दिया!और आज बीडीओ साहब खुद अपने सामने कुर्सी पर बिठाकर उनकी चाय से मेजबानी कर रहे हैं- ऐसे दृश्य की सपने में भी कभी जस्टिन मोमिन ने कल्पना नहीं की थी ।

सुमन के गारो बस्ती में पहुंचते पहुंचते शाम हो गयी।सांध्य कक्षा की लड़कियां गोल होकर नोकफांते के आंगन में अदिति का इंतजार कर रही थीं।उनमें सिंथिया और ग्लोबिया भी शामिल थीं।
सुमन के साथ साथ सिंथिया भी नोकफांते के बरामदे में चली आयी।कहा,अदिति दीदीमणि ब्रजेन माराकेर घरे गिछे उयार माइयेटाक देइखते।आइज सात दिन हुए पांच सालेर माइयेटार भीषण ज्वर।ज्वर कमतिछे ना किछुतेई।दीदी मणि हमरागुलाक  कहिछे बसि थाइकते,ब्रजेन माराकेर घर थिका फिरत आसिया पढ़ाईबेन।
घर में घुसकर लालटेन जलाकर उसे बरामदे में स्टूल पर रखकर सिंथिया ने पूछा, आपनि कहिछिलेन,छाओयागुलाकेओ(लड़कों को) पढ़ाईबेन,कबे थिका शुरु कइरबेन?
-एक मोड़ा खींचकर बैठा सुमन।दिनभर भागमभाग से शरीर क्लांत हो गया है।
-फिर कोलकाता जाइबेन?एई तो सेदिन गैलेन,एक मासओ हय नाई!
- हां,फिर जाना पड़ेगा।काम है।
-काम? कि काम?
सवाल के बाद सवाल,मन ही मन नाराज होने लगा सुमन।फिरभी नाराजगी दबाकर बोला,हैं,अनेक काम।
-बोलेन ना,कि काम-
धीरज की सीमा तोड़ रही है यह लड़की! ऐसी बेकाबू बर्ताव वह कभी नहीं करती!
आज अचानक इसे क्या हो गया!
- है ढेरों काम।सब तुमको बताना जरुरी है क्या? बहुत कोशिश करके भी नाराजगी छुपा नहीं सका सुमन।उसके गले में डांट फटकार का सुर।
डांट खाकर सिंथिया की आंखें छलछला गयीं।खुद को संभालकर बोली,हमी जाइनताम,आपनि गुस्सा कइरबेन।किंतु मनटा माइनलो ना किछुतेई।मने भय ,खाली भय।ओढ़नी से आंखें पोंछ ली सिंथिया ने।
-भय? किसका भय?
-ओई रोबार्टेर मतो आपनि भी यदि हमादेर छाड़ि चलि जान।आमि देइखतेछि, बस्तीर माइनसे जादेर भालोबासे,सेई भागि जाये।रोबार्टके हमरागुला भोलबाइसताम, ग्लोबिया भालोबाइसतो,से सक्कलके धोखा दिया भागिछे,सिंधाइछे माटीर नीचे,ओई कबरेर भीतरत जाया।हमार खाली भय,आपनिओ यदि कोलकाताय जाया ना फिरेन! ताई पूछि रहि,आपनि मिछा मिछा गुस्सा ना करेन।
अपने को शिक्षित और बुद्धिमान मानते हुए सुमन का आत्म अहंकार हमेशा शायद थोड़ा ज्यादा है।किंतु इस सरलता का सामना होते ही अहंकार का वह आइना  टूटकर चकनाचूर।सुमन को इच्छा हो रही है,अशिक्षित इस लड़की से माफी मांग लें। किंतु टूटने के बावजूद अहंकार का अवशेष उसके मन में बाकी है।इसलिए सीधे माफी मांगने के बजाय उसने कहा,मैं समझ नहीं सका।
सच कहने से क्या,सुमन की तरह शहरी शिक्षित मनुष्य,शहरों के कृत्तिम सामाजिक परिवेश में पला बढ़ एक जटिल मानसिकता का मनुष्य जंगल के इन सहज सरल खुले हुए स्वभाव के मनुष्यों की अनेक बातें समझ ही नहीं सकता,उनकी सहज बातों का आशय पकड़ ही नहीं पाता।उनकी तिर्यक दृष्टिभंगी सीधी बात को भी तोड़ मरोड़ देती है,ठीक उसी तरह जैसे सरल प्रकाश की किरण प्रिज्म के भीतर होकर निकलती है तो टेढ़ी हो जाती है।
सुमन को मालूम है कि जंगल के लोग शहरी लोगों की तरह मुखौटा लगाये जीते नहीं हैं।शहर के वे मनुष्य,जिनकी हर पल कोशिश जारी रहती है कि अपने अपने मुखौटों को तराशकर, पालिश करके इस हद तक सही कर लें कि कोई पकड़ ही न सकें  कि मुखौटा कौन सा है और चेहरा कौन सा!
सुमन को अब अहसास हो रहा है कि सहज सरल मन से ही सिंथिया ने सवाल किये थे।
सुमन ने अपने मन की ग्लानि मिटाने की गरज से थोड़ा सहज होने की कोशिश की।नरम सुर में कहा,कोलकाता क्यों जा रहा हूं, मालूम है? शहर में मेरा घर बेचकर कुछ रुपये पैसे का जुगाड़ करने।जेब में रुपये पैसे बिल्कुल नहीं हैं।
-हाथे रुपया नाई बलि घर बेचि दिबेन?
-वरना क्या करुं बोलो? इस घर के अलावा मेरे पास कुछ भी नहीं है।बैंको में जमा रुपये पैसे नहीं हैं और उधार कर्ज भी बहुत चढ़ गया है।इन कुछ महीनों में कोई रोजगार भी नहीं है।
-रोजगार नाई कैने?बस्तीर ऐतोगुला माइये दीदीमणिर काछे पइढ़तेछे।तारा रपया दिबे।आपनि छाओवागुलाक पढ़ाइले,ताराओ दिबे रुपया।हमरागुलाक पराया ना सोचेन,ना बेचेन कइलकातार निजेर घर बाड़ी।
सुमन को अहसास हो रहा है कि सिंथिया के इस अनुरोध में इतनी सी बनावट नहीं है।समझ पा रहा है कि सिंथिया जो बोल रही है,वह भद्रता के लिहाज से कतई नहीं है।क्योंकि शहरी लोगों की तरह जंगल के ये लोग दूसरों का मन रखने के लिए बनाकर एक भी बात नहीं कहते।
इसके अलावा सुमन यह भी समझ रहा है कि धीरे धीरे जंगल के इन मनुष्यों के साथ उसके आत्मीय संबंध बनने लगे हैं।यह संबंध उसकी ओर से जितने आंतरिक हैं, उसके मुकाबले जंगल के इन लोगों की तरफ से हजार गुणा आंतरिक और निःस्वार्थ हैं। फिर खासकर सिंथिया की तरफ से तो इस आंतरिकता की मात्रा हमेशा कुछ ज्यादा ही रही है,वह पहले से ही सुमन की दृष्टि में है।

अदिति ने लौटकर सुमन से कहा,लड़की का बुखार थोड़ा कम हुआ है।पहले मलेरिया होने का शक हो रहा था,किंतु आज देखकर लग रहा है कि यह वाइरल बुखार है।फिरभी कल सुबह खून का नमूना शहर में भेज दूंगी।लड़कियों से उसने कहा,चलो, चलो,शुरु करो।आज बहुत देरी हो गयी।
शहद की गंध से जैसे मधु मक्खी दौड़े चली आती हैं, अगले दिन सुबह राजाभातखाओवा से एमएलए अनंत राय चले आये।गंध शायद उन्हें बीडीओ आफिस से मिली है।बक्सा जंगल के दस हजार लोगों को वोटर कार्ड मिल रहा है।छह महीने बाद विधानसभा चुनाव है।पिछले साठ सालों के दरम्यान जिन वंचित अवहेलित मनुष्यों की ओर एकबार के लिए भी मुड़कर नहीं देखा गणतंत्र के ध्वजावाहक अनंत राय की तरह राजनीतिक नेताओं ने,अब जंगल के मनुष्यों के दुःख दर्द से उनका प्राण फटा जा रहा है।हतभाग्य मनुष्यों की दुर्दशा के बारे में सोच सोचकर रात में ठीक से नींद भी नहीं आ रही है।इसलिए भोर होते न होते सुमन से मिलने के लिए भागे चले आये हैं ।बरामदे में सुमन के सामने एक मोड़ा खींचकर बोले,यह बात तो आप एकबार मुंह खोलकर मुझसे भी कह सकते थे।बीडीओ आफिस से जानकारी मिलते ही चला आया।
आप क्यों दस बारह मील जंगल का रास्ता तय करके भोर तड़के यहां चले आये हैं,उसका असल कारण मेरा अनजाना  नहीं है, मन ही मन सुमन बोला। मुंह से बोला, गारो बस्ती की माटी आप जैसे विशिष्ट व्यक्ति के चरणों की धूल गिरने से धन्य हो गयी!
-छिः छिः ऐसा क्यों कह रहे हैं? एक हाथ जीभ निकालकर दांतों से काटा सज्जन ने।बक्सा का जंगल मेरे इलाके में है।मेरे इलाके के मनुष्यों की सुविधा असुविधा देखना मेरा कर्तव्य है।
-यह कर्तव्य बोध इतने दिनों तक कहां था?मुख से बुदबुदाकर कहा सुमन ने।
बिना समझे अनंत राय ने कहा,आप सुनकर बहुत खुश होंगे, मैं अपने फंड से इस बस्ती में ट्यूबवेल के लिए एक लाख रुपये दे रहा हूं।
फिर सुमन बुदबुदाकर बोला,ऐसा जतला रहे हैं कि जैसे ये रुपये इनके बाप के हैं और इन्होंने दानछत्र खोला हुआ है! पब्लिक के चुकाये टैक्स से फुटानी!
अनंत राय ने कहा,आप क्या बोल रहे हैं,समझ नहीं पा रहा हूं।
-मैं  कह रहा था,यह सब बातें आप मुझसे क्यों कह रहे हैं? नोकमा जास्टिन मोमिन से कहिये।
- ओह,आपको कहने का मतलब जास्टिन मोमिन को ही कहना है।आफ्टर आल,आप ही तो इनके लीडर हैं।
-लीडर, लीडर कहने का मतलब?
- ये लोग आपके कहने पर उठते बैठते हैं!
-आपकी धारणा संपूर्ण भूल है।ये लोग मेरे कहने पर एकदम उठते बैठते नहीं हैं।कभी कभार मुझसे सलाह मशविरा जरुर कर लेते हैं,बस ,यही तक।
विज्ञ की हंसी हंसकर अनंत राय ने कहा -सुमनबाबू,तीन तीन दफा इलेक्शन जीतकर पिछले पंद्रह साल से मैं इस इलाके का एमएलए हूं।मेरे इलाके में कौन क्या कर रहा है,कौन क्या सोच रहा है,किसका क्या पोजीशन है- सबकुछ मेरे नखदर्पण में है।वोट के वक्त सिर्फ मेरा हित देख लीजिये,बस्ती के लोगों के लिए आपको जो भी चाहिए,मुझे जस्ट कह दें,सब व्यवस्था कर दूंगा।तो अब चलते हैं।


अनंत राय के जाने के बाद पूरे मामले का ही मन ही मन विश्लेषण करने की सुमन ने कोशिश की।
यह आदमी कारोबारी बात करने चला आया।आज की दुनिया में सभी कारोबार जिस नियम से होता है,जहां प्रेम-भालोबासा या दया दक्षिणा जैसी कोई बात नहीं है,जब कुछ वाणिज्यिक वस्तु है या कमोडिटी- व्यवसाय जगत के वह नियम मानकर ही वस्तु विनिमय का सौदा करने चले आये एमएलए अनंत राय।एक दलाल के साथ एक और दलाल का बार्टर डील है यह।एमएलए अनंत राय अनंत सत्तालिप्सु राजनीतिक दल का दलाल है तो सुमन चौधुरी जनता का लीडर यानी वोटरों का दलाल है।एक हाथ से दो और दूसरे हाथ से लो। ऐज सिंपल ऐज दैट। अपने ख्याल से हा हा हंस उठा सुमन।
उसका वह अट्टहास सुनकर घर से दौड़कर बाहर आ गयी अदिति।बोली,एमएलए अनंत राय की बातें सुनकर क्या आपका दिमाग खराब हो गया है? ऐसा पागलपन कर रहे हैं,अकेले ही अकेले हंस रहे हैं?
सुमन ने कहा,पागलपन नहीं है यह,दिव्य ज्ञान है! इतने दिनों के बाद मुझे दिव्य ज्ञान मिला है।कहकर फिर हा हा करके हंस उठा सुमन।
बहुत दिनों से सुमन को इस तरह दिल खोलकर हंसते नहीं देखा अदिति ने। कब तो जब सुमनदा उसके घर पढ़ाने आते थे,तब अपनी ही बात पर सुमन इसी तरह बीच बीच में हा हा हंसा करता था।खुद अपना मजाक उड़ाता था।खुद को विद्रुप करता था। सम्मोहित सी स्थान काल भूलकर अदिति तब एक टक हंसी से उज्ज्वल  सुमनदा के चेहरे को देखा करती थी।वह तो बहुत दिनों पहले की बात है। आज फिर सुमनदा को उसी तरह हंसते हुए देखकर स्मृतियों के अलबम में नत्थी पुरानी बेरंग तस्वीर तिर गयी अदिति के मन के परदे पर।

दोपहर बाद सुमन नोकमा जास्टिन के घर चला गया,सुबह एमएलए महाशय की घर पहुंचकर की हुई कृपा की खबर करने। बस्ती के लोगों के लिए जलकष्ट शीघ्र ही दूर होने वाला है।
एक मोड़ा बढ़ाकर सिंथिया बोली,नोकमा घरत नाई।किवा कामे राभा बस्ती गिछे। कहि गिछे फिरत आइसते सइनझा होइबे।चा बानायी? आइज किंतु चाये दूध नाई, सब दूध बछड़ा खाया निछे।
-ग्लोबिया नजर नहीं आ रही है,वह कहां है?
-उयार मनटा खराब। सक्काल सक्काल बंधु सिलवियार घरत गिछे।
चाय की प्याली सुमन के हाथों में थमाकर एक मोड़ा लेकर सिंथिया बगल में बैठ गयी।ग्लोबिया  की तुलना में वह काफी लंबी है,बहुत ज्यादा गोरी है।दोनों गाल सुर्ख लाल। उस गाल से बालों की लटों को सहेजकर कानों के पास हटाकर सिंथिया बोली, अनेक दिन धइरे ऐकटा प्रश्न खाली हमार माथाय घूमे,किंतु आपनाक पूछि, साहस करि पाई ना। सोची,पाछे नाराज होबेन।
-ना,ना,नाराज क्यों होने लगा! तुम्हारा प्रश्न क्या है?
- अदिति दीदीमणि कि आपनार बिया करा पत्नी? सिंथिया ने थोड़ा झिझक कर पूछा ।प्रश्न की आकस्मिकता से सुमन विह्वल हो गया, इसका तात्पर्य समझने की कोशिश में वह एकटक सिंथिया को देखता रह गया।परिचय होने के बाद से दोनों के बीच नाना विषय को लेकर चर्चा होती रही है,अनेक बातचीत हुई है,किंतु कभी उसके निजी जीवन को लेकर कोई कौतुहल सिंथिया ने नहीं दिखाया और न कभी कोई सवाल किया। आज इसका व्यतिक्रम देखकर सुमन विस्मित है।
-क्यों,अचानक यह सवाल क्यों?
- हठात् ना हय,परथम दिन थिकाई देइखतेछि उयार हाथे शांखा नाई,माथाय सिंदूर नाई!
प्रश्न सुनकर कुछ देर तक चुप रहा सुमन।क्या उत्तर दें,सोच न सका।किंतु वह निश्चित है कि सहज सरल मन से सिंथिया ने यह सवाल किया है। इसके पीछे इस लड़की का कोई उद्देश्य नहीं है! फिरभी जबावी सवाल करके उत्तर टालना चाहा सुमन ने।
-क्या करोगी उत्तर जानकर?
-किछु ना,माथार भीतर चिंताटा घुसछिलो,इसलिए पूछि कइरछि।उत्तर दिबार इच्छा ना होय ,ना दिबेन।
-आज नहीं,किसी और दिन तुम्हें इसका जबाव दूंगा।आज उठता हूं।

घर लौटते हुए रास्ते में खुद से सुमन ने सवाल किया,अदिति के साथ उसके संबंध को लेकर सिंथिया को इतना आग्रह क्यों है?क्या यह महज कौतुहल है या और कुछ?
कारण जो भी हो,क्या वह सिंथिया का सवाल टालने के लिए कापुरुष की तरह भाग आया? उस लड़की ने क्या सोचा होगा! जिसके एक सीधे सवाल का जबाव देने का सत्साहस उसमें नहीं है तो वह इन्हें ज्ञानगर्भ उपदेश कैसे दे सकता है? बड़ी बड़ी बातें करता है किस मुंह से?
आज न हो तो कल सिंथिया से तो उसका आमना सामना होना ही है,तब तो इस सवाल का जबाव उसे देना ही होगा।नतीजा चाहे जो हो,सच कहने का साहस उसे जुटाना ही होगा।इससे अगर सिंथिया और बस्तीवालों की नजर में उसकी छवि थोड़ी मलिन होती है,तो उसे स्वीकार करना ही होगा।हो सकता है उनकी आंखों में वह अपने सम्मान के ऊंचे आसन से काफी नीचे उतर आयेगा-किंतु तब सिंथिया जो भी कहें, कमसकम कापुरुष तो नहीं कहेगी।यही सब भांति भांति की बातें सोचता हुआ भारी मन से घर लौट आया सुमन।
सुमन का गंभीर चेहरा देखकर अदिति ने पूछा,कोई खराब खबर है क्या?नोकमा ने क्या कहा?
-नोकमा से मुलाकाता नहीं हुई है।अदिति,मैं सोच रहा हूं कि अगले हफ्ते ही कोलकाता चला जाउं।
आर्थिक चिंता ने कई दिनों से इस मानुष को विषण्ण और अनमना कर रखा है, इस पर अदिति की नजर रही है।किंतु इस पल को सुमन की यह विष्ण्णता की वजह कोई आर्थिक संकट नहीं है,दूसरा कोई घनायमान संकट है,अदिति को इसका अंदाजा हो रहा है।अंदाजा तो लग रहा है,लेकिन इस पल प्रश्न करके विषण्ण क्लांत सुमन को परेशान करना नहीं चाहा अदिति ने।

रात को आंधी की तरह सुशीला चली आयी।आज वह बहुत खुश है,लेकिन उसकी बातचीत उसी तरह उलट पुलट है।घर में घुसते ही उसने ऐलान कर दिया,मिलिछे! सेगुला पाईछि!
उसे घर के बीच एक मोड़े पर बिठाकर अदिति ने सवाल किया,क्या मिल गया है तुम्हें? लालटेन की हल्की रोशनी में भी सुशीला की आंखें दमक रही थीं।
-बाघेर दांत, नख-एगुला सब मिलिछे!सालारा अनेक दाम हांकछिलो- कहिलाम, अतो रुपया हमार नाई।इस पर ओई दलेर सर्दार- ही ही,सर्दार-साला चोरेर सर्दार-सर्दार ना इसे - साला सरदार कि कहे जानेन!
-कौन सर्दार,कहां का सर्दार? तुम क्या कह रही हो,हम तो कुछ समझ नहीं पा रहे हैं! सुमन का चेहरा एक बार देखते हुए अदिति ने सुशीला से सवाल किया।
-वोई चोर शिकारीदेर सर्दार! सेई साला सर्दारेर गुष्टिर तुष्टि! चोर ना कया डकाइत कहिले ठीक होय! साला लोग दुई तीन मास से राजाभातखाओवा बाजारत अड्डा बनाइछे। दलेर लोकगुला बंदूक दिया बक्सार जंगले चोरा गुप्ता बाघगुलाक मारिया बाघेर दांत, नख- एई सब चोरा चलान कइरे- हाथीगुलाक मारिया-उयार दांत तस्करी करे विदेशे! साला लोग मोटा रुपया कमाई करे,सेई रुपया दिया सर्दार आपन दांत सोना दिया बंधाइछे।
थोड़ा दम लेकर सुशीला ने कहा-उयाक कहिलाम बाघेर नख आउर दांतगुला आमाक दे।तात साला ओई चोरेर सरदार कि कहे जानेन?
-क्या कहा? साग्रह प्रश्न सुमन का।
-कहे,दस हजार रुपया नाइगबे। हमी कहि, हमार पास अतो रुपया नाई।तात लोकगुला आमार दिके ताके, उयादेर चोखगुला राइतेर आंधारे मानुष खाओवा बाघेर मतो चक चककरे।खालि हंसे आउर निजेदर शरीले ढलाढलि करे। सुमन ने ख्याल किया, अद्भुत एक घृणा सुशीला की आंखों से झलक रही थी!
-साला सर्दार हंसे आउर कहे,रुपया नाई तो राइतेर बेला आओ।उयारा सात जना मिलि आमाक बाघेर मतो खाबलाइया खाबलाइया खाइलो।किंतु आगेर बारेर मतो उयारा आमाक धोखा दिते सके नाई,धोखा खाया अनेक चालाक होइछि-दांत आउर नखगुला पहिले निया आंचले बांइधछि!ओई सालादेर कोनो विश्वास नाई।मानुष ना होय,ओगुला साला जानवर! थूः!
सुशीला की बातें सुनकर सुमन और अदिति स्तंभित।अदिति को लगा कि उसे मतली आने लगी है।माथा झिम झिम करने लगा।मनुष्यों के बारे में,मनुष्यों के समाज के बारे में,मनुष्य के साथ मनुष्यों के संबंधों के बारे में उसकी पुरानी सारी चिंताएं, भावनाए कैसे जो गडड्मडड् होने लगी हैं,आपस में गुत्थियों में उलझने लगी हैं, तहस नहस होकर टुकड़ा टुकड़ा बिखरने लगा सबकुछ।
अनमनापन से निकलकर सुमन ने पूछा- क्या करोगी इन सबसे?
-बाघ बइनबो! फारेस्तेर जे लोकगुला आमाक आउर हमार मरटाक खाइछे,बाघ बनि आमि उयादेर खामो! ये बातें कहते कहते सुशीला की आंखें हिंस्र हो उठीं, हिंस्र हो गया उसका चेहरा। थोड़ा शांत होकर उसने कहा,बाघेर नख आउर दांत जगरुक दिखाइछि, वोके कहिछि एगुला दिया आमाक बाघ बनाये दे! तू जो दाम चाहिस,वोही तोक दिम।
- इस पर क्या कहा जगरु ने, राजी हुआ वह? सुमन को दृढ़ विश्वास है कि जगरु किसी भी तरह  सुशीला के प्रस्ताव पर राजी नहीं होगा।
किंतु सुमन को अवाक् करके सुशीला ने कहा,राजी होइबे ना माने?मरद ना जगरु?आउर हमी ना बाघ?बाघेर मतो उयार माथा चिबाइया चिबाइया खाइछि! ही ही,ही ही,चिबाइया खाइछि।एक वीभत्स हंसी थी सुशीला के चेहरे पर।
इसके बाद दरवाजा खुला पाकर जैसे पिंजड़े से  कूदकर बाघ  पलक झपकते ही जंगल में गायब हो जाता है,घर का बंद दरवाजा एक धक्के से खोलकर तेज कदमों से सीढ़ियां उतरकर बक्सा के जंगल के अंधेरे में मिल गयी सुशीला।
उधर देखकर, भयंकर एक कल्पना से,आतंक में सिमटकर,स्थबिर की तरह बैठे रहे दोनों।बहुत देर तक दोनों के मुंह से कोई बात नहीं निकली।
सुमन जानता है,सुशीला के इस पागलपन का नतीजा आखिरकार क्या निकल सकता है।जगरु के साथ मिलकर बात करने से उसे लगा था कि सुशीला के पागलपन को अंजाम देने के लिए के लिए वह राजी नहीं होगा।सुमन को यह भी लगा था कि सुशीला के लिए उस कुत्सित आदमी के दिल में कोई नरम जगह बन गयी है।इस नरम जगह को प्यार कहा जा सकता है या नहीं,इसे लेकर संदेह होने के बावजूद सुमन के मन में एक उम्मीद पैदा हो गयी थी।सोचा था,उसी नरम जगह की वजह से जगरु हो सकता है कि सुशीला को कुछ हद तक रोक लेगा, उसे ऐसा कोई काम नहीं करने देगा, जिससे सुशीला को नुकसान हो जाये या उसके लिए कोई संकट खड़ा हो जाये।
किंतु अभी अभी सुशीला जो कह गयी है, वह अगर सच है तो जगरु पर अब एकदम भरोसा किया नहीं जा सकता है।जगरु अगर सुशीला का पागलपन न रोककर उसके सहयोगी की भूमिका निभाने लगे,तो किसी भी पल बड़ी कोई दुर्घटना घट सकती है। जितनी जल्दी हो,जगरु से मुलाकात करनी होगी।
अनजाने आतंक,भीषण एक दुश्चिंता में रातभर डूबा रहा सुमन।उसकी आंखों में नींद नहीं आयी।



















 





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