Monday, October 14, 2019

बक्सादुआर के बाघ-7 कर्नल भूपाल लाहिड़ी अनुवादःपलाश विश्वास

बक्सादुआर के बाघ-7
कर्नल भूपाल लाहिड़ी
अनुवादःपलाश विश्वास

पच्चीस

अदिति किताबें और दवाएं पाकर बहुत खुश हुई।किंतु समन के पैतृक घर बेच देने से वह बिल्कुल खुश नहीं है।इसे लेकर अपनी नाखुशी जताने में वह हिचकिचाई भी नहीं।
-तुम यह क्यों नहीं सममझ रही हो कि इसके सिवाय मेरा कोई और उपाय नहीं था या फिर तुम यह कहना चाह रही हो कि सिंथिया जो रुपये और गहने देने की पेशकश कर रही थी, उसे मुझे मंजूर कर लेना चाहिए था।
एक ही मुद्दा बार बार उठाने से स्वाभाविक ही नाराज हो गया सुमन।
-मैंने यह बात नहीं कही है।मेरे गहने भी तो थे! अदिति ने कहा।
-उन्हें बेचकर कितने रुपये मिलते? सुनील सान्याल के यहां कर्ज का पूरी रकम भी नहीं होती।
संध्या को छात्राएं झुंड बनाकर आ गयीं।इन कुछ ही दिनों में उनकी संख्या बढ़ गयी है।
सुमन ने कहा, कल से मैं लड़कों को पढ़ाना शुरु कर दूंगा।कोलकाता से उनके लिए किताबें ले आया हूं।बस्ती के सभी लड़कों को तुम बता देना।
रात को छात्राओं के विदा लेने के बाद नोकमा आ गये।कहा,गतकाइल अलीपुरदुआर थिका फारेस्त दिपारर्तमेंतेर बड़ो साहेब आच्चिलो,संगे अनेक लोकजन। जयंतीर रेंजर माधवबाबूओ आछिलो।उयारा बस्तीर माइनसेक पूछतेछिलो ,गत ऐक
मासेर मइध्ये आसपासत कोनो बाघ देइखछे कि ना, बाघेर कोनो आवाज सुइनछे कि - ना।
-बस्ती वालों ने क्या जबाव दिया?
-बस्तीर माइनसे कहिछे,गत दुई तीन मासेर मइध्ये कोनो बाघ चोखे देखे नाई, बाघेर आवाज भी काने सुने नाई।छह मास पहिले राभा बस्तीर पांच छह जन माइनसेर ऐक दल चौबीस नंबर प्लांतेशन एरिया थिका सइनझा काले घरे फिरार समय देखिया छिलो बड़ो एक बाघ।
-और क्या किया फारेस्ट डिपार्टमेंट के लोगों ने?
- कांधे  कैमरा निया चप्पा चप्पा खुजि घमिल बाघेर पांवेर छाप।
-मिला?
-ना, ना मिललो।फारेस्त गार्ड तमांगेर डेड बोडी जहां मिललो, उयार आसेपासेत भी कुथाओ नाई बाघेर पांवेर छाप।खूब अवाक होईछिलो फारेस्तेर आफिसर।खाली कहे, किछुतेई ये संभव होइबार ना सके।मानुषटाक बाघे खाइछे,बाघेर भूत ना। भूतेर पांवेर छाप थाके ना, किंतु बाघेर पांवरे छाप थाइकतेई होइबे।फिर अच्छा से खोजो।किंतुक लोगगुला एको बाघेर छाप पावे नाई।
- तो क्या मिला?
-माइनसेर पांवेर छाप।
- कितने लोगों के?
प्रश्न सुनकर विस्मित आंखों से सुमन के चेहरे को देखकर नोकमा ने कहा, बाबू,ये कैमोन कथा कहेन आपनि? ऐक जनार थाइकबे ना तो कैय जनार थाइकबे?
सुमन से उत्तर की आशा में कुछ पलभर प्रतीक्षा करने के बाद नोकमा ने कहा,एक जन माइनसेई तो आछिलो उहां।फारेस्त गार्ड तमांग,जाके बाघ खाइछे।
नोकमा की बात सुनकर अनजाने ही राहत की सांस निकली सुमन के सीने से।
किंतु वह राहत दीर्घस्थाई नहीं हुई।
नोकमा ने कहा,आपनाक ऐकटा कथा कहा होय नाई।जयंतीर रेंजर माधव साहा खोज कइरतेछिलो आपनार।
-माधव साहा! क्या वे मुझे पहचानते हैं?
-चीन्हे ना,किंतुक सुइनछे आपनार कथा।
-क्या सुना है?
-आपन छह मास से एई गारो बस्तीत आछेन।
-इससे क्या हुआ?
-अयं कहिछे, बाहिरेर लोकेर बस्तीत ठहरे का नियम नाई।आपनाक उयार रेंजर आफिसे गिया देखा करिबार कथा कहि गियाछे।आमाक भी संगे जाइबार कहिछे।
सुमन ने जिज्ञासु दृष्टि से अदिति की ओर देखा।
अदिति ने कहा,इसके पीछे निश्चय ही उन अनंत राय का हाथ है।आपको याद होगा, उसदिन जयंती की मीटिंग में बस्तीवालों ने घुसने नहीं दिया उन्हें।मुझे लगता है कि अपने अपमान का प्रतिशोध लेने की चेष्टा एमएलए अनंत राय कर रहे हैं।

अगले दिन सुबह नोकमा को साथ लेकर जयंती रेंज आफिस में घुसते ही उसे देखकर माधव साहा ने कहा- अच्छा सुमनबाबू,मैंने सुना है,आप पढ़े लिखे हैं। आप की तरह शिक्षित मनुष्य अगर जानबूझकर आईन  कानून तोड़े तो बस्ती के अशिक्षित लोगों को कैसे दोष दूं, कहिये तो! आखिरी बातें नोकमा की ओर देखते हुए श्लेष के साथ माधव साहा ने कही।
माधव साहा के टेबिल के इस तरफ कुर्सियों में कुछ भद्र पोशाक वाले  लोग बैठे थे। उनके चेहरे और छवि को देखकर सुमन को लगा,खूब संभवतः वे फारेस्ट के ठेकेदार हैं। सुमन का अनुमान है जंगल के आईन कानून के पालन को लेकर माधव साहा के इस लंबे भाषण का उद्देश्य केवल समुन  के सामने नहीं, कुर्सियों में बैठे ठेकेदारों के सामने भी खुद को एक कर्तव्य परायण अधिकारी और जंगल के नियम कानून की रक्षा में कठोर अनुशासक के रुप में पेश करना है।
इस तरह के दुर्विनीत हमबढ़ाई करनेवाले अफसरों से सुमन किसी तरह की भद्रता की उम्मीद नहीं करता।खुद ही एक कुर्सी खींचकर बैठते हुए उसने कहा,कौन सा कानून मैंने तोड़ा है,कहिये तो?
-फारेस्ट का कानून तोड़ा है।पार्लियामेंट में पास किया हुआ फारेस्ट एक्ट।इतने दिनों से आप जंगल में रह रहे हैं,उस फारेस्ट एक्ट की धाराएं तो आपके जानने की बातें हैं।
-अवश्य ही जानता हूं।
- तो कहिये, जानबूझ कर ही तोड़ रहे हैं!
-आप किस कानून की बात कर रहे हैं,साफ साफ कहें?
-साफ साफ ही तो कह रहा हूं।आईन में साफ लिखा है कि रिजर्व फारेस्ट में बस्ती के लोगों को छोड़कर कोई बाहर का आदमी वहां का वाशिंदा  नहीं हो सकता।
-किसने कहा कि मैं वहां का वाशिंदा हूं?
-इसमें कहने की क्या बात है? अपनी आंखों से देख आया हूं! केवल मैं ही क्यों, डीएफओ साहब भी देख आये हैं।फारेस्ट लैंड पर बाकायदा घर वार बनाकर गृहस्थी सजा कर बैठे हैं।एक दो हफ्ते के लिए नहीं, छह छह महीने से। इसे वाशिंदा होना न कहें तो क्या कहेंगे?
-नहीं,नहीं कह सकते।वह घर मेरा नहीं है।बस्ती वालों ने ही वह घर बनाया है। मैं वहां हमेशा के लिए रहने नहीं आया, हो सकता है कि कुछ और महीने तक रहूं।
-आपके कहे का भरोसा क्या? कुछ महीने की बात करके शायद कई साल आप बिता देंगे।डीएफओ साहब आपको और जास्टिन मोमिन को नोटिस भेजने की बात कह गये हैं। कल ही वह नोटिस भेजा जायेगा।एक सप्ताह के भीतर आपको बस्ती छोड़कर जाना होगा।नोटिस के तहत निर्देश न मानने पर आपको पुलिस की मदद से एविक्ट कर दिया जायेगा।
इसके बाद नोकमा की ओर देखत हुए माधव साहा ने कहा,आईन जानकर भी इतना बड़ा अन्याय कर दिया।तुम्हें अच्छी तरह मालूम है,जिस बस्ती में रहते हो,जहां खेती करते हो,वह जमीन तुम्हारी पैतृक संपत्ति नहीं है।फारेस्ट डिपार्टमेंट की वह जमीन है- उस जमीन पर घर बनाने के लिए परमिशन की जरुरत होती है।इन सज्जन के लिए बस्ती में इतना बड़ा घर बना दिया, इसके लिए परमिशन लिया है?
एक सिगरेट सुलगाकर मुंह से धुआं निकालते हुए माधव साहा उपदेश के सुर में कहते रहे, क्यों खुद को इन सब झमेले में फंसा रहे हो? ये शहरी लोग हैं,दो दिनों बाद चले जायेंगे,लेकिन तुम्हें हमेशा इसी जंगल में रहना होगा! जंगल में रहना है तो जंगल के आईन कानून भी मानने होंगे।यह बात याद रखना।
सुनकर सुमन को अहसास हो गया कि यह जास्टिन मोमिन को कोई उपदेश नहीं है,खुल्लमखुल्ला धमकी है यह।


जास्टिन मोमिन ने रेंजर आफिस के एक कोने में खड़े अब तक खुद को किसी तरह संभाले रखा था।आफिस से निकलते ही वे गुस्से में फट पड़े।
-आमाक आईन दैखाय! ठिकादार दसटा गाछेर पारमिट निया चक्षुर सामने बीसटा गाछ काटि निया जाये,उयार मामलाय आईन टूटे ना! हमरागुलाक दिया बिना पइसााय फारेस्तेर सब काम कराये निबे, उस मामलाय आईन टूटे ना! उयादेर लोकगुला बस्तीर माइयेगुलार इज्जत नष्ट करे,तो भी आईन टूटे ना! बस्तीर मानुषगुलाक बिना दोषे बिट आफिस निया गिया पिटाइले, गुली करि माइरले आईन टूटे ना! बस्तीर जमीन हमार बाप का नहीं,उयार बापेर! कहे नोटिस दिबे! हटाये दिबे! उयारा मने कइच्चे, जंगलेर मानुषगुला सब मरि गिछे।उयादेर दिखाये दिम,आमरागुला ऐखनो मरि नाई, जिंदा आछि।
बस्ती लौटने के वक्त सारा रास्ता अनेक दिनों से जमा आक्रोश से पिंजड़े में कैद बाघ की तरह गुर्राते रहे नोकमा।आखें लाल,चेहरा लाल,बात करते करते होंठों के कोने में फेन।सुमन ने नोकमा को इतना गुस्सा करते कभी नहीं देखा।उन्हें अनेक तरह से  समझाने की कोशिश की,किंतु किसी भी तरह उन्हें वह शांत नहीं कर सका।
सुमन और नोकमा के गारो बस्ती में पहुंचते ही यह खबर बक्सादुआर के जंगल की समस्त बस्तियों में दावानल की तरह फैल गयी।सबके मुंह में एक ही बात, सुमनबाबूक बोले कि फारस्तेर लोकरा जंगल थिका भगाये दिबार चाहे!
खबर पाकर विभिन्न बस्तियों से झुंड के झुंड मनुष्य आकर गारो बस्ती के खेल के मैदान में आकर जमा होने लगे।एक घंटे में ही विशाल वह मैदान भर गया,दो हजार के करीब लोग इकट्ठा हो गये।उसके बाद भी सागर की लहरों की तरह लोग आते ही रहे।
नोकमा अदिति और सुमन को बुलाकर ले गये- उयारा आपनार साथ कथा कहिबार चाहे।
नोकमा ने समवेत बस्तीवासियों को संबोधित करते हुए कहा,फारेस्त दिपार्तमेंत कहितेछे, एई जंगल हमरागुलार ना,एई बस्तीर जमीन हमरागुलार ना।खेत बाड़ी, एई मैदान- कोनो किछु हमार ना, सभी उयादेर।हमी जंगल बस्तीर समस्त मानुष उयादेर दास। सबकुछ में उयादेर परमिशन नागे।घर बनाइते परमिशन नागे, खेतीबाड़ी खातिर परमिशन नागे- यहां तक कि सुमनबाबू आउर दीदीमणि जइसे माइनसेर बस्तीत थाइकते होइले भी उयादेर परमिशन नागे।सुमनबाबू आउर दीदीमणि हमरागुलाक छाओवा पाओवागुलाक लिखा पढ़ा सिखाइते परमिशन नागे, मरीजके दवा पथ्य दिया चिकिच्छा कइरते परमिशन नागे,थाना कचहरी जाया हमारगुलाक पक्षे कथा कहिते परमिशन नागे।
हमरागुला अनेक दिन मुंह बंद उयादेर अन्याय अत्याचार सइह्य कइरछि,आउर कइरबार ना।उयारा कहिछे,नोटिस दिबे एई कहिके,सात दिनेर मइध्ये सुमनबाबूक एई बस्ती छोइड़ते होइबे।आपनारा कहेन,इस तरह उयादेर भगाइले, हमरा बस्तीर मानुषगुला कि खाली खड़ा खड़ा देइखबो? उयादेर एई अन्याय सइह्य कइरबो ?
सबने एक साथ चिल्लाकर कहा,कभी नहीं।हमरागुलार जान थाइकते फारेस्त दिपार्तमेंतेर लोकगुलाक जंगले घुइसते दिबो ना।
सुमन ने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश कि इस तरह उन्हें जंगल में घुसने से रोकने पर झमेला होगा।अवस्था नियंत्रण से बाहर हो गयी तो गोला गोली वे चला सकते हैं और इसमें मनुष्यों की जानें भी जा सकती हैं।इस तरह कानून अपने हाथ में लेना किसी भी तरह उचित काम नहीं होगा।
-तो आपनि एखोन कि कइरबार चाहे? उपस्थित विशाल जनता में से उठकर एक व्यक्ति ने पूछा।
- मैं कानून मानते हुए बस्ती छोड़कर जाना चाहता हूं।आप सभी से मेरा अनुरोध है,अन्याय कानूनों को बदलने के लिए एकजुट होकर लड़ें,किंतु कभी कानून अपने हाथों में न लें।
जमा हुई जनता या नोकमा  ने सुमन का सम्मान करते हुए उनके कहे पर कोई बात नहीं की,किंतु उनके हाव भाव या मुंह से हो रहे गुंजन से स्पष्ट समझ में आ गया कि सुमन के इस प्रस्ताव से वे कतई सहमत नहीं थे।
संध्या हो चली थी।जमायत के लोग अपनी अपनी बस्ती को वापस रवाना हो गये। हो सकता है कि दो एक दिन में कहीं फिर मिल कर वे अपना अगला कदम तय करेंगे।

घर लौट कर अदिति ने सुमन से कहा, उनसे तो आपने कह दिया कि बस्ती छोड़ कर चले जायेंगे! लेकिन जायेंगे कहां? इतना मना किया कि घर न बेचें,तब आपने मेरी बात सुनी! लालटेन जलाकर स्टूल पर रखकर अभिमान के स्वर से बोली अदिति।
-आज सुबह तक बस्ती छोड़ने की बात सोच ही नहीं सका।ये लोग इतना प्यार हमसे करते हैं।किंतु फारेस्ट डिपार्टमेंट ने जिस तरह ठान ली है- यहां से हमारे चले जाने के सिवाय और कोई उपाय नहीं देख रहा हूं।
-अलीपुरदुआर जाकर एकबार डीएफओ के साथ मिलकर बात करके देखिये ना।
-कोई फायदा नहीं होना है।तुम्हें क्या लगता है कि यह काम वे अपनी मर्जी से कर रहे हैं? एकदम नहीं।उनपर पालिटिकल दबाव बना है।फिर मैं निश्चित हूं कि वह दबाव शासक दल के एमएलए अनंत राय ने बनाया है।उनकी बात न सुनें तो रातोंरात उनका तबादला ऐसी जगह कर देंगे,जहां उनकी ऊपरी आमदनी बंद हो जाये।दीर्घ दिनों की प्रचेष्टा से परस्पर स्वार्थ रक्षा के उद्देश्य से उन्होंने जो स्थिति स्थापक व्यवस्था बना ली है, वह तहस नहस हो जायेगी!
-इसका मतलब तो यह हुआ कि अनंत राय जयंती की मीटिंग में हुए उस अपमान को सचमुच भूल नहीं सके हैं!
-केवल उस अपमान के प्रतिशोध की आकांक्षा नहीं है,अपने राजनीतिक अस्तित्व को लेकर भी अनंत राय आशंकित हैं।उन्होंने मुझे अपना राजनीतिक प्रतिद्वंंद्वी मान लिया है।बहुत जल्द बक्सा दुआर जंगल के दस हजार लोगों को वोटर कार्ड इश्यु होने वाला है,यह खबर उन्हें निश्चित तौर पर बीडीओ आफिस से मिल गयी होगी।अप्रैल में विधानसभा चुनाव है।अनंत राय को मालूम है कि मैं अगर चुनाव में उम्मीदवार हुआ तो मेरी जीत तय है।इसीलिए एमएलए महाशय ने भावी शत्रु को इलाके से भगाने के लिए जी जान लगा दिया है।वरना सोचो कि जंगल की किस बस्ती में कौन एक शहरी आदमी पड़ा हुआ है, इसे लेकर डीएफओ और फारेस्ट रेंजर को इतना सरदर्द क्यों है?
-अब मुझे समझ में आ रहा है कि क्यों आपके जैसे लड़ाकू मनुष्य फारेस्ट डिपार्टमेंट के इस अन्याय आर्डर  के खिलाफ एकबार भी लड़ने की बात नहीं कर रहे हैं! मीटिंग में बैठकर आपकी बातें सुनकर मुझे खूब अचरज हो रहा था कि लड़ाई से पहले ही आपने हार मान ली है।मीटिंग में कही आपकी बातें आपके स्वभाव से मिल नहीं रही हैं।
-हां, हार मान ली है।यह सोचकर मैंने हार मान ली है कि संभावित लड़ाई केवल फारेस्ट डिपार्टमेंट के साथ नहीं, सत्ता पर काबिज राजनीतिक दल के साथ है।जिनके हाथों में पुलिस, मिलिट्री सबकुछ हैं।मुझे चूंकि मालूम है कि लड़ाई होने की हालत में वे सर्वशक्ति से लड़ेंगे।इससे जंगल के अनेक निरीह लोगों की जानें चली जायेंगी। ऐसा हो,मैं यह नहीं चाहता।
थोड़ा थमकर सुमन ने गंभीर गले से कहा कि लोगों को उत्तेजित करके,उनके शरीर से खून बहाकर अतीत में बहुत लोग बड़े बड़े नेता बने हैं।किंतु मैं वैसा नेता बनना नहीं चाहता।इन लोगों के जीवन की रक्षा के लिए मैं यहां से चुपचाप निकल जाना चाहता हूं।तुम सामान, वगैरह समेट लो।
सुमन की बातें सुनकर एक दीर्घश्वास छोड़कर निःशब्द अदिति उसके पास से उठ गयी।
दिनभर इतने सब हल्ला गुल्ला के बावजूद प्रतिदिन की तरह संध्या के बाद छात्राएं झुंड बनाकर आ गयीं।बहुत देर तक प्रतीक्षा करने के बाद वे सभी वापस चली गयीं। सिर्फ सिंथिया नहीं गयी।बरामदे में एक कोने पर खड़ी दोनों की बातें सुनती रही।
-हमी कहिछिलाम ना ऐकदिन आपनि भागिबेन।ऐखोन कहेन,हमी ठीक कहिछिलाम कि ना? सुमन की तरफ बढ़कर सीधे उसके चेहरे को देखते हुए रुंधे गले से सवाल किया सिंथिया ने।
सुमन ने कहा, भाग नहीं रहा हूं। जंगल के लोगों को नुकसान न हो, इसलिए जंगल छोड़कर जा रहा हूं।धीरे शांत स्वर में सुमन ने कहा।
-भालो कथा कहिछेन।आपनि जंगल छाड़ि चलि जाइबेन तो जंगलेर माइनसेर क्षति हइबे ना, उपकार होइबे।ऐतोदिन जंगले थाकि हमार क्षति कइरते छिलेन। लिखा पढ़ा सिखाइया,चिकिच्छा कराइया,उयादेर जइन्य जेल खटिया -जंगलेर मानुषगुलार अनेक क्षति कइरछेन आपनि!
-जब जितना संभव हो सका, मैंने किया है। वर्तमान परिस्थितियों में वह अब संभव नहीं है।इसलिए जा रहा हूं।धीरे शांत गले से सुमन बोला।
-ना,जाइबेन ना। हमी आपनाक जाइते दिबो ना।जाकई भालोबाइसछि,सेई धोखा दिया भागिछे! स्टीफेन माराक धोखा दिया भागिछे! आपनि भी पलाइते चाहेन। किंतु हमी आपनाक भागि जाइते दिबो ना- पलाइते दिबो ना किच्छुतेई! सिंथिया का गला रुंध रहा था।ये बातें कहकर सिंथिया ओढ़नी से आंखों से बहते आंसू पोंछती हुई बरामदे की सीढ़ियों से उतरकर तेज कदमों से उदास रात के अंधेरे में मिल गयी।
स्थबिर की तरह सुमन और अदिति एक टक उसी ओर देखते रह गये।काफी देर तक उनके मुंह के कोई बात नहीं निकली।

उस दिन दोपहर के बाद से आसमान पर बादल छा गये।रात में मूसलाधार बारिश हो गयी।
अगले दिन सुबह जयंती रेंज आफिस से आकर एक आदमी सुमन और नोकमा को एक एक नोटिस थमा गया।सुमन ने पढ़कर देखा, एक हफ्ते में उसे गारो बस्ती और बक्सादुआर जंगल इलाका छोड़कर जाना होगा,ऐसा निर्देश जारी हो गया है। नोकमा जास्टिन मोमिन को एक दूसरे नोटिस में कहा गया है कि रिजर्व फारेस्ट की जमीन पर हाल में तैयार घर हफ्तेभर में तोड़ दें।
नोटिस हाथ में लिये नोकमा भागे भागे सुमन के पास चले आये।वे खूब हांफ रहे थे।आकर कहा,एई नोटिसेर खातिर आसि नाई।आइसछि आपनाक एक जरुरी खबर दिते।
-वह जरुरी खबर क्या है?
-काइल राइते सुंदर भूटिया नामे आउर एक फारेस्त गार्डक बाघे खाइछे! ऐकेर पर ऐक माइनसेक बाघे खाइतेछे,बस्तीर मानुषगुला घबड़ाया गिछे।बूढ़ागुला कहिछे मच्छा (बाघ) दैवताक पूजा देना नाइगबे!
नोकमा की बातें सुनकर सुमन के शरीर का रक्त हिम शीतल हो गया।बाघ देवता नहीं, उसके दिमाग में तब अन्य किसी बाघ की चिंता।स्तंभित भाव से उबरकर उसने पूछा, किसी ने बाघ को देखा है?
-ना।
- कहां यह घटना हुई है?
-उत्तर पारो बस्तीर पच्छिमे,शालवने ,नदीकिनारे।
-इसका मतलब यह हुआ कि जगरु की बस्ती के आस पास।
-हां,जगरुर बस्ती थिका दुई तीन मील होइबो।
-चलो, वह जगह देखकर आते हैं। कल रात बारिश हुई है। नरम माटी पर निश्चित तौर पर बाघ के पांवों के निशान होने चाहिए।

वे दोनों लोग दस बारह मील की यह दूरी लगभग दौड़ते हुए पूरी की।
दुर्घटनास्थल तक पहुंचने की इतनी जल्दी क्यों है, नोकमा के इस सवाल के जबाव में सुमन ने कहा कि पहुंचने में देरी हुई तो लोगों के पांवों के निशान से बाघ के पांवों की छाप मिट जायेगी।आसमान में बादल हैं,बारिश हुई तो सब कुछ धुल जायेगा। किंतु सुमन की जल्दी की असल वजह  बाघ के पांवों की छाप आविस्कार करना नहीं है,उसका उद्देश्य मृत व्यक्ति के शरीर के जख्मों की जांच करना है,सुमन के मन की यह बात नोकमा के अंदाजे से बाहर है।नोकमा भला कैसे जान पायेंगे कि कौन सा आतंक उसे कभी अलीपुरदुआर तो कभी बक्सा के घने जंगल में दौड़ करा रहा है!
किंतु यथासंभव तेज कदमों से जब तक वे मौके पर पहुंचे,तब तक पुलिस आकर डेड बोडी उठाकर ले गयी। पोस्टमार्टम के लिए अलीपुरदुआर सरकारी अस्पताल में। घटनास्थल और आसपास बहुत खोजने पर भी बाघ के पांवों की कोई छाप सुमन और नोकमा को नजर नहीं आयी।
सुमन की इच्छा थी,घटनास्थल एकबार देख लेने के बाद जगरु की बस्ती जाकर जगरु और सुशीला से मुलाकात करके लौटें।घटनास्थल से बहुत दूर भी नहीं है जगरु की सुखरा बस्ती।सिर्फ दो तीन मील की दूरी पर।किंतु नोकमा बार बार तकादा करने लगे। घने जंगल के बीच यह दस बारह मील रास्ता कैसे भी तय करके उन्हें संध्या से पहले गारो बस्ती पहुंचना ही होगा।नरभक्षी बाघ के आतंक ने इस इलाके के समस्त बस्तीवासियों की तरह जवानी में खाली हाथ बाघ से लड़ने वाले नोकमा पर भी असर कर दिया है।खुद को लेकर उन्हें जितना भय है,उससे कहीं ज्यादा सुमन की सुरक्षा को लेकर वे चिंतित हैं।
इसके अलावा कल से आसमान पर काले बादलों की घनघटा।हठात् आसमान तोड़ बारिश से तराई की ग्रीष्मकालीन सूखी नदियों में बाढ़ आ सकती है।उस भीषण जलोच्छास के समय इन नदियों को पार करना असंभव है। नदी का पानी उतरने के लिए तब घंटों इंतजार करना होता है।
इसलिए सुमन और नोकमा तेज कदमों से गारो बस्ती की ओर लौट चले।
वे गारो बस्ती में पहुंचे भी न थे, टीप टीप बारिश शुरु हो गयी।साथ में मेघों का गर्जन। नोकमा ने सुमन से कहा, सकाले जल्दीबाजी मइध्ये आपनाक ऐकटा कथा कहि पारि नाई। सिंथिया आपनार साथे किवा जरुरी कथा कहिते चाहे।आपनाक उयार साथे देखा कइरबार जइन्य कहिछे।
-कौन सी जरुरी बात?
-आमाक खुलि कहे नाई।कहिछे आपनाक एई बस्ती छाड़ि ना जाइते होय, इस खातिर ऐकटा उपाय उयार माथाय आछे।
- तो चलो, तुम्हारा घर होकर ही चलते हैं।भीषण प्यास लगी है।सिंथिया के हाथों एक प्याली चाय पीने को मिलेगी।

दोनों जब नोकमा के घर पहुंचे,तब संध्या उतर चुकी थी।वृष्टि का वेग बढ़ गया था। तेज बारिश के साथ बिजली चमक रही थी और बादल गरज रहे थे।
सिंथिया ने एक गमछा बढ़ाते हुए कहा,नैन,माथाटा पोंछि नैन।
सुमन ने सर पोंछते हुए कहा, पहले एक प्याली गर्म चाय पिलाओ।
-ऐक्खुनि दितैछि।सिंथिया सुमन की तरफ एक मोड़ा बढ़ाकर बोली।
-आज तुम लड़कियां पढ़ने नहीं गयीं? मोड़े पर बैठकर सुमन ने सवाल किया। फिर चारों तरफ देखकर बोला,ग्लोबिया कहां है,उसे देख नहीं रहा हूं-
-अयंकि घरे थाइकबार माइये? गिछे कोनो बंधुर घरत। कप में चाय डालते हुए सिंथिया ने कहा।
चाय की प्याली से एक चुस्की लेने के बाद सुमन ने कहा,नोकमा कह रहे थे,तुम कोई जरुरी बात मुझसे करना चाहती हो।
-हां,करा चाहि, किंंतुक डर नागे। आपनि यदि कथाटार अन्य माने धरेन।एक मोड़ा खींचकर सिंथिया सुमन के आमने सामने बैठ गयी।
-ना ना, मैं क्यों अन्यथा लेने लगा? तुम निश्चिंत होकर कहो।
कुछ पल सिंथिया सर झुकाकर बैठी रही।दो तीन बार आंखें उठाकर उसने सुमन को देख भी लिया।खूब संभव है कि उसके मन में तब भी दुविधा रही होगी,वह बात सुमन से करें भी या न करें।बार बार दृष्टि निक्षेप से सुमन की आंखों और उसके चेहरे की अभिव्यक्ति को पढ़कर उसकी आंच से अंदाजा लगाने की वह कोशिश कर रही थी कि जो बात वह करना चाहती है,उसके लिए यह सही समय या सुयोग है भी कि नहीं।
एकाधिक प्रयास के बाद शायद सुमन की आंखों की भाषा में सम्मति का आभास मिल गया सिंथियो को।कुछ हद तक दुविधामुक्त होकर उसने धीरे धीरे कहना शुरु किया- हमार कथाटा कहिबार आगे आपनार किछु जाना दरकार।सेइटा होइछे हमरागुला गारो मानुष,जाे एई बस्तीत वास करि,सेई मानुषगुलार सामाजिक किछु नियम कानून आछे।
-उन सभी नियमों के बारे में मुझे भी कुछ कुछ मालूम है।
-हमरागुला बस्तीर माइनसेर एई सब नियम कानून गवरमेंत जाने,गवरमेंत माने।एई नियम मानिया गवर्नमेंतेर कोर्ट काछारीते माइना हमरागुला माइनसेर फैसला होय।प्राथमिक हिचक तोड़कर अब सिंथिया के गले का स्वर काफी स्पष्ट है।
उसकी बातों के बीच नोकमा ने मंतव्य किया,ब्रिटिश जमाना थिका चलि आइसतेछे एई व्यवस्था,ऐखनो इयार परिवर्तन होय नाई।
सिंथिया बोली,हमार नियमे आछे, छाओवा जे माइयेक बिया कइरबे,बियार पर माइयेर जात,धम्मो,पदवी - सबकिछु छाओवार होइबे।बियार आगे छाओवार पदवी माराक या चौधरी होइले आउर माइयेर पदवी मोमिन होइले,बियार पर छाओवार पदवी मोमिन होइबे।बियार आगे छाओवार धम्मो हिंदू होइले आउर माइयेर धम्मो खृस्तान होइले, बियार पर छाओवार धम्मो खृस्तान होइबे।किंतुक एई बस्तीर माइनसेर जे आईनटा आपनार सब थिइके भालो करि समझा नागे ता होइलो ,बस्तीर बाहिरका छाओवा बस्तीर माइयाक बिया कइरले ,बस्तीर माइनसेर समस्त रकम नियम कानून उसपर लागू होइबे।
-यह सब तो समझ गया,किंतु इसके साथ हमारी वर्तमान समस्या का क्या संबंध है,वह तो समझ नहीं पा रहा हूं।
एकतरफ सुशीला को लेकर भीषण एक उत्कंठा से अवसादग्रस्त मन। दूसरी तरफ सारा दिन भागदौड़ से अत्यंत क्लांत शरीर- इस परिस्थिति में स्वाभाविक तौर पर गारो समाज के नियम कानून पर सिंथिया के लंबे भाषण से सुमन को नाराजगी सी होने लगी।
सिंथिया कहती रही,एकटु सोचि दैखेन,संबंध आछे।जे मानुष बस्तीर नियमेर अधीन, ताके बस्ती थिका कोई भगाइते सके ना।आपनि भी बस्तीर नियमेर आधीन होइले किसी का साध्य नही ,आपनाक बस्ती थिका भगाये।
-किंतु मैं हठात् बस्ती के नियमों के अधीन कैसे हो सकता हूं?
-उपाय आछे,आपनि एकटु भालो करि सोचि दैखेन।
- मैं तो कुछ भी सोच नहीं पा रहा,तुम्हीं बताओ।अधैर्य होकर सुमन ने कह दिया।
-तो हमी कहि।आपनि गारो बस्तीर कोनो माइयेक बिया करि नैन।
-क्या कह रही हो तुम,तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है?
-हमार दिमाग खराब होय नाई,ठीक ही आछे।ऐखोन माथा ठंडा करि हमार कथागुला सुनेन।
बाहर बारिश और तेज हो गयी,उसके साथ आंधी की तरह हवा भी बढ़ने लगी। उस आंधी पानी की रात में,बक्सा जंगल की गारो बस्ती के आधा अंधकार घर में एक अस्थिर परिस्थिति में,क्लांत शऱीर और अशांत मन लेकर सुमन ने सिंथिया की बातें सुनी थीं।
सिंथिया धीरे धीरे बोली, बस्तीर आउर कोई जाने या न जाने,हम जानि दीदीमणि आपनार बिया करा स्त्री ना।बंगाली बाबूर बउ, शांखा सिंदुर पहने ना, हमार परथम थिका संदो होइछिलो,बाद में अयं आमाक सइत्य कथाटा कहिछे। कहिछे उयार गोदे छाओवा पाओवा आसे नाई कैन।
सुमन ने मुंह उठाकर सिंथिया को देखा।क्या कहे,समझ नहीं सका।
-ना,ना,ए निया हमी आपनाक दोष देती नहीं।आपनार दीदीमणिर बुरा भालो फैसला कइरतेछि ना- जा होइछे, वो ही कहितेछि।एक अद्भुत गांभीर्य सिंथिया के स्वर में, अविश्वसनीय निर्विकार उसका चेहरा। उसी गांभीर्य के साथ सिंथिया कहती रही, बस्तीर सकल माइनसे चाहे कि आपनि बस्ती छाड़ि ना जाये। हमी जानि,आपनि आउर दीदीमणि भी वही चाहेन।किंतुक फारेस्त दिपार्तमेंत आईनेर फांसे फंसाइचे आपनाक। आउर वही आईन के फांस थिका बचार उपाय एकटाई।
-उपाय क्या है, वही पहले कहो ना! सुमन के धीरज का बांध टूटने लगा।
-वही तो बोइलतेछि,एकटु शांत हया सुनेन।उपायटा होइलो एई बस्तीर कोनो माइयेक बिया करि नैन। अदिति दीदीमणि आपनार बिया करा बउ ना,सो आइनेर तरफ थिका बाधा नाई।
जंगल की अशिक्षित इस लड़की का आईन ज्ञान देखकर अवाक् हो गया सुमन। यह सब ज्ञान बुद्धि उसे कहां से मिली? दूसरे तमाम पाठ के साथ क्या अदिति से आजकल आईन भी सीख रही है सिंथिया?
-किंतु बस्ती की कौन सी लड़की मेरे जैसे किसी मनुष्य से ब्याह करने को राजी होगी? अविश्वास के स्वर में कहा सुमन ने।
-आछे,वो माइये भी आछे।
-कौन है वह?
-हमी। कहेन,राजी आछेन? सीधे सुमन की आंखों में देखते हुए प्रश्न कर दिया सिंथिया ने।सुमन कुछ पल एक टक उसके चेहरे की तरफ देखता रहा- हो सकता है कि सिंथिया के मुंह से निकली बातों का संपूर्ण तात्पर्य उपलब्धि करने में समय लग रहा था उसे। फिर शांत गले से कहा,अभी कह नहीं सकता, अदिति से पूछना होगा।
-हमी उयाक सवाल कइरेछि।राजी आछेन दीदीमणि।हमी कहिछि,आपनार जगह हमी निबार ना चाहि।आपनि आपनार जगहे थाइकबेन।हमी केवल यह चाहि कि आपनारा हमरागुला माइनसेक छाड़ि,एई बस्ती छाड़ि चलि ना जाये।
सिंथिया के कहे का जबाव न देकर,फिर कोई बात किये बिना,उस आंधी पानी के मध्य सुमन उस घर से निकल आया।उसके पीछे पीछे नोकमा।हाथ में टार्च। चलेन, आपनाक आगे तक पहुंचाये आसि।एई छाताटा धरेन, कहकर एक छाता सुमन के हाथों में ठूंस दिया।
जंगल के भीतर से संकरे रास्ते पर यहां वहां पानी जमा हो गया था। नोकमा के टार्च की धूमिल रोशनी से सुमन उनसे यथासंभव बचकर चलने की कोशिश रहा था।
-सिंथिया के प्रस्ताव पर तुम्हारी सहमति है? दीर्घ निस्तब्धता तोड़कर सुमन ने नोकमा से पूछा।
-सिंथिया बस्तीर माइनसेर भालोर जइन्यो कथाटा कहिछे।उयार दूसरा कोई मतलब नाई।राजी अराजी मामलाय, उयार बाप हया ऐकटा कथा ही कहिते पारि। हमरागुला माइनसेर समाजे, माइयेगुलाई ठीक करे, कोन छाओवाक से बिया कइरबे। बाप माये बाधा देय ना।
घर के दरवाजे तक छोड़कर विदा हो गये नोकमा।

दरवाजा खोलकर अदिति ने पूछा,इतनी देरी हो गयी?
-नोकमा के घर गया था,सिंथिया को कुछ कहना था।
-क्या कहना था?
- तुम वह जानती हो।सिंथिया ने कहा कि तुम्हारे साथ उसने चर्चा कर ली है। तुम्हारे आत्म बलिदान के आदर्श का अनुसरण करके सिंथिया महान बनना चाहती है। बारिश में भीगे कपड़े उतारकर सर तौलिया से पोंछते हुए सुमन ने कहा।
-मैंने क्या आत्म बलिदान कर दिया? अदिति ने सवाल किया।
- यह जो मेरी कर्म संगिनी होकर इतने साल बिता दिये,सांसारिक जीवन के सभी तरह के सुख आह्लाद का विसर्जन करके ऐसे घुमंतू आदमी के साथ यायावर की तरह इधर उधर भटकती रही! सबकुछ कर लिया,किंतु विवाहित पत्नी की मर्यादा नहीं मिली।यह सब क्या आत्म बलिदान नहीं है?
- यह सब मेरा आत्म बलिदान हुआ तो आपकी लिस्ट तो और भी लंबी है।आपने जंगल के इन असहाय मनुष्यों के लिए अपने कैरियर का विसर्जन करके स्वेच्छा से वनवास ले लिया है,इन लोगों की तरफ से सरकार से लड़ाई  करते हुए दो दो बार जेल हाजत में चले गये- भविष्य में हो सकता है,फिर चले जायेंगे!
-आइनी विद्या के साथ साथ क्या आजकल तुम ज्योतिष की चर्चा भी करने लगी हो? सुमन ने तिर्यक मंतव्य से चर्चा का विषय बदलने की कोशिश की।
इसकी परवाह न करके अदिति कहती रही,  इनकी पढ़ाई लिखाई,चिकित्सा का खर्च उठाने के लिए पैतृक घर तक बेच दिया। इन्हीं लोगों के हित में बरदोलोई जैसे आतंकवादी और अनंत राय जैसे राजनीतिक बाहुबली से जान बूझकर दुश्मनी मोल ली है- और कितने उदाहरण पेश करुं,कहिये! हमारी बातें रहने दीजिये।सिंथिया कैसा आत्म बलिदान करना चाहती है,वह कहिये।
-सिर्फ नियम रक्षा की खातिर मुझसे ब्याह करके फारेस्ट डिपार्टमेंट की बेदखली की कोशिश रोकना चाहती है।विवाहिता पत्नी के अधिकार और मर्यादा पर उसका कोई दावा नहीं है।
बातचीत के लहजे से, हाव भाव से मामले को यथासंभव हल्का बनाकर पेश करने की सुमन ने कोशिश की।जैसे कि इच्छा हो तो उसे फूंक मार कर उड़ा दें।
सुमन की इस कोशिश के बावजूद इस मामले को हल्के तौर पर लेने को अदिति बिल्कुल राजी नहीं है।गंभीर भारी स्वर में उसने पलट कर सवाल कर दिया, आप कैसे कह रहे हैं कि सिंथिया के इस आत्म बलिदान के पीछे उसकी कोई महान बनने की आकांक्षा है?
-इसके अलावा और क्या है? मुझे तो लगता है, इसकी प्रेरणा सिंथिया को तुमसे ही मिली है।सुमन मजाक के लहजे में बोला।
-आपकी यह धारणा संपूर्ण भूल है। आपकी विद्या बुद्धि मुझसे बहुत ज्यादा हो सकती है,लेकिन मैं यह जोर देकर कह सकती हूं कि एक स्त्री होने के नाते एक स्त्री के चरित्र को समझने की मेरी क्षमता आपसे बहुत अधिक है।सिंथिया अंतरमन से आपसे प्रेम करती है।महान होने की कोई आकांक्षा नहीं, उसके आत्म बलिदान की प्रेरणा आपके प्रति उसका गहरा प्रेम है।
-मुझे यकीन नहीं है।विषय को हल्का करके, तुच्छ ताच्छिल्य करके उड़ाने की गरज से सुमन ने अपनी कोशिश जारी रखी।
सुमन का उत्तर सुनकर अदिति ने उसकी ओर अंतर्भेदी दृष्टि से देखा।शायद वह सुमन के मुंह से निकला `यकीन नहीं है ‘ मंतव्य कितना विश्वसनीय है,उसे उसकी आंखों और चेहरे के भाव देखकर परखने की चेष्टा कर रही थी।
हो सकता है कि अदिति को इस पर यकीन करने में असुविधा हो रही है कि मात्र कुछेक महीने के वनवास से सुमन की श्रवण शक्ति क्या इतनी दुर्बल हो गयी है कि सिंथिया जो बात इतनी बार, इतना घूमा फिराकर कहने की कोशिश कर रही है,उसे वह सुन ही सका? जंगल के इस भीगे हुए आबोहवा ने क्या सुमन की क्षुरधार बुद्धि  और विश्लेषण क्षमता को इतना मंद कर दिया है कि इतने साधारण मामले को इतने दिनों से देख सुनकर भी वह कुछ समझ ही नहीं सका?
अदिति की धारणा है कि सुमन सबकुछ समझ रहा है।समझकर भी न समझने का बहाना बना रहा है।
किंतु सुमनदा इस तरह न समझने का बहाना क्यों बनाने लगा है? क्यों वह अपने मन के विश्वास को मुंह के अविश्वास से बार बार ढकने की कोशिश कर रहा है? उनके इतने दिनों के खुले जीवन में आज सिंथिया को लेकर क्या कोई अदृश्य दीवार तैयार हो गयी है?
पास ही एक कुर्सी पर आराम से बैठे,एक किताब हाथ में लिये उसके भीतर डूबते हुए उसके दीर्घ समय के सुमनदा के मन की गहराई में सीपी के भीतर छुपे मोती की तरह गोपनीय भावनाओं को किसी गोताखोर की तरह डुबकी लगाकर उठा लाने में अदिति असमर्थ है।उसके चेहरे को देखकर वह यह समझने में अक्षम है कि उसके अत्यंत घनिष्ठ मानुष सुमनदा के मन का आकाश बक्सादुआर के इस हरे भरे जंगल में सिंथिया नाम की सदा उज्ज्वल,प्राणवंत,रंगीन लड़की के रंग से कितना रंग गया है।
बाहर वृष्टि थोड़ी थमी है।बक्सादुआर के जंगल के रहस्यमय अंधकार चीरकर खिड़की से होकर ठंडी हवा के साथ अभी अभी खिले शालफूल की मीठी गंध बहकर आने लगी है।


छब्बीस

अगले दिन सुबह  बहुत जलदी ही जगरु चला आया।खूब तेज कदमों से भी वह आया होगा तो उसकी बस्ती से जंगल के भीतर से होकर इतना रास्ता तय करने में तीन चार घंटे लगना तय है।इसका मतलब यह हुआ कि भोर होने से पहले ही वह बस्ती से रवाना हुआ होगा।जगरु के पुकारने के लहजे से सुमन को समझने में असुविधा नहीं हुई कि उसका प्रयोजन बहुत जरुरी है।
जगरु सीढ़ी चढ़कर बरामदे में चला आया।इधर उधर देखकर बोला,आपनाक गोपने ऐकटा खबर दिबार चाहि।
जगरु को घर के अंदर ले गया सुमन।वह अदिति को देखकर थोड़ा थोड़ा हिचकने लगा।सुमन ने उससे कहा,तुम निश्चिंत रह सकते हो,तुम्हारी बात इन चार दीवारों से बाहर नहीं निकलेगी।
-सुमनबाबू, आपनार संदो बोध होय ठीक।गत काइल बिहान बेला सुशीलाक उयार खून लगा कपड़ा नदीते धोइति देखछि।आपनार निश्चय याद आछे कि फारेस्तेर लोकटाक बाघे खाईछिलो परसो राइते।दबे स्वर से जगरु ने कहा।
सुमन यह बात सुनते ही चौंक गया।संग संग प्रश्न किया,और किसी ने देखा है?
-ना, ऐतो बिहाने नदी किनारे हमी छोड़के दूसरा केह आछिलो ना।ऐतो बिहाने उठे कहां जाये, येही बात सोचि हमी उयार पीछा निया छिलाम।
-भोर में उटकर पीछा किया,किंतु रात में वह कहां जाती है,वह क्यों नहीं देखा? तब तो इतनी बड़ी दुर्घटना नहीं घटती! सुमन के स्वर में उष्मा।
-नींदिया गिछिलाम।कभी निकली गिछे,पता नहीं होया!
-पता नहीं होया,कहने से काम चलेगा! तुमसे इतना कहा कि उसे नजर में रखना! जाने दो, तुमने क्या देखा,यह बात किसी और से मत कहना। अगर सुशीला का भला चाहते हो,चौबीस घंटा उस पर नजर रखो,खास तौर पर रात में।और एक काम करो,जैसे भी हो, उससे बाघ के दांत और नख ले लो।काफी जोर दकर सुमन ने ये बातें कहीं।
-आपनाक तो कहिछि,चौबीस घंटा उ चीज वो अपने आंचल मइध्ये बांधि राखे।
-अगर उसे बचाना चाहते हो,वे चीजें लेकर अपने पास छुपाकर रखो।
सर हिलाकर जगरु चुपचाप चला गया।

जगरु के जाते ही अदिति बोली, इतना भयानक मामला आपने इतने दिनों से मुझसे छुपाकर रक्खा है! वह लड़की इतने बड़े संकट में है और मुझे कुछ पता ही नहीं चला!
- जानकर क्या कर लेती? सिर्फ तुम्हारी दुश्चिंता बढ़ जाती।
-जान कर क्या करती,का मतलब? मैं उसे यहां रोक लेती।
-यह चेष्टा तो तुमने कम नहीं की है।उसे तो बांधकर रख नहीं सकती थी।
-वैसे शायद रख नहीं सकती थी।किंतु विपदा इतनी सांघातिक है,जान लेती तो कोई दूसरा उपाय के बारे में सोच लेती।किंतु आप तो मुझपर विश्वास ही नहीं रख सके! छुपाते रहे सबकुछ!
सुमन ने अदिति के चेहरे को देखा।छुपा हुआ नहीं,सीधे अभियोग!
सुमन समझ रहा है,काफी दिनों से दोनों के बीच धीर धीरे अविश्वास की एक प्राचीर बनती जा रही है और इसीसे संप्रति दोनों के बीच इतना मतविरोध,इतना तर्क वितर्क।घर बेचने को लेकर बहस,सिंथिया को लेकर बहस और आज सुशीला को लेकर भी तर्क वितर्क।किंतु यह जो प्राचीर धीरे धीरे सर उठाने लगी है,उसकी नींव कहां है? वह नींव क्या सिंथिया है? बाहर से सहानुभूति दिखाने के बावजूद, अदिति ने भी क्या अपने अवचेतन मन की अंधेरी कोठरी में सिंथिया को प्रतिद्वंद्वी के आसन पर बैठा लिया है- उसके खिलाफ वही सुप्त आदिम ईर्षा का गरल ही क्या इस तरह बार बार मुंह से निकल रही बातों में, भाषा में छलकने लगा है?
सुमन समझने लगा है कि सिंथिया के अलावा भी सुशीला को लेकर इस वक्त जो भीषण आंधी आयी है,इस विषम समय पर उसे सावधान रहना होगा,खुद को संयत रखना होगा।यह सोचकर,सुमन ने बहस और आगे न खींचकर चुप ही रहा। किंतु अदिति का चेहरा बाहर बदलीभरे आसमान की तरह ही गुमसुम बना रहा।
जगरु के जाने के बाद लगभग साथ साथ बस्ती के दो लोगों को लेकर नोकमा चले आये।तेजी से सीढ़ी चढ़कर बरामदे में उठकर उत्तेजित गले से नोकमा ने कहा, सुमनबाबू,खबर भालो ना होय!
-क्या हुआ?
-राभा बस्ती आउर उत्तर पारो बस्तीर करीब दो सौ माइनसे मिलि जयंती रेंज आफिसटा तोड़ि आग लगाय दिछे।पुलिस आसि लाठी चलाये आकाशत गुली करि मानुषगुलाक भगाये दिछे।राजाभातखाओवा आउर अलीपुरदुआर थिका त्रक भर्ती करि पुलिस आइच्चे।वो राभा बस्ती आउर पारो बस्तीत घुसिबार चेष्टा कइरतेछे।बोध करि बस्तीत घुसि मानुषगलाक ग्रेफ्तार कइरबार चाहे।
-वहां अब क्या परिस्थिति है? अत्यंत उद्विग्न सुनाई पड़ा सुमन का स्वर।
-बस्तीर मानुषगुला बड़ो बड़ो गाछ काटिया रास्ताय गिराये पुलिसेर लारी रोइकतिछे।
-वैसे कब तक रोक सकेंगे! जरुरत पड़ी तो पुलिस ट्रक छोड़कर पैदल ही बस्ती में घुस जायेगी।कोई रोकने की कोशिश करेगा तो गोली चला  देगी।फिर कुछ लोगों की जानें जायेंगी! नहीं,यह काम उन्होंने बिल्कुल सही नहीं किया है।
-फारेस्त दिपार्तमेंतेर आपनाक दिया नोटिसेर खबर सुनि उयादेर माथा गरम हया गेलो!
-तो क्या इसके लिए फारेस्ट डिपार्टमेंट के आफिस ही फूंक देंगे! इसका नतीजा क्या होने वाला है, इस पर एकबार भी नहीं सोचेंगे!
-राभा बस्तीर गांव बूढ़ा उयादेर समझाइते अनेक चेष्टा कइरेछिलो,किंतु समझाइते सके नाई।मानुषगुला कैमोन जेनो पागल हया गिछे!
-किंतु उनके इस पागलपन की वजह क्या है? शहर के किसी व्यक्ति को उन लोगों ने बस्ती छोड़ने के लिए कहा है,यही तो?
- ना असल कारण वो ना होय।असल में जंगल बस्तीर मानुषगुलार अनेक दिन धरि फारेस्त दिरपार्तमेंतेर लोकगुलार ऊपर आक्रोश जमा होइतेछिलो।किंतु ऐतोदिन कोनो किछु कइरबार साहस मिले नाई- मार खाइछे,कोनो किछु कहे नाई।आपनि उयादेर साहस दियाछेन!
- इसका मतलब यह हुआ कि तुम कहना चाहते हो,आज की इस परिस्थिति के लिए मैं जिम्मेदार हूं?
-आपनि भूल बूइझतेछेन, हमी वो कथा कहि नाई।आपने हमरागुला माइनसेक साहस जुगाइछेन,कहिछेन ऐकसाथे लड़ाई करो -किंतु  कखनो कहेन नाई फारेस्तेर आफिसे आग लगाये दो! दोषटा बस्तीर मानुषगुलार,आपनार ना होय।
-किंतु परिस्थिति और न बिगड़े, इसके लिए हमें तत्काल कुछ करना चाहिए।
-कि कइरबार चाहेन?
-उन्हें समझाने की कोशिश करनी होगी।
-क्या समझाइबेन?
-कानून अपने हाथ में मत लो।
-उयारा कि आपनार कथा सुइनबे?जे आईन मानार कथा मानुषगुलाक कहिबेन, वोई आईन से ऐतोदिन उयादेर कि भालो होइच्चे? आईनेर दुआरे बार बार माथा कूटछे, माथा फाटि खून बाहिर होइछे, किंत आईन उयादेर तरफ दैखे नाई।जे आईन,जे पुलिस, उयादेर रक्षा ना करिया,कैवल अत्याचार कइच्चे, जे आईने जंगलेर मानुष विश्वास हराइछे, वोई आईनेर कथा आपनि उयादेर कैमने समझाइबेन? कैमने कहिबेन,तुमरा भूल कइच्चो,ऐखोन आईनेर पांव पड़ि माफी चाहो!
नोकमा की बातों में दम है।सुमन को मानना पड़ रहा है,वास्तव परिस्थिति के विश्लेषण में नोकमा की बुद्धिमत्ता उससे किसी मायने में कम नहीं है,शायद कुछ ज्यादा ही है।
-तो तुम कहते हो,इस वक्त हमारे लिए करने को कुछ नहीं है।हम सबकुछ जान बूझकर चुपचाप बैठे रहें और उधर उन निरीह लोगों की जानें चली जायें?सुमन का प्रश्न।
-वो कहि नाई।खाली कहिछि, जा किछु कइरबार,सोच समझिया करा नाइगबे।
-क्या सोच रहे हो?
-राभा बस्ती आउर पारो बस्तीर माइनसेरा बस्ती खाली कइरा अइन्य जगहे जमा होइले पुलिस बस्तीत घुसि देइखबे सब खाली।
-इसके बाद?
कैवल राभा बस्ती आउर पारो बस्ती ना,बक्सा जंगलेर तमाम मानुष एक जगहे इकट्ठा होइले,पुलिस मिलिट्री किसीको साहस होइबे ना बस्तीर माइनसेर शरीरे हाथ राखे!
विस्मित आंखों से सुमन ने नोकमा के चेहरे की तरफ देखा।आत्मरक्षा की पुरानी जंग लगी चाबी,जिसे किसी समय़ उन लोगों ने खो दिया,आज बक्सादुआर जंगल के मनुष्यों ने उसी को फिर खोज निकाला है।न जाने कब उस आदिम काल में मनुष्यों ने आविस्कार कर लिया था कि संघबद्ध होकर रहे तो बाहरी शत्रुओं के आक्रमण का मुकाबला वे आसानी से कर सकते हैं।



दोपहर से ही झुंड के झुंड मनुष्यों ने गारो बस्ती में आना शुरु कर दिया।राभा बस्ती और पारो बस्ती के लोग अपने बच्चों,पोटला पुटली के साथ चले आये।उनमें से किसी किसी को नोकफांते में जगह मिली,बाकी लोगों को बस्ती में इसके उसके घरों में। जंगल की विभिन्न बस्तियों से आये हजारों मनुष्यों से देखते देखते भर गये खेल का मैदान, चर्च परिसर और नोकफांते के सामने बालीबाल कोर्ट।कही कोई खाली जगह नहीं बची।
सुमन के घर के आंगन में ही सौ एक लोगों ने डेरा डाला।उनमें से अनेक लोग फिर बरामदे में चले आये अदिति से मुलाकात करने।उन्होंने अदिति दीदीमणि की बातें खूब सुनी हैं,लेकिन उसे कभी देखा नहीं है।
इसीके मध्य आंगन में काठ का चूल्हा बनाकर रसोई की व्यवस्था हो गयी।देख कर लग रहा है कि वे दो चार दिन वहां ठहरने के लिए तैयार होकर आये हैं।साथ में हंडिया कड़ाही लाये हैं। पोटलियों में चावल और सूखी मछलियां बांधकर लाये हैं।सुमन बरामदे में बैठे यह सब देख रहा था।सोच रहा था,उसे लेकर इतना हंगामा बरपा है।किंतु उसे मालूम नहीं है कि कि इस हंगामे का आखिरकार नतीजा क्या निकलने वाला है।
विलियम आसपास ही घूम रहा था। भिन बस्ती के लोगों की छिटपुट मदद करने में लगा हुआ था। फुरसत पाते ही खाली बरामदे मे उठकर चला आया और सुमन से कहा, जंगले फारेस्त दिपार्तमेंतेर शिकारी आइच्चे, वो खबर पाइछेन?
-कहां, नहीं तो।क्यों,जंगल में हठात् फारेस्ट डिपार्टमेंट का शिकारी क्यों?
-वोही जे बाघटा ऐतोगुला माइनसेक खाइछे, ताक माइरबे।जंगलेर मइध्ये गाछेर डाले मचान बाइंधछे।नीचे बकरी बांधिया,हाथे बंदूक निया तमाम राइत मचानेर ऊपर बसि थाइकबे बाघेर जइन्यो।
विलियम के चले जाने पर अदिति ने एक लंबी सांस छोड़कर कहा, आखिरकार उस शिकारी के हाथों, हो सकता है कि सुशीला के माथे पर मृत्यु लिखी है!
सुमन ने कहा, तुम अकारण चिंता कर रही हो।शिकारी की उस बंधी हुई बकरी को खाने के लिए रात में सचमुच का बाघ आयेगा,सुशीला नहीं आने वाली।बक्सादुआर के बाघ चोर शिकारियों की गोली खाकर हमेशा मारे जाते रहे हैं।हो सकता है कि आज रात सरकारी शिकारी की गोली खाकर एक और मारा जायेगा।सरकारी आंकड़ों में क्रमशः घट रही बाघों की संख्या में एक की कमी और हो जायेगी।जंगल तो पार्लियामेंट नहीं है कि संख्या में एक कम हो जाये तो सरकार गिरने की तरह फारेस्ट डिपार्टमेंट ही बंद हो जायेगा।
संध्या के बाद अपने घर के आंगन में गांव बूढ़ों को लेकर नोकमा जास्टिन मोमिन ने बैठक शुरु कर दी।
जास्टिन नोकमा ने कहा, जयंती रेंज आफिसे आग लगानोर कामटा ठीक होय नाई। ऐमोन कामेर फल की होइबे, चिंता करा उचित आछिलो।आगे ऐमोन काम जिससे ना होय,यही खातिर गांव बूढ़ागुलाक नजर राइखते होइबे।
राभा बस्ती के विश्वेश्वर राभा ने कहा,पुलिसेर भये हमरागुला यहां कतो दिन पड़ि थाइकबो?
उत्तर पारो के सर्वेश्वर राभा ने सवाल किया,पुलिस बस्तीत घुसि सब कुछ खाली देखि घर बाड़ी जलाये दें तो हमरागुला कोठे जाम?
जास्टिन मोमिन ने थोड़ा जोर गले से कहा,आपनारा ऐकटा कथा आमाक कहेन, घर बाड़ीर दाम ज्यादा, ना माइनसेर जीवनेर दाम ज्यादा? अवस्था ठीक ठाक ना हया तक आपनागुलाक एठेई कष्ट करि पड़ि थाका नाइगबे।

अगले दिन सुबह एक बस्तीवासी ने आकर खबर दी, पुलिस के सुपर(एसपी) और फारेस्ट डिपार्टमेंट के डिवीजनल फारेस्ट आफिसर (डीेएफओ) आप लोगों से मिलने के लिए अलीपुरदुआर से आये हैं।यहां से तीन किमी दूर बस्ती के लोगों ने उनका रास्ता रोक लिया है।
खबर पाकर सुमन, जास्टिन मोमिन,विश्वेश्वर राभा, सर्वेश्वर राभा और दूसरे गांव बूढ़ों की बैठक में चर्चा हुई।राय मशविरा से तय हुआ कि उन्हें बस्ती में घुसने दिया जायेगा, लेकिन उनके साथ दूसरा कोई नहीं होगा,निजी देहरक्षी भी नहीं।
आते ही एसपी ने सुमन को चार्ज किया-आप किंतु एक के बाद एक कानून तोड़ते जा रहे हैं।बस्ती के लोगों को भड़काकर जयंती के रेंज आफिस में आग लगी दी।फारेस्ट का कानून तोड़कर महीना दर महीना रिजर्व फारेस्ट इलाका में वास कर रहे हैं और अब इस बस्ती के लोगों के जरिये एक किला बनाकर बैठे हैं,ताकि पुलिस आपको अरेस्ट न कर सके!
जास्टिन मोमिन ने कहा,सुमनबाबूर विरुद्धे आपनार सब अभियोग मिथ्या। परथम कथा,जयंती रेंज आफिसे आग लगाइते सुमनबाबू एक जन को भी कहे नाई।दुई नंबर, सुमनबाबू एई बस्तीत आछेन हमरागुला माइनसेर कथाय।बस्तीत कोनोय स्कूल नाई, स्वाइस्थ्य केंद्र नाई।उयंक आउर दीदीमणिक कहिछि हमार माइयेगुलाक एकटु लिखा पढ़ा सीखान, बीमार पड़े तो औषध पथ्य दैन।तीन नंबर,सुमन बाबू निजेके बचाइबार जइन्ये दुर्ग बनाय नाई, हमरागुला जंगलेर मानुष निजेर जान बचाइते बनाइछि दुर्ग।
थोड़ा थमकर जास्टिन मोमिन ने कहा,साहेब,ऐकटा कथा जानि राखेन,आइज परिस्थिति पलटि गिछे।ऐखोन जंगलेर दस हजार मानुष एकजुट होइछे। बस्तीर ऐक जनेर शरीले हाथ दिले,जंगलेर दस हजार मानुष एक संगे धावा बोइलबे।
जास्टिन मोमिन की बात आगे बढ़ाते हुए विश्वेश्वर राभा ने कहा,आउर ऐकटा कथा आपनाक बताये राखि, एई जे सुमनबाबू, वो भी जंगलेर मानुष होय।खाली उयार चेहरा आउर पोशाकत अलग होय।उयार शरीले हाथ दिया माने जंगल के दस हजार माइनसेक शरीले हाथ दिया।आपनार साहस होय,तो एईखान थिका सुमनबाबूक अरेस्त करि निया जान!
सुमन को जैसे अपनी आंखों पर,अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था।जिन मनुष्यों ने कुछ दिन पहले भी समस्त अन्याय अत्याचार मुंह बंद करके सहन किया है, प्रतिवाद तक नहीं किया,एक के बाद एक जन सुनवाई में अपने दुःख दर्द की बातें बड़े बड़े लोगों से कहकर उनकी कृपा और अनुकंपा की भीख मांगते रहे हैं,किन्तु उन्हें आखिर में सहानुभूति के अलावा कुछ नहीं मिला,जंगल के वे ही लोग आज बाघ की तरह गरजने लगे हैं।
वह गर्जन सुनकर एसपी और डीएफओ साहेब के सीने में क्या हो रहा है,यह सुमन के जानने का कोई उपाय नहीं है,किंतु उनकी आंखों और चेहरों को देखकर लगा कि वे यहां से भागकर जान बचाने के फिराक में हैं।आखिरकार दोनों सर झुकाकर चले गये।
उनके जाते ही बस्ती के समवेत मनुष्यों में खुशी का ज्वार आ गया।उन्होंने सुमन और अदिति को बीच में लेकर ढोल और मादल बजा बजाकर नाचना  गाना शुरु कर दिया।अपना घर बार छोड़कर, नाना असुविधाओं के मध्य खुले आसमान के नीचे पड़े रहने का दुःख कष्ट भूलकर,देर रात तक जंगल के आठ दस हजार लोग जीत के जश्न में डूबते रहे।
तारों से भरे आकाश के नीचे उस उत्सव के वातावरण में,सहसा आधीरात को जगरु बिना मेघ वज्रपात की तरह बुरी खबर लेकर आया।हांफते हांफते आकर जगरु ने सुमन से कहा, सुशीलाक गुलि करि माइरछे फारेस्तेर शिकारी।
खबर मिलते ही जगरु के साथ जलती हुई मशालें हाथ में लेकर विभिन्न बस्तियों से आकर जमा हजारों लोग घटनास्थल की तरफ भागे।सुमन और अदिति उनके पीछे पीछे।सैकड़ों मशालों की रोशनी में ऐसा लगा कि जैसे समस्त जंगल दावानल में धू धू जलने लगा है।घटनास्थल पहुंचकर मशालों की कांपती हुई रोशनी में वह वीभत्स दृश्य देखकर आतंकित हो गये सुमन और अदिति।सुशीला की गोली से बिंधी खून सनी देह से एक बाघ की खाल लिपटी है।उसके हाथों की हर उंगली में बाघ के नख काले धागे से बंधे हुए। खुले हुए दाहिने हाथ में बाघ के तेज दांत।
विद्युतस्पर्श के शिकार की तरह कुछ देर खड़ी रहकर,पागल की तरह अदिति सुशाली की प्राणहीन देह से लिपट गयी।जोर जोर से रोने लगी वह।रो रोकर बोली,मुझे मालूम था,मेरी इस बेटी को वे मार देंगे।इसके बाद माटी पर बैठकर सुशीला का सिर  अपनी गोद में लेकर परम जतन से उसके माथे और बालों को अपने हाथों से सहलाती रही अदिति।
सुमन आंसुओं से भीगी आंखों से एक टक देखता रहा अदिति की गोद में सोया वृंत से टूटे उसके वाइल्ड फ्लावर को। उसके अनेक सपनों की तरह आज आधी रात को हठात् नींट टूटने से टूट गया वह सपना।उसकी अनेक कविताओं की तरह कलम की स्याही खत्म हो जाने से अधूरी रह गयी एक असंपूर्ण कविता।
खुद को थोड़ा संभालकर,जगरु को हाथ पकड़कर एक तरफ खींच ले गया सुमन। दबे गले से बोला,तुमसे मैंने कहा था न उस पर चौबीसों घंटे नजर रखने के लिए?
-राखछिलाम तो! सुखरा बस्तीर आउर सभी लोगों के साथ सुशीला भी गेछिलो गारो बस्तीत।रात्तिरे सभी के साथ मिलि माच गान कइरतेछिलो।आंखों ही आंखों में रखा था उसे।ऐक समय हठात् देखि वो गायब।ऐतो माइनसेर भीड़े गाय खोजे माफिक खुइजछि उयाक।खुजि ना पाया शैषे मने कैमोन संदो होइलो,जंगलेर तरफे तो जाये नाई?
जगरु ने दबे स्वर में कहा, ओई टाइमे हमार अवस्था भी ऐक बार सोचें।बस्तीर माइनेसके तो कह ना सका हमार मनेर संदो निया।मशाल जलाइया एका जंगलेर भीतर दिया आगे गियाछि।सीना धक धक करे।मनेर भीतरे बाघेर डर। दु तीन मील गिछि, सुनि गुलीर शब्द।ऐकटा ना, लगातार दुईटा।गुलिर आवाज लक्ष्य करि गिरता पड़ता उसी तरफे भागा।ओई खाने पहुंचिया मशालेर रोशनीते देखि चित् हया माटीत पड़ि आछे सुशीला। उल्टाया पल्टाया देखि, शरीले प्राण नाई।गुली लाइगछे पीठे, समस्त शरील खून से भीगा।
-किंतु तब तुमने क्या शिकारी को वहां देखा?
-ना,शिकारीर देखा पाया नाई।
-तो तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि उसी शिकारी ने सुशीला को गोली मार दी?
-दुई तीन दिन धरि फारेस्त दिपार्तमेंतेर वोई शिकारीक बंदूक कांधे जंगले घूमते देखछि। खाली हमी अकेला ना,बस्तीर अनेक माइनसेई दैखचे उयाक।परथम दिन जंगले ऐकटा मोटा सोटा बकरा बांधि गाछेर ऊपर माचाने तमाम राइत बसि छिलो।हमी निच्चय करि कहिते पारि,फारेस्तेर वोही  शिकारी गुली  कइच्चे सुशीलाक।

घर लौटकर बाकी रात बिस्तर पर लेटी जोर जोर से रोती रही अदिति।उसे सुमन ने सांत्वना देने की कोशिश की।उसके शरीर पर,सिर पर  हाथ फेरा।संप्रति उन दोनों के बीच जो व्यवधान आहिस्ते आहिस्ते तैयार हुआ था, वह दूरी उस रात आंखों से अविराम आंसुओं के वर्षण में धुल गयी।जमा हुआ अभिमान बह निकला।सुमन के दोनों हाथ  पकड़कर रुंधे गले से अदिति ने कहा,सुमनदा,चलिये, हम यहां से कहीं और चले जाते हैं।यहां रहने पर सिर्फ सुशीला की याद आती रहेगी।रोज ऐसा लगेगा कि हवा के तेज झोंके की तरह आज रात फिर वह आयेगी।

अगले दिन सुबह जगरु आया।कल रात की घटना के बारे में अनेक खबरें वह जुगाड़ लाया है।जगरु ने कहा, खबर मिलिछे कि कल रात्तिर शिकारी मचाने बैठा नाई, नीचे बकरा भी बांधे नाई।
-क्यों?
-उयार निच्चय मने होईछिलो, बकरा बांधिया कोनो लाभ नाई।
-ऐसी कोई बात हठात् उसके मन में कैसे आयी?
-हठात् ना होय,कोई बोध होय उयाक खबर दिछिलो,जे बाघ मारे खातिर वो जंगल जगंल घूमितिछे, सेई बाघ बकरा खाये ना!
-इसका मतलब यह है कि ऐसा कोई है जो सुशीला का पूरा मामला जनता रहा है। वह यह भी जानता था कि इससे पहले जो दो फारेस्ट गार्ड मारे गये, वे सचमुच बाघ के हमले में मारे नहीं गये।
--ठीक कहिछेन।काइल राइते बस्तीत जब नाच गाना होइतेछिलो,मानुषटा मने होय नजर राखछिलो सुशीलाके।सुशीला बस्ती थिका बाहिर होइतेई दौड़े खबर दिच्छिलो शिकारीक।
सुमन की आंखों और चेहरे पर चिंता की काली छाया।गंभीर गले से उसने जगरु से पूछा, वह आदमी कौन हो सकता है,किसी पर तुम्हें शक है?
-कैवल एक जनेर पर संदो हमार।मगन, मगन उरांव।हमार सुखरा बस्तीत थाके। सालार सुशीलार ऊपर नजर आछिलो।एकदिन सुशीला कथाटा कहिछिलो आमाक।
-क्या कहा था?
-सुशीला कहिछिलो,मगन इशारा करि ताक बुलाये कहे,राइते आना,रुपया दिबो। सुनिया सुशीला थूकछिलो उयार मुखे।लोकटा कहिछिलो,इयार परतिशोध एकदिन मुई निम।
-अब कहां है वह आदमी?
-सकाले उठि गेछिलाम उयार घरे।घरेर माइनसे कहिलो,काइल राइत थिका वो घरे फिरे नाई।
सुमन ने कहा,जितनी जल्दी हो,जहां से हो उसे खोज निकालो। और देखना, वह किसी और के सामने मुंह न खोले।
गंभीर चेहरे के साथ सर हिलाकर जगरु चला गया।
जगरु के चले जाते ही नोकमा आ गये।बोले,रास्ताय जगरुर साथे दैखा।आपनार काछे आईछिलो बोध होय। उयाक पूछि,कि कामे आइच्छिलि? कथा कहे ना,खाली चुप करि थाके।एक्केबारे निकम्मा माइनसेटा।नामजास्राङ (भीषण पाजी)। उयारेई दोषे सुशीला मइच्चे। ओई निकम्मार कथाय अासल कथाटाई भूलि गेलाम।जंगले भीषण झमेला होइचे।बस्तीर मानुषगुला सुशीलार बोडी घिरे बसि आछे।पुलिसके जंगले घुइसते दितेछे ना।खबर पाया अलीपुरदुआर थिका एसपी आइच्चे।आपनाक ऐकबार वोई जगह जाना नागे।
रातभर रो रो कर अदिति भीषण अस्वस्थ हो गयी। कल रात से उसने पानी तक नहीं पिया।सुबह होते ही सिंथिया आ गयी। बोली,आपनि जान, हमी आछि।


रास्ते में चलते चलते नोकमा से सुमन ने सवाल किया, डेड बोडी क्यों रोक ली है? बस्ती के लोग क्या चाहते हैं?
-उयारा कहिछे,फारेस्त दिपार्तमेंतेर जे शिकारी सुशीलाक गुलि करि माइरछे, ताक उयादेर हाथे सौंपे दिते होइबे।बाघेर छाल पीन्दछे बलि पगली माइयेटाक गुल कइरे माइरबे?
-शिकारी अगर कहें कि रात के अंधेरे में बाघ की खाल पहनी सुशीला को बाघ समझकर गलती से उसने गोली चला दी थी?
-आपनि कि कहेन सुमनबाबू! फारेस्त दिपार्तमेंतेर पक्का शिकारी ,वो बाघेर चाल जाने ना! सुशीला बाघेर मतो शिकारीर पर हमला करिले,गुली लागइतो तार सीनाय ना हो तो पेटे। सुशीलार गुलि लाइगछे पीठे। मतलब कि सुशीलाक पीछे थिका गुलि कइरछे वोई शिकारी।
नोकमा जंगल के मानुष हैं।बचपन से अनेक शिकार और शिकारियों को उन्होंने देखा है।शिकार की देह में गोली का निशान देखकर वे कह सकते हैं कि किस ओर से, कितनी दूरी से और किस पोजीशन से,मायने कि ऊपर से या नीचे से गोली चलाई गयी। इस मामले में उनका ज्ञान किसी बैलेस्टिक एक्सपर्ट से किसी तरह कम नहीं है। इसलिए नोकमा के मतामत का सम्मान करते हुए सुमन चुप रहा।
घटनास्थल से करीब पांच मील दूरी पर,जंगल के किनारे सुबह से अपने सिपाहियों और प्यादों के साथ एसपी सुरिंदर सिंह लगातार खड़े इंतजार में हैं।जंगल की बस्तियों के करीब चार पांच हजार लोग उन्हें आगे बढ़ने से रोके हुए हैं।घंटों इंतजार करने के लिए बाध्य होने से एसपी साहब एक साथ अधैर्य और क्षिप्त दोनों हैं।सुमन और नोकमा के पहुंचते ही उन्होंने ऊंची आवाज में कहा,ये गलत अन्याय मांग कर रहे हैं,इन्हें थोड़ा समझाकर कहें।
-क्या अन्याय मांग कर रहे हैं?सुमन ने सवाल किया।
-फारेस्ट डिपारटमेंट के शिकारी को इनके हवाले करने की मांग ये कर रहे हैं वरना डेड बोडी पोस्टमार्टम के लिए लेने नहीं देंगे।
-यह मांग जरुर कानून के खिलाफ है,किन्तु अन्याय है क्या?
-क्या कह रहे हैं आप?कोई भी गैरकानूनी काम अन्याय है।
-ऐसा है क्या? तो सुशीला से बलात्कार भी अन्याय है। सुशीला के मरद की हत्या अन्याय है।बाघ की खाल ओढ़ ली है,सिर्फ इसलिए सुशीला को सरकारी शिकारी ने गोली मार दी,यह भी अन्याय है! इसबार आप बतायें,इन सभी अन्यायों का क्या होगा?
-कानून कानून के रास्ते पर ही चलेगा-
-आप लोग,यानी पुलिस और प्रशासन ,चलने दें तभी न चलेगा!आपने तो मर्जी मुताबिक कानून के चलने का रास्ता बंद कर दिया है!और इसीकी प्रतिक्रिया बतौर इन लोगों ने आपका रास्ता रोक लिया है।
-किंतु इस तरह रोके रखने पर बोडी डीकंपोज हो जायेगी,पोस्टमार्टम संभव नहीं होगा।
-इससे क्या होगा?बोडी डिकंपोज हो गयी या पोस्टमार्टम न हुआ तो क्या होगा?
-वाह,चमत्कार कथा कह रहे हैं आप! पोस्टमार्टम न हुआ तो इंवेस्टीगेशन ही कंप्लीट नहीं होगा।इंवेस्टीगेशन कंप्लीट न हुआ तो अपराधी को सजा नहीं मिलेगी,यह सामान्य सी बात आप नहीं जानते  हैं?
-जानता हूं।किंतु इससे पहले बताइये,इस घटना से पहले बस्ती के जिन मनुष्यों का पोस्टमार्टम हुआ है,उनके बारे में इंवेस्टीगेशन कंप्लीट हो गया है क्या?अपराधियों को सजा मिली है क्या?
एकदम डाइरेक्ट चार्ज! इस आदमी का इतना दुस्साहस,कैफियत मांगने लगा है! एसपी सुरिंदर सिंह के मुंह और कान गरम हो गये,लेकिन माथा गरम करने से काम बनेगा नहीं।जैसे भी हो,यह काम उन्हें हासिल करना है।
गुस्सा दबाकर,अपने को किसी तरह संयत करके सुमन को तीर्यक प्रश्नाघात कर दिया एसपी ने, मैं देख रहा हूं कि पढ़े लिखे एक शिक्षित व्यक्ति होकर भी आप इन्हीं लोगों की तरह बातें कर रहे हैं!
-हां,बोल रहा हूं! क्योंकि मैं समझ चुका हूं कि मेरी तरह पढ़ लिखे शिक्षित लोग इन अपढ़ लोगों को मनुष्य नहीं समझते हैं।उनकी बातें सुनते नहीं हैं या सुनने के बावजूद समझने की कोई कोशिश ही नहीं करते हैं।काफी दिनों से इनके बीच रहने के बाद मैं अब इनकी बातें कुछ कुछ समझने लगा हूं।इसीलिए इनकी तरह बातें करने की कोशिश कर रहा हूं।इन लोगों ने मुझसे क्या कहा है, आपको मालूम है? कहा है,उन्हें आप पर यकीन नही है।
-मुझ पर यकीन नहीं करते,लेकिन वे आप पर तो यकीन करते हैं? आप ही इन्हें समझाकर बताइये न! सुमन को लगा,एस पी के गले का स्वर कुछ नरम हो गया है।
-कोशिश करके देख सकता हूं लेकिन इससे पहले आपको भी एक वादा करना होगा। फारेस्ट डिपार्टमेंट के शिकारी को इम्मीडियेटली अरेस्ट करके उसको सजा दिलाने की व्यवस्था करनी होगी।
सुमन की बातें सुनकर एसपी कुछ देर तक चुप रहे।फिर बोले,ठीक है।
उस परिस्थिति में एसपी के लिए सुमन की शर्त मान लेने के अलावा कोई उपाय नहीं था।किंतु यह बात उनके आत्म अहंकार को चुभ गयी,ऐसा उनकी आंखों और चेहरे को देखकर साफ समझ में आ रहा था।कभी न कभी उन्हें भी मौका मिलेगा और वे आज के इस अपमान का चरम प्रतिशोध ले सकेंगे।

सुमन की बातों पर भरोसा करके वहां जमा जंगल की बस्तियों के लोग अपने अपने घर वापस चले गये।सुशीला की बाघ की खाल से ढकी गोलियों से बिंधी लाश पुलिस उठाकर ले गयी।अलीपुरदुआर के सरकारी अस्पताल  के डाक्टर उसके बर्फ की तरह ठंडे नग्न दुर्गंध से भरे शरीर की चीरफाड़ करके देखेंगे कि कितनी गोलियां उसके आर पार निकल गयीं।उस शरीर को ,जिसमें कभी सौंदर्य था,आकर्षण था,उत्ताप था,मादकता थी। निमति के जंगल में पसीना बहने वाली क्लांत संध्या को जो शरीर अकाल वसंत की स्निग्ध गंध बहाकर लाया था। सुमन के कवि मन के वनवितान में गोपनीय के साथ दुरंत कल्पना का सुवासित एक वाइल्ड फ्लावर खिला दिया था!

सुमन और नोकमा के गारो बस्ती में पहुंचते पहुंचते संध्या हो गयी।दिनभर सिंथिया की सेवा से अदिति अब कुछ स्वस्थ थी।किंतु उसका शरीर अब भी बहुत दुर्बल है।
सुमन के घर में घुसते ही सिंथिया बोली,दीदीमणि कहिछे दुई ऐक दिनेर मइध्येई कि इखान थिका चइले जाइबेन?
-हां।
- कुथाय जाइबेन?
-अभी तय नहीं किया है।
-ऐतो जल्दी कैन?
-फारेस्ट डिपार्टमेंट ने हफ्तेभर का नोटिस दिया है और उस नोटिस की समय सीमा खत्म होने को है।
-समय सीमा खत्म होइले कि होइबे?
-फारेस्ट डिपार्टमेंट के लोग आकर मुझे जबरदस्ती इस घर से बाहर निकाल देंगे।जरुरत होगी तो पुलिस को बुला लेंगे।
-ऐंः,जोर करि बाहिर करि दिबे! हमरागुला बस्तीर माइनसे कि सब मरि गिछे? जंगलेर माइनसे उयादरे जंगले घइसतेई दिबे ना!
-इतने ही दिनों में इतने सारे झमेले हो गये हैं।इसे लेकर फिर झमेला होगा- हो सकता है कि गोला गोली चल जायें और बस्ती के लोगों की जानें जायें।बहुत हुआ,मैं अब यह सब और नहीं चाहता।मैं चाहता हू कि जंगल के मनुष्य शांति से रहें।
-वाह,बड़ो चमत्कार कथा कहिछेन! आप आने से पहिले जंगलेर मानुषगुला बड़ो शांतिते आछिलो! फारस्तेर लोकेर हाथे हर दिन अइत्याचार,हर दिन गुलि, हर दिन माइर! माइयेगुलार इज्जत नष्ट करा।इटाक आप शांति कहेन?आपनि बस्ती थिका चलि गैले उयादेर अत्याचार बंद होइबे, ऐमोन कथा आपनाक के कहिछे? असल कथा कैने कहेन ना,हमरागुला माइनसेर झमेला थिका आपनि भागि बइचते चाहेन।
-एकदम नहीं।तुम यह क्यों नहीं समझती,यह जो झमेला कुछ दिनों से चल रहा है,उसके मूल में मेरे यहां रहने को लेकर फारेस्ट डिपार्टमेंट की अपत्ति है।मैं अब इस झमेला को आगे जारी रखना नहीं चाहता।
सिंथिया कुछ देर तक चुप रही।उसके बाद गंभीर होकर कहा,एई झमेला आगे ना बढ़े, उसका उपाय तो आपनाक कहिछिलाम।
-कि उपाय?
-आपनाक तो सेई दिन कहिछि,केवल उयादेर नियम मानार जइन्यो आमाक बिया करि नैन।
-संभव असंभव कोई बात भी है!
-असंभव कैन? दीदीमणिर मत आछे।आपनि पूछे ना कैन दीदीमणिक?
अदिति ने दुर्बल क्षीण स्वर में कहा,मैंने तो कह दिया है कि इसमें मेरी असहमति नहीं है।
-आउर हमी भी बार बार कहिछि  दीदीमणिर जगहे दीदीमणि थाइकबेन।बिया बोलते सिर्फ दुई जना चर्चे गिया मंत्र पढ़ा।कागज सही करा।बियार कागज तभी फारस्तेर लोकगुलार मुखे मारि कहिबेन,एई ने तोर गुष्टिर तुष्टि।जा घरे जा,दीवारे टांगि राख!
सुमन समझ रहा है कि वह भारी संकट में फंस गया है।किसी तरह की बहस में न पड़कर,सिंथिया को सीधे न कहकर ,अपना सारा सामान बैग में समेटकर अदिति का हाथ पकड़कर अनजानी मंजिल की तरफ अभी के अभी रवाना हो सकता है।किंतु जंगल के इन मनुष्यों के साथ इन कुछ महीनों में उसके और अदिति के जो संबंध बन गये हैं,वह संबंध इतनी सरलता से कैसे तोड़ें वह?


सिंथिया के जाने के बाद क्लांत स्वर में अदिति ने सुमन से पूछा,यहां से कहां जायेंगे,तय किया है?
-अभी कुछ तय नहीं किया है,सोच रहा  हूं।
-क्या सोच रहे हैं? कोलकाता?
-कोलकता जाकर क्या करेंगे? सोच रहा हूं कि फिलहाल अलीपुरदुआर जाकर सुनील सान्याल के वहां ठहरेंगे।
-कर्ज का बोझ और बढ़ायेंगे?
-बहुत ज्यादा दिन सुनील सान्याल पर निर्भर बने रहने की इच्छा नहीं  है- मैक्जिमम हफ्ता, दस दिन।इसी के मध्य किराये का कोई घर खोज लेंगे।घर बेचने का बैलेंस जो रुपये अभी हाथ में हैं,उनसे एक छोटा सा घर बनाने की बात भी सोच सकते हैं। हमें तो बहुत ज्यादा की जरुरत नहीं है, दो कमरे काफी होंगे।
-इतनी जगह के रहते,अलीपुरदुआर ही क्यों?
-पहला कारण अवश्य ही सुनील सान्याल।वैसे एक मनुष्य के आस पास रहने का मौका मिलेगा।दूसरा कारण,बस्तीवालों के मुकदमों की तद्वीर तदारक कर सकुंगा। तीसरा, यहां से अलीपुरदुआर बहुत दूर नहीं है।बीच बीच में आवाजाही हो सकती है। इनकी खोज खबर ली जा सकती है।
रातभर रोते रोते अत्यंत क्लांत अदिति का शरीर।अवसादग्रस्त उसका मन। सुमन के चेहरे की ओर देखते हुए क्षीण कंठ में बोली,मैं अगर इन लोगों के साथ यहीं रह जाउं?
-यह तुम्हारी इच्छा है।क्लांत निर्विकार कंठ से सुमन ने उत्तर दिया।
-मैं चली गयी,तो इनकी पढ़ाई लिखाई एकदम बंद हो जायेगी।अदिति विषण्ण गले से बोली।
सुमन को अच्छी तरह मालूम है कि सिर्फ पढ़ाई लिखाई ही नहीं,बहुत कुछ बंद हो जायेगा।किंतु जितने दिन वह बस्ती में रहेगा,पुलिस के साथ बस्तीवालों का संघर्ष चलता ही रहेगा।उस संघर्ष में निश्चित तौर पर और भी कुछ निरीह मनुष्यों के प्राण नष्ट होंगे।
सुमन कापुरुष नहीं है।अपने जीवन की सुरक्षा के लिए वह चिंतित नहीं है।वह स्वभाव से लड़ाकू है और लड़ाई में पीछे हटने वाला नहीं है।किंतु सुमन को अपनी क्षमता की सीमा मालूम है।वह जानता है कि वह कोई सिनेमा का सुपरमैन नहीं,महज एक आम आदमी है।महाशक्तिशाली राष्ट्रशक्ति के सामने वह तुच्छ एक कीट।जंगल के सरल मनुष्यों को तैयार करके लड़ाई के मैदान में वह ले जा सकता है, किंतु लड़ाई के मैदान में उनके प्राणों की रक्षा की उसमें क्षमता कहां है?
अवश्यंभावी संघर्ष टालने,बक्सा जंगल के निरीह मनुष्यों का जीवन बचाने के लिए सुमन ने आज जंगल छोड़ने का यह फैसला किया है।उनके लिए वह आज सबकुछ त्याग करने को तैयार है,यहां तक कि अदिति को भी।










No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Welcom

Website counter

Census 2010

Followers

Blog Archive

Contributors