बक्सादुआर के बाघ-4
कर्नल भूपाल लाहिड़ी
अनुवादःपलाश विश्वास
तेरह
संध्या में विलियम ने आकर सुमन से कहा,आपनाक आर दिदिमणिक नोकमा उयार घरत जाइबार जइन्य कइछे।
जास्टिन नोकमा के घर पहुंचकर सुमन और अदिति ने देखा,बाहर आंगन में नोकमा के साथ दो लोग बैठे थे।चेहरा ,पोशाक में लगा कि वे शहर से आये होंगे।
नोकमा ने कहा ,ऐनारा सइत्य साधन बाबूर पार्टीर नोक,कोइलकाता थिका आइच्चेन।इनि रमेनबाबू,आर इनि हइच्चेन अमियबाबू।
हाथ जोड़कर दोनों ने सुमन और अदिति से नमस्कार कहा। नोकमा ने कहा,इनि सुमनबाबू,आर इनि होइच्चेन अदिति दीदीमणि।
सुमन से अमियबाबू ने कहा ,सत्य साधन बाबू ने हमें आपके बारे में बताया है। कोलकाता जाने के बारे में आपके साथ उनकी अलीपुरदुआर में कुछ बातचीत भी हुई है।
नोकमा ने कहा,ऐनारा कइच्चेन,रोबार्ट आर तालचिनिर घटना निया ऐनारा कइलकाताय जे अनशन सभा चालाइतेछेन,उसमें बक्सा जंगलेर मानुषगुला शामिल हओवा नागे।हमरागुला माइनसेक गाड़ीभाड़ा,कइलकाताय थाका खाओवार खरच ऐनारा दिबेन।
दोनों के चेहरो को गौर से देखा सुमन ने।व्यक्तिगत तौर पर परिचय न होने के बावजूद इनमें से कोई अजनबी नहीं हैं।इतना कष्ट सहकर,घने जंगल से होकर इतना रास्ता तय करके अचानक इस गारो बस्ती में इनके आगमन का उद्देश्य भी अंदाज करना खूब कठिन नहीं है सुमन के लिए और वह उद्देश्य पुलिस की गोली से मारे गये बक्सा जंगल के मनुष्यों के प्रति सहानुभूति दर्शाने या उनकी समाधान के लिए नहीं है।असल उद्देश्य अनशन मंच पर मृत लोगों के रिश्तेदारों और जंगलात के मनुष्यों के चेहरे टीवी के परदे पर दिखाकर अपने राजनीतिक दल के मानवतावादी चेहरे को वोटरों के सामने पेश करने का है, परिस्थिति का राजनीतिक फायदा उठाना है,यह सहज सरल सत्य उपलब्धि करने में तनिक असुविधा अभिज्ञ सुमन को नहीं हुई।
सुमन ने कहा,मैंने सत्य साधन बाबू से उसीदिन कहा है,इस वक्त मेरा कोलकाता जाना संभव नहीं है,बहुत सारे काम यहां बाकी है।तालचिनि थाने ने अभी तक रोबार्ट का एफआईआऱ दर्ज नहीं किया है।तालचिनि में जो तीन लोग पुलिस की गोली से मारे गये हैं,उस मामले में पुलिस ने तहकीकात शुरु ही नहीं की है।
-आप न जायें,बाकी लोग तो जा ही सकते हैं ,रमेन बाबू ने कहा।
-जा सकते हैं,उनकी मर्जी।इस बारे में मुझे कुछ कहना नहीं है।
-क्यों कुछ नहीं कहना है? क्या आप इनसे कह नहीं सकते,आप लोग जायें?
-नहीं, नहीं कह सकता।ये क्या करें या न करें,यह मैं क्यों बताने लगा?
- इसका मतलब यह है कि आप नहीं चाहते कि जंगलात के इन लोगों पर सत्ता दल की सरकार और पुलिस प्रशासन के लोग इतना भीषण जो अत्याचार कर रहे हैं,वह देश के लोगों को मालूम हो! कैसे इन निरीह लोगों को आतंकित कर रखा है! आप क्या नहीं चाहते कि इनकी समस्याओं का समाधान हो?
जरुर चाहता हूं,लेकिन दूधमुंहा शिशुओं की तरह राजनीतिक दल की गोद और पीठ पर चढ़कर नहीं।एक दिन ये लोग अपने पांवों पर खड़ा होना सीखेंगे।उसदिन अपनी शक्ति से अपने पांवों पर खड़ा होकर ये अपनी समस्याओं का समाधान कर लेंगे!
-क्या कह रहे हैं आप? राजनीतिक दल की मदद के बिना ये खुद कुछ कर सकेंगे? इतनी क्षमता इनकी है?
-आज शायद नहीं है,लेकिन किसी दिन हो जायेगी।मुझे इसका यकीन है।
-आप इन्हें मिसगाइड कर रहे हैं!
-मैं कैसे इन्हें मिसगाइड कर सकता हूं?अच्छा बुरा तय करने की इनमें यथेष्ट बुद्धि है।अपनी बुद्धि से सही रास्ता ये लोग खुद चुन लेंगे।
-खुद तय कर लेंगे! क्या कह रहे हैं सुमनबाबू? इतनी विद्या बुद्धि इन्हें हैं? होती तो देश आजाद होने के इतने दिनों बाद भी ये इन हालात में क्यों पड़े रहते?
अमियबाबू के गले में श्लेष।अमियबाबू के कहे का सूत्र पकड़कर रमेनबाबू ने कहा,अच्छा सुमनबाबू,हमारी पार्टी क्या आम लोगों के लिए कुछ नहीं करती है,विपद आपदा में इनके साथ खड़ी नहीं होती?
-होती है,लेकिन उनकी मदद के लिए नहीं।सिर्फ आपका दल नहीं,कोई दल इनकी तरह आम लोगों के लिए कुछ भी नहीं करता है.क्योंकि उनका उद्देश्य समस्या का समाधान करना नहीं है,समस्या को और गहरा देने का है,समस्या की आड़ में अपने पक्ष में राजनीतिक दलों के साथ संघर्ष को और तीव्रतर करना है।याद रखें,राजनीतिक दल का प्राथमिक उद्देश्य सत्ता पर कब्जा करना है,सत्ता में बने रहना है-लोगों की समस्याओं का समाधान करना नहीं है!
-क्या कह रहे हैं आप?समस्या का समाधान न करें तो लोग क्या वोट देंगे? वोट न मिलें तो राजनीतक दल सत्ता में कैसे आ सकता है?
-आ सकता है,जैसे आज आया है।वर्तमान देश के राजनीतिक रणांगण में,
बहुपार्टी परिस्थिति में,मात्र पच्चीस प्रतिशत या उससे भी कम वोट लेकर सत्ता में आना संभव है।इसका मायने यह है,पच्चीस प्रतिशत लोगों को विशेष कुछ सुविधाएं देकर बाकी पचहत्तर प्रतिशत मनुष्यों की अवहेलना करके भी सत्ता हासिल की जा सकती है।जंगल के इन लोगों को देख रहे हैं, साल दर साल इनकी संपूर्ण अवहेलना करके ,इनका एक भी वोट लिये बिना, हर पांच साल में कोई न कोई राजनीतिक दल चुनाव जीतता रहा है,सत्ता में आता रहा है।इसी तरह भविष्य में भी जीतता रहेगा, सत्ता में आता रहेगा।इसमें कोई असुविधा नहीं होनी है।
-इसका मायने यह हुआ कि आप कह रहे हैं कि इनकी हालत में बदलाव कभी नहीं होने वाला है? प्रश्न रमेनबाबू का।
-होगा,बदलाव अवश्य ही होगा।लेकिन किसी राजनीतिक दल की कृपा से नहीं। कामतापुरी ,नक्सल या अलफा की मदद से भी नहीं।आपके हमारे जैसे लोगों की कृपा से नहीं।परिवर्तन आयेगा अपनी शक्ति से,अपनी निरंतर लड़ाई के मध्य से।इस लड़ाई का मतलब पुलिस को गोली से उड़ाना नहीं है,स्वास्थ्यकर्मी की गाड़ी को माइन ब्लास्ट से उड़ाना नही है।
थोडा़ रुककर सुमन ने कहा,मेरे बचपन में जर्मनी के वेतार केंद्र से पराधीन भारतवासियों को संबोधित नेताजी के भाषण के एक अंश का खास असर हुआ था, जिसमें उन्होंने कहा,आजादी भीख मांगकर नहीं मिलती,आजादी हासिल की जाती है। उनकी तरह मेरा भी विश्वास है कि अधिकार भीख में नहीं मिलते हैं,अधिकार अर्जित करना पड़ता है अपनी शक्ति से,निरंतर लड़ाई के मध्य।
थोड़े व्यंग्यात्मक लहजे में रमेनबाबू ने कहा,ऐसे सब बड़ी बड़ी वैचारिक तत्वकथा हमने बहुत सुना है।
-तत्व कथा नहीं है,एकदम सत्यकथा है यह।इस हालत से इनकी मुक्ति का एकमात्र उपाय अपने दोनों पांवों पर खड़े होकर निरंतर संग्राम करना है।उसी संग्राम के मध्य खुद को संगठित करना है,अपनी शक्ति में वृद्धि करनी है।गणतंत्र में यही पावर या शक्ति ही निर्णायक है।हाथों में पावर हो तो राजनीतिक दल आपके पांव पड़ेगा, खुशामद करेगा,सुयोग सुविधा दिला देगा।और पावर न हो तो फुस्स। कोई मुड़कर भी देखने वाला नहीं है।इस पल आपको सहायता के नाम पर इन्हें दुर्बल बनाना नहीं चाहिए, आत्म शक्ति के बजाय दूसरों पर निर्भर बनाना नहीं,अनुदान देकर पैरासाइट बनाना नहीं, बल्कि आपको चाहिए कि ऐसी उचित व्यवस्था करें कि ये आत्मनिर्भरशील हो जायें,संगठित होकर खुद को शक्तिशाली बना सकें। ताकि शक्तिशाली होकर ये यथार्थ स्वतंत्रता अर्जित कर सकें,मजबूत हाथों से राष्ट्रशक्ति से अपने प्राप्य गणतांत्रिक अधिकार छीन सकें!
थोड़ा रुककर स्मित मुस्कान के साथ सुमन ने कहा,किंतु मुझे मालूम है कि आप ऐसा नहीं करने वाले हैं।क्योंकि आप कभी नहीं चाहेंगे कि आम लोग स्वाधीनचेता बनें, संगठित हों, शक्तिशाली बनें, आत्मनिर्भर हों- क्योंकि यह आपके राजनीतिक हितों के विरुद्ध है! आप चाहते हैं,जनता व्यक्तित्वहीन,परनिर्भरशील,दुर्बल बनी रहे-जिससे आप उन्हें हमेशा दलदास बनाकर रख सकें।गणतंत्र का मायने संख्याधिक्य का खेल है। इसलिए आजादी के बाद से ,अपने दल के अनुगतों की संख्या वृद्धि करने के लिए सभी दलों में दलदास बनाने का कंपीटिशन चल रहा है।स्कूल,कालेज,आफिस,फैक्ट्री -सर्वत्र तैयार हो रहे हैं लाख लाख कोटि कोटि दलदास।ये ही ट्रेंन,बस,मेटाडोर में लदकर इलेक्शन रैली के मैदानों को भरते रहते हैं।
-हमारे देश के राजनीतिक दलों ने पृथ्वी के वृहत्तम गणतंत्र के एक सौ तीस करोड़ नागरिकों में से ज्यादातर को अत्यंत सुचिंतित और परिकल्पित तरीके से व्यक्तिस्वतंत्रताहीन वोटयंत्र में तब्दील कर दिया है,ठीक ईवीएम यंत्र की तरह! युवा मेला के नाम पर युवक दलदास दीक्षादान उत्सव चल रहा है।मगज धुलाई करके तैयार की जा रही है लाखोंलाख रोबोट जैसे हर्माद और कैडरवाहिनी।जिनके जरिये जारी है संत्रास।
थोड़ा हंसकर सुमन ने कहा,आप लोगों को याद होगा कि स्वामी विवेकानंद ने भारतवासियों के बारे में क्या कहा है? उन्होंने कहा था,मुसलमानों और अंग्रेजों की दासता,पांच सौ साल की पराधीनता ने हमें रीढ़हीन बना दिया है।आज वे जीवित रहते तो शायद यही कहते,साठ साल के राजकाज से राजनीतिक दलों ने भारत के एक सौ तीस करोड़ नागरिकों को व्यक्तिस्वतंत्रताहीन दलदास बना दिया है।
अपनी कलाई पर घड़ी की तरफ देखते हुए रमेनबाबू ने कहा ,रात हो गयी है।हमें अब जाना होगा।
-ऐतो राइते कुथाय जाइबेन,खाना पीना करि आज राइतटा एठेइ काटाये जान। व्यवस्था एकटा हया जाबे,दिकदारि कुछ नहीं है।
-हमारे रुकने के बारे में आपको चिंता करने की जरुरत नहीं है।पड़ोस में राभा बस्ती के विश्वेश्वर राभा के वहां हम ठहरे हैं,रात हम वहीं बितायेंगे,मोड़े से उठते हुए बोले अमियबाबू।फिर जास्टिन मोमिन से पूछ लिया,काम के दबाव में सुमन बाबू तो जा नहीं सकते,आप आ रहे हैं न ?
-ना, थानाय जाया रोबार्टेर काजकम्मागुला आगे शेष करा नागे।उत्तर सुनकर वे दोनों खुश नहीं हुए,उनके चेहरे से लग रहा था।
रवाना होने से पहले नाराजगी किसी तरह छुपाते हुए रमेन बाबू ने कहा-ठीक है,काम खत्म हो तो आइयेगा।
सुमन से जास्टिन मोमिन ने कहा,आपनारा बसेन,आमि इनादेर एकटु आगाये दिया आसि।
उन तीनों के चले जाते ही सिंथिया ने कहा,चलेन,भीतरे चलेन,ग्लोबिया घरत शुति आछे।
घर में घुसकर सुमन और अदिति ने देखा,ग्लोबिया बिस्तर पर लेटी है।उन्हें घुसते देखकर उठकर बैठने की कोशिश की उसने,लेकिन उठ नहीं सकी।
-रहने दो,तुम्हें उठने की जरुरत नहीं है,सस्नेह अदिति ने उससे कहा।
सिंथिया ने बिस्तर के पास दो मोड़े रख दिये।बोली,सेइ बिहान काल थिका चैष्टा कइरतेछि,एइ सइनझा पइर्यंत किछु खवाइती पारलाम ना।खाली कय ना,ना!
- छिः ग्लोबिया,ऐसा कैसे चलेगा? अब भी तुम पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो।ऐसा करने पर तुम फिर बीमार पड़ जाओगी।ग्लोबिया के माथे पर सस्नेह हाथ फेरते हुए अदिति ने कहा।सिंथिया से कहा,तुम ले आओ।मैं खिलाती हूं।
रो रो कर ग्लोबिया की दोनों आंखें लाल हो गयी थीं।पिछले तीन चार दिनों से अनाहार और प्रचंड परिश्रम से उसका अस्वस्थ शरीर अत्यंत दुर्बल है।उसे किसी तरह बिस्तर पर बैठाकर,मां की तरह स्नेह के साथ थोड़ा थोड़ा करके खिला दिया अदिति ने।
सिंथिया और सुमन ने ग्लोबिया की बिस्तर के एक तरफ खड़े रहकर चुपचाप देखा झरना धारा की तरह स्वतः प्रवाहित,प्रभात की सूर्यकिरण की तरह स्नेहालोक में आलोकित अदिति के अंतःसलील मातृस्नेह की वर्णच्छटा।
चौदह
रमेन और अमियबाबू को राभा बस्ती में पहुंचाने के बाद घर लौटते हुए वापसी के रास्ते सुमन की कही बातों पर सोच रहे थे जास्टिन मोमिन।तब वे खूब ध्यान लगाकर सारी बातें सुन रहे थे।उन सभी बातों को बार बार मन ही मन उलटते पलटते हुए उन्हें लग रहा था,ये बातें खारिज कर देने लायक नहीं हैं।अमूमन ये बातें कोई करता नहीं है। सहज सरल और जोरदार बातें।सुन कर वे दोनों लोग कैसे तो चुप हो गये,सिमटकर रहे सारा समय- जैसे जोंक के मुंह पर नमक गिरा हो।ऐसे ही मनुष्य पर भरोसा किया जा सकता है, मन ही मन कहा जास्टिन मोमिन ने।
एक के बाद एक दुर्घटना से उनका मन टूट गया था।एक तीव्र हताशा उनके शरीर और मन पर हावी होने लगी थी।खुद को वे प्रचंड असहाय समझने लगे थे।नोकमा की हैसियत से उनकी जिम्मेदारियां भी हैं।किंतु इन परिस्थितियों में क्या करें ,बस्ती के लोगों से क्या कहें,समझ नहीं पा रहे थे।सुमन की बातें सुनकर उन्हें हिम्मत बंधी है। वे समझ गये हैं कि टूटने से काम नहीं चलेगा।अनुभव कर चुके हैं कि अपने ही दोनों मजबूत पांवों पर खड़े होकर,किसी की मदद लेकर नहीं,किसी की कृपा या अनुकंपा की भीख लेकर नहीं, खुद परिस्थितियों का मुकाबला करना होगा।ये बातें सोचते हुए शरीर और मन में नये सिरे से ताकत लौट आयी है,उस जवानी की ताकत,जब बक्सा के जंगल में अकेले खाली हाथ उन्होंने बाघ के साथ लड़ाई की थी।नोकमा ने गारो बस्ती की तरफ अपने कदम तेज कर दिये।
घर में पांव रखते ही सिंथिया बोली-ऐतो समय लागाइला,बाबू आर दीदीमणि तखोन थिका बइसे आछे,कइलाम रात हइछे,खाया नैन,कय नोकमा लौटि आयें..।
-बाबूगुलार साथे कथाय कथाय देरी होइलो,किछुतेई छाड़े ना,बारे बारे कहे बस्तीर लोक जन निया कइलकाता आसेन,खाली बुझाय कइलकाताय गैले दैशेर समस्त माइनसे हमरागुला माइनसेर दुःख कष्टेर कथा जाइनते पाइरबे-
- क्या कहा तुमने? खाते खाते पूछा सुमन ने।
-कइलाम,अन्य माइनसे ना,हमरागुला माइनसेर दुःख कष्ट हमरा निजेइ दूर कइरबो।अन्य कारोकिसी का साहाय्य नागे ना।यह बात सुनकर सुमन काफी देर तक एक टक देखता रहा जास्टिन मोमिन के चहरे की तरफ।जहां कहीं असहायबोध या अवषाद का चिन्ह मात्र न था-उनके दोनों जबड़े लोहे की तरह मजबूत,दोनों आंखें शुक्र तारा की तरह उज्ज्वल।
खाना पीना खत्म होने के बाद नोकमा ने कहा,काइल थिका नोकफांतेत आपनागुलार खाओवा दाओवार बंदोबस्त हया जाइबे।विलियमके कया दिछि।आर ऐकटा कथा।काइल बिहाने चर्चे आइसबेन,मरा मानुषगुलार जइन्य बस्तीर मानुष प्राथ्थना कइरबे।
सुमन और अदिति अगले दिन सुबह चर्च पहुंचे,तब लोगों ने आना शुरु कर दिया था।भीतर घुसकर वे दोनों एक बेंच पर बैठ गये।
यह चर्च उत्तर गारो बस्ती के ठीक बीच में है।जंग लगा करोगेटेड टीन की छत है।जिसका कुछ हिस्सा टूटकर गिरा है तो कुछ आंधी में उड़ गया है।ब्रिटिश जमाने में पादरियों के सौजन्य से कबके बना यह चर्च।सुखरा बस्ती जाने के रास्ते इसकी खंडहर दशा नजर आयी थी सुमन को।
ऊपर की तरफ देखते हुए अदिति ने कहा ,इसकी जो हालत देख रही हूं ,कहीं अभी न गिर जाये।इस चर्च की कोई मरम्मत क्यों नहीं कराता?
-कौन करेगा मरम्मत? बस्ती के लोगों का सामर्थ्य नहीं है और अंग्रेज जमाने के वे पादरी भी नहीं हैं।फारेस्ट डिपार्टमेंट के लोग कह रहे हैं कि जंगलात की जमीन पर चर्च, मंदिर, मसजिद, कब्रगाह यह सब बनाने की इजाजत नहीं है।
-इसका मतलब तो यह हुआ कि वनों में रहने वालों को धार्मिक आस्था और अपने परिजनों की लाशों के अतिम संस्कार का अधिकार भी नहीं है।
-ना,नहीं है।गणतांत्रिक राष्ट्र के नागरिकों के जो हक हकूक मिलने चाहिए,उनमें से ज्यादातर इन्हें नहीं मिले हैं।फिर इन्हें यही भी मालूम नहीं है कि संविधान ने इन्हें कौन कौन से अधिकार दिये हैं।क्योंकि इन्होंने संविधान कभी पढ़ा नहीं है या यह जानने की कोशिश नहीं की है कि पृथ्वी के वृहत्तम गणतंत्र के संविधान में क्या क्या लिखा है!
-जानकर भी क्या हासिल होने वाला है! इनकी बात छोड़ दें,आपने तो संविधान पढ़ रखा है,नागरिकों के सारे अधिकार आपको कंठस्थ हैं।लेकिन क्या आप अपने गणतांत्रिक अधिकारों की रक्षा कर सके हैं? सरकार की आलोचना करने की वजह से पुलिस के खदेडे़ जाने पर आप चोरों की तरह बक्सा के इस जंगल में छुपे हुए हैं! ये बातें अदिति ने थोड़ा ताना मारने के लहजे में कह दिया।
-इस तरह देखें तो मेरी और इनकी समस्याएं एकदम अलहदा नहीं हैं।मेरी तरह ही ये लोग भी समस्त संवैधानिक अधिकारों से वंचित होकर लांछितऔर अपमानित हैं।फिर इन अधिकारों में कानून व्यवस्था,न्याय पाने का अधिकार,सम्मान के साथ जीने का अधिकार मुख्य हैं।ये अधिकार नहीं हैं,इसलिए जंगल के लोग एक के बाद एक गोली खाकर मारे जा रहे हैं और एक के बाद एक महिलाएं बलात्कार की शिकार हो रही हैं।स्वाधीनता के लंबे साठ सालों के बाद भी यह अराजकता है,ये अत्याचार हैं।इन साठ सालों में मनुष्य के कदम चांद तक पहुंच गये,किंतु हमारे समाजशास्त्री,संविधान विशेषज्ञ इस समस्या का कोई समाधान अभी तक खोज नहीं सके हैं!
अदिति ने कहा,समाधान पंडितों के लिए कतई अनजाना नहीं है, किंतु असल समस्या यह है कि कोई राजनीतिक दल उसे लागू होने नहीं देगा।राजनीतिक दलों ने जैसे समस्त क्षमताओं पर एकाधिकार जमाये यह परिस्थति बना दी है,वे किसी भी कीमत पर स्वेच्छा से वह सत्ता छोड़ने वाले नहीं हैं।
-तुम्हारा आकलन एकदम सटीक है,सुमन ने कहा।राजनीतिक दल सुचिंचित तरीके से गणतंत्र के सारे स्तंभों को ध्वस्त कर रहे हैं।पुलिस प्रशासन को उन्होंने रीढ़हीन बना दिया है,जुडिशियरी को वे प्रभावित करने की चेष्टा कर रहे हैं।जब तक पुलिस और प्रशासन राजनैतिक प्रभुओं के प्रभाव से मुक्त होकर स्वतंत्र तरीके से अपने दायित्व का निर्वाह नहीं करते,जब तक कानून के राज की स्थापना नहीं हो जाती,तब तक इन कमजोर मनुष्यों की दुर्गति से रिहाई नहीं है।
तब तक बस्ती के लोगबाग पहुंच चुके हैं।उनके साथ आ गये हैं नोकमा,सिंथिया और ग्लोबिया।
शोकसभा शुरु हो गयी। न्यौता पाकर राजाभातखाओवा के पादरी भी आये हैं। उन्होंने बाइबल के कुछ अंश का पाठ किया।मृत व्यक्तियों की आत्माओं के लिए शांति कामना के साथ ईश्वर से प्रार्थना की।सभा के अंत में मृत व्यक्तियों की स्मृति में उनके निकट आत्मीय परिजनों और बंधु बांधव ने दो चार शब्द कहा,संस्मरण सुनाये।
शोकसभा के अंत में नोकमा जस्टिन मोमिन ने सभी को संबोधित करते हुए कहा, आपनारा एकटुकाल बसेन।आपनादेर साथे कुछु जरुरी कथा आछे।तालचिनि थाना रोबार्ट खूनेर एफआईआर आज अवधि लिया नाई।जे तीन जन बस्तीर मानुष गुलि खाइया मइच्चे,पुलिस तार तदंत शुरुई करे नाई।
सुमन की तरफ देखकर नोकमा ने कहा,एई सुमनबाबूके आप लोग सबाई चीन्हेन। आपनागुलार मत होइले,हमरागुलार एई कामे साहाय्य करार जइन्यो उयाक कहार पारि।कि आपनरा राजी?
एक दो को छोड़कर अधिकांश ने हाथ उठाकर अपनी सम्मति दे दी,राजी।
सलाह मशविरा के बाद तय हुआ,सुमन जास्टिन मोमिन और गारो और राभा बस्तियों के पांच छह लोगों को साथ लेकर आगामी कल सुबह पहले तालचिनि थाने को चलेंगे।वहां से फिर वे अलीपुरदुआर अदालत भी जायेंगे।
चर्च से निकलकर सुमन और अदिति घर लौटने के रास्ते खूब ज्यादा दूर जा नहीं सके कि सुमन ने पीछे मुड़कर देखा कि बस्ती के तीन लोग तेज कदमों से उनकी तरफ आ रहे हैं।नजदीक आने पर उन्हें पहचान लिया।तालचिनि थाने में पुलिस की गोली से जिन तीन बस्तीवालों की मौत हो गयी,उन्हीं के रिश्ते नातेदार हैं। कुछ देर पहले,मृत व्यक्तियों को याद करने के दौरान उन्होंने अपने संस्मरण सुनाये थे।
उनमें से एक ने सुमन से कहा,हमार नाम जीवन राभा।जे तीन जन पुलिसेर गुलि खाइया मइरछे,तार मध्ये सुंदर राभार भाई।आउर जो दो जना मइरछे,इयारा होइलेन उयादेर बाप,वसंत राभा आर भुवन माराक।आपनार साथे हमरागुलार किछु कथा कहार आछे।
-कहिये।रुक गया सुमन।
-गारो बस्तीर नोकमा जास्टिन मोमिन आपनाके सामने राखि बक्सा जंगलेर तमाम बस्तीगुलार लीडार बइनबार चाहे।बस्तीर मानुषगुलाक बुझाइते चाहे,थाना पुलिस कोर्ट काछारी करि गुलि खाओवा मानुष गुलार विचार मिलबे।
- सही कहा है जास्टिन मोमिन ने,सुमन ने मंतव्य किया।
-ठीक ना,गुष्टिर माथा।गुस्से में फट पड़ा जीवन राभा।मिछा कथा कहिछे,बस्तीर माइनसेक भूल बूुझाइछे अयं।कोर्ट काछारी करि आज अवधि जंगलेर कय जन गुलि खाओवा माइनसेर खूनेर विचार होइछे? कय जनार जेइल होइछे या फांसी होइछे? ऐकजनेरओ ना।
-तो आप लोग क्या करना चाहते हैं? सुमन ने पूछा।
-बंदूकेर गुलिर जबाव बंदूकेर गुलि दिया दिते होइबे।जास्टिनके कहिबेन, नोकमागिरि कम फलाइते। बरदोलोई बस्तीर मानुषगुलाक बंदूक पिस्तौल दिया ट्रेंनिंग दिले,तात जैनो बाधा देओआर चेष्टा ना करे।आर,आपनाके ऐकटा कथा कहि, मन दिया सुनेन- इयार मइध्ये आपनार नाक ना घुसाइले भालो हय।इतना कहकर तेज कदमों से जंगल के संकरे रास्ते से शालवन की आड़ में तीनों अदृश्य हो गये।
उस ओर देखते हुए सुमन ने अदिति से कहा,कानून पर,जुडिशियरी पर लोगों की आस्था खत्म हो जाने से उसका नतीजा क्या होता है,अपनी आंखों से देख रही हो।यह भी समझ पा रही हो,बरदोलोई इसी बीच बस्ती के कुछ लोगों के मगज की धुलाई करने में कामयाब हो गया है।बरदोलोई और उनके चेलों का मुकाबला करना जास्टिन मोमिन के लिए खूब आसान काम नहीं होगा।
पंद्रह
तालचिनि के बड़े बाबू ने सुमन से कहा,क्या आयं बायं बोल रहे हैं? किसने कहा कि आप लोगों का एफआईआर दर्ज नहीं हुआ है?
-आप जिस एफआईआर की बात कर रहे हैं वह तो मारपीट के बारे में है।किंतु फारेस्ट गार्ड ने सबके सामने राइफल की बट से रोबार्ट को पीटकर मार दिया,यह साफ तौर पर मर्डर केस है,उस फारेस्ट गार्ड के खिलाफ आपने एफआईआर दर्ज किया है क्या? किया हो ,तो कृपया उसकी एक प्रतिलिपि दें।
- आपसे पहले ही मैंने कहा है कि ऐसी कोई घटना नहीं हुई है।
-कहा है।शायद फिर कहेंगे.एकबार क्या,सौ बार कहेंगे। किंतु सौ बार कह देने से सच झूठ नहीं हो जाता।एक दो नहीं, पांच छह बस्तीवालों की आंखों के सामने जो घटा है,उसे आप झूठ बताकर खारिज नहीं कर सकते।
-कर सकता हूं क्योंकि वे झूठ बक रहे हैं।
-सच झूठ का फैसला करना अदालत का काम है,पुलिस या थाने का नहीं-
-पुलिस का क्या काम है,यह यकीनन आपसे मुझे सीखना नहीं है! एक मामले में अलरेडी आप फंस गये हैं,देखते रहें कि और कितने मामलों में आप फंसते रहेंगे!
-भय दिखा रहे हैं?
- आपकी तरह दिग्गज पंडित को डरा दूं,ऐसी क्षमता क्या मेरी है? बड़े बाबू के गले में व्यंग्य।
- ठीक है, तो अदालत को ही फैसला करने दें कि क्या सच है और क्या गलत।
-अरे, जाइये जाइये,वह सब कोर्ट फोर्ट मेरा खूब देखा हुआ है!
थाने से निकलकर सुमन ने सोचा,ये लोग ही आईन कानून के रक्षक हैं!कहते हैं कि ये लोग ही क्षमतावान अत्याचारियों से कमजोर लोगों को बचायेंगे? सिर्फ पुलिस नहीं,जिस जंगल में ये लोग रहते हैं,उस जंगलात में सब कुछ पर जिनका नियंत्रण है, दोर्दंडप्रताप वनविभाग के अधिकारी,उन सबके साथ हर वक्त लड़कर जंगल के ये मनुष्य कैसे जी सकते हैं? यह तो मगरमच्छ से लड़ते हुए पानी में रहने का जैसा हुआ।
सुमन को मालूम है कि इस असम लड़ाई में ,निरपराध गोलीबिद्ध जंगल के लोगों के नाते रिश्तेदारों की जीत की संभावना बहुत क्षीण है,न्याय की आशा दूर की कौड़ी है एवम् शक्तिशाली लोगों के साथ लड़ाई की परिणति फिर लांछित होना,अपमानित होना है,इस बात से भी सुमन अनजान नहीं है।
इसकी एक झलक इसी बीच थाने के बड़े बाबू की बातचीत से उसे मिली है। फिरभी उसे कोशिशें जारी रखनी हैं।इस पल जंगल के इतने सारे लोगों की आशा भरोसा उसी पर केंद्रित है।निर्भर है भविष्य में सम्मान के साथ मनुष्य की तरह जीने का उनका अधिकार।
सौभाग्य से जंगल के इन मनुष्यों की लड़ाई में अलीपुरदुआर कोर्ट के एडवोकेट सुनील सान्याल उसके साथ हैं।कहा जा सकता है कि चारों तरफ निराशा के गाढ़े अंधकार में,दुर्योग के इस वातावरण में ,सुनील सान्याल ही उसके लिए जलते हुए प्रदीप की शिखा हैं।
उन्हीं सुनील सान्याल ने हर बार की तरह इस बार भी सुमन को निराश नहीं किया है।रोबार्ट के मामले में दिन रात एक करके वे कोर्ट का आर्डर निकाल लाये। तालचिनि थाने को जारी इस आदेश में फारेस्ट डिपार्टमेंट के अधिकारियों के खिलाफ मर्डर केस दर्ज करने का निर्देश दिया गया है।
सुनील सान्याल ने कहा,तालचिनि थाने में उस रात के गोलीकांड के मामले में महामान्य अदालत से एक दरख्वास्त करना होगा।कहना होगा,पुलिस की जांच में हमारा कोई भरोसा नहीं है।निरपेक्ष जांच के लिए जुडिशियल इनक्वैरी का निर्देश दिया जाये। कोर्ट का जो आर्डर अब हमारे हाथ में है,इसीसे हम साबित कर सकते हैं कि पुलिस निरपेक्ष नहीं है- इसीलिए न्याय के हित में,उनकी जांच पर एकदम भरोसा किया नहीं जा सकता।
अलीपुरदुआर से रवानगी से पहले सुनील सान्याल ने सुमन से कहा,इधर कोर्ट कचहरी के मामले में आपको फिलहाल सोचने की जरुरत नहीं है।इधर मैं ही देख लुंगा। आप उधर देखिये,उनके साथ रहें,उन्हें हिम्मत बंधायें।परिस्थिति का फायदा उठाते हुए अनेक लोग अपने हित साधने के लिए इनका इस्तेमाल करना चाहेंगे,गलत रास्ते पर ले जाने की कोशिश करेंगे।आप उनके साथ रहकर उन्हें सही रास्ते पर ले जाने की कोशिश करते रहें।
-आप शायद मेरे पथ दिखाने की क्षमता का कुछ ज्यादा ही आकलन करने लगे हैं!
-मैं आपकी क्षमता की बात नहीं कर रहा ,प्रचेष्टा की बात कर रहा हूं। मैंने आज तक आपकी कोशिशों में कोई कमी कसर नहीं देखी है।मुझे आशा है कि आप यह प्रचेष्टा जारी रखेंगे।यह सिर्फ मेरी आशा नहीं है,जंगल के तमाम लोगों की उम्मीद है यह।
सुमन को साफ साफ लग रहा है कि अपने अनजाने में,उसे केंद्रित सुनील सान्याल और जंगल के लोगों के मन में बहुत सी उम्मीदें पैदा हो गयी हैं।उन आशाओं की मात्रा बढ़ जाने से उसके कंधे पर कर्तव्य का बोझ बढ़ने लगा है।आखिर तक,यह भाऱी बोझ वह कितना ढो सकेगा,यह उसे मालूम नहीं है।
उसके कंधे पर इस बोझ के साथ साग का एक गट्ठर भी हाल में लदना शुरु हो गया है। वह गट्ठर है शहर से आने वाले असंख्य लोगों और मीडिया का।इस घटना के बाद जंगल के लोगों के प्रति शहरी लोगों की सहानुभूति में उबाल आ गया है।टाटा सुमो में लद कर टोलियों में आ रहे रहे हैं लोग।दिन नहीं,रात नहीं,वे सीधे सुमन तक पहुंचने लगे हैं।वनों के इन मनुष्यों की दुर्दशा को लेकर रपटें लेकर वह कभी कोलकाता शहर में जिन लोगों के दरवाजों पर भटकता रहा है और जिन्हें वे रपटें पढ़कर देखने की कभी फुरसत ही नहीं मिली- आज अचानक उनका यह जोश देखकर हैरान हो गया सुमन। उसके साथ तस्वीर खींचवाने के लिए हाथ पकड़कर खींचतान।हर बार की तरह इस बार भी अलीपुरदुआर में जहां डेरा डाला है सुमन ने,उन सुनील सान्याल के घर तक धावा बोल दिया इन लोगों ने।
-आपके घर को तो मैंन हाट बाजार में तब्दील कर दिया।प्रतिमा भाभी की दुर्गति देख लीजिये।प्याली दर प्याली चाय का आर्डर हो रहा है और उन्हें सांस तक लेने की फुरसत नहीं है।सुनील सान्याल से कह दिया सुमन ने।
-जन हित में इतना तो करना ही पड़ता है कितने दूर से कितने कष्ट उठाकर वे आ रहे हैं।
-आपको क्या लगता है कि ये लोग जब टोलियों में यहीं आकर भीड़ जमा रहे हैं,तब उनमें से कोई जंगल के लोगों के हित साधने के लिए आ रहा है? वे तो अपनी पब्लिसिटी के लिए आ रहे हैं !
-हो सकता है।मैं मानता हूं,इससे आपका बहुत वक्त बर्बाद हो रहा है।समझ रहा हूं कि आप बहुत नाराज हो रहे हैं,आपको काम करने में असुविधा भी हो रही है।किंतु इनकी वजह से एक फायदा यह हो रहा है कि देश विदेश के मीडिया में लगातार प्रचार हो रहा है।पहले भी जंगल में ऐसी घटनाएं खूब होती रही हैं,किंतु प्रचार की ऐसी घनघटा कभी देखी नहीं है।
किंतु इस तरह के व्यापक प्रचार और अखबारों में सुमन की तस्वीरों से टीके जैसे व्यक्ति भी बुलावा पाकर चले आ सकते हैं,सलाह मशविरा के वक्त इस संभावना पर सुमन चौधुरी या सुनील सान्याल का ध्यान ही नहीं गया। कामकाज पूरा करके दोनों कोर्ट से निकल ही रहे थे कि गेट के बाहर उनसे मुलाकात हो गयी।
-कि सुमनबाबू,अधम को चीन्ह पा रहे या नहीं?
-ना चीन्हने की कोई वजह नहीं है।तो आप यहां क्या कर रहे हैं?
-आप जैसे महापुरुष के लिए प्रतीक्षा कर रहा था। मैं शिओर था कि इहां ही आपका दर्शन मिलेगा मुझे।
फिर चारों तरफ देख लेने के बाद नीची आवाज में बोले,सुन लीजिये, आपके लिए एक खबर है। आईबी हेडक्वार्टर्स को आपके वर्तमान पते के साथ आपकी तमाम गतिविधियों के बारे में सब कुछ मालूम हो गया है।दो चार दिनों के मइध्ये आपको वे अरेस्ट करने वाले हैं।मैंने आपको खबर कर दी है,अब जो बेहतर समझें,आप करें। इतनी बातें कहकर गेट के बाहर भीड़ में गायब हो गये टीके।
घर लौटते हुए सुमन ने सुनील सान्याल से कहा,मुझे क्या लगता है,जानते हैं,आप और टीके जैसे लोग हैं इसलिए यह दुनिया अपनी धुरी पर चल रही है।वरना कबके असंतुलित होकर धम से गिर गयी होती!
-इऩ सभी संतुलन असंतुलन,गोलमाल वगैरह मामलों में आप मुझे क्यों जोड़ रहे हैं?
-जोड़ नहीं रहा हूं,आप ही जुड़ गये हैं,सर्वशक्ति के साथ जुड़ चुके हैं! इस तरह जोर से आप पकड़े नहीं रहते तो ना जाने कबके मुंह के बल मैं गिर चुका होता।सुनील सान्याल का हाथ कसकर पकड़कर सुमन ने कहा।
-अब ये सब बातें रहने दें,किंतु आईबी के आदमी ने जो कहा है,उस सिलसिले में क्या करेंगे?
सुमन ने निर्विकार गले से कहा,कुछ नहीं करेंगे।
- कुछ नहीं करेंगे ,माने?
- माने,भागुंगा नहीं। वे चाहें तो अरेस्ट कर लें।
- किंतु यह मामला कोलकता का है।वे अरेस्ट करके कोलकाता ले जायेंगे आपको, वहां कोर्ट में पेश करेंगे।
-करना है तो करेंगे। किंतु ना,अबकी भागेंगे नहीं।अरेस्ट होने के डर से क्रिमिनल की तरह बक्सा के जंगल में आकर भूमिगत हो गया था मैं।किंतु जिस डर से भागा मैं, आखिरकार मैं वह गिरफ्तारी क्या टाल सका, हाजतवास टाल सका? नहीं सका। एक बार अरेस्ट होने का जो मतलब है, दस बार अरेस्ट होने का भी मतलब वही है।एक रात हाजतवास और दस रात हाजत वास के बीच कोई फर्क नहीं है।एकबार जब डर टूटा है तो फिर डर कर भागुंगा क्यों?
थोड़ा थमकर सुमन ने कहा,इस मुद्दे पर अदिति से मेरी बात हो गयी है।वह भी अब गारो बस्ती छोड़कर कहीं और जाना नहीं चाहती।
-फिर अरेस्ट कर लें तो मैं तो हूं।कोलकाता के कोर्ट में भी मेरे बंधु बांधव कम नहीं हैं।वैसे जरुरत हुई तो मैं भी चला जाउंगा।सुमन को हिम्मत बंधाने लगे सुनील सान्याल।
-आपकी यहां की प्रैक्टिस की तो पहले ही बारह बजा चुका हूं,कोलकाता आप चले गये तो यह लाइन ही आपको छोड़नी पड़ जायेगी।
होंठों के कोण से थोड़ा हंसे सुनील सान्याल।बोले,सुमनबाबू, आप निश्चिंत रहे, मेरे लिए ऐसा कोई दुर्दिन कभी नहीं आयेगा।आप लोगों की शुभेच्छा से सुबह शाम लाइन लगाकर मुवक्किल मेरे घर के सामने खड़े रहते हैं।मैं कोलकाता गया तो खाली हाथ नहीं जाने वाला, हाईकोर्ट के केस में दो चार मुवक्किलों को कांख में दबाकर लेता चलुंगा।
बाहैसियत वकील सुनील सान्याल की साख सुमन की नजर में है।मुवक्किलों की भीड़ संभालने में उन्हें काफी परेशानी होती रहती है।दिन में कोर्ट के कामकाज के दबाव की वजह से लगभग रोज ही सुनील सान्याल को घर के चैंबर में आधी आधी रात मुकदमों का ब्रीफ तैयार करना होता है,यह भी सुनील की नजर से छुपा नहीं है।
सुमन ने मुकदमे की सुनवाई के वक्त अदालत कक्ष में भी उनकी दबंगई देखी है। जज साहबों की तरफ से उन्हें काफी सम्मान मिलता है,वे भक्ति श्रद्धा भी करते हैं।
रोबार्ट के मामले में जिरह के दौरान सुमन ने जज साहब को बाकायदा विपक्ष के वकील को धमकाते हुए सुना है,सुनील बाबू की दलीलों को ध्यान से सुन लीजिये,इससे आपके ज्ञान और बुद्धि दोनों में इजाफा होगा।
सोलह
अदिति अलीपुरदुआर से सुमन की लायी किताबों को उलट पुलट कर देख रही थी। बोली,सुनीलबाबू का कर्ज हम इस जनम में तो क्या सात जनम में भी उतार नहीं पायेंगे।
-मुझे भी ऐसा ही लगता है।दीवार पर लगे छोटे से आइने के सामने दाढ़ी बनाते हुए अदिति की ओर मुड़कर कहा सुमन ने।इसके बाद हल्के मिजाज में सवाल कर दिया, लेकिन अगले जनम नें मैं कहां जनमुंगा बताना जरा?
-जहां जनमने पर आपको कर्ज अदा करने में सहूलियत होगी, मसलन अलीुपुरदुआर में-
-हां, अलीपुरदुआर, गुड सजेस्शन।वहां के लोग सज्जन हैं।कोलकाता के लोगों की तरह उतने चालाक चतुर नहीं हैं,उतने स्वार्थी भी नहीं हैं।अनेक सहज सरल।मंतव्य किया सुमन ने।
-यह शायद तराई अंचल में प्रकृति का वरदान है।प्रकृति की गोद में रहने की वजह से लोग अपने प्राकृतिक गुणों को आज भी बहाल रखे हुए हैं।ठीक इस इलाके के शाल के पेड़ों की तरह,सहज सरल।
सुमन ने कहा- मुझे लगता है कि इसकी एक वजह और है।सिर्फ पेड़ पौधे,नदी झरना पहाड़ पर्वत नहीं, इस अंचल के वाशिंदों में गारो,मेच,राभा,उरांव -इन सभी सहज सरल शांत चरित्र भूूमिपुत्रों का नियत सान्निध्य भी एक कारण है।प्रकृति और प्राकृतिक मनुष्यों के साथ सारे संबंध तोड़कर,ईंट पत्थर के अप्राकृतिक वातावरण में वास करने की वजह से ही कोलकाता जैसे बड़े बड़े शहरों के लोगों ने उनके प्राकृतिक गुणों को खो दिया है।मनुष्यता खो दी है।प्रकृति से विच्छिन्न होकर मनुष्यताहीन यांत्रिक मनुष्य तैयार हुआ है।माने,कुछ रोबोट।
-तब कोलकाता नहीं,अलीपुरदुआर ही बेहतर है।कर्ज उतारने के लिए अगले जनम में वहीं जन्म लें आप।
- मेरा जन्म स्थान तो तय हो गया,लेकिन तुम्हारा? तुम कहां जन्म लोगी? आइना से मुंह मोड़कर सुमन ने पूछा।
-यहीं,इस गारो बस्ती में।एक जनम नहीं,सात सात जनम।
-क्यों?
-कारण मैं जो करना चाहती हूं,इन्हें लेकर जो सपना देखती हूं,वह एक जनम में संभव होगा,ऐसा लगता नहीं है।यहां तक कि सात जनम में भी संभव है या नहीं,सही सही कह नहीं सकती।
-बुरा नहीं है,मैं अलीपुरदुआर में और तुम बक्सादुआर के जंगल में।बीच बीच में मुलाकात हो भी सकती है।बहुत रसघना किसी हिंदी फिल्म की गंध मिल रही है।समय हाथ में होता तो लिख कर मुंबई के किसी प्रोड्युसर को भेज देता।
बहुत दिनों बाद सुमन इतने हल्के मिजाज में बातें कर रहा है।लग रहा है कि उस पर मानसिक दबाव काफी कम हो गया है।मन में जो द्वंद्व चल रहा था,उसका समाधान हो गया है।आज वह बहुद हद तक चिंतामुक्त है।
कोलकाता से भागकर इस जंगल में आने के बाद उसके भीतर का दबा हुआ आक्रोश,एक असहायबोध दिन रात उसे अस्थिर बनाये हुआ था,वह हीनताबोध का शिकार होने लगा था।कोई रास्ता सूझ नहीं रहा था,तय भी नहीं कर पा रहा था कि इसके बाद कहां जायेगा,क्या करेगा वह।भीषण किस्म की एक अस्थिरता ने दिन रात उसे अशांत कर रखा था,एक पल के लिए भी राहत नहीं मिल रही थी।
संप्रति जो भीषण आंधी उसपर गुजर गयी,उस आंधी में उसकी जिंदगी की नैया पर लगा पाल फटकर टुकड़ा टुकड़ा हो गया।अब उसकी पालहीन नौका स्रोत के वेग में आप ही भागने लगी है, उद्दाम उलट पुलट हवाओं में वह नौका अब उथाल पथाल, टलमल नहीं है।स्रोत जिस तरफ बहा ले जायेगा नौका भी उसी दिशा में चलेगी- इसलिए इसे लेकर वृथा चिंता क्यों? अनिश्चित भविष्य को लेकर वृथा शंकित क्यों? जो आ रहा है,आने दो।वज्र भी हो अगर तो सीना फैलाकर ग्रहण कर लेगा सुमन। कोई भी आघात सह लेगा हंसी के साथ।
एक के बाद एक अनेक आघात ने सुमन के मन में दार्शनिक निर्भीकता का सृजन कर दिया है।भविष्य में अवश्यंभावी और दृश्यमान आघातों को लेकर इसलिए आज वह उतना चिंतित नहीं है,आशंकित नहीं है।
शाम को नोकमा सुमन से मिलने चले आये।उनके साथ दो लोग। नोकमा ने परिचय कराया- इनि राभा बस्तीर गांवबूढ़ा विश्वेश्वर राभा आर इनि होलेन जयंती बस्तीर जलेश्वर राय।इनारा ठीक कइच्चेन,काइल जयंती बाजारेर मैदाने ऐक बड़ो सभा कइरबेन।फारेस्त दिपार्तमेंतर राइफलेर कुंदार मार खाया आर पुलिसेर गुलि खाया जे लोकगुला मइरेचे,उयादेर आत्मीय कुटुंब आर जंगलेर सकल बस्तीर माइनसे मिलि सभा बुलाया है।आपनाके सेई सभाय थाका नागबे।आपनि सभाय कहिबेन,अलीपुर दुआर कोर्ट की की फैसला दिछे,हमरागुलाक आउर कि काम करा नाइगबे।
जयंती की उस सभा में सुमन और अदिति गये थे।जयंती बाजार का वह मैदान विभिन्न बस्तियों से आये आठ दस हजार पुरुष महिलाओं से भर गया था।सुमन ने उनसे कहा,रोबार्ट माराक की हत्या के केस में अदालत ने थाना को फारेस्ट डिपार्टमेंट के अफसरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने का निर्देश जारी कर दिया है और तालचिनि थाना परिसर में बस्ती के तीन लोगों की हत्या के मामले में अदालत को दरख्वास्त किया गया है कि वह जल्द जांच पूरी करके अपराधियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस को निर्देश दें।जरुरत हुई तो कोलकाता हाईकोर्ट में जाकर न्यायिक जांच के लिए दरख्वास्त किया जायेगा।
जो बात सुमन ने इकट्ठे बस्ती वालों को अच्छी तरह समझा दिया है,वह यह है कि यह आसान लड़ाई नहीं है।अभी हमें न्याय मिल जायेगा,ऐसी उम्मीद करना सही नहीं होगा।यह लड़ाई दीर्घकाल चलेगी।इसके लिए हमें तैयार रहना होगा,धीरज बांधना होगा।आखिर में सुमन ने कहा,अगर हम संगठित बने रहें,तो अंत में हम यह लड़ाई जीतेंगे ही,अपराधियों को यथायोग्य सजा भी मिलेगी- यह दृढ़ विश्वास हमारे मन में होना चाहिए।
जलेश्वर राय ने सभा में खड़े होकर सुमन से कहा, हाल में जो दो घटनाएं घटी हैं और जिन दो घटनाओं को लेकर हम आज इस सभा में मिले हैं,आपके जंगल में आने से पहले ऐसी असंख्य घटनायें होती रही हैं।उन सभी घटनाओं में जंगल में रहने वाले अनेक मनुष्यों की जानें गयी हैं,अनेक लड़कियों की इज्जत गयी है।अनेक जन सुनवाई हो चुकी है,शहरों के बड़े बड़े लोगों ने यहां आकर हमारे दुःख कष्ट की कथा व्यथा सुनी है,लेकिन उससे कुछ हुआ नहीं है।
-आपनिई परथम जे कइतेछेन निजेर पांवे खड़ा हया लड़ाई करा नाइगबे।दरकार होइले कोर्ट काछारीते जाइते होइबे।इयार आगे एकदल आसि हमरागुलाक बुझाइछे, तोमरागुला जंगली मानुष,तोमरागुलार की क्षमता आछे फारेस्त दिपार्तमेंतेर लोकेर साथे आर पुलिसेर साथे लड़ाई कइरबि?तोमरागुलार कि विद्या बुद्धि आछे कोर्ट काछारिते जाया मामला चालाइबि? बंदूक कांधे निया आर एक दल आसिया बुझाइछे, लडा़ई करो- ने गुलि बंदूक ने,खतम करिया दे फारेस्त दिपार्तमेंतेर आउर पुलिसेर लोकगुलाक! हमरागुला राजी होई नाई।किंतुक आइज आपनि जे लड़ाइयेर कथा कहितेछेन, से लड़ाई अन्य लड़ाई।लंबा जतो हउक,कठिन जतो हउक- हमरागुला समस्त जंगलेर मानुष एई लड़ाइये राजी आछि।
जलेश्वर राय ने सभा में उपस्थित बस्तीवालों को संबोधित करके पूछा, कहेन, सुमनबाबूर संगे आछेन?
सभी ने हाथ खड़ा करके जबाव दिया,आछि।
जलेश्वर राय ने सुमन से पूछा,आपनि केवल हमरागुलाक कहेन,ऐखोन कि करा नागे।टाका पइसा जा दरकार,हमरा चंदा बटोरी जुगाड़ करि आपनाक दिम।आपनि निश्चय करि समझि राखेन,एई लड़ाईये बक्सादुआर जंगलेर दस हजार मानुष आपनार संगे आछेन।
उस विशाल जन समुद्र की ओर घूमकर जलेश्वर राय ने प्रश्न किया,आपनारा कहेन, सुमनबाबूर संगे आछेन?
-आछि! एक स्वर में जवाब दिया सभा में समवेत दस हजार मनुष्यों ने।
जेल बंदी होने की आशंका से सुमन एक दिन शहर से भागकर इस बक्सादुआर के जंगल में आ छुपा था।अब उसे इस सभा में समझ में आने लगा है कि जंगल के इन दस हजार मनुष्यों की आशा भरोसा और प्रत्याशा के जाल में आज वह कैद हो गया है। इन्हें छोड़कर कैसे भागेगा सुमन? वह किस नये शहर में जाकर छुपेगा? इज्म पर ढेरों किताबों को पढ़कर जिस रास्ते को वह इतने दिनों से खोज नहीं सका,आज वह पथ उसे हाथों के इशारे से बुला रहा है! यह पथ छोड़कर और किस रास्ते पर चलेगा वह?
जयंती की सभा खत्म होते ही जंगल के रास्ते गारो बस्ती के लिए रवाना हुए सुमन और अदिति।उनके पीछे पीछे राभा और गारो बस्तियों के करीब दो सौ लोग।वे अपने अपने घर लौट रहे हैं।
रास्ते को दोनों तरफ कतारबद्ध पेड़ों में गुच्छा गुच्छा शिमुल फूल खिले हैं।जंगल के संकरे पैदल मार्ग पर छा गये हैं पेड़ों से झरे हुए असंख्य लाल फूल।सड़क पर बिछे फूलों को सावधानी से बचाते हुए पैदल चलते हुए सुमन ने अदिति से कहा, इनसे सुना कि इस सभा में शामिल होने के लिए इलाके के विधायक अनंत राय राजाभातखाओवा से आये थे।बस्ती के लोगों ने बताते हैं,उन्हें घुसने ही नहीं दिया,गला धक्का देकर खदेड़ दिया।सवाल कर दिया,इतनी बड़ी बड़ी दो दो घटनाओं के बाद अब तक कहां थे आप?
-तो बोलो,आजकल जंगल के लोगों में भी बुद्धि शुद्धि हो रही है।वे अपना भला बुरा समझने लगे हैं। उन सभी नेताओं ने इतने दिनों तक इन्हें भेड़ों के झुंड में तब्दील कर रखा था।जैसा चाहा ,वैसे हांकते रहे हैं इन्हें!
-किंतु अनंत राय के इस अपमान से उनके गुस्से का असर भी तो आप पर होना है!
-होता है तो होने दो,मुझे परवाह नहीं है।
-सुमन के चेहरे की तरफ देखा अदिति ने।वहां किसी दुश्चिंता का लेशमात्र न था।एक दृढ़ आत्म प्रत्यय से उसकी दोनों आंखें चमकने लगी थीं।
सत्रह
बस्ती में नोकफांते पहुंचकर सुमन ने देखा वर्दी में तीन राइफलधारी सिपाही उसके इंतजार में हैं।उनमें एक सब इंस्पेक्टर।उन्होंने कहा, हम तालचिनि थाने से आ रहे हैं।आपके नाम कोलकाता कोर्ट का अरेस्ट वारंट है।
सभा से निकलकर,सुमन और अदिति के पीछे पीछे बस्ती के दूसरे लोगों के साथ पैदल आ रहे थे नोकमा।दूर से पुलिस को देखकर वे तेज कदमों से वहीं चले आये। सब इंस्पेक्टर की बात सुनकर संग संग वे गरज उठे,कोनो पुलिसेर बापेर साइध्य नाई,हमरा थाइकते एई जंगल थिका बाबूक अरेस्ट करि निया जाये!
नोकमा को रोक कर सुमन ने सब इंस्पेक्टर से कहा, मैं रेडी होकर आता हूं।शांत गला ,किसी तरह की उत्तेजना या उद्वेग का चिन्ह मात्र नहीं उसके चेहरे पर।
नोकमा ने उत्तेजित होकर कहा,सुमनबाबू,एइटा की करेन? आप चलि गैले बस्तीर मानुषगुलार की होइबो? रोबार्ट आर गुलीखाया मरा मानुशगुलार न्याय कि होइबे?
-इसे लेकर चिंता न करें।अदिति है,वह देख लेगी।सीढ़ी चढ़ कर नोकफांते के भीतर चला गया सुमन।दो मिनट में कंधे पर बैग डालकर लौट आया।सब इंस्पेक्टर को छोटा सा इशारा किया,चलिये।जाते जाते अदिति से कहा,इनका सारा दायित्व तुम पर छोड़े जा रहा हूं।अपना ख्याल रखना।समस्त उत्कंठा सीने में दबाये रखकर उदास आंखों से अदिति उसी ओर देखती रह गयी।
कोलकाता में एडवोकेट सुनील सान्याल के मित्रों की मदद के बावजूद जमानत मिलने में करीब तीन महीने बीत गये।इस देरी की वजह,पुलिस का टाल मटोल रवैया है।सभी मामलों में गयं गच्छ रवैया।केस डायरी और चार्ज शीट जमा करने में ढाई महीने से ज्यादा वक्त खपा दिया।
जमानत की अर्जी हाथों में लेकर जज साहेब ने पूछा, आपके खिलाफ पुलिस ने क्या अरोप लगाये हैं,आपको मालूम है?
-नहीं सर।
- राष्ट्र के विरुद्ध विद्रोह,सेडिशन।समझें?
-नहीं, नहीं समझा।
- इसका मायने यह है कि राष्ट्र के विरुद्ध आपने युद्ध घोषणा की है।अब समझें?
-ना, सर।नहीं समझा।
-आप पढ़े लिखे हैं,इतनी सरल बात आप समझ नहीं रहे हैं?
-ना
-अच्छा, कहिये तो कौन सी बात समझ में नहीं आयी?
-यही युद्ध की बात।
- क्यों, युद्ध शब्द का मायने आप नहीं जानते?
- वह मालूम है। किंतु मेरे पास ढाल तलवार,राइफल बंदूक यह सब कुछ नहीं हैं। तो मैंने राष्ट्र के खिलाफ युद्ध की घोषणा क्या लेकर कर दी?
-जज साहेब ने टेबिल से कलम उठाकर कहा, इस कलम से।इस कलम से आपने सरकार के विरुद्ध बहुत कुछ लिखा है।
- सरकार के खिलाफ कुछ लिखने का मतलब ही क्या युद्ध घोषणा है,राष्ट्रद्रोह है? संविधान ने तो मुझे सरकार के खिलाफ बोलने और लिखने का अधिकार दिया है।
-दिया है।लेकिन जो मर्जी वह लिखने के लिए नहीं।बगल की मेज को पीटते हुए, काफी जोर से सरकारी वकील ने कहा।उसका स्टाइल देखकर बहुत दिन पहले देखी किसी फिल्म की याद आ गयी, जिसमें वकील की भूमिका विख्यात अभिनेता विकास राय ने निभाई थी।
सिनेमा के उस दृश्य की बात सोचते हुए थोड़ा अनमना हो गया सुमन।उसे लग रहा था जैसे यह सिनेमा का वह सजा हुआ सेट हो, कस्टियुम पहने मेकअप किये हुए जज साहब और काला कोट पहने जबरदस्त सरकारी वकील स्क्रिप्ट के मुताबिक संवाद बोल रहे हैं,अभिनय के बाद प्रोड्युसर से वाउचर पर दस्तखत करके पांच सौ रुपये लेेंगे, इसी तर्ज पर।
अनमना होकर सुमन अदालत कक्ष से अचानक सिनेमा के हल्के में चला गया था। सरकारी वकील के मेज पीटकर दिये भाषण से वह होश में आया।वह कह रहे थे, आप तो महाशय,जो मर्जी सो लिख रहे हैं।यह आपकी पत्रिका के 27 जुलाई के अंक में लिखा है,सरकार आतंक के हथियार के बतौर कमजोर लोगों के गणतांत्रिक अधिकारों को बूटों से रौंदने के लिए पुलिस का इस्तेमाल कर रही है।फिर यहां लिखा है,फारेस्ट डिपार्टमेंट और पुलिस की अशुभ मिलीभगत से वनभूमि का ध्वंस हो रहा है।वनों में रहने वाले लोग अकथ्य अत्याचार के शिकार हो रहे हैं।यह सब क्या राष्ट्रविरोधी बातें नही हैं?
-यह मुझसे नहीं,जस्टिस अमरेश मजुमदार से पूछ लीजिये।सरकारी वकील के सिनेमाई स्टाइल से संगत करते हुए सुमन के गले में विनय की मात्रा थोड़ी ज्यादा ही हो गयी।एक ही सुर बनाये रखकर वह बोला,उनकी उपस्थिति में ही बक्सा के जंगल में जो जन सुनवाई हुई थी,उस पर आधारित जो रपट तैयार की गयी,जस्टिस अमरेश मजुमदार के दस्तखत हैं।मैंने अपनी पत्रिका में जो भी लिखा है,उसी रपट के आधार पर ही लिखा है।महामान्य अदालत चाहे तो मैं उस रपट की प्रतिलिपि पेश कर सकता हूं।
सुमन की बातें सुनकर सरकारी वकील महोदय चुपसा गये।फिर उनने सुमन की जमानत की अर्जी का खूब जोरदार कोई विरोध नहीं किया।सुनील सान्याल के मित्रों की मदद से जमानत मिलने में उसे किसी असुविधा का सामना नहीं करना पड़ा।
सुमन की जमानत की खबर भी कोलकाता के अखबारों में प्रमुखता के साथ छप गयी।खबर मिलते ही मीडिया और विरोधी राजनीतिक दलों के दलालों ने उसे घेर लिया।सुमन को अच्छी तरह मालूम है कि जंगल के लोगों की समस्याओं को सुलझाने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है,बल्कि वे इस समस्या को मुद्दा बनाकर अपने अपने हित साधने के चक्कर में हैं।टेलीविजन चैनल भी स्टुडियो के ठंडा घर में गर्मागर्म चर्चा के जरिये अपनी टीआरपी बढ़ाना चाहते हैं।
विरोधी राजनीतिक दल मेट्रो चैनल पर अनशन करके,राजपथ पर जुलूस निकालकर,रास्तों और गलियों के मोड़ पर नुक्कड़ सभाएं करके,विधानसभा में हंगामा बरपा कर अपनी अपनी पोपालिरिटी बढ़ाने के जुगत में हैं।किंतु जिन्हें लेकर यह बाजार गरम है,इतना हंगामा बरपा है,वे जिस अंधेरे में हैं,उसी अंधेरे में ही उन्हें रहना है।
इनकी दुर्दशा की फिल्म दिखाकर फिल्म निर्देशक विश्वविख्यात हो जायेंगे, लेखक किताब छपवाकर पारितोषिक लेंगे,वह किताब बेचकर कमाये पैसों से अपनी किस्मत बदल डालेंगे,किंतु इससे जंगल के हतभाग्य मनुष्यों का भाग्य बदलेगा नहीं!
बहुत देखने सुनने के बाद सुमन आज समझने लगा है - बहुत स्वार्थी और बहुत निष्ठुर है यह पृथ्वी। यहां किसी के दुःख कष्ट,लांछना,तिरस्कार,चरम दुर्भाग्य और अपमान दूसरे के लिए सौभाग्य का सोपान है।यहां एक की निराशा का काला अंधकार, दूसरे के लिए प्रसिद्धि और उज्ज्वल भविष्य का मौका है।किंतु सुमन को यह सब नहीं चाहिए।
मीडिया की आंखें चौंधिया देनेवाली तेज रोशनी से दूर,राजनीतिक दलों के शोरशराबे और ढाक नगाड़ों के बोल को नजरआंदाज करते हुए,दर्द के उबाल में सराबोर स्वेच्छासेवी संस्थाओं के प्रेमातुर दृष्टि से छुपकर वह निःशब्द अपना काम करना चाहता है।नीरव ही अपने भाग्य को उन हतभाग्य मनुष्यों की किस्मत से नत्थी करना चाहता है।उनके झुके हुए कंधों पर पांव रखकर अपने वर्चस्व की आकांक्षा से नहीं,बहुत दिनों से जमा हुआ जंगल के गाढ़े अंधकार से प्रकाश के राज्य में अतिक्रमण की प्रचेष्टा में जंगल के लोगों के हाथों में हाथ रखकर वह बंधुत्व के पथ पर कदम से कदम मिलाकर चलना चाहता है।
मीडिया उसके ताच्छिल्य से हतप्रभ है।अपने प्रचार का मौका मिले तो सभी जहां कूदने लगते हैं,वहां सुमन का निस्पृह यह भाव देखकर उसकी समझ में नहीं आ रहा है कि यह आदमी पागल है या मूर्ख।वरना ,पब्लिसिटी को यह सुनहला मौका कोई इतनी लापरवाही से कैसे गवां सकता है!
पुराने दोस्त भी सुमन के रवैये से बहुत खुश नहीं हैं।वे सुमन को कई सेमिनारों और जनसभाओं में ले जाने के फिराक में थे।अत्यंत विनम्रता के साथ सुमन ने उनसे कह दिया, मुझे अब यह सब अच्छा नहीं लगता है भाई।
-क्यों अच्छा नहीं लगता है? कभी रोज सेमीनार और मीटिंग जो करते थे।
- उस वक्त और इस वक्त में बहुत फर्क है।तबकी दृष्टिभंगी और अबकी दृष्टिभंगी में जमीन और आसमान का फर्क है!
-क्या कहते हो सुमन? इन कुछ महीनों में दृषिटभंगी इतनी बदल गयी?
-हां,बदल गयी है।तब इन लोगों के बारे में जो जानता था या कहता था ,वह सब किताबें और कागजात पढ़कर।इन कुछ महीनों में इनके बीच रहकर जो जाना है या समझा है, अधिकांश मामलों में पहले की उस विचारधारा से उसका कोई मेल नहीं है।
-तो सेमीनार में यही बता देना।डेलीगेटों को वास्तव परिस्थिति के बारे में जानकारी मिलेगी।
-डेलीगेट वास्तव परिस्थिति की बात जान भी लें तो क्या जंगल के उन मनुष्यों की अवस्था बदल जायेगी?
-निश्चय ही बदल जायेगी-
-कैसे?
-जनमत बनेगा,इससे सरकार पर दबाव पड़ेगा।
-दबाव बढ़ने की बात से मतलब यह कि वोटों में कमी होने का डर।बक्सा के जंगल में स्वास्थ्य केंद्र नहीं है,यह जानकर,वहां अस्पताल जाते हुए किसी महिला का रास्ते में गर्भपात हो जाने से मृत्यु हो गयी है, यह जानकर, कुछ बस्तीवालों की पुलिस की गोली से मृत्यु हो गयी है यह जानकर,क्या देश के वोटर सत्तादल को कम वोट देकर हरा देंगे? ऐसा अगर नहीं हुआ तो किस दबाव की बात करते हो? यह वास्तव भूलने से नहीं चलेगा कि हमारे देश में लोग वोट अपने निजी हित साधने के लिए देते हैं,खुद कुछ पाने की गरज से,दूसरों के दुःख दर्द करने के खातिर नहीं।कुड़नकुलम या जैतापुर परमाणु भट्टी तैयार होने पर वहां के लोगों के नुकसान के बारे में सोचकर पश्चिम बंगाल या ओडीशा के लोग क्या सत्ता पर काबिज सरकार को वोट डालकर हरा देंगे? उत्तराखंड में गंगा नदी पर एक के बाद एक बांध बनाकर बाढ़ में वहां को लोगों के घरबार बह जाने की वजह से क्या गंगाकिनीरे बसे भिन्न राज्यों बिहार और बंगाल के वोटर क्या वोट के जरिये सत्ता दल का तख्ता पलट देंगे?
-और एक बात।राजनीतिक दलों ने देश के अधिकांश जनगण को व्यक्ति स्वतंत्रताहीन पार्टीबद्ध गुलामों में तब्दील कर दिया है।देश के हालात समझकर नहीं, जिस पार्टी के वे गुलाम बने हुए हैं,अंधे की तरह वे उसी पार्टी के हक में वोट डालते हैं। कांफ्रेंस सेमीनार करके इन सभी लोगों को दूसरों की समस्याओं के बारे में जागरुक बनाकर वोट बाक्स के माध्यम से सत्तादल पर दबाव बना देंगे,यह कल्पना बहुत दूर की कौड़ी है।
- तो तुम कहना चाहते हो कि इन सबका कोई मूल्य नहीं है?
-मैंने ऐसा नहीं कहा है।इतना कहा है कि वर्तमान हमारे देश के सामाजिक राजनीतिक वातावरण में इन सभी हतभाग्य मनुष्यों की समस्याओं के तत्काल समाधान के लिए कोलकता या दोहा में बैठकर सेमीनार या कांफ्रेंस की कोई भूमिका नहीं है।इस वक्त उनकी जो समस्याएं हैं,उन्हें उनको ही सुलझाना है,बाहरी किसी की कोई मदद लिये बिना।उनके लिए अगर कुछ करना चाहते हो तो जंगल में जाकर उनके साथ रहो। उनके सुख दुःख में शामिल हो जाओ।लड़ाई के लिए उनकी शक्ति और आत्म विश्वास बनाने में मदद करो।
काफी हद तक निराश होकर लौट गये सुमन के शहरी तमाम दोस्त।फिर सुमन शहर के शोर शराबे और तेज रोशनियों से दूर चुपचाप लौट गया अंधकार बक्सा दुआर के आपात शांत गारो बस्ती में।
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